भारत में नशाबन्दी कानून

भारत में नशाबन्दी कानून

“ओ चिन्ता की पहली रेखा, अरी विश्व-बन की प्याली,
ज्वालामुखी स्फोट के भीषण, प्रथम कम्प सी मतवाली।” 
          महाकवि प्रसाद ने जिस चिन्ता की भयानकता का इन पंक्तियों में वर्णन किया है, वही चिन्ता रूपी सर्पिणी आज संसार को डसे जा रही है। आज का चिन्ताग्रस्त मानव चेतना और चिन्तन से बहुत दूर है। भय, कायरता, विषाद, ग्लानि और असफलतायें उसके मन और मस्तिष्क पर छाई रहती हैं। वह इन सबको दूर करने का प्रयास करता है, परन्तु पग-पग पर आने वाले विघ्न और अड़चनें उसे आगे पद-न्यास नहीं करने देते। आज हजारों में सम्भवतः कुछ ही व्यक्ति ऐसे निकलेंगे, जो यह कह सकते हैं कि हम पूर्ण सुखी हैं। किसी को धन की, किसी को सन्तान को, किसी को स्त्री की, किसी को मूर्ख संतान सुधारने की, किसी को अपने प्रिय और प्रेयसी की, किसी को अपने व्यापार की और किसी को अपनी असफलताओं की चिन्ता घेरे हुए है। सुख और शान्ति गूलर का फूल हो चुकी है। ज्ञान और सन्तोष संसार से उठ चुके हैं, तो भला मानव को विश्राम और शान्ति कैसे मिल सकती है। खिन्नता और क्लान्ति को मिटाने के लिए वह दोपहरी में प्यासे मृग की भाँति, कभी सिनेमा घर की ओर मुड़ता है, तो कभी अन्य मन बहलाव के साधनों की ओर । पर वहाँ भी उसकी चेतना उसे शान्ति से नहीं बैठने देती। वह दुखी होकर उठ खड़ा होता है। “क्या संसार में ऐसा कुछ नहीं जोकि तेरी चेतना को कुछ क्षणों के लिए अचेतना में परिवर्तित कर दे” – मन, मस्तिष्क से प्रश्न पूछता है। बिना कहे पैर मुड़ जाते हैं, मदिरालय की ओर, जहाँ न शोक है और न दुःख। जहाँ सदैव दीवाली मनाई जाती है और बसन्त-राग अलापे जाते हैं। चिन्ता, विषाद ग्लानि, खिन्नता कोई भी मदिरालय में प्रवेश का अनधिकारी नहीं। या फिर यहाँ विषपायी शंकर का प्रसाद भंग हो, चरस हो, गाँजा हो, अफीम हो, वहाँ वह प्रवेश करता है। इस प्रकार वह अपनी मानसिक वेदना को कुछ क्षणों के लिए भूलने का प्रयास करता है। नशे से उसकी मानसिक गति कुछ समय के लिए शिथिल पड़ जाती है और उसके रक्त संचार पर नशे की मादकता का प्रभाव हो जाता है जिससे संसार की भीतियाँ उससे स्वयं भयभीत होने लगती हैं। लेकिन यह क्रम जब अपनी सीमा का उल्लंघन कर रोजाना की आदत के रूप में समाज में गत्यवरोध उत्पन्न करता है, तब वह समाज से तिरस्कृत होकर निन्दा और आलोचना की वस्तु बन जाता है।
          किसी नशीली वस्तु का सीमित और अल्प मात्रा में सेवन स्वास्थ्य और रोग के लिए लाभदायक होता है। अधिक अवस्था वाले लोग तो प्रायः दवा के रूप में किसी न किसी नशीली वस्तु का नित्य सेवन करते देखे गये हैं। यदि वे ऐसा न करें तो उनके हाथ पैर चल ही नहीं सकते, क्योंकि उनको ऐसी आदत पड़ गई है। स्वास्थ्य के लिए भाँग और शराब दोनों ही लाभकर हैं, यदि इन्हें भोजन से पहिले बहुत थोड़ी मात्रा में सेवन किया जाये तो। बड़े-बड़े पहलवान भाँग का सेवन करके शक्तिवर्धन करते हैं, क्योंकि उसमें खाना पचाने की अपूर्व क्षमता होती है। डॉक्टर और वैद्य प्रायः दस्त और दर्द बन्द करने की जितनी औषधियाँ देते हैं, उनमें भाँग और सुरा का किसी न किसी रूप में सम्मिश्रण होता ही है। चिन्तित और दुखी व्यक्ति को यदि इन नशीले मादक पदार्थों का सहारा न हो, तो न जाने कितने लोग नित्य आत्महत्या करने लगें, क्योंकि दुखो व्यक्ति कुछ आगा-पीछा नहीं सोचता और न असीमित दुःख उसमें सोचने की क्षमता ही छोड़ते हैं। इसीलिए श्री पन्त एक स्थान पर लिखते हैं –
“मैं नहीं चाहता चिर सुख, मैं नहीं चाहता चिर दुःख ।
सुख दुःख की आँख मिचौनी, खोले जीवन अपना मुख ॥”
          सुनते हैं कि कवियों, लेखकों और प्रवक्ताओं की सरस्वती उभरती ही तब है, जब वे थोड़ी सी सुरा या शिव प्रिया का पान कर लेते हैं । ४. ५. उपसंहार । संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं जिसमें लाभ ही लाभ हो और हानि कुछ न हो । प्रत्येक वस्तु जब अपनी अति की अवस्था में आ जाती है, तो वह अमृत के स्थान पर विष बन जाती है। नशे के चक्कर में बड़े-बड़े घरानों को उजड़ते देखा है। नशे से द्रव्य का अपव्यय होता है, जिस पैसे को खून और पसीना एक करके मनुष्य सुबह से शाम तक कमाता है, जिसके आने की प्रतीक्षा में घर की पत्नी और बच्चे इन्तजार में बैठे रहते हैं, कि कब वे आयें और इन बच्चों के लिये कुछ खाने के लिये बनाऊँ और जब वे आते हैं, गिरते पड़ते, ठोकरें खाते, डगमगाते पैरों का सहारा लेकर, जिन्हें देखकर मुहल्ले वाले बच्चे हँसते हैं, पड़ौसी निन्दा करते हैं, तो पत्नी आह भरकर रह जाती है, जल्दी-जल्दी बच्चों को, इस भय से कि कहीं वे मारें न, भूखे ही भीतरे छिपाकर सुला आती है और स्वयं सब कुछ सहने के लिये पत्थर का कलेजा करके बैठ जाती है। घर में जवान लड़कियाँ हैं, पर पिताजी उनकी शादी नहीं कर सकते क्योंकि शाम को रोज पचास रुपये तो उनको पीने को ही चाहिये। बच्चे किताबों और कपड़ों के लिये तरस रहे हैं, पर पीने वालों को इसकी चिन्ता कहाँ । अगर है तो पीयेंगे, नहीं है तो बीवी के गहने और कपड़ों को, बाप दादा के मकान को बेचकर पीयेंगे, यदि ये भी नहीं है तो फिर उधार लेकर पीयेंगे, और ये भी नहीं है तो चोरी करके पीयेंगे, पर पीयेंगे अवश्य । दुनियाँ हँसे तो पीयेंगे और दुनियाँ रोये तो पीयेंगे। रोटी मिले तो पीयेंगे और न मिले तो भी पीयेंगे, नशीली वस्तुओं के सेवन से मनुष्य का स्वास्थ्य खराब हो जाता है— हालांकि कहने को जवानी है, पर शक्ल पीली पड़ गई है, गालों और आँखों में दो-दो इन्च गहरे गढ्ढे हैं, दो तिहाई सिर के बाल या तो सफेद पड़ गये हैं या फिर झड़ गये हैं, पेट आँतों में जा लगा है, कमर और कन्धे नीचे को झुक आये हैं, खाँसने पर कफ आता है, सीढ़ियाँ चढ़ने पर साँस उखड़ जाती है, षण्टों टड्डी में पड़े रहते हैं, पर आँतें सूखी हैं फेफड़े और श्वास नलिकायें खराब हो चुकी हैं, कभी-कभी खाँसी और कफ में खून भी आ जाता है, घी दूध की वर्षों से शक्ल तक नहीं देखी, घर की पत्नी जिन्हें अपना पति कहने में संकोच करने लगी हैं, पर पीयेंगे अवश्य । डॉक्टर कहता है कि आप नशा करेंगे तो ठीक नहीं हो सकते, फिर भी वहीं करेंगे जो करते आये हैं। हजारों लोग देश में सड़कों पर दुर्घटनाग्रस्त इसलिये होते हैं कि वे पिये हुये होते हैं, चाहे वे पैदल चल रहे हों या स्कूटर पर हों या ड्राइवरी कर रहे हों।
          समाज के नैतिक स्तर के पतन का मुख्य कारण नशीली वस्तुओं को समाज में बहुतायत से प्रयोग करना है—मदोन्तमत्त हो जाने के बाद मनुष्य में लज्जा, भय, संकोच और मान-मर्यादा जैसी कोई वस्तु नहीं रह जाती । वह निर्द्वन्द होकर जब, जहाँ, जैसे चाहता है, करता है, जिसे देखकर घर और बाहर के व्यक्ति भी बिगड़ जाते हैं। ऐसे लोगों की सन्तानें भी प्रायः प्रारम्भ से चरित्रहीन, अकर्मण्य और मूर्ख होती हैं। नशीली वस्तुओं का सेवन समय की अमूल्यता का कोई ध्यान नहीं रखता। चाहे छ: घण्टे में आँखें खुलें और चाहे दूसरे दिन । यदि इतने समय में कोई श्रमसाध्य कार्य किया जाता, तो कितना लाभ होता । देश का नशीला वातावरण, देश की शक्ति, वीरता और मानमर्यादा के लिये हानिकारक तो है ही, इसके साथ ही साथ समाज का आर्थिक, राजनीतिक और नैतिक वातावरण भी कलुषित हो जाता है ।
          नशाबन्दी के लिये समाज सुधारक और धार्मिक संस्थायें प्रारम्भ से प्रयत्नशील हैं। जन जागरण के लिये विद्वानों, सन्तों तथा गुरुजनों के भाषण कराये जाते हैं। स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व मदिरालयों के आगे पिकेटिंग कराये जाते थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् उपर्युक्त हानियों को ध्यान में रखते हुए और समाज के सम्यक् उन्नयन के लिये सरकार ने नशाबन्दी कानून बनाया, जिसके अनुसार केवल कुछ लाइसेन्स प्राप्त व्यक्ति ही नशीली वस्तुओं को बेच सकते हैं। इनके अतिरिक्त यदि और कोई व्यक्ति इनका व्यापार करता है, तो उसे दण्ड दिया जाता है। इस कानून से कोई लाभ नहीं हुआ। क्योंकि नशीली वस्तुयें बेचने के लिये लाइसेन्स और ठेके की प्रणाली ने चोर बाजारी और तस्करी को प्रोत्साहन दिया । कितनी देशी शराब खींची जाती है और बिकती है। कितनी भाँग और गाँजा लोग एक प्रान्त से दूसरे प्रान्तों में पैसा कमाने के लिये ले जाते हैं। यद्यपि कानूनन प्रतिबन्ध है, यह कानून इसलिये भी बेकार है कि बेचने पर लाइसेन्स और पीने वाले को छूट, चाहे कोई पीये और कितनी ही पीये। आजकल तो शाम को बाजारों में कम भीड़ मिलेगी, पर भट्टी मदिरालय में देखिये तो आपको खूब मेला लगा मिलेगा, जिसमें बाबू जी, डॉक्टर साहब, वकील साहब, पं० जी, दुकान से घर जाते हुए लाला जी, मन चले विद्यार्थी, थका हुआ रिक्शेवाला, पिटा हुआ जुआरी, बीवी का सताया हुआ उम्रदार, बोझ ढोने वाला कुली, कमर सीधी करने के लिए झाड़वाला, खोमचे वाला, सभी श्रेणी के लोग आपको मिलेंगे। पहले लोग ऐसे स्थानों पर चोरी-छिपे जाते थे, पर अब खुल्लमखुल्ला जाते हैं। बात इतनी सी है कि छोटा जल्दी बदनाम हो जाता है और बड़ों को कोई जानता नहीं ।
          किसी शायर ने नशाखोरी के पक्ष में कहा –
वही करता है मनीषी, जिसकी हर आरजू तरसती है 
कौन कहता है इसे अशरतेगाह, मैकदा गम जदों बस्ती है। 
          यदि देश में पूर्ण नशाबन्दी कर दी जाये तो इससे अनेक लाभ होंगे। जिस देश के चारित्रिक – पतन के लिये बड़े-बड़े नेता और धर्म के ठेकेदार चर्चा करते हैं, उन्हें फिर रोना न पड़ेगा देश स्वतः सुधरेगा। हजारों अनाथ न होंगे, हजारों केस अपहरण के न होंगे। देश सामूहिक शक्ति अर्जन करेगा, अकर्मण्यता, उदासी और नपुंसकता दूर होगी। विलासिता के स्थान पर कर्मण्यता और अध्यवसाय आयेगा । नागरिक बलिष्ठ होंगे अकाल मृत्यू बन्द होगी, सड़क दुर्घटनायें समाप्त हो जायेंगी, क्षय रोग दूर भाग जायेगा। लोग चरित्रवान और मनस्वी होंगे उनकी तामसी वृत्ति समाप्त होकर सात्विकी वृत्ति का उदय होगा। वे धर्म और कर्तव्य को पहिचानेंगे, आज्ञापालक पुत्र होंगे और सद्गृहिणियाँ होंगी। लोगों को अपनी और अपने देश की मान मर्यादा का ध्यान होगा। देश की धन, श्रम शक्ति का ह्रास होना बन्द हो जायेगा। चिड़चिड़ाहट के स्थान पर सहन शक्ति और क्रोध का स्थान दया और शान्ति ले लेगी। लोगों में सत असत् की विचार क्षमता आयेगी।
          हानि केवल एक होगी और वह है आर्थिक सरकार को करोड़ों रुपये का केवल नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि सबसे अधिक राजस्व सरकार को एक्साइज से मिलता है। आज भी शराब का ठेका लाखों में उठता है I
          नशीली वस्तुओं का धन्धा करने वालों को कठोरता से दबाने के लिये भारत सरकार कठोर दण्ड देने पर विचार कर रही है जिससे नशे का बढ़ता हुआ जाल रोका जा सके ।
          नशीली वस्तुओं की तस्करी तथा उत्पादन करने वालों के खिलाफ शुरू किये गये अभियानों को तेज करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया जा रहा है। इसके लिए गृह मन्त्रालय के अधीन मन्त्रिमण्डल की एक उपसमिति बनायी गयी है, जो इस दिशा में विभिन्न कदम उठाने पर विचार कर रही है।
          मादक पदार्थ नियन्त्रण बोर्ड के महानिदेशक बी० वी० कुमार ने संवाददाताओं को यह जानकारी दी।
          कुमार ने कहा कि सरकार ने इस धन्धे में लगे लोगों के खिलाफ “पूर्णयुद्ध” घोषित किया है। अध्यादेश जारी होने के बाद से नजरबन्दी के ११५ आदेश जारी किये गये हैं।
          उन्होंने कहा कि दिल्ली में सबसे अधिक ३२ लोगों को गिरफ्तार किया गया है। कलकत्ता में ४, बम्बई में १०, बनारस में २, पटना में १३ और मद्रास में ३ लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसके अलावा पंजाब में भी गिरफ्तारियाँ हुई हैं, लेकिन वहाँ का विवरण अभी उपलब्ध नहीं है।
          कुमार ने कहा कि राज्यों से कहा गया है कि वे अध्यादेश का लाभ उठाकर इस धन्धे में लगे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाही करें।
          उन्होंने कहा कि एक तरफ पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान तथा दूसरी तरफ बर्मा, थाईलैण्ड और लाओस में अफीम की अच्छी फसल होने के कारण इस वर्ष स्थिति काफी खतरनाक हो गयी थी। दोनों क्षेत्रों में करीब दो हजार चारसौ मीट्रिक टन अफीम का उत्पादन हुआ है। इन देशों में अफीम की खेती अवैध रूप से होती है।
          इन देशों में अफीम की खेती के अलावा अवैध रूप से लेबोरेटरी भी काम कर रही है, जिनमें अफीम से हेरोइन तैयार की जाती है, जो कि बहुत ही खतरनाक किस्म की होती है। बर्मा में इस तरह ६० और अफगानिस्तान में १५ लेबोरेटरी काम कर रही हैं।
          लेकिन देश की व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नति के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि देश में पूर्ण नशाबन्दी कानून बनाया जाये और उसका परिपालन कठोरता से किया जाये। आर्थिक हानि का भी देश के नैतिक पतन के आगे कोई महत्व नहीं है ।
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