बुद्धिर्बलवती सदा

बुद्धिर्बलवती सदा

बुद्धिर्बलवती सदा पाठ परिचय:

संस्कृत साहित्य में कथा लेखन की परम्परा अति प्राचीन है। पंचतंत्र और हितोपदेश की कथाएँ आज भी कोमल मति बालकों का उचित मार्ग दर्शन करती हैं। इनका आरम्भिक रूप मौखिक ही था। रात को सोते समय बच्चे अपनी नानीदादी से कथाएँ सुनते थे और उसके बाद ही उनकी आँखों में नींद आती थी। ये कथाएँ मनोरंजन के साथ-साथ उनका नैतिक विकास भी करती थी। बाद में लेखन कला का विकास होने पर इन कथाओं को साहित्यिक रूप दिया गया। ‘शुकसप्ततिः’ ऐसे ही कथा ग्रन्थों में एक महत्त्वपूर्ण कथा संग्रह है।

‘शुकसप्ततिः’ संस्कृत कथा साहित्य की परवर्ती रचना है। भारतीय आख्यान परम्परा में ‘किस्सा तोता मैना’ की कथाएँ प्रसिद्ध हैं। शुकसप्ततिः उन्हीं कथाओं का एक रूपान्तर है। इसमें एक शुक (Parrot) एक अकेली स्त्री का मन बहलाने के लिए रोचक कथाएँ कहता है। ये कथाएँ मनोरंजन होने के साथ-साथ बुद्धि कौशल से परिपूर्ण हैं।

प्रस्तुत पाठ इसी ‘शुकसप्ततिः’ नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक नारी के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है, जो सामने आए हुए शेर को डरा कर भगा देती है। इस कथाग्रन्थ में नीतिनिपुण शुक और सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सद्वृत्ति का विकास कराया गया है।

बुद्धिर्बलवती सदा पाठस्य सारांश:

‘बुद्धिर्बलवती सदा’ यह पाठ संस्कृत के कथा ग्रन्थ ‘शुकसप्ततिः’ से लिया गया है। इस पाठ में नारी के बुद्धि कौशल को दिखाया गया है। देउला नामक ग्राम में राजसिंह नामक एक राजपूत रहता था। उसकी पत्नी बुद्धिमती किसी आवश्यक कार्य से अपने दोनों पुत्रों को साथ लेकर अपने पिता के घर जा रही थी। जंगल का रास्ता था, अचानक एक बाघ दिखाई पड़ा बाघ को देखते ही उसने अपने पुत्रों को पीटते हुए जोर से बोली तुम अकेले-अकेले ही बाघ को खाने के लिए क्यों झगड़ते हो यदि यह एक ही है तो इसे बाँट कर खा लो बाद में कोई दूसरा ढूँढ लेंगे। बुद्धिमती के इन वचनों को सुनकर बाघ डर कर भाग गया और सोचने लगा कि यह कोई बाघमारी है।

भय से व्याकुल बाघ को देखकर रास्ते में एक गीदड़ ने हँसते हुए पूछा कि तुम क्यों दौड़े जा रहे हो ? बाघ ने उत्तर में कहा कि तू भी कहीं जाकर छिप जा। जिसके बारे में सुना जाता है, वह बाघमारी हमें मारने के लिए आ पहुँची है। गीदड़ ने बाघ को विश्वास दिलाया कि मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ और फिर देखना कि वह तुम्हें सामने दिखाई भी नहीं पड़ेगी, यदि ऐसा न हुआ तो तुम मुझे मार देना। विश्वास को दृढ़ करने के लिए गीदड़ ने कहा कि तुम मुझे अपने गले में रस्सी से बाँधकर ले जाओ। बाघ तैयार हो गया। गीदड़ सहित आए हुए बाघ को देखकर बुद्धिमती ने बड़ी चतुराई

और साहस से काम लेते हुए गीदड़ को डाँटते हुए कहा-अरे धूर्त गीदड़ ! तूने पहले तीन बाघ दिए थे और आज एक ही लाकर तू कहाँ जा रहा है ? इतना कहकर बुद्धिमती बड़ी तेजी से उनकी तरफ दौड़ी। बाघ भी यह सुनकर गीदड़ को गले में बाँधे हुए ही वहाँ से दौड़ गया। इस प्रकार बुद्धिमती ने अपनी बुद्धि और साहस के बल पर बाघ से अपनी रक्षा कर ली। अत: ठीक ही कहा है कि सदा सभी कार्यों में बुद्धि बलवती होती है।

Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Important Questions and Answers

बुद्धिर्बलवती सदा पठित-अवबोधनम्

1. निर्देश:-अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत
अस्ति देउलाख्यो ग्रामः।
तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गुहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाट्यात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद-“कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।”
इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकलचित्तो नष्टः।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।
अन्योऽपि बुद्धिमाल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥
भयाकुलं व्यानं दृष्ट्रवा कश्चित् धूर्तः।
शृगालः हसन्नाह-“भवान् कुत: भयात् पलायित: ?”

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत:
(i) देउलाख्यः कः अस्ति ?
(ii) राजपुत्रस्य नाम किमस्ति ?
(ii) पितुर्गुहं प्रति का चलिता ?
(iv) कीदृशः व्याघ्रः नष्टः ?
(v) भयाकुलं व्यानं दृष्ट्वा कः हसति ?
उत्तराणि:
(i) ग्रामः।
(ii) राजसिंहः।
(iii) बुद्धिमती।
(iv) भयाकुलचित्तः।
(v) शृगालः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) बुद्धिमती कीदृशे मार्गे व्याघ्नं ददर्श ?
(ii) किं मत्वा व्याघ्रः नष्टः ?
(iii) भामिनी कया व्याघ्रस्य भयात् मुक्ता ?
(iv) बुद्धिमान् निजबुद्ध्या कस्मात् विमुच्यते ?
उत्तराणि:
(i) बुद्धिमती गहनकानने मार्गे व्याघ्र ददर्श।
(ii) व्याघ्रमारी काचिदियम्-इति मत्वा व्याघ्रः नष्टः।
(iii) भामिनी निजबुद्ध्या व्याघ्रस्य भयात् मुक्ता।
(iv) निजबुद्ध्या बुद्धिमान् महतो भयात् विमुच्यते ?

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘पलायितः इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?’
(ii) ‘बुद्धिमान्’ इत्यस्य स्त्रीलिङ्गे पदं किमस्ति ?
(iii) ‘पितुहम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(iv) ‘पितुहम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(v) ‘मार्गे गहनकानने’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) नष्टः।
(ii) बुद्धिमती।
(iii) प्र √ह + ल्यप्।
(iv) पितुः + गृहम्।
(v) मार्गे।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
शब्दार्थाः-भार्या = (पत्नी) पत्नी। पुत्रद्वयोपेता = (पुत्रद्वयेन सहिता) दोनों पुत्रों के साथ। उपेता = (युक्ता) युक्त। गहनम् = (सघनम्) घने। कानने = (वने) जंगल में। ददर्श = (अपश्यत्) देखा। धाष्ट्यात् = (धृष्टभावात्) ढिठाई से। चपेटया = (करप्रहारेण) थप्पड़ से। प्रहृत्य = (चपेटिकां दत्वा) थप्पड़ मारकर। जगाद = (उक्तवती) कहा। एकैकश = (एकम एकं कृत्वा) एक-एक करके। कलहम् = विवादम्) झगड़ा। विभज्य = विभक्त कृत्वा) अलगअलग करके, (बाँटकर)। लक्ष्यते = (अन्विष्यते) देखा जाएगा, ढूँढा जाएगा। व्याघ्रमारी = व्याघ्रं मारयति (हन्ति) इति] बाघ को मारने वाली। नष्टः = (पलायितः) आँखों से ओझल हो गया, भाग गया। [/नश् अदर्शने + क्त ] । निजबुद्ध्या = (स्वमत्या) अपनी बुद्धि से। भामिनी = (भामिनी, रूपवती स्त्री) रूपवती स्त्री। भयाकुलम् = (भयात् आकुलम्) भय से बेचैन।

सन्दर्भ: प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत के प्रसिद्ध कथा ग्रन्थ शुकसप्ततिः से सम्पादित करके हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो-भागः’ में संकलित ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ नामक पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग: राजपुत्र राजसिंह की पत्नी बुद्धिमती अपने दोनों पुत्रों के साथ अपने पिता के घर जाती है। रास्ते में अपनी बुद्धिमत्ता से बाघ को भगाकर भयमुक्त होती है। इसी का वर्णन प्रस्तुत अंश में है।

हिन्दी अनुवाद: देउल नामक ग्राम है। वहाँ राजसिंह नाम का राजपूत रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य से इसकी पत्नी बुद्धिमती दो पुत्रों के साथ पिता के घर की ओर चल पड़ी। मार्ग में घने वन में उसने एक बाघ देखा। वह बाघ को आता हुआ देखकर ढिठाई से दोनों पुत्रो को चाँटों से मारकर बोली-“क्यों अकेले-अकेले बाघ को खाने के लिए झगड़ा कर रहे हो ? यह एक है तो बाँटकर खा लो। बाद में अन्य कोई दूसरा ढूँढा जाएगा।”

ऐसा सुनकर, यह कोई व्याघ्रमारी (बाघ को मारने वाली) है, यह मानकर भय से व्याकुल चित्तवाला बाघ आँखों से ओझल हो गया।

वह रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि के द्वारा बाघ के भय से मुक्त हो गई। संसार में दूसरे बुद्धिमान् लोग भी (इसी प्रकार अपने बुद्धिकौशल के कारण) अत्यधिक भय से छूट जाते हैं।
भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई दुष्ट सियार (गीदड़) हँसता हुआ बोला-“आप भय से कहाँ भागे जाते हैं ?”

2. व्याघ्रः- गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः।
शगाल: – व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि ?
व्याघ्रः – प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।
जम्बुक: – स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति।
व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत:
(i) शास्त्रे का श्रूयते ?
(ii) गृहीतकरजीवितः शीघ्रं कः नष्टः ?
(iii) मानुषात् कः बिभेति ?
(iv) व्याघ्रमारी सात्मपुत्रो कया प्रहरन्ती दृष्टा ?
उत्तराणि:
(i) व्याघ्रमारी।
(ii) व्याघ्रः ।
(iii) व्याघ्रः ।
(iv) चपेटया।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) गूढप्रदेशं गन्तुं कः कं कथयति ?
(ii) व्याघ्रमारी कीदृशौ पुत्री प्रहरन्ती दृष्टा ?
(iii) जम्बुकः व्याघ्नं कुत्र गन्तुं कथयति ?
(iv) यदि शृगालः व्याघ्र मुक्त्वा याति तदा किं स्यात् ?
उत्तराणि
(i) गूढप्रदेशं गन्तुं व्याघ्रः शृगालं कथयति।
(ii) व्याघ्रमारी एकैकश: व्याघ्रम् अत्तुं कलहायमानौ पुत्रौ प्रहरन्ती दृष्टा।
(iii) जम्बुक: व्याघ्रं कथयति- ‘यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्’
(iv) यदि शृगालः व्याघ्रं मुक्त्वा याति तदा वेलापि अवेला स्यात् ?

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘शृगालः’ इत्यस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘त्वया अहं हन्तव्यः’ अत्र ‘त्वया’ इति सर्वनाम कस्मै प्रयुक्तम्।
(iii) ‘भक्षयितुम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iv) ‘परोक्षम्’ इत्यस्य किमत्र विलोमपदम् ?
(v) ‘हन्तव्यः’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययौ निर्दिशत ?
उत्तराणि:
(i) जम्बुक: ।
(ii) व्याघ्राय।
(iii) अत्तुम् ।
(iv) प्रत्यक्षम्।
(v) हन् + तव्यत्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
शब्दार्थाः जम्बुकः = (शृगालः) सियार, गीदड़। गूढप्रदेशम् = (गुप्तप्रदेशम् गुप्त प्रदेश में। गृहीतकरजीवितः = (हस्ते प्राणान् नीत्वा) हथेली पर प्राण लेकर। आवेदितम् = (विज्ञापितम्) बताया। प्रत्यक्षम् = (समक्षम्) सामने। सात्मपुत्रौ = (सा आत्मनः पुत्रौ) वह अपने दोनों पुत्रों को। अत्तुम् = (भक्षयितुम्) खाने के लिए।। कलहायमानौ = (कलहं कुर्वन्तौ) झगड़ा करते हुए (दो) को। प्रहरन्ती = (प्रहारं कुर्वन्ती) मारती हुई। ईक्षते = (पश्यति) देखती है। वेला = (समयः) शर्त। अवेला = असामयिक, व्यर्थ।

सन्दर्भ:-पूर्ववत्।
प्रसंग: बुद्धिमती से डरकर भागते हुए व्याघ्र को एक गीदड़ साहस बँधाता है और उसे पुनः उसी स्त्री के पास भेजने के लिए उत्साहित करता है। इसी का वर्णन प्रस्तुत गद्यांश में है।

हिन्दी अनुवाद:
बाघ: जाओ गीदड़! तुम भी किसी गुप्तस्थान पर चले जाओ। क्योंकि व्याघ्रमारी, जो शास्त्र में सुनी जाती है। वह मुझ पर हमला करने लगी परन्तु जान हथेली पर रखकर उसके सामने से शीघ्र ओझल हो गया।

गीदड़: बाघ! तुमने बहुत आश्चर्य की बात कही है कि तुम मनष्य से भी डर गए हो ?

बाघ: वह मेरी आँखों के सामने ही एक-एक करके मुझे खाने के लिए झगड़ते अपने दोनों पुत्रों को चाँटों से पीटती हुई दिखाई पड़ी।

गीदड़: स्वामी ! जहाँ वह दुष्टा है, वहाँ चलो। हे बाघ! यदि तुम्हारे पुनः वहाँ जाने पर वह सामने दिखती है तो तुम मुझे मार देना।

बाघ: गीदड! यदि तम मझको छोड़कर चले गए, तब यह शर्त भी व्यर्थ हो जाएगी।

3. जम्बुकः- यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथाकृत्वा काननं ययौ। शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम् ? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यगुल्या तर्जयन्त्युवाच
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यम् व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना॥
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयड्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्।
अत एव उच्यतेबुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) व्याघ्रः कं निजगले बद्ध्वा चलेत् ?
(ii) जम्बुककृतोत्साहः कः अस्ति ?
(iii) प्रत्युत्पन्नमतिः का अस्ति ?
(iv) पुरा व्याघ्रत्रयं केन दत्तम् ?
(v) सदा बलवती का कविता ?
उत्तराणि:
(i) शृगालम्।
(ii) व्याघ्रः ।
(iii) बुद्धिमती।
(iv) शृगालेन।
(v) बुद्धिः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्याघ्रः किं कृत्वा काननं ययौ ?
(ii) किं दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती ?
(iii) कीदृशः व्याघ्रः सहसा नष्टः ?
(iv) बुद्धिमती पुनरपि कस्मात् मुक्ता अभवत् ?
उत्तराणि
(i) व्याघ्रः शृगालं निजगले बद्ध्वा काननं ययौ।
(ii) शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्रं दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती।
(iii) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः सहसा नष्टः ।
(iv) बुद्धिमती पुनरपि व्याघ्रजात् भयात् मुक्ता अभवत्।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘वनम्’ इत्यस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘मूढमतिः’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iii) ‘इत्युक्त्वा ‘ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(iv) ‘व्याघ्रमारी भयङ्करा’ अत्र विशेषणपदं किम् ?
(v) ‘बलवती’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
उत्तराणि:
(i) काननम्।
(ii) प्रत्युत्पन्नमतिः ।
(iii) इति + उक्त्वा ।
(iv) भयङ्करा ।
(v) मतुप्।

Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Textbook Questions and Answers

प्रश्न  1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) बुद्धिमती केन उपेता पितगृहं प्रति चलिता ?
(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः ?
(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते ?
(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ?
(ङ) बुद्धिमती शृगालं किम् उक्तवती।
उत्तराणि
(क) बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितृगृहं प्रति चलिता।
(ख) व्याघ्रः व्याघ्रमारी काचिदियमिति विचार्य पलायितः ।
(ग) लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते।
(घ) जम्बुक: “भवान् कुत: भयात् पलायितः।” इति वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति।
(ङ) बुद्धिमती शृगालं “रे रे धूर्त ! पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तं विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि,
वदाधुना।” इति उक्तवती।

प्रश्न  2.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।
(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहृतवती।
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्।
(घ) त्वं मानुषात् बिभेषि।
(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
उत्तराणि-(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) तत्र क: नाम राजपुत्रः वसतिस्म ?
(ख) बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती ?
(ग) कं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत् ?
(घ) त्वं कस्मात् बिभेषि ?
(ङ) पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम् ?

प्रश्न  3.
उदाहरणमनुसृत्य कर्तरि प्रथमा विभक्तेः क्रियायाञ्च ‘क्तवतु’ प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा वाच्यपरिवर्तनं.
कुरुत:
यथा-तया अहं हन्तुम् आरब्धः – सा मां हन्तुम् आरब्धवती।
(क) मया पुस्तकं पठितम्। – …………………………..
(ख) रामेण भोजनं कृतम्। – …………………………..
(ग) सीतया लेखः लिखितः। – …………………………..
(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्। – …………………………..
(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। – …………………………..
उत्तराणि
(क) मया पुस्तकं पठितम्।- अहं पुस्तकं पठितवती।
(ख) रामेण भोजनं कृतम्। – रामः भोजनं कृतवान्।
(ग) सीतया लेख: लिखितः। – सीता लेखं लिखितवती।
(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्। – अश्वः तृणं भुक्तवान्।
(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। – त्वं चित्रं दृष्टवान्।

प्रश्न  4.
अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमेण संयोजयत:
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालम् आक्षिपन्ती उवाच।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गहं प्रति चलिता।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयं आनयितुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुन: पलायितः।
उत्तरम्-(घटनाक्रमानुसारं वाक्ययोजनम्):
1. (च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृह प्रति चलिता।
2. (घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
3. (ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत।
4. (क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
5. (ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
6. (ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालम् आक्षिपन्ती उवाच।
7. (छ) ‘त्व व्याघ्रत्रयं आनयितुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
8. (ज) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः।

प्रश्न  5.
सन्धिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत:
(क) पितुर्गृहम् – ……………… + ………………
(ख) एकैकः (ग) – ……………. + ………………
(ग) ……………. – अन्यः + अपि
(घ) ……………. – इति + उक्त्वा
(ङ) ……………. – यत्र + आस्ते
उत्तराणि
(क) पितुर्गृहम् – पितुः + गृहम्
(ख) एकैकः – एक + एकः
(ग) अन्योऽपि – अन्यः + अपि
(घ) इत्युक्त्वा – इति + उक्त्वा
(ङ) यत्रास्ते – यत्र + आस्ते

प्रश्न  6.
(क) अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत:
(क) ददर्श – (दर्शितवान्, दृष्टवान्)
(ख) जगाद – (अकथयत्, अगच्छत्)
(ग) ययौ – (याचितवान्, गतवान्)
(घ) अत्तुम् – (खादितुम्, आविष्कर्तुम्)
(ङ) मुच्यते – (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)
(च) ईक्षते – (पश्यति, इच्छति)
उत्तराणि-पदम् – अर्थः
(क) ददर्श – दृष्टवान्,
(ख) जगाद – अकथयत्,
(ग) ययौ – गतवान्,
(घ) अत्तुम् – खादितुम्,
(ङ) मुच्यते – मुक्तो भवति,
(च) ईक्षते – पश्यति।

प्रश्न  7.
(ख) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत
(क) वनम् – ………………..
(ख) शृगालः – ………………..
(ग) शीघ्रम् – ………………..
(घ) पत्नी – ………………..
(ङ) गच्छसि – ………………..
उत्तराणि:
पदम् – पर्यायपदम्
(क) वनम् – काननम्
(ख) शृगालः – जम्बुकः
(ग) शीघ्रम् – सत्वरम्
(घ) पत्नी – भार्या
(ङ) गच्छसि – यासि।

प्रश्न  8.
प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत
(क) चलितः – ………………..
(ख) नष्टः – ………………..
(ग) आवेदितः – ………………..
(घ) दृष्टः – ………………..
(ङ) गतः – ………………..
(च) हतः – ………………..
(छ) पठितः – ………………..
(ज) लब्धः – ………………..
उत्तराणि
(क) चलितः – चल् + क्त
(ख) नष्टः – नश् + क्त
(ग) आवेदितः – आ + विद् + क्त
(घ) दृष्टः – दृश् + क्त
(ङ) गतः – गम् + क्त
(च) हतः – हन् + क्त
(छ) पठितः – पठ् + क्त
(ज) लब्धः लभ् + क्त।

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