भूमंडलीकृत विश्व का बनना

भूमंडलीकृत विश्व का बनना

अध्याय का सार

1. आधुनिक युग से पहले
जब हम ‘वैश्वीकरण’ की बात करते हैं तो आमतौर पर हम एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था की बात करते हैं जो मोटे तौर पर पिछले लगभग पचास सालों में ही हमारे सामने आई है। लेकिन जैसा कि आप इस अध्याय में देखेंगे, भूमंडलीकृत विश्व के बनने की प्रक्रिया-व्यापार का, काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते लोगों का, पूँजी व बहुत सारी चीजों की वैश्विक आवाजाही का-एक लंबा इतिहास रहा है। आज जब हम अपने जीवन में वैश्विक आपसी संपर्कों के बारे में सोचते हैं तो हमें उन युगों के बारे में भी जानना चाहिए जिनसे गुज़रते हुए हमारी यह दुनिया ऐसी बनी है।

इतिहास के हर दौर में मानव समाज एक-दूसरे के ज़्यादा नज़दीक आते गए हैं। प्राचीन काल से ही यात्री, व्यापारी, पुजारी और तीर्थयात्री ज्ञान, अवसरों और आध्यात्मिक शांति के लिए या उत्पीड़न/यातनापूर्ण जीवन से बचने के लिए दूर-दूर की यात्राओं पर जाते रहे हैं। अपनी यात्राओं में ये लोग तरह-तरह की चीजें, पैसा, मूल्य-मान्यताएँ, हुनर, विचार, आविष्कार और यहाँ तक कि कीटाणु और बीमारियाँ भी साथ लेकर चलते रहे हैं।

3,000 ईसा पूर्व में समुद्री तटों पर होने वाले व्यापार के माध्यम से सिंधु घाटी की सभ्यता उस इलाके से भी जुड़ी हुई थी जिसे आज हम पश्चिमी एशिया के नाम से जानते हैं।

आधुनिक काल से पहले के युग में दुनिया के दूर-दूर स्थित भागों के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संपर्कों का सबसे जीवंत उदाहरण सिल्क मार्गों के रूप में दिखाई देता है। ‘सिल्क मार्ग’ नाम से पता चलता है कि इस मार्ग से पश्चिम को भेजे जाने वाले चीनी रेशम (सिल्क) का कितना महत्त्व था। इतिहासकारों ने बहुत सारे सिल्क मार्गों के बारे में बताया है।

ज़मीन या समुद्र से होकर गुजरने वाले ये रास्ते न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करते थे बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे।

हमारे खाद्य पदार्थ दूर देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कई उदाहरण पेश करते हैं। जब भी व्यापारी और मुसाफिर किसी नए देश में जाते थे, जाने-अनजाने वहाँ नयी फसलों के बीज बो आते थे। संभव है कि दुनिया के विभिन्न भागों में मिलने वाले ‘झटपट तैयार होने वाले’ (Ready) खाद्य पदार्थों के भी साझा स्रोत रहे हों।

सोलहवीं सदी में जब यूरोपीय जहाज़ियों ने एशिया तक का सगुद्री रास्ता ढूँढ़ लिया और वे पश्चिमी सागर को पार करते हुए अमेरिका तक जा पहुंचे तो पूर्व-आधुनिक विश्व बहुत छोटा सा दिखाई देने लगा। इससे पहले कई सदियों से हिंद महासागर के पानी में __ फलता-फूलता व्यापार, तरह-तरह के सामान, लोग, ज्ञान और परंपराएँ एक जगह से दूसरी जगह आ-जा रही थीं। भारतीय उपमहाद्वीप इन प्रवाहों के रास्ते में एक अहम बिंदु था। पूरे नेटवर्क में इस इलाके का भारी महत्त्व था। यूरोपीयों के दाखिले से यह आवाजाही और बढ़ने लगी और इन प्रवाहों की दिशा यूरोप की तरफ़ भी मुड़ने लगी।

2. उन्नीसवीं शताब्दी (1815-1914)
उन्नीसवीं सदी में दुनिया तेजी से बदलने लगी। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी कारकों ने पूरे के पूरे समाजों की कायापलट कर दी और विदेश संबंधों को नए ढर्रे में ढाल दिया। अर्थशास्त्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की गतियों या ‘प्रवाहों’ का उल्लेख किया है। इनमें पहला प्रवाह व्यापार का होता है जो उन्नीसवीं सदी में मुख्य रूप से वस्तुओं (जैसे कपड़ा या गेहूँ आदि) के व्यापार तक ही सीमित था। दूसरा, श्रम का प्रवाह होता है।

इसमें लोग काम या रोज़गार की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। तीसरा प्रवाह पूँजी का होता है जिसे अल्प या दीर्घ अवधि के लिए दूर-दराज के इलाकों में निवेश कर दिया जाता है। लेकिन उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन की बात अलग थी। अगर उस समय ब्रिटेन खाद्य आत्मनिर्भरता के रास्ते पर चलता तो वहाँ के लोगों का जीवनस्तर गिर जाता और सामाजिक तनाव फैलता। आइए देखें कि इस आशंका के पीछे क्या कारण थे?

अठारहवीं सदी के आखिरी दशकों में ब्रिटेन की आबादी तेजी से बढ़ने लगी थी। नतीजा, देश में भोजन की मांग भी बढ़ी। जैसे-जैसे शहर फैले और उद्योग बढ़ने लगे, कृषि उत्पादों की माँग भी बढ़ने लगी। कृषि उत्पाद मँहगे होने लगे। दूसरी तरफ़ बड़े भूस्वामियों के दबाव में सरकार ने मक्का के आयात पर भी पाबंदी लगा दी थी। जिन कानूनों के सहारे सरकार ने यह पाबंदी लागू की थी उन्हें ‘कॉर्न लॉ’ कहा जाता था। खाद्य पदार्थों की ऊँची कीमतों से परेशान उद्योगपतियों और शहरी बाशिंदों ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वह कॉर्न लॉ को फौरन समाप्त कर दे। – उन्नीसवीं सदी में यूरोप के लगभग पाँच करोड़ लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जाकर बस गए। माना जाता है कि पूरी दुनिया में लगभग पंद्रह करोड़ लोग बेहतर भविष्य की चाह में अपने घर-बार छोड़कर दूर-दूर के देशों में जाकर काम करने लगे थे।

इस घटनाक्रम में तकनीक की क्या भूमिका रही? रेलवे, _ भाप के जहाज़, टेलिग्राफ़, ये सब तकनीकी बदलाव बहुत
महत्त्वपूर्ण रहे। उनके बिना उन्नीसवीं सदी में आए परिवर्तनों की कल्पना नहीं की जा सकती थी। तकनीकी प्रगति अकसर चौतरफा सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारकों का परिणाम भी होती है। उदाहरण के लिए, औपनिवेशीकरण के कारण यातायात और परिवहन साधनों में भारी सुधार किए गए। तेज़ चलने वाली रेलगाड़ियाँ बनीं, बोगियों का भार कम किया गया, जलपोतों का आकार बढा जिससे किसी भी उत्पाद को खेतों से दूर-दूर के बाजारों में कम लागत पर और ज्यादा आसानी से पहुँचाया जा सके। मांस उत्पादों के व्यापार से इस प्रक्रिया का अच्छा अंदाज़ा मिलता है।

1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था। उस समय केवल जिंदा जानवर ही भेजे जाते थे जिन्हें यूरोप ले जाकर ही काटा जाता था।

उन्नीसवीं शताब्दी के आखिरी दशकों में व्यापार बढ़ा और बाजार तेजी से फैलने लगे। यह केवल फैलते व्यापार और संपन्नता का ही दौर नहीं था। हमें इस प्रक्रिया के स्याह पक्ष को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। व्यापार में इज़ाफ़े और विश्व अर्थव्यवस्था के साथ निकटता का एक परिणाम यह हुआ कि दुनिया के बहुत सारे भागों में स्वतंत्रता और आजीविका के साधन छिनने लगे। उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों में यूरोपीयों की विजयों से बहुत सारे कष्टदायक आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकीय परिवर्तन आए और औपनिवेशिक समाजों को विश्व अर्थव्यवस्था में समाहित कर लिया गया।

अफ्रीका में 1890 के दशक में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी बहुत तेजी से फैल गई। मवेशियों में प्लेग की तरह फैलने वाली इस बीमारी से लोगों की आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा। यह इस बात का अच्छा उदाहरण है कि औपनिवेशिक समाजों पर यूरोपीय साम्राज्यवादी ताकतों के प्रभाव से बड़े पैमाने पर क्या असर पड़े। इस उदाहरण से पता चलता है कि हमलों और विजयों के इस युग में दुर्घटनावश फैल गई मवेशियों की बीमारी ने भी हजारों लोगों का जीवन व भाग्य बदल कर रख दिया और दुनिया के साथ उनके संबंधों को नयी शक्ल में ढाल दिया।

भारत से अनुबंधित (गिरमिटिया) श्रमिकों को ले जाया जाना भी उन्नीसवीं सदी की दुनिया की विविधता को प्रतिबिंबित करता है। यह तेज़ आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ जनता के कष्टों में वृद्धि, कुछ लोगों की आय में वृद्धि और दूसरों के लिए बेहिसाब गरीबी, कुछ क्षेत्रों में भारी तकनीकी प्रगति और दूसरे क्षेत्रों में उत्पीड़न के नए रूपों की ईजाद की दुनिया थी।

उन्नीसवीं सदी में भारत और चीन के लाखों मजदूरों को बागानों, खदानों और सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में काम करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था।

उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय बाजारों में ब्रिटिश औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ ही आ गई थी। भारत से ब्रिटेन और शेष विश्व को भेजे जाने वाले खाद्यान्न व कच्चे मालों के निर्यात में इजाफा हुआ। ब्रिटेन से जो माल भारत भेजा जाता था उसकी कीमत भारत से ब्रिटेन भेजे जाने वाले माल की कीमत से बहुत ज़्यादा होती थी। भारत के साथ ब्रिटेन हमेशा ‘व्यापार अधिशेष’ की अवस्था में रहता था। इसका मतलब है कि आपसी व्यापार में हमेशा ब्रिटेन को ही फायदा रहता था।

3. महायुद्धों के बीच अर्थव्यवस्था
पहला महायुद्ध मुख्य रूप से यूरोप में ही लड़ा गया। लेकिन उसके असर सारी दुनिया में महसूस किए गए। इस अध्याय में हम जिन चीज़ों पर विचार कर रहे हैं उनकी दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह रहा है कि इस युद्ध ने विश्व अर्थव्यवस्था को एक ऐसे संकट में ढकेल दिया जिससे उबरने में दुनिया को तीन दशक से भी ज्यादा समय लग गया। इस दौरान पुरी दुनिया में चौतरफा आर्थिक एवं राजनीतिक अस्थिरता बनी रही और अंत में मानवता एक और विनाशकारी महायुद्ध के नीचे कराहने लगी।

मानव सभ्यता के इतिहास में ऐसा भीषण युद्ध पहले कभी नहीं हुआ था। इस युद्ध में दुनिया के सबसे अगुआ औद्योगिक राष्ट्र एक-दूसरे से जूझ रहे थे और शत्रुओं को नेस्तनाबूद करने के लिए उनके पास बेहिसाब आधुनिक औद्योगिक शक्ति इकट्ठा हो चुकी थी।

यह पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था। इस युद्ध में मशीनगनों, टैंकों, हवाई जहाज़ों और रासायनिक हथियारों का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। ये सभी चीजें आधुनिक विशाल उद्योगों की देन थीं। युद्ध के लिए दुनिया भर से असंख्य सिपाहियों की भर्ती की जानी थी और उन्हें विशाल जलपोतों व रेलगाड़ियों में भर कर युद्ध के मोर्चों पर ले जाया जाना था। इस युद्ध ने मौत और विनाश की जैसी विभिषिका रची उसकी औद्योगिक युग से पहले और औद्योगिक शक्ति के बिना कल्पना नहीं की जा सकती थी। युद्ध में 90 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 2 करोड घायल हए।

युद्ध के बाद आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने का रास्ता काफ़ी मुश्किल साबित हुआ। युद्ध से पहले ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। युद्ध के बाद सबसे लंबा संकट उसे ही झेलना पड़ा। जिस समय ब्रिटेन युद्ध से जूझ रहा था उसी समय भारत और जापान में उद्योग विकसित होने लगे थे। युद्ध के बाद भारतीय बाज़ार में पहले वाली वर्चस्वशाली स्थिति प्राप्त करना ब्रिटेन के लिए बहुत मुश्किल हो गया था। अब उसे जापान से भी मुकाबला करना था, सो अलग। युद्ध के खर्चे की भरपाई करने के लिए ब्रिटेन ने अमेरिका से जम कर कर्जे लिए थे। इसका परिणाम यह हुआ कि युद्ध खत्म होने तक ब्रिटेन भारी विदेशी कों में दब चुका था। आर्थिक महामंदी की शुरुआत 1929 से हुई और यह संकट तीस के दशक के मध्य तक बना रहा। इस दौरान दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों के उत्पादन, रोजगार, आय और व्यापार में भयानक गिरावट दर्ज की गई। इस मंदी का समय और असर सब देशों में एक जैसा नहीं था लेकिन आमतौर पर ऐसा माना जा सकता है कि कृषि क्षेत्रों और समुदायों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ा। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि औद्योगिक उत्पादों की तुलना में खेतिहर उत्पादों की कीमतों में ज़्यादा भारी और ज़्यादा समय तक कमी बनी रही।

इस महामंदी के कई कारण थे। यह हम पहले ही देख चुके हैं कि युद्धोत्तर विश्व अर्थव्यवस्था कितनी कमज़ोर थी। पहला कारण यह था कि कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन की समस्या बनी हुई थी। कृषि उत्पादों की गिरती कीमतों के कारण स्थिति और खराब हो गई थी। कीमतें गिरी और किसानों की आय घटने लगी तो आमदनी बढ़ाने के लिए किसान उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करने लगे ताकि कम कीमत पर ही सही लेकिन ज्यादा माल पैदा करके वे अपना आय स्तर बनाए रख सकें।

4. विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण : युद्धोत्तर काल
पहला विश्व युद्ध खत्म होने के केवल दो दशक बाद दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। यह युद्ध भी दो बड़े खेमों के बीच था। एक गुट में धुरी शक्तियाँ (मुख्य रूप से नात्सी जर्मनी, जापान और इटली) थीं तो दूसरा खेमा मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, सोवियत संघ, फ़्रांस और अमेरिका) के नाम से जाना जाता था। छह साल तक चला यह युद्ध ज़मीन, हवा और पानी में असंख्य मोर्चों पर लड़ा गया।

इस युद्ध में मौत और तबाही की कोई हद बाकी नहीं बची थी। माना जाता है कि इस जंग के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करीब 6 करोड़ लोग मारे गए। यह 1939 की वैश्विक जनसंख्या का लगभग 3 प्रतिशत था। करोड़ों लोग घायल हुए।
दो महायुद्धों के बीच मिले आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने दो अहम सबक़ निकाले। पहला, बृहत उत्पादन पर आधारित किसी औद्योगिक समाज को व्यापक उपभोग के बिना कायम नहीं रखा जा सकता। लेकिन व्यापक उपभोग को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक था कि आमदनी काफ़ी ज़्यादा और स्थिर हो। यदि रोज़गार अस्थिर होंगे तो आय स्थिर नहीं हो सकती थी। स्थिर आय के लिए पूर्ण रोज़गार भी ज़रूरी था। लेकिन बाज़ार पूर्ण रोज़गार की गारंटी नहीं दे सकता। कीमत, उपज और रोज़गार में आने वाले उतार-चढ़ावों को नियंत्रित करने के लिए सरकार का दखल ज़रूरी था। आर्थिक स्थिरता केवल सरकारी हस्तक्षेप के जरिये ही सुनिश्चित की जा सकती थी।

ब्रेटन वुड्स व्यवस्था ने पश्चिमी औद्योगिक राष्ट्रों और जापान के लिए व्यापार तथा आय में वृद्धि के एक अप्रतिम युग का सूत्रपात किया। 1950 से 1970 के बीच विश्व व्यापार की विकास दर सालाना 8 प्रतिशत से भी ज्यादा रही। इस दौरान वैश्विक आय में लगभग 5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही थी। विकास दर भी कमोबेश स्थिर ही थी। उसमें ज्यादा उतार-चढाव नहीं आए। इस दौरान ज्यादातर समय अधिकांश औद्योगिक देशों में बेरोजगारी औसतन 5 प्रतिशत से भी कम ही रही।

भूमंडलीकृत विश्व का बनना Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
उन चीजों के नाम लिखिए जो प्राचीन काल से ही यात्री एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते रहे हैं।
उत्तर-
वे चीजें जो यात्री प्राचीन काल से ही ले जाते रहे हैं, वे थे-पैसा, हुनर-विचार, आविष्कार तथा कीटाणु एवं बीमारियाँ।

प्रश्न 2.
सिल्क रूट क्या था?
उत्तर-
वह मार्ग जिसके द्वारा एक स्थान से दूसरा स्थान व्यापार के लिए आपस में जुड़ता था, वह सिल्क रूट या रेशम मार्ग कहलाया।

प्रश्न 3.
इतिहास से सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
नूडल्स चीन से पश्चिम पहुँचा जहाँ स्पंघेत्ती का जन्म हुआ। पास्ता अरब यात्रियों द्वारा पहुँचाया गया।

प्रश्न 4.
किस खाद्य-पदार्थ के कारण यूरोप के जीवन में परिवर्तन हुआ।
उत्तर-
आलू के प्रयोग के कारण यूरोप के जीवन में परिवर्तन हुआ।

प्रश्न 5.
16वीं शताब्दी से अमेरिका का रंग-रूप किस प्रकार बदला?
उत्तर-
अमेरिका को जन तक खोजा नहीं गया था, यह किसी के भी सम्पर्क में नहीं था। परन्तु यूरोपियों के आने-जाने के बाद वहाँ फसलें, खनिज पदार्थ आदि पहुँचने लगे।

प्रश्न 6.
किन-किन राष्ट्रों ने अमेरिका में अपने उपनिवेश बनाए?
उत्तर-
पुर्तगाल तथा स्पेनिश सेनाओं ने अमेरिका में अपने उपनिवेशों का निर्माण किया।

प्रश्न 7.
स्पेनिश उपनिवेशियों ने किसको अपना हथियार अमेरिका के विरुद्ध बनाया?
उत्तर-
स्पेनिश उपनिवेशी मुख्यतः चेचक की बीमारी तथा उसके कीटाणुओं का प्रयोग अमेरिका के विरुद्ध कर रहे थे।

प्रश्न 8.
19वीं सदी तक यूरोप की स्थिति कैसी थी?
उत्तर-
19वीं सदी तक यूरोपं अत्यन्त गरीब था। शहरों की जनसख्या बहुत थी तथा बहुत-सी बीमारियाँ फैल चुकी थीं। ध म का चारों ओर बोलबाला था। जो व्यक्ति धर्म के नियमों को तोड़ता, उसे कड़ा दण्ड दिया जाता था। 18वीं सदी तक अफ्रीका के गुलामों को यूरोप के बाजारों के लिए कपास तथा चीनी के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 9.
19वीं शताब्दी से विश्व में किन क्षेत्रों में परिवर्तन आरम्भ हुआ?
उत्तर-
आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी क्षेत्रों में परिवर्तन आरम्भ हुआ।

प्रश्न 10.
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से संबंधित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय आधार पर अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था में तीन प्रकार के प्रवाहों का उल्लेख किया जिस पर विनिमय आधारित था
(क) पहला प्रवाह व्यापार था जिसमें कपड़ा या गोहूँ आदि का समावेश किया गया। भारत 19वीं शताब्दी में व्यापार का एक मुख्य केन्द्र बन गया। खाद्य पदार्थो, कपास आदि को आयात-निर्यात किया जाता था।
(ख) दूसरा प्रवाह था-श्रम। इस प्रवाह के अन्तर्गत लोग श्रम या रोजगार की तलाश में दूसरे क्षेत्रों में जाते हैं। 19वीं शताब्दी में भारत से दूसरे क्षेत्रों में कामगारों का प्रवाह बढ़ा। वे एक अनुबंध के तहत् बागानों, खदानों आदि में काम करने के लिए जाने लगे।
(ग) तीसरी गति थी-पूँजी प्रवाह। इस गति में निवेशक दूर-दूर के क्षेत्रों में निवेश करते हैं। भारत देश के बहुत से महाजनों तथा साहुकारों, जैसे-शिकारीपूरी श्रॉफ आदि दूसरे देशों में खेती के लिए कर्जा दिया।

प्रश्न 11.
कॉर्न लॉ क्या था?
उत्तर-
कॉर्न लॉ ब्रिटिश सरकार ने अपने देश में लागू किया। इस कानून के तहत सरकार ने मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी। इस कारण खाद्य-पदार्थों की कीमतें अत्यन्त बढ़ गई।

प्रश्न 12.
19वीं शताब्दी में ब्रिटेन ने खाद्य-पदार्थों की आत्मनिर्भरता के रास्ते को क्यों नहीं अपनाया।
उत्तर-
19वीं शताब्दी में ब्रिटेन ने यह कदापि नहीं सोचा कि उसे खाद्य-पदार्थों के लिए आत्मनिर्भर बनना चाहिए। इसका मुख्य कारण था कि यदि वह खाद्य-पदार्थों के लिए आत्मनिर्भरता को चुनता तो वहाँ के लोगों का जीवन स्तर गिर जाता तथा सामाजिक तनाव में वृद्धि हो जाती।

प्रश्न 13.
खाद्य-पदार्थों की कीमतों में कमी के कारण ब्रिटेन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
खाद्य-पदार्थों में कीमतों की कमी के कारण ब्रिटेन का उपभोग स्तर बढ़ गया। इनका आयात भी बढ़ गया। औद्योगिक वृद्धि के कारण लोगों की आय में वृद्धि हुई जो उपभोग की बढ़ोतरी का कारण था।

प्रश्न 14.
1890 की वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था कैसी थी?
उत्तर-
1890 तक सभी प्रवाह काफी हद तक परिवर्तित हो चुके थे। खाद्य, पदार्थ अब दूर-दूर के क्षेत्रों से आने लगे। खेतों में किसानों के साथ-साथ औद्योगिक मजदूर भी काम करने लगे। रेल का प्रयोग खाद्य, पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए किया जा रहा था।

प्रश्न 15.
विश्व की स्थिति में परिवर्तन में तकनीक की क्या भूमिका थी?
उत्तर-
विश्व में तकनीकी क्षेत्र में काफी परिवर्तन आए। रेलवे इंजन, भाप के जहाज, टेलिग्राफ आदि महत्त्वपूर्ण थे। इस कारण यातायात सुलभ हो गया। सामान एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जाया जा सकता था।

प्रश्न 16.
मांस उत्पादों के व्यापार में परिवर्तन किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
पहले रेल, जहाज आदि होने पर भी मांस उत्पादों का व्यापार सम्भव नहीं था। अमेरिका से यूरोप जीवित जानवरों को ही भेजा जाता था। परन्तु गरीब इसे नहीं खरीद पाता था, क्योंकि उनकी कीमत बहुत ऊँची थी। जहाजों में फिर रेफ्रिजरेशन अर्थात् ठण्डा रखने की सुविधा आरम्भ हो गई। इससे मांस को संग्रहित किया जा सकता था। इस कारण समुद्री यात्रा सस्ती हुई एवं मांस उत्पाद की कीमतों में कमी आई। यह खाद्य पदार्थ अब यूरोप में अधिकार लोगों की पहुँच में था। इसने लागों की जीवन स्थिति को सुधारा।

प्रश्न 17.
19वीं शताब्दी के आखिर में उपनिवेशवाद किस प्रकार पनपा?
उत्तर-
19वीं शताब्दी के अंत तक व्यापार में अत्यन्त वृद्धि हुई। परन्तु इस कारण केवल उन्नति ही नहीं हुई परन्तु विश्व के कई भागों में लोगों की आय तथा स्वतन्त्रता का अंत हो गया। यूरोप ने बहुत से राष्ट्रों पर विजय प्राप्त की। अफ्रीका के बहुत से क्षेत्रों में ब्रिटेन, फ्रांस आदि राष्ट्रों ने कब्जा कर लिया। ये राष्ट्र औपनिवेशिक शक्तियों के रूप में उभर कर सामने आए।

प्रश्न 18.
प्राचीन काल में अफ्रीका की स्थिति कैसी थी?
उत्तर-
अफ्रीका में जमीन बहुत अधिक थी, परन्तु वहाँ की जनसंख्या बहुत ही कम थी। अफ्रीका निवासी के आय का साधन जमीन एवं पालतू पशु थे। इस क्षेत्र में पैसे या वेतन का चलन नहीं था।

प्रश्न 19.
यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका के क्षेत्रों में उपनिवेश स्थापित करने से पूर्व किन समस्याओं का सामना किया?
उत्तर-
अफ्रीका में भू-क्षेत्र तथा खनिज भण्डारों की कोई कमी नहीं थी। यही देख यूरोपीय क्षेत्र अति आकर्षित हुए। वे इन क्षेत्रों में कृषि करना तथा खनिज भण्डार प्राप्त करना चाहते थे। वहाँ के लोग कम वेतन पर काम नहीं करना चाहते थे। मजदूरों से काम करवाने, उन्हें रोकने आदि के लिए मालिकों ने कई प्रकार की चालें चली जैसे-ज्यादा लगान तय करना, जमीन से हटाने के लिए कानून बदले, खुले-आम श्रमिकों के घूमने पर पाबंदी लग गई, परन्तु यह समस्या समाप्त नहीं हुई।

प्रश्न 20.
अफ्रीका की स्थिति में अन्ततः परिवव्रन कैसे हुआ?
उत्तर-
1880 के दशक के अंतिम वर्षों में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी जानवरों में फैलनी आरम्भ हो गई। इतालवी सैनिकों के लिए एशियाई जानवरों को लाया जाता था। इन्हीं जानवरों के द्वारा यह बीमारी अफ्रीका पहुँच गई। 1892 तक अटलांटिक तट तक मवेशियों का प्लेग फैल गया जिसके कारण 90% जानवरों की मृत्यु हो गई। जो जानवर बचे, उन पर सरकारों, खान मालिकों आदि ने कब्जा कर लिया। इसके कारण बड़ी संख्या में लोग बेराजगार हो गए।

प्रश्न 21.
19वीं शताब्दी में गिरमिटिया मजदूर किस प्रकार विविधता को प्रतिबिंबित करता है?
उत्तर-
19वीं शताब्दी में भारत और चीन से अनुबंधित श्रमिक ले जाने का चलन आरम्भ हुआ। इन्हें गिरिमिटिया मजदूर कहा गया। यह शोषण और उत्पीड़न का नया रूप था। इस कारण शोषण में वृद्धि, मालिकों की आय में वृद्धि, श्रमिकों की गरीबी में बढ़ोतरी थी।

प्रश्न 22.
भारत के गिरमिटिया मजदूरों पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
गिरमिटिया पद्धति में एक अनुबंध के तहत् भारत के क्षेत्रों से बाहर के देशों में काम करने के लिए मजदूरों को ले जाया जाता था। इस अनुबंध की शर्त होती थी कि यदि मजदूर पाँच वर्ष तक बागानों में वहाँ काम कर लेता है तो वह स्वदेश लौट सकता है। ये मजदूर विदेश की विभिन्न परियोजनाओं में काम करते थे। बिहार, उत्तर प्रदेश आदि के सूखे क्षेत्रों के लोग गिरमिटिया मजदूर के रूप में काम करने लगे। इन क्षेत्रों में कुटीर उद्योग भी समाप्त हो गए। जमीनों को साफ किया जा रहा था, उनके किराए में बढ़ोत्तरी की गई इस कारण इन्हें गिरमिटिया मजदूरी के अनुबंध को स्वीकार करना पड़ा।

प्रश्न. 23.
गिरमिटिया मजदूरों की भर्ती किस प्रकार होती थी?
उत्तर-
भारत के अनुबंधित श्रमिक अधिकतर कैरिबीयाई क्षेत्रों में जोर काम करते थे। इन्हें भर्ती एजेन्ट के द्वारा नियुक्त किया जाता था। यह एजेन्ट कमीशन भी प्राप्त करते थे। मजदूरों को फँसाने के लिए ये एजेन्ट पूरी जानकारी मजदूरों को झूठी देते थे। कई श्रमिकों को यह भी नहीं बताया जाता था कि यात्रा समुद्री तथा लम्बी है। न मानने पर कई बार मजदूरों को अपहरण भी कर लिया जाता भी कर लिया जाता था।

प्रश्न 24.
अनुबंधित मजदूरों की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-
अनुबंध व्यवस्था ने नई दास व्यवस्था को जन्म दिया। कार्यक्षेत्रों में पहुँचने के बाद मजदूरों को वहाँ की स्थिति के विषय में पता चलता था। वहाँ का जीवन तथा कार्य स्थितियाँ बहुत ही कठोर थीं। मजदूरों के पास कोई अधिकार नहीं थे।

प्रश्न 25.
अनुबंधित मजदूरों ने जीवन के रास्ते किस प्रकार खोजे?
उत्तर-
गिरमिटिया श्रमिकों को अत्यन्त कठिन जीवन व्यतीत करना पड़ा था। कई मजदूर भाग कर जंगलों में चले जाते थे। नई तथा पुरानी संस्कृतियों द्वारा वे स्वयं को अभिव्यक्त करते। मुहर्रम पर निकाले जाने वाले जुलूस का त्रिनिदाद में जलसे का रूप दिया गया। इस जलसे में सभी धर्मों के श्रमिक भाग लेते थे। एक विद्रोही धर्म ने भी जन्म लिया जिसे रास्ता फारियानवाद कहा गया। एक ‘चटनी मजिक’ का भी जन्म हुआ।

प्रश्न 26.
विदेश में भारतीय उद्यमी किस प्रकार आकर्षित हुए?
उत्तर-
विश्व बाजार में वृद्धि हो रही थी। खाद्य-पदार्थ तथा फसलों के लिए पूँजी की आवश्यकता पड़ी। बहुत से देशी साहूकार तथा महाजन इस क्षेत्र में आए। ये वे व्यापारी या बैंकर थे जो निर्यात किए जाने वाले खाद्य पदार्थों के उत्पादन के लिए ऋण देते थे। उन्होंने व्यावसायिक संगठनों का निर्माण आरम्भ किया। 1860 में भारत के उद्यमियों ने अफ्रीका आदि के बंदरगाहों पर एम्पोरियम खोले जहाँ स्थानीय तथा विदेशी वस्तुएँ मिलती थीं जो एक समृद्ध कारोबार बना।

प्रश्न. 27.
उपनिवेशवाद में भारतीय व्यापार की स्थिति कैसी थी?
उत्तर-
यूरोपीय क्षेत्रों में भारत का कपास निर्यात होता था। सरकार ने कपास के आयात पर रोक लगा दी। ब्रिटेन में आयातित कपड़ों पर सीमा शुल्क लगाया गया। 19वीं सदी में भारतीय कपड़ों का मुकाबला ब्रिटेन को करना पड़ा, परन्तु किफर सूती कपड़ों के निर्यात में भारी कमी आई। परन्तु कच्चे माल के निर्यात में वृद्धि हुई। ब्रिटिश सरकार अफीम के उत्पादन को चीन निर्यात करती तथा उस धन से चाय तथा दूसरी चीजों को आयात किया जाता।

प्रश्न 28.
भारत में ‘व्यापार अधिशेष’ की अवस्था क्या थी?
उत्तर-
भारत के साथ ब्रिटेन का व्यापार हमेशा ब्रिटेन के फायदे में ही गया। इस लाभ के द्वारा ब्रिटेन अन्य राष्ट्रों के साथ व्यापारिक घाटे को पूरा कर लेता। इसके विपरीत, भारत के अधिशेष का प्रयोग होम चार्जेज को पूरा करने के लिए किया जाता। इसके द्वारा अफसरों का वेतन दिया जाता, पेंशन का भुगतान होता और कर्जे आदि का ब्याज दिया जाता।

प्रश्न 29.
पहला विश्वयुद्ध किन खेमों के मध्य हुआ?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध 1914-18 तक चला। यह युद्ध दो समहों के बीच था। पहले समूह में ब्रिटेन, फ्रांस तथा रूस थे। परन्तु दूसरे समूह में ऑटोमन तुर्की, जर्मनी, आस्ट्रिया हंगरी थे। इतिहास में यह सबसे भीषण युद्ध था।

प्रश्न 30.
प्रथम विश्वयुद्ध का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध के कारण विश्व की आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब हो गई। इस युद्ध के कारण काम करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम हो गई। परिवारों की आय में भी कमी आ गई। इस कारण औरतों को कार्यक्षेत्र में आना पड़ा। इस युद्ध से राष्ट्रों के संबंध आपस में टूट गए। वे आपस में बदला लेना चाहते थे। अमेरिका एक कर्ज देने वाले राष्ट्र के रूप में उभर कर आया।

प्रश्न. 31.
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
उत्तर-
युद्ध से पूर्व ब्रिटेन विश्व का शक्तिशाली राष्ट्र था। युद्ध के समय भारत और जापान में उद्योगों की वृद्धि हुई ब्रिटेन को भारत तथा जापान की वस्तुओं से मुकाबला करना था। उसको अमेरिका से ऋण बहुत लेना पड़ा। युद्ध के कारण उत्पादन तथा रोजगारों में वृद्धि। सरकार ने युद्ध के व्यय में कटौती आरम्भ कर दी। इस कारण रोजगार में समाप्ति हुई। सबसे अधिक आर्थिक नुकसान ब्रिटेन को ही हुआ। कृषि अर्थव्यवस्था पर भरी संकट था।

प्रश्न 32.
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में युद्धोत्तर क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर-
युद्ध के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो गई। सबसे बड़ा परिवर्तन था-वृहत् उत्पादन जिसे अंग्रेजी में Mass Production कहा जाता है। अमेरिका अब एक कर्जदाता बन गया।

प्रश्न 33.
अमेरिका के हेनरी फोर्ड की कार्य-प्रणालियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
हेनरी फोर्ड अमेरिका की कार निर्माता कम्पनी थी। उन्होंने अपने कारखानों में एसेम्बली लाइन का आरम्भ किया। इसमें कन्वेयर बेल्ट का प्रयोग होता था। इसके द्वारा तीन मिनट में एक कार तैयार की जाती थी। मजदूरों को एक क्षण भी बात करने का समय नहीं मिलता था। आरम्भ में मजदूर का छोड़कर चले गए। इस कारण फोर्ड को वेतन 5 डॉलर प्रतिदिन करना पड़ा। परन्तु इस हानि को पूरा करने के लिए असेम्बली लाइन की रफ्तार को बढ़ा दिया गया जिससे मजदूरों पर काम का बोझ बढ़ गया। इस निर्णय को फोर्ड ने बेहतरीन माना।

प्रश्न 34.
फोर्ड की तकनीकी का पूरे विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
फोर्ड की असेम्बली लाइन की तकनीक जल्दी ही पूरे अमेरिका में प्रचलित हो गई। यूरोप में भी जल्दी ही इसे अपना लिया गया। इससे उत्पादन की लागत कम हुई जिससे कीमत में भी कमी आई। बृहत् उत्पादन पद्धति जल्दी ही फ्रिज, वाशिंग मशीन, रेडियो आदि के निर्माण में प्रयुक्त होने लगी। इन वस्तुओं से उपभोक्ता बाजार में वृद्धि हुई। लोग किस्तों पर वस्तुएँ खरीदने लगे। अमेरिका में आर्थिक सम्पन्नता हो गई।

प्रश्न 35.
महामंदी के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
1929 ई. में आई आर्थिक महांमदी अमेरिका के लिये बड़ी विनाशकारी सिद्ध हुई, जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित-

  1. यह संकट औद्योगिक क्रान्ति के कारण चीजों की आवश्यकता से अधिक उत्पादन के कारण पैदा हुआ। 1930 ई. में अमेरिका में तैयार माल के इतने भण्डार हो गए कि उनका कोई खरीददार न रहा।
  2. प्रथम विश्व यु के कारण यूरोप के देश बर्बाद हो गए थे कि वे अमेरिका से माल आयात करने की अवस्था में न थे।
  3. जब तैयार माल का कोई खरीदार न रहा तो वहां कारखाने बन्द हो गए और हज़ारो मज़दूर बेरोजगार हो गए।
  4. जब कारखाने बन्द हो गए तो किसानो की पैदावार का भी कोई खरीदार न रहा। इस तरह किसानों के लाभ में भी कमी आ गई और छषि मजदूरी कम हो गई।
  5. अमेरिका की (‘Share Exchange Market’) में शेयरों की कीमत में गिरावट आ गई जिससे वहां कोई 1,00,000 व्यापारियों का दीवाला निकल गया।

प्रश्न 36.
महामंदी का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
महामंदी के कारण अमेरिकी पूँजी बाजार से समाप्त होने लगी। यूरोप के बैंक समाप्त हो गए। विदेशी मुद्राओं की कीमतों में कमी आई। कृषि उत्पाद और कच्चे माल की कीमतों में भारी कमी आई। अमेरिकी बैंकों ने घरेलू कर्जे भी देने बंद कर दिए। दिए गए कों की वसूली होन लगी। आमदनी समाप्त हो गई तथा लोग ऋण चुकता करने में असमर्थ रहे। बेरोजगारी के कारण अमेरिकी लोग दूसरे स्थानों पर काम की तलाश में चले गए। हजारों बैंकों को बंद करना पड़ा।

प्रश्न 37.
दूसरा विश्वयुद्ध किन समूहों के बीच हुआ?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध की भाँति दूसरा विश्वयुद्ध भी दो समूहों के बीच में हुआ। पहला समूह जर्मनी, जापान और इटली था। दूसरा समूह ब्रिटेन, सोवियत संघ, फ्रांस और अमेरिका का था।

प्रश्न 38.
युद्धोतत्तर काल के मुख्य दो प्रभाव कौन से थे?
उत्तर-
युद्धोतर काल के मुख्यतः दो प्रभाव थे
(क) सोवियत संघ एक शक्तिशाली वर्चस्व के रूप में उभर कर आया। वह एक विश्व शक्ति के रूप में परिवर्तित हो गया।
(ख) अमेरिका एक शक्तिशाली राष्ट्र राजनीतिक, आर्थिक तथा सैनिक दृष्टि से बन गया।

प्रश्न 39.
वीटो अधिकार क्या है?
उत्तर-
वह अधिकार जिसके द्वारा एक ही सदस्य को अपने वोट द्वारा किसी भी प्रस्ताव को खारिज करने का अधिकार होता है, उसे वीटो अधिकार (Veto Power) कहा जाता है।

प्रश्न 40.
ब्रेटन वुड्स का प्रभाव राष्ट्रों पर कैसा रहा?
उत्तर-
ब्रेटन वुड्स व्यवस्था ने अर्थव्यवस्था में काफी परिवर्तन किए। उन्होंने विनिमय दर की व्यवस्था को निश्चित किया। विश्व व्यापार की दर 8% से अधिक, तथा आय में 5% तक वृद्धि हुई। तकनीक तथा उद्यम का प्रसार किया जा रहा था। आधुनिक यंत्रों में निवेश भी किया गया। इसके बाद ब्रेटन वुड्स ने विकासशील राष्ट्रों के विकास पर भी ध्यान देना आरम्भ किया।

प्रश्न 41.
निम्नलिखित की व्याख्या करें-
(क) विनिमय दर
(ख) स्थिर विनिमय दर
(ग) परिवर्तनशील विनिमय दर
उत्तर-
(क) एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र की मुद्रा से जोड़ना जिससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सम्भव हो पाता है, उसे विनिमय दर कहा जाता है।
(ख) स्थिर विनिमय दर वह दर होती है जिसे बाजार में परिवर्तन के आधार पर परिवर्तित नहीं किया जा सकता। इसे सरकारों द्वारा ही नियंत्रित किया जाता है तथा परिवर्तन उन्हीं के हस्तक्षेप के बाद ही किया जाता है।
(ग) जब विनिमय दर बाजार में परिवर्तन के साथ घटती-बढ़ती है, उसे परिवर्तनशील विनिमय दर कहा जाता है।
इस दर पर माँग तथा पूर्ति का प्रभाव पड़ता है।

भूमंडलीकृत विश्व का बनना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सत्रहवीं सदी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिकी महाद्वीपों के बारे में चुनें।
उत्तर-
17वीं शताब्दी से पहले के वैश्विक आदान-प्रदान का एक लाभकारी उदाहरण-17वीं शताब्दी से पहले के काल में जो यात्री, व्यापारी, पुजारी और तीर्थयात्री आपसी मेल-मिलाप के अग्रदूत बनकर एक देश से दूसरे देश गए, विशेषकर एशिया से दूसरे देशों की ओर गये वे अपने साथ अनेक चीजों, पैसे-मान्यताओं, विचारों, अनेक प्रकार की कलाओं को भी ले गए और उन्होंने दूसरे लोगों के जीवन को सुखमय बना दिया। ऐसे प्रायः एशिया के भारत और चीन जैसे देशों द्वारा ही हुआ।

17वीं शताब्दी से पहले वैश्विक आदान-प्रदान का एक विनाशकारी उदाहरण-17वीं शताब्दी से पूर्व के वैश्विक आदान-प्रदान कई बार नए लोगों के लिये विनाश कर कारण भी बन गए। जैसे पुर्तगाल और स्पेन से जब लोग अमेरिका पहु!चे तो वे अपने साथ अनेक बीमारियों विशेषकर चेचक के कीटाणु भी ले गये जिन्होंने अमेरिका के मूल निवासियों के अनेक कबीलों का सफाया ही कर दिया।

प्रश्न 2.
बताएँ कि पाक-आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार के अमेरिकी भूभागों के उपनिवेशीकरण में किस मदद दी।
उत्तर-
17वीं शताब्दी के पहले के वैश्विक आदान-प्रदान के जहाँ कुछ प्रभाव पड़े जैसे लोगो की नई चीजों और नए विचारों कर ज्ञान हुआ। वहाँ उसके कुछ बुरे प्रभाव भी पड़े। कुछ लोग दूसरे देशों में बीमारियों के ऐसे कीटाणु भी ले गये जिन्होंने उनका नाश कर दिया। एक ऐसा उदाहरण यूरोपवासियों द्वारा अमेरिका में बीमारी के कीटाणु ले जाकर उनको बर्बाद करना है।

कहा जाता है कि यूरोपिय लोगों ने अमेरिका को केवल अपने सैनिक बल पर ही नहीं जीता वरन् उन चेचक के कीटाणुओं के कारण जीता जो स्पेन के सैनिक और अफसर अपने साथ वहाँ ले गए। इस बीमारी का इलाज यूरोप-निवासी तो जानते थे परन्तु अमेरिका के निवासी इससे अनभिज्ञ थे। अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से अपने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग-प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी इसलिये बहुत से अमेरिकी आदिवासी मौत का शिकार हुए। कहीं-कहीं तो चेचक से समुदाए के समुदाय खत्म हो गए।

इस प्रकार यह ठीक ही कहा गया है कि चेचक की बीमारी ने अमेरिकी भूभागों के उपनिवेशीकरण में बहुत सहायता की अन्यथा अमेरिका विजय का कार्य काफी कठिन हो जाता।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित के प्रभावों को व्याख्या करते हुए संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें:
(क) कॉर्न लॉ के समाप्त करने के बारे में ब्रिटिश सरकार का फैसला।
उत्तर-
ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 19वीं शताब्दी में जो कानून अपने भूस्वामियों के हितों की रक्षा के लिये पास किये उन्हें कार्न लॉ (Corn Laws) कहा जाता है। इन कानूनों द्वारा विदेशो से खाद्य-पदार्थो के आयात पर पाबन्दी लगा दी गई। इस पाबन्दी के परिणास्वरुप जब ब्रिटेन में खाद्य पदार्थो के मूल्य बढ़ने लगे तो लोगों में हा हा कार मच गई और विवश होकर सरकार को ये कानून हटाने के बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेः
(क) खाद्य-सामग्री सस्ती हो गई जिससे साधारण और गरीब जनता को खूब लाभ रहा।
(ख) जब बाहर से खाद्य पदार्थ सस्ते दामों में इंग्लैंड आने तो वहाँ के भू-स्वामी बर्बाद हो गए।
(ग) बहुत-सी भूमि। पर हो गई और खेती करने वाले बहुत से किसान बेरोजगार हो गए।
(घ) ऐसे बहुत से ग्रामीण लोग नौकरी की तलाश में शहरों की ओर भागने लगे। जिससे शहरों की हालात भी खराब हो गई

(ख) अफ्रीका में रिंडररपेस्ट का आना।
उत्तर-
अफ्रीका में रिंडरपेस्ट का आना (The Coming of Rinderpest to Africa)-रिंडपेस्ट पशुओं में फैलने वाली उन खतरनाक बीमारी है जो 1890 के दशक में अफ्रीका में प्लेग की तरह फैली। अफ्रीका में यह बीमारी उन पशुओं के कारण फैली जो अफ्रीक में ब्रिटिश साम्राज्य के लिए लड़ रहे भारतीय सिपाहियों के भोजन के लिये अनेक पूर्वी देशों से मंगवाए गए। जैसे ही ये पशु पूर्वी अफ्रीका पहुँचे इन्होंने वहाँ के पशुओं को भी रिंडरपेस्ट की बीमारी में लपेट लिया। 1892से शुरु होकर अगले पाँच वर्षों में पशुओं को यह घातक बीमारी दक्षिणी और पश्चिमी अफ्रीका की सीमाओं तक फैल गई। इस बीमारी के बड़ी दूरगामी प्रभाव पड़ेः
(क) इस बीमारी के कारण अफ्रीका के पशु मौत के शिकार हुए।
(ख) इस बीमारी से अफ्रीका के लोगों की आजीविका और अर्थव्यवस्था पर बड़ा गहरा असर पड़ा।
(ग) और बिलकुल बर्बाद और बेसहारा होने के कारण अफ्रीका के लोगों को विदेशी साम्राज्यवादियों के पास न मजदूरी करने के लिये मजबूर होना पड़ा। यदि उनके पास अपने पशु होते वे कभी भी यह काम करने को तैयार न होते।
(घ) अफ्रीका के लोगों के इस विनाश और उनके साध नों के बर्बाद हो जाने के कारण यूरोपीय उपनिवेशवादियों को अफ्रीका को जीतना और अपने अमीन करना काफी आसान हो गया।

(ग) विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में कामकाजी उम्र के पुरुषों की मौतें।
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) के मुख्य परिणाम निम्नलिखित थे:

  1. प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) एक बहुत विनाशकारी युद्ध था। प्रथम महायुद्ध में लाखों व्यक्ति माने गए, घायल हुए और जीवन भर के लिए निकम्मे हो गए। इन मरने वालों और घायल होने वालों में अधिकतर कामकाजी उम्र के पुरुष थे इसलिये विभिन्न उद्योगों को कामकाजी लोगों के बिना चलाना काफी कठिन हो गया।
  2. आर्थिक दृष्टि से यह बहुत हानिकारक सिद्ध हुआ। ऐसा अनुमान लगाया जाता हैकि इस युद्ध में कुल खर्च लगभग 186,00.000,000 डालर हुआ। इस युद्ध के कारण हज़ारों नगर,खेत और कारखाने तबाह हो गए और व्यापार भी नष्ट हो गया।
  3. इस युद्ध ने जर्मनी में नाजीवाद के उत्थान को प्रोत्साहित किया। वर्साय का सन्धिपत्र जर्मनी के लिये बड़ा हानिकारक और अपमानजनक था। उसकी सारी बस्तियां उससे छीन ली गई। इस सारे अन्याय के विरुद जर्मनी में बड़ा रोष पैदा हुआ देखते ही देखते हिटलर ने वहा! एक तानाशाही राज्य की स्थापना कर ली।
  4. प्रथम युद्ध के ही परिणामस्वरुप इटली में फासीवाद का जन्म हुआ। इटली ने मित्र राष्ट्रों का साथ इसलिये दिया था कि युद्ध के पश्चात् उसे बड़े लाभ मिलेंगे। परन्तु उसे प्रथम महायुद्ध की लूट में से कुछ भी न मिला। इस से जो इटली में निराशा फैली। उसने वहाँ फासीवाद या तानाशाही को जन्म दिया।
  5. प्रथम विश्वयुद्ध का एक अन्य परिणाम था। राष्ट्र संघ (League of Nations) की स्थापना जिसने अगले कोई 20 वर्ष तक विश्व में शान्ति स्थापित करने का प्रयत्न किया।

(घ) भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामंदी का प्रभाव।
उत्तर-
(क) इस महामन्दी (1929-1934) के काल में भारत के आयात और निर्यात व्यापार में कोई 50% की कमी आ गई।
(ख) इस महामंदी का बंगाल के पटसन पैदा करने वाले लोगों पर विशेष रुप से बड़ा विनाशकारी प्रभाव पड़ा। पटसन के मूल्यों में कोई 60% की गिरावट आ गई जिससे बंगाल के पटसन उत्पादक बर्बाद हो गए और वे कर्ज के बोझ तले दबे गए।
(ग) छोटे- छोटे किसान भी बर्बादी से न बच सके। चाहे उनकी आर्थिक दशा खराब होती जा रही थी। सरकार ने उनके भूमिकर तथा अन्य करो में कोई कमी न की।
(घ) 1930 में शुरु होने वाले सिविल अवज्ञा आन्दोलन (Civil Disobedience Movement) इस आर्थिक मन्दी का सीधा परिणाम था। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र अशान्ति का क्षेत्र बन चुके थे।

(5) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपने उत्पादन को एशियाई देशों में स्थानांतरित करने का फैसला।
उत्तर-
बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने 1970 के दशक में अपना रुख एशिया के देशों की ओर किया, जिसके अनेक महत्वपूर्ण परिणाम निकले–
(क) एशिया देशों में नौकरी के अवसरों में काफी वृद्धि हुई और इस प्रकार बेरोजगारी के मसलों को हल करने में काफी आसानी, रही।
(ख) इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने विकासशील देशों को उनके पुराने उपनिवेशी देशों के चंगुल से निकलने में काफी सहयोग दिया।
(ग) इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपनी उत्पादक और व्यापारिक गतिविधियों के कारण वैश्विक व्यापार ओर पूंजी प्रवाही को भी काफी प्रभावित किया।

प्रश्न 4.
खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दें।
उत्तर-
‘कॉर्न लॉ’ 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश में ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पास किये ताकि भूमि-स्वामियों के हितों की रक्षा की जा सके परन्तु इन कानूनों के परिणामस्वरुप जब इंग्लैंड में बाहर से अनाज आना बन्द हो गया तो वहाँ खाद्य-पदार्थो के मूल्य आकाश को छूने लगे । ऐसे में शीघ्र ही इन कानूनों को निरस्त या हटा दिया गया। धीरे-धीरे विदेशों में अनाज आने लगा जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की खाद्य समस्या ठीक होने लगी। नि:सन्देह तकनीकी विकास ने खाद्य समस्या को हल करने में बहुत योगदान दिया। तकनीकी या विभिन्न प्रकार के आविष्कारों. जैसे रेलवे, भाप के जहाजों, टेलिग्राफ और रेफ्रिजरेटर-युक्त जहाजों का खाद्य पदार्थो की उपलब्धता पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा।

(क) यातायात के विभिन्न साधनों-जैसे तेज़ चलने वाली रेलगाड़ियो, हलकी बग्धियों, बड़े आकार के जलपोतों द्वारा अब खाद्य पदार्थो को दूर-दूर के बाजारों में कम लागात पर और आसानी से पहुँचाना आसान हो गया।
(ख) रेफ्रिजरेटर कर तकनीक युक्त जहाज़ों के कारण अब जल्दी खराब होने वाली चीज़ों-मांस, फल आदि को भी लम्बी यात्राओं में लाया-ले जाया जा सकता था।

प्रश्न 5.
ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है।
उत्तर-
ब्रेटन वुड्स समझौता-ब्रेटन वुड्स का समझौता विश्व के विभिन्न देशों में जुलाई 1944 ई. को संयुक्त राष्ट्र संघ के मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में हुआ। जो अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर हुआ। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ की दो संस्थाओं-अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की स्थापना हुई।

उन दोनों संस्थाओं ने 1947 ई. में अपना काम करना शुरु कर दिया जो आज तक बड़ी बखूबी से कर रही है। अन्तराष्ट्रीय ‘मौद्रिक व्यवस्था ने राष्ट्रीय मुद्राओं और मौद्रिक व्यवस्थाओं को एक-दूसरे से जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इस सारी प्रक्रिया से पश्चिमी औद्योगिक देशों और जापान को विशेष रुप से लाभ रहा है और उनके व्यापार और आय में काफी वृद्धि हुई है। तकनीक और उद्यम का विश्व-व्यापी विस्तार हुआ।

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