भारत का भौतिक स्वरूप Physical Features of India

भारत का भौतिक स्वरूप   Physical Features of India

 

♦ भारत विभिन्न स्थलाकृतियों वाला एक विशाल देश है। इसका निर्माण विभिन्न भू-गर्भीय कालों के दौरान हुआ है, जिसने इसके उच्चावचों को प्रभावित किया है।
♦ भू-गर्भीय निर्माणों के अतिरिक्त कई अन्य प्रक्रियाओं, जैसे अपक्षय, अपरदन तथा निक्षेपण के द्वारा वर्तमान उच्चावचों का निर्माण तथा संशोधन हुआ है।
♦ कुछ प्रमाणों पर आधारित सिद्धान्तों की सहायता से भूगर्भ – शास्त्रियों ने इन भौतिक आकृतियों के निर्माण की व्याख्या करने की कोशिश की है। इसी तरह का एक सर्वमान्य सिद्धान्त, प्लेट विवर्तनिक का सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी पर्पटी सात बड़ी एवं कुछ छोटी प्लेटों से बनी है।
♦ विश्व के अधिकतर ज्वालामुखी एवं भूकम्प सम्भावित क्षेत्र, प्लेट के किनारों पर स्थित हैं लेकिन कुछ प्लेट के अन्दर भी पाए जाते हैं।
♦ प्लेटों की गति के कारण प्लेटों के अन्दर एवं ऊपर की ओर स्थित महाद्वीपीय शैलों में दबाव उत्पन्न होता है। इसके परिणामस्वरूप वलन, भ्रंशीकरण तथा ज्वालामुखीय क्रियाएँ होती हैं। सामान्य तौर पर इन प्लेटों की गतियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है। कुछ प्लेटें एक-दूसरे के करीब आती हैं और अभिसारित परिसीमा का निर्माण करती हैं। जबकि कुछ प्लेटें एक-दूसरे से दूर जाती हैं और अपसारित परिसीमा का निर्माण करती हैं।
♦ जब दो प्लेट एक-दूसरे के करीब आती हैं, तब या तो वे टकराकर टूट सकती हैं या एक प्लेट फिसल कर दूसरी प्लेट के नीचे जा सकती है। कभी-कभी वे एक-दूसरे के साथ क्षैतिज दिशा में भी गति कर सकती हैं और रूपान्तर परिसीमा का निर्माण करती हैं। इन प्लेटों में लाखों वर्षों से हो रही गति के कारण महाद्वीपों की स्थिति तथा आकार में परिवर्तन आया है। भारत की वर्तमान स्थलाकृति उच्चावच का विकास भी इस प्रकार की गतियों से प्रभावित हुआ है।
♦ सबसे प्राचीन भू-भाग ( अर्थात् प्रायद्वीपीय भाग) गोण्डवाना भूमि का एक हिस्सा था।
♦ गोण्डवाना भूमि प्राचीन विशाल महाद्वीप पैंजिया का दक्षिणतम् भाग है, जिसके उत्तर में अंगारा भूमि है।
♦ गोण्डवाना भू-भाग के विशाल क्षेत्र में भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के क्षेत्र शामिल थे। संवहनीय धाराओं ने भू-पर्पटी को अनेक टुकड़ों में विभाजित कर दिया और इस प्रकार भारत आस्ट्रेलिया की प्लेट गोण्डवाना भूमि से अलग होने के बाद उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होने लगी। उत्तर दिशा को ओर प्रवाह के परिणामस्वरूप ये प्लेट अपने से अधिक विशाल प्लेट, यूरेशियन प्लेट से टकरायी। इस टकराव के कारण इन दोनों प्लेटों के बीच स्थित ‘टेथिस भू-अभिनति के अवसादी चट्टान, वलित होकर, हिमालय तथा पश्चिम एशिया की पर्वतीय श्रृंखला के रूप में विकसित हो गए।
♦ ‘टेथिस’ के हिमालय के रूप में ऊपर उठने तथा प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी किनारे के नीचे धंसने के परिणाम स्वरूप एक बहुत बड़ी द्रोणी (बेसिन) का निर्माण हुआ। समय के साथ-साथ यह बेसिन उत्तर के पर्वतों एवं दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठारों से बहने वालो नदियों के अवसादी निक्षेपों द्वारा धीरे-धीरे भर गया। इस प्रकार जलोढ़ निक्षेपों से निर्मित एक विस्तृत समतल भू-भाग भारत के उत्तरी मैदान के रूप में विकसित हो गया।
♦ भारत की भूमि बहुत अधिक भौतिक विभिन्नताओं को दर्शाती है।
♦ भू-गर्भीय तौर पर प्रायद्वीपीय पठार पृथ्वो की सतह का प्राचीनतम् भाग है। इसे भूमि का एक बहुत ही स्थिर भाग माना जाता था परन्तु हाल के भूकम्पों ने इसे गलत साबित किया है ।
♦ हिमालय एवं उत्तरी मैदान हाल में बनी स्थलाकृतियाँ हैं। भू-गर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय पर्वत एक अस्थिर भाग है। हिमालय की पूरी पर्वत श्रृंखला एक युवा स्थलाकृति को दर्शाती है। जिसमें ऊँचे शिखर, गहरी घाटियाँ तथा तेज बढ़ने वाली नदियाँ हैं।
♦ उत्तरी मैदान जलोढ़ निक्षेपों से बने हैं। प्रायद्वीपीय पठार आग्नेय तथा रूपान्तरित शैलों वाली कम ऊँची पहाड़ियों एवं चौड़ी घाटियों से बना है।
मुख्य भौगोलिक वितरण भारत की भौगोलिक आकृतियों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
(i) हिमालय पर्वत शृंखला
(ii) उत्तरी मैदान
(iii) प्रायद्वीपीय पठार
(iv) भारतीय मरुस्थल
(v) तटीय मैदान
(vi) द्वीप समूह
हिमालय पर्वत
♦ भारत की उत्तरी सीमा पर विस्तृत हिमालय भू-गर्भीय रूप से युवा एवं बनावट के दृष्टिकोण से वलित पर्वत श्रृंखला है।
♦ ये पर्वत श्रृंखलाएँ पश्चिम-पूर्व दिशा में सिन्धु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक फैली हैं। हिमालय विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी है और एक अत्यधिक असमान अवरोधों में से एक है।
♦ ये 2400 किमी की लम्बाई में फैले एक अर्द्धवृत्त का निर्माण करते हैं।
♦ इसकी चौड़ाई कश्मीर में 400 किमी एवं अरुणाचल में 150 किमी पश्चिमी भाग की अपेक्षा पूर्वी भाग की ऊँचाई में अधिक विविधता पाई जाती है।
♦ अपने पूरे देशान्तरीय विस्तार के साथ हिमालय को तीन भागों में बाँट सकते हैं। इन शृंखलाओं के बीच बहुत अधिक संख्या में घाटियाँ पाई जाती हैं। सबसे उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला को महान या आन्तरिक हिमालय या हिमाद्रि कहते हैं। यह सबसे अधिक सतत् शृंखला हैं, जिसमें 6000 मीटर की औसत ऊँचाई वाले ऊँचे शिखर हैं। इसमें हिमालय के सभी मुख्य शिखर हैं।
                                                             हिमालय के कुछ ऊँचे शिखर
♦ महान हिमालय के वलय की प्रकृति असममित है।
♦ हिमालय के इस भाग का क्रोड ग्रेनाइट का बना है। यह शृंखला हमेशा बर्फ से ढकी रहती है तथा इससे बहुत सी हिमानियों का प्रवाह होता है।
♦ हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित श्रृंखला सबसे अधिक असमान है एवं हिमाचल या निम्न हिमालय के नाम से जानी जाती है। इन शृंखलाओं का निर्माण मुख्यतः अत्याधिक सम्पीडित तथा परिवर्तित शैलों से हुआ हैं। इनकी ऊँचाई 3700 मीटर से 4500 मीटर के बीच तथा औसत चौड़ाई 50 किमी है। जबकि पीरपंजाल शृंखला सबसे लम्बी तथा सबसे महत्त्वपूर्ण श्रृंखला है, धौलाधर एवं महाभारत शृंखलाएँ भी महत्त्वपूर्ण हैं। इसी श्रृंखला में कश्मीर की घाटी तथा हिमाचल के कांगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ स्थित हैं। इस क्षेत्र को पहाड़ी नगरों के लिए जाना जाता है।
♦ हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला को शिवालिक कहा जाता है। इनकी चौड़ाई 10 से 50 किमी तथा ऊँचाई 900 से 1100 मीटर के बीच है। ये शृंखलाएँ, उत्तर में स्थित मुख्य हिमालय की शृंखलाओं से नदियों द्वारा लाई गई असम्पीडित अवसादों से बनी हैं। ये घाटियाँ बजरी तथा जलोढ़ की मोटी परत से ढकी हुई हैं।
♦ निम्न हिमाचल तथा शिवालिक के बीच में स्थित लम्बवत् घाटी को दून के नाम से जाना जाता है। कुछ प्रसिद्ध दून हैं – देहरादून, कोटलीदून एवं पाटलीदून।
♦ इसे उत्तर दक्षिण के अतिरिक्त हिमालय को पश्चिम से पूर्व तक स्थित क्षेत्रों के आधार पर भी विभाजित किया गया है। इन वर्गीकरणों को नदी घाटियों की सीमाओं के आधार पर किया गया है। उदाहरण के लिए सतलुज एवं सिन्धु के बीच स्थित हिमालय के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है लेकिन पश्चिम से पूर्व तक क्रमश: इसे कश्मीर तथा हिमाचल हिमालय के नाम से भी जाना जाता है ।
♦ सतलज तथा काली नदियों के बीच स्थित हिमालय के भाग को कुमाँऊ हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
♦ काली तथा तिस्ता नदियाँ, नेपाल, हिमालय का एवं तिस्ता तथा दिहांग नदियाँ असोम हिमालय का सीमांकन करती हैं।
♦ ब्रह्मपुत्र हिमालय की सबसे पूर्वी सीमा बनाती है।
♦ ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित माजोली विश्व का सबसे बड़ा नदीय द्वीप है। जहाँ लोगों का निवास है।
♦ दिहांग महाखड्ड (गार्ज) के बाद हिमालय दक्षिण की ओर एक तीखा मोड़ बनाते हुए भारत की पूर्वी सीमा के साथ फैल जाता है। इन्हें पूर्वांचल या पूर्वी पहाड़ियों तथा पर्वत शृंखलाओं के नाम से जाना जाता है। ये पहाड़ियाँ उत्तर-पूर्वी राज्यों से होकर गुजरती हैं तथा मजबूत बलुआ पत्थरों, जो अवसादी शैल से बनी हैं। ये घने जंगलों से ढकी हैं तथा अधिकतर समानान्तर शृंखलाओं एवं घाटियों के रूप में फैली हैं। पूर्वांचल में पटकाई, नागा, मिजो तथा मणिपुर पहाड़ियाँ शामिल हैं।
उत्तरी मैदान
♦ उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों – सिन्धु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों से बना है।
♦ यह मैदान जलोढ़ मृदा से बना है।
♦ लाखों वर्षों में हिमालय के गिरिपाद में स्थित बहुत बड़े बेसिन (द्रोणी) में जलोढ़ों का निक्षेप हुआ, जिससे इस उपजाऊ मैदान का निर्माण हुआ है।
♦ इसका विस्तार 7 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र पर है। यह मैदान लगभग 2400 किमी लम्बा एवं 240 से 320 किमी चौड़ा है।
♦ यह सघन जनसंख्या वाला भौगोलिक क्षेत्र है। समृद्ध मृदा आवरण, पर्याप्त पानी की उपलब्धता एवं अनुकूल जलवायु के कारण कृषि की दृष्टि से यह भारत का अत्यधिक उत्पादक क्षेत्र है।
♦ उत्तरी पर्वतों से आने वाली नदियाँ निक्षेपण कार्य में लगी हैं।
♦ नदी के निचले भागों में ढाल कम होने के कारण नदी की गति कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप नदीय द्वीपों का निर्माण होता है। ये नदियाँ अपने निचले भाग में गाद एकत्र हो जाने के कारण बहुत-सी धाराओं में बँट जाती हैं। इन धाराओं को वितरिकाएँ कहा जाता है।
♦ उत्तरी मैदान को मोटे तौर पर तीन उपवर्गों में विभाजित किया गया है।
♦ उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता है। सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियों के द्वारा बनाए गए इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में स्थित है।
♦ सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियाँ झेलम, चेनाब, रावी, व्यास तथा सतलज हिमालय से निकलती हैं। मैदान के इस भाग में दोआबों की संख्या बहुत अधिक है।
♦ ‘दोआब का अर्थ है, दो नदियों के बीच का भाग। ‘दोआब’ दो शब्दों से मिलकर बना है दो तथा आब अर्थात् पानी इसी प्रकार ‘पंजाब’ भी दो शब्दों से मिलकर बना है- पंज का अर्थ है पाँच तथा आब का अर्थ है पानी।
♦ गंगा के मैदान का विस्तार घघ्घर तथा तिस्ता नदियों के बीच है। यह उत्तरी भारत के राज्यों हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड के कुछ भाग तथा पश्चिम बंग में फैला है। ब्रह्मपुत्र का मैदान इसके पश्चिम (विशेषकर असोम) में स्थित है।
♦ उत्तरी मैदानों की व्याख्या सामान्यतः इसके उच्चावचों में बिना किसी विविधता वाले समतल स्थल के रूप में की जाती है। यह सही नहीं है। इन विस्तृत मैदानों की भौगोलिक आकृतियों में भी विविधता है।
♦ आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।
♦ नदियाँ पर्वतों से नीचे उतरते समय शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 किमी के चौड़ी पट्टी में गुटिका का निक्षेपण करती हैं। इसे ‘भाबर’ के नाम से जाना जाता है। सभी सरिताएँ इस भाबर पट्टी में विलुप्त हो जाती हैं। इस पट्टी के दक्षिण में ये नदियाँ पुनः निकल आती हैं एवं नम तथा दलदली क्षेत्र का निर्माण करती हैं, जिसे ‘तराई क्षेत्र’ कहा जाता है।
♦ तराई, वन्य प्राणियों से भरा घने जंगलों का क्षेत्र था। बँटवारे के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को कृषि योग्य भूमि उपलब्ध कराने के लिए इस जंगल को काटा जा चुका है। इस क्षेत्र में दुधवा राष्ट्रीय पार्क स्थित है।
♦ उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग पुराने जलोढ़ का बना है। वे नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित हैं तथा वेदिका जैसी आकृति प्रदर्शित करते हैं। इस भाग को ‘भांगर’ के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र की मृदा में चूनेदार निक्षेप पाए जाते हैं। जिसे स्थानीय भाषा में ‘कंकड़’ कहा जाता है।
♦ बाढ़ वाले मैदानों के नये तथा युवा निक्षेपों को ‘खादर’ कहा जाता है। है। इनका लगभग प्रत्येक वर्ष पुनर्निमाण होता है, इसलिए ये उपजाऊ होते हैं तथा गहन खेती के लिए आदर्श होते हैं।
प्रायद्वीपीय पठार
♦ प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है जो पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रूपान्तरित शैलों से बना है।
♦ यह गोण्डवाना भूमि के टूटने एवं अपवाह के कारण बना था तथा यही कारण है कि यह प्राचीनतम भू-भाग का एक हिस्सा है।
♦ इस पठारी भाग में चौड़ी तथा छिछली घाटियाँ एवं गोलाकार पहाड़ियाँ हैं।
♦ इस पठार के दो मुख्य भाग हैं ‘मध्य उच्चभूमि’ तथा ‘दक्कन का पठार’ ।
♦ नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है उसे मध्य उच्चभूमि के नाम से जाना जाता है।
♦ विन्ध्य शृंखला दक्षिण में मध्य उच्चभूमि तथा उत्तर-पश्चिम में अरावली से घिरी है। पश्चिम में यह धीरे-धीरे राजस्थान के बलुई तथा पथरीले मरुस्थल से मिल जाता है। इस क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ, चम्बल, सिन्ध, बेतवा तथा केन दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की तरफ बहती हैं, इस प्रकार वे इस क्षेत्र के ढाल को दर्शाती हैं।
♦ मध्य उच्चभूमि पश्चिम में चौड़ी लेकिन पूर्व में संकीर्ण है। इस पठार के पूर्वी विस्तार को स्थानीय रूप से बुन्देलखण्ड तथा बघेलखण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके और पूर्व के विस्तार को दामोदर नदी द्वारा अपवाहित छोटा नागपुर पठार दर्शाता है।
♦ दक्षिण का पठार एक त्रिभुजाकार भू-भाग है, जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है। उत्तर में इसके चौड़े आधार पर सतपुड़ा की शृंखला है, जबकि महादेव, कैमूर की पहाड़ी तथा मैकाल शृंखला इसके पूर्वी विस्तार हैं।
♦ दक्षिण का पठार पश्चिम में ऊँचा एवं पूर्व की ओर कम ढाल वाला है। इस पठार का एक भाग उत्तर-पूर्व में भी देखा जाता है, जिसे स्थानीय रूप से ‘मेघालय’ तथा ‘कॉर्बी एंगलौंग पठार’ के नाम से जाना जाता है। यह एक भ्रंश के द्वारा छोटा नागपुर पठार से अलग हो गया है।
♦ पश्चिम से पूर्व की ओर तीन महत्त्वपूर्ण शृंखलाएँ गारो, खासी तथा जयंतिया हैं।
♦ दक्षिण के पठार के पूर्वी एवं पश्चिमी सिरे पर क्रमशः पूर्वी तथा पश्चिमी घाट स्थित हैं। पश्चिमी घाट, पश्चिमी तट के समानान्तर स्थित हैं। वे सतत् हैं तथा उन्हें केवल दरों के द्वारा ही पार किया जा सकता है।
♦ पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट की अपेक्षा ऊँचे हैं।
♦ पूर्वी घाट 600 मीटर की औसत ऊँचाई की तुलना में पश्चिमी घाट की ऊँचाई 900 से 1600 मीटर है।
♦ पूर्वीघाट का विस्तार महानदी घाटी से दक्षिण में नीलगिरी तक है ।
♦ पूर्वी घाट का विस्तार सतत् नहीं है। ये अनियमित हैं एवं बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों ने इनको काट दिया है।
♦ पश्चिमी घाट में पर्वतीय वर्षा होती है। यह वर्षा घाट के पश्चिमी ढाल पर आर्द्र हवा के टकरा कर ऊपर उठने के कारण होती है।
♦ पश्चिमी घाट को विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है। पश्चिमी घाट की ऊँचाई, उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है। इस भाग के शिखर ऊँचे हैं, अनाईमुडी (2695 मीटर) तथा डोडाबेटा (2633 मीटर ) ।
♦ पूर्वी घाट का सबसे ऊँचा शिखर महेन्द्रगिरी (1500 मीटर) है।
♦ पूर्वी घाट के दक्षिण-पश्चिम में शेवराय तथा जावेड़ी की पहाड़ियाँ स्थित हैं।
♦ प्रायद्वीपीय पठार की एक विशेषता यहाँ पाई जाने वाली काली मृदा है, जिसे ‘दक्कन ट्रैप’ के नाम से भी जाना जाता है। इसकी उत्पत्ति ज्वालामुखी से हुई है, इसलिए इसके शैल आग्नेय हैं। वास्तव में इन शैलों का समय के साथ अपरदन हुआ है, जिनसे काली मृदा का निर्माण हुआ है।
♦ अरावली की पहाड़ियाँ प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी किनारे पर स्थित हैं। ये बहुत अधिक अपरदित एवं खण्डित पहाड़ियाँ हैं। ये गुजरात से लेकर दिल्ली तक दक्षिण-पश्चिम एवं उत्तर-पूर्वी दिशा में फैली हैं।
भारतीय मरुस्थल
♦ अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार का मरुस्थल स्थित है। यह बालू के टीलों से ढका एक तरंगित मैदान है।
♦ इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 150 मिमी से भी कम वर्षा होती है।
♦ इस शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में वनस्पति बहुत कम है।
♦ वर्षा ऋतु में ही कुछ नदियाँ दिखती हैं और उसके बाद वे बालू में ही विलीन हो जाती हैं। पर्याप्त जल नहीं मिलने से वे समुद्र तक नहीं पहुँच पाती हैं।
♦ केवल ‘लूनी’ ही इस क्षेत्र की सबसे बड़ी नदी है।
♦ बरकान (अर्द्धचन्द्राकार बालू का टीला) का विस्तार बहुत अधिक क्षेत्र पर होता है, लेकिन लम्बवत् टीले भारत-पाकिस्तान के समीप प्रमुखता से पाए जाते हैं। जैसलमेर में बरकान के समूह देखे जा सकते हैं।
तटीय मैदान
♦ प्रायद्वीपीय पठार के किनारों पर संकीर्ण तटीय पट्टियों का विस्तार है। यह पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत है।
♦ पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच स्थित एक संकीर्ण मैदान है। इस मैदान के तीन भाग हैं। तट के उत्तरी भाग को कोंकण (मुम्बई तथा गोवा), मध्य भाग को कन्नड़ मैदान एवं दक्षिणी भाग को मालाबार तट कहा जाता है।
♦ बंगाल की खाड़ी के साथ विस्तृत मैदान चौड़ा एवं समतल है। उत्तरी भाग में ‘इसे उत्तरी सरकार कहा जाता है। जबकि दक्षिणी भाग ‘कोरोमण्डल’ तट के नाम से जाना जाता है। बड़ी नदियाँ; जैसे—महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी इस तट पर विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं। चिल्का झील पूर्वी तट पर स्थित एक महत्त्वपूर्ण भू-लक्षण है।
♦ चिल्का झील भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील है। यह ओडिशा में महानदी डेल्टा के दक्षिण में स्थित है।
द्वीप समूह
♦ भारत के अत्यधिक विशाल मुख्य स्थल के अतिरिक्त भारत में दो द्वीपों का समूह भी स्थित है।
♦ केरल के मालाबार तट के पास स्थित लक्षद्वीप द्वीपों का एक समूह है, जो छोटे प्रवालद्वीपों से बना है। पहले इनको लकादीव, मीनीकाय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था। सन् 1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया। यह 32 वर्ग किमी के छोटे से क्षेत्र में फैला है। कावारनी द्वीप लक्षद्वीप का प्रशासनिक मुख्यालय है। इस द्वीप समूह पर पादप तथा जन्तु के बहुत से प्रकार पाए जाते हैं। पिटली द्वीप, जहाँ मनुष्य का निवास नहीं है, वहाँ एक पक्षी-अभ्यारण्य है।
प्रवाल
प्रवाल पॉलिप्स कम समय तक जीवित रहने वाले सूक्ष्म प्राणी हैं, जो कि समूह में रहते हैं। इनका विकास छिछले तथा गर्म जल में होता है। इनसे कठोर शैल के समान पदार्थ का स्राव होता है प्रवाल पव एवं प्रवाल अस्थियाँ टीले के रूप में निक्षेपित होती हैं। ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं
1. प्रवाल रोधिका
2. तटीय प्रवाल भित्ति
3. प्रवाल वलय द्वीप
ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट बैरियर रीफ’ प्रवाल रोधिका का अच्छा उदाहरण है।
♦ बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण की तरफ फैले द्वीपों की श्रृंखला को अण्डमान एवं निकोबार द्वीप कहा जाता है। यह द्वीप समूह आकार में बड़े, संख्या में बहुल तथा बिखरे हुए हैं। यह द्वीप समूह मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है— उत्तर में अण्डमान तथा दक्षिण में निकोबार । यह माना जाता है कि यह द्वीप समूह निमज्जित पर्वत श्रेणियों के शिखर हैं। यह द्वीप समूह देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इन द्वीप समूहों में पाए जाने वाले पादप एवं जन्तुओं में बहुत अधिक विविधता है। ये द्वीप विषुवत् वृत्त के समीप स्थित हैं एवं यहाँ की जलवायु विषुवतीय है तथा यह घने जंगलों से आच्छादित हैं।
♦ भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह के बैरेन द्वीप पर स्थित है।
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