भारत की पंचवर्षीय योजनायें

भारत की पंचवर्षीय योजनायें

          अब तक हमारे देश में पाँच पंचवर्षीय योजनायें पूरी हो चुकी हैं। पण्डित नेहरू ने देश में आर्थिक एवं औद्योगिक क्रांति लाने के लिये इन्हें बड़े चाव से प्रारम्भ किया था। वे योजना आयोग के स्वयं अध्यक्ष रहते रहे और देश के कल्याण के लिये बड़ी-बड़ी योजनायें बनाते रहे। वे इन योजनाओं के माध्यम से देश में समाजवादी व्यवस्था स्थापित करने में प्रयत्नशील थे । पण्डित जी के हृदय पर रूस की औद्योगिक क्रांति का बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा था । नियोजन के विगत प्रारम्भिक अट्ठारह वर्षों में देश काफी आगे बढ़ा और हम अपने पैरों पर खड़े हुए। अगर १०० काम एक साथ शुरू किए जायें, योजना के लक्ष्य एवं इसकी तो निश्चित है कि उनमें से कुछ में तो हमें आशातीत विशेषतायें । योजना के उद्देश्य । सफलता प्राप्त होगी। कुछ में हम लक्ष्य तक पहुँच पायेंगे कुछ में लक्ष्य से भी पीछे रहेंगे और कुछ ऐसे होंगे, जिनमें .. हमें असफल होना पड़ेगा । यही बात इन योजनाओं के सम्बन्ध में है। योजना मन्त्री श्री अशोक मेहता ने चौथी पंचवर्षीय योजना की ड्राफ्ट रूप-रेखा में पिछली तीन योजनाओं के विषय में लिखा है-“पहली पंचवर्षीय योजना अधिक सफल हुई। दूसरी योजना भी असन्तोषजनक नहीं थी, किन्तु तीसरी योजना अच्छी नहीं रही।
          चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के संक्षिप्त प्रारूप को यद्यपि १९६६ में अन्तिम स्वरूप प्रदान किया जा चुका था, तथापि विदेशी सहायता से पर्याप्त आश्वासन न मिलने, सूखे से गम्भीर संकट एवम् भारत पाक तनाव की पृष्ठभूमि में इसे स्थगित कर दिया गया था । अतः १ अप्रैल, १९६८ से इसे पुनः नये रूप में क्रियान्वित किया गया। इस योजना का कुल व्यय २४ सौ करोड़ रुपये था । उद्देश्य नये प्रारूप के अनुसार “नियोजन का उद्देश्य लोगों के जीवन स्तर में तेजी से वृद्धि करना है और यह वृद्धि ऐसे उपायों से करनी है जो कि समानता एवम् सामाजिक न्याय को प्रोत्साहित करने वाले हों। इस प्रकार, योजना जन-साधारण, दुर्बल वर्ग और अन्य सुविधाओं वाले व्यक्तियों की भलाई पर बल देती है । “
          लक्ष्य, विशेषतायें एवम् विकास कार्यक्रम – (१) प्रति व्यक्ति आय १९८०-८१ में १९६७-६८ की तुलना में ५५% अधिक हो जायेगी । राष्ट्रीय आय में फिलहाल ५५% वार्षिक वृद्धि की आशा की गई थी ।
          (२) कार्यक्षेत्र में प्रतिवर्ष कम से कम ५% की वृद्धि की जायेगी । कृषि उत्पादन में लक्ष्यों की प्राप्ति सघन कृषि पर निर्भर होगी। चुने हुए जिलों में छोटे किसानों की विकास एजेन्सी स्थापित की जायेगी।
          (३) पशुपालन सम्बन्धी कार्यक्रमों का उद्देश्य दूध, माँस, अण्डा, ऊन, खाल, चमड़ा, आदि के उत्पादन में वृद्धि करना है। नये आधार ग्राम खण्ड, पशु प्रजनन फार्म, शूकर विकास खण्ड, शूकर माँस कारखाने, पशु चिकित्सालय, ग्रामीण दुग्ध उत्पादन केन्द्र खोले जाने की व्यवस्था थी ।
          (४) वनोत्पादनों में वृद्धि के लिए जल्दी से उगने वाले तथा आर्थिक व औद्योगिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बागान लगाने का प्रावधान था ।
          (५) कृषि सहकारी समितियों और उपभोक्ता सहकारी समितियों को सहकारिता के विकास कार्यक्रमों में केन्द्रीय स्थान दिया गया था।
          (६) चौथी योजनावधि में ५७ लाख हैक्टेयर भूमि में सिंचाई हो जाने की क्षमता पैदा करने की व्यवस्था की गई थी।
          (७) बिजली उत्पादन क्षेत्र में २२ मेगावाट की शुद्ध स्थापित क्षमता प्राप्त हो जाने की इं थी ।
           (८) द्योगिक उत्पादन में ८ से ७% तक वृद्धि करने का लक्ष्य था । प्रमुख उद्योगों के उत्पादन लक्ष्य निम्न प्रकार थे इस्पात की सिल्लियों का उत्पादन १९६८-६९ में ६.५० मि० मी० टन से बढ़ाकर १९७३-७४ में १०.८० मि० मी० टन करना, कोयले का उत्पादन ६८५ मि० मी० टन से बढ़ाकर ९३.५० मि० मी० टन, सूती वस्त्र का उत्पादन ४४०० लाख मि० मी० टन से बढ़ाकर ५१०० लाख मि० मी० और चीनी का उत्पादन २.९ मि० मी० टन से बढ़ाकर ४७ मि० मी० टन करना |
          (९) परिवहन के क्षेत्र में रेलों की भार वाहन क्षमता २०३० लाख मी० टन से बढ़ाकर २९०० लाख मीट्रिक टन, पक्की सड़कों की लम्बाई २६७ हजार कि० मी० से बढ़ाकर ३१७ हजार कि० मी० और जहाजी टन भार २१.४० लाख जी० आर० टी० से बढ़ाकर ३५ लाख जी० आर० टी० करने का लक्ष्य था ।
          (१०) इसमें परिवार नियोजन पर बहुत बल दिया गया था ताकि वर्तमान जन्म दर ३९ प्रति हजार को १९७३-७४ तक ३२ प्रति हजार पर लाया जा सके ।
          इस योजना के अधिकांश लक्ष्यों को एक बड़ी सीमा तक प्राप्त कर लिया गया था ।
          योजना आयोग ने सन् १९७४ से प्रारम्भ होने वाली पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का स्वरूप और प्रारूप तैयार कर लिया था । इस योजना में ५३४११ करोड़ रुपये व्यय करने की व्यवस्था थी । योजना के प्रारूप में कहा गया था कि कीमतें बढ़ने के बावजूद निर्दिष्ट राशि में सिर्फ १२४६ करोड़ रुपये की वृद्धि करके ५.५ प्रतिशत वार्षिक विकास की दर को कायम रक्खा गया था। योजना राशि के कुल व्यय में ३७२५० करोड़ रुपये सरकारी क्षेत्र के लिए और १६१५१ करोड़ रुपये निजी क्षेत्र के लिए निर्धारित किया गया था। सरकारी क्षेत्र के लिए ६८५० करोड़ रुपये अतिरिक्त साधनों से जुटाया गया था। इसमें से केन्द्रीय सरकार को ४३४० करोड़ रुपये तथा २२५० करोड़ रुपये राज्य सरकारों को जुटाना था। योजना के प्रारूप में साधन जुटाने के लिए जि मुख्य कदमों का उल्लेख किया गया था उनमें करारोपण, बाजार से ऋण लेने तथा सरकारी क्षेत्र के कारखानों के उत्पादन की मूल्य नीति में संशोधित करने की बात थी ।
          पाँचवीं योजना की अवधि में प्रतिवर्ष साढ़े ५ प्रतिशत विकास की दर प्राप्ति के लिए योजना के कार्यान्वयन पर अधिक बल दिया गया था । राष्ट्रीय विकास परिषद् की ८ दिसम्बर, १९७३ की बैठक में पाँचवीं योजना में साढ़े ५ प्रतिशत विकास की दर की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित चार सूत्री आर्थिक नीति का समावेश किया गया था।
          (१) निजी क्षेत्र सहित विविध क्षेत्रों में समुचित पूँजी का विनियोग और उसका समुचित उपयोग । (२) निजी पूँजी विनियोग को सामाजिक दृष्टि से उपयोगी धन्धों में लगाने के लिए • प्रोत्साहन देना और अनुपयोगी या कम उपयोगी धन्धों से दूर रखने के लिए अनुत्साहित करना । (३) उत्पादकता बढ़ाने के लिए संस्थाओं में सुधार करना तथा अतिरिक्त उत्पादन का अधिक न्यायपूर्ण वितरण करना । (४) आर्थिक विकास के लिए मुद्रा प्रसार का ढंग न अपनाकर टैक्स व मुद्रा सम्बन्धी नीतियों को अपनाना I
          तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती गाँधी ने राष्ट्रीय विकास परिषद् की ८ दिसम्बर, ७३ की बैठक में पाँचवीं योजना के प्रारूप को पेश करते हुए कहा था- “योजना में निहित लक्ष्य की प्राप्ति के लिये अत्यधिक अनुशासन तथा उसके कार्यान्वयन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि “ देश निष्काम कर्म” के सिद्धान्त से हटकर ‘निष्कर्म काम’ की ओर बढ़ रहा है। यह प्रवृत्ति न तो साम्यवाद है न समाजवाद और राष्ट्रवाद तो बिल्कुल नहीं है। जब तक मेहनत, अनुशासन और एकता नहीं होगी, विकास नहीं हो सकता।” लेकिन विभिन्न राजनैतिक गतिविधियों तथा परिवर्तन के कारण पाँचवीं योजना का सफल क्रियान्वयन नहीं हो पाया था।
          छठी पंचवर्षीय योजना के प्रारूप पर विचार करने के लिए बुलाई गई दो दिन की राष्ट्रीय विकास परिषद् की बैठक को सम्बोधित करते हुए ३० अगस्त, १९८० को प्रधानमन्त्री श्रीमती गाँधी ने कहा—“अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति साधनों की कमी और मुद्रा स्फीति काबू में रखने की आवश्यकता को ध्यान में रखकर योजना आयोग ने छठी योजना में ५.३ प्रतिशत की विकास की दर प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और ९० हजार करोड़ रुपये की योजना तैयार की है, इस विशाल योजना के खर्च के लिए केन्द्र एवं राज्यों को साधन जुटाने के लिए भारी प्रयत्न करने होंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि अनेक कठोर और अलोकप्रिय लगने वाले कदम उठाकर ही साधनों को जुटाया जा सकता है । वित्तीय अनुशासन कायम करना होगा और सभी जगह फालतू खर्चों को रोकना होगा।”
राष्ट्रीय विकास परिषद् की स्वीकृति के लिए छठी योजना का जो प्रारूप पत्र ३० अगस्त, १९८० की बैठक में रक्खा गया, उसकी कुछ मुख्य बातें निम्न प्रकार हैं –
कुल योजना व्यय – १५ खरब ६० अरब रुपये । 
सार्वजनिक क्षेत्र–९ खरब रुपये। निजी क्षेत्र–६
वार्षिक विकास दर ५ से ५.३ प्रतिशत ।
अतिरिक्त साधन–१ खरब ९० अरब रुपये ।
          राष्ट्रीय विकास, परिषद् की ३१ अगस्त, १९८० की बैठक में छठी पंचवर्षीय योजना के प्रारूप पत्र को, जिसमें उसके उद्देश्य और लक्ष्य उल्लिखित थे, सर्वसम्मति से स्वीकृति दे दी तथा राज्यों से सलाह मशवरा कर छठी योजना का अन्तिम प्रारूप तैयार करने की अनुमति भी योजना आयोग को दे दी गई । तत्कालीन योजना मन्त्री नारायण दत्त तिवारी ने बताया कि योजना का अन्तिम प्रारूप राष्ट्रीय विकास परिषद् के समक्ष दिसम्बर १९८० में या जनवरी १९८१ में रक्खा जायेगा। राष्ट्रीय विकास परिषद् की ३१ अगस्त, १९८० की बैठक में प्रधानमन्त्री श्रीमती गाँधी ने अपने भाषण में चेतावनी दी कि जनता सरकार ने जिन केन्द्रीय योजनाओं को राज्यों को सौंप दिया था, उनका क्रियान्वयन केन्द्र को वापस अपने हाथ में लेना पड़ सकता है । इस सन्दर्भ में श्रीमती गाँधी ने प्रेषण लाइनों के निर्माण, भू-संरक्षण आदि परियोजनाओं का उल्लेख किया । वह चाहती थीं कि वनों का काटना बंद किया जाये ।
छठी पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य
          (१) अर्थव्यवस्था की संवृद्धि की दर में पर्याप्त वृद्धि संसाधनों के उपयोग में दक्षता को संवर्धन और उन्नत उत्पादकता ।
          (२) आर्थिक और शिल्प वैज्ञानिक आत्म निर्भरता को प्राप्त करने के लिए आधुनिकीकरण के प्रवर्तनों और गतियों को बढ़ाना ।
          (३) गरीबी और बेरोजगारी की स्थिति में उत्तरोत्तर कमी ।
          (४) ऊर्जा के देशीय संसाधनों का तेजी से विकास, जिसमें ऊर्जा के उपभोग में सरंक्षण और दक्षता पर उचित व्यय हो ।
          (५) न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के जरिये आर्थिक और सामाजिक दृष्टि में बाधाग्रस्त जनसंख्या के विशेष सन्दर्भ में सामान्य लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना । इस न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम का समावेशन इस प्रकार से तैयार किया जाये जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि देश के सभी भाग एक निर्धारित अवधि के भीतर राष्ट्रीय दृष्टि से स्वीकृति मानक और स्त प्राप्त कर लें ।
          (६) गरीबों के हित में सार्वजनिक नीतियों और सेवाओं के पुनर्वितरक आधार को बढ़ाना जिससे आय और सम्पत्ति की असमानताओं में कमी हो ।
          (७) विकास की गति में और शिल्प वैज्ञानिक लाभों के प्रसार में क्षेत्रीय असफलताओं में उत्तरोत्तर कमी ।
          (८) छोटे परिवार के मानक की स्वैच्छिक रूप से स्वीकृति के जरिये जनसंख्या की संवृद्धि को नियन्त्रित करने के लिए नीतियों को बढ़ावा देना ।
          (९) परिस्थितिकीय और पर्यावरणीय परिसम्पत्तियों के संरक्षण और सुधार को बढ़ावा देकर विकास के अल्पावधि और दीर्घावधि लक्ष्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करना ।
           (१०) उपयुक्त शिक्षा संचार और संस्थागत कार्य नीतियों के जरिये विकास की प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गों की सक्रिय सहयोगिता को बढ़ावा देना ।
सातवीं पंचवर्षीय योजना
          सातवीं पंचवर्षीय योजना में ११७९९ करोड़ से अधिक खर्च का अनुमान योजना आयोग । यह अनुमान १९८८ तक पहिले तीन वर्ष के कार्य निष्पादन को देखते हुए लगाया ने लगाया गया है।
          सातवीं योजना अवधि में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम पर प्रस्तावित ११ हजार ७९९ करोड़ रुपए से कहीं अधिक खर्च होने का अनुमान है ।
          इस कार्यक्रम का लक्ष्य आधारभूत सुविधायें और सेवायें जुटाकर गरीब जनता के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना और विकास के मामले में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना ।
          सातवीं योजना के पहले वर्ष में इस कार्यक्रम के लिए २०६४.२२ करोड़ रुपए आ किये गये थे, जबकि १८४१.४२ करोड़ रुपए खर्च हुए ।
          १९८६-८७ में २२४१.३३ करोड़ रुपए खर्च किये जाने थे जबकि २४०६.९६ करोड रुपए खर्च होने का अनुमान है ।
          योजना आयोग के सूत्रों के अनुसर १९८७-८८ में इस कार्यक्रम पर ६९५.७५ करोड़ रुपए खर्च होंगे। सातवीं योजना अवधि के अन्तिम दो वर्षों में १९८८-८९ और १९८९-९० में भी खर्च अनुमान से अधिक होने की सम्भावना है।
          इस तरह कुल खर्च ११७९९ करोड़ रुपए से अधिक हो ही जायेगा। सूत्रों ने बताया कि इस कार्यक्रम की व्यावहारिक प्रगति भी लक्ष्य से काफी निकट है ।
          पूरी योजना अवधि में ६ से १४ वर्ष के दो करोड़ ५५ लाख ३० हजार बच्चों को औपचारिक शिक्षा के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया था। पहले दो वर्ष में एक करोड़ आठ लाख बच्चे इस दायरे में लाये जा चुके हैं, जबकि १९८७-८८ में ५३ लाख बच्चे औपचारिक शिक्षा की परिधि में ले लिए जायेंगे ।
          सूत्रों ने बताया कि इस योजना अवधि के पहले दो वर्षों में एक करोड़ ४५ लाख ५० हजार प्रौढ़ों को अनौपचारिक शिक्षा की परिधि में लाया गया है, जबकि ८९ लाख प्रौढ़ १९८७-८८ में इसकी परिधि में आ गये होंगे। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना पर भी लक्ष्य के अनुरूप काम हो रहा है ।
          जहाँ तक ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति का सवाल है १९८५-८६ में ४५ हजार २४८ गाँवों को पेयजल उपलब्ध कराया गया, लक्ष्य ३० हजार ६३७ गाँवों को पेयजल उपलब्ध करना था। अगले वर्ष ४८ हजार ३५० गाँवों को पेयजल उपलब्ध कराया जायेगा, जबकि लक्ष्य ३५ हजार ९३० गाँवों का था ।
          विद्युतीकरण के मामले में १९८५-८६ में उपलब्धि लक्ष्य का १०२ प्रतिशत रही, जबकि अगले वर्ष सौ प्रतिशत रहने का अनुमान है ।
          १९८५-८६ में लक्ष्य का ६१ प्रतिशत पम्प सैट लगाये गये, जबकि अगले वर्ष १२० प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया जायेगा ।
          मकानों के लिए भूमि देने और मकान बनवाने में सहायता देने के मामले में भी उपलब्धियाँ लक्ष्य से अधिक रही हैं ।
          सातवीं योजना की सफल समाप्ति एवं पूर्ण उपलब्धियों के पश्चात् भारत सरकार आठवीं पंचवर्षीय योजना के स्वरूप निर्माण में सक्रिय होगी। आठवीं पंचवर्षीय योजना तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी की राष्ट्रोत्थान की अदम्य इच्छाओं के अनुरूप होगी । इसी सन्दर्भ में श्री राजीव गाँधी ने ३ मई, १९८८ में जयपुर के सवाई मान सिंह स्टेडियम में कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा था कि –
          अब से योजना स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित होगी तथा आठवीं योजना की खाका दिल्ली के दफ्तरों के बजाय गाँवों की चौपालों में बनेगा ।
          गाँधी ने यहाँ सवाई मानसिंह स्टेडियम में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस उद्देश्य से देश को १६ कृषि जलवायु क्षेत्रों में बाँटा गया है ।
          प्रधानमन्त्री ने कहा कि उन्होंने योजना आयोग से आठवीं योजना गाँव के स्तर से तैयार करने को कहा है ताकि योजना का लाभ गाँवों तक पहुँच सके ।
          उन्होंने कहा कि हम अपनी योजना की प्राथमिकताओं में गाँवों की उपेक्षा करते रहे हैं जिससे विकास में समानता नहीं आई ।
          बाद में कलेक्टरों और जिला मजिस्ट्रेटों के तीन दिवसीय कार्यशाला के समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए गाँधी ने जिला की योजना का एक नया स्वरूप विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया ।
          गाँधी ने कहा कि निचले स्तरों पर लोकतान्त्रिक ढाँचे को मजबूत करने के लिए विभिन्न एजेन्सियों को सलंग्न करने की जरूरत है। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि निचले स्तरों पर लोकतन्त्र बुरी तरह से कमजोर हुआ है ।
          गाँधी ने कहा कि हमें जिला योजना को विकसित करना है लेकिन यह काम कौन करेगा, उन्होंने कलेक्टरों से कहा कि यह काम उन्हें ही करना है I
          गाँधी ने कहा कि क्रियान्वयन के लिए जिला योजना का कोई आदर्श स्वरूप सामने नहीं आया है। उन्होंने कहा कि सांसदों और विधायकों जैसे निर्वाचित प्रतिनिधियों को सक्रिय रूप से शामिल कर अच्छी योजना बनाई जा सकती है ।
आठवीं पंचवर्षीय योजना
          नवीं लोक सभा के गठन के बाद नयी केन्द्र सरकार ने आठवीं पंचवर्षीय योजना के पूर्व निर्धारित प्रारूप को स्थगित करके योजना आयोग को नया प्रारूप तैयार करने का आदेश दिया था । मई १९९० में योजना आयोग ने आठवीं योजना का प्रारूप तैयार कर लिया, जिसका अनुमोदन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् ने भी कर दिया है। कुछ सप्ताह के अन्दर ही राष्ट्रीय विकास परिषद् की बैठक में इस प्रारूप को अन्तिम रूप दिया जायेगा ।
          योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री रामकृष्ण हेगड़े ने घोषणा की कि आठवीं योजना में आंकड़ों की अपेक्षा लक्ष्यों पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया जायेगा। आठवीं योजना के प्रारूप की प्रमुख बातें निम्नवत् हैं –
          (१) वार्षिक विकास दर ५५ प्रतिशत प्रस्तावित की गई है। (२) आगामी दशक में रोजगार वृद्धि की दर ३ प्रतिशत होगी । (३) सकल घरेलू उत्पाद का २२ प्रतिशत तक घरेलू बचत रखने का प्रयास किया जायेगा । (४) विदेशी संसाधनों की प्राप्ति सकल घरेलू बचत का १५ प्रतिशत होने का अनुमान है। (५) विदेशी व्यापार में १२ प्रतिशत तक की वृद्धि की जायेगी । (६) कृषि एवं ग्रामीण विकास कार्यक्रमों पर संसाधनों का ५० प्रतिशत तक व्यय किया जायेगा । (७) भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार लाया जायेगा ताकि वे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा में टिक सकें। (८) निजी उद्योगों के क्षेत्र को विस्तृत किया जायेगा । (९) उपसंरचनात्मक सेवाओं की कार्यकुशलता में वृद्धि की जायेगी । (१०) कठोर आर्थिक अनुशासन स्थापित किया जायेगा । (११) सार्वजनिक क्षेत्र से ऐसे उपक्रम हटाये जायेंगे, जो निरन्तर घाटा दे रहे हैं । (१२) शिक्षा नीति में सुधार करके १९९० के दशक में निरक्षरता दूर की जायेगी । (१३) स्वास्थ्य कल्याण योजनाओं को विकसित किया जायेगा। (१४) विकेन्द्रित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सबको भोजन उपलब्ध कराया जायेगा। (१५) परिवार कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत महिलाओं के स्तर को ऊँचा उठाने, शिशु मृत्यु दर कम करने व महिलाओं की शिक्षा में विस्तार करने पर भी बल दिया जायेगा न कि मात्र गर्भ निरोधक तरीकों के प्रचार व उपयोग पर । (१६) औद्योगिक नीति का सरलीकरण होगा और उस पर नौकरशाही का नियन्त्रण कम किया जायेगा । ।
          नवीं योजना अभी गर्भस्थ शिशु के रूप में है। शिशु सुन्दर हो या असुन्दर, कन्या हो या पुत्र · कुछ कहा नहीं जा सकता ।
          राष्ट्र निर्माण के लिए इन योजनाओं का सफल क्रियान्वयन बड़ा आवश्यक है। राष्ट्रवासियों को दूरदर्शिता से काम लेना चाहिये और अधिक से अधिक साधन जुटाने के प्रयत्न करने चाहियें। सम्भव है कि इस समय कुछ योजनाओं में कमी की कटौती करनी पड़े ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *