प्रदूषण और पर्यावरण

प्रदूषण और पर्यावरण

          मनुष्य पर्यावरण की उपज होती है, अर्थात् मानव जीवन को पर्यावरण की परिस्थितियाँ व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं। पृथ्वी के समस्त प्राणी अपनी बुद्धि व जीवन क्रम को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए ‘सन्तुलित पर्यावरण पर निर्भर रहते हैं। सन्तुलित पर्यावरण में सभी तत्व एक निश्चित अनुपात में विद्यमान होते तत्वों की मात्रा अपने निश्चित अनुपात से बढ़ जाती है, या पर्यावरण में विषैल तत्वों का समावेश हो जाता है तो वह पर्यावरण प्राणियों के जीवन के लिए घातक बन जाता है। पर्यावरण में होने वाले इस घातक परिवर्तन को ही प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है।
          वास्तव में प्रदूषण जलवायु या भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन है, जिससे मनुष्य, अन्य जीवों, औद्योगिक प्रक्रियाओं, सांस्कृतिक तत्वों तथा प्राकृतिक संसाधनों को हानि हो या होने की सम्भावना हो । प्रदूषण में वृद्धि का कारण मनुष्य द्वारा वस्तुओं के प्रयोग करने के बाद फेंक देने की प्रवृत्ति और मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण आवश्यकताओं में वृद्धि है। दूसरे शब्दों में प्रदूषण के सभी पदार्थ और ऊर्जा हैं, जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में मनुष्य के स्वास्थ्य और उसके संसाधनों को हानि पहुँचाते हैं । इस प्रकार प्रदूषण मनुष्य की वांछित गतिविधियों का अवांछनीय प्रभाव है।
          प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण प्रमुख हैं। वायु प्रदूषण सबसे अधिक व्यापक व हानिकारक है। वायुमण्डल में विभिन्न गैसों की मात्रा लगभग निश्चित रहती है और अधिकांशतः ऑक्सीजन और नाइट्रोजन ही होती है। श्वसन, अपघटन और सक्रिय ज्वालामुखियों से उत्पन्न गैसों के अतिरिक्त, हानिकारक गैसों की सर्वाधिक मात्रा मनुष्य के कार्य-कलापों से उत्पन्न होती है। इनमें लकड़ी, कोयले, खनिज तेल तथा कार्बनिक पदार्थों के ज्वलन का सर्वाधिक योगदान रहता है । औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाली सल्फर डाइ ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड गैसें वायुमण्डल में पहुँचकर पुनः वर्षा के जल के साथ घुलकर पृथ्वी पर पहुँचती हैं और गन्धक का अम्ल बनाती हैं, जो प्राणियों और अन्य पदार्थों को कांफी हानि पहुँचाता है। नाइट्रोजन ऑक्साइड जल से मिलकर अम्लीय स्थिति उत्पन्न करती है। इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रदूषण प्रभाव स्माग के रूप में होता है। स्माग धुंआ और कोहरे के मिलने से बनता है। इससे कम ताप वाले प्रदेशों के प्राणियों को काफी क्षति पहुँचती हैं। वायु प्रदूषकों में क्लोराइड का भी प्रमुख स्थान है। ये गैसीय पदार्थ एलूमिनियम के कारखानों में सर्वाधिक मात्रा में पाये जाते हैं। पौधों पर इसका प्रभाव पत्तियों को नष्ट करने के रूप में होता है। इसके अतिरिक्त भूसे और चारे के साथ जली हुई पत्तियाँ पशुओं के पेट में पहुँचने पर अत्यन्त घातक सिद्ध होती हैं। इसके साथ ही कीटनाशक, शाकनाशक, जीवनाशक, रसायनों निकल टाइटेनियम, बेरीलियम, टिन, आर्सेनिक, पारा, सीसा आदि के कार्बनिक यौगिकों के कण भी वायु में रहते हैं। इनका घातक प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ता है। सामान्य प्रभाव एलर्जी उत्पन्न करता है, जिसका कोई विशेष उपचार नहीं हो पाता। अन्य प्रभावों में फेफड़ों के रोग अधिक पाये जाते हैं।
          मनुष्य, पौधों और प्राणियों को रोग से बचाने के लिए और हानिकारक जीवों के विनाश के लिए अनेकानेक रसायनों का प्रयोग कर रहा है। उद्योगों में भी असंख्य रसायनों के प्रयोग में वृद्धि हो रही है, जो तत्व कभी पर्यावरण में विद्यमान नहीं थे, ऐसे सैंकड़ों रसायन मनुष्य प्रति वर्ष संश्लेषित कर रहा है। विगत दशकों में डी० डी० टी० और इसके समान अन्य रसायनों का विकास और विस्तार तेजी से हुआ है और शीघ्र ही इसके घातक परिणाम भी हमारे सामने आ गये हैं।
          जल सभी प्राणियों के जीवन के लिए एक अनिवार्य वस्तु है। पेड़ पौधे भी आवश्यक पोषक तत्व जल से ही घुली अवस्था में ग्रहण करते हैं। जल में अनेक कार्बनिक, अकार्बनिक पदार्थ, खनिज तत्व व गैसें घुली होती हैं। यदि इन तत्वों की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो जल हानिकारक हो जाता है और उसे हम प्रदूषित जल कहते हैं । जल का प्रदूषण अनेक प्रकार से हो सकता है। पीने योग्य जल का प्रदूषण रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु, विषाणु, कल-कारखानों से निकले हुए वर्जित पदार्थ, कीट-नाशक पदार्थ व रासायनिक खाद से हो सकता है । ऐसे जल के उपयोग से पीलिया, आँतों के रोग व अन्य संक्रामक रोग हो जाते हैं। दिल्ली, कानपुर, वाराणसी आदि महानगरों में भारी मात्रा में गन्दे पदार्थ नदियों के पानी में प्रवाहित किये जाते हैं, जिससे इन नदियों का जल प्रदूषित होकर हानिकारक बनता जा रहा है ।
          महानगरों में अनेक प्रकार के वाहन, लाउडस्पीकर, बाजे एवं औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के शोर ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया । ध्वनि प्रदूषण से केवल मनुष्य की श्रवणशक्ति का ह्रास होता है, वरन् उसके मस्तिष्क पर भी इसका घातक प्रभाव पड़ता है। परमाणु शक्ति उत्पादन व नाभकीय विखण्डन ने वायु, जल व ध्वनि तीनों प्रदूषणों को काफी विस्तार दे दिया है। इसके घातक परिणाम न केवल वर्तमान प्राणियों को वरन् उसकी भावी पीढ़ियों को भी भुगतने पड़ेंगे ।
          इस प्रकार हम देखते हैं कि आधुनिक युग में प्रदूषण की समस्या अत्यधिक भयंकर रूप धारण करती जा रही है। यदि इस समस्या का निराकरण समय रहते न किया गया, तो एक दिन ऐसा आयेगा, जबकि प्रदूषण की समस्या सम्पूर्ण मानव जाति को निगल जायेगी । अतः प्रदूषण से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों पर अमल करना आवश्यक है—
(१) वृक्षारोपण का कार्यक्रम तेजी से चलाया जाये और भारी संख्या में नये वृक्ष लगाये जायें ।
(२) वनों के विनाश पर रोक लगायी जाये ।
(३) बस्ती व नगर के समस्त वर्जित पदार्थों के निष्कासन के लिए सुदूर स्थान पर समुचित व्यवस्था की जाये ।
(४) बस्ती व नगर में स्वच्छता व सफाई की ओर विशेष ध्यान दिया जाये ।
(५) पेय जल की शुद्धता की ओर विशेष ध्यान दिया जाये ।
(६) परमाणु विस्फोटों (अहमदाबाद ) पर पूर्णतः नियन्त्रण लगाया जाये ।
          हमारे देश में सरकार ने प्रदूषण की समस्या के निराकरण के लिए अनेक उपाय किये हैं। केन्द्रीय जन स्वास्थ्य इंजीनियरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने जल व वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अनेक बहुमूल्य सुझाव दिये हैं, जिन पर तेजी के साथ अमल भी किया जा रहा है कारखानों एवं खानों में प्रदूषण रोकने के उपायों की खोज में औद्योगिक विष विज्ञान संस्थान (लखनऊ) और राष्ट्रीय संस्थान (अहमदाबाद) विशेष रूप से प्रयत्नशील हैं । ।
          १९८८ के मध्य भारत सरकार ने सभी राज्य सरकारों को स्पष्ट कड़े निर्देश दिये हैं कि प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों में ट्रीटमेंट प्लान्ट लगवाये जायें । प्रदेश सरकारों ने प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए उन्हें एक मास के भीतर ट्रीटमेंट प्लान्ट लगाने के निर्देश दिये हैं। अगर एक माह के भीतर ट्रीटमेंट प्लान्ट नहीं लगाये गये तो अगली कार्यवाही में उन पर जुर्माना किया जायेगा । केन्द्र सरकार के प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने १९८८ के प्रारम्भ में ही ऐसी फैक्ट्रियों की लिस्ट जो प्रदूषण फैला रही हैं, मंगा ली थी । इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत सरकार देश में प्रदूषण रोकने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयत्नशील है।
          वैज्ञानिकों का मत है कि गंगाजल में भी कैंसर पैदा करने वाले तत्व पाये गये हैं। उनका विचार है कि नरौरा परमाणु बिजली घर चालू हो जाने के बाद गंगा में रेडियोधर्मिता का खतरा बढ़ जायेगा ।
          गंगा एक्शन प्लान के अन्तर्गत कार्य करने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इन सम्भावित खतरों के प्रति सतर्क हैं और वे गंगाजल की रेडियोधर्मिता का पता लगा रहे हैं। इसके साथ-साथ गंगाजल में कैंसर पैदा करने वाले तत्व भी पाये जाते हैं।
          गंगा सफाई योजना के अन्तर्गत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने एक योजना प्रस्तुत की थी। इसकी केन्द्र सरकार ने स्वीकति प्रदान करते हुए योजना के लिए ३५ लाख रुपये दिये और इसकी अवधि तीन वर्ष निर्धारित की। योजना के अन्तर्गत विश्वविद्यालय जीव विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, वनस्पति, रसायन विभाग के विभागों सहित इंजीनियरिंग कालेज के अनेक वैज्ञानिक ! अपने-अपने विषयों पर शोध कार्य कर रहे हैं।
          अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इन समस्त विभागों को अध्ययन के लिए नरौरा से कन्नौज तक का क्षेत्र सौंपा गया है। उन्होंने अध्ययन की सुविधा के लिए सम्पूर्ण क्षेत्र को चार भागों में बाँटा है और नरौरा, कछला, फतेहगढ़ तथा कन्नौज में अध्ययन केन्द्र बनाये गये हैं। जहाँ से गंगाजल के नियमित सैम्पिल लेकर उनका रासायनिक व अन्य प्रकार से विश्लेषण कर तथ्यों को एकत्रित किया जाता है ।
          अब तक एक वर्ष के दौरान किये गये अध्ययन से स्पष्ट होता है कि नरौरा में कन्नौज तक के अधिग्रहण क्षेत्र में कोई भी नाला या फिर औद्योगिक इकाई ऐसी नहीं है जो दूषित जल को गंगा में प्रवाहित करती हो। इस सम्पूर्ण क्षेत्र में गंगाजल का प्रदूषण किसानों द्वारा फसलों में प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशकों और रासायनिक खादों से होता है ।
          किसान फसल बढ़ाने के लिए उक्त दोनों का प्रयोग सही जानकारी न होने के कारण निर्धारित मात्रा से अधिक करता है। वर्षा होने पर खेत में भरे पानी के साथ बहकर यह रसायन गंगा के पानी में जाकर मिल जाते हैं। इसके साथ-साथ गंगा में मिलने वाली अनेक बरसाती नदियाँ भी इसी प्रकार के रसायनों को बहाकर लाती हैं और इस प्रकार गंगाजल में हानिकारक रसायनों की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है। ऐसे रसायनों में एक्मलाई सिगला फालमोनला आदि हैं। इसके अतिरिक्त गंगाजल में कैंसर पैदा करने वाले रसायन, मट्रोजिन्स, मासी मोजन्स आदि भी पाये गये हैं, किन्तु इनकी मात्रा बहुत कम है ।
          वैज्ञानिक गंगाजल की रेडियोधर्मिता का भी अध्ययन करे रहे हैं । यद्यपि यह विषय गंगा सफाई अभियान में शामिल नहीं किया गया है। किन्तु नरौरा में परमाणु विद्युत गृह बनने और आगामी कुछ माह में उसके चालू होने से रेडियोधर्मिता की सम्भावनायें बढ़ गई हैं। गंगा एक्शन प्लान में लगे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय रसायन विभाग के डा० मसूद अहमद ने बताया कि वैज्ञानिक प्रत्येक सीमा से परे होता है और उसका वास्तविक उद्देश्य यही होता है कि वह अपने शोध में समस्याओं के प्रत्येक पहलू पर विचार कर सही बात को उजागर करे ।
          बताया जाता है कि नरौरा परमाणु बिजली घर में रेडियोधर्मिता के खतरों से निपटने के लिए हर संभव उपाय किये गये हैं किन्तु फिर भी खतरे की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता । विद्युत गृह में कुछ ऐसा निषेध क्षेत्र है जहाँ गंगा एक्शन प्लान के अन्तर्गत कार्य करने वाले वैज्ञानिकों को विद्युत गृह के अन्दर जाने की अनुमति नहीं है । अतः यहाँ प्रयोग होने वाले परमाणु ईंधन से रेडियोधर्मिता का कितना प्रभाव गंगा पर होगा इसका वास्तविक प्रतिशत ज्ञात नहीं हो सकता किन्तु वैज्ञानिकों का स्पष्ट विचार है कि इससे गंगाजल अवश्य प्रभावित होगा।
          इतना होने के बावजूद भी प्रदूषण की समस्या दिन प्रतिदिन गम्भीर, जटिल और विश्वव्यापी होती जा रही है। यद्यपि विश्व के सभी देश प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत हैं, फिर भी औद्योगिक विकास, नागरीकरण, वनों का विनाश और जनसंख्या में अतिशय वृद्धि होने के कारण यह समस्या निरन्तर गम्भीर होती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ की अनेक संस्थाओं जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व पर्यावरण संस्थान, अन्तर्राष्ट्रीयं वन्य संरक्षण संस्थान ने प्रदूषण की समस्या को हल करने के लिए अनेक उपाय किये हैं, तथापि अभी तक आशाजनक परिणाम सामने नहीं आये हैं और निकट भविष्य में भी प्रदूषण की समस्या के निराकरण और पर्यावरण की शुद्धता में के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
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