प्रजातन्त्र शासन प्रणाली

प्रजातन्त्र शासन प्रणाली

          प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली को स्पष्ट करते हुए अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि “प्रजातन्त्र वह शासन है, जिसमें जनता द्वारा जनता के हित के लिए जनता की सरकार की स्थापना की जाती हैं” (Govt. by the people of the people and for the people) | इस परिभाषा से विदित हो जाता है कि प्रजातन्त्र में जनता की सम्मति प्रधान होती है, जनता के चुने हुए व्यक्ति जनता के हित को दृष्टि में रखकर देश का शासन चलाते हैं प्रजातन्त्र शासन का आरम्भ अट्ठारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में हुआ था। पश्चिमी देशों में— सर्वप्रथम में यूनान में इस शासन प्रणाली को अपनाया गया । वहाँ उस समय दास प्रथा होने के कारण शासन तो राजा ही करता था, परन्तु देश की विभिन्न समस्याओं पर विचार करने के कारण शासन-प्रणाली में समय-समय पर सुधार करने के लिए सभ्य जनता को आमन्त्रित किया जाता था। शनैः शनै फ्रांस, स्पेन आदि देशों में राजतन्त्र समाप्त होता गया और प्रजातन्त्र की स्थापना होती गई| आज का युग प्रजातन्त्र का युग है। संसार के सभी बड़े-बड़े देशों में प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली चल रही है I
          प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली के उद्देश्य महान् एवं आदर्श हैं। शासन में जनता पूर्ण स्वतन्त्रता का उपयोग करती है। प्रजा को लिखने तथा बोलने की स्वतन्त्रता, विचारों की स्वतन्त्रता, शासन की आलोचना की स्वतन्त्रता तथा धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है । प्रजातन्त्र शासन में जनता को अपने धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु वहाँ तक जहाँ तक वह दूसरे के धर्म में बाधा उपस्थित न करें शासन की आलोचना भी वहाँ तक क्षम्य है, जहाँ तक कि वह जनता में विषबीज का वपन न करे। अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए, अपील करने के लिये की भी स्वतन्त्रता नागरिकों को प्राप्त होती है । नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रजातन्त्र देश में एक शासन विधान होता है जिसे जनता के चुने हुये प्रतिनिधि बनाते हैं। विधान निर्माण में जनता के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होता है प्रजातन्त्रीय देश का शासन विधान सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है। उसकी दृष्टि में सभी एक समान होते हैं ।
          किसी भी देश में प्रजातन्त्र की सफलता के लिए कुछ बातें आवश्यक होती हैं प्रथम तो यह कि देश की जनता सुशिक्षित होनी चाहिये । जिसे अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों का पूर्ण रूप से ज्ञान हो । अशिक्षित देश में प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली के संचालन में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। धनवान पैसों के सहारे जनता की वोटों को खरीद लेते हैं और पदासीन होकर देश को उन्नति की अपेक्षा अवनति की ओर घसीटते हैं। दूसरी बात यह है कि देश में कई राजनैतिक दल होने चाहियें। जिससे सत्तारूढ़ दल अपनी मनमानी न कर सके। विरोधियों की कटु आलोचना के भय से सत्तारूढ़ दल किसी भी अनुचित नीति को नहीं अपनाता । तीसरी बात यह है कि देश में समाचार-पत्र भी पर्याप्त संख्या में प्रकाशित होने चाहियें तथा उन्हें जनमत के प्रशासन की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिये ।
          प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली के अनेक लाभ हैं । प्रजातन्त्र शासन में राज्य की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्व दिया जाता है। राज्य व्यक्ति के विकास के लिये पूर्ण अवसर प्रदान करता है अर्थात् राज्य साधन है और व्यक्ति साध्य है । प्रजातन्त्र शासन में भी व्यक्ति को अधिक से अधिक स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है । वह अपने मत द्वारा किसी भी व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुन सकता है। भाषण व लेखों से जनता के समक्ष अपने विचार प्रकट करके वह उसका बहुमत प्राप्त कर सकता है। प्राचीन इतिहास पर दृष्टिपात करने से यह विदित हो जाता है कि भिन्न-भिन्न देशों में जितनी क्रान्तियाँ तथा विद्रोह हुए, वे सब इसलिए हुये कि न तो उन्हें अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतन्त्रता थी और न अपनी बात शासकों तक पहुँचाने की सुविधा, इस प्रकार अन्याय सहते-सहते जब वे असह्य हो जाते थे, तब रक्तपूर्ण क्रांतियाँ होने लगती थीं, परन्तु प्रजातन्त्र शासन में इस प्रकार का कोई भय नहीं रहता ।
          प्रजातन्त्र शासन में सरकार को प्रजा के ऊपर कम से कम शासन करने की आवश्यकता पड़ती है। सरकार जनता पर मनमाना अत्याचार नहीं कर सकती क्योंकि उसको अन्य विरोधी राजनैतिक दलों तथा समाचार पत्रों का भय बना रहता है । प्रजातन्त्र के शासन में कानून सबसे ऊपर होता है। इसीलिए उसे कानून का शासन कहा जाता ।
          प्रजातन्त्र शासन में जनता प्रत्यक्ष रूप में शासन नहीं करती, अपितु जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है। चुनाव में जिस दल का बहुमत होता है, उसी दल का नेता अपना मन्त्रिमण्डल बनाता । मन्त्रिमण्डल संसद के सामने उत्तरदायी होता है और यह तब तक सत्तारूढ़ रहता है, जब तक संसद से उसे बहुमत प्राप्त रहता है। जब किसी दल का संसद में बहुमत नहीं रहता, तब उसे मन्त्रिमण्डल से त्याग-पत्र देना पड़ता है। इसीलिए प्रत्येक दल इसका पूर्ण प्रयत्न करता है कि जनता उससे और उसकी नीतियों से पूर्ण सन्तुष्ट रहे । इस प्रकार प्रजातन्त्र शासन में जनता की इच्छा का प्रत्येक विषय में पूर्ण ध्यान रखा जाता है।
          राजनीतिशास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान प्लेटो ने प्रजातन्त्र शासन को “मूर्खों का शासन” माना है (Democracy is the Govt. of fools) । उनका तर्क है कि संसार में मूर्खों की संख्या अधिक होती है, बुद्धिमानों की कम। बहुमत सदा मूर्खों का रहता है, इसलिए बहुमत का शासन मूर्खों का शासन है। अशिक्षित जनता को न अपने अधिकारों का ज्ञान होता है और न प्रजातन्त्र शासन के महत्व का। राजनैतिक दलों का सहारा लेकर लोग चुनाव में खड़े होते हैं, मतदाता उम्मीदवार के गुण-अवगुणों को न देखते हुए राजनैतिक दलों को वोट देते हैं। इससे अयोग्य और अप्रद व्यक्ति भी ऊपर पहुँच जाते हैं। अब प्लेटो के सिद्धान्त में कुछ सुधार होने की आवश्यकता है, अब सिद्धान्त होना चाहिये “Democracy is the Govt. roughts” जब कोई दल चुनाव में जीत जाता है, तो वह समर्थकों को प्रसन्न करने के लिए ऊँचे-ऊँचे पद प्रदान करता है तथा उनको व्यक्तिगत लाभ पहुँचाने वाली सहायतायें दी जाती हैं। इससे जनता में पक्षपात फैलता है और योग्य व्यक्तियों को अपनी योग्यताओं के सहज विकास का अवसर नहीं मिल पाता । जब एक दल का पूरा बहुमत नहीं हो पाता, तब उसे दूसरे दलों के साथ गठ-बन्धन करना पड़ता है। गठबन्धन करने में विरोधी दल वालों को अनेक सुविधायें दी जाती हैं। ऐसी अवस्था में वहाँ जल्दी-जल्दी सरकारें बदलती रहती हैं।
          प्रजातन्त्र शासन का सबसे बड़ा दोष उसकी मन्थर गति है। कोई भी कार्य शीघ्रता से सम्पन्न नहीं हो पाता। संसद में बहुत समय तक बहस चलती रहती है। इसलिए जब किसी देश में युद्ध या अन्य किसी संकट के समय तुरन्त कार्यवाही करने की आवश्यकता होती है, उस समय प्रजातन्त्र शासन की सुस्त चाल देश के लिए हानिप्रद सिद्ध होती है। इसके अतिरिक्त एक बात और भी है कि प्रजातन्त्र शासन व्यय-साध्य है। चुनाव में बहुत-सा रुपया शासन की ओर से तथा उम्मीदवारों की ओर से व्यर्थ में ही व्यय किया जाता है। संसद सदस्यों की सुख-सुविधा एवं वेतन आदि में भी देश के धन का अपव्यय होता है। इस धन को यदि देश के उत्थान में लगाया जाए, तो कुछ समय में ही देश उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है ।
          प्रजातन्त्र शासन का यह अभिप्राय कि इसमें कोई भी काम जल्दी नहीं हो पाता एक अवस्था में वरदान भी है, क्योंकि जल्दबाजी में बहुत से काम बिगड़ जाया करते हैं। जिस काम को करने से पूर्व अच्छी तरह विचार कर लिया जाता है, उसमें अशुभ होने की सम्भावना कम रहती है। विद्वानों ने कहा है कि –
“सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम् ”
          प्रजातन्त्र शासन में जहाँ थोड़े से दोष हैं, वहाँ गुण भी बहुत हैं । आज तक की शासन की सभी प्रचलित प्रणालियों में प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली सर्वश्रेष्ठ है। जहाँ शासन की बागडोर एक दो आदमियों के ही हाथ में होती है, वहाँ स्वेच्छाचारी शासन हो जाता । शोषण और अन्याय बढ़ने लगता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतवर्ष में ही प्रजातन्त्र शासन प्रणाली चल रही है और उसका पूर्णरूप से निर्वाह किया जा रहा है । प्रायः सभी शान्ति – प्रिय देश इस शासन-प्रणाली को अपनाते हैं।
          आज विश्व के सभी उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ प्रायः इस विषय में एकमत हैं कि विश्व की सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली प्रजातन्त्र ही है। इसमें मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इससे देश में परस्पर सहयोग और सहानुभूति की भावना बढ़ती है । प्रजातन्त्र की सुरक्षा के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि जनता अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे और कर्तव्यों का पूर्णरूप से पालन करे । उसे युग चेतना के प्रति सजग और सजीव रहना चाहिए। परन्तु यह मानना पड़ेगा कि प्लेटो के सिद्धान्त में कुछ सत्यता अवश्य है ।
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