बालगोबिन भगत

बालगोबिन भगत

बालगोबिन भगत लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी के सुप्रसिद्ध निबंधकार हैं। इनका जन्म सन् 1899 को बिहार प्रदेश के मुजफ्फरपुर जिले के छोटे से गाँव बेनीपुर में हुआ था। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया था। इनका पालन-पोषण इनके ननिहाल में हुआ। इन्होंने बड़ी कठिनाई से मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की थी। श्री बेनीपुरी जी सन् 1920 में महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने स्वाध्याय के बल पर हिंदी ज्ञान में निपुणता प्राप्त की तथा अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाओं का भी गंभीर अध्ययन किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय श्री बेनीपुरी जी दस बार जेल गए। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् सन् 1957 में आप बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। बेनीपुरी जी ने लगभग 15 वर्ष की आयु में पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू किया तथा पत्रकारिता को जीवनयापन के साधन के रूप में अपना लिया। इन्होंने समय-समय पर ‘किसान मित्र’, ‘तरुण भारत’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘जनवाणी’, ‘नई धारा’, ‘कर्मवीर’ आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया है। इनका निधन सन् 1968 में हुआ था।

2. प्रमुख रचनाएँ श्री बेनीपुरी जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-

  • उपन्यास-‘कैदी की पत्नी’ और ‘पतितों के देश में’।
  • कहानी-संग्रह ‘चिता के फूल’।
  • नाटक तथा एकांकी-‘अंबपाली’, ‘संघमित्रा’, ‘सीता की माँ’, ‘नेत्रदान’, ‘तथागत’, ‘विजेता’, ‘राम- राज्य’ तथा ‘गाँव का देवता’।
  • रेखाचित्र-‘माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ और गुलाब’, ‘मन और विजेता’।
  • निबंध तथा संस्मरण-‘जंजीरें और दीवारें’, ‘मुझे याद है’, ‘मेरी डायरी’, ‘नयी नारी’, ‘मशाल’।
  • यात्रा-वृत्तांत-‘मेरे तीर्थ’, ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’, ‘पैरों में पंख बाँधकर’।
  • जीवनी-‘कार्ल मार्क्स’, ‘जयप्रकाश नारायण’।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाओं में प्रमुख रूप से स्वाधीनता की चेतना, मनुष्यता की चिंता और इतिहास की युगानुरूप व्याख्या है। वे निष्ठावान भारतीय संस्कृति के पुजारी भी हैं। इनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। इनके साहित्य में गहन अनुभूतियों और उच्च कल्पनाओं का सुंदर मिश्रण है। इनकी रचनाओं में जहाँ जीवन से संबंधित ज्वलंत समस्याओं को उठाया गया है, वहाँ उनके समाधानों की ओर संकेत भी किए गए हैं। सार रूप में कहा जा सकता है कि रामवृक्ष बेनीपुरी जी का साहित्य उच्चकोटि का साहित्य है, जिससे मानवता के विकास की प्रेरणा मिलती है।

4. भाषा-शैली-श्री रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य की भाषा सरल, सहज, रोचक एवं ओजस्वी है। अलंकृत एवं भावनापूर्ण शैली के कारण हिंदी गद्य-साहित्य में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव, देशज, उर्दू-फारसी व अंग्रेज़ी के शब्दों का अत्यंत सटीक एवं सार्थक प्रयोग किया है। इन्होंने लोक प्रचलित मुहावरों व लोकोक्तियों का भी सफल प्रयोग किया है।

बालगोबिन भगत पाठ का सार

प्रश्न-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ एक रेखाचित्र है। लेखक ने इसमें एक ऐसे विलक्षण चरित्र का वर्णन किया है जो मानवता, संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। लेखक की मान्यता है कि वेशभूषा व बाह्य दिखावे से कोई संन्यासी नहीं होता। संन्यास का आधार तो जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं। पाठ का सार इस प्रकार है

बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे वर्ण के व्यक्ति थे। उनकी आयु साठ से ऊपर की थी। उनके सिर के बाल और दाढ़ी सफेद थे। वे शरीर पर कपड़ों के नाम पर केवल एक लंगोटी बाँधते थे और सिर पर कबीर टोपी पहनते थे और सर्दी के मौसम में काली कमली ओढ़ लेते थे। वे माथे पर चंदन और गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। वे संन्यासी नहीं, गृहस्थ थे और थोड़ी बहुत खेतीबाड़ी भी करते थे। वे गृहस्थ होते हुए भी साधु की परिभाषा में खरे उतरते थे। वे कबीर के विचारों से बहुत प्रभावित थे। वे सदा सत्य बोलते और सद्व्यवहार करते थे। वे किसी से व्यर्थ में झगड़ा मोल नहीं लेते थे। वे बिना पूछे किसी वस्तु को नहीं छूते थे। उनके लिए कबीर ‘साहब’ थे और उनका सब कुछ ‘साहब’ का था। उनके खेत में जो फसल उत्पन्न होती थी, उसे वे सबसे पहले साहब के दरबार में ले जाते थे। वह उनके घर से चार कोस दूर था।

बालगोबिन भगत एक अच्छे गायक भी थे। उनका मधुर गान सदा सुनाई पड़ता था। वे कबीर के पदों को गाते रहते थे। आषाढ़ आते ही खेतों में धान की रोपाई शुरू हो जाती थी। पूरा गाँव, अर्थात् आदमी, औरतें और बच्चे खेतों में दिखाई देते थे। खेतों में रोपाई करते समय हर किसी के कानों में गाने का स्वर गूंजता रहता था। उनके संगीत से सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था। सभी लोग एक ताल में एक क्रम में काम करने लगते थे। वे भादों की अंधेरी रातों में पिया के प्यार के गीत गाते थे। उनके अनुसार पिया के साथ होते हुए भी प्रियतमा अपने-आपको अकेली समझती है और बिजली की चमक से चौंक उठती है। जब सारा संसार सो रहा होता था, उस समय बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। बालगोबिन कार्तिक से फागुन तक प्रभाती गाया करते थे। वे सुबह अंधेरे में उठकर, दो मील चलकर नदी स्नान करते थे। वापसी में गाँव के बाहर पोखरे पर वे अपनी खजड़ी लेकर बैठ जाते और गीत गाने लगते थे। लेखक को देर तक सोने की आदत थी, परंतु एक दिन उसकी आँख जल्दी खुल गई। वे माघ के दिन थे। लेखक को बालगोबिन का संगीत गाँव के बाहर पोखर पर ले गया। वे अपने संगीत में बहुत मस्त थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं लेकिन लेखक ठंड के मारे काँप रहा था। गर्मियों में उमसभरी शाम को वे अपने गीतों से शीतल कर देते थे। उनके गीत लोगों के मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। वे भी बालगोबिन की तरह मस्ती में नाचने लगते थे। उनके घर का आँगन संगीत-भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था।

बालगोबिन की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष उस दिन देखने को मिला जिस दिन उनके बेटे की मृत्यु हुई थी। उनका एक ही बेटा था जो कुछ सुस्त रहता था। वे उसे अत्यधिक प्रेम करते थे और उसका ध्यान भी रखते थे। वह उनका इकलौता बेटा था। उसकी शादी भी उन्होंने बड़ी साध से करवाई थी। उनकी पुत्रवधू गृह प्रबंध में अत्यंत कुशल थी। उसने आते ही घर का सारा काम-काज संभाल लिया था। लेखक बालगोबिन भगत के उस कार्य से हैरान रह गया था। उन्होंने अपने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढक रखा था। उसके सिर की ओर चिराग जला रखा था। वे अपनी पुत्रवधू को भी उत्सव मनाने के लिए कहते हैं, क्योंकि उनका मानना था कि उसकी आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। भला इससे बढ़कर आनंद की क्या बात हो सकती है? यह उनका विश्वास बोल रहा था। वह विश्वास जो मृत्यु पर विजयी होता आया है। उन्होंने अपनी पतोहू से ही बेटे की चिता में अग्नि दिलवाई थी। बालगोबिन ने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर कहा था कि इसे यहाँ से ले जाओ और इसका विवाह कर दो। किंतु वह वहाँ रहकर बालगोबिन भगत की सेवा करना चाहती थी। लेकिन बालगोबिन का कहना था कि वह अभी जवान है और उसका अपनी इंद्रियों पर काबू रखना मुश्किल है। किंतु वह आग्रह कर रही थी कि मुझे अपने चरणों में ही रहने दो। भगत भी अपने निर्णय पर अटल थे। उन्होंने कहा कि यदि तू यहाँ रहेगी तो मुझे घर छोड़कर जाना पड़ेगा।

बालगोबिन भगत की मौत वैसे ही हुई जैसी वह चाहते थे। वे हर वर्ष गंगा-स्नान तथा संत-समागम के लिए जाते थे। वे घर से खाकर चलते थे और घर पर ही आकर खाते थे। उन्हें गंगा-स्नान के लिए आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे गृहस्थी थे, इसलिए किसी से भीख भी नहीं माँग सकते थे। इस बार जब गंगा-स्नान करके लौटे तो खाने-पीने के बाद भी उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ। तेज़ बुखार में भी उनके नेम-व्रत वैसे ही चलते रहे। लोगों ने नहाने-धोने व काम करने से मना किया और आराम करने के लिए कहा। उस संध्या को भी गीत गाए। ऐसा लगता था कि उसके जीवन का धागा टूट गया हो। मानो माला का एक-एक मनका बिखर गया हो। भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना, जाकर देखा तो पता चला कि बालगोबिन नहीं रहे। वहाँ सिर्फ उनका पिंजर ही पड़ा था।

Hindi बालगोबिन भगत Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बालगोबिन भगत किस संत को ‘साहब’ कहते थे और उन पर उसका कितना प्रभाव था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत संत कबीर को ‘साहब’ कहते थे अर्थात् उन्हें अपना स्वामी या ईश्वर समझते थे। उनके जीवन पर कबीरदास का गहरा प्रभाव था। कबीरदास अत्यंत निर्भीक तथा दो टूक बात कहने वाले संत थे। कबीरदास की भाँति बालगोबिन भगत भी सदा सत्य बोलने का पालन करते रहे और सबके साथ खरी-खरी बातें करते थे। वे अपने खेत की फसल को सबसे पहले कबीर पंथी मठ में ले जाकर उनके प्रति अर्पित करते थे। वे वहाँ से मिले शेष अनाज को प्रसाद समझकर स्वीकार करते थे। अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत कबीरदास के प्रति गहन आस्था रखते थे।

प्रश्न 2.
लेखक बालगोबिन भगत की किन बातों से प्रभावित था?
उत्तर-
लेखक बालगोबिन भगत की ईश्वरं भक्ति से अत्यधिक प्रभावित था। उनकी ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना से तो लेखक अत्यधिक प्रभावित था। इसके अतिरिक्त उनके मधुर गायन का प्रभाव भी लेखक पर देखा जा सकता है। जब वे अपनी मधुर ध्वनि में गाते थे तो अन्य लोग भी अपना काम छोड़कर उनकी मधुर संगीत लहरी को सुनने में तल्लीन हो जाते थे।

प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत बहुत सवेरे जाग जाते थे। वे गंगा-स्नान करने के पश्चात् किसी स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाकर प्रभु-भजन गाते थे। उसके पश्चात् वे अपने पशुओं का काम करते और स्वयं भोजन करके खेत में काम करने निकल पड़ते। संध्या होने पर वे घर लौट आते थे।

प्रश्न 4.
आपकी दृष्टि में बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष कब होता है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही बालगोबिन भगत एक अच्छे संगीतकार व गायक थे। किंतु उनकी संगीत साधना का चरमोत्कर्ष तब देखने को मिलता है जब अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे पहले की भाँति तल्लीनता से गाते रहे थे। उनका विश्वास था कि मृत्यु के पश्चात् आत्मा परमात्मा के पास चली जाती है। इससे बढ़कर खुशी का अवसर और क्या हो सकता है। यह समय रोने या शोक मनाने का नहीं, अपितु उत्सव मनाने का है।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत अपनी पुत्रवधू का पुनः विवाह क्यों करना चाहते थे? इसके पीछे उनकी कौन-सी भावना के दर्शन होते हैं?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू अभी जवान थी। उसका सारा जीवन उसके सामने पड़ा था। वे नहीं चाहते थे कि वह अपना सारा जीवन विधवा बनकर काटे। उनका यह भी मानना था कि वह अभी जवान है और उसकी आयु अभी वासनाओं पर नियंत्रण करने की नहीं है, वह पुनः विवाह करके लोगों द्वारा दिए जाने वाले तानों में भी बच सकती है। बालगोबिन भगत समाज की रूढ़िवादिता में विश्वास नहीं रखते थे और समाज की वस्तु-स्थिति को भी भली-भाँति समझते थे। इसलिए यह निर्णय उनकी दूरदर्शिता को व्यक्त करता है।

प्रश्न 6.
कार्तिक मास से फाल्गुन मास तक बालगोबिन भगत का प्रमुख कार्य क्या होता था? ।
उत्तर-
कार्तिक मास के आरंभ होते ही बालगोबिन भगत का प्रभाती गायन आरंभ हो जाता था। उनकी प्रभाती फाल्गुन मास तक निरंतर चलती थी। वे बहुत सवेरे उठते दो मील दूर गंगा-स्नान करते और वापसी में गाँव के पोखर पर बैठकर अपनी बँजड़ी बजाते हुए प्रभु-भजन गाते रहते थे। वे इतनी तल्लीनता से गाते थे कि अपने आस-पास के वातावरण को भी भूल जाते थे। वे माघ की सर्दी में इतनी उत्तेजना से गाते थे कि उन्हें पसीना आ जाता था जबकि सुनने वाले ठंड से काँप रहे होते थे।

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत की मृत्यु पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर–
बालगोबिन भगत हर वर्ष गंगा-स्नान के लिए जाते थे, किंतु अब वे अत्यधिक बूढ़े हो गए थे। उनका शरीर भी कमज़ोर पड़ चुका था। किंतु वे अपने नियम पर अङिग रहे और गंगा स्नान के लिए पहले की भाँति ही गए। वे मार्ग मे कुछ नहीं खाते थे। इस वर्ष जब वे गंगा-स्नान से लौटे तो उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरने लगा किंतु वे अपने जीवन के नेम-व्रत पालन पर अङिग रहे। वे दोनों समय स्नान ध्यान व गायन करते तथा खेतीबाड़ी की देखभाल भी करते। लोग उन्हें आराम करने की सलाह देते तो हँसकर टाल देते। एक दिन वे गीत गाकर सोए तो उनके प्राण पखेरू उड़ गए। उनके साँसों की माला टूटकर बिखर गई। लोगों को पता चला कि बालगोबिन भगत नहीं रहे। अतः उनकी मृत्यु स्वाभाविक मृत्यु थी।

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन ईश्वर के भगत हैं। वे पाठ के मुख्य पात्र हैं। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
वे गृहस्थ होते हुए भी एक साधु जैसा जीवन व्यतीत करते थे। उनकी आयु साठ वर्ष के लगभग थी। वे एक धोती ही पहनते थे और सिर पर कबीर कनफटी टोपी धारण करते थे। सर्दी आने पर काला कंबल ओढ़ लेते थे। उनके माथे पर चंदन का टीका लगा रहता था।
बालगोबिन भगत अन्य ग्रामीण लोगों की भाँति खेतीबाड़ी का काम करते थे। वे खेत में काम करते हुए भी प्रभु-भजन में लीन रहते थे। बालगोबिन भगत मधुर स्वर में प्रभु-भजन गाया करते थे। वे कबीर के पद गाते थे। उनके संगीत का जादू ऐसा था कि जो भी उसे सुनता, उसमें लीन हो जाता था।

बालगोबिन भगत अत्यंत संतोषी व्यक्ति थे। उनकी इच्छाएँ अत्यंत सीमित थीं। वे सबके साथ खरा एवं सच्चा व्यवहार करते थे। उनके मन में ईश्वर के प्रति अगाध आस्था थी। सांसारिक मोह उन्हें छू भी नहीं सकता था। वे शरीर को नश्वर और आत्मा को परमात्मा का अंश मानते थे। मृत्यु उनके लिए मोक्ष प्राप्ति का साधन थी। वे उसे एक उत्सव के रूप में मानते थे।
सामाजिक रूढ़ियों में उनका विश्वास नहीं था। उसकी दृष्टि में नर-नारी सब समान थे। वे विधवा-विवाह के पक्ष में थे।
अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत एक सच्चे साधु थे।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 9.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश/मूलभाव दिया है।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ के माध्यम से लेखक ने संदेश दिया है कि ईश्वर की भक्त करने के लिए मनुष्य को समाज छोड़कर जंगलों में आने की आवश्यकता नहीं है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी प्रभु-भक्ति की जा सकती है। बालगोबिन भगत का जीवन इसका प्रमाण है। वह साधारण गृहस्थी है। वह खेतीबाड़ी का काम करता है, और सदा सच बोलता है। वह दूसरों से कभी कपटपूर्ण व्यवहार नहीं करता। जो कुछ भी वह कमाता है, उसे ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण करता है। सांसारिक मोह के बंधन से मुक्त है। वह सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं करता। सुख-दुःख में सदैव प्रभु गुणगान करता रहता है। अतः स्पष्ट है कि लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन के माध्यम से महान संदेश दिया है कि प्रभु-भक्ति गृहस्थ जीवन में भी संभव है।

प्रश्न 10.
लेखक ने मनुष्य की श्रेष्ठता के कौन-से प्रमुख आधार बताए हैं? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पठित पाठ में लेखक ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य की श्रेष्ठतां उसके बाह्य दिखावे व पहनावे पर नहीं, अपितु उसके गुणों पर आधारित होती है। पाठ में बालगोबिन तेली जाति से संबंधित था। तेली जात को समाज नीची जाति समझता है। स्वयं लेखक भी ऐसा ही समझता था और बालगोबिन के सामने सिर झुकाना अपना अपमान समझता था किंतु बालगोबिन की प्रभु-भक्ति की भावना ने लेखक का हृदय जीत लिया और लेखक उसका सम्मान करने लगा था। न केवल लेखक ही, बल्कि सारा गाँव उसका सम्मान करता था।

प्रश्न 11.
“पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है-” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–
प्रस्तुत पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है। लेखक ने बताया है कि मनुष्य जन्म या जाति के आधार पर बड़ा नहीं होता, मनुष्य तो अपने शुभ कर्मों व गुणों के आधार पर बड़ा होता है। लेखक स्वयं ब्राह्मण जाति से संबंधित था और ब्राह्मणत्व के नशे में चूर रहता था। वह छोटी जाति के लोगों का आदर नहीं करता था। वह तेली जाति के लोगों को हीन समझता था। किंतु लेखक को बड़े होने पर यह बात समझ आई कि व्यक्ति की महानता जाति या जन्म के आधार पर नहीं होती, अपितु व्यक्ति के कर्मों और गुणों के आधार पर होती है। इसलिए लेखक ने जाति-प्रथा को समाज विरोधी समझकर उस पर करारा व्यंग्य किया है।

प्रश्न 12.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ में लेखक के मृत्यु संबंधी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में मृत्यु को दुःख या शोक का कारण न बताकर उत्सव व प्रसन्नता का कारण बताया गया है। बालगोबिन भगत अपने बेटे की मृत्यु पर जरा भी दुःखी नहीं हुए और न अपनी पुत्रवधू को रोने दिया। वे मृत्यु को आत्मा का परमात्मा से मिलन का साधन मानते हैं। इसलिए मृत्यु को उत्सव की भाँति समझना चाहिए।

Hindi बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? .
उत्तर-
बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी करने वाले गृहस्थ थे, किंतु उनका संपूर्ण व्यवहार साधुओं जैसा था। सर्वप्रथम तो हम कह सकते हैं कि उनका जीवन उनके ईश्वर (साहब) के प्रति अर्पित था। उनमें किसी प्रकार का अहम् भाव नहीं था। वे अपने-आपको ईश्वर का बंदा मानते थे। वे अपनी कमाई पर सर्वप्रथम ईश्वर का अधिकार मानते थे। इसलिए वे अपने खेत में उत्पन्न होने वाली फसल को सर्वप्रथम कबीरपंथी मठ में ले जाते थे। वहाँ से उन्हें जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता था, उससे वे अपना गुजारा करते थे। वे तो अपने जीवन को ही प्रभु की देन मानते थे। वे सदैव सुख-दुःख में समभाव रहते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और न ही किसी से धोखे का व्यवहार करते थे। वे तन-मन से प्रभु के गुणों का गान करते रहते थे। इन सब बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी साधु कहलाते थे।

प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर-
भगत की पुत्रवधू बहुत समझदार युवती थी। पुत्र की मृत्यु के बाद भगत के घर में एकमात्र उनकी पुत्रवधू ही थी जो उनकी देखभाल कर सकती थी। वह सोचती थी कि यदि मैं भी यहाँ से चली गई तो कौन इनकी देखभाल करेगा? बुढ़ापे में कौन इनकी सेवा करेगा? बीमार होने पर कौन इनकी दवा-पानी करेगा? कौन इनको भोजन देगा? इन सब बातों के कारण ही वह भगत को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी।

प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस प्रकार व्यक्त की?
उत्तर-
बालगोबिन भगत का पुत्र उनकी एकमात्र संतान थी। वह कुछ सुस्त और बोदा-सा था। भगत उसे बहुत प्यार करते थे। किंतु अब वह बीमार रहने लगा और भगत द्वारा बचाने के प्रयास करने पर भी वह मर गया। भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर दूसरों की भाँति शोक नहीं मनाया। उनका मत था कि उनके बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। आज एक विरहिणी अपने प्रियतम के पास चली गई है। उसके मिलन का दुःख कैसा, उसके मिलन की तो खुशी मनाई जानी चाहिए। उन्होंने अपने बेटे के शव को फूलों से सजाया और उसके सामने आसन जमाकर प्रभु भजन गाने लगे। उसके सिराहने दीप जलाकर रख दिया था। जब उनकी पुत्रवधू रोने लगी तो उन्होंने उसे भी खुशी मनाने के लिए कहा था।

प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत की आयु लगभग साठ वर्ष की रही होगी। वे मँझोले कद वाले गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे। उनके बाल सफेद थे। उनके चेहरे पर उनके सफेद बाल चमचमाते रहते थे। माथे पर चंदन का लेप रहता था। कपड़ों के नाम पर कमर पर एक लंगोटी
और एक कबीरपंथी टोपी रहती थी। सर्द ऋतु आने पर वे काले रंग की कमली धारण करते थे। उनके गले में तुलसी की जड़ों से बनी एक बेडौल माला पड़ी रहती थी। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उनमें एक सच्चे साधु-संन्यासियों के सभी गुण थे। वे कबीर के पदों को अपनी मधुर आवाज़ में गाते रहते थे। वे सदा कबीर के द्वारा बताए गए आदर्शों पर चलते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कभी किसी से धोखा नहीं करते थे। वे सबसे सदा खरा-खरा व्यवहार करते थे। वे सदा सत्य बोलते थे तथा कभी किसी से व्यर्थ का झगड़ा नहीं करते थे। दूसरों की वस्तुओं को कभी लेते या छूते तक नहीं थे। ईश्वर में पूर्ण रूप से उनकी आस्था थी। वे सदैव समभाव रहते थे।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए थी क्योंकि वे अपने दैनिक जीवन में भी नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। वे प्रातः बहुत जल्दी उठते और गाँव से लगभग दो मील दूर नदी पर जाकर स्नान करते थे। वापसी पर पोखर के ऊँचे स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाते हुए कबीर के पदों का गान करते थे। वे गर्मी-सर्दी की चिंता किए बिना प्रतिदिन ऐसा करते थे। वे बिना पूछे किसी की वस्तु को छूते नहीं थे, यहाँ तक कि किसी के खेत में कभी शौच भी न करते थे। इस प्रकार अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में नियमों का ऐसा दृढ़ता से पालन करना लोगों के अचरज का कारण था।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास से अत्यधिक प्रभावित थे। यहाँ तक कि उन्हें ‘साहब’ कहते थे। इसलिए वे कबीर के प्रभु भक्ति संबंधी पदों का तल्लीनतापूर्ण गायन करते थे। उनके स्वर प्रभु की सच्ची पुकार थी। उनके गीतों का स्वर हृदय से निकला हुआ स्वर था। उनके गीतों को सुनने वाला हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता था। औरतें और बच्चे तो उनके गीतों को गुनगुनाने लग जाते थे। खेतों में काम करने वाले किसानों व मजदूरों के हाथ और पाँव एक विशेष लय में चलने लगते थे। उनके संगीत का हर दिल पर एक विशेष प्रभाव पड़ता था। जब भगत भजन गाता था तो चारों ओर एक मधुर वातावरण छा जाता था। गर्मी-सर्दी आदि हर मौसम में उनकी मधुर ध्वनि की लहरियाँ सुनी जा सकती थीं।।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–
पाठ के आधार पर कहा जा सकता है कि निश्चित रूप से बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। इस बात को प्रमाणित करने के लिए पाठ के कुछ मार्मिक प्रसंग इस प्रकार हैं
पुत्र की मृत्यु पर विलाप न करके उसके शव के सामने आसन जमाकर तल्लीनता से गीत गाना। पुत्र की चिता को अग्नि स्वयं या किसी अन्य पुरुष से दिलवाने की अपेक्षा अपनी पुत्रवधू से दिलवाना। इसके साथ-साथ पुत्रवधू को उसके भाई के साथ वापस भेज देना ताकि वह पुनः विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत कर सके। एक गृहस्थ होते हुए भी वे सच्चे साधु का जीवन व्यतीत करते थे।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए। .
उत्तर-
आषाढ़ के महीने में वर्षा होने पर चारों ओर खेतों में धान की फसल की ज्यों ही रोपाई आरंभ होती तो बालगोबिन भगत के भगवद् भक्ति के गीतों की स्वर लहरियाँ भी चारों ओर के वातावरण को संगीतमय बना देती थीं। ऐसा लगता था कि उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत की सीढ़ियों पर चढ़ाकर मानो स्वर्ग की ओर भेज रहा हो। खेलते हुए बच्चे झूम उठते थे, मेंड़ पर खड़ी औरतें गुनगुनाने लगती थीं, हलवाहों के पैर ताल के साथ उठने लगते थे और रोपनी करने वालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थीं। चाहे मूसलाधार वर्षा हो, चाहे तेज़ गर्मी या जाड़ों की कड़कती सुबह, उनके संगीत को कोई भी मौसम प्रभावित नहीं कर पाता था। गर्मियों की उमस भरी संध्या में उनके घर में आँगन में खंजड़ी-करताल की भरमार हो जाती थी। एक निश्चित ताल और निश्चित गति से जब उनका स्वर ऊपर उठता था तो उनकी प्रेमी-मंडली के मन भी ऊपर उठते जाते थे और फिर धीरे-धीरे सभी बालगोबिन के साथ नृत्यशील हो उठते थे।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास के अनन्य उपासक एवं श्रद्धालु थे। उनकी यह श्रद्धा व उपासना विभिन्न रूपों में व्यक्त हुई है-
कबीरदास ईश्वर में आस्था रखते थे। इसलिए बालगोबिन भगत कबीरदास की इस भावना से अत्यंत प्रभावित हुए और उनके बताए हुए जीवन आदर्शों पर चलने लगे थे। जैसे कबीरदास ने गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए प्रभु भक्ति की, वैसे ही बालगोबिन भगत भी गृहस्थ जीवन में रहते हुए सदा प्रभु-भजन में लीन रहते थे। कबीर जीवन में दिखावे व पाखंड से दूर रहे, सामाजिक परंपराओं और अंधविश्वास का खंडन किया। बालगोबिन भगत ने पुत्रवधू के हाथ से पति की चिता को आग दिलवाकर और उसे स्वयं पुनर्विवाह के लिए प्रेरित करके कबीरदास के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है। वे कबीर की भाँति सदा सत्य आचरण का पालन करते रहते थे।
कबीर की भाँति उन्होंने भी नर-नारी को समान माना और संसार व शरीर को नश्वर और आत्मा को अमर माना। वे कबीर की भाँति मन को ईश्वर भक्ति में लगाने की प्रेरणा देते थे।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर-
भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के अनेक कारण थे, यथा-कबीर समाज में प्रचलित रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे भगवान् के निराकार रूप को मानते थे जिसमें मनुष्य के अंत समय में आत्मा से परमात्मा का मिलन होता . है। वे गृहस्थी होते हुए भी व्यवहार से साधु थे। इसी प्रकार कबीर जीवन और जीवन की वस्तुओं में ईश्वर की कृपा मानते थे। बालगोबिन भगत कबीर के जीवन की इन विशेषताओं के कारण ही उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखते होंगे।

प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर-
गाँव में किसानों की संख्या अधिक होती है। उनका मुख्य धंधा खेती होता है। ज्येष्ठ की तपती गर्मी के पश्चात् आषाढ़ मास में बादल उमड़कर वर्षा करने के लिए आ जाते हैं। इससे किसानों के हृदयों में प्रसन्नता का भाव भर जाता है। वर्षा की रिमझिम आरंभ हो जाती है। किसान धान की रोपाई का काम आरंभ कर देते हैं। गाँव के लोग खेतों में काम पर लग जाते हैं। बच्चे भी गीली मिट्टी में लिथड़कर भरपूर आनंद उठाते हैं। औरतें भी खेतों के काम करने के लिए निकल पड़ती हैं। अतः आषाढ़ के आते ही गाँव के सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में उल्लास भर जाता है।

प्रश्न 12.
“ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर-
साधु की पहचान उसके पहनावे से नहीं की जा सकती। आज के युग में लाखों की संख्या में साधु का पहनावा पहनकर लोग पेट-पूजा करने में जुटे हुए हैं। क्या उन सबको साधु मान लिया जाए, वास्तव में साधु की पहचान तो उसके व्यवहार एवं विचारों से ही की जानी चाहिए। साधु व्यक्ति की पहचान हम निम्नलिखित आधारों पर कर सकते हैं

(क) ईश्वर में आस्था होनी चाहिए और उसका जीवन प्रभु के प्रति समर्पित होना चाहिए।
(ख) सच्चे साधु का सरल स्वभाव होना नितांत आवश्यक है। यदि वह चंचल स्वभाव वाला है तो उसका व्यवहार भी वैसा ही होगा।
(ग) मधुर वाणी सच्चे साधु की अन्य प्रमुख पहचान है। कबीरदास ने भी मीठी वाणी की प्रशंसा की है। जो व्यक्ति सामाजिक बुराइयों का खंडन करता है और उनसे बचकर रहता है तथा उनके प्रति समाज के लोगों को सचेत करता है, वही सच्चा साधु कहलाता है।
ये सभी विशेषताएँ जिस व्यक्ति के जीवन में हों वह भले ही गृहस्थी क्यों न हो, फिर भी सच्चा साधु कहलाता है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे ?
उत्तर-
मोह और प्रेम दो भिन्न भाव हैं। बालगोबिन भगत का एक ही बेटा था जो दिमाग से सुस्त था। भगत जी ने उसका पालनपोषण बहुत प्यार एवं ध्यानपूर्वक किया। भगत का मत है कि ऐसे बच्चों को सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक प्यार की आवश्यकता होती है। भगत ने उसका विवाह भी बड़े चाव से किया। जब उसके बेटे की मृत्यु हो गई तब भगत ने बेटे के मोह में पड़कर उसकी मृत्यु का शोक नहीं किया। यहाँ तक कि उसकी पत्नी को भी शोक नहीं मनाने दिया। उसने जान लिया था कि शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है जो शरीर के नष्ट हो जाने पर परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार उसे अपने बेटे से प्रेम तो था, किंतु मोह नहीं।

भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर-
(1) जब जब वह सामने आता
जब जब-कालवाची क्रियाविशेषण
सामने स्थानवाचक क्रियाविशेषण

(2) कपड़े बिल्कुल कम पहनते
बिल्कुल कम परिमाणवाची क्रियाविशेषण

(3) थोड़ी देर पहले मूसलाधार वर्षा हुई।
मूसलाधार–परिमाणवाची क्रियाविशेषण।

(4) न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते।
खामखाह रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(5) वे दिन-दिन. छीजने लगे।
दिन-दिन-कालवाची क्रियाविशेषण।

(6) जो सदा-सर्वदा सुनने को मिलते।
सदा-सर्वदा कालवाची क्रियाविशेषण।

(7) धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा।
धीरे-धीरे-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(8) मैं कभी-कभी सोचता हूँ।
कभी-कभी-कालवाचक क्रियाविशेषण।

(9) इधर पतोहू रो-रोकर कहती।।
रो-रोकर-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(10) उस दिन संध्या में गीत गाए।
संध्या में कालवाचक क्रियाविशेषण

पाठेतर सक्रियता

पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फोटो का संग्रह कर एक अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

पाठ में आषाढ़, भादो, माघ आदि में विक्रम संवत कलैंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कलैंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रातःकाल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर-
मैं रामपुर नगर का रहने वाला छात्र हूँ। यहाँ का वातावरण पाठ में दिखाए सांस्कृतिक वातावरण से नितांत भिन्न है। नगर में पक्की, चौड़ी सड़कें हैं। बड़े-बड़े कारखाने हैं जिनकी चिमनियों से धुआँ निकलता रहता है। वाहनों की ध्वनियाँ होती रहती हैं। सब लोग अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। गाड़ियों की भरमार है। वर्षा आने न आने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। गर्मी से बचने के लिए वर्षा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती क्योंकि यहाँ कूलर व ए०सी० जैसे आधुनिक साधन उपलब्ध हैं। यहाँ लोग रात को देर तक जागते हैं और प्रातःकाल में देर से उठने के आदी हो चुके हैं। यहाँ गाँवों की अपेक्षा प्रदूषण अत्यधिक है।

यह भी जानें-

प्रभातियाँ मुख्य रूप से बच्चों को जगाने के लिए गाई जाती हैं। प्रभाती में सूर्योदय से कुछ समय पूर्व से लेकर कुछ समय बाद तक का वर्णन होता है। प्रभातियों का भावक्षेत्र व्यापक और यथार्थ के अधिक निकट होता है। प्रभातियों या जागरण गीतों में केवल सुकोमल भावनाएँ ही नहीं वरन् वीरता, साहस और उत्साह की बातें भी कही जाती हैं। कुछ कवियों ने प्रभातियों में राष्ट्रीय चेतना और विकास की भावना पिरोने का प्रयास किया है।

श्री शंभूदयाल सक्सेना द्वारा रचित एक प्रभाती
पलकें, खोलो, रैन सिरानी।
बाबा चले खेत को हल ले सखियाँ भरती पानी ॥
बहुएँ घर-घर छाछ बिलोतीं गातीं गीत मथानी।
चरखे के संग गुन-गुन करती सूत कातती नानी ॥
मंगल गाती चील चिरैया आस्मान फहरानी।
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी ॥
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी।।
आलस छोड़ो, उठो न सुखदे! मैं तब मोल बिकानी।।
पलकें खोलो हे कल्याणी।।

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