मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

अध्याय का सार

1. शुरूआती छपी किताबें
आरम्भ में छपाई का काम केवल जापान, कोरिया तथा चीन में ही होता था। चीन में पुस्तकें किनारों से मोड़कर बनाई जाती थीं जिसे एकॉर्डियन कहा जाता था। यहाँ आरम्भ से नौकरशाही थी जिसका परीक्षाओं के लिए चीन में पुस्तकें छापी जाती थी। 17वीं सदी तक तकनीकी विकास के कारण मुद्रण प्रक्रिया चीन मे कुछ परिवार्तित हुई। व्यापारी पुस्तकों से सूचना लेते तो पाठक वर्ग कहानियाँ आदि रुचि से पढ़ता। 19वीं सदी तक मशीनी छपाई का आरंभ हो गया। मध्यकाल में पुस्तकें जापान मे सस्ती थीं।

2. यूरोप में मुद्रण का आना
यूरोप मे चीन बनने वाला कागज 11वीं शताब्दी में पहुँचा। इससे पाण्डुलिपियों का लेखन सम्भव हो पाया माको। पोलो चीन से बुडब्लॉक की संस्कृति लेकर इटली गया। यह तकनीक जल्दी ही सम्पूर्ण यूरोप में फैल गई। इन पुस्तकों को व्यापारी और छात्र पढ़ते थे। यूरोप के पुस्तक विक्रेता इन पुस्तकों का निर्यात करने लगे। पुस्तक विक्रेताओं के यहाँ भी सुलेखक काम करने लगे जो पहल केवल अमीरों के लिए ही काम करते थे। परन्तु पाण्डुलिपियों को लिखने में समय तथा धन अधिक खर्च होता तथा सम्भालना कठिन हो जाता था। 15वीं सदी में धार्मिक चित्रों आदि का मुदण होता था।

प्रिटिंग प्रेस मॉडल की इजाद गुटेन्बर्ग ने 1448 में की। उसमें पहली छपी पुस्तक ‘बादबल’ थी। 180 प्रतियाँ तीन वर्ष में छपी। आरम्भ में इस प्रकार की पुस्तके पाण्डुलिपियों के समान ही थीं। 1450-1550 तक यूरोप के अधिकतर देशों में छापेखाने थे। यांत्रिक मुद्रण के कारण मुद्रण क्राति सम्भव हुई।

3. मुद्रण क्रांति और उसका असर
यांत्रिक मुद्रण तकनीकी के कारण मुद्रण क्राांति हुई जिसके कारण जीवन में परिवर्तन हुआ। जो लोग पहले केवल पुस्तकें सुना करते थे, जब वे उन्हें स्वयं पढ़ने लगे। अब पुस्तकें अधिक संख्या में छपती थीं। इस कारण वे सस्ती थी। अतः अधिकतर लोग उन्हें खरीदने में सक्षम थे, परंतु केवल पढ़े-लिखे लोग ही पुस्तकें पढ़ पाते थे। साक्षरता डर अत्यन्त कम थीं। ऐसे लोग पुस्तकें सुनकर मनोरंजन प्राप्त करते।

फैलाने लगे जो बहस का मुद्दा भी बन जाते। छपी पुस्तकों के प्रति लोगों में डर होता था कि जनता पर इनका क्या प्रभाव पड़ेगा।
धर्म के क्षेत्र में इसी छपाई के द्वारा मार्टिग लूथर 95 स्थापनाएँ छापी। उन्होंने प्रोटेस्टेन्ट धर्म-सुधार का आरम्भ किया। छपे हुए साहित्य के कारण लोग धर्म की व्याख्याओं से परिचित हुए।

4. पढ़ने का जुनून
यूरोप में 17वीं तथा 18वीं सदी में 60% से 80% तक साक्षरता दर थी। इस कारण लोगों में पुस्तकें पढ़ने का जुनून उत्पन्न हुआ फेरीवाले गाँव-गाँव जाकर पुस्तकें बेचते.थें जिनमें पंचांग तथा चैपबुक्स प्रमुख थीं। 18वीं सदी से पत्रिकाओं का मुद्रण हुआ जिसमें मनोरंजन भी होता था। अब लोग दार्शनिक और वैज्ञानिक पुस्तकें भी पढ़ने लगे।

लोग पुस्तकों को ज्ञान का भण्डार मानने लगे जिसक द्वारा परिवर्तन सम्भव था। मुद्रण संस्कृति के कारण ही फ्रांसीसी क्राति सम्भव हुई, क्योंकि इसके द्वार अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई।

5. उन्नीसवीं सदी
19वीं सदी तक प्रथमिक शिक्षा अनिवार्य हो गई। 1857 में फ्रांस ने एक प्रेस का आरम्भ किया जो बच्चों की पुस्तकें छापते थें। जल्दी ही महिला लेखिकाएँ और पाठिकाएँ समाज में अहम् हो गई। 17वीं सदी में वे पुस्तकालय उभरे जो किराए पर पुस्तकें देते थे। 18वीं सदी में प्रेस धातु से बनती थी। 19वीं .सदी के अंत तक ऑफसेट प्रिटिंग आरम्भ हो गई फिर धारावाहिकों के रूप में उपन्यासों की पत्रिकाओं में छपने लगीं।

6. भारत का मुद्रण संसार
पुराने समय में पुस्तकें भारत में ताड़ के पत्तों या हस्तलिखित रूप में कागज पर लिखी जाती थीं। यह क्रम 19वीं सदी तक चला। प्रिटिंग प्रेस 16वीं सदी में पुर्तगाली गोवा लेकर आए। 1674 तक 50 पुस्तकें कोंकणी एवं कन्नड़ में छपी। पुरानी पुस्तकों के अनुवाद, तमिल पुस्तकें आदि छापी गई। अंग्रेजीपत्रिका का सम्पादन 1780 में जैम्स ऑगस्टर, हिक्की ने आरम्भ – किया । इस प्रकार 18वीं सदी के अंत तक पत्र-पत्रिकाएँ तथा अखबार बड़ी संख्या में छपने लगे।

7. धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें।
19वीं सदी के आंभ में धार्मिक बहसें विद्यमान रहती थीं। कुछ समाज में परिवर्तन चाहते थे तो कुछ उसमें सुधार प्रिटिंग के कारण विचारों को दूर-दूर तक पहुँचा पाना संभव था। भारत में सामाजिक बुराइयों का उल्लेख इन पुस्तकों में किया गया। 1810 में रामचरितमानस का प्रकाशन किया गया। 19वीं सदी के मध्य तक लिथोग्राफी संस्करण छपने लगे। धार्मिक पुस्तकें अनेक भाषाओं में छपने लगी। पुस्तकों ने भारत को आपस में जोड़ने का काम भी किया।

8. प्रकाशन के नए रूप
यूरोप में उपन्यास नामक साहित्यिक विधा का जन्म हुआ जो कहानियों तथा फैटेसी पर आधारित होती थी। पाठकों ने उपन्यास से एक नए संसार का अनुभव किया 19वीं सदी के अतं तक चित्र आदि भी छपने लगे। इसके अतिरिक्त कैलेण्डर आदि भी छपने लगे। 1870 के दशक से कार्टून भी छपने लगे जो व्यंग्यात्मक होते थे।

महिलाओं के जीवन पर भी पुस्तकें लिखी जाने लगी। नारी-शिक्षा को महत्ता दी जाने लगी। परंतु कट्टर परिवारों में औरतों का पढ़ना-लिखना बुरा माना जाता था। जिन औरतों ने पढ़ना-लिखना सीखा, उन्होंने अपनी आप बीती आत्मकथाओं के रूप में लिखी। 20वींसदी में नारी अशिक्षा, विधवाजीवन/विवाह आदि पर पुस्तकें लिखी गई।

19वीं सदी में मद्रासी क्षेत्रों में पुस्तकें सस्ते दामों में चौराहों पर बेची गई जिन्हें गरीब जनता ने खरीदा। सार्वजनिक पुस्तकालय खोले गए। 19वीं सदी में जाति, प्रथा के बारे में काफी कुछ लिखा गया।

9. प्रिंट और प्रतिबन्ध
1820 में सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता में प्रेस की स्वतन्त्रता को नियंत्रित करने हेतु कानून पास किए। समाचार-पत्रों में धीरे-धीरे राष्ट्रवाद के प्रचार छपने लगे। 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू हुआ। इसके द्वारा सरकार पिरोर्ट आदि को सेंसर कर सकती थी। इन सबके होते हुए भी औपनिवेशिक शासन का विरोध तथा राष्ट्रवाद का प्रचार जारी रहा। तिलक ने केसरी नामक अखबार निकाला।

मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मुद्रण की आरम्भिक तकनीति किन देशों में विकसित हुई?
उत्तर-
चीन, जापान तथा कोरिया।

प्रश्न-2.
594 ई. में चीन में मुद्रण तकनीक क्या थी?
उत्तर-चीन में काठ की तख्ती पर कागज को रगड़कर पुस्तकें छापी जाती थीं। इस तख्ती पर स्याही लगी होती थी तत्पश्चात् किनारों से किताब को सिला जाता था।

प्रश्न-3.
खुशनवीसी कौन थे?
उत्तर-
चीन के वे लेखक जो किताबों को लिखने में निपुण एवं दक्ष थे, उन्हें खुशनवीसी कहा जाता था। उनमें बड़े-बड़े अक्षरो में किताबें लिखने की दक्षता थी।

प्रश्न-4.
चीनी राजतन्त्र पुस्तकों का प्रयोग क्यों करता था?
उत्तर-
चीने में आरंभ से नौकरशाही विद्यमान थी। कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए परीक्षाएं ली जाती थी। जिसके लिए परीक्षार्थी पुस्तकों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न-5.
17वीं सदी में चीन में छपाई के प्रयोग मे क्या परिवर्तन आया?
उत्तर-
चीन की शहरी संस्कृति का विकास 17वीं सदी में हुआ। मुद्रित सामग्री का प्रयोग विभिन्न व्यावसायी करने लगे। पाठक वर्ग रोचक कहानियां, कविताएँ आदि पढ़ता तो व्यापारी प्रतिदिन की सूचना मुद्रित पत्रिकाओं से प्राप्त करना।

प्रश्न-6.
19वीं सदी तक चीन में किस नई मुद्रण तकनीक का विकास हुआ?
उत्तर-
19वीं सदी में पश्चिमी मुद्रण तकनीक और मशीनी प्रेस का आयात हुआ। शंघाई-प्रिंट संस्कृतिक का जन्म हुआ। यांत्रिक मशीनों ने हाथ की मशीनों की जगह ले ली।

प्रश्न 7.
जापन में छपाई तकनीकी किस प्रकार पहंची?
उत्तर-
चीन में बौद्ध प्रचारक लगभग 768-770 ई. में छपाई की तकनीक जापान लेकर गए।

प्रश्न-8.
डायतंड सत्र क्या है?
उत्तर-
जापान में 868 ई. में डायमन्ड सूत्र नामक पुस्तक थी। इसमे पाठ के साथ-साथ चित्र भी छापे गए थे।

प्रश्न-9.
जापान में पुस्तकों के अतिरिक्त चित्रों को कहाँ छापा जाता था।
उत्तर-
चित्रों को पुस्तकों के अतिरिक्त कपड़ों, ताश के पत्तों एवं कागज के नोटों पर छापा जाता था।

प्रश्न-10.
एदो या तोक्यो संस्कृति किसे कहा गया?
उत्तर-
एदो या तोक्यो जापान की शहरी संस्कृति थी जो चित्रकारी से जुड़ी थी। इसका प्रचलन जापान में 18वीं सदी के अंत तक हुआ जिसमें हाथ से मुद्रित तरह-तरह के चित्र, जैसे-फूलसाजी शिष्टाचार आदि की सामग्री चित्रित थी।

प्रश्न-11.
कितागावा उतामारो पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
कितागावा उतामारो का जन्म 1753 में एदो (जापान के शहर) में हुआ। उन्होंने उकियो नामक चित्रकला शैली में अहम् योगदान दिया। उन्होंने अपनी कला के द्वारा साधारण जन-जीवन का चित्रण किया।

प्रश्न-12.
यूरोप में चीनी कागज किस प्रकार पहँचा?
उत्तर-
आंरभ से ही यूरोप और चीन के बीच व्यापार होता रहा इसी व्यापार के माध्यम से चीनी कागज यूरोप पहुँच गया। इस कागज का प्रयोग पाण्डुलिपियाँ लिखने के लिए किया जाता था।

प्रश्न-13.
वुड ब्लॉक छपाई की तकनीक का यूरोप पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
मार्को पोलो 1295 में चीन से वुड ब्लाक छपाई की तकनीक लेकर इटली गया। जल्दी ही इटली में इस तकनीक से पुस्तकें छपने लगीं। यह तकनीक सम्पूर्ण यूरोप में फैल गई।

प्रश्न-14.
यूरोप के कुलीन वर्गो ने मुद्रित पुस्तकों के लिए क्या राय व्यक्त की?
उत्तर-
कुलीन वर्गों के लोग मुद्रित पुस्तकों को सस्ती, अश्लील तथा अत्यन्त घटिया मानते थे। उनके संस्करण चर्म-पत्रों पर ही सदैव की तरह रहे।

प्रश्न-15.
किताबों की मांग बढ़ने से यूरोप पर क्या असर हुआ?
उत्तर-
जब किताबों की मांग बढ़ी तक पुस्तक विक्रेता पुस्तकें निर्यात करने लगे। पुस्तकों के मेले लगाए जाने लगे। माँग की पूर्ति के लिए नई तकनीकियों का विकास किया जाने लगा। सुलेखक केवल अमीरों यहाँ ही नहीं बल्कि पुस्तक विक्रेताओं के यहाँ भी काम करने लगे। इससे रोजगार वृद्धि हुई और लगभग 50 सुलेखक एक ही विक्रेता के यहाँ काम करने लगे।

प्रश्न-16.
हस्तलिखित पाण्डुलिपियों में क्या कमियाँ थी?
उत्तर-
हस्तलिखित पाण्डुलिपियों से यूरोप में बढ़ती हुई पुस्तकों की माँग की आपूर्ति सम्भव नहीं थी। पुस्तकों की हीथ से नकल करना बहुत खर्चीला था। इससे श्रम तथा समय दोनों ही अधिक लगते थे। हस्तलिखित पाण्डुलिपियों को अत्यन्त ध्यान से रखना पड़ता था। अतः ये अधिक प्रचलित नहीं रहीं।

प्रश्न-17.
पन्द्रहवी सदी में वुड ब्लॉक प्रिटिंग का प्रयोग यूरोप में कहाँ किया जा रहा था?
उत्तर-
वुड ब्लॉक प्रिटिंग के द्वारा चित्र टिप्पणियों के साथ ताश, कपड़ों आदि पर छापे जाते थे।

प्रश्न-18.
आरम्भिक छपी पुस्तकें किस प्रकार की दिखती थीं?
उत्तर-
छपी पुस्तके आरंभ में हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के समान दिखती थीं। धातु के बने अक्षर हाथ की शैली के समान ही थे। फूल-पत्तियों के डिजाइन हाशिए पर बनाए जाते, जबकि अमीरों के लिए यह जगह खाली छोड़ दी जाती थी। वे स्वयं ही इस स्थान पर अपनी मनपसद डिजाइन बनवा सकते थे।

प्रश्न-19.
1450-1550 के मध्य यूरोप में मुद्रण क्षेत्र में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर-
यूरोप के अधिकतर देशों में 1450-1550 के बीच छापेखाने खुल गए। मुद्रक अन्य देशों में छापेखाने को खोलने थे। पुस्तकों के उत्पादन में अत्यन्त वृद्धि हुई। 1450 के बाद लगभग 2 करोड़ मुद्रित पुस्तकें बाजार में आई, जबकि 16वीं सदी में यह संख्या 20 करोड़ हो गई!

प्रश्न-20.
प्लाटेन किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्लाटेन लेटन प्रेस छपाई मे एक बोर्ड होता हैं इसे कागज के पीछे दबाकर टाइप की छाप प्राप्त की जाती है।

प्रश्न-21.
छापेखाने के आने से समाज में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर-
छापेखाने से अधिक से अधिक पुसतकें छपने लगीं जिसके कारण नए पाठक वर्ग का उदय हुआ जैसे-जैसे बाजार में किताबें आई, पाठक वर्ग की संख्या में वृद्धि आई।

प्रश्न-22.
किताबों से किस प्रकार नई सस्कृति विकसित हुई?
उत्तर-
किताबों के विकास से पूर्व लोग धार्मिक ज्ञान, कहानियां आदि सुनते थे। पहले पुस्तकें अधिक संख्या में नहीं छप पाती थीं, परन्तु छपाई से पुस्तकें अधिक लोगों तक पहुँचने लगी। अब जनता श्रोता नहीं, पाठक बन चुकी थी।

प्रश्न-23.
पुस्तकों का संक्रमण सरल क्यों नहीं था?
उत्तर-
पुस्तकों का संक्रमण कठिन था। अधिक लोग पढ़े-लिखे नहीं थे। प्रकाशकों का उद्देश्य था कि वे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सकें। जो पाठक पढ़ नहीं सकते थे, वे सूचना या कहानियाँ आदि सुनते थे। प्रकाशक गाथा-गीत, लोक-कथाएँ छापने लगे जिनमें सुन्दर चित्र भी छपे होते थे। प्रकाशक पुस्तकों का मौखिक प्रसार किया।

प्रश्न-24.
विचारों के प्रसार किस प्रकार बहस का मुद्दा बनें?
उत्तर-
छापेखाने के कारण पुस्तकें सरलता से छपने तथा उपलब्ध हाने लगीं सभी प्रकार के लोग अपने विचार व्यक्त कर सकते जिनमें सत्ता का विरोध, धर्म-सुधार आदि की बातें प्रमुख होती थीं। यह डर पनपने लगा कि इन विचारों के द्वारा आम जनता पर गलत प्रभाव पड़ेगा। धर्मगुरू, सम्राट आदि अक्सर ऐसे विचारों के आलोचक थे जो इन्हें बागी मानते थे।

प्रश्न-25.
प्रोटेस्टेन्ट धर्म सुधार आंदोलन क्या था?
उत्तर-
प्रोटेस्टेन्ट धर्म सुधार आंदोलन का आरम्भ मार्टिन लूथर ने किया। वे कैथोलिक चर्च की कुरीतियों के विरोधी थे। उन्होंने यह आंदोलन 19वीं सदी में 95 प्रतिज्ञप्तियां विटेनबर्ग के चर्च के दरवाजे पर आँगी। इन सभी में कैथोलिक चर्च का विरोध किया गया था। इस आंदोलन से चर्च के विरोध की धाराएँ निकलीं।

प्रश्न-26.
इक्वीजीशन क्या हैं?
उत्तर-
वह प्रथा जिसके अन्तर्गत धर्म-विद्रोहियों को ढूँढ़ कर रोमन कैथोलिक चर्च नियमानुसार सजा देता है, यह इन्क्वीजीशन कहलाता है।

प्रश्न-27.
यूरोप में 17वीं तथा 18वीं शताब्दी में लोगों में पढ़ने का जुनून क्यों उत्पन्न हुआ?
उत्तर-
17वीं सदी सेपूर्व लोगों में साक्षरता दर अत्यन्त कम थी। अगल-अलग धर्मो के समूह 17वीं और 18वीं सदी में गाँवों में स्कूल स्थापित करने लगे। इस प्रकार किसान, गरीब आदि भी शिक्षा पाने लगे। 18वीं सदी के अन्त तक यूरोप के देशों की साक्षरता 60% से 80% तक पहुँच गई। अब लोगों को पढ़ने के लिए पुस्तकें चाहिए थीं, क्योंकि उनमें पढने का जुनून उत्पन्न हो चुका था।

प्रश्न-28.
नए पाठकों के लिए किस प्रकार की पुस्तकें छपने लगीं?
उत्तर-
पाठकों की संख्या बढ़ती देख विक्रेताओं ने अगल-अगल प्रकार की पुस्तकें छापनी शुरू कर दी। ये पुस्तकें मनोरंजन प्रधान होती थीं फिर उन्होंने पॉकेट बुक्स (चैपबुक्स) बनानी आरम्भ की। कभी इतिहास की कहानियाँ, ताक कभी लोक-कथाएँ और कभी प्रेम-कहानियाँ छपने लगीं। अखबारों में दूर-देशों के युद्धों और व्यापार की खबरें छापी जाती थीं। इसके अतिरिक्त दार्शनिक तथा विज्ञान संबंधी पुस्तकें लोगों तक पहुँचने लगीं।

प्रश्न-29.
अठारहवीं सदी में यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत और ज्ञानोदय होगा?
उत्तर-
लोगों में यह विश्वास 18वीं सदी तक पनप चुका था कि पुस्तकें ज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण साधन हैं। लोगों के विचार, अभिव्यक्तियाँ इन पुस्तकों में छपती थीं जो आम जनता के हित की बात करती थी। जनता का मानना था कि किताबें विश्व का स्वरूप बदल सकती हैं। इनके द्वारा निरंकुशवादी सत्ता को समाप्त किया जा सकता है। छापाखाना एक ताकतवर औजार है जिससे ज्ञानोदय होता है।

प्रश्न-30.
क्या मुद्रण संस्कृति और फ्रांसीसी क्रांति में कोई संबंध है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति का संबंध मुद्रण संस्कृति से किया गया, क्योंकि इसके कारण क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई इसके मुख्यतः तीन कारण दिए गए-

(i) छपाई के कारण अभिव्यक्ति और ज्ञानेदय हुआ। चिंतक गलत का विरोध करते तथा सही का समर्थन करते थे। अंधविश्वास, निरंकुश शासन आदि का विरोध हुआ।
(ii) मुद्रण संस्कृति ने वाद-विवाद की स्थिति उत्पन्न की। पुरानी रीतियों, अंधविश्वासों आदि की आलोचना होने लगी। यह रूढ़ियाँ लोगों में बहस का मुद्दा बनती। जनता धर्म और आस्था पर प्रश्न उठाने लगी।
(iii) राजशाही/राजतन्त्र का मजाक 1780 के दशक में अनन्त पुस्तकों में उड़ाया गया। पत्रिकाओं में इनके विरुद्ध कार्टून छपा। जनता पुस्तकों के कारण राजतन्त्र के विरुद्ध भड़क उठी।

प्रश्न-31.
19वीं सदी में पाठकों में क्या अन्तर आए?
उत्तर-
19वीं सदी में यूरोप में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गई। प्रकाशक बाल-पुस्तकें भी छापने लगे। बच्चों के रूप में नया पाठक पर्ग उभरा। उनके लिए कहानियों की पुस्तकें छपने लगीं। महिलाएँ लेखिका तथा पाठिकाओं के रूप में उभर रहीं थीं। वे उपन्यास भी लिखने लगीं। निम्नवर्गीय लोग किराए पर पुस्तकें लेकर पढ़ने लगे। मजदूरों ने स्वयं आत्मकथाएँ लिखीं।

प्रश्न-32:
19वीं सदी में छपाई के क्षेत्र में क्या नए तकनीकी सुधार हुए?
उत्तर-
18वीं शताब्दी के अंत तक प्रेस धातु से बनने लगी। 19वीं सदी के मध्य में शक्ति चालित बेलनकार प्रेस का निर्माण हुआ जो 8,000 शीट प्रति घण्टा छाप सकती थीं। पेपर रील, रंगों, कागज डालने की विधियों में सुधार हुआ।

प्रश्न-33.
मुद्रण युग से पूर्व भारत में छपाई का काम किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर-
पहले भारत में हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का निर्माण किया जाता था। पुस्तकें हाथ से विभिन्न भाषाओं में लिखीं जाती थीं। इसके लिए ताड़-पत्रों का प्रयोग होता था। इन पर चित्र भी बनाए जा सकते थे।

प्रश्न-34.
भारत में प्रिटिंग प्रेस का काम कब आरंभ हुआ?
उत्तर-
पुर्तगाली 16वीं शताब्दी में भारत के गोवा क्षेत्र में प्रिंटिश प्रेस लाए। आरंभ में कोंकणी भाषा में पुस्तकें छापी गई।
तत्पश्चात् 1674 से कन्नड़ भाषा में भी पुस्तकें छपी। 1713 में मलयालम पुस्तक छपी तो डच प्रोटेस्टेन्ट प्रचारकों ने 32 तमिल पुस्तकें छापी। इनमें से कई पुस्तकें अनुवादित होती थीं।

प्रश्न-35.
जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने भारत में छपाई में किस प्रकार योगदान दिया?
उत्तर-
1780 में जेम्स ऑगस्ट हिक्की ने बंगाल गजट नामक पत्रिका आरंभ की। यह एक व्यावसायिक पत्रिका थी जो एक निजी उद्यम थी। इसमें विज्ञापन छपते थे। वरिष्ठ अंग्रेज अफसरों की खबरे छपती। औपनिवेशिक शासन का विरोध भी छापा जाता था।

प्रश्न-36.
मुद्रण संस्कृति को किस प्रकार धर्म-सुधार एवं समाज-सुधार के लिए प्रयोग किया गया?
उत्तर-
यूरोप की तरह भारत में भी मुद्रण तकनीक अभिव्यक्ति का स्रोत बनी। सुधारकों ने जमकर पुरानी रूढ़ियों की कटु आलोचना पत्रिकाओं में की। विधवा-प्रथा, सती-प्रथा, मूर्ति-पूजा आदि का विरोध हुआ तो एकेश्वरवाद का समर्थन किया गया। आम भाषा छापी गई ताकि लोग समझ सकें राजा राममोहन राय का नाम सुधारकों में शामिल किया गया।

प्रश्न-37.
उलेमा समूह किस कारण चिंतित थे? इस चिंता को उन्होंने किस प्रकार दूर किया?
उत्तर-
मुस्लिम राजवंशों का पतन उत्तर भारत में औपनिवेशिक सरकार कारण हो रहा था। उलेमा को लग रहा था कि ब्रिटिश सरकार मुस्लिम कानूनों में परिवर्तन आरंभ कर देगी। इस कारण उन्होंने फारसी तथा उर्दू में मुस्लिम धर्म ग्रन्थों के अनुसार छापे। मुसलमान पाठकों को जीवन जीने का तरीक सिखाया गया। धर्म को लेकर व्याख्या की गई।

प्रश्न-38.
उन्नीसवी सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
उत्तर-
दक्षिण भारत के मद्रासी क्षेत्रों में 19 वीं सदी में सस्ती किताबें चौराहों पर बेची जान लेगी। इस कारण बड़ी संख्या में गरीबों ने पुस्तकें खरीदनी आरंभ कर दी। इस प्रकार पुस्तकालय भी खोले गए जहाँ कम किराए पर पुस्तकें उपलब्ध होती थी। जो गरीबों की पहुँच में थीं।

प्रश्न-39.
जाति-प्रथा का विरोध किस प्रकार किया गया?
उत्तर-
भारत में जाति-प्रथा सदैव विद्यमान थी। लेखकों ने पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में जाति-प्रथा की आलोचना कर इसका विरोध किया। ज्योतिबा फुले ने गुलामगिरी में इस विषय पर लिखा। इसके अतिरिक्त भीमराव-अम्बेडकर, ई.वी. रामास्वामी नायकर ने खुलकर लेखों में जाति-प्रथा का विरोध किया। लेखक धर्म ग्रंथों के भी आलोचक थे।

प्रश्न-40.
मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की?
उत्तर-
औपनिवेशिक शासनकाल का विरोध पुस्तकों के द्वारा सामने आया। सभी राष्ट्रवादियों ने पत्रिकाओं, अखबारों आदि का प्रयोग लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जागृत करने के लिए किया। तिलक ने, उदाहरण के लिए, केसरी अखबार आरंभ किया जिसमें वे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लेख छापते थे। लेखों में राष्ट्रवादी भारतीय जनता को औपनिवेशिक शासन के विरोध में एक होने का आग्रह करते। इस कारण सभी धर्मों के लोग अंग्रेजों के विरुद्ध उठ खड़े हुए।

मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Textbook Questions and Answers

प्रश्न-1.
निम्नालिखित के कारण दें
(क) वुड ब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1395 के बाद आई।
(ख) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने उसकी खुलेआम प्रशंसा की।
(ग) रोमन कैथोलिक चर्च न सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबधित किताबों की सूची रखनी शरू कर दी।
(घ) महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
उत्तर-
(क) मार्को पोलो ने जब चीन की यात्रा 1295 में की तो उसे वुड ब्लॉक प्रिंट का पता चला। इटली वापस लौटते समय वुड ब्लॉक प्रिंट का ज्ञान चीन से लेकर गया। तत्पश्चात् ही यह तकनीक यूरोप में फैल पाई।

(ख) मार्टिन लूथर ने प्रोटेस्टेन्टवाद का प्रचार किया। वे मुद्रण को ईश्वर की सर्वोत्तम कृति मानता, क्योंकि उसके अनुसार इसके द्वारा धर्म-सुधार आंदोलन संभव था। छपाई के कारण नया बौद्धिक वातावरण उत्पन्न हुआ। छपाई से लूथर प्रोटेस्टेन्ट धर्म को फैला पाए।

(ग) पुस्तकों से लोगों को धर्म के विषय में ज्ञान हुआ। इटली के मेनोकियों ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध विचार बनाए। उसे धर्म-विदोही कहा गया और मौत की सजा दी गई। इस कारण परेशान तथा धर्म पर उठाए जा रहे प्रश्नों के कारण रोमन चर्च के प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं ने कई पाबन्दियाँ लगा दी।

(घ) महात्मा गांधी ने यह इसलिए कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लडाई है, क्योंकि ये तीनों ही जनमत व्यक्त करने के तरीके है जिन्हें ब्रिटिश सरकार दबाने का प्रयत्न कर रही थी।

प्रश्न-2.
छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ
(क) गुटेन्बर्ग प्रेस
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार
(ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट
उत्तर-
(क) गुटेन्बर्ग ने अपने अनुभव के द्वारा जैतून प्रेस को अपनी प्रिटिंग मशीन का आधार बनाया। उसमें साँचे का प्रयोग अक्षरों की धातुई आकृतियों को बनाने के लिए किया गया। सबसे पहले अपनी मशीन से गुटेन्बर्ग ने बाइबल छापी।
(ख) इरैस्मस कैथोलिक धर्म-सुधारक थे। वे प्रिंट को लेकर आशंकित थे उनके अनुसार कुछ ही चीजें पुस्तकों में ठीक होती थी; जबकि बाकी विद्वता के लिए हानिकारक होती थीं। वे लोगों को छपी किताब से बचने की प्रेरणा देते तथा इन्हें धर्म विरोधी, अज्ञानी और षड्यन्त्रकारी कहा।
(ग) ब्रिटिश सरकार ने 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू किया इससे सरकार भाषीयी अखबारों पर नजर रख सकती थी। वे अब रिपोर्ट आदि को सेंसर कर सकती थी। यदि किसी खबर को बागी कहा जाता तो उसे छापने से मना किया जाता। चेतावनी नहीं मानने पर मशीनें और अखबार जब्त की जा सकती थीं।

प्रश्न-3. उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था
(क) महिलाएँ (ख) गरीब जनता (ग) सुधारक
उत्तर-
(क) 19वीं सदी मुद्रण संस्कृति के कारण औरतों को पढ़ाया जाने लगा। पत्रिकाओं में लेखिकाओं को स्थान मिलने लगा जिसमें नारी-शिक्षा को जोर दिया गया। परन्तु समाज ने यह माना कि पढ़ना-लिखना महिलाओं के लिए नहीं है। कई महिलाओं के लिए पुस्तकें मनोरंजन थीं तो अन्यों के लिए अभिव्यक्ति का एक स्परूप।
(ख) 19वीं सदी में जब किताबें आम गरीब जनता तक पुहँचने लगीं तो वे उनके लिए अहम् मनोरंजन का साधन बन गई। पुस्तकालयों के खुलने से उन्हें पुस्तके आसानी से मिलने लगीं।
(ग) सुधारकों ने पुस्तकों को अभिव्यक्ति का साधन माना। इनका प्रयोग जाति-प्रथा के विरोध में लोगों को जागृत करना था, जैसे-ज्योतिबा फुले ने किया। विधवा प्रथा का विरोध , नारी-शिक्षा आदि को सुधारों का एक अभिन्न अग माना गया जिसके प्रचार के लिए पत्रिकाओं, उपन्यासों आदि मुद्रित सामग्री छापी गई

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