भारत में राष्ट्रवाद

भारत में राष्ट्रवाद

History [ इतिहास ] लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. असहयोग आंदोलन प्रथम जनांदोलन था; कैसे ?

उत्तर ⇒ सितम्बर, 1920 मे कलकत्ता में आयोजित विशेष अधिवेशन में असहयोग आंदोलन का निर्णय लिया गया। इसका नेतृत्व गाँधीजी ने किया। यह प्रथम जन-आंदोलन था। इस आंदोलन के मुख्यतः तीन कारण थे-खिलाफत का मुद्दा, पंजाब में सरकार की बर्बर कार्रवाइयों के विरुद्ध न्याय प्राप्त करना और अंततः स्वराज्य की प्राप्ति करना ।
इस आंदोलन में दो तरह के कार्यक्रमों को अपनाया गया एक प्रस्तावित कार्यक्रम तथा दूसरा रचनात्मक कार्यक्रम ।

असहयोग आंदोलन के प्रस्तावित कार्यक्रम इस प्रकार थे –

(i) सरकारी उपाधि एवं अवैतनिक सरकारी पदों को छोड़ दिया जाए।
(ii) सरकारी तथा अर्द्धसरकारी उत्सवों का बहिष्कार किया जाए।
(iii) स्थानीय संस्थाओं की सरकारी सदस्यता से इस्तीफा दिया जाए
(iv) सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार, वकीलों द्वारा न्यायालय का बहिष्कार किया जाए तथा आपसी विवाद पंचायती अदालतों द्वारा निबटाया जाए।
(v) असैनिक श्रमिक व कर्मचारी वर्ग मेसोपोटामिया में जाकर नौकरी करने से इनकार करें तथा विदेशी सामानों का पूर्णतः बहिकार करें।

असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक कार्यक्रम के अंतर्गत शराब का बहिष्कार, – हिन्दू-मुस्लिम एकता एवं अहिंसा पर बल, छुआ-छूत से परहेज, स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग, हाथ से बुने खादी का प्रयोग, कड़े कानूनों के खिलाफ सविनय अवज्ञा करना, कर नहीं देना, राष्ट्रीय विद्यालय एवं कॉलेजों की स्थापना करना शामिल था।


प्रश्न 2. दांडी यात्रा का क्या उद्देश्य था ?

उत्तर ⇒ दांडी यात्रा का उद्देश्य था-समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक , कानून का उल्लंघन करना तथा ब्रिटिश कानून के भय को भारतीय जनता के अंदर – से निकालना।


प्रश्न 3. स्वदेशी आन्दोलन का उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर ⇒ 1905 के बंग-भंग आन्दोलन में स्वदेशी और बहिष्कार की नीति से भारतीय उद्योग लाभान्वित हुए। धागा के स्थान पर कपड़ा बनना आरंभ हुआ। इससे वस्त्र उत्पादन में तेजी आई। 1912 तक सूती वस्त्र उत्पादन दोगुना हो गया। उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयात-शुल्क में वृद्धि करे तथा देशी उद्योगों को रियायत प्रदान करे। कपड़ा उद्योग के अतिरिक्त अन्य छोटे उद्योगों का भी विकास स्वदेशी आन्दोलन के कारण हुआ।


प्रश्न 4. जालियाँवाला बाग हत्याकांड का वर्णन संक्षेप में करें।

उत्तर ⇒ रॉलेट ऐक्ट के विरोध में जनता पंजाब के अमृतसर स्थिति जालियाँवाला . बाग में इकट्ठी हुई। 13 अप्रैल, 1919 को इन निहत्थे लोगों पर जनरल ओ. डायर न अंधाधुन्द गोलियाँ बरसा दी, जिससे हजारों लोग मारे गए। इससे सर्वत्र हाहाकार मच गया। विश्वभर में इस घटना की निंदा शुरू हो गई।


प्रश्न 5, सविनय अवज्ञा आंदोलन के क्या परिणाम हुए?

उत्तर ⇒ सविनय अवज्ञा आंदोलन के परिणाम – 
(i) इस आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन के सामाजिक आधार का विस्तार किया । इस आंदोलन में महिलाओं, मजदूर वर्ग, शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन व अशिक्षित लोगों की भागीदारी मिली। इस आंदोलन ने श्रमिक एवं कृषक आंदोलन को भी प्रभावित किया।

(ii) इस आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी विशेष महत्त्व रखती है, क्योंकि महिलाओं का प्रवेश सार्वजनिक जीवन में होने लगा। इस आंदोलन में पहली बार महिलाओं की भागीदारी वृहत् स्तर पर देखते हैं।

(iii) इस आंदोलन ने समाज के विभिन्न वर्गों का राजनीतिकरण किया।

(iv) इस आंदोलन के अंतर्गत आर्थिक बहिष्कार ने ब्रिटिश आर्थिक हितों को प्रभावित किया, इसके कारण ब्रिटिश वस्त्रों के आयात में गिरावट आई तथा अन्य वस्तुओं के आयात भी प्रभावित हुए । इससे स्वदेशीकरण को बढ़ावा मिला।

(v) इस आंदोलन में संगठन बनाने के नए तरीकों का इस्तेमाल हुआ जैसे-‘वानर सेना’ एवं ‘मंजरी सेना’ इत्यादि । ‘प्रभात फेरी’ का आयोजन कर तथा पत्र-पत्रिकाओं का इस्तेमाल करके भी लोगों को संगठित करने का एक नया तरीका अपनाया गया ।

(vi) इस आंदोलन का एक मुख्य परिणाम था ब्रिटिश सरकार द्वारा 1935 ई० में भारत शासन अधिनियम का पारित किया जाना ।
(vii) पहली बार ब्रिटिश सरकार ने काँग्रेस से समानता के आधार पर बातचीत की।


प्रश्न 6. प्रथम विश्वयुद्ध के किन्हीं दो कारणों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ युद्ध के दो कारण थे-यूरोपीय शक्ति-संतुलन का बिगड़ना तथा साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा। 1871 के बाद जर्मनी इंगलैंड और फ्रांस के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया। साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पन्न औपनिवेशिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए हुई।


प्रश्न 7. रॉलेट एक्ट क्या था ? इसने राष्ट्रीय आन्दोलन को कैसे प्रभावित किया ?

उत्तर ⇒ भारत की क्रांतिकारी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए 1919 में रॉलेट ऐक्ट पारित किया गया। इसके अनुसार, संदेह के आधार पर ही किसी को गिरफ्तार कर, बिना मुकदमा चलाए दंडित किया जा सकता था। भारतीयों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। इसे ‘काला ऐक्ट’ कहा गया। इसका घोर विरोध किया गया। इसी के विरोध के फलस्वरूप जालियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ।


प्रश्न 8. बिहार के किसान आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखें।

उत्तर ⇒ 1920 के दशक में किसानों ने अपने को वर्गीय संगठनो तथा राजनीतिक दलों के रूप में संगठित करना आरंभ कर दिया था। इसके पीछे किसाना के प्रति कांग्रेस की उदासीन नीति तथा साम्यवादी तथा अन्य वामपंथी दलों द्वारा किसानों में वर्गीय चेतना उत्पन्न करने के कारण किसान सभाओं का गठन हुआ, 1920 के आरंभिक दशक में बिहार, बंगाल, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में किसान सभाओं का गठन हुआ । बिहार में 1922-23 में मुंगेर में शाहमुहम्मद जबेर का अध्यक्षता में किसान सभा की स्थापना हुई। मार्च, 1928 को बिहटा (पटना) म स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसान सभा की औपचारिक स्थापना की। नवम्बर, 1929 में सोनपुर में स्वामी सहजानन्द की अध्यक्षता में प्रांतीय किसान सभा का गठन किया गया। श्रीकृष्ण सिंह इसके सचिव तथा यमुना कायर्थी, श्रीगुरुनानक, श्री गुरुलाल एवं कैलाश लाल इसके प्रमंडलीय सचिव बने । 11 अप्रैल 1936 ई. को
अखिल भारतीय किसान सभा का गठन लखनऊ में हुआ। 1936 में बिहार में बकाश्त भूमि (स्वयं जोती हुई भूमि) के विरुद्ध आंदोलन शुरू हुआ, जिसे कांग्रेस ने 1937 के फैजपुर अधिवेशन में मुख्य माँग के रूप में जोड़ा ।


प्रश्न 9. चम्पारण सत्याग्रह के बारे में बताएँ ? अथवा, चम्पारण आंदोलन कब हुआ तथा इसके क्या कारण थे ?

उत्तर ⇒ बिहार में निलहों द्वारा नील की खेती के लिए तीनकठिया व्यवस्था लागू की गई थी जिसके अनुसार प्रत्येक किसान को अपनी कुल भूमि के 3/20 हिस्से या 15% भू-भाग पर नील की खेती करनी होती थी। इसी व्यवस्था के खिलाफ 1917 में सत्याग्रह शुरू हुआ। गाँधीजी के आगमन एवं उनके प्रयास के बाद किसानों को राहत दी गई। गाँधीजी के प्रयास से चंपारण सत्याग्रह सफल हुआ।


प्रश्न 10. प्रथम विश्वयुद्ध के भारत पर हुए प्रभावों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटी, जिनका भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर व्यापक प्रभाव पड़ा।

(i) भारतीय नेताओं ने सरकार को युद्ध में स्वराज्य-प्राप्ति की आशा में सहयोग दिया, परंतु ऐसा हुआ नहीं। इससे राष्ट्रवादी गतिविधियाँ बढ़ीं ।
(ii) सरकार की आर्थिक नीतियों की व्यापक प्रतिक्रिया हुई।
(iii) सरकार को युद्ध में व्यस्त पाकर क्रांतिकारियों ने अपनी गतिविधियाँ बढ़ा दीं।
(iv) भारतीयों में बढ़ते असंतोष को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने. संवैधानिक सुधारों की घोषणा की।
(v) विश्वयुद्ध के दौरान भारतीय राष्ट्रवादी स्वराज्य-प्राप्ति और हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने हेतु प्रयासशील थे।
एनी बेसेंट और तिलक ने गृह शासन की माँग के लिएवातावरण तैयार किया।


प्रश्न 11. भारत में राष्ट्रवाद के उदय के सामाजिक कारणों पर प्रकाश डालें।

उत्तर ⇒ 19वीं शताब्दी के धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलनों ने राष्ट्रवाद उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की । ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन तथा थियोसोफिकल सोसाइटी जैसी संस्थाओं ने हिन्दू धर्म में प्रचलित बुराइयों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। अंधविश्वास, धार्मिक कुरीतियाँ तथा सामाजिक कुप्रथाएँ, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा एवं बालिका हत्या जैसी समस्याओं के समाधान के लिए जनमत तैयार करने में इन संस्थाओं ने सराहनीय कार्य किया। परिणामस्वरूप, सुधार आंदोलनों ने राष्ट्रीयता की भावना जनमानस में कूट-कूटकर भर दी।


प्रश्न 12. साइमन कमीशन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। अथवा, साइमन कमीशन का गठन क्यों किया गया ? भारतीयों ने इसका विरोध क्यों किया ?

उत्तर ⇒ 1919 के ‘भारत सरकार अधिनियम’ में यह व्यवस्था की गई थी कि दस वर्ष के बाद एक ऐसा आयोग नियुक्त किया जाएगा जो इस बात की जाँच करेगा कि इस अधिनियम में कौन-कौन-से परिवर्तन संभव हैं। अतः ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने समय से पूर्व सर जॉन साइमन के नेतृत्व में 8 नवम्बर, 1927 को साइमन कमीशन की स्थापना की। इसके सभी 7 सदस्य अंग्रेज थे। इस कमीशन का उद्देश्य सांविधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था। इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया जिसके कारण भारत में इस कमीशन का तीव्र विरोध हुआ । विरोध का एक और मुख्य कारण यह भी था कि भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था। 3 फरवरी, 1928 को बम्बई पहुँचने पर कमीशन का स्वागत हड़तालों, प्रदर्शनों और काले झंडों से हुआ तथा ‘साइमन, वापस जाओ’ के नारे लगाये गए । साइमन कमीशन की नियुक्ति से भारतीय दलों में व्याप्त आपसी फूट एवं मतभेद की स्थिति से उबरने एवं राष्ट्रीय आंदोलन को उत्साहित करने में सहयोग मिला।


प्रश्न 13. रॉलेट ऐक्ट क्या है ? इसका विरोध क्यों हुआ ?

उत्तर ⇒ भारत में क्रांतिकारियों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। समिति ने 1918 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा समिति के सुझाव के आधार पर केन्द्रीय विधानमंडल में फरवरी, 1919 में दो विधेयक लाये गए। पारित होने के बाद इस विधेयक को ‘रॉलेट ऐक्ट’ के नाम से जाना गया। भारतीय नेताओं के विरोध के बाद भी यह विधेयक 8 मार्च, 1919 को लागू कर दिया गया । इस कानून के अंतर्गत एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया जिसके निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती थी। इस नियम के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार करके उसपर मुकदमा चला सकती थी। उसे अनिश्चित काल के लिए जेल में रख सकती थी तथा उसे दण्डित कर सकती थी। इस ऐक्ट को ‘बिना अपील, बिना वकील तथा बिना दलील’ का भी कानून कहा गया। इसे ‘काला कानून’ एवं ‘आतंकवादी अपराध अधिनियम’ के नाम से भी जाना जाता है। गाँधीजी ने इस कानून को अनुचित, स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा व्यक्ति के मूल अधिकारों की हत्या करनेवाला बताया । 6 अप्रैल, 1919 ई. को एक देशव्यापी हड़ताल हुई। दिल्ली में इस आंदोलन का नेतृत्व स्वामी श्रद्धानंदजी ने सँभाली। यह आंदोलन हिंसात्मक हो गया जिसमें लोग गोली के शिकार हुए। गाँधीजी की गिरफ्तारी 8 अप्रैल, 1919 को ‘पलबल’ (हरियाणा) में हुई । इस विरोध की अंतिम परिणति 13 अप्रैल, 1919 को जालियाँवाला हत्याकांड के रूप में हुई। रॉलेट ऐक्ट कानून के विरोध ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को ‘राष्ट्रीय संस्था’ के रूप में स्थापित कर दिया।


प्रश्न 14. खिलाफत आन्दोलन का कारण बतावें । अंथवा, खिलाफत आन्दोलन क्यों हुआ ?

उत्तर ⇒ तुर्की के सुल्तान को खलीफा कहा जाता था। यह इस्लामिक संसार का मालिक माना जाता था। प्रथम विश्व युद्ध में इंगलैण्ड के हाथों जब तुर्की की पराजय हुई तो तुर्की के सुल्तान को सत्ता से हटा दिया गया। भारतीय मुसलमानों ने इसी का विरोध किया। इसे खिलाफत आन्दोलन कहते हैं।


प्रश्न 15. मुस्लिम लीग के क्या उद्देश्य थे ?

उत्तर ⇒ मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसम्बर, 1906 को ढाका में हुई। इसका उद्देश्य था मुस्लिम के हितों की रक्षा करना। इसकी नींव ढाका के नबाव सलीमुल्लाह खाँ एवं आगा खाँ ने रखी थी। इसका उद्देश्य मुसलमानों को सरकारी सेवा में उचित स्थान दिलाना एवं न्यायाधीश के पद पर मुसलमानों को जगह दिलाना। विधान परिषद् में अलग निर्वाचक मंडल बनाना एवं काउन्सिल में उचित जगह पाना।


प्रश्न 16. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई ?

उत्तर ⇒ कालांतर में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन क्षेत्रीय स्तरों पर प्रतिदिन बढ़ता गया, प्रारंभ में यह आन्दोलन शिक्षित मध्यम वर्ग तक रहा परन्तु आगे चलकर अनेक भारतीय वर्गों की सहानुभूति इसे प्राप्त होने लगी। इसी समय इंडियन एसोसिएशन द्वारा रेंट बिल का विरोध किया जा रहा था, साथ ही लॉर्ड लिंटन द्वारा बनाए गए प्रेस अधिनियम और शस्त्र अधिनियम का भारतीयों द्वारा जबरदस्त विरोध किया जा रहा था, जिस कारण सरकार को प्रेस अधिनियम वापस लेना पड़ा था । यद्यपि अभी कोई अखिल भारतीय राजनीतिक संगठन नहीं था, फिर भी यह विजय भारतीय राष्ट्रवादियों के लिए मार्ग-प्रशस्ति का काम किया। उन्हें लगने लगा कि संगठित होना अति आवश्यक है । लार्ड रिपन के काल में पास हुए इल्बर्ट बिल का यूरोपियनों द्वारा संगठित विरोध से प्राप्त विजय ने भारतीय राष्ट्रवादियों को संगठित होने का पर्याप्त कारण दे दिया।


प्रश्न 17. मेरठ षड्यंत्र से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर ⇒ मार्च 1929 में सरकार ने 31 श्रमिक नेताओं (मजदूर आंदोलन) को बंदी बनाकर मेरठ लाया तथा उन पर मुकदमा चलाया गया । इनपर आरोप था कि ये सम्राट को भारत की प्रभुसत्ता से वंचित करने का प्रयास कर रहे थे। इन नेताओं में मुजफ्फर अहमद, एस० ए० डांगे, शौकत उस्मानी, फिलिप स्पाट तथा ब्रेन बेडली मुख्य थे।


प्रश्न 18. स्वराज्य पार्टी की स्थापना एवं उद्देश्य की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ महात्मा गाँधी द्वारा अचानक असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिए जाने से कांग्रेस के एक वर्ग में घोर निराशा और असंतोष फैल गया। देशबंधु चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू द्वारा सशक्त नीति के अपनाए जाने पर बल देने लगे। इनका विचार था कि कांग्रेस को एसेंबली के बहिष्कार की नीति त्याग देनी चाहिए, कौंसिलों में प्रवेश कर सरकारी नीतियों का विरोध करना चाहिए तथा सरकार विरोधी जनमत तैयार करना चाहिए। यही वर्ग कांग्रेस का ‘परिवर्तनवादी दल’ कहा जाने लगा। 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेशन में कौंसिल में प्रवेश के प्रश्न पर मतदान हुआ जिसमें ‘परिवर्तनवादी’ पराजित हुए। इसके बाद 1923 ई. में देशबंधु चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद में एक नवीन ‘स्वराज्य पार्टी की स्थापना की। स्वराज्य पार्टी का प्रथम सम्मेलन इलाहाबाद में 1923 में हुआ जिसमें देशबंधु चित्तरंजन दास इसके अध्यक्ष और मोतीलाल नेहरूं इसके सचिव बने । इस. दल ने कांग्रेस के अंदर रहकर अपनी अलग नीतियाँ चलाने का निश्चय किया।

स्वराजियों का भी उद्देश्य स्वराज्य की प्राप्ति ही था, लेकिन इसे प्राप्त करने का उनका तरीका अलग था। इसके सदस्य चाहते थे कि केन्द्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं में प्रवेश कर वे सरकार पर दबाव डालें कि वह राष्ट्रीय मांगों को एक निश्चित अवधि के अंदर पूरा करे। सरकार अगर ऐसा नहीं करती है तो विधानमंडलों के जरिए शासन करना असंभव कर दिया जाए। इसके सदस्यों ने सरकारी पद स्वीकार नहीं करने, नगरपालिका चुनावों में भाग नहीं लेने की प्रतिज्ञा की। साथ ही, इसने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और कांग्रेस के रचनात्मक कार्यों में सहयोग देने का भी निर्णय लिया ।


प्रश्न 19. राष्ट्रवाद का क्या अर्थ है ?

उत्तर ⇒ राष्ट्रवाद का शाब्दिक अर्थ है ‘राष्ट्रीय चेतना का उदय’ । ऐसी राष्ट्रीय चेतना का उदय जिसमें आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक एकीकरण महसूस हो सके।


प्रश्न 20. मोपला कौन थे?

उत्तर ⇒ केरल राज्य के दक्षिणी मालाबार तट पर बसे मुसलमान पट्टेदारों तथा खेतिहरों को मोपला कहा जाता था। ये अधिकांशतः छोटे किसान या छोटे व्यापारी थे । मोपला मुख्यतः हिन्दू नम्बूदरी एवं नायर भूस्वामियों के बटाईदार काश्तकार थे।


प्रश्न 21. स्थायी बंदोबस्त क्या है ?

उत्तर ⇒ अंग्रेजों की कृषि नीति मुख्य रूप से अधिकतम लगान एकत्रित करने के उद्देश्य से बंगाल में स्थायी बंदोबस्त लागू किया। इसमें जमींदारों को एक निश्चित भू-राजस्व सरकार को देना पड़ता था तथा जमींदार किसानों से उससे अधिक लगान वसूल करते थे।


प्रश्न 22. जतरा भगत के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में बताएँ।

उत्तर ⇒ छोटानागपुर के उराँव आदिवासियों ने 1914 से 1920 तक अहिंसक आंदोलन चलाया जिसका नेतृत्व जतरा भगत ने किया था। इस आंदोलन में सामाजिक एवं शैक्षणिक सुधार पर विशेष बल दिया गया। इसमें एकेश्वरवाद पर बल तथा मांस-मदिरा एवं आदिवासी नृत्यों से दूर रहने की सलाह दी गई।


प्रश्न 23. असहयोग आंदोलन क्यों वापस लिया गया ?

उत्तर ⇒ 5 फरवरी, 1922 ई. को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में राजनीतिक जुलूस पर पुलिस द्वारा फायरिंग के विरोध में भीड ने थाना पर हमला कर दिया जिसमें 22 पुलिसकर्मियों की जान चली गई । अतः, आंदोलन के हिंसक हो जाने के कारण 12 फरवरी, 1922 को गाँधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया ।


प्रश्न 24. सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों को लिखें।

उत्तर ⇒ सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे –
साइमन कमीशन का बहिष्कार, नेहरू रिपोर्ट अस्वीकार किया जाना, 1929 30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी, भारत में समाजवाद के बढ़ते प्रभाव, क्रांतिकारी आंदोलनों में उभार का आना, 1929 में काँग्रेस अधिवेशन द्वारा पूर्ण स्वराज्य की माँग तथा गाँधीजी की 11 सूत्री मांगों को इरविन ने मानने से इनकार कर दिया।


प्रश्न 25. खोंड विद्रोह का परिचय दें।

उत्तर ⇒ उड़ीसा की सामंतवादी रियासत के दसपल्ला में अक्टूबर 1914 में खोंड विद्रोह हुआ। यह विद्रोह उत्तराधिकार विवाद से आरंभ हुआ परन्तु शीघ्र ही इसने अलग रूप धारण कर लिया। खोंड विद्रोह का विस्तार पूर्वी घाट समूह की दुर्गम पर्वत श्रृंखलाओं कालाहांडी और बस्तर तक फैल गया। इसके विस्तार को रोकने के लिए ब्रिटिश शासन ने विद्रोह का दमन शुरू किया। खोंडों के गाँवों को जलाकर नष्ट कर दिया गया।


प्रश्न 26. बारदोली सत्याग्रह का कारण क्या था? क्या यह सत्याग्रह सफल रहा ?

उत्तर ⇒ गुजरात में स्थित बारदोली के किसानों ने सरकार द्वारा. बदले गये कर के विरोध में वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सत्याग्रह किया। पटेल ने किसानों के लगान में हुई 22% की कर वृद्धि का विरोध किया तथा सरकार से मांग की कि सरकार प्रस्तावित लगान में वृद्धि को वापस ले । सरदार पटेल ने इस आंदोलन को संगठित किया तथा ‘बारदोली’ पत्रिका के माध्यम से इसका प्रसार किया। कई बौद्धिक संगठन बनाये गए। आंदोलन का विरोध करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाने लगा। इस आंदोलन में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही। आंदोलन के समर्थन में के० एम० मुंशी तथा लालजी नारंगी ने बम्बई विधान परिषद की सदस्यता से त्याग-पत्र दे दिया । अगस्त 1928 तक पूरे क्षेत्र में आंदोलन सक्रिय रूप से फैल चुका था। सरदार पटेल की गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए गाँधीजी 2 अगस्त, 1928 को बारदोली पहुँचे । गाँधीजी के प्रभाव के कारण सरकार ने लगान में वृद्धि को गलत बताया और बढ़ोतरी 22% से घटाकर 6.03% कर दी । बारदोली सत्याग्रह के सफल होने के बाद वहाँ की महिलाओं ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की।

 

History ( इतिहास ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारणों का परीक्षण करें।

उत्तर ⇒ 19वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में अनेक कारणों का योगदान था। इनमें निम्नलिखित कारण प्रमुख थे-

(i) अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध असंतोष – भारतीय राष्ट्रीयता के विकास का सबसे प्रमुख कारण अंग्रेजी नीतियों के प्रति बढ़ता असंतोष था। अंग्रेजी सरकार की नीतियों के शोषण के शिकार देशी रजवाड़े, ताल्लुकेदार, महाजन, कृषक, मजदूर, मध्यम वर्ग सभी बने। सभी अंग्रेजी शासन को अभिशाप मानकर इसका खात्मा करने का मन बनाने लगे।

(ii) आर्थिक कारण – भारतीय राष्ट्रवाद का उदयं का एक महत्त्वपूर्ण कारण आर्थिक था। सरकारी आर्थिक नीतियों के कारण कृषि और कुटीर-उद्योग धंधे नष्ट हो गए। किसानों पर लगान एवं कर्ज का बोझ चढ़ गया। किसानों को नगदी फसल नील, गन्ना, कपास उपजाने को बाध्य कर उसका भी मुनाफा सरकार ने उठाया। अंग्रेजी आर्थिक नीति से भारत से धन का निष्कासन हुआ, जिससे भारत की गरीबी बढ़ी। इससे भारतीयों में प्रतिक्रिया हुई एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ।

(iii) अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार-19वीं शताब्दी में भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार ने भारतीयों की मानसिक जड़ता समाप्त कर दी। वे भी अब अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम, फ्रांस एवं यूरोप की अन्य महान क्रांतियों से परिचित हुए। रूसो, वाल्टेयर, मेजिनी, गैरीबाल्डी जैसे दार्शनिकों एवं क्रांतिकारियों के विचारों का प्रभाव उनपरपरा पड़ा ।

(iv) सामाजिक, धार्मिक सुधार आंदोलन का प्रभाव –19वीं शताब्दी के सामाजिक, धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भी राष्ट्रीयता की भावना विकसित की। ब्रह्मसमाज, आर्य-समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन ने एकता, समानता एवं स्वतंत्रता की भावना जागृत की तथा भारतीयों में आत्म-सम्मान, गौरव एवं राष्ट्रीयता की भावना का विकास करने में योगदान किया।

(v) राजनीतिक एकीकरण- भारत में अंग्रेजों ने उग्र साम्राज्यवादी नीति अपनाई। वारेन हेस्टिंग्स से लेकर लॉर्ड डलहौजी ने येन-केन-प्रकारेण देशी रियासतों को अपना अधीनस्थ बना लिया। 1857 के विद्रोह के बाद महारानी विक्टोरिया ने सभी देशी राज्यों की अंग्रेजी अधिसत्ता में ले लिया। इससे एक प्रकार से भारत का । राजनीतिक एवं प्रशासनिक एकीकरण हुआ। लॉर्ड डलहौजी द्वारा रेल, डाक-तार की व्यवस्था से आवागमन और संचार की सुविधा बढ़ गई। इससे संपूर्ण भारत में। स्थानीयता की भावना के स्थान पर राष्ट्रीयता की भावना बढ़ी।


2. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गाँधीजी के योगदान की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में 1919-1947 का काल गाँधी युग के नाम से जाना जाता है। राष्ट्रीय आंदोलन को गाँधीजी ने एक नई दिशा दिया। सत्य अहिंसा, सत्याग्रह का प्रयोग कर गाँधीजी भारतीय राजनीति में छा गए। इन्हीं अस्ता का सहारा लेकर वे औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध राष्ट्रीय आंदोलनों क जन-आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। 1917-18 में उन्होंने चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया। 1920 ई० में गाँधीजी ने अहसयोग आंदोलन आरंभ किया। जिसम बहिष्कार, स्वदेशी तथा रचनात्मक कार्यक्रमों पर बल दिया गया। 1930 में गाँधी जी ने सरकारी नीतियों के विरुद्ध दूसरा व्यापक आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन आरभ किया। इसका आरंभ उन्होंने 12 मार्च, 1930 को दांडी यात्रा से किया। गाँधीजी का 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन था जिसमें उन्होंने लोगों को प्रेरित करते हुए ‘करो या मरो’ का मंत्र दिया। गाँधीजी के सतत् प्रयत्नों के परिणामस्वरूप ही 15 अगस्त, 1947 को भारत का आजादी प्राप्त हुई। वे एक राजनीतिक नेता के साथ-साथ प्रबुद्ध चिंतन समाजसुधारक एवं हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे।


3. सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई० में शुरू किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्वपूर्ण कारण निम्नलिखित थे –

(i) साइमन कमीशन- सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में बनाया गया यह 7 सदस्यीय आयोग था जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। भारत में साइमन कमीशन के विरोध का मुख्य कारण कमीशन में एक भी भारतीय को नहीं रखा जाना तथा भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था।

(ii) नेहरू रिपोर्ट- कांग्रेस ने फरवरी, 1928 में दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया। समिति ने ब्रिटिश सरकार से डोमिनियन स्टेट’ की दर्जा देने की माँग की। यद्यपि नेहरू रिपोर्ट स्वीकृत नहीं हो सका, लेकिन संप्रदायिकता की भावना उभरकर सामने आई। अतः गाँधीजी ने इससे निपटने के लिए सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम पेश किया।

(iii) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी- 1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा पड़ा। भारत का निर्यात कम हो गया लेकिन अंग्रेजों ने भारत से धन का निष्कासन बंद नहीं किया। पूरे देश का वातावरण सरकार के खिलाफ था। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आंदोलन हेतु एक उपयुक्त अवसर दिखाई पड़ा।

(iv) समाजवाद का बढ़ता प्रभाव- इस समय कांग्रेस के युवा वर्गों के बीच मार्क्सवाद एवं समाजवादी विचार तेजी से फैल रहे थे, इसकी अभिव्यक्ति कांग्रेस के अंदर वामपंथ के उदय के रूप में हुई। वामपंथी दबाव को संतुलित करने के आंदोलन के नए कार्यक्रम की आवश्यकता थी।

(v) क्रांतिकारी आंदोलनों का उभार- इस समय भारत की स्थिति विस्फोटक थी। ‘मेरठ षड्यंत्र केस’ और ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ ने सरकार विरोधी विचारधारा को उग्र बना दिया था। बंगाल में भी क्रांतिकारी गतिविधियाँ एक बार फिर उभरी।

(vi) पूर्णस्वराज्य की माँग- दिसंबर, 1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पर्ण स्वराज्य की माँग की गयी। 26 जनवरी, 1930 को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा के साथ ही पूरे देश में उत्साह की एक नई लहर जागृत हुई।

(vii) गाँधी का समझौतावादी रुख – आंदोलन प्रारंभ करने से पूर्व गाँधी ने वायसराय लार्ड इरावन के समक्ष अपनी 11 सूत्रीय माँग को रखा। परन्तु इरविन ने मांग मानना तो दूर गाँधी से मिलने से भी इनकार कर दिया। सरकार का दमन चक्र तेजी से चल रहा था। अतः बाध्य होकर गाँधीजी ने अपना आंदोलन डांडी मार्च आरम्भ करने का निश्चय किया।


4. असहयोग आंदोलन के कारण एवं परिणाम का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ महात्मा गाँधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जन-आदोलन असहयोग आंदोलन था। इस आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –

(i) रॉलेट कानून- 1919 ई० में न्यायाधीश सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में रॉलेट कानून (क्रांतिकारी एवं अराजकता अधिनियम) बना। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार कर जेल में डाला जा सकता था तथा इसके खिलाफ वह कोई भी अपील नहीं कर सकता था।

(ii) जालियाँवाला बाग हत्याकांड- 13 अप्रैल, 1919 ई० को बैसाखी मैले के अवसर पर पंजाब के जालियाँवाला बाग में सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ लोग एकत्रित हुए थे। जनरल डायर के द्वारा वहाँ पर निहत्थी जनता पर गाली चलवाकर हजारों लोगों की जान ले ली गयी। गांधीजी ने इस पर काफी प्रतिक्रिया व्यक्त किया।

(iii) खिलाफत आंदोलन- इसी समय खिलाफत का मुद्दा सामने आया। गांधीजी ने इस आंदोलन को अपना समर्थन देकर हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित करने और एक बड़ा सशक्त अंग्रेजी राज विरोधी असहयोग आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया।

परिणाम – 5 फरवरी, 1922 ई० को गोरखपुर के चौरी-चौरा नामक स्थान पर हिंसक भीड़ द्वारा थाने पर आक्रमण कर 22 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गयी। जिससे नाराज होकर गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को तत्काल बंद करने की घोषणा की। असहयोग आंदोलन का व्यापक प्रभाव पड़ा।
असहयोग आंदोलन के अचानक स्थगित हो जाने और गाँधीजी की गिरफ्तारी के कारण खिलाफत के मुद्दे का भी अंत हो गया। हिंदू-मुस्लिम एकता भंग हो गई तथा संपूर्ण भारत में संप्रदायिकता का बोलबाला हो गया। न ही स्वराज की प्राप्ति हुई और न ही पंजाब के अन्यायों का निवारण हुआ। असहयोग आंदोलन के । परिणामस्वरूप ही मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास के द्वारा स्वराज पार्टी की स्थापना हुई।


5. खिलाफत आंदोलन क्यों हुआ ? गाँधीजी ने इसका समर्थन क्यों किया ?

उत्तर ⇒ तुर्की (ऑटोमन साम्राज्य की राजधानी) का खलीफा जो ऑटोमन साम्राज्य का सुलतान भी था, संपूर्ण इस्लामी जगत का धर्मगुरु था। पैगंबर के बाद सबसे अधिक प्रतिष्ठा उसी की थी। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के साथ तुर्की भी पराजित हुआ। पराजित तुर्की पर विजयी मिस्र-राष्ट्रों ने कठोर संधि थोप दी (सेव्र की संधि)। ऑटोमन साम्राज्य को विखंडित कर दिया गया।
खलीफा और ऑटोमन साम्राज्य के साथ किए गए व्यवहार से भारतीय मुसलमानों में आक्रोश व्याप्त हो गया। वे तुर्की के सुल्तान एवं खलीफा की शक्ति और प्रतिष्ठा की पुनः स्थापना के लिए संघर्ष करने को तैयार हो गए। इसके लिए खिलाफत आंदोलन आरंभ किया गया। 1919 में अली बंधुओं (मोहम्मद अली और शौकत अली) ने बंबई में खिलाफत समिति का गठन किया। आंदोलन चलाने के लिए जगह-जगह खिलाफत कमिटियाँ बनाकर तुर्की के साथ किए गए अन्याय के विरुद्ध जनमत तैयार करने का प्रयास किया गया। ‘ गाँधीजी ने इस आंदोलन को अपना समर्थन देकर हिंदू-मुसलमान एकता स्थापित करने और एक बड़ा सशक्त राजविरोधी आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया।


6. असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में क्या अंतर था ? महिलाओं की सविनय अवज्ञा आंदोलन में क्या भूमिका थी ?

उत्तर ⇒ असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में काफी विभिन्नता थी। असहयोग आंदोलन में जहाँ सरकार के साथ असहयोग करने की बात थी, वहीं सविनय अवज्ञा आंदोलन में न केवल अंग्रेजों का सहयोग न करने के लिए बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का भी उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा। असहयोग आंदोलन की तुलना में सविनय अवज्ञा आंदोलन काफी व्यापक जनाधार वाला आंदोलन साबित हुआ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन में पहली बार महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया। वे घरों की चारदीवारी से बाहर निकलकर गांधीजी की सभाओं में भाग लिया। अनेक स्थानों पर स्त्रियों ने नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। स्त्रियों ने विदेशी वस्त्र एवं शराब के दुकानों की पिकेटिंग की। स्त्रियों ने चरखा चलाकर सूत काते और स्वदेशी को प्रोत्साहन दिया। शहरी क्षेत्रों में ऊँची जाति की महिलाएं आंदोलन में सक्रिय थीं तो ग्रामीण इलाकों में संपन्न परिवार की किसान स्त्रिया।


7. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में वामपंथियों की भूमिका को रेखांकित करें।

उत्तर ⇒ 20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में ही भारत में साम्यवादी विचारधाराओं क अंतर्गत बंबई, कलकत्ता, कानपर, लाहौर, मद्रास आदि जगहों पर साम्यवादी सभाएं बननी शुरू हो गई थी। उस समय इन विचारों से जुड़े लोगों में मुजफ्फर अहमद, एस० ए० डांगे, मौलवी बरकतुल्ला, गुलाम हुसैन आदि नाम प्रमुख हैं। इन लोगों ने अपने पत्रों के माध्यम से साम्यवादी विचारों का पोषण शुरू कर दिया था। परंतु रूसी क्रांति की सफलता के बाद साम्यवादी विचारों का तेजी से भारत में फैलाव शुरू हुआ। उसी समय 1920 में एम० एन० राय ने ताशकंद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। असहयोग आंदोलन के दौरान पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उन्हें उपने विचारों को फैलाने का मौका मिला। अब ये लोग आतंकवादी राष्ट्रवादी आंदोलनों से भी जुड़ने लगे थे। इसलिए असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद सरकार ने इन लोगों का दमन शुरू किया और पेशावर षड्यंत्र केस (1922-23), कानपुर षड्यंत्र केस (1924) और मेरठ षड्यंत्र केस (1929) के तहत लोगों पर मुकदमें चलाए। तब साम्यवादियों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया और राष्ट्रवादी “साम्यवादी शहीद” कहे जाने लगे। इसी समय इन्हें कांग्रेसियों का समर्थन मिला क्योंकि सरकार द्वारा लाए गए “पब्लिक सेफ्टी बिल” को कांग्रेसी पारित होने नहीं दिए थे, क्योंकि यह कानून कम्युनिस्टों के विरोध में था। इस तरह अब साम्यवादी आंदोलन प्रतिष्ठित होता जा रहा था।
अब तक कई मजदूर संघों का गठन हो चुका था। 1920 में AITUC की स्थापना हो गई थी तथा 1929 में एन० एम० जोशी ने AITUF का गठन कर लिया। इस तरह वामपंथ का प्रसार मजदूर संघों पर बढ़ रहा था। किसानों को भी साम्यवाद से जोड़ने का प्रयास हुआ। लेबर स्वराज पार्टी भारत में पहली किसान मजदूर पार्टी थी लेकिन अखिल भारतीय स्तर पर दिसंबर, 1928 में अखिल भारतीय मजदूर किसान पार्टी बनी। अक्टूबर, 1934 में बंबई में कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना की गयी। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान साम्यवादियों ने कांग्रेस का विरोध करना शुरू किया क्योंकि कांग्रेस उन उद्योगपतियों एवं मर्थन से चल रही थी जो मजदूरों का शोषण करते थे।


8. जालियाँवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ ? इसने राष्ट्रीय आंदोलन को कैसे बढ़ावा दिया ?

उत्तर ⇒ भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर अकुंश लगाने के उद्देश्य से सरकार ने 1919 में रॉलेट कानून (क्रांतिकारी एवं अराजकता अधिनियम) बनाया। इस कानून के अनुसार सरकार किसी को भी संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाए उसको दंडित कर सकती थी तथा इसके खिलाफ कोई अपील भी नहीं की जा सकती थी। भारतीयों ने इस कानून का कड़ा विरोध किया। इसे ‘काला कानून’ की संज्ञा दी गई। अमृतसर में एक बहुत बड़ा प्रदर्शन हुआ जिसकी अध्यक्षता डॉ० सत्यपाल और डॉ० सैफुद्दीन किचलू कर रहे थे। सरकार ने दोनों को गिरफ्तार कर अमृतसर से निष्कासित कर दिया। जनरल डायर ने पंजाब में फौजी शासन लागू कर आतंक का राज स्थापित कर दिया। पंजाब के लोग अपने प्रिय नेता की गिरफ्तारी तथा सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ 13 अप्रैल, 1919 को वैसाखी मेले के अवसर पर अमृतसर के जालियांवाला बाग में एक विराट सम्मेलन कर विरोध प्रकट कर रहे थे, जिसके कारण ही जनरल डायर ने निहत्थी जनता पर गोलियाँ चलवा दी। यह घटना जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना गया।
जालियाँवाला बाग की घटना ने पूरे भारत को आक्रोशित कर दिया। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन और हडताल हुए। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इस घटना के विरोध में अपना ‘सर’ का खिताब वापस लौटाने की घोषणा की। वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकरन नायर ने इस्तीफा दे दिया। गाँधीजी ने कैसर-ए-हिन्द की उपाधि त्याग दी। जालियाँवाला बाग हत्याकांड ने राष्ट्रीय आंदोलन में एक नई जान फूंक दी।


9. भारत में मजदूर आंदोलन के विकास का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ 20 वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में मजदूरों के आंदोलन हुए, तथा उनके संगठन बने। श्रमिक आंदोलन को वामपंथियों का सहयोग एवं समर्थन मिला। शोषण के विरुद्ध श्रमिक वर्ग संगठित हुआ। अपनी मांगों के लिए. इसने हड़ताल का सहारा लिया। प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व, इसके दौरान एवं बाद में अनेक हड़ताले हुई। पताल को सुचारू रूप से चलाने के लिए मजदूरों ने अपने संगठन बनाए। 1920 में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन का गठन लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुआ। विभिन्न श्रमिक संगठनों को इससे सम्बद्ध किया गया। आगे चलकर साम्यवादी
भाव के कारण इस संघ में फूट पड़ गई और साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित संगठन-ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन रेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस का गठन हुआ। 1935 में तीनों श्रमिक संघ पुनः एकजुट हुए। तब से श्रमिक संघ विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रभाव में मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।


10. अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कैसे हुई ? इसके प्रारंभिक उद्देश्य क्या थे ?

उत्तर ⇒ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत 19 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से माना जाता है। 1883 ई० में इंडियन एसोसिएशन के सचिव आनंद मोहन बोस ने कलकत्ता में ‘नेशनल काँफ्रंस’ नामक अखिल भारतीय संगठन का सम्मेलन बुलाया जिसका उद्देश्य बिखरे हुए राष्ट्रवादा शक्तियों को एकजुट करना था। परंतु, दूसरी तरफ एक अंग्रेज अधिकारी एलेन ऑक्टोवियन ह्यूम ने इस दिशा में अपने प्रयास शुरू किए और 1884 में ”भारतीय राष्ट्रीय संघ’ की स्थापना की। भारतीयों को संवैधानिक मार्ग अपनाने और सरकार के लिए सुरक्षा कवच बनाने के उद्देश्य से ए०ओ०ह्यूम ने 28 दिसम्बर, 1885 को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। इसके प्रारंभिक उद्देश्य निम्नलिखित थे

(i) भारत के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय हित के नाम से जुड़े लोगों के , संगठनों के बीच एकता की स्थापना का प्रयास।

(ii) देशवासियों के बीच मित्रता और सद्भावना का संबंध स्थापित कर धर्म, वंश, जाति या प्रांतीय विद्वेष को समाप्त करना।

(iii) राष्ट्रीय एकता के विकास एवं सुदृढ़ीकरण के लिए हर संभव प्रयास करना। राजनीतिक तथा सामाजिक प्रश्नों पर भारत के प्रमुख नागरिकों से चर्चा करना एवं उनके संबंध में प्रमाणों का लेखा तैयार करना।

(v) प्रार्थना पत्रों तथा स्मार पत्रों द्वारा वायसराय एवं उनकी काउन्सिल से सुधारों हेतु प्रयास करना।
इस प्रकार कांग्रेस का प्रारंभिक उद्देश्य शासन में सिर्फ सुधार करना था।


11. 20 वीं शताब्दी के किसान आंदोलन का संक्षिप्त परिचय दें।

उत्तर ⇒ 20 वीं शताब्दी का किसान आंदोलन किसानों में एक नई जागृति ला दी। वे अपने सामाजिक-आर्थिक हितों के सुरक्षा के लिए संगठित होने लगे। यद्यपि महात्मा गाँधी ने किसानों के हित के लिए चंपारण और खेड़ा में सत्याग्रह भी किया परंतु कांग्रेस शुरू से ही किसानों की समस्याओं के प्रति उदासीन बनी रही। इसी बीच वामपंथियों का प्रभाव किसानों और श्रमिकों पर बढ़ता जा रहा था। अत: उनके प्रभाव में 20 वीं शताब्दी के दूसरे और तीसरे दशक में किसान सभाओं का गठन बिहार. बंगाल और उत्तर प्रदेश में हुआ। जहाँ जमींदारी, अत्याचार और शोषण अपनी पराकाष्ठा पर थी। 1920-21 में अवध किसान सभा का गठन किया गया। 1922-23 में मुंगेर में शाह मुहम्मद जुबेर ने किसान सभा का गठन किया। 1928 में पटना के बिहटा में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसान सभा का गठन किया। 1929 में उन्हीं के नेतृत्व में सोनपर में प्रांतीय किसान सभा की स्थापना की गयी। 1936 में स्वामी सहजानंद की अध्यक्षता में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ।
अखिल भारतीय किसान सभा ने किसानों को संगठित करने एवं उनमें चेतना जगाने के लिए किसान बुलेटिन एवं किसान घोषणा पत्र जारी किया। किसानों की मुख्य मांगें जमींदारी समाप्त करने, किसानों को जमीन का मालिकाना हक देने, बेगार प्रथा समाप्त करने एवं लगान की बढ़ी दरों में कमी थी। अपनी मांगों के समर्थन में किसानों ने प्रदर्शन तथा व्यापक आंदोलन किए। सितम्बर, 1936 को पूरे देश में किसान दिवस मनाया गया। उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य स्थानों में किसानों की जमीन को बकाश्त जमीन में बदलने के विरुद्ध एक बड़ा आंदोलन हुआ।


12. प्रथम विश्वयद्ध के भारतीय राष्टीय आंदोलन के साथ अन्तसबमा की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत में होनेवाली तमाम घटनाएँ से उत्प परिस्थितियों की ही देन थी। इसने भारत में नई आर्थिक और राजनैतिक स्थिति उत्प की जिससे भारतीय राष्ट्रवाद ज्यादा परिपक्व हुआ। महायुद्ध के बाद भारत आर्थिक स्थिति बिगडी। पहले तो कीमतें बढी और फिर आर्थिक गतिविधिया होने लगी जिससे बेरोजगारी बढी। महँगाई अपने चरम बिन्दु पर पहुँच गयी | मजदूर, किसान दस्तकारों का सबसे अधिक प्रभावित किया। इसी परिस्थिति :
धागपतियों का एक वर्ग का उदय हुआ। युद्ध के बाद भारत में विदेशा पूंजी का प्रभाव बढ़ा। भारतीय उद्योगपतियों ने सरकार से विदेशी वस्तुओं के आयात में भारी आयात शुल्क लगाने की माँग की जिससे उनका घरेलू उद्योग बढ़े लेकिन सरकार ने उनकी मांगों को इनकार कर दिया। अंततः प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत सहित पूरे एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रबल बनाया।


13. भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में जनजातीय लोगों की क्या भूमिका थी ?

उत्तर ⇒ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में जनजातियों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 19 वीं एवं 20 वीं शताब्दियों में उनके अनेक आंदोलन हुए। 19 वा शताब्दी में हो, कोल, संथाल एवं बिरसा मुंडा आंदोलन हुए। 1916 में दक्षिण भारत की गोदावरी पहाड़ियों के पुराने रंपा प्रदेश में विद्रोह हुआ। 1920 के दशक में आंध्र प्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में अल्लूरी सीताराम राजू का विद्रोह हुआ। छोटानागपुर में उराँव जनजातियों के बीच जतरा भगत के नेतृत्व में ताना भगत आंदोलन चला। इन प्रमुख आंदोलनों के अतिरिक्त देश के अन्य भागों में भी अनेक जनजातीय विद्रोह हुए, जैसे – उड़ीसा में 1914 का खोंड विद्रोह, 1917 में मयूरभंज में संथालों एवं मणिपुर में थोडोई कुकियों का विद्रोह, बस्तर में 1910 में गुंदा धुर का विद्रोह इत्यादि। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत की जनजातियों एवं भारत छोडो आंदोलन के समय झारखंड के आदिवासियों ने भी विद्रोह किए। ये सभी जनजातीय विद्रोह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े हुए थे।

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