भारत का प्रथम व्योम पुत्र राकेश शर्मा

भारत का प्रथम व्योम पुत्र राकेश शर्मा

          बीसवीं शताब्दी में मानव ने विज्ञान के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं वैज्ञानिक आविष्कारों के बल पर जिज्ञासु मानव ने अन्तरिक्ष के गूढ़ रहस्यों को भी जानने का प्रयास किया है। दो दशक पूर्व अमेरिका और सोवियत संघ ने अन्तरिक्ष में अपने अनेक उपग्रह छोड़कर अनेक ग्रहों से विश्व को परिचित कराया और उसके बाद विश्व में अन्तरिक्ष की यात्रा की होड़-सी लग गई। इस दिशा में सर्वप्रथम महत्वपूर्ण सफलता तब प्राप्त हुई, जबकि २० जुलाई, १९६९ को अमरीकी यात्री नीलस्ट्रांग ने चन्द्रमा पर चरण रखे । इस सफलता से उत्साहित होकर सोवियत संघ के यात्री भी चन्द्रमा पर पहुँच गये और इसके बाद अन्तरिक्ष में नित नए अन्वेषण किये जाने लगे । आज के हजारों उपग्रह पृथ्वी की कक्षा के चक्कर लगा रहे हैं और संसार की जनता को नित नयी बातों की सूचना दे रहे हैं।
          अन्तरिक्ष की यात्रा का स्वर्णावसर सर्वप्रथम सोवियत संघ के यात्री यूरी गगारिन ने प्राप्त किया । १९८४ में सोवियत संघ के सहयोग से भारत के स्क्वाड्रन लीडर श्री राकेश शर्मा ने अन्तरिक्ष की रोमांचकारी यात्रा करके देश को गौरवान्वित कर दिया है ।
          भारत सोवियत संयुक्त अन्तरिक्ष उड़ान कार्यक्रम की रूपरेखा काफी समय पूर्व से ही बन रही थी | सन् १९८० में सोवियत संघ के राष्ट्रपति श्री बेझनेव ने अपनी भारत यात्रा के दौरान इस संयुक्त कार्यक्रम की औपचारिकता को स्वीकृति प्रदान कर दी थी ।
          इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सर्वप्रथम अन्तरिक्ष यात्रियों के चयन का ज्वलन्त प्रश्न उपस्थित हुआ। अतः भारतीय वायु सेना के प्रमुख अधिकारियों ने इस महानतम एवं विस्मयकारी यात्रा के लिये दो हवाबाजों का चयन किया। ये हवाबाज थे – विंग कमाण्डर रवीश मल्होत्रा और स्क्वाडून लीडर श्री राकेश शर्मा | इन दोनों हवाबाजों को सोवियत संघ में स्थित अन्तरिक्ष कार्यशाला में पूर्ण प्रशिक्षण के बाद भारतीय हवाबाजों को अन्तरिक्ष यात्रा के लिये पूरी तरह तैयार कर लिया गया ।
          ३ अप्रैल, १९८४ के शुभ दिन को श्री रोकश शर्मा अपने सहयोगियों-रूसी कमाण्डर यूरी मालिशेव और उड़ान इन्जीनियर श्री गेन्नादि स्त्रेकालोव आदि के साथ बेकोनूर के अन्तरिक्ष स्टेशन पर पहुँचे और वहाँ पर स्थित ५० मीटर ऊँचे मीनार के निकट खड़े हो गये। इस मिनार के शिखर पर रूसी अन्तरिक्ष यान सोयुज टी-११ खड़ा हुआ था। श्री राकेश शर्मा अपने साथियों के साथ लिफ्ट की सहायता से अन्तरिक्ष यान में जाकर बैठ गये। इसके तुरन्त बाद यान छोड़ने हेतु उल्टी गिनती शुरू हुई। शून्य अंक आते ही मीनार के निचले हिस्से में एक नारंगी रंग की अग्नि प्रज्ज्वलित हो गई और एक तेज झटके व आवाज के साथ राकेट अन्तरिक्ष यान को लेकर आकाश में उड़ चला ।
          प्रथम भारतीय की अन्तरिक्ष की यह अविस्मरणीय यात्रा ३ अप्रैल, १९८४ ई० की भारतीय समय के अनुसार शाम को ६.३८ मिनट पर प्रारम्भ हुई । पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को अन्तरिक्ष यान ने ३०० टन के एक राकेट की सहायता से बिना किसी कठिनाई के पार कर लिया और केवल १० मिनट की अवधि में ही अन्तरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में पहुँच गया ।
          इस समय पृथ्वी की कक्षा में दो मास पूर्व छोड़े गये दो अन्तरिक्ष यान सोयुज टी-१० और सोयुज टी-७ चक्कर लगा रहे थे । सोयुज टी-११ अन्तरिक्ष यान लगभग २४ घण्टों के बाद रात्रि के ८.५ पर इन दोनों से जुड़ गया । इन यानों का सम्मिलन स्वचालित कम्प्यूटरों की सहायता से हुआ | सोयुज टी-१० व सोयुज टी-७ के तीन रूसी अन्तरिक्ष यात्रियों ने श्री राकेश शर्मा व उनके सहयात्रियों का जोरदार स्वागत किया और अब सोयुज टी ७ में ६ अन्तरिक्ष यात्री पहुँच कर अनुसन्धान कार्य में जुट गये ।
          अन्तरिक्ष यान की प्रयोगशाला से श्री राकेश शर्मा और रूसी यात्रियों ने अनेक प्रयोग व अनुसन्धान कार्य किये। भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने श्री राकेश शर्मा से बातचीत भी की और उन्हें इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिये बधाई सन्देश भेजा और पूँछा कि वहाँ से हिन्दुस्तान कैसा लग रहा है। राकेश शर्मा ने उत्तर दिया “सारे जहाँ से अच्छा” । श्री राकेश शर्मा ने अन्तरिक्ष में योगासन भी किए और भारत के अनेक फोटो भी लिए । अन्तरिक्ष में भारहीनता के कारण मानव शरीर और मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसकी जाँच करके श्री राकेश शर्मा ने भारत की प्राकृतिक सम्पदा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी भी प्राप्त की । श्री राकेश शर्मा अपने साथियों सहित सोयुज टी-१० में ११ अप्रैल, १९८४ की सायं ४.१९ मिनट पर सकुशल अकालिक नामक स्थान पर वापिस आ गए ।
          श्री राकेश शर्मा ने अपनी यात्रा के दौरान भारत के अनेक चित्र खींचे हैं। इन चित्रों के द्वारा भारत की खनिज सम्पदा का ज्ञान प्राप्त होगा और उसका दोहन निकट भविष्य में सम्भव हो सकेगा। इस अन्तरिक्ष यात्रा का भारत के भावी आर्थिक विकास पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और भारत की विपुल प्राकृतिक सम्पदा से देश की आर्थिक समृद्धि में व्यापक वृद्धि होगी। अन्तरिक्ष में किए गए इन प्रयोगों से भारत निकट भविष्य में अत्यधिक लाभान्वित होगा।
          भारत के प्रथम व्योम श्री राकेश पुत्र शर्मा की अन्तरिक्ष यात्रा अविस्मरणीय, रोमांचक तथा अभूतपूर्व मानी जा रही है। उनकी कर्मठता, परिश्रम, योग्यता और कार्यकुशलता सराहनीय है। उन्होंने अपने साहसिक अभियान से भारत को विश्व में गौरवपूर्ण स्थान दिलाकर एक चिरस्मरणीय कार्य किया है। श्री राकेश शर्मा का जन्म १३ जनवरी १९४९ ई० को पटियाला में हुआ था । उन्होंने हैदराबाद में रहकर शिक्षा प्राप्त की और १९६६ में स्नातक की उपाधि लेकर उन्होंने राष्ट्रीय अकादमी, खड़कवासला में प्रवेश लिया। १९७० में उन्होंने कमीशन प्राप्त करके भारतीय वायु सेना में कार्य भार ग्रहण किया। अन्तरिक्ष यात्रा के समय वे बंगलौर के एयर क्राफ्ट एण्ड सिस्टम डिजाइन एस्टेब्लिशमेण्ट में टैस्ट पायलट के पद पर कार्यरत थे। उन्हें हण्टर, मिग, कैनबरा, किरण, अजीत आदि लड़ाकू वायुयानों को चलाने का गहरा अनुभव है।
          सोवियत संघ ने भारतीय अन्तरिक्ष यात्री श्री राकेश शर्मा को सोवियत संघ के सर्वोच्च सम्मान ‘आर्डर ऑफ लेनिन’ से विभूषित किया है। भारत सरकार ने भी श्री राकेश शर्मा को ‘अशोक चक्र से सम्मानित किया है ।
          सारांशतः श्री राकेश शर्मा की अभूतपूर्व अन्तरिक्ष यात्रा भारतीय युवकों के लिए एक आदर्श बन गई है। श्री राकेश शर्मा ने अपनी गौरवपूर्ण उपलब्धि से भारत को विश्व में १४वाँ ऐसा देश बना दिया है, जिनके नागरिक अन्तरिक्ष की यात्रा करने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। भारत जैसे विकासशील देश को श्री राकेश शर्मा द्वारा अन्तरिक्ष में किए गए अनुसन्धान कार्यों से अत्यधिक लाभ होगा। निःसन्देह इस अन्तरिक्ष यात्रा ने भारत-रूस मैत्री के क्षेत्र में एक नये युग का प्रादुर्भाव कर दिया है।
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