प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की पाँच सूत्रीय कार्य योजना
प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की पाँच सूत्रीय कार्य योजना
हर कार्य की सफलता और उससे प्राप्त समृद्धि के लिये एक निश्चित व्यवस्था के अनुरूप और अनुकूल चलना होता है। रूस जब स्वतन्त्र हुआ तब वहाँ नेतृत्व के आगे प्रश्न था कि देश को कैसे आगे बढ़ाया जाये। तब वहाँ के नेतृत्व ने पंचवर्षीय योजनायें प्रारम्भ की कि हमें पाँच वर्ष में इस दिशा में इतना काम करना है। भारत जब स्वतन्त्र हुआ तब पं० जवाहर लाल नेहरू ने रूस की पद्धति पर देश में पंचवर्षीय योजनाओं को जन्म दिया। प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि और भारी उद्योगों को प्रधानता दी गई। योजना और क्रियान्वयन ये ही सफलता की कुंजी कही जाती है ।
इन्दिरा जी ने भी लक्ष्य प्राप्ति के बीस सूत्रीय कार्यक्रम चलाया और सफल भी हुआ। उनका लक्ष्य था “गरीबी हटाओ।” योजनायें भी चलती रहीं और बीस सूत्रीय कार्यक्रम भी चलता रहा। स्वर्गीय संजय गाँधी ने भी पंच सूत्रीय कार्यक्रम प्रारम्भ किया। अरबों पेड़ लगाये गये और उन्होंने देश को रेगिस्तान होने से बचा लिया । इसी प्रकार १२वीं लोकसभा के नव नियुक्त प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने प्रथम उद्गारों में यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी प्राथमिकतायें और योजनायें क्या हैं। अपनी पाँच सूत्रीय कार्य योजना के बारे में जनता को उद्बोधन करते हुए कहा –
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आज घोषणा की कि उनकी साझा सरकार अर्थ व्यवस्था के आंतरिक उदारीकरण पर तेजी से पहल करेगी, ऊर्जा क्षेत्र में राज्यों को १५०० करोड़ रुपये तक प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति देगी और एक नयी कार्य संस्कृति पैदा करने का प्रयास करेगी। उन्होंने दस सालों में अनाज का उत्पादन दुगुना करने, राष्ट्रीय जल नीति बनाने, देश को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक विश्व शक्ति बनाने, बुनियादी आर्थिक ढाँचे – जिसमें ऊर्जा, सड़क, यातायात, दूरसंचार और वित्तीय सेवायें शामिल हैं, में सुधार करने तथा पेयजल, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य रक्षा और स्वच्छता के स्तर में सुधार आदि से संबंधित अपनी सरकार की पाँच सूत्रीय योजना की पूर्ति की वचनबद्धता व्यक्त की ।
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार पड़ोसी देशों की भावनाओं और आवश्यकताओं पर पहले से ज्यादा ध्यान रखेगी और उनके साथ संबंध सुधारने के लिये हर संभव प्रयास करेगी।
श्री वाजपेयी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से पड़ोसी देशों के संबंधों में सुधार हुआ है और सरकार इस प्रक्रिया को तेज करने का पूरा प्रयास करेगी। उन्होंने कहा हमने तय किया है कि हम सबसे दोस्ती रखेंगे क्योंकि हम सबसे बड़े देश हैं ।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब कभी भी इस्लामाबाद के साथ संबंधों में सुधार की इंचमात्र भी संभावना बनी तो उनकी सरकार एक कदम आगे जाकर उस अवसर का उपयोग करेगी ।
उन्होंने कहा कि मैं मानता हूँ कि एक संपन्न और प्रसन्न पाकिस्तान इस महाद्वीप विशेष रूप से भारत के लिये लाभदायक होगा ।
भारत-पाक संबंधों का जिक्र करते हुए वाजपेयी ने कहा कि हमारे संबंध अनावश्यक तनावों के कारण बिगड़ रहे हैं और आज भी सामान्य नहीं हुये हैं। लेकिन हमारी जिंदगियाँ एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुयीं हैं।
प्रधानमंत्री ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रस्तावों की मंजूरी संबंधी नीति में भारी बदलाव के संकेत दिए हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार जल्दी ही कानूनी और प्रशासनिक परिवर्तन के तरीके निकालेगी जिससे राज्यों में ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के लिए सीधे निर्णय किये जा सकें। गौरतलब है कि अभी तक विदेशी निवेश के प्रस्तावों पर विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) और रिजर्व बैंक के स्तर पर फैसला होता रहा है। सरकार के इस फैसले के बाद यह अधिकार सीधे राज्यों को प्राप्त हो जाएगा।
देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह में वृद्धि के उद्देश्य से पिछली सरकार ने इसके विकेंद्रीकरण की बहस शुरू की थी। तत्कालीन उद्योग मंत्री मुरासोली मारन ने इस तरह का कदम उठाने की दिशा में एफआईपीबी को समाप्त करने तक का सुझाव दिया था। उनका सुझाव था कि बुनियादी ढांचागत क्षेत्रों से संबंधित परियोजनाओं में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अधिकार राज्यों को दे दिए जाएँ। मौजूदा सरकार सरकारिया आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए इस सुझाव को मूर्त रूप देने पर विचार कर रही है ।
प्रधानमन्त्री ने आज अपने भाषण में कहा भी है कि वे विशेष रूप से राज्यों के हाथ में वित्तीय और प्रशासनिक पहल सौंपने के बारे में उत्सुक हैं। जैसे लाइसेंस-कोटा राज ने व्यक्तियों की प्रेरणा और पहल का दम घोट दिया वैसे ही निर्णय के अधिकारों के केंद्रीयकरण और दिल्ली के कार्यकलापों ने सभी स्तरों पर प्रशासन की पहल और प्रेरणा को निचोड़ डाला ।
प्रधानमन्त्री का मानना है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बारे में केन्द्र सरकार का काम सिर्फ दिशा-निर्देश की रूप रेखा तय कर देना है। अगर प्रस्ताव दिशा-निर्देश के दायरे में है तो परियोजना से संबंधित निर्णय राज्यों के अधिकार क्षेत्र में होगा। उन्होंने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि मुख्यमंत्री और उनके साथी मंत्रियों को रोजमर्रा की मंजूरियों के लिए आए दिन दिल्ली न दौड़ना पड़े।
पेटेंट के मुद्दे पर वाजपेयी का मानना है कि विश्व व्यापार संगठन के नए तंत्र से डरते रहने और हतबल हो जाने की जरूरत नहीं है । यह सही है कि हमें हल्दी और बासमती जैसी खास भारतीय मूल की चीजों के विदेशों में पेटेंट किए जाने के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। लेकिन इसका सही इलाज उन तमाम तरह की पहल करने से ही हो सकता है जिससे भारत और भारतीय दूसरों के साथ जुड़ कर विश्व स्तर के पेटेंट प्राप्त करने की बाजी मार सकते हैं। वाजपेयी ने दावा किया कि उनकी सरकार इस नई व्यवस्था को इस नजरिए से देखेगी । प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार विदेशों में प्रतिभावान भारतीयों को स्वदेश वापस लाने और राष्ट्र के नवनिर्माण में हाथ बटाने के लिये उत्प्रेरित करेगी और तद्नुरूप एक नयी कार्य संस्कृति का निर्माण करेगी ।
प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में श्री वाजपेयी ने केन्द्र और राज्यों के आपसी संबंधों को बेहतर बनाने, सर्वाधिक गरीब बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा देने, महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने का संकल्प व्यक्त किया ।
श्री वाजपेयी ने देश में सभी वर्गों से सरकार के इस पाँच सूत्रीय कार्यक्रम में पूरा सहयोग देने की अपील करते हुए कहा कि वे इस पवित्र राष्ट्रीय मिशन में अपने मेहनतकश किसानों, मजदूरों, अध्यापकों, सरकारी कर्मचारियों, वकीलों, डाक्टरों, इंजीनियरों, व्यापारियों, व्यवसाइयों और बाकी सभी पेशों के लोगों की सक्रिय भागीदारी के लिए आमंत्रित करते हैं। उन्होंने कहा कि खासकर इस समाज के सबसे कमजोर वर्ग के गरीब लोगों को इस अभियान में भागीदारी करने के लिए तैयार करना हमारा विशेष उद्देश्य होगा।
श्री वाजपेयी ने इस बात की निहायत आवश्यकता बतायी कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की नाव को ज्यादा मजबूत और ज्यादा दमदार बनाना चाहिये। उन्होंने मिल-जुलकर गरीबी, बेरोजगारी तथा अन्य चुनौतियों का मुकाबला करने का आह्वान करते हुए कहा कि अगर हम सब एक-दूसरे का रास्ता ही रोकते रहेंगे तो देश आगे कैसे बढ़ेगा? इस विध्वंसक आदत को हम छोड़ दें ।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि वाजपेयी जी की योजनाओं को जनता का और सर्वदलीय हार्दिक समर्थन मिला तो देश आगे बढ़ेगा, विश्व बाजार में उसकी साख बढ़ेगी और भारत गौरव के शिखर पर पहुँचेगा। मार्ग में कितने की काँटे आयें परन्तु वाजपेयी जी में उन्हें सहने की और उन पर विजय प्राप्त करने की क्षमता है, सामर्थ्य है, और पारदर्शी विवेक है। सत्य ही कहा है –
“कष्टः फलेन हि पुनर्नवतां विधत्ते”
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