भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

सारांश

विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को उनके उद्देश्य एवं अन्य महत्त्वपूर्ण मानंदडों के आधार पर प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रकों में विभाजित किया जाता है। इन तीनों क्षेत्रकों के विविध उतपादन कार्यों से काफी मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। साथ ही कई लोगों को इन क्षेत्रकों में रोजगार मिलता है। भारत के संदर्भ में आँकड़ों के अध्ययन से यह पता चलता है कि हालांकि वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य अधिकांशतः तृतीयक क्षेत्र में उतपादित होता है लेकिन लोगों को रोजगार अधिकांशतः प्राथमिक क्षेत्रक में ही मिलता है। किसी विशेष वर्ष में प्रत्येक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य उस वर्ष मे कुल उतपादन की जानकारी देता है तीनों क्षेत्रकों के उतपादों के योगफल को देश का सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं जी.डी.पी. से किसी देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती का पता चलता है। भारत में आधे से अधिक लोग प्राथमिक क्षेत्र में नियोजित हैं लेकिन जी. डी. पी. में इसका योगदान सिर्फ एक-चौथाई हैं इसकी तुलना में द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक का जी. डी. पी. में हिस्सा तीन-चौथाई है। जबकि इन क्षेत्रकों में आधे से भी कम लोगों को रोजगार मिला हुआ हैं इस कारण कृषि क्षेत्रक के श्रमिकों में अल्प-बेरोजगारी है। अतः देश में रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने की जरूरत है। इसके लिए भारत सरकार ने कई उपाय भी किए हैं हाल ही में सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनिमय 2005 पारित किया है जिसके अन्तर्गत सभी सक्षम लोगों को वर्ष में सौ दिन रोजगार की गारी दी गई है।

आर्थिक कार्यो की विभाजित करने का एक अन्य तरीका संगठित और असंगठित क्षेत्रकों का विभाजन हैं संगठित क्षेत्रकों में कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा का लाभ प्राप्त होता है, उनसे एक निश्चित समयावधि तक ही कार्य लिया जा सकता है। उन्हें सवेतन अवकाश, सेवानुदान, भविष्य निधि आदि सुविध प्राप्त होती है। परंतु असंगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों को इन सुविधाओं का लाभ नहीं प्राप्त होता है। अतः असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को सरंक्षण देने की आवश्यकता है।
आर्थिक गतिविधियों को स्वामित्व के आधार पर सार्वजनिक व निजी क्षेत्रकों में विभाजित किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्रक में, परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है। दूसरी ओर निजी क्षेत्रक के उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। कई चीजें ऐसी होती हैं जिनकी आवश्यकता समाज के सभी सदस्यों को होती है लेकिन उन्हें उपलब्ध कराना निजी क्षेत्रक के बस में नहीं होता है। अतः सरकार स्वयं इन पर व्यय करती है और लोगों के लिए इन सुविधाओं को सुनिश्चित करती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक Important Questions and Answers

प्रश्न-1.
सकल घरेलू उत्पाद क्या है? यह क्या प्रदर्शित करता है?
उत्तर-
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक तीनों क्षेत्रकों के उत्पादों के योगदान को देश का सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं यह किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है। जी.डी.पी. किसी देश के अर्थव्यवस्था की विशालता प्रदर्शित करता है।

प्रश्न-2.
जी.डी.पी. मापन कैसे करते हैं?
उत्तर-
भारत में जी.डी.पी. मापन का कार्य केंद्र सरकार के मंत्रालय द्वारा किया जाता है। यह मंत्रालय राज्यों एवं केंद्र शासित क्षेत्रों के विभिन्न सरकारी विभागों की सहायता से वस्तुओं और सेवाओं की कुल संख्या और उनके मूल्य से संबंधित सूचनाएँ एकत्र करता है और जी.डी.पी. का अनुमान लगता है।

प्रश्न-3.
क्या अल्प बेरोजगारी की स्थिति सिर्फ कृषि क्षेत्रक में है?
उत्तर-
अल्प बेरोजगारी की स्थिति कृषि के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रकों में भी हो सकती है। जैसे, शहरों में सेवा क्षेत्रक में काम करनेवाले हजारों अनियमित श्रमिक हैं जो दैनिक रोजगार की तलाश करते हैं। वे प्लम्बर, पेंटर, मरम्मत आदि कार्य करते हैं। फिर भी, उनमें से कई को काम नहीं मिलता है। वे इस तरह के कार्य इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास बेहतर अवसर नहीं हैं।

प्रश्न-4.
तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से अलग कैसे है? सोदाहरण व्याख्या कीजिये।
उत्तर-
(क) तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से भिन्न है क्योंकि इस क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मद्द करती हैं।
(ख) ये गतिविधियाँ स्वयं वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती हैं बल्कि उत्पादन प्रक्रिया आर्थिक सहयोग देती हैं।
(ग) परिवहन, भंडारण, संचार बैंक सेवाएँ, व्यापार आदि तृतीयक गतिविधियाँ सेवाओं का सृजन करती हैं, इसलिए तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है।

प्रश्न-5.
भारत में सेवा क्षेत्रक में दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? ये विभिन्न प्रकार के लोग कौन हैं?
उत्तर-
भारत में सेवा क्षेत्रक में दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित हैं। एक ओर लोग परिवहन, भडारण, संचार, बैंक सेवाएँ, व्यापार आदि सार्वजनिक सेवाओं से जुड़े हैं तो दूसरी ओर हमें शिक्षकों, डॉक्टरों, वकील, धोबी, नाई, मोची आदि व्यक्तिगत सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले लोगों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न-6.
आर्थिक क्रियाओं को किन-किन प्रमुख भागों में बाँटा जाता है? सोदाहरण स्पष्ट करें।
अथवा
किसी अर्थव्यवस्था में प्राथमिक, दवितीयक और तृतीयक क्षेत्रों का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रत्येक के कम से कम तीन-तीन उदाहरण दें?
उत्तर-
आर्थिक क्रियाओं को उनके स्वरूपों के आधार पर प्रमुख रूप से तीन भागों में बाँटा गया है-1. प्राथमिक क्रियायें 2. द्वितीयक क्रियायें 3. तृतीयक क्रियायें।

इन क्रियाओं के अर्थ को निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते

1. प्राथमिक क्रियायें-इनका तात्पर्य उन क्रियाओं से है जो प्रकृतिक प्रदत्त संसाधनों पर ही आश्रित होती हैं। इनमें प्रकृति से प्राप्त किये गये उपहारों को ज्यों का त्यों प्रयोग किया जाता है। जैसे कृषि, खनन, मछली पालन आदि। देश में आर्थिक विकास के साथ-साथ प्राथमिक क्रियाओं पर निर्भरशीलता कम होती जाती है। अर्थात् जो देश जितना अधिक विकसित होता है उसकी जनता का उतना ही कम भाग प्राथमिक क्रियाओं में संलग्नन होता है।

2. दृवितीयक क्रियायें-ये वे क्रियायें हैं जो प्रकृति पर आधारित तो हैं परंतु प्रकृति से ज्यों की त्यों ग्रहण न की जाकर प्रकृति प्रदत्त सामग्री के आधार पर किसी नवीन वस्तु का सृजन किया जाता है। इन क्रियाओं में मुख्य रूप से उद्योगों को शामिल किया जाता है। इस प्रकार की क्रियायें विकसित देशों में प्रचुरता से की जाती हैं। इस प्रकार के उद्योग औद्योगीकरण, मशीनीकरण, तकनीकीकरण तो करते ही हैं। साथ ही नगरीकरण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार की क्रियाओं पर बल दिये जाने से नागरिकों के जीवन का स्तर उन्नत होता है। द्वितीयक क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र की उन्नति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही तृतीयक क्षेत्र का भी आधार तैयार होता है। यही कारण है कि इस क्षेत्र को सहयोगी क्षेत्र कहा जाता है।

3. तृतीयक क्रियायें-यह वह क्षेत्र है जहाँ किसी वस्तु का _ उत्पादन या निर्माण नहीं किया जाता बल्कि केवल सेवायें प्रदान की जाती हैं। प्रशासनिक सेवाएँ हों या बीमा सुविधा; सभी तृतीयक क्रियाओं के ही उदाहरण हैं।

प्रश्न-7.
“सेवा क्षेत्रक में कुछ ऐसी अपरिहार्य सेवाएँ भी हैं जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करती हैं।” उदाहरण दीजिये।।
उत्तर-
(i) सेवा क्षेत्रक में कुछ ऐसी अपरिहार्य सेवाएँ भी हैं जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करती हैं। जैसे, शिक्षकों, डॉक्टरों, धोबी, नाई मोची एवं वकील जैसे व्यक्तिगत सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले और प्रशासनिक एवं लेखाकरण कार्य करने वाले लोगों की आवश्कयता होती है।
(ii) वर्तमान समय में सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ जैसे-इंटरनेट कैफे, ए.टी.एम. बूथ, कॉल सेंटर, सॉफ्टवेयर कंपनी आदि भी महत्त्वपूर्ण हो गई।

प्रश्न-8.
भारत में तृतीयक क्षेत्रक के महत्त्व का क्या कारण है?
उत्तर-
भारत में तृतीयक क्षेत्रक के महत्त्वपूर्ण होने के निम्नलिखित कारण है-

  • किसी भी विकासशील देश में बुनियादी सेवाओं जैसे अस्पताल, शैक्षिक संस्थाओं, डाक व तार सेवा, थाना, कचहरी, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा कपंनी आदि सेवाओं के प्रबधन की जिम्मेदारी सरकार उठाती है।
  • कृषि एवं उद्योग के विकास से परिवहन, व्यापार, भंडारण आदि का विकास होता है। प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक का जितना विकास होगा, ऐसी सेवाओं की माँग उतनी ही अधिक होगी।
  • आय में बढ़ोत्तरी होने पर लोग कई अन्य सेवाओं जैसे रेस्तराँ, पर्यटन, शापिंग, निजी अस्पताल, निजी विद्यालय, व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि की माँग करते हैं।
  • पिछले कुछ वर्षों से सूचना व संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाओं की माँग काफी बढ़ी है, जिस कारण इन सेवाओं के उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है।

प्रश्न-9.
अल्प बेरोजगारी की स्थिति कब पैदा होती है?
उत्तर-
अल्प बेरोजगारी की स्थिति तब पैदा होती है जब लो

  1. काम करना नहीं चाहते हैं।
  2. सुस्त ढंग से काम करते हैं।
  3. अपनी क्षमता से कम काम करते हैं।
  4. उनके काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता है।

प्रश्न-10.
संगठित क्षेत्रक किसे कहते हैं? उदाहरण सहित बताइये।
उत्तर-

  • संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है।
  • ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं और उन्हें सरकारी नियमों व विनियमों का पालन करना पड़ता है। इन नियमों व विनियमों का अनेक विधियों जैसे-कारखाना अधि नियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम आदि में उल्लेख किया गया है।
  • इसे संगठित क्षेत्रक इसलिए कहते हैं क्योंकि इसकी कुछ औपचारिक प्रक्रिया एवं कार्यविधि है।
  • कुछ लोग स्वतः नियोजित होते हैं लेकिन वे भी सरकार के समक्ष स्वयं को पंजीकृत कराते हैं तथा नियमों एवं विनियमों का पालन करते है।

प्रश्न-11.
“असंगठित क्षेत्रक में और अधिक रोजगार की जरूरत के अलावा श्रमिकों को सरंक्षण और सहायता की भी आवश्यकता है।” सिद्ध कीजिये।
उत्तर-

  • संगठित क्षेत्रक के अनेक उद्यम कर-वंचन एवं श्रमिकों को संरक्षण प्रदान करने वाली विधियों के अनुपालन से बचने के लिए असंगठित क्षेत्रक के रूप में काम करते हैं। परिणामतः बहुत अधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करने के लिए विवश हैं।
  • असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों का शोषण होता है। उनको आय कम और अनियमित होती है। उन्हें रोजगार सुरक्षा का लाभ प्राप्त नहीं है।
  • 1990 ई. के बाद संगठित क्षेत्र के रोजगार में कमी आई है। अत: लोग असंगठित क्षेत्र में कार्य करने के लिए विवश हैं। अतः असंगठित क्षेत्रक में और अधिक रोजगार की जरूरत के अलावा श्रमिकों को सरंक्षण और सहायता की भी आवश्यकता है।

प्रश्न-12.
सरकार किसानों व उपभोक्ताओं को कैसे लाभ पहुँचाती है?
उत्तर-
(i) कुछ आर्थिक गतिविधियाँ ऐसी होती हैं, जिन्हें सरकारी समर्थन की जरूरत पड़ती है। निजी क्षेत्रक उन उत्पादनों या व्यवसायों को तब तक जारी नहीं रख सकते, जब तक उन्हें सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिले। जैसे, उत्पादन मूल्य पर बिजली की बिक्री से औद्योगिक उत्पादन लागत में वृद्धि हो सकती है। अनेक छोटी इकाइयाँ बंद हो सकती है। ऐसी स्थिति में सरकार उस दर पर बिजली उत्पादन ओर वितरण के लिए कदम उठाती है जिस पर ये उद्योग बिजली खरीद सकते हैं। सरकार लागत का कुछ हिसा वहन करती है।
(ii) इसी तरह सरकार किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए उनसे चावल और गेहूँ खरीदती है। इसे अपने गोदामों में भण्डारित करती है और राशन दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर बेचती है। इस प्रकार सरकार किसानों व उपभोक्ताओं को सहायता पहुँचाती है।

प्रश्न-13.
“भारत में विकास प्रक्रिया से जी.डी.पी. में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? विस्तार से बताइए।
उत्तर-
वर्ष 1973 और 2003 के बीच तीस वर्षों में यद्यपि सभी क्षेत्रकों में उत्पादन में वृद्धि, परंतु सबसे अधिक वृद्धि तृतीयक क्षेत्र में हुई। परिणामतः वर्ष 2003 में भारत में प्राथमिक क्षेत्रक को प्रतिस्थापित करते हुए तृतीयक क्षेत्र सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र के रूप में उभरा।
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 17

ठीक इसी प्रकार 1973 से 2003 के बीच जी.डी.पी. के विकास पर नजर डालें तो पता लगता है, कि जी.डी.पी. में तीनों क्षेत्रकों की हिस्सेदारी में परिवर्तन हुआ है। 1973 में जी.डी.पी. में तृतीयक क्षेत्रक का हिस्सा मात्र 35 प्रतिशत था जो 2003 में बढ़कर 55 प्रतिशत हो गया। जबकि प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के जी.डी.पी. में योगदान में या तो कोई परिवर्तन नहीं हुआ या फिर उनकी हिस्सेदारी में कमी आई।

प्रश्न-14.
कृषि क्षेत्रक से प्रछन्न बेरोजगारी की समाप्ति के लिए किए जा सकने वाले उपायों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
(i) भूमि की सिंचाई हेतु कुओं के निर्माण हेतु सरकार व्यय कर सकती है अथवा बैंक आसन शर्तो पर ऋण प्रदान कर सकता है।
(ii) कई खेतों की सिंचाई हेतु नये बाँध का निर्माण किया जा सकता है या नहर खेदी जा सकती है।
(iii) सरकार परिवहन और फसलों के भण्डारण पर तथा बेहतर ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर मुद्रा निवेश कर सकती है।
(iv) अर्द्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित उन उद्योगों व सेवाओं की पहचान करना और उन्हें बढ़ावा देना जहाँ ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके।

प्रश्न-15.
उन उपायों को बताइए जिन्हें आप असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों के सरंक्षण में सहायक मानते हैं।
उत्तर-
(i) ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को समय से बीज, कृषि-उपकरणों, साख, भण्डारण सुविधा और विपणन केंद्र की पर्याप्त सुविधा प्रदान करने की जरूरत है।
(ii) लघु उद्योगों को कच्चे माल की प्राप्ति और उत्पाद विपणन के लिए सरकारी मद्द की आवश्यकता होती है।
(iii) सामाजिक भेदभाव को दूर करना अत्यन्त आवश्यक

प्रश्न-16.
क्या असंगठित क्षेत्रके के श्रमिकों को संरक्षण दिया जाना चाहिए? कारण बताइए?
उत्तर-

(i) संगठित क्षेत्रक में अत्यधिक माँग होने पर ही रोजगार की संभावना बनती है। इसके अलावा संगठित क्षेत्रक में रोजगार के अवसरों में अत्यन्त धीमी गति से वृद्धि हो रही
(ii) कई बार संगठित क्षेत्रक के अनेक उद्यम कर वंचन एवं श्रमिकों को संरक्षण प्रदान करने वाले नियमों व कानूनों के अनुपालन से बचने के लिए असंगठित क्षेत्रक के रूप में काम करते हैं। इसकारण बहुत श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करने के लिए विवश हैं।
(iii) असंगठित क्षेत्र में क्षमिकों का शोषण होता है। उन्हें उचिः मजदूरी नहीं मिलती और कम वेतन पर काम करना पड़ता है।
(iv) असंगठित क्षेत्र में रोजगार संरक्षण नहीं है और न ही इसमें कोई अन्य लाभ हैं। इसलिए असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को संरक्षण दिया जाना चाहिए।

प्रश्न-17.
‘असंगठित क्षेत्रक के श्रमिक सामाजिक भेदभाव के भी शिकार हैं।’ क्या आप सहमत हैं? कारण बताइए।
उत्तर-

(i) बहुसंख्यक श्रमिक अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जातियों से संबंधित होते हैं जो असंगठित क्षेत्र में रोजगार करते हैं।
(ii) कार्य के बँटवारे के समय उनकी जाति को भी आधार बनाया जाता है।
(iii) यदा-कदा बेगार पर काम करने का समाचार भी सुना और पढ़ा जाता है।
(iv) असंगठित क्षेत्रक में प्रायः भूमिहीन कृषि श्रमिक, छोटे व सीमांत किसान, कारीगर जैसे-बुनकर, लुहार, बढ़ई, सुनार आदि काम करते हैं और उनका शोषण किया जाता है।

प्रश्न-18.
क्या सार्वजनिक क्षेत्रक का होना अपरिहार्य है?
सरकार की भूमिका की छानबीन करते हुए अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
सार्वजनिक क्षेत्रक में अधिकांश परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी सेवाएँ उपलब्ध कराती है। सार्वजनिक क्षेत्र का ध्येय लाभ कमान नहीं होता है।
कई चीजों की जरूरत समाज के सभी सदस्यों को होती है। लेकिन निजी क्षेत्रक उन्हें उचित कीमत पर उपलब्ध नहीं कराते हैं। इसका कारण यह है कि इनमें से कुछ चीजों पर बहुत अधिक खर्च आता है, जो निजी क्षेत्रकों की क्षमता से बाहर होता है। फिर, यदि वे इन चीजों को उपलब्ध कराते भी हैं तो इसके लिए काफी ऊँची कीमत वसूलते है। जैसे, सड़कों, पुलों, रेलवे, पत्तनों, बिजली आदि का निर्माण और बाँध से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना। इसलिए सरकार ऐसे भारी व्यय स्वयं उठाती है और सभी लोगों के लिए इन सुविधाओं को सुनिश्चित करती है। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्रक का होना अपरिहार्य है।

प्रश्न-19.
विकसित देशों का इतिहास क्षेत्रकों के महत्त्व के संबंध में क्या संकेत करते हैं?
उत्तर-
(i) अधिकांश विकसित देशों के इतिहास से यह पता चलता है कि विकास की प्रारंभिक अवस्थाओं में प्राथमिक क्षेत्रक का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
(ii) कृषि प्रणाली में परिवर्तन के साथ-साथ कृषि क्षेत्रक समृद्ध होता गया और उत्पादन में भी वृद्धि हुई। इस अवस्था में अधिकांश उत्पादित वस्तुएँ प्राकृतिक उत्पाद थीं, जो प्राथमिक क्षेत्रक में आती थीं और अधिकांश लोगों को इसी क्षेत्रक में रोजगार मिलता था।
(iii) कारखानों के बनने व प्रचार-प्रसार से बहुत से लोग कृषि से हटकर इन कारखानों में काम करने लगे। इस कारण
उत्पादन भी बढ़ा और रोजगार की दृष्टि से द्वितीयक क्षेत्रक सबसे महत्त्वपूर्ण हो गया। .
(iv) पिछले सौ वर्षों में विकसित देशों में द्वितीयक क्षेत्रक से तृतीयक क्षेत्रक की ओर पुनः बदलाव देखने को मिला है।
कुल उत्पादन की दृष्टि से सेवा क्षेत्रक का महत्त्व बढ़ गया;
साथ ही सेवा क्षेत्रक में रोजगार में भी वृद्धि हुई है। विकसित देशों में यही सामान्य पैटर्न देखा गया है।

प्रश्न-20.
आप कैसे कह सकते हैं कि कृषि क्षेत्रक में अल्प बेरोजगारी की स्थिति है?
उत्तर-
(i) भारत में आधे से अधिक लोग प्राथमिक क्षेत्रक, मुख्यतः कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं। जिसका जी.डी.पी. में योगदान मात्र एक-चौथाई है।
(ii) द्वितीय एवं तृतीयक क्षेत्रक आधे से भी कम लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं परंतु जी.डी.पी. में इनका योगदान तीन-चौथाई है।
(iii) इसका अर्थ यह है कि कृषि क्षेत्र में लगे श्रमिक अपनी क्षमता से काम उत्पादन कर रहे हैं तथा कृषि कार्य में आवश्यकता से अधिक लोग ले हुए हैं। यदि इन्हें कृषि क्षेत्र से हटा दिया जाए तो भी उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। दूसरे शब्दों में, कृषि क्षेत्रक में श्रमिकों में अल्प बेरोजगारी है।
(iv) उदाहरण के तौर पर, यदि एक छोटे किसान के पास मात्र दो हेक्टेयर असिंचित भूमि है जो सिंचाई के लिए केवल वर्षा पर निर्भर है और ज्वार एवं अरहर जैसी फसलें उपजाती है और उसके परिवार में पाँच सदस्य हैं जो साल भर उसी भूमि पर काम करते हैं। इसका अर्थ यह है कि उनका श्रम प्रयास विभाजित है। प्रत्येक व्यक्ति कुछ काम करता दिख रहा है परंतु किसी को भी पूर्ण रोजगार प्राप्त नहीं है। यह अल्प-बेरोजगा री की स्थिति है, जहाँ लोग अपनी क्षमता से कम काम करते हैं। कुछ लोगों के पास कोई रोजगार नहीं है और वे बेकार बैठे दिखाई देते हैं। इस किस्म की अल्प-बेरोजगारी को इसीलिए प्रच्छन्न बेरोजगारी भी कहा जाता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक Textbook Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 21)

प्रश्न 1.
विभिन्न क्षेत्रकों की परस्पर-निर्भरता दिखाते हुए उपर्युक्त सारणी को भरें।
उत्तर-
उदाहरण-

  1. कल्पना करें कि यदि किसान किसी चीनी मिल को गन्ना बेचने से इंकार कर दें, तो क्या होगा। मिल बंद हो जाएगी।
    कल्पना करें कि यदि कम्पनियाँ भारतीय बाज़ार से कपास नहीं खरीदती और अन्य देशों से कपास आयात करने का निर्णय करती हैं, तो कपास की खेती का क्या होगा? भारत में कपास की खेती कम लाभकारी रह जाएगी और यदि किसान शीघ्रता से अन्य फसलों की ओर उन्मुख नहीं होते हैं, तो वे दिवालिया भी हो सकते हैं तथा कपास की कीमत गिर जाएगी।
  2. किसान, ट्रैक्टर, पम्पसेट, बिजली, कीटनाशक और उर्वरक जैसी अनेक वस्तुएँ खरीदते हैं। कल्पना करें कि यदि उर्वरकों और पम्पसेटों की कीमत बढ़ जाती है, तो क्या होगा? खेती | पर लागत बढ़ जाएगी और किसानों का लाभ कम हो जाएगा।
  3. औद्योगिक और सेवा क्षेत्रकों में काम करने वाले लोगों को भोजन की आवश्यकता होती है। कल्पना करें कि यदि ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल कर दी है और ग्रामीण क्षेत्रों से सब्जियाँ, दूध इत्यादि ले जाने से इंकार कर दिया, तो क्या होगा? शहरी क्षेत्रों में भोजन की कमी हो जाएगी और किसान अपने उत्पाद बेचने में असमर्थ हो जायेंगे।

यह क्या प्रदर्शित करता है?

  1. यह द्वितीय या औद्योगिक क्षेत्रक का उदाहरण है, जो प्राथमिक क्षेत्रक पर निर्भर है।
    यह प्राथमिक या कृषि एवं संबंधित क्षेत्रक का द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भरता को प्रदेर्शित करता है।
  2. यह प्राथमिक क्षेत्रक का द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भरता को दर्शाता है।
  3. द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक पर निर्भर होते हैं। जबकि प्राथमिक क्षेत्रक तृतीयक क्षेत्रक पर निर्भर करता है। अर्थात् सभी क्षेत्रक अत्यधिक परस्पर निर्भर होते हैं।

प्रश्न 2.
पुस्तक में वर्णित उदाहरणों से भिन्न उदाहरणों के आधार पर प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों के अंतर की व्याख्या करें।
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्रक-जब हम प्राकृतिक संसाधनों का सीधे उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधि कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, चावल और गेहूँ की खेती।
द्वितीयक क्षेत्रक-इस क्षेत्रक के अन्तर्गत वे क्रियाएँ शामिल होते हैं जो प्राकृतिक या प्राथमिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित करती हैं।
उदाहरण के लिए, बाँस एवं सबाई घास से कागज का निर्माण गन्ने से गुड़ बनाना आदि।
तृतीयक क्षेत्रक-इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती है। . उदाहरण के लिए, रेलवे, दूरसंचार, दुकानदार, वकील आदि।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित व्यवसायों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में विभाजित करें:

  • दर्जी
  • टोकरी बुनकर
  • फूल की खेती करने वाला
  • दूध-विक्रेता
  • मछुआरा
  • पुजारी
  • कूरियर पहुँचाने वाला
  • दियासलाई कारखाना में श्रमिक
  • महाजन
  • माली
  • कॉल सेंटर कार्मचारी
  • मधुमक्खी पालन

उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 1

प्रश्न 4.
विद्यालय में छात्रों को प्रायः प्राथमिक और द्वितीयक अथवा वरिष्ठ और कनिष्ठ वर्गों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन की कसौटी क्या है? क्या आप मानते हैं कि यह विभाजन उपयुक्त है? चर्चा करें।
उत्तर-
(क) विद्यालय में छात्रों को प्राथमिक और द्वितीयक अथवा वरिष्ठ और कनिष्ठ वर्गों में विभाजन की कसौटी शिक्षा का स्तर है।
(ख) यह एक उपयुक्त वर्गीकरण है।
प्राथमिक शिक्षा-हमारे संविधान मे देश को 1960 ई. तक 14 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था यह प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत आता है।
द्वितीयक (माध्यमिक) शिक्षा-द्वितीयक या माध्यमिक स्तर की शिक्षा (14-18 आयु वर्ग) छात्रों को उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए तैयार करता है।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 23)

प्रश्न-1.
विकसित देशों का इतिहास क्षेत्रकों में हुए परिवर्तन के संबंध क्या संकेत करते हैं।
उत्तर-
(क) विकसित देशों का इतिहास यह संकेत करता है कि विकास के प्रारंभिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक आर्थिक क्रिया का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक था। जैसे-जैसे खेती की विधियों में परिवर्तन हुआ, कृषि क्षेत्रक पहले की अपेक्षा अधि क अनाज उत्पादित करने लगा और यह समृद्ध होने लगा। अधि कांश लोग इसी क्षेत्रक में कार्यरत थे।
(ख) सौ से अधिक वर्षों के बदा जब विनिर्माण की नई विधियाँ आई तो फैक्ट्रियों की स्थापना और विस्तार होने लगा। इस प्रकार, द्वितीयक क्षेत्रक धीरे-धीरे कुल उत्पादन और रोजगार में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया।
(ग) विगत् 100 वर्षों के दौरान द्वितीयक से तृतीयक क्षेत्रक में परिवर्तन हो गया है। सेवा खेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है।
विकसित देशों में क्षेत्रकों के बीच परिवर्तन का यही सामान्य पैटर्न देखा गया है।

प्रश्न 2.
अव्यवस्थित वाक्यांश से जी.डी.पी. गणना हेतु महत्त्वपूर्ण पहलुओं को व्यवस्थित एवं सही करें।।
उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की गणना करने के लिए हम उनकी संख्याओं को जोड़ देते हैं। हम विगत पाँच वर्षों में उत्पादित सभी वस्तुओं की गणना करते हैं।
चूँकि हमें किसी चीज़ को छोड़ना नहीं चाहिए इसलिए हम इन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का योगफल प्राप्त करते हैं।
उत्तर-
जी.डी.पी. की गणना के लिए हम किसी विशेष वर्श के दौरान प्रत्येक क्षेत्रक में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों की गणना करते हैं। चूँकि हमें किसी चीज को छोड़ना नहीं चाहिए, इसलिए हम प्रत्येक क्षेत्रक में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य का योगफल प्राप्त करते

आओ-इन पर विचार करे (पृष्ठ संख्या 24)

आरेख का अवलोकन करते हुए निम्नलिखित का उत्तर दें- .
आरेख 1-प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक द्वारा जी.डी.पी.
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 2
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 3

प्रश्न 1.
1973 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर-
1973 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक था।

प्रश्न 2.
2003 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर-
तृतीयक क्षेत्रक 2003 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक था।

प्रश्न 3.
क्या आप बता सकते हैं कि तीस वर्षों में किस क्षेत्रक में सबसे अधिक संवृद्धि हुई?
उत्तर-
इन तीस वर्षों में सबसे अधिक संवृद्धि तृतीयक क्षेत्रक में हुई।

प्रश्न 4.
2003 में भारत का जी.डी.पी. क्या था?
उत्तर-
2003 में भारत का जी.डी.पी. 2,10,000 करोड़ रुपये था।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 27)

प्रश्न 1.
आलेख 2 और 3 में दिए गए आँकड़े का प्रयोग कर सारणी की पूर्ति करें और नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर दें।
तालिका 2.2 जी.डी.पी. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 4
उत्तर
तालिका 2.2 जी.डी.पी. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 5
इन तीस वर्षों में प्राथमिक क्षेत्रक में निम्नलिखित परिवर्तन देखा गया है
(क) जी.डी.पी. में प्राथमिक क्षेत्रक का हिस्सा 45% से घटकर 25% हो गया।
(ख) परन्तु रोजगार की दृष्टि से प्राथमिक क्षेत्रक में 73% से 61% तक की कमी हुई है।
(ग) देश के आधे से अधिक श्रमिक प्राथमिक क्षेत्रक में कार्य कर रहे हैं। परन्तु वे देश की जी.डी.पी. का लगभग एक चौथाई भाग ही उत्पादित करते हैं।
(घ) कृषि क्षेत्रक में आवश्यकता से अधिक लोग कार्य कर रहे हैं।

प्रश्न 2.
सही उनर का चयन करें-
अल्प बेरोजगारी तब होती है जब लोग-
(अ) काम करना नहीं चाहते हैं।
(ब) सुस्त ढंग से काम कर रहे हैं।
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।
(द) उनके काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता है।
उत्तर-
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।

प्रश्न 3.
विकसित देशों में देखे गए लक्षण की भारत में हुए परिवर्तनों से तुलना करें और वैषम्य बतायें। भारत में क्षेत्रकों के बीच किस प्रकार के परिवर्तन वांछित थे, जो नहीं हुए?
उत्तर-
विकसित देश-

(क) विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक उत्पादन और रोजगार दोनों दृष्टि से आर्थिक क्रिया का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक था।
(ख) अर्थव्यवस्था के विकास के साथ द्वितीयक क्षेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया।
(ग) जब देश विकास के उच्चतर स्तरों पर पहुँचता है तो जी.डी.पी. और रोजगार में सेवा क्षेत्रक की हिस्सेदारी सर्वाधिक होती है।

भारत-

(क) भारत में भी प्रारंभिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था।
(ख) परंतु भारत में द्वितीयक क्षेत्रक अभी तक न तो उत्पदन ओर न ही रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक हुआ है।
(ग) 1990 तक भारत के जी.डी.पी. में सेवा क्षेत्रक की हिस्सेदारी 40.59% हो गया जो अन्य दोनों क्षेत्रकों से अधिक था। परन्तु रोजगार की दृष्टि से अभी भी सर्वाधिक लोग प्राथमिक क्षेत्रक में नियोजित हैं।

(क) वह वांछित था कि अर्थव्यवस्था के विकास के साथ द्वितीयक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक को प्रतिस्थापित कर जी.डी.पी. की दृष्टि से सर्वाधि महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक बन जाता लेकिन ऐसा भारत में नहीं हुआ। तृतीयक क्षेत्रक द्वितीयक क्षेत्रक से आगे बढ़ गया।

(ख) यह भी वांछित था कि विकास के साथ रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी कम होती और द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रकों की हिस्सेदारी बढ़कर अधिक हो जाती लेकिन भारत में ऐसा भी नहीं हुआ।

प्रश्न 4.
हमें अल्प बेरोजगारी के संबंध में क्यों विचार करना चाहिए?
उत्तर-
अल्प बेरोजगारी वह स्थिति है जब लोग नियोजित तो दिखाई देते हैं। परन्तु वास्तव में अल्पबेरोजगार होते हैं। इस स्थिति में आवश्यकता से अधिक लोग एक ही काम मे लगे रहते है। अर्थात् वे अपनी क्षमता से कम काम करते हैं। इस स्थिति को छुपी हुई या प्रछन्न बेरोजगारी भी कहा जाता है।
भारत में लाखों लोग अप्ल बेरोजगार हैं। यह स्थिति प्रायः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त यह अन्य क्षेत्रों मे भी पायी जाती है। जैसे शहरी क्षेत्रों में सेवा क्षेत्रक में कार्यरत अनियत श्रमिक। यदि ये लोग और कहीं काम कर रहे होते तो उनके द्वारा अर्जित आय से उनकी कुल पारिवारिक आय में वृद्धि होती। अतः अल्प बरोजगारी भारत के लिए एक चिंता का विषय है। इस संबंध में विचार करना अति आवश्यक है।

पृष्ठ संख्या-28

प्रश्न-
आपके विचार से आपके क्षेत्र में किस समूह के लोग बेरोजगार अथवा अप्ल बेरोजगार हैं? क्या आप कुछ उपाय सुझा सकते हैं, जिन पर अमल किया जा सके?
उत्तर-हमारे क्षेत्र में निम्नलिखित समूह के लोग बेराजगार अथवा अप्ल बेरोजगार हैं-
(क) अनुसूचित जाति
(ख) अनुसूचित जनजाति
(ग) खेतिहर मजदूर
(घ) छोटे किसान आदि।
इनके लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए जा सकते हैं
(क) रोजगार सृजन कार्यक्रमों को सम्पूर्ण लगन एवं ईमानदारी से लागू करना।
(ख) सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि।
(ग) स्वरोजगार हेतु बेरोजगार या अल्प बेरोजगार व्यक्तियों को आसान ब्याज दर पर ऋण सुविधाएँ प्रदान करना।

आओं-इन पर विचार करें। (पृष्ठ संख्या 29)

प्रश्न-1.
आपके विचार से एन.आर.ई.जी.ए.को ‘काम का अधिकार’ क्यों कहा गया हैं?
उत्तर-एन.आर.ई.जी.ए. 2005 को ‘कम अधिकार’ इसलिए कहा गया है। क्योंकि, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 प्रतिवर्ष प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करता है। यदि किसी आवेदक को 15 दिनों के भीतर रोजगार प्रदान नहीं किया जाता है। तो वह दैनिक रोजगार भत्ता का अधिकारी होगा। इस कानून के अन्तर्गत प्रस्तावित रोजगार का एक-तिहाई भाग महिलाओं के लिए आरक्षित होगा।

प्रश्न-2.
कल्पना कीजिए, कि आप ग्राम के प्रधान हैं और उस हैसियत से कुछ ऐसे क्रियाकलापों का सुझाव दीजिए जिसे आप मानते हैं कि उससे लोगों की आय में वृद्धि होगी और उसे इस अधिनियम के अन्तर्गत शामिल किया जाना चाहिए। चर्चा करें।
उत्तर-
(क) सिंचाई सुविधाओं का विस्तार होना चाहिए। इसे कृषि क्षेत्रक मे आय एवं रोगार में वृद्धि होगी।
(ख) सार्वजनिक परिवहन पर निवेश में वृद्धि की जानी चाहिए।
(ग) लोगों को खेती की आधुनिक विधियाँ अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
(घ) ग्रामीणों का आसान ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
(ङ) गाँवों में लघु उद्योगों के विकास के लिए लोगों को उचित प्रशिक्षण की सुविध प्रदान की जानी चाहिए।

प्रश्न-3.
यदि किसानों को सिचाई और विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती है। जो रोजगार और आय में वृद्धि कैसे होगी?
उत्तर-
सिंचाई भारत के कई क्षेत्रों में वर्षा न केवल अपर्याप्त बल्कि अनिश्चित होती है इसलिए, इन क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाएँ वर्ष में एक से अधिक फसल उपजान सहायक होगा। हम जितना अधिक फसल उपजाएँगे, एक ही भूखंड पर रोजगार और आय में उतनी वृद्धि होगी। इस तरह सिंचाई कृषि उत्पादन, रोजगार एवं आय में वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण साधन
विपणन-विपणन सुविधाओं के अन्तर्गत कृषि उत्पादों की भंडारण सुविधाएँ, अधिक समय तक उपज करने की क्षमता, व्यापक और सस्ती यातायात सुविधाएँ बाजार दशाओं के विषय में सूचना आदि शमिल होती है। इन सुविधाओं के मिलने से किसान क्षेती जारीरख सकता. है और अपनी ऊपज को आसानी से उचित मूल्य पर बेच सकता है।

प्रश्न-4.
शहरी क्षेत्री में रोजगार में वृद्धि कैसे की जा सकती है?
उत्तर-
(क) लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित की जानी चाहिए।
(ख) विद्युत आपूर्ति, कच्चे माल और यातायात से संबंधि त समस्याओं को दूर किया जाना चाहिए। उद्योग अपनी पूर्ण · उत्पादन क्षमता का उपयोग कर सकें।
(ग) व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
(घ) सरकार को चाहिए कि वह स्व-रोजगार को प्रोत्साहित करे।
(ङ) पर्यटन, सूचना एवं प्रौद्योगिकी जेसे सेवाक्षे?ा में रोजगार की व्यापार संभानाएँ है। इन क्षेत्रों में समुचित आयोजन और सरकारी सहायता कर आवश्यकता है।
(च) रोजगार सृजन कार्यक्रमों को ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिए।

सारणी-संगठित और असंगठित क्षेत्रक मे श्रमिको की अनुमानित संख्या (दस लाख में)
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(क) असंगठित क्षेत्रक में कृषि में लगे लोगों का प्रतिशत 64.86% है।
(ख) यह सत्य हे कि कृषि असंगठित क्षेत्रकी गतिविधि है। क्योंकि कृषि इकाइयों सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं होती है।
यद्यपि यहाँ भी नियम और विनियम है परंतु इनका पालन नहीं होता है।
(ग) भारत में 92.96% श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में हैं। भारत में लगभग7.04% श्रमिकों को ही संगठित क्षेत्रक में रोजगार उपलब्ध है।

पृष्ठ संख्या 33

प्रश्न-
हमारे चारों ओर अनेक आर्थिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं। उन पर तर्कसंगत ढंग से विचार करने के लिए वर्गीकरण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। हम क्या निष्कर्ष चाहते हैं, इस आधार पर वर्गीकरण की अनेक कसौटियाँ हो सकती है। वर्गीकरण की प्रक्रिया वस्तुस्थिति का मूल्यांकन करने में सहायता करती है।
आर्थिक गतिविधियों को तीन क्षेत्रकों-प्राथमिक, द्वितीयक ओर तृतीयक में विभाजित करने के लिए कार्य के स्वभाव को कसौठी के रूप में उपयोग किया गया। इस वर्गीकरण के अधार पर हम भारत मे कुल उतपादन _और रोजगार के पद्धति का विश्लेषण करने में समर्थ हुए।
इसी प्रकार, हमने आर्थिक गतिविधियों को संगठित और असंगठित क्षेत्रक में विभाजित किया और इस विभाजन का प्रयोग इन दो क्षेत्रकों में रोजगार की स्थिति देखने के लिए किया।

वर्गीकरण अभ्यास से व्युत्पन्न सबसे महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष संकेत किया गया? क्या आप जानकारियों को निम्ननिखित क्या थे। वे समस्याएँ और समाधान क्या थे, जिनकी ओर सारणी में संक्षिप्त रूप में व्यक्त कर सकते हैं?
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उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 8

आओं-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 31)

प्रश्न-1.
निम्नलिखित उदाहरणे को देखें। कया इनमें से कौन असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ हैं?
(क) विद्यालय में पढ़ाता एक शक्षक।
(ख) बाजार में अपनी पीठ पर सीमेंन्ट की बोरी ढोता हुआ एक श्रमिक
(ग) अपने खेत की सिंचाई करता एक किसान
(घ) अस्पताल में मरीज का इलाज करता एक डॉक्टर
(ङ) एक ठेकेदार के अधीन काम करता एक दैनिक मजदूरी वाला श्रमिक
(च) एक बड़े कारखाने में काम करने जाता एक कारखाना श्रमिक
(छ) अपने घर में काम करता एक करघा बनुकर।
उत्तर-
(क), (ख), (ग), और (छ)।

प्रश्न-2.
संगठित क्षेत्रक में नियमित काम करने वाले एक व्यक्ति और असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले किसी दूसरे व्यक्ति से बात करें। सर्भ पहलुओं पर उनकी कार्य-स्थितियों की तुलना करें।
उत्तर-
विनय कुमार एक सूचना एवं प्रौद्योगिकी कंपनी अर्थात् संगठित क्षेत्र स्थायी रूप से कार्य करता है। दीनाथ असंगठित क्षेत्र के अन्तर्गत दैनिक मजदूरी पर श्रमिक के रूप में कार्यरत है।
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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न-1.
कोष्ठक में दिए गए सही विकल्प का प्रयोग कर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क) सेवा क्षेत्रक में रोजगार में उत्पादन के समान अनुपात में वृद्धि ………हुई हैं/नहीं हुई हैं)
(ख) ………..क्षेत्रक के सभी श्रमिकों को वर्ष भर के लिए रोजगार नहीं मिलता है। (ततीयक/कषि)
(ग) ………..क्षेत्रक के अधिकांश श्रमिकों को रोजगार-सुरक्षा प्राप्त होती है। (संगठित/असंगठित)
(घ) भारत में ………. संख्या में श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम कर रहे हैं (बड़ी/छोटी)
(ङ) क्षेत्रक के धीमें प्रसार के कारण ………क्षेत्रक में आवश्यकता से अधिक लोग लगे हुए हैं (सेवा/कृषि, संगठित, असंगठित)
(च) कपास एक ……….उत्पादन है और कपड़ा एक ……….उत्पाद है। (कृतिक/विनिर्मित)
(छ) प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक क्षेत्रक की गतिविधियाँ……….हैं। (स्वतंत्र/परस्पर निर्भर)
उत्तर-
(क) नहीं हुई है;
(ख) कृषि;
(ग) संगठित;
(घ) बड़ी;
(ङ)सेवा, कृषि;
(छ) प्राकृतिक, विनिर्मित;
(ज) परस्पर निर्भर।
उत्तर-

प्रश्न-2.
सही उत्तर का चयन करें।
(अ) सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक के आधार पर विभाजित है। (एक का चयन करें।)
(क) रोजगार की शर्तो
(ख) आर्थिक गतिविधि के स्वभाव
(ग) उद्यमों के स्वामित्व
(घ) उद्यम में नियोजित श्रमिकों की संख्या
उत्तर-
(क) रोजगार की शर्तो

(ब) एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया से उत्पादन …………..क्षेत्रक की गतिविधि है।
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) सूचना औद्योगिकी
उत्तर-
(ख) द्वितीयक

(स) किसी विशेष वर्ष में उत्पादित ……..के मूल्य के कुल योगफल को जी.डी.पी. कहते हैं।
(क) सभी वस्तुओं और सेवाओं
(ख) सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं
(ग) सभी मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं
(घ) सभी मध्यवर्ती एवं अंतिम वस्तुओं और सेवाओं
उत्तर-
(ग) सभी मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं

द) जी.डी.पी. के पदों में वर्ष 20003 में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी …………है।
(क) 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत के बीच
(ख) 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच
(ग) 50 प्रतिशत से 60 प्रतिशत के बीच
(घ) 70प्रतिशत
उत्तर-
(घ) 70प्रतिशत

प्रश्न-3.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिएकृषि क्षेत्रक की समस्याएँ
1. असिंचित भूमि
2. आय में उतार-चढ़ाव
3. कर्ज भार
4. मंदी काल में रोजगार नहीं
5. कटाई के तुरन्त बाद स्थानीय व्यापारियों को अपना आनाज बेचने को विवश

कुछ संभावित उपाय

(अ) कृषि-आधारित मिलों की स्थापना
(ब) सरकारी विपणन समिति
(स) सरकार द्वारा आनाजों की वसूली
(द) सरकार द्वारा नहारों का निर्माण
(य) कम ब्याज पर बैंकों द्वारा साख उपलबध कराना।
उत्तर-
1. (द);
2. (ब);
3. (द);
4. (अ);
5. (स)।

प्रश्न-4.
असंगत की पहचान करें और बताइए क्यों?
(क) मार्गदर्शक, धोबी, दर्जी, कुम्हार
(ख) शिक्षक, डॉक्टर, सब्जी विक्रेता, सौंदर्य प्रसाधक
(ग) डाकिया, कूरियर प्रदाता, सैनिक, पुलिस कॉस्टेबल
(घ) एम.टी.एन.एल. भारतीय रेल, एयर इण्डिया, सहारा एयरलाइन्स, ऑल इण्डिया रेडियो।
उत्तर-
(क) मार्गदर्शकः क्योंकि अन्य सभी सेवाएँ प्रदान करते हैं।
(ख) सब्जी विक्रेताः क्योंकि वह सामान बेचता है।
(ग) कूरियर प्रदाताः क्योंकि वह निजी क्षेत्रक के अंतर्गत कार्य करता है।
(घ) सहारा एयरलाइन्स : क्योंकि यह निजी क्षेत्रक __ अंतर्गत आती है।

प्रश्न-5.
एक शोध छात्र सूरत शहर में काम करने वाले लोगों से मिला और निम्न आँकड़े जुटाए-
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तालिका-को पूरा कीजिए। इस शहर में असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों प्रतिशत क्या हैं?
उत्तर-
रोजगार की प्रकृति : संगठित, असंगठित, असंगठित, 50 प्रतिशत श्रमिकों का प्रतिशतः 70

प्रश्न-6.
क्या आप मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियों का प्राथमिक द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में विभाजन की उपयोगिता है? व्याख्या कीजिए कि कैसे?
उत्तर-
आर्थिक गतिविधियों को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में बाँटने की उपयोगिता है। इसका मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(क) प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राकृतिक संसाधनों के प्रत्यक्ष उपयोग पर निर्भर हैं। जैसे, कृषि, मछली पालन, खनन आदि।
(ख) द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों में प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। जैसे, कपास से कपड़ा बनाना, गन्ने से चीनी बनाना आदि।
(ग) तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियों प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मद्द करती है। जैसे, बैंकिग, बीमा, परिवहन, आदि।

प्रश्न 7.
इस अध्याय में आए प्रत्येक क्षेत्रक को रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) पर ही क्यों केन्द्रित करना चाहिए? क्या अन्य वाद-पदों का परीक्षण किया जा सकता है? चर्चा करें।
उत्तर-
इसका मुख्य कारण निम्नलिखित है-
(क) देश में संतुलित क्षेत्रीय विकास के खातिर
(ख) देश के लोगों के बीच आय एवं सम्पत्ति की समान वितरण के लिए
(ग) गरीबी उन्मूलन के लिए
(घ) प्रौद्योगिकी का आधुनिकीकरण हेतु
(ङ) देश की आत्म-निर्भरता।

प्रश्न 8.
जीविका के लिए काम करने वाले अपने आस-पास के वयस्कों के सभी कार्यों की लंबी सूची बनाइए। उन्हें आप किस तरीके से वर्गीकृत कर सकते हैं? अपने चयन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
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इस प्रकार जीविकोपार्जन हेतु किए गए उपरोक्त कार्यों को निम्न आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता
(क) कार्यो की प्रकृति
(ख) रोजगार की स्थितियाँ
(ग) स्वामित्व।

आर्थिक क्रियाओं की प्रकृति के आधार पर इन्हें निम्न क्षेत्रकों के रूप में जा सकता है
(क) प्राथमिक क्षेत्रक-इसमें वे आर्थिक क्रियाएँ शामिल होती हैं जो सीधे प्राकृतिक संसाधनों के उप द्वारा की जाती है। जैसे, कृषि कार्य, मछली पालन, खनन आदि।
(ख) द्वितीयक क्षेत्रक-इकके अंतर्गत वे क्रियाएँ शामिल होती हैं जो प्रकृतिक या प्राथमिक उत्पादों विनिर्माण प्रक्रिया द्वार अन्य रूपों में परिवर्तित करती है। जैसे, गन्ने से चीनी निर्माण।
(ग) तृतीयक क्षेत्रक-इसके अंतर्गत वे क्रियाएं आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास सहायक होती हैं। उदाहरण के लिए बैंकिग, बीमा, आदि।

प्रश्न 9.
तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से कैसे भिन्न है? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
तृतीय क्षेत्रक अन्य दो क्षेत्रकों से भिन्न है। क्योंकि अन्य दो क्षेत्रक वस्तुएँ उत्पादित करती हैं, जबकि यह क्षेत्रक कोई वस्तु उत्पादित नहीं करता है। इस क्षेत्रक में शामिल क्रिया प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में सहायक होती है। जैसे परिवहन, संचार, बैंकिग, बीमा आदि।

प्रश्न 10.
प्रच्छन्न बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्रछन्न बेरोजगारी या छपी हुई बेरोजगारी के अंतर्गत लोग नियोजित लगते है लेकिन वास्तव में बेरोजगार होते हैं। इसके अंतर्गत किसी काम में लोग आवश्यकता से अधिक संख्या में लगे होते हैं।

ग्रातीण क्षेत्रों से उदाहरण-इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पाई जाती है। उदाहरण के लिए 10 लोगों के एक परिवार के पास एक खेती योग्य भूखडं जहाँ वे सभी काम करमे हैं। यदि इनमें से 5 लोग हआ लिए जाते हैं तो भी उत्पादन में कोई कमी नहीं होती है। इसलिए ये 5 अतिरिक्त लोग प्रछनन रूप से नियोजित होते है।

शहरी क्षेत्रों से उदहारण-शहरी क्षेत्रों में छोटे-मोटे दुकानों एवं व्यवसायों में लगे परिवारों की स्थिति छूपी बेरोजगारी पाई जाती है।

प्रश्न 11.
खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच विभेद कीजिए।
उत्तर-
खुली बेरोजगारी-जब देश की श्रमशक्ति फायदे मंद रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं कर पाती है तो इस स्थिति __ को खुली बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः देश के औद्योगिक क्षेत्र में पाई जाती है।
प्रछन्न बेरोजगारी-जब लोग नियोजित लगते होते हैं, परंतु वास्तव में बेरोजगार होते हैं, तो इस स्थिति को प्रछन्न या छुपी बेरोजगार कहते है। इसके अंतर्गत किसी काम में लोग आवश्यकता से अधिक संख्या में लगे होते हैं इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।

प्रश्न 12.
“भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महन्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है।” क्या आप इससे सहमत है? अपने उनर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर-
यह कहना अनुचित है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वूपर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है।
जी.डी.पी. यह क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक के स्थान पर देश का सर्वाधिक उतपादक क्षेत्रक बन गया है। 1973 में जी.डी. पी. में तृतीयक क्षेत्रक का हिस्सा लगभग 35% था जो 2003 में बढ़कर 50% से अधिक हो गया। यद्धपि 1973 से 2003 के बीच के 30 वर्षों में तीनों क्षेत्रकों के उत्पादन में वृद्धि हुई है, परंतु तृतीयक क्षेत्र में यह वृद्धि सर्वाधिक रही है।
रोजगार इसी अवधि में तृतीयक क्षेत्रक के रोजगार में

वृद्धि दर लगभग 300% रही है जबकि द्वितीयक क्षेत्र में यह वृद्धि दर 250% रही। प्राथमिक क्षेत्रक में यही वृद्धि नहीं के बराबर रही।

प्रश्न 13.
“भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता है।” ये लोग कौन हैं?
उत्तर-
भारत में सेवा क्षेत्रक निम्नलिखित दो भिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता हैं
(क) उन सेवाओं में लगे लोग जो वस्तुओं के उत्पादन मे सीधे तौर पर सहायता कर सकते है। परविहन, संचार, बैंकिग, आदि क्षेत्रों में लगे लोग।
(ख) ऐसी सेवाओं में लगे लोग जो वस्तुओं के उत्पादन में सीधे तौर पर सहायता नहीं करते हैं। जैसे शिक्षक, डाक्टर, धोबी मोची, वकील आदि।.

प्रश्न 14.
“असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है।” क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उनर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर-
(क) यह सत्य है कि असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों का शोषण किया जाता है। असंगठित क्षेत्र छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों से निर्मित होता है, जो अधिकांशतः सरकारी नियंत्रण से बाहर होती हैं।
(ख) इस क्षेत्रक में नियमों व विनियमों का अनुपालन नहीं होता है।
(ग) यहाँ वेतन कम मिलता है और प्रायः नियमित रोजगार नहीं मिलता है।
(घ) यहाँ अतिरिक्त समय में काम करने,सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी दे दी जाती है।
(ङ) बहुत से लोग नियोक्ता की पसंद पर निर्भर होते हैं।

प्रश्न 15.
अर्थव्यवस्था में गतिविधिया! रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती हैं?
उत्तर-
रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं
(क) संगठित क्षेत्रक (ख) असंगठित क्षेत्रक।

प्रश्न 16.
संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में विद्यमान रोजगार-परिस्थितियों की तुलना करें।
उत्तर
संगठित क्षेत्रक-

  1. ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं।
  2. ये सरकारी नियमों व विनियमों का पालन करते हैं।
  3. रोजगार की अवधि नियमित होती है तथा लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है।
  4. कर्मचारियों को रोजगार-सुरक्षा का लाभ मिलता है।
  5. कर्मचारियों सवेतन छुट्टी अवकाश-भुगतान, भविष्य निधि, सेवानुदान आदि सुविधा का उपयोग करते हैं।
  6. कर्मचारियों को सेवानिवृत होने पर पेंशन भी मिलता है।

असंगठित क्षेत्रक-

  1. ये क्षेत्रक अधिकांशतः सरकारी नियंत्रण से बाहर होते
  2. ये सरकारी नियमों व विनियमों का पालन नहीं करते हैं।
  3. रोजगार की अविध अनियमित होती है तथा रोजगार में भारी अनिश्चितता है।
  4. इस क्षेत्रक में लोगों को रोजगार सुरक्षा का कोई आश्वासन नहीं होता है।
  5. यहाँ अतिरिक्त समय में काम करने, सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी आदि का प्रावधान नहीं होता है।
  6. सेवानिवृत्ति होने पर पेंशन आदि सुविधाओं का प्रावधान नहीं होता है।

प्रश्न 17.
रा. ग्रा. रो. गा. अ. 2005 (MGNREGA 2005) के उपेश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम 2005 का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है-
(क) सभी सक्षम लोगों को जिन्हें काम की जरूरत है, उन्हें सरकार द्वारा वर्ष में 100 दिन रोजगार की गारंटी देना।
(ख) यदि सरकार रोजगार उपलब्ध न करा पाए तो लोगों को बेरोगारी भत्ता देना।
(ग) उन कामों को वरीयता देना, जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिले।

प्रश्न 18.
अपने क्षेत्र से उदाहरण लेकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कायोच्चद्व की तुलना तथा वैषम्य कीजिए।
उत्तर-
निजी क्षेत्र के उद्यम

  1. निजी क्षेत्र के उद्यमों को चाले का दायित्व किसी एक व्यक्तियों के समूह पर होता है।
  2. इस प्रकार के उद्यमों का स्वामित्व एक व्यक्ति या अलग-अलग व्यक्तियों के समूह के पास होता है।
  3. इस प्रकार के उद्यमों का उद्देश्य निजी लाभ प्राप्त करना है।
  4. इस प्रकार के उद्यम पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधि त्व करते हैं।
  5. हिन्दुस्तान लीवर, बजाज, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड आदि इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम

  1. इस प्रकार के उद्यमों को चलाने का दायित्व सरकार पर होता है।
  2. इस प्रकार के उद्यमों का स्वामित्व सरकार या राज्य के पास होता है।
  3. इस प्रकार के उद्यमों का उद्देश्य जनता के हितों की पूर्ति करना है।
  4. इस प्रकार के उद्यम सार्वजनिक अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  5. स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, आई. सी., डी.. टी. सी. आदि इस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

प्रश्न 19.
अपने क्षेत्र से एक-एक उदाहरण देकर निम्न तालिका को पूरा कीजिए और चर्चा कीजिए-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 12
उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 13

प्रश्न 20.
सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियों के कुछ उदाहरण दीजिए और व्याख्या कीजिए कि सरकार द्वारा इन गतिविधियों का कार्यान्वयन क्यों किया जाता
उत्तर-
(क) रेलवे, डाकघर और इन्डियन ऑयल कारपोरेशन आदि सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ है।
(ख) आधुनिक युग में सरकारें सभी तरह की गतिविधि यों पर व्यय करती है। कई वस्तुएँ और सेवाएँ ऐसी होती हैं जिनकी आवश्यकता समाज के सभी सदस्यों को होती है। लेकिन निजी क्षेत्रक उचित मूल्य पर उपलब्ध नहीं करा पाते हैं।
(ख) इनमें से कुछ चीजों पर बहुत अधिक व्यय करना होता है, जो निजी क्षेत्रक की क्षमता से बाहर होती है।
(ग) इन वस्तुओं को खरीदने की क्षमता भी कई लोगों के पास नहीं होती है।
(घ) फिर यदि वे इन चीजों को उपलब्ध कराते हैं तो इसकी ऊंची कीमत वसूलते हैं। जैसे, सड़कों, पुलों, पत्तनों, बिजली आदि का निर्माण और बाँध आदि से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना।
(ङ) इसीलिए सरकार ऐसे भारी व्यय स्वयं उठाती है। और सभी लोगों के लिए इन सुविधाओं को सुरक्षित करती है।

प्रश्न 21.
व्याख्या कीजिए कि एक देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक कैसे योगदान करता है?
उत्तर-
सार्वजनिक क्षेत्रक में अधिकांश परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी संवाएँ उपलब्ध कराती है। किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। आधुनिक सरकारें सभी तरह की गतिविधियों पर खर्च करती है। कुछ कार्य ऐसे हाते हैं जिन पर बहुत अधिक खर्च आता है। जैसे सड़कों, पुलों,
रेलवे, पत्तनों, बिजली आदि का निर्माण। इतना व्यय करना निजी क्षेत्रक की क्षमता से बाहर होता है। इसलिए सरकार ऐसे भारी व्यय स्वयं उठाती है। कुछ ऐसी गतिविधियाँ होती हैं, जिन्हें सरकारी समर्थन की जरूरत होती है। जैसे-उत्पादन मूल्य पर बिजली की बिक्री से औधोगिक उत्पादन लागत बढ़ सकती हे हो सकता है। कि कई लघु इाकइयाँ बंद हो जाएँ। ऐसी
स्थिति में सरकार उस दर पर बिजली उत्पादन ओर वितरण के लिए कदम उठाती है जिस पर ये उद्योग बिजली खरीद सकते हैं। सरकार लागत का कुछ अंश वहन करती है। इसी तरह, सरकार किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए उनसे गेहूँ और चावल खरीदती है। और अपने गोदामों में भण्डारित करती है। इसके बाद राशन-दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर बेचती है। इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्रक देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान करता हैं

प्रश्न 22.
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को निम्नलिखित मुपों पर संरक्षण की आवश्यकता है-मजदूरी, सुरक्षा और स्वास्थ्य। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को जमदूरी, सूरक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर संरक्षण की आवाश्यकता है। इसके निम्नलिखित करण हैं
मजदूरी-
(क) अतिरिक्त घंटे के लिए भुगतान के बिना ही दिन में 12 घंटों से भी अधिक काम करता पड़ता है।
(ख) उन्हें दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त कोई अन्य भत्ता नहीं मिलता है।
(ग) उनहें रोजगार सुरक्षा प्राप्त नहीं होता है।
(घ) रोजगार में मजदूरी बहुत कम मिलती है।

सुरक्षा-चूंकि वे सामान्यतः ईट भट्ठी, खदान, पटाखे फैक्टरी जैसे कई जोखिम भेर उद्योगों में काम करते हैं, इसलिए उन्हें सरंक्षण की अति आवश्यकता है।

स्वारथ्य-उन्हें पौष्टिक भोजन नहीं मिलपाता है। परिणामस्वरूप, उनकी स्वारथ्य स्थिति बहुत कमजोर होती है अत: उनहें संरक्षण की सख्त आवश्यकता हैं

प्रश्न 23.
अहमदाबाद में किए गए एक अमययन में पाया गया कि नगर के 15,00,000 श्रमिकों में से 11,00,000 श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम करते थे।
वर्ष 1997-98 में नगर की कुल आय 600 करोड़ रुपए थी इसमें से 320 करोड़ रुपए संगठित क्षेत्रक से बाप्त होती थी। इस आ!कड़े को तालिका में बदर्शित कीजिए। नगर में और अधिक रोजगार-सृजन के लिए किन तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए?
उत्तर-
सारणी 1997-98 में अहमदाबाद में संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में आय एवं रोजगार
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 14
नगर में और अधिक रोजगार-सृजन के लिए निम्न तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए
(क) शिक्षा प्रणाली को रोजगारोन्मुख बनाया जाना चाहिए।
(ख) सरकार को लघु एवं कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित करनी चाहिए।
(ग) सरकार को कम बयाज दरों एवं आसान शर्तो पर ऋण उपलब्ध करानी चाहिए जिससे लोग अपना व्यवसाय प्रारंभ कर सकें।

प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका में तीनों क्षेत्रकों का सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) रुपए (करोड़) में दिया गया है-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 15
(क) वर्ष 1950 एवं 2000 के लिए जी.डी.पी. में तीनों क्षेत्रकों की हिस्सेदारी की गणना कीजिए।
(ख) इन आँकड़ों को अध्याय में दिए आलेख-2 के समान एक दण्ड-आलेख के रूप में प्रदर्शित कीजिए।
(ग) दण्ड-आलेख से हम क्या निष्कर्ष बाप्त करते है?
उत्तर-
(क) निम्न तालिका वर्ष 1950 एवं 2000 के लिए जी.डी.पी. में तीन क्षेत्रकों की हिस्सेदारी को दर्शाता है-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 16

(ग) जी.डी.पी. में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी कम हुई है जबकि इसमें द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रकों की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है।

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