फेडरल रिजर्व ने लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में की 25% तक कटौती, आरबीआई पर बढ़ा दबाव
हाईलाइट्स
Fed Rate Cut: अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में कटौती की है. उसने ब्याज दरों में करीब 25 बेसिस प्वाइंट या 0.25% कटौती करने का ऐलान किया है. इसी के साथ ब्याज दर 4.5%-4.75% से घटकर 4.25%-4.5% के स्तर पर पहुंच गई है. फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने यह फैसला फेडरल ओपन मार्केट समिति की मंगलवार से शुरू हुई बैठक में लिया है.
पिछले चार महीने में 1% घट गई ब्याज दर
इससे पहले फेडरल रिजर्व ने सितंबर 2024 में ब्याज दरों में करीब 50 बेसिस प्वाइंट या 0.50% कटौती की थी. पिछले चार सालों के दौरान सितंबर में फेडरल रिजर्व ने पहली बार ब्याज दरों में कटौती की थी. इसके बाद उसने नंवबर 2024 में भी करीब 25 बेसिस प्वाइंट या 0.25% फीसदी कटौती की थी. पिछले चार महीनों के दौरान अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में करीब 1% कटौती की है. फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में कटौती करने के बाद अब आरबीआई पर भी दबाव बढ़ गया है.
ब्याज दर में कटौती होते शेयर बाजार गिरा
फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में कटौती करने का ऐलान करने के साथ ही अमेरिकी शेयर बाजार गिर गए. इधर, भारतीय शेयर बाजार में गुरुवार 19 दिसंबर को तेज गिरावट दर्ज की गई. बीएसई सेंसेक्स 1,153.17 अंक गिरकर 79,029.03 अंक और एनएसई के निफ्टी ने भी 277.70 अंक की गिरावट के साथ 23,921.15 अंक पर अपने कामकाज की शुरुआत की.
ब्याज दरों में कटौती का क्या है कारण
- आर्थिक मंदी का खतरा: हाल के महीनों में अमेरिका में उपभोक्ता खर्च और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है.
- वैश्विक अनिश्चितता: अंतरराष्ट्रीय व्यापार में तनाव और अन्य वैश्विक कारकों ने भी इस निर्णय को प्रभावित किया.
- बेरोजगारी: श्रम बाजार में सुधार की धीमी गति ने फेड को ब्याज दरों को घटाने के लिए प्रेरित किया.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर
- फेडरल रिजर्व की इस कटौती का भारत समेत उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं पर भी प्रभाव पड़ेगा
- भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की वापसी की संभावना है.
- रुपये पर दबाव कम होने की उम्मीद है.
- भारत के निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में अतिरिक्त मांग का लाभ मिल सकता है.
फेडरल रिजर्व का आगे कैसा रहेगा रुख
फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि आगे के निर्णय आर्थिक आंकड़ों और वित्तीय स्थिरता पर निर्भर करेंगे. अगर आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो ब्याज दरों में और कटौती की संभावना बनी रह सकती है. यह निर्णय निवेशकों और उपभोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है, क्योंकि यह बताता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए नीतिगत उपायों की आवश्यकता है.
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आरबीआई पर बढ़ेगा ब्याज दर घटाने का दबाव
फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दर में कटौती करने के बाद अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पर भी ब्याज दर घटाने का दबाव बढ़ेगा. आरबीआई ने दिसंबर की शुरुआत में लगातार 11वीं बार इंटरेस्ट रेट में बदलाव नहीं किया. रेपो रेट 6.5 फीसदी पर बना हुआ है. अब माना जा रहा है कि आरबीआई फरवरी में होने वाली मौद्रिक नीति समिति की बैठक में ब्याज दरों में कटौती कर सकता है. आरबीआई पहले ही कह चुका है कि उसकी नजरें खुदरा महंगाई पर बनी हुई है. ब्याज दर घटाने से पहले वह खुदरा महंगाई पर ध्यान रखेगा.
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