भारतवर्ष में ग्रामोत्थान योजनायें

भारतवर्ष में ग्रामोत्थान योजनायें

          भारत के गाँव राष्ट्र की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक हैं। गाँव भारतवर्ष की आत्मा हैं और राष्ट्र उनका शरीर। सम्पूर्ण शरीर की उन्नति आत्मा की स्वस्थ स्थिति पर निर्भर है। आत्मा के स्वस्थ होने पर ही सम्पूर्ण शरीर में नवचेतना और नवजागृति उत्पन्न हो सकती है। आज भी देश की पचहत्तर प्रतिशत जनता गाँवों में ही रह रही है गाँधी जी कहा करते थे, “भारत का हृदय गाँवों में बसता है, गाँवों की उन्नति से ही भारत की उन्नति हो सकती है। गाँवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं।”
          स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के ग्रामों और ग्रामीणों की दशा बड़ी शोचनीय थी । यहाँ पर निर्धनता, बेरोजगारी और भुखमरी का नंग्न नृत्य होता रहता था। इनमें अशिक्षा और सामाजिक वैषम्य की अग्नि अहर्निश धधकती रहती थी । विश्व के किस अंग ने क्या नई अंगड़ाई ली, उसके क्या सुपरिणाम और दुष्परिणाम हुए, इन बातों से उन बेचारों को कोई सम्बन्ध नहीं था । उनका संसार केवल गाँव । तक ही सीमित था । जीवनयापन की स्वस्थ प्रणाली से ग्रामवासी अपरिचित थे । उनके जीवन से संघर्ष करने के लिये दरिद्रता, अस्वस्थता और अज्ञानता ही बहुत थे । प्रतिवर्ष अनेक मनुष्यों की अकाल मृत्यु होती थी । महामारी से रक्षा करने के लिये छोटे-छोटे नियम भी नहीं समझ पाते थे । न इनके मन में आगे बढ़ने की इच्छा होती थी और न कभी प्रेरणाओं का ही कोई फल होता था । स्वच्छता और आर्थिक स्थिति के साथ-साथ ग्रामवासियों की शिक्षा की समस्या भी प्रबल थी । शोषण, अन्याय, अन्धविश्वास और अशिक्षा का पूर्ण साम्राज्य था । परन्तु आज के गाँव वे गाँव नहीं रहे। भारतीय सरकार के अनवरत प्रयत्नों से उनमें पर्याप्त सुधार हो गये हैं। गाँवों की ७० प्रतिशत जनता अब खुशहाल है, जिनका जीवन झोंपड़ियों में बीतता था, अब उनके सीमेंट के मकान हैं। जिनकी सात पीढ़ियाँ निरक्षर थीं, उनके बच्चे बी० ए० और एम० ए० की कक्षाओं में शिक्षा पा रहे हैं। इस प्रकार समय बदलने के साथ ही देश का भाग्य भी बदल गया ।
          ग्रामीणों की दशा में परिवर्तन लाने के लिये सर्वप्रथम गाँधी जी के नेतृत्व से स्वावलम्बन का आदर्श उपस्थित किया गया था, जिससे ग्रामीणों में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता जैसी पवित्र भावनाएँ उत्पन्न होने लगीं । सन् १९३७ में एक ग्राम सुधार विभाग स्थापित किया गया था और प्रत्येक जिले में दस से लेकर पन्द्रह तक ग्राम सुधार केन्द्रों की स्थापना की गई थी। किसानों की सर्वांगीण उन्नति के लिये एक विकास कमिश्नर भी नियुक्त किया गया था। स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात् से विकास कार्य बड़ी तीव्रता से प्रारम्भ हुए। इन कार्यक्रमों को दो भागों में विभाजित किया गया था। प्रथम — विभागीय कार्यक्रम जो सरकार द्वारा बनाये जाते थे, दूसरे – जन कार्यक्रम जिनका निर्माण जनता द्वारा किया जाता था। ग्रामीणों के तन, मन, धन तीनों प्रकार के पूर्ण सहयोग से इन कार्यक्रमों में आश्चर्यजनक प्रगति हुई । कार्य में सहयोग प्रदान करने के लिये ग्राम्य सहकारिता और कुछ चुने हुए भारतीय विशेषज्ञ भी नियुक्त किये गए । सन् १९४८ में उत्तर प्रदेश की सरकार ने अग्रगामी विकास योजना का भी श्रीगणेश किया । इस विकास योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को स्वावलम्बी बनाने की शिक्षा देना, आधुनिक यन्त्रों से कृषि करना, आर्थिक विषमता को दूर करना, पशु पालन तथा स्वास्थ्य एवं समृद्धि के नियमों में दक्ष बनाना, प्रौढ़ों को शिक्षित करना, आदि थे । इस नवीन एवं अद्भुत प्रोत्साहन से ग्रामीणों का संकुचित दृष्टिकोण सहसा व्यापक बना, कृषि के कार्यों में उनकी रुचि बढ़ी और भारत के उत्पादन में वृद्धि होने लगी । अमेरिका की सरकार इस योजना से प्रभावित होकर भारत सरकार को टैक्नीकल सहायता देने को उद्यत हो गई और उसने देश में पचपन सामुदायिक योजनायें प्रारम्भ करने के लिये ५ करोड़ डालर की सहायता देना सहर्ष स्वीकार कर लिया ।
          इन सामुदायिक योजनाओं का प्रधान लक्ष्य ग्रामीणों की रचनात्मक कार्यों की ओर रुचि उत्पन्न करना, उनका आर्थिक विकास करना, उनके सामाजिक वैषम्य को समाप्त करना था। अज्ञानता, बेरोजगारी तथा अन्धविश्वास को दूर करने के लिये भिन्न-भिन्न कार्यों की व्यवस्था की गई । सामुदायिक योजनाओं के प्रमुख कार्य ये हैं — शिक्षा, समाज शिक्षा, कृषि, सिंचाई, पशुपालन, जनस्वास्थ्य, यातायात, और कुटीर उद्योग-धन्धे, आदि । प्रथम पंचवर्षीय योजना में विशेष रूप से कृषि को प्रधानता दी गई, जिसके फलस्वरूप बहुत सी बंजर भूमि भी उपजाऊ बन गई । विभिन्न रासायनिक खादों का प्रयोग आरम्भ हुआ, खेती के नये-नये आविष्कार हुए, किसानों ने बड़ी रुचि से इन्हें ग्रहण किया। ।
          भारतीय कृषि वर्षा पर अवलम्बित रहती है। अतः राष्ट्रीय सरकार ने कृषकों को सिंचाई की नई सुविधायें प्रदान कीं। गाँव-गाँव में ट्यूबवैल लगवाये गये। कुओं, तालाबों और नहरों के अतिरिक्त नदियों तथा झीलों के भी उपयोग इसमें सम्मिलित कर लिए गए । खेती का अधिकांश भाग पशुओं पर ही आधारित है, इसलिये पशुओं की नस्ल सुधारने के लिये पशु-चिकित्सालयों का प्रबन्ध किया गया। ग्रामीणों की संक्रामक बीमारियों से रक्षा करने के लिये गाँव-गाँव में आयुर्वेदिक तथा एलोपैथिक औषधालयों की स्थापना की गई। बड़े-बड़े गाँवों में प्रसूतिका गृह भी खोले गए । आजकल शिशु कल्याण और सफाई के साधनों की व्यवस्था की जा रही है। आदर्श ग्राम स्थापित किये जा रहे हैं। गाँवों के आर्थिक विकास के लिये, आर्थिक स्थिति को सम्पन्न बनाने के लिये, एक गाँव को दूसरे गाँव के निकट लाने के लिये सड़कें बनायी जा रही हैं, जिससे ग्रामीणों को यातायात में सुविधा हो । ग्रामीण उद्योग को पुनः विकसित किया जा रहा है, जिससे किसान अपने अवकाश के क्षणों का उपयोग करके अधिक द्रव्योपार्जन करके अपने जीवन स्तर को अधिक ऊँचा उठा सकें और पढ़े-लिखे ग्रामीणों की बेरोजगारी की समस्या हल हो ।
          इतना ही नहीं, शिक्षा के प्रसार के लिए एक-एक मील पर प्राइमरी स्कूल खोले गये हैं। मिडिल स्कूल और प्रौढ़ पाठशालाओं की स्थापना की जा रही है, जिससे प्रामीण समाज शिक्षा, स्वास्थ्य रक्षा तथा स्वच्छता, आदि के नियमों को समझ सकें। ग्रामीणों के प्रमुख व्यवसाय खेती की शिक्षा-दीक्षा के लिये विभिन्न स्थानों में कृषि विश्वविद्यालय खोले गये हैं जहाँ पर पौर्वात्य और पाश्चात्य दोनों प्रकार से कृषि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है आकाशवाणी दिल्ली से ग्रामीण भाइयों के लिए नित्य नवीन प्रसारण किए जाने लगे हैं। कभी खेती की बातें समझाई जाती हैं, तो कभी ग्रामोत्थान पर विद्वानों के विचार-विमर्श प्रस्तुत किये जाते हैं। भिन्न-भिन्न प्रान्तीय सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था के अनुसार अपनी सुनिश्चित प्रामोत्थान योजनाओं को साकार रूप देने में निरन्तर प्रयत्नशील हैं ।
          लेकिन भारतवर्ष एक विशाल देश है। सहसा इसकी विशाल जनता के जीवन को समृद्ध बनाना कोई सुगम कार्य नहीं है। सरकार के पास कोई जादू का डण्डा नहीं है, जिसे घुमाकर उसे एक दम से जनजीवन के स्तर को ऊँचा कर दे। यह सब शनैः शनैः ही होगा। भारत सरकार भारतीय नागरिकों के जीवन को उन्नत बनाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। छठी पंचवर्षीय योजना में समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के दो करोड़ ५० लाख लोगों को विशेष सहायता दी जायेगी, जिससे उनका जीवन स्तर भी गरीबी की रेखा से ऊपर उठ सके । राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के अन्तर्गत ३० से ४० करोड़ श्रमिक दिवस बढ़ाये जायेंगे, जिससे ३० लाख परिवार लाभान्वित होंगे। ४६ हजार से भी अधिक गाँवों में बिजली लगायी जायेगी और लगभग १ करोड़ ६० लाख गाँवों में, जहाँ पीने का साफ पानी नहीं मिलता, वहाँ यह सुविधा उपलब्ध कराई जायेगी। सातवीं योजना ग्रामोत्थान में इससे भी अधिक सफल हुई है। पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी आठवीं पंचवर्षीय योजना को जिला एवं ब्लाक स्तर पर पंचायत राज कायम करने के लिए बनाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे परन्तु उनकी पार्टी १९८९ के सामान्य निर्वाचनों में परास्त हो गई । कांग्रेस का स्थान राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने ग्रहण किया। आठवीं पंचवर्षीय योजना का प्रारूप प्रधानमन्त्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की अध्यक्षता में तथा योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री रामकृष्ण हेगड़े ने प्रस्तुत किया है। मेरा यह विश्वास है कि निकट भविष्य में ही भारतवर्ष अपने पुरातन खोये गौरव को पुनः प्राप्त करके उन्नति के उच्च शिखर पर आसीन हो सकेगा । सत्ता की डोर १९९१ के चुनावों में पुनः काँग्रेस के हाथों में आ गई है। प्रधानमन्त्री श्री राव ने पंचायत राज स्थापना को सक्रिय साकार रूप दिया।
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