भारत और परमाणु शक्ति

भारत और परमाणु शक्ति

          कुछ वर्ष पूर्व केवल अमेरिका, सोवियत संघ, इंगलैण्ड, फ्रांस तथा चीन ही आणविक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र थे। आज आणविक शस्त्रों का उत्पादन करना राष्ट्रीय सम्मान का सूचक बन गया है। दिन-प्रतिदिन उन राष्ट्रों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जो बड़ी से बड़ी कीमत चुकाकर भी आणविक अस्त्रों का निर्माण करने अथवा प्राप्त करने के लिये अधीर हैं। वास्तव में भारत व कनाडा दोनों ही प्रशंसा के पात्र हैं, जिन्होंने आणविक शक्ति का प्रयोग संहारक शक्ति के रूप में न करके शान्तिपूर्वक कार्यों के लिये करने का निर्णय किया है। भारत ही एकमात्र ऐसा अपवाद है, जो तकनीकी जानकारी तथा साधन सम्पन्न होते हुए भी संहारक अस्त्र के निर्माण के विरुद्ध है।
          जनमत की इच्छाओं का समुचित सम्मान करते हुए भारत सरकार ने अणुशक्ति के शान्तिपूर्ण उपयोग उद्देश्य की पूर्ति हेतु १९४८ में अणुशक्ति-आयोग की स्थापना करके सराहनीय कार्य किया। आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया विश्व प्रसिद्ध भारतीय विज्ञानवेत्ता डॉ० होमी जहाँगीर भाभा को जिन्होंने इस क्षेत्र में राष्ट्र को अपनी योग्यता एवम् कार्य कुशलता से अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान दिलवाया। आरम्भ में इस आयोग का एक दर्जा एक सलाहकार समिति तक ही सीमित था, लेकिन १९५४ में आयोग को एक उच्च सत्ताधिकार स्वतन्त्र विभाग के रूप में परिणत कर दिया गया। डॉ० भाभा के सुयोग्य नेतृत्व में इस आयोग ने उल्लेखनीय कार्य किया और अल्प काल में ही आयोग की देख-रेख में बम्बई के निकट ट्रॉम्बे में परमाणु शक्ति का एक महत्वपूर्ण केन्द्र स्थापित किया गया। डॉ० भाभा की अध्यक्षता एवम् निर्देशन में प्रथम परमाणु-प्रतिकार (रिक्टर) का निर्माण कार्य ट्रॉम्बे में अप्रैल सन् १९५५ में आरम्भ किया गया । ३० लाख रुपये की लागत से बनने वाले इस संयन्त्र का ४ अगस्त, १९५६ को आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहर . लाल नेहरू ने विधिवत् उद्घाटन किया। विकास कार्यों के लिये विद्युत का महत्व सर्वविदित है जिसका उत्पादन परमाणु शक्ति के माध्यम से करना अत्यधिक सरल व सस्ता है। परमाणु शक्ति द्वारा विद्युत उत्पन्न करने के सिलसिले में तारापुर में परमाणु बिजलीघर निर्मित किया गया जिसमें भारतीय वैज्ञानिकों के परिश्रम के फलस्वरूप अपनी क्षमता के अनुसार शीघ्र ही उत्पादन प्रारम्भ हो गया | राजस्थान तथा मद्रास राज्यों में भी परमाणु बिजलीघर स्थापित करने का प्रस्ताव था। भारतीय के जनक डॉ० भाभा का इस क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के सम्मानस्वरूप १९५४ में पदम्-भूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। सोमवार २४ जनवरी, १९६६ को, गणराज्य दिवस से केवल दो दिन पूर्व शान्ति का यह महान् योद्धा वायुयान दुर्घटना में काल का शिकार हो गया। भारत का जन-जन विधि के इस आकस्मिक प्रकोप से काँप उठा। समस्त संसार ने नतमस्तक होकर इस महान् सपूत को भावभीने श्रद्धा-सुमन अर्पित करके दुर्लभ वैज्ञानिक प्रतिभा का न्यायोचित सम्मान किया।
          डॉ० भाभा के स्वप्न को साकार करते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने १८ मई, १९७४ को प्रातः ८ बजकर ५ मिनट पर देश के पश्चिमी भाग में, राजस्थान के पश्चिमी भाग में, राजस्थान के बाड़मेर जिले की किसी समतल भूमि के १०० मीटर नीचे अपना प्रथम परमाणु विस्फोट कर अणु शक्ति के सम्पन्न पाँच राष्ट्रों अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के एकाधिकार को समाप्त करते हुये उन्हें चमत्कृत कर दिया। भारत आज छठवाँ अणुशक्ति सम्पन्न राष्ट्र है ।
          १९ अप्रैल, १९७५ को मध्यान्ह १ बजे भारत ने अपना पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ अन्तरिक्ष कक्षा में प्रतिस्थापित करके अन्तरिक्ष युग में प्रवेश किया। अन्तरिक्ष में सफलता से कृत्रिम उपग्रह छोड़ने वाला भारतवर्ष ११ वाँ देश है। अब तक अमेरिका, रूस, पश्चिमी जर्मनी, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रिया, कनाडा, जापान और इटली इस विषय में सफलता प्राप्त कर चुके थे, परन्तु विकासशील देशों में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है।
          १ जनवरी, १९७८ से ३ जनवरी, १९७८ तक भारत की राजकीय यात्रा पर आए हुये अमेरिका के प्रेसीडेन्ट श्री जिमी काटर ने भारत की वैज्ञानिक प्रगति पर हर्ष व्यक्त करते हुये तारापुर परमाणु केन्द्र के लिये परिष्कृत यूरेनियम देने के रूप में अमेरिकी सहायता की घोषणा की थी । इस सन्दर्भ में भारत के प्रधानमन्त्री श्री देसाई तथा अमेरिकी प्रेसीडेण्ट जिमी कार्टर के बीच एक समझौता हुआ था । परन्तु श्री कार्टर के अमेरिका लौटने पर वह सहायता विवाद और विरोध के कारण एक वर्ष तक भारत को नहीं मिल सकी । तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री देसाई ने भी निर्भीक घोषणा की यदि अमेरिका अपने वायदे से मुकरता है तो हम कहीं से भी यूरेनियम लेने को स्वतन्त्र हैं । हर्ष की बात है कि अनेक बाधायें होते हुये भी अमेरिका ने अपने वायदे को पूरा किया है और १९ अप्रैल, १९७९ को परिष्कृत यूरेनियम की बहु प्रतीक्षित पहली खेप विमान से भारत आ गई। परिष्कृत यूरेनियम की यह पहली खेप १६८ टन की थी । तारापुर परमाणु केन्द्र पर परिष्कृत यूरेनियम के अभाव में उत्पादन में जो कमी आ गई थी वह इससे दूर हो गई। इसके बाद राष्ट्रपति कार्टर के अथक प्रयासों से सितम्बर १९८० के अन्तिम सप्ताह में सीनेट ने भारत को यूरेनियम खाद सप्लाई की पुनः आज्ञा दे दी। लेकिन जनवरी १९८१ में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति बने, जिन्होंने भारत को परिष्कृत यूरेनियम देने का मामला खटाई में डाले रखा है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी की हाल की अमेरिका यात्रा (अगस्त १९८२) इस प्रश्न को हल करने के लिये हुई थी। लेकिन अभी तक अमेरिका भारत को यूरेनियम देने में टाल-मटोल कर रहा है। अतः अब भारत ने फ्रांस से परिष्कृत यूरेनियम लेने का निश्चय किया है और अमेरिका की अनुचित शर्तों को मानने से स्पष्ट इन्कार कर दिया है।
          यह तो शक्ति एवं राष्ट्र की चिन्तन शक्ति पर निर्भर करता है कि वह उस वस्तु का उपयोग किस प्रकार करता है। कोई वस्तु अपने में ही बुरी या अच्छी नहीं होती, उसमें बुरे या अच्छे दोनों पक्ष विद्यमान रहते हैं। यह प्रयोगकर्ता की बुद्धि पर निर्भर करता है कि वह उसके किस पक्ष का उद्घाटन करे| परमाणु शक्ति का प्रयोग आज तक विनाशकारी कार्यों के लिये ही किया गया है। परन्तु इसके विपरीत यदि शक्ति का उपयोग रचनात्मक कार्यों के लिये ही किया जाये, तो यह मानव के लिये सबसे बड़ा वरदान सिद्ध हो सकता है। परमाणु शक्ति द्वारा बहुत अल्प व्यय से पानी के जहाज और पनडुब्बियाँ चलाई जा सकती हैं। बिजली के कल-कारखाने तैयार किये जा रहे हैं, जिनमें परमाणु विस्फोट से अधिक मात्रा में सस्ती बिजली तैयार की जा सकती है। परमाणु के विस्फोट से नये-नये लोट्रोय तैयार किये जा रहे हैं जिनका उपयोग रोगी की चिकित्सा के लिये, खेती के उत्पादन को बढ़ाने के लिये उद्योगों और व्यवसायों की पुरानी प्रणालियों में सुधार करने के लिये किया जा रहा है।
          इसी प्रकार हाइड्रोजन बम का भी उपयोग किया जा सकता है और मनुष्य की ईंधन की समस्या बड़ी सरलता से हल हो सकती है। वर्तमान के आधुनिक युग में नियन्त्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिजाइल्स) का विशिष्ट महत्व है । नियन्त्रित प्रक्षेपास्त्र का उपयोग शत्रु के नाश करने के लिये ही नहीं, वरन् मानव-कल्याण के लिये भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिये इसके द्वारा भोजन-सामग्री, औषधि तथा अन्य आवश्यक वस्तुयें ऐसे स्थानों पर पहुँचायी जा सकती हैं, जहाँ पर अन्य साधनों द्वारा पहुँचाना असम्भव है। पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल अथवा अंतरिक्ष के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने का साधन भी नियन्त्रित प्रक्षेपास्त्र बन सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि परमाणु के रूप में एक महान् राक्षस हमारे सामने है; यदि हमने इसे काबू में कर लिया तो वह हमारे सुख के लिये सारे साज-सामान तैयार कर सकता है और यदि पारस्परिक अविश्वास, घृणा और सन्देह के कारण हमने उसे विनाश के लिये प्रोत्साहित कर दिया, तो वह बहुत ही अल्प समय में सारी मानव-जाति को नष्ट-भ्रष्ट कर देंगा। अब यह प्रश्न विश्व के प्रमुख राष्ट्रों की बुद्धिमत्ता पर निर्भर है कि वे निर्माण पसन्द करते हैं या विनाश ।
          अत: यह निश्चित है कि बन्धुत्व और विश्व शान्ति को दृष्टि में रखकर यदि परमाणु शक्ति का प्रयोग किया जाये तो इन शक्तियों से मानव का कल्याण हो सकता है। एशिया के अधिकांश राष्ट्र अपनी सद्बुद्धि से इन शक्तियों का उपयोग जनहित के लिये कर रहे हैं। भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अनेकों बार अपनी निर्भीक घोषणाओं में विश्व को यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत सदैव अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिये ही करेगा। आशा है कि विश्व के अन्य राष्ट्र भी अपनी चेतना को इसी दिशा में प्रेरित करेंगे। परन्तु खेद है कि बड़े-बड़े विकसित देशों के सिद्धान्तवादी राष्ट्रनायक इस शान्ति की दिशा की ओर पग बढ़ाने में झिझक अनुभव करते हैं अन्यथा अब तक परमाणु शस्त्र निःशस्त्रीकरण की संधि पर विश्व के प्रमुख राष्ट्रों ने कभी के हस्ताक्षर कर दिये होते ।
          परन्तु–
भीम हो अथवा युधिष्ठिर, या कि हो भगवान्
बुद्ध हो कि अशोक, गाँधी हो कि ईशु महान्
सिर झुका सबको, सभी को श्रेष्ठ निज से मान,
मात्र वाचिक ही उन्हें देता हुआ सम्मान
दग्ध कर पर को स्वयं भी भोगता दुःख-दाह,
जा रहा मानव चला अब भी पुरानी राह । 
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