भारत में राष्ट्रवाद

भारत में राष्ट्रवाद

अध्याय का सार

1. पहला विश्वयुद्ध, ख़िलाफ़त और असहयोग
1919 से बाद के सालों में हम देखते हैं कि राष्ट्रीय आंदोलन नए इलाकों तक फैल गया था, उसमें नए सामाजिक समूह शामिल हो गए थे और संघर्ष की नयी पद्धतियाँ सामने आ रही थीं। इन बदलावों को हम कैसे समझेंगे? उनके क्या
परिणाम हुए? सबसे पहली बात यह है कि विश्वयुद्ध ने एक नयी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पैदा कर दी थी। इसके कारण रक्षा व्यय में भारी इजाफा हुआ। इस खर्चे की भरपाई करने के लिए युद्ध के नाम पर कर्जे लिए गए और करों में वृद्धि की गई। सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया और आयकर शुरू किया गया। युद्ध के दौरान क़ीमतें तेजी से बढ़ रही थीं। 1913 से 1918 के बीच कीमतें दोगुना हो चुकी थीं जिसके कारण _आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई थीं। गाँवों में सिपाहियों को जबरन भर्ती किया गया जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में व्यापक गुस्सा था। 1918-19 और 1920-21 में देश के बहुत सारे हिस्सों में फसल खराब हो गई जिसके कारण खाद्य पदार्थों का भारी अभाव पैदा हो गया।उसी समय फ्लू की महामारी फैल गई। 1921 की जनगणना के मुताबिक दुर्भिक्ष और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए।
लोगों को उम्मीद थी कि युद्ध खत्म होने के बाद उनकी मुसीबतें कम हो जाएँगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

महात्मा गांधी जनवरी 1915 में भारत लौटे। इससे पहले वे दक्षिण अफ्रीका में थे। उन्होंने एक नए तरह के जनांदोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था। इस पद्धति को वे सत्याग्रह कहते थे। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि अगर आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।

इस कामयाबी से उत्साहित गांधीजी ने 1919 में प्रस्तावित रॉलट एक्ट (1919) के ख़िलाफ़ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आंदोलन चलाने का फैसला लिया। भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद इस कानून को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने बहुत जल्दबाजी में पारित कर दिया था। . इस कानून के ज़रिए सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था। महात्मा गांधी ऐसे अन्यायपूर्ण कानूनों के ख़िलाफ़ अहिंसक ढंग से नागरिक अवज्ञा चाहते थे। इसे 6 अप्रैल को एक हड़ताल से शुरू होना था।
असहयोग का विचार आंदोलन कैसे बन सकता था? गांधीजी का सुझाव था कि यह आंदोलन चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ना चाहिए। सबसे पहले लोगों को सरकार द्वारा दी गई पदवियाँ लौटा देनी चाहिए और सरकारी नौकरियों, सेना, पुलिस, अदालतों, विधायी परिषदों, स्कूलों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना चाहिए।
अगर सरकार दमन का रास्ता अपनाती है तो व्यापक सविनय अवज्ञा अभियान भी शुरू किया जाए। 1920 की गर्मियों में गांधीजी और शौकत अली आंदोलन के लिए समर्थन जुटाते हुए देश भर में यात्राएँ करते रहे।

2. आंदोलन के भीतर अलग-अलग धाराएँ
असहयोग-ख़िलाफत आंदोलन जनवरी 1921 में शुरू हुआ। इस आंदोलन में विभिन्न सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया लेकिन हरेक की अपनी-अपनी आकांक्षाएँ थीं। सभी ने स्वराज के आह्वान को स्वीकार तो किया लेकिन उनके लिए उसके अर्थ अलग-अलग थे।

2.1 शहरों में आंदोलन
आंदोलन की शुरुआत शहरी मध्यवर्ग की हिस्सेदारी के साथ हुई। हज़ारों विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिए। हेडमास्टरों और शिक्षकों ने इस्तीफे सौंप दिए। वकीलों ने मुकदमे लड़ना बंद कर दिया। मद्रास के अलावा ज़्यादातर प्रांतों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया गया। मद्रास में गैर-ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई जस्टिस पार्टी का मानना था कि काउंसिल में प्रवेश के ज़रिए उन्हें वे अधिकार मिल सकते हैं जो सामान्य रूप से केवल ब्राह्मणों को मिल पाते हैं इसलिए इस पार्टी ने चुनावों का बहिष्कार नहीं किया।

आर्थिक मोर्चे पर असहयोग का असर और भी ज्यादा नाटकीय रहा। विदेशी सामानों का बहिष्कार किया गया, शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गई, और विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी। 1921 से 1922 के बीच विदेशी कपड़ों का आयात आधा रह गया था। उसकी कीमत 102 करोड़ से घटकर 57 करोड़ रह गई। बहुत सारे स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी चीजों का व्यापार करने या विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इनकार कर दिया।

2.2 ग्रामीण इलाकों में विद्रोह
शहरों से बढ़कर असहयोग आंदोलन देहात में भी फैल गया था। युद्ध के बाद देश के विभिन्न भागों में चले किसानों व आदिवासियों के संघर्ष भी इस आंदोलन में समा गए। अवध में सन्यासी बाबा रामचंद्र किसानों का नेतृत्व कर रहे थे। बाबा रामचंद्र इससे पहले फिजी में गिरमिटिया मज़दूर के तौर पर काम कर चुके थे। उनका आंदोलन तालुकदारों और ज़मींदारों के खिलाफ़ था जो किसानों से भारी-भरकम लगान और तरह-तरह के कर वसूल कर रहे थे। किसानों को बेगार करनी पड़ती थी। बहुत सारे स्थानों पर ज़मींदारों को नाई-धोबी की सुविधाओं से भी वंचित करने के लिए पंचायतों ने नाई-धोबी बंद का फैसला लिया। जून 1920 में जवाहर लाल नेहरू ने अवध के गाँवों का दौरा किया, गाँववालों से बातचीत की और उनकी व्यथा समझने का प्रयास किया। अक्तूबर तक जवाहर लाल नेहरू, बाबा रामचंद्र तथा कुछ अन्य लोगों के नेतृत्व में अवध किसान सभा का गठन कर लिया गया। महीने भर में इस परे इलाके के गाँवों में संगठन की 300 से ज्यादा शाखाएँ बन चुकी थीं। अगले साल जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो कांग्रेस ने अवध के किसान संघर्ष को इस आंदोलन में शामिल करने का प्रयास किया लेकिन किसानों के आंदोलन में ऐसे स्वरूप विकसित हो चुके थे जिनसे कांग्रेस का नेतृत्व खुश नहीं था।

2.3 बागानों में स्वराज
महात्मा गांधी के विचारों और स्वराज की अवधारणा के बारे में मजदूरों की अपनी समझ थी। असम के बागानी मज़दूरों के लिए आजादी का मतलब यह था कि वे उन चारदीवारियों से जब चाहे आ-जा सकते हैं जिनमें उनको बंद करके रखा गया था। उनके लिए आज़ादी का मतलब था कि वे अपने गाँवों से संपर्क रख पाएंगे। 1859 के इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना इजाज़त बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह इजाज़त उन्हें विरले ही कभी मिलती थी। जब उन्होंने असहयोग आंदोलन के बारे में सुना तो हज़ारों मज़दूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे।

3. सविनय अवज्ञा की ओर
फ़रवरी 1922 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला कर लिया। उनको लगता था कि आंदोलन हिंसक होता जा रहा है और सत्याग्रहियों को व्यापक प्रशिक्षण की ज़रूरत है। कांग्रेस के कुछ नेता इस तरह के जनसंघर्षों से थक चुके थे। वे 1919 के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट के तहत गठित की गई प्रांतीय परिषदों के चुनाव में हिस्सा लेना चाहते थे। उनको लगता था कि परिषदों में रहते हुए ब्रिटिश नीतियों का विरोध करना, सुधारों की वकालत करना और यह दिखाना भी महत्त्वपूर्ण है कि ये परिषदें लोकतांत्रिक संस्था नहीं हैं। सी.आर. दास और मोतीलाल नेहरू ने परिषद् राजनीति में वापस लौटने के लिए कांग्रेस के भीतर ही स्वराज पार्टी का गठन कर डाला। जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस जैसे युवा नेता ज्यादा उग्र जनांदोलन और पूर्ण स्वतंत्रता के लिए दबाव बनाए हुए थे।

आंतरिक बहस व असहमति के इस माहौल में दो ऐसे तत्व थे जिन्होंने बीस के दशक के आखिरी सालों में भारतीय राजनीति की रूपरेखा एक बार फिर बदल दी। पहला कारक था विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का असर। 1926 से कृषि उत्पादों की कीमतें गिरने लगी थीं और 1930 के बाद तो पूरी तरह धराशायी हो गई। कृषि उत्पादों की माँग गिरी और निर्यात कम होने लगा तो किसानों को अपनी उपज बेचना और लगान चुकाना भी भारी पड़ने लगा। 1930 तक ग्रामीण इलाके भारी उथल-पुथल से गुजरने लगे थे।

1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ (साइमन कमीशन गो बैक) के नारों से किया गया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग, सभी पार्टियों ने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। इस विरोध को शांत करने के लिए वायसराय लॉर्ड इरविन ने अक्तूबर 1929 में भारत के लिए ‘डोमीनियन स्टेटस’ का गोलमोल सा ऐलान कर दिया।

देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गांधी को नमक एक शक्तिशाली प्रतीक दिखाई दिया। 31 जनवरी 1930 को उन्होंने वायसराय इरविन को एक खत लिखा। इस खत में उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया था। इनमें से कुछ सामान्य माँगें थीं जबकि कुछ माँगें उद्योगपतियों से लेकर किसानों तक विभिन्न तबकों से जुड़ी थीं। गांधीजी इन माँगों के ज़रिए समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ना चाहते थे ताकि सभी उनके अभियान में शामिल हो सकें। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने के बारे में थी। नमक का अमीर-गरीब, सभी इस्तेमाल करते थे। यह भोजन का एक अभिन्न हिस्सा था। इसीलिए नमक पर कर और उसके उत्पादन पर सरकारी इज़ारेदारी को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन का सबसे दमनकारी पहलू बताया था।

गाँवों में संपन्न किसान समुदाय-जैसे गुजरात के पटीदार और उत्तर प्रदेश के जाट-आंदोलन में सक्रिय थे। व्यावसायिक फसलों की खेती करने के कारण व्यापार में मंदी और गिरती कीमतों से वे बहुत परेशान थे। जब उनकी नकद आय खत्म होने लगी तो उनके लिए सरकारी लगान चुकाना नामुमकिन हो गया। सरकार लगान कम करने को तैयार नहीं थी। चारों तरफ़ असंतोष था। संपन्न किसानों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का बढ़-चढ़ कर समर्थन किया। उन्होंने अपने समुदायों को एकजुट किया और कई बार अनिच्छुक सदस्यों को बहिष्कार के लिए मजबूर किया। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई थी। लेकिन जब 1931 में लगानों के घटे बिना आंदोलन वापस ले लिया गया तो उन्हें बड़ी निराशा हुई। फलस्वरूप, जब 1932 में आंदोलन दुबारा शुरू हुआ तो उनमें से बहुतों ने उसमें हिस्सा लेने से इनकार कर दिया।

सभी सामाजिक समूह स्वराज की अमूर्त अवधारणा से प्रभावित नहीं थे। ऐसा ही एक समूह राष्ट्र के ‘अछूतों’ का था। वे 1930 के बाद खुद को दलित या उत्पीड़ित कहने लगे थे। कांग्रेस ने लंबे समय तक दलितों पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि कांग्रेस रूढ़िवादी सवर्ण हिंदू सनातनपंथियों से डरी हुई थी। लेकिन महात्मा गांधी ने ऐलान किया कि अस्पृश्यता (छुआछूत) को खत्म किए बिना सौ साल तक भी स्वराज की स्थापना नहीं की जा सकती।

4. सामूहिक अपनेपन का भाव
राष्ट्रवाद की भावना तब पनपती है जब लोग ये महसूस करने लगते हैं कि वे एक ही राष्ट्र के अंग हैं जब वे एक-दूसरे को एकता के सूत्र में बाँधने वाली कोई साझा बात ढूँढ लेते हैं। लेकिन राष्ट्र लोगों के मस्तिष्क में एक यथार्थ का रूप कैसे रोता है? विभिन्न समुदायों, क्षेत्रों या भाषाओं से संबद्ध अलग-अलग समूहों ने सामूहिक अपनेपन का भाव कैसे विकसित किया?

सामूहिक अपनेपन की यह भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्षों के चलते पैदा हुई थी। इनके अलावा बहुत सारी सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ भी थीं जिनके ज़रिए राष्ट्रवाद लोगों की कल्पना और दिलोदिमाग पर छा गया था। इतिहास व साहित्य, लोक कथाएँ व गीत, चित्र व प्रतीक, सभी ने राष्ट्रवाद को साकार करने में अपना योगदान दिया था।

जैसा कि आप जानते है, राष्ट्र की पहचान सबसे ज्यादा किसी तसवीर में अंकित की जाती है (देखें अध्याय 1)। इससे लोगों को एक ऐसी छवि गढ़ने में मदद मिलती है जिसके ज़रिए लोग राष्ट्र को पहचान सकते हैं। बीसवीं सदी में राष्ट्रवाद के विकास के साथ भारत की पहचान भी भारत माता की छवि का रूप लेने लगी। यह तसवीर पहली बार बंकिमचन्द्र – चट्टोपाध्याय ने बनाई थी। 1870 के दशक में उन्होंने मातृभूमि की स्तुति के रूप में ‘वन्दे मातरम्’ गीत लिखा था।

इंडो-चाइना में राष्ट्रवादी आंदोलन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
जबरन भर्ती का क्या अर्थ था?
उत्तर-
वह प्रक्रिया जिसमें भारत के लोगों को जबरदस्ती सेना में भर्ती किया जाता था, उसे जबरन भर्ती कहा गया।

प्रश्न 2.
कौन-सी महामारी 1920-21 के मध्य फैली?
उत्तर-
फ्लू की महामारी 1920-21 में फैली जिसमें लगभग 120-130 लाख लोग मारे गए।

प्रश्न 3.
अफ्रीका में गाँधी जी ने सत्याग्रह क्यों प्रयोग किया?
उत्तर-
अफ्रीका में गाँधी जी ने सत्याग्रह नस्लभेद (apartheid) सरकार के विरुद्ध किया। इसके लिए उन्होंने वहाँ एक जनांदोलन आरम्भ किया जिसे सत्याग्रह कहा गया।

प्रश्न 4.
सत्याग्रह का क्या अर्थ है।
उत्तर-
हिंसा के साथ सत्य के लिए आग्रह करना सत्याग्रह कहलाता है।

प्रश्न 5.
अहमदाबाद में सत्याग्रह का प्रयोग गाँधी जी ने क्यों किया?
उत्तर-
सूती कपड़ा कारखानों के मजदूरों की सहायता के लिए अहमदाबाद में सत्याग्रह चलाया गया।

प्रश्न 6.
बहिष्कार क्या है?
उत्तर-
बहिष्कार का अर्थ है कि किसी से सम्पर्क रखने, उसकी वस्तुएँ प्रयोग करने या उसकी गतिविधियों में भागीदारी से मना करना।

प्रश्न 7.
असहयोग कार्यक्रम को स्वीकृति कब मिली?
उत्तर-
दिसम्बर, 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौते के अन्तर्गत असहयोग कार्यक्रम को स्वीकृत प्राप्त

प्रश्न 8.
कांग्रेस के लोग चुनावों का बहिष्कार करने में क्यों हिचकिचा रहे थे?
उत्तर-
कांग्रेस के लोगों को यह डर था कि यदि चुनावों का बहिष्कार हुआ तो हिंसा उत्पन्न हो सकती थी। अतः वे इसमें हिचकिचा रहे थे।

प्रश्न 9.
खिलाफत समिति के गठन के पीछे क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
द्वितीय युद्ध में ऑटोमन तुर्की हार चुका था। यह अफवाहें फैली कि इस्लामिक विश्व पर एक सख्त शांति संधि लागू होगी। खलीफा की शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च, 1919 में खिलाफत समिति का निर्माण हुआ।

प्रश्न 10.
जनवरी, 1921 में किस आंदोलन का आरम्भ हुआ?
उत्तर-
असहयोग खिलाफत आंदोलन का आरम्भ जनवरी, 1921 में हुआ।

प्रश्न 11.
पिकेटिंग क्या है?
उत्तर-
प्रदर्शन या विरोध का वह तरीका जिसमें दुकान. फैक्टरी या दफ्तर के अन्दर जाने के रास्ते को रोकते हैं उसे पिकेटिंग कहा जाता है।

प्रश्न 12.
1921 से 1922 के मध्य विदेशी कपड़ों के आयात में कमी क्यों आई?
उत्तर-
अहसयोग आंदोलन के समय विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया गया व्यापारियों ने विदेशी वस्तुओं के व्यापार में पैसा लगाना बंद कर दिया। लोग केवल भारतीय कपड़े ही पहनने लगे जिससे आयात 102 करोड़ से कम होकर केवल करोड़ रह गया।

प्रश्न 13.
असहयोग आंदोलन धीमा क्यों पड़ने लगा?
उत्तर-
असहयोग आंदोलन कुछ समय पश्चात् हल्का पढने लगा। इसका कारण था कि मिलों में बना कपड़ा हाथ के बने खादी से सस्ता था। गरीब खादी खरीदने में असमर्थ था। व्यवसायों के लिए वैकल्पिक संस्थान भी नहीं थे या उनकी स्थापना धीरे हो रही थी। इसके परिणामस्वरूप लोग जल्दी ही कामों पर वापिस लौटने लगे।

प्रश्न 14.
गिरमिटिया मजदूर किसे कहा जाता था?
उत्तर-
औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार मजदूरों को एक अनुबंध के अन्तर्गत फिजी, गुयाना, वेस्टइंडीज आदि जगहों पर ले जाती। इन मजदूरों को गिरमिटिया श्रमिक कहा जाता था।

प्रश्न 15.
बाबा रामचन्द्र के आंदोलन के विषय में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
बाबा रामचन्द्र ने अवध में किसानों के लिए आंदोलन छेड़ा। वे जमींदारों तथा तालुकदारों के विरुद्ध थे जो किसानों से भारी लगान और अलग-अगल प्रकार के कर वसूल करते थे। वे किसानों से बिना किसी पारिश्रमिक के काम करवाते थे। बाबा रामचन्द्र ने यह माँग की कि बेगार की समाप्ति हो, कर कम किया जाए तथा उन जमींदारों का बहिष्कार किया जाए जो दमनकारी हैं। बाबा रामचन्द्र के नेतृत्व में अवध किसान सभा को गठिन किया।

प्रश्न 16.
दांडी मार्च के पीछे गाँधी जी का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
गाँधी जी ने दांडी मार्च नमक पर लगने वाले कर को समाप्त करने के लिए छेड़ा। इसके अतिरिक्त 31 जनवरी, 1930 को उन्होंने इरविन को पत्र लिखा जिसमें 11 माँगे था। इन मांगों के द्वारा गाँधी जी पूरे देश को जोड़ना चाहते थे। नमक का प्रयोग सभी लोग करते थे। ब्रिटिश सरकार का नमक पर कर लेना दमनकारी था, जो गाँधी जी समाप्त करना चाहते थे।

प्रश्न 17.
दांडी मार्च पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
जब वायसराय इरविन ने गाँधी जी की माँग पूरी नहीं की, उन्होंने 11 मार्च से दांडी मार्च का आरम्भ 78 वॉलंटियरों के साथ किया। इस यात्रां को दांडी नामक तटीय क्षेत्र में समाप्त होना था जो गुजराती कस्बे में था। 24 दिन तक वे लगातार चलने के बाद दांडी पहुँचे। 6 अप्रैल को वहाँ पहुँच का उन्होंने समुद्र के पानी को उबालकर नमक बनाया जो कानून का एक उल्लंघन था।

प्रश्न 18.
सविनय अवज्ञा आंदोलन का समर्थन किस प्रकार का रहा?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आंदोलन औपनिवेशिक कानूनों का उल्लंघन करता था। विभिन्न क्षेत्रों में नमक बनाकर कानून तोड़ा गया, नमक के कारखानों के समक्ष विरोध किया गया, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया गया, दुकानों की पिकेटिंग हुई। किसानों ने भूमि पर लगान देने से मना कर दिया। गाँवों के कर्मचारियों ने नौकरियाँ छोड़ दीं। वन कानूनों का उल्लंघन किया गया।

प्रश्न 19.
गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस क्यों लिया?
उत्तर-
औपनिवेशिक सरकार ने कानूनों का उल्लंघन देखकर कांग्रेस के नेताओं की गिरफ्तारी आरम्भ कर दी। जल्दी ही दूसरे स्थानों पर हिंसा आरम्भ हो गई। अब्दुल गफ्फार खॉन को गिरफ्तार किया गया। इस पर जनता सड़कों पर उतर आई। उन पर पुलिस ने गोलियाँ चलाई। बहुत से लोग भी मारे गए। परन्तु जब गाँधी जी को गिरफ्तार किया गया तब औद्योगिक मजदूरों ने अदालतों, दफ्तरों आदि पर हमले किए। बढ़ती हिंसा को देखकर गाँधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया। __ प्रश्न 20. गाँधी-इरविन के मध्य क्या समझौता हुआ?
उत्तर-सविनय अवज्ञा आंदोलन के पश्चात् 5 मार्च, 1931 को गाँधी-इरविन समझौता हुआ। उन्होंने लंदन में होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने की बात मान ली जिसका पहले कांग्रेस बहिष्कार कर चुकी थी। ब्रिटिश सरकार इस समझौते के तहत् राजनैतिक नेताओं को रिहा करने के लिए तैयार हो गई।

प्रश्न 21.
भारत माता की छवि का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
बीसवीं सदी में भारत माता की छवि का विकास होना आरम्भ हुआ। भारत माता की तस्वीर प्रथम बार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने बनाई। उन्होंने वन्दे मातरम् का गीत भी 1870 में लिखा। अबीनद्रनाथ टैगोर ने संन्यासिनी के रूप में भारत माता को चित्रित किया जो गम्भीर, शांत तथा दैवी शक्ति का प्रतीक थी। इसके अतिरिक्त 19वीं शताब्दी में लोक-कथाओं में राष्ट्रवादियों की गूंज को सुना जा सकता था। बंगाल में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लोक-कथाओं, गीतों आदि के द्वारा राष्ट्रवाद का विकास किया। नटेसा शास्त्री ने तमिल कथाओं के द्वारा राष्ट्रवाद की वृद्धि की।
इसके बाद राष्ट्रवाद की छवि की व्याख्या करने के लिए चिह्नों का प्रयोग होने लगा जैसे गाँधी जी ने 1921 तक तिरंगा तैयार किया जिसमें तीन रंग थे।

प्रश्न 22.
लोगों को एकजुट करने में क्या समस्या थी?
उत्तर-
लोगों को एकजुट करने में कई समस्याएँ थीं। राष्ट्रवाद में भारत के अतीत का गुणगान किया जा रहा था, परन्तु यह गुणगान केवल हिन्दुओं के इतिहास का ही प्रतीक था। भारत माता की जिस छवि का निर्माण किया गया, वह हिन्दुओं का प्रतीक था। इस कारण दूसरे समुदायों के लोग स्वयं को अलग समझने लगे।

प्रश्न. 23.
1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए।
उत्तर-
1921 के असहयोग आंदोलन में समाज के अनेक समूहों ने भाग लिया जिसमे से विशेषकर उल्लेखनीय है:
(1) नगरों के ममय श्रेणी के लोग (2) ग्रामीण क्षेत्रों के किसान लोग (3) जंगली क्षेत्रों के आदिवासियों ने (4) बागान में काम करने वाले विभिन्न प्रकार लोगों ने इन सामाजिक समूहों ने असहयोग आंदोलन में क्यों भाग लिया अथवा असहयोग आन्दोलन के आर्थिक प्रभाव-पर के विभिन्न सामाजिक समूहों ने असहयोग आन्दोलन में इसलिये _भाग लिया क्योंकि उन्हें अपने-अपने ढंग से आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति की सम्भावना नज़र आई।

  1. नगरों में रहने वाले लोगों ने इस आन्दोलन में इसलिये भाग लिया कि यदि लोग विदेशी माल का बहिष्कार करेंगे तो उनका अपना बनाया हुआ माल तेजी से बिकेगा और उनकी औद्योगिक इकाइयाँ फिर से काम करने लगेंगी। इससे लोगों के लिए नौकरी के कई नए अवसर खुलेंगे।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों ने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर इसलिये भाग लिया कि एक तो उन्हें बड़े-बड़े जमींदारों के अत्याचारों से मुक्ति मिलेगी और दूसरे उन्हें कठोर से लगान इकट्ठा करने वाले अधिकारियों के जुल्मों से निजात मिलेगी।
  3. बागान में काम करने वाले विभिन्न प्रकार के लोगों ने इसलिये असहयोग आंदोलन में भाग लिया क्योंकि एक तो उन्हें बागान की जेल-सामान चारदीवारों से बाहर जाने की आज्ञा मिल जायेगी और दूसरे वे बागान मालिकों की दासता और पशु-समान व्यवहार से मुक्ति प्राप्त कर लेगे और स्वतन्त्र वातावरण में जीवन व्यतीत कर सकेंगे। केवल यही नहीं, उन्हें बागान में कम वेतन मिलने की समस्या से भी छुटकारा मिल । जायेगा।

प्रश्न 24.
सिविल नाफरमानी में महिलाओं ने क्या योगदान दिया?
उत्तर-
सिविल नाफरमारनी अथवा सविनय अवज्ञा में औरतों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। नमक आंदोलन के समय वे गाँधी जी को सुनने आतीं। उन्होंने जुलूसों में भाग लिया, नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया। कई औरतें जेल भी गई। शहरों में उच्च जाति तथा गाँवा में किसान परिवार की महिलाओं ने भाग लिया, परन्तु उनकी स्थिति में बदलाव नहीं आया। कोई भी महत्त्वपूर्ण पद महिलाओं ने ग्रहण नहीं किया।

प्रश्न 25.
दलितों ने किस अपने अधिकारों के लिए लड़ाई की? गाँधी जी की इसमें क्या भूमिका थी?
उत्तर-
गाँधी जी दलितों को ईश्वर की संतान मानते थे। उन्होंने उनको ‘हरिजन’ का नाम दिया। उनका मानना था कि यदि अस्पृश्यता समाप्त नहीं की जाएगी तो आने वाले सौ सालों तक भी स्वराज प्राप्ति सम्भव नहीं है। गाँधी जी ने सत्याग्रह उनके अधिकारों के लिए किया। इसमें वे चाहते थे कि हरिजनों को मंदिरों, तालाबों, कुओं आदि पर जाने का अधिकार दिया जाए। इसके लिए उन्होंने उच्च जातियों से छुआ-छूत छोड़ने का आग्रह किया। वे उनके लिए शिक्षा संस्थानों में आरक्षण चाहते थे। दलित नेता स्वयं ही अपनी इन समस्याओं का हल ढूँढने लगे। इसके लिए उन्होंने स्वयं को संगठित किया। वे मानते थे कि राजनैतिक सशक्तिकरण इस प्रक्रिया के लिए महत्त्वपूर्ण है। इस कारण दलित नेता सविनय अवज्ञा से दूर रहे।

प्रश्न 26.
दलितों के लिए डॉ. अम्बेडकर की भूमिका पर टिप्पणी करें।
उत्तर-
डॉ. अम्बेडकर स्वयं दलित वर्ग के थे। अतः वे उनकी समस्याओं के विषय में जानते थे। उन्होंने दलित वर्ग एसोसिएशन का गठन 1930 में किया। वे गोलमेज सम्मेलन में अलग निर्वाचन क्षेत्र की माँग करने लगे। यह माँग ब्रिटिश सरकार के द्वारा मान ली गई तो गाँधी जी अनशन पर बैठ गए। बाद में अम्बेडकर ने गाँधी ने जी के साथ पूना पैक्ट का समझौता किया। इसके पश्चात् केन्द्रीय एवं विधान परिषदों में दलितों के लिए सीटों का आरक्षण किया।

प्रश्न. 27.
राजनीतिक नेता पृथक क्षेत्रों के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे।
उत्तर-
पृथक निर्वाचन पद्धति से हमारा अभिप्राय ऐसी पद्धति से है जब लोग केवल अपने धर्म के लोगों को ही वोट दे सकते हैं, दूसरे धर्म वालों को नहीं।
भारत में इस पद्धति का प्रयोग करना अंग्रेजी सरकार की जान-बूझकर की गई शरारत थी जो भारतीय जनता को धर्म के नाम पर आपस में बाँटकर राष्ट्रीय आन्दोलन को पंगु और कमजोर बनाना चाहती थी और लोगों में फूट डालकर अपना यहाँ टिके रहने का स्वार्थ सिद्ध करना चाहती थी। वे इस हथियार से प्रयोग किया कि अन्त में 1947 ई. में देश बँटकर ही रहा।

  • कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार की पृथक निर्वाचन पद्धति की भावना को प्रोत्साहित करने के लिये उसकी कड़ी आलोचना की क्योंकि ब्रिटिश सरकार की यह चाल थी कि वे स्थानीय लोगों को किसी न किसी मसले पर उलझाए रखें और अपने देश का बंटवारा करके रहेगी। वह तो देश की एकता के लिए संयुक्त निर्वाचन प्रणाली के पक्ष में थी।
  • मुस्लिम लोग के नेता-जैसे मोहम्मद इकबाल और मि. जिन्ना पृथक निर्वाचन प्रणाली को मुसलमानों के हितों की सुरक्षा के लिये आवश्यक समझते थे। उनके विचार में भारत में हिन्दुओं की संख्या अधिक है इसलिये संयुक्त निर्वाचन प्रणाली के चलते मुसलमान की हानि होगी। ऐसा विचार रखने में ब्रिटिश सरकार के अपने औपनिवेशिक हित भी छिपे हुए थे।
  • दलित श्रेणियों के नेता, विशेषकर बी. आर. अम्बेडकर भी पृथक निर्वाचक-पद्धति के पक्ष में थे क्योंकि उनका विचार था कि इसके बिना दलित श्रेणियों के लोगों के हितों की रक्षा नहीं हो सकेगी। महात्मा गाँधी के मौन रखने पर वे संयुक्त चुनाव पर वे संयुक्त चुनाव प्रणाली को पूना पेक्ट नामक समझौते के कारण मान तो गए परन्तु जब केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान सभाओं में दलित सदस्यों को सीटें निश्चित कर दी गई।

भारत में राष्ट्रवाद Textbook Questions and Answers

1. व्याख्या करें
(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी।
उत्तर-
‘राष्टीयता’ या ‘राष्ट्रवाद’ एकता की वह शक्तिशाली भावना है जो लोग तब अनुभव करते है जब वे एक जैसी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अवस्थाओं में रहते है, जब वे एक जैसी आंकाक्षायें रखते हैं और जब वे विशेष भू- भाग में एक विशेष राजनितिक व्यवस्था के अधीन रहते हैं और एक नियमों का पालन करते हैं। राष्टीयता एक ऐसी भावना है जो विश्व के इतिहास में मध्य-युग के पश्चात् दृष्टिगोचर हुई। यह उन्हीं सामाजिक एवं आर्थिक कारणों का परिणाम है जिन्होंने सामंतवाद का अन्त किया था।

साधारणतया यह देखा गया है कि उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद-विरोधी आन्दोलन से जुड़ी हुई होती है। उपनिवेशवाद शोषण पर आधारित होता है। उपनिवेशवाद शोषण पर आधारित होता है इसलिये समाज के सभी प्रकार के लोग इस लूट-खसूट से इतने तंग आ जाते है कि वे विदेशी उपनिवेशवाद को समाप्त करने और अपने देश को स्वतन्त्र कराने का दृढ़ संकल्प कर लेते हैं। बहुत बार शोषण और अन्याय ही बड़े-बड़े और आंदोलनों का कारण बनता है।

अंग्रेज़ी उपनिवेशवादियों ने भारत को ऐसे लूटा कि हर वर्ष पड़ने वाले अकाल की लपेट में आने लगे और उनके मन में अत्याचारी सरकार के विरुद्ध आक्रोश के भाव जागृत होने लगे। ‘मरता क्या न करता’ वाली कहावत के अनुसार लोगों को यह एहसास हो गया कि वे जब तक अपने देश को स्वतन्त्र नहीं करा लेंगे उनके दुखों को तब तक अंत नहीं हो सकता।

जीवन के हर क्षेत्र में उपनिवेशवादियों द्वारा झूठ-फरेब, नीच और अन्यायपूर्ण हथकंडे अपनाने के कारण वे जनता में शीघ्र ही बदनाम हो गए। अब वे जान चुके थे कि जब तक वे अपने देश को स्वतन्त्र नहीं करा लेते वे चैन की नींद सो नहीं सकते। इस नरक से निकलने का एक ही तरीका है कि उपनिवेशवाद को खत्म किया जाए और देश को स्वतन्त्र कराया जाए।

(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्टीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया।
उत्तर-
(1) प्रथम विश्व युद्ध लाए गए आर्थिक संकट के कारण भारतीयों में रोष और विरोध की भावना-ज्योंही 1914 ई. में यह युद्ध में शुरु हुआ भारत में उथल-पुथल पैदा हो गई। पहले तो अंग्रेजों ने भारतीयों से पूछे बिना युद्ध में भारत को भी एक पार्टी बना दिया और दूसरे, भारत के संसाधनों का धड़ाधड़ प्रयोग ब्रिटिश सरकार अपनी विदेशी हितों की पूर्ति के लिए कर रही थी। इससे चीजों के मूल्य बढ़ गए और लोगों के लिये जीना कठिन हो गया। इसीलिए भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति बड़ा रोष पैदा हुआ।

(2) राजनीतिक गतिविधियों का तेज़ हो जाना और होमरुल आन्दोलनों का ज़ोर पकड़ना–प्रथम विश्व युद्ध में फंसे देखकर भारतीयों ने अंग्रेजों से कुछ अधिकार प्राप्त करने के प्रयत्न किए। श्रीमती एनी बेसेंट 1914 ईद में कांग्रेस में शामिल हुई थीं। दो वर्ष बाद गंगाधर तिलक के साथ मिलकर उन्होंने होमरुल आंदोलन की नींव रखी और होमरुल लीग की स्थापना की जिसका लक्ष्य भारतीयों के लिए होमरुल या स्वराजय प्राप्त करना था। किन्तु ब्रिटिश सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी इसलिये उसने एनी बेसेंट को गिरफ्तार कर लिया और इस आंदोलन को कुचलने के लिए दमनचक्र चलाया।

(3) मुस्लिम लींग और कांग्रेस का एक-दूसरे के निकट आना और इस प्रकार राष्ट्रीयता को बल मिलना-यद्यपि मुस्लिम लींग अंग्रेजी सरकार की बांदी थी तथापि प्रथम महायुद्ध की घटनाओं के कारण इसे कांग्रेस के समीप आना पड़ा। तुर्की ने प्रथम महायुद्ध में मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध जर्मनी का साथ दिया था। युद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों ने उसके साथ कठोर व्यवहार किया जिससे भारत के मुसलमान, विशेष रुप से मुस्लिम लींग, – ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध हो गए कांग्रेस के साथ 1916 ईद में उन्होने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

(4) नरमदल और गरमदल में पुनः मैत्री स्थापित होना और स्वतन्त्रता संग्राम को मजबूती से मिलना-सरकार की दमन नीति के कारण नर्मदल और गर्मदल के नेताओं में 1916 ई. में पुनः मेल-मिलाप हो गया।

(5) प्रथम विश्व युद्ध द्वारा फैलाए गए रोष के कारण वातावरण में गांधी जी द्वारा राष्ट्रीयता की बागडोर संभालना आसान हो जाना-प्रथम महायुद्ध के दौरान ही गांधी जी का भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता के रूप में उदय हुआ।

(ग) भारत के लोग रोलट एक्ट के विरोध में क्यों थे।
उत्तर-
रौलट ऐक्ट, 1919 ई.-1919 ई. के गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया ऐक्ट में दी गई रियासतों से काँग्रेस असन्तुष्ट थी और समस्त भारत में निराशा का वातावरण छाया हुआ था। सरकार को डर था कि अवश्य कोई नया आन्दोलन प्रारम्भ होगा। इस ऐक्ट के अनुसार सरकार की किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग चलाए अनिश्चित समय के लिए बन्द कर सकती थी और उसे अपील, दलील या वकील करने का कोई अधिकार नहीं था।

इस ऐक्ट के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया और सरकारी दमन-इस ऐक्ट के विरुद्ध सभी भारतीय एक-साथ खड़े हो गए। उन्होंने इसे ‘काले बिल का’ नाम का नाम दिया। यह राष्ट्रीय सम्मान पर ऐसा धब्बा था जिसे भारतीयों के लिए सहना बड़ा कठिन था। ऐसे कठिन समय में महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन की बागडोर सम्भाली और इसे नवीन कार्यक्रम और कार्यविधि प्रदान की। उन्होंने इस ऐक्ट के विरुद्ध सत्य और अहिंसा के आधार पर सत्याग्रह आन्दोलन शुरु किया। दिल्ली में एक भीड़ पर पुलिस ने गोली दी जिसमें पाँच व्यक्ति मारे गए और 20 घायल हुए। इसके विरोध में बड़े-बड़े शहरों में हड़ताले हुई और दुकानें बन्द कर दल गयीं। अनेक लोगों को सरकार ने पकड़ कर जेल में डाल दिया। महात्मा गाँधी ने भी जब वास्तविक स्थिति का अमययन करने के लिए दिल्ली और पंजाब की ओर जाने का प्रयत्न किया तो उन्हें भी पकड़ लिया गया।

इस प्रकार ऐक्ट ने भारत की राजनीति में उनर भर दी अंग्रजी सरकार और भारतीयों में टकराव का वातावरण पैदा कर दिया।

(घ) गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया।
उत्तर-
महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन को क्यों वापस ले लिया-असहयोग आन्दोलन अपने पूरे जोरों पर चल रहा था जब महात्मा गांधी ने 1922 ई. को उसे वापस ले लिया। इस आंदोलन के वापिस लिये जाने के कारण थे जिनमें से मुख्य निम्नलिखित है:

(1) महात्मा गांधी अहिंसा और शांति के पूर्ण समर्थक थे – इसलिए जब उन्हें यह सूचना मिली कि उत्तेजित भीड़ ने चौरी-चौरा के पुलिस थाने को आग लगा कर 22 सिपाहियों की हत्या कर डाली है तो वह परेशान हो उठे। उन्हें अब विश्वास न रहा कि वे लोगो को शान्त रख सकेंगे। ऐसे में उन्होंने असहयोग आन्दोलन को वापिस ले लेना ही उचित समझा।
(2) दूसरे वे सोचने लगे कि यदि लोग हिसंक को जायेंगे तो अंग्रेजी सरकार भी उत्तेजित हो उठेगी और आंतक का राज्य स्थापित हो जायेगा और अनेक निर्दोष लोग मारे जायेंगे। महात्मा गांधी जलियाँवाला बाग जैसे हत्याकांड की पुनरावृति नहीं करना चाहते थे इसलिए 1922 ई. में उन्होंने असहयोग आंदोलन वापिस ले लिया।

प्रश्न 2.
सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?
उत्तर-
गाँधी जी ने सत्याग्रह के विचार के संदर्भ में चार बिन्दु निम्नलिखित है:
(1) सत्याग्रह सच्चाई और अहिंसा का एक ढंग है जिसे अपनाकर महात्मा गान्धी ने दक्षिण अफ्रीका की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था बाद में यही पद्धति उन्होंने भारत की ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कार्यो का विरोध करने में अपनाई।
(2) यदि आपका उद्देश्य सच्चा और न्यायपूर्ण है तो आपको अन्त में सफलता अवश्य मिलेगी, ऐसा महात्मा गाँधी का विचार था।
(3) प्रतिरोध की भावना या आक्रमक्ता का सहारा लिये बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।
(4) बाद में सत्याग्रह के इसी सिद्धान्त का प्रयोग उन्होंने अनेक स्थानों पर किया जैसे 1916 में बिहार में चंपारन इलाके में दमनकारी बागान मालिकों के विरुद्ध किसानों को बचाने में,1917 ई. में गुजरात के खेड़ा जिले के किसानो को फसल खराब हो जाने के कारण सरकारी करों से बचाने में और 1918 में गुजरात के अहमदाबाद के सूती कपड़ा के कारखानों के मजदूरों को उचित वेतन दिलाने आदि में किया, परन्तु उन्हें हर बार सफलता प्राप्त हुई।
न्याय और सच्चाई पर आधारित सत्याग्रह का सिद्धान्त बाद में कांग्रेस के संघर्ष का मूल मंत्र बन गया।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर अख़बार के लिए रिर्पोट लिखें
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
उत्तर-
जलियाँवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल, 1919 ई. -1918 ई. में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो गया और उसके साथ ही भारत में होने वाली वस्तुओं की मांग भी बहुत कम हो गई जिससे किसान वर्ग (Peasants) को बहुत हानि हुई। बेकारी भी बहुत बढ़ गई, क्योंकि युद्ध समाप्त होने पर कइयों को नौकरी से छुट्टी मिल गई। जब चीजों की माँग कम हो गयी तो भारतीय व्यापारियों को भी बहुत कठिनाइयाँ उठानी पड़ी। जमीदारों का भी बहुत बुरा हाल था, क्योंकि किसानों से उन्हें लगान तो. मिल रहा था लेकिन सरकार उनसें पूरा लगान मा!गती थी। संक्षेप में प्रत्येक व्यक्ति बड़ा परेशान था। उधर जनवरी 1919 ई. को अंग्रेजी सरकार ने रौलट ऐक्ट पास करके लोगो में और भी रोष पैदा कर दिया। उधर महात्मा गाँधी ने इसके विरुद्ध सत्याग्रह प्रारम्भ कर दिया। सारे देश में हड़तालें होने लगीं, जलसे और जलूस निकलने लगे। अमृतसर में अंग्रेजी सरकार ने डॉन सतपाल और डॉन किचलू को पकड़ लिया। कोई 20,000 लोगों ने इसके विरोध में 13 अप्रैल, 1919 ई. को जलियाँवाला बाग (Jallianwala Bagh) में एक जलसा किया। शीघ्र ही एक अंग्रेज़ अधिकारी जनरल डायर (General Dyer) ने बाग को चारों ओर से घेर लिया और गोली चलाना प्रारम्भ कर दिया जिससे सहस्त्रों स्त्री-पुरुष मारे गये और अनेकों घायल हुए। इस हत्याकाण्ड का भारतीय राजनीति पर प्रभाव-जलियाँवाला बाग के हत्याकांड ने भारतीयों पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। अब लोगो का अंग्रेजी शासन से विश्वास जाता रहा और वे ऐसे शासन से छुटकारा पाने के लिए उग्र और क्रान्तिकारी मार्ग पर चल पड़े। सरकार ने भी अपना दमन-चक्र और तेज कर दिया।

सारे पंजाब में मार्शल-ला (Martial Law) लगा दिया और बड़े अत्याचार किए। महात्मा गाँधी को भी कैद कर लिया गया। जेल से आते ही उन्होंने पंजाब के हत्याकाण्ड और मार्शल-ला के विरुद्ध खिलाफत आन्दोलन चलाया हुआ था, को अपने साथ मिलाकर 1920 ई. में पहला असहयोग आन्दोलन चलाया। उनके कहने पर हजारों व्यक्तियों ने सरकारी नौकरियाँ छोड़ दी और सरकार से मिले हुए पदक और उपाधियाँ त्याग दी। वकीलों ने वकालत छोड़ दी और विद्यार्थियों ने अपने स्कूल तथा कॉलिज छोड़ दिए। इस प्रकार हम कह सकते है कि जलियाँवाला बाग के हत्याकाण्ड की घटना भारत के इतिहास में अपना विशेष महत्व रखती है। इसके परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर अंग्रेजी सरकार के नैतिक सम्मान और गौरव को धक्का लगा, वहाँ जनता और सरकार के अच्छे सम्बन्ध सदा के लिए खराब हो गए। इस घटना से राष्ट्रीय एकता और सुदृढं हुई जब सभी जातियों के लोग सरकार के अत्याचारों के सम्मान रूप से शिकार हुए। परन्तु जब सरकार की दमनकारी नीति भारतीयों को भयभीत करने में असफल रही तो निश्चित रूप से भारतीयों का धैर्य और मनोबल कई गुना बढ़ गया और वे अधिक शक्ति से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जुट गए।

(ख) साइमन कमीशन
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन के वापस लेने के पश्चात् जब प्रसिद्ध नेता सी.आर.दास (C.R.Dass) की मृत्यु हो गई तो देश में एक प्रकार का सन्नाटा छा गया। केवल क्रान्तिकारी ही इधर-उधर अपना क्रान्तिकारी कार्य करते रहे। इस रातनीतिक सन्नाटे को तोड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1927 ईन में जॉन साइमन (John Simon) की अध्यक्षकता में एक कमीशन नियुक्त किया जिसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे:

(क) इसका मुख्य उद्देश्य तो यह था कि 1919 के गर्वनमेंट आफ इण्डिया ऐक्ट की समीक्षा की जा सके ताकि यह सुझाव दिए जा सके कि भारतीय प्रशासन में क्या नए सुधार लाए जा सकते हैं।
(ख) इसका एक अन्य उद्देश्य यह भी था कि भारत में पैदा तत्कालीन राजनीतिक सन्नाटे और गतिरोध को दूर किया जा सके। क्योंकि इस कमीशन का अध्यक्ष जॉन साइमन को बनाया गया इसलिए साधारणतया इसे साइमन कमीशन के नाम से पुकारा जाता है।
साइमन कमीशन में सात सदस्य थे और वे सबके सब अंग्रेज थे। इसलिए जब यह कमीशन 1928 ई. में भारत आया तो सभी स्थानों पर लोगों ने इसका बहिष्कार किया। जहाँ भी यह कमीशन जाता था वहाँ हड़ताले होती थीं, काली झण्डियाँ दिखाई जाती थीं और ‘साइमन लौट जाओ’ (Simon Go Back) के नारे लगाए जाते थे।

साइमन का बहिष्कार क्यों किया गया? अब प्रशन यह है कि इस साइमन कमीशन का बहिष्कार क्यों किया गया। इसके कारणों को ढूँढना कोई कठिन नही:

(1) इस कमीशन के बहिष्कार का पहला कारण यह था कि इसका कोई भी सदस्य भारतीय नहीं था। लोगों का विश्वास था कि भारत के विषय में कोई भी कमीशन ठीक नहीं सोच सकता जब तक उसमें कोई भी भारतीय सदस्य न हो।
(2) दूसरे, इस कमीशन की धाराओं में भारतीयों को स्वराज दिए जाने की कोई भी सम्भावना नहीं थी।
(3) तीसरे, जब भारतीयों ने इस बात की मांग की कि इस कमीशन में कोई भारतीय सदस्य भी होना चाहिए क्योंकि एक भारतीय ही उनकी समस्याओं को भली-भाँति समझ सकता है। भारतीयों का कहना था कि ब्रिटेन के ‘हाउस आफ कॉमस’ (House of Commons) के किसी भारतीय सदस्य, विशेषकर श्री एस.पी.सिन्हा (S.P.Sinha) का कमीशन में सम्मिलित कर लिया जाए ब्रिटिश सरकार ने इस मांग को भी अस्वीकृत कर दिया। इससे भारतीय उत्तेजित हो उठे।
(4) चौथा, अन्त में यह कहा जाता है कि यह मामला इतना तूल न पकड़ता यदि भारत सचिव लार्ड बैकन हैड (Lord Birken Head) भारतीयों का यह कह कर अपमान किया होता कि भारतीय लोग न तो संवैधानिक मामलों पर विचार विमर्श करने की क्षमता रखते है और न ही वे कोई एक ऐसे ढाँचे की रूप-रेखा प्रस्तुत कर सकते हैं जो सभी लोगों को मान्य हो।

प्रश्न. 4
इस अमयाय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।
उत्तर-
विश्व भर में कलाकारों की यह प्रवृति रही है कि वे स्वतन्त्रता न्याय, गणतन्त्र आदि विचारों की व्यक्त करने के लिए नारी रूपक का प्रयोग करते हैं। उन्होने राष्ट्र को भी नारी रूप में प्रस्तुत किया। 1848 ई. में जर्मन चित्रकार फिलिप वेट (Philip Veit) ने अपने राष्ट्र को पन्नों को जर्मेनिया के रुप में प्रस्तुत किया। वे बलूत वृक्ष के पनों का मुकुट पहने दिखाई गई हैं क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है। भारत में भी अबनिंद्रनाथ टैगोर अनेक कलाकारों ने भारत राष्ट्र को भारत माता के रूप में दिखाया। एक चित्र में उन्होंने भारत माता के शिक्षा, भोजन और कपड़े देती हुई दिखाया हैं। शिक्षा’, भोजन और कपड़े दे रही है।

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