प्रमुख राष्ट्रीय पर्व – गणतन्त्र दिवस

प्रमुख राष्ट्रीय पर्व – गणतन्त्र दिवस

          देश के गणमान्य राजनीतिक नेताओं, मनीषियों तथा देशभक्तों ने मिलकर अखिल भारतीय कांग्रेस के सन् १९२९ के लाहौर वाले अधिवेशन में २६ जनवरी को सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया था कि “पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करना ही हमारा ध्येय है।” पवित्र सलिला रावी के पुनीत तीर पर समस्त देशभक्तों ने यह प्रतिज्ञा की थी कि जब तक हम पूर्ण स्वराज्य प्राप्त नहीं कर लेंगे तब तक न शान्ति से बैठेंगे और न शत्रु को बैठने देंगे। तभी से निरन्तर यह दिन स्वराज्य दिवस के नाम से देश के कौने-कौने में मनाया जा रहा था। इस दिन संभायें होती थीं, जुलूस निकाले जाते थे, राष्ट्रीय ध्वजवन्दन होता था, देशभक्तिपूर्ण वीरों के भाषण होते थे, और वही पुरातन प्रतिज्ञा फिर से दोहराई जाती थी। इस दिन शताब्दियों की दासता की श्रृंखला से दुःखी भारतीय एक स्वर से बलिदान की प्रतिज्ञा करते तथा उत्साह से उनके वक्ष फूल उठते थे। यह वही दिन है, जिस दिन देशभक्तों की धर-पकड़ होती, डन्डे पड़ते और वे  जेलों में भर दिये जाते थे, केवल इसीलिए कि वे अपने देश की स्वतन्त्रता चाहते थे। परन्तु गौरांग शासकों को यह सब कुछ सह्य नहीं था, वे इस पवित्र दिवस को मनाने पर प्रतिबन्ध लगाते, जुलूस व सभाओं को अवैध घोषित करते, प्रतिबन्ध तोड़ने पर स्वतन्त्रता के दीवानों को अनन्त यातनायें सहनी पड़ती थीं। परन्तु भारतीय अपने कर्त्तव्य पथ पर अडिग रहे, भयानक से भयानक प्रभंजन उन्हें अपने पथ से विचलित न कर सके। उसी अविचल देशभक्ति का परिणाम है कि हम आज स्वतन्त्र हैं, हमारी भाषा, हमारी संस्कृति, हमारा धर्म और सभ्यता देश के उन्मुक्त स्वतन्त्र वातावरण में श्वाँस ले रही है। जिस स्वतन्त्रता रूपी वृक्ष का बीजारोपण आज से लगभग एक शताब्दी पूर्व लोकमान्य तिलक और गोखले आदि महापुरुषों ने किया था, आज वही वृक्ष अपने अनुपम सौरभ से दिग्दिगन्तों को सुरभित करते हुए पल्लवित पुष्पित होता हुआ फलभारावनत हो रहा है।
          सन् १९५० में जब भारतीय संविधान बनकर तैयार हो गया, तब यह विचार किया गया कि किस तिथि से इसे भारतवर्ष में लागू किया जाये। अनेक विचार-विमर्श के पश्चात् २६ जनवरी ही उसके लिये अधिक उपयुक्त तिथि समझी गई। अतः २६ जनवरी, १९५० को भारतवर्ष सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न गणतन्त्र घोषित कर दिया गया। देश का शासन पूर्ण रूप से देशवासियों के हाथों में आया। प्रत्येक नागरिक अपने देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व को अनुभव करने लगा। देश के अभ्युत्थान और उसकी मान-मर्यादा की रक्षा को प्रत्येक व्यक्ति अपनी मान-मर्यादा और अभ्
समझने लगा। देश के इतिहास में वास्तव में यह दिन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। आज ही तो विदेशी मेघ-मालाओं को विदीर्ण करता हुआ भारत का सूर्य अपने पूर्ण शौर्य के साथ दैदीप्यमान हुआ था।
          भारतीय संविधान में २२ भाग, ७ अनुसूचियाँ तथा ३९५ अनुच्छेद हैं । संविधान में यह स्पष्ट है कि भारत समस्त राज्यों का एक संघ होगा, जिसके अन्तर्गत चार प्रकार के राज्य होंगे इनमें प्रथम प्रकार के वे राज्य हैं, जो अब तक ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत प्रान्तों के नाम से प्रसिद्ध थे, जैसे—बम्बई, उत्तर प्रदेश, मद्रास, बिहार आदि । दूसरे प्रकार के वे राज्य हैं, जो देशी राज्यों के विलीनीकरण से बने हैं, जैसे हैदराबाद, मैसूर आदि । तीसरे प्रकार के वे राज्य हैं, जो परिस्थिति विशेष से बने थे जैसे दिल्ली, हिमाचल प्रदेश आदि । चौथे प्रकार के राज्य अण्डमान और निकोबार द्वीप हैं। भारतीय संविधान में सभी भारतीय नागरिकों के अधिकार और स्वत्व की रक्षा का वचन दिया गया है। लोकतन्त्रात्मक परम्पराओं के निर्वाह की पूर्ण रूप से व्यवस्था की गई है और इस प्रकार भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता की अडिग शिला पर दृढ़ता से आधारित है।
          २६ जनवरी अपने राष्ट्र का एक पुनीत पर्व है। अनन्त बलिदानों की पावन स्मृति लेकर यह दिन हमारे समक्ष उपस्थित होता है। कितने वीर भारतीयों ने देश की बलिवेदी पर अपने प्राणों को हँसते-हँसते चढ़ा दिया। कितनी माताओं ने अपनी गोदी की शोभा, कितनी पत्नियों ने अपनी माँग का सिन्दूर और कितनी बहिनों ने अपना रक्षा बन्धन का त्यौहार हँसते-हँसते स्वतन्त्रता संग्राम की भेंट कर दिया, वह सहज में ही हमें इस पवित्र पर्व पर स्मरण हो जाता है। आज के दिन हम उन अमर शहीदों को अपनी श्रद्धांजलियाँ अर्पित करते हैं। गणतन्त्र दिवस समस्त देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में इस दिन की शोभा अनुपम होती है। देश के भिन्न भिन्न अंचलों से इस दिन शोभा देखने के लिये लोग उमड़ पड़ते हैं। हर वर्ष विश्व का. कोई न कोई महान् व्यक्ति इस अनुपम दृश्य को देखने के लिए दिल्ली पधारता है। २६ जनवरी को इण्डिया गेट के मैदान में जल, स्थल और वायु सेना की टुकड़ियाँ राष्ट्रपति को सलामी देती हैं । ३१ तोपें दागी जाती हैं। सैनिक वाद्य बजते हैं और राष्ट्रपति अपने भाषण में राष्ट्र को कल्याणकारी सन्देश देते हैं। भिन्न-भिन्न राज्यों की मनोहारी झाँकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं । रात्रि को समस्त राजधानी विद्युत द्वीपों के प्रकाश से एक बार फिर जगमगा उठती है। देश के अन्य समस्त अंचलों में भी इस प्रकार इस पावन समारोह का आयोजन किया जाता है। खेल तमाशे, सजावट, सभाएं, भाषण, रोशनी, कवि सम्मेलन, वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि अनेक प्रकार के आयोजन सर्वत्र सम्पन्न होते हैं। जनता तथा सरकार दोनों ही मंगल पर्व को मनाते हैं। सम्पूर्ण देश में प्रसन्नता और आनन्द की लहर दौड़ जाती है । ।
          वास्तव में २६ जनवरी एक महिमामयी तिथि है । इसके पीछे भारतीय आत्मा के त्याग, तपस्या और बलिदान की अमर कहानी निहित है, जो सदैव भावी सन्तति एक अमर सन्देश दे प्रेरणा का अक्षुण्ण स्रोत बहाती रहेगी। भारतीय इतिहास में यह दिन स्वर्ण अक्षरों में उल्लिखित होगा। प्रत्येक भारतीय का यह परम कर्तव्य है कि वह इस पर्व को अधिकाधिक उल्लास और आह्लाद के साथ मनाये और अनन्त प्रयास के फलस्वरूप प्राप्त स्वतन्त्रता का अक्षुण्ण बना के लिए कटिबद्ध रहे । परन्तु स्वतन्त्रता की अक्षुण्णता के लिये यह आवश्यक होगा कि हम पारस्परिक भेदभाव को छोड़कर सहयोग और ऐक्य में विश्वास करें, अज्ञानान्धकार से निकलकर ज्ञान के प्रकाशपूर्ण मार्ग पर अग्रसर हों, तभी हम इस महिमामयी तिथि की मान-मर्यादा की रक्षा कर सकेंगे ।
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