पूर्व प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी का कृतित्त्व

पूर्व प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी का कृतित्त्व

          २१ मई, १९९१ को देश का दुर्भाग्य जागा और उसने एक बार फिर करवट बदली । एक बार यह दुर्भाग्य तब जागा था जब महात्मा गाँधी को प्रार्थना सभा में ही समाप्त कर दिया गया । देश हिचकियाँ भर रो उठा था, लोग कहते कि अब कौन रास्ता दिखायेगा इस समस्या भरे देश को और फिर सिर पीटने लगते । जवाहरलाल जी के समझाने-बुझाने और धैर्य देने पर जनता की हिचकियाँ रुक पायीं थीं। १८ वर्षों के बाद देश के दुर्भाग्य ने फिर करवट ली और पं० नेहरू चल बसे । विश्व अवाक् रह गया और देश अनाथ हो गया। जनता के नेत्रों ने अपनी अजस्र अश्रुधाराओं से उन्हें अर्घ्य दिये पर हृदय में से उठती हाय न रुक सकी। लोग कहते कि अब क्या होगा इस देश का । पं० जी का नाम ले लेकर लोग रो उठते। दुर्भाग्य फिर जागा, करवट बदली और इन्दिरा जी को एक झटके में ले बैठा । विश्व ने फूलों की श्रद्धाञ्जलियाँ चढ़ाई लेकिन देश के असंख्य जनमानस ने अपने आँसुओं के अर्घ्य चढ़ाये। सिर पीटा, छातियाँ धुनीं, आत्मदाह और आत्महत्यायें हुई पर दुर्भाग्य हँसता रहा। देश की कमर टूटी पर अजर और अमरों का यह देश धैर्य और सान्त्वनाओं के सहारे धीरे-धीरे फिर उठा, सम्भला, और आगे बढ़ने के लिए पैर बढ़ायें ।
          श्रीमती गाँधी के सुपुत्र चिरंजीव राजीव गाँधी को भारत का प्रधानमन्त्री बनाने का सम्मति से निर्णय लिया गया है। प्रधानमन्त्री होते ही राजीव जी ने राष्ट्र के नाम पहला प्रसारण किया— बड़े नपे-तुले शब्दों में उन्होंने कहा – “वह केवल मेरी ही माँ नहीं हम सबकी माँ थीं, घृणा व द्वेष से इन्दिरा गाँधी की आत्मा को दुःख पहुँचता था – आप शान्त रहें और धैर्य से लें,” बिलखते हुए रोते हुये नागरिकों के आँसू थम से गये — जादू सा हो गया पूरे राष्ट्र पर्— ओर इन्दिरा जी का पार्थिव शरीर पड़ा हुआ था दूसरी ओर माँ का लाडला – आँसुओं को हुए – भारत माँ की सेवा में जुटा था – सारी रात स्वयं दिल में भारी तूफान रोके हुये दिल्ली – पूर्व प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी का कृतित्त्व बस्तियों में घूम-घूमकर राजीव जी ने दुःखी जनता के आँसू पोंछे । राजीव जी के व्यक्तित्व का सब पर ऐसा प्रभाव हुआ कि नफरत की आँधी रुक : सी गई। राजीव जी की कोमलता, मधुर स्वभाव, ईमानदारी ऐसे गुण हैं जिनसे ऐसा नहीं लगता था कि वह राजनीति और कूटनीति के कर्त्तव्यों को इतनी अच्छी तरह वहन कर लेंगे – परन्तु उन्होंने एक के बाद एक जो सन्तुलित निर्णय लिये उन पर सारा विश्व स्तम्भित हो गया । उन्होंने पंजाब की वह विकराल समस्य जिसने उनकी प्रिय माँ और पूरे राष्ट्र की आत्मा श्रीमती इन्दिरा गाँधी के प्राण ले लिये निर्भीकता और शान्तिपूर्ण ढंग से हल कर एक चमत्कारिक कार्य किया ।
          असम समस्या जिसे वर्षों से कोई हल नहीं कर पाया अत्यन्त धैर्यपूर्वक वार्ताओं से पूर्व राजीव की ओजस्विता और विवेक का विश्व में दूसरा अविस्मरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया ।
          भोपाल गैस काण्ड में कितने लोगों की जानें गईं – कितने बेघरबार हुए- कितने बच्चे अनाथ हुए और कितनी महिलायें विधवा हुई उनके राहत कार्यों पर राजीव जी ने कड़ी निगाह रखी और इनके परिजन तो कोई वापस नहीं दिला सकता पर उनको सम्मानपूर्ण जीवन दिये रखने का श्रेय राजीव जी को ही प्राप्त हुआ । उन्होंने देश की सुरक्षा की बारीकियों की ओर वह सतत् दृष्टि रखी और सेवाओं में छिपे हुए गद्दारों को उजागर कर उन्होंने बड़े साहस का परिचय दिया था ।
          देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए वह हर समय जागरूक रहे । आधुनिकतम युद्ध के अस्त्र-शस्त्रों आदि जातियाँ – पिछड़ी जातियाँ और निर्धन वर्ग के तो वह मसीहा ही बन गये थे । देश में दूर-सुदूर अंचलों में स्वयं जा जाकर उनकी झोंपड़ियों में उनके नन्हें-मुन्नों को लाड़ दुलार देकर उनकी वास्तविक स्थिति का इतनी बारीकी से अध्ययन करने का भी प्रशसंनीय कार्य उन्होंने किया था।
          एशियाई राष्ट्रों के सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने जिस बुद्धि और विवेक का परिचय दिया उससे इन राष्ट्राध्यक्षों को अपने नये अध्यक्ष के प्रति स्नेह और विश्वास कई गुना हो गया था ।
          रूस, अमेरिका, इंग्लैड जैसे बड़े राष्ट्रों की जनता भारत के इस सपूत के दर्शनों के लिये उमड़ पड़ी थी ।
हर स्थान पर तीखे प्रहार करने वाले बड़े-बड़े जनरलिस्ट (पत्रकार) उनके उत्तरों से स्तम्भित रह गये थे। मुस्कराते हुए हर बात के पूर्णतया सन्तोषजनक उत्तर देकर उन्होंने सबको चकित कर दिया था।
          क्या राजीव जी को कोई दैवी शक्ति प्राप्त है। या वह किसी शक्ति के अवतार हैं-नहीं वह भारत माँ के लाल हैं। पण्डित जवाहरलाल जी के सिर पर बैठ-बैठकर, उनको घोड़ा बना-बनाकर खेलते-कूदते हुए उन्हें राजनीति की शिक्षा बाल्यकाल से ही प्राप्त हुई है। फिरोज गाँधी जैसे महान् पिता की वह योग्य सन्तान हैं—विश्वभर को प्रिय माँ – इन्दिरा गाँधी ने घुटनों चला चलाकर, उंगली पकड़-पकड़ कर जीवन में उतारा । गम्भीर से गम्भीर मसलों पर उनसे परामर्श कर उन्हें राजनीति में निपुण किया। राष्ट्र के लिये जीना और राष्ट्र के लिये मरना सिखाया ।
          लोक सभा और विधान सभा के चुनावों का समय आ गया था । राजीव जी ने दृढ़तापूर्वक इन चुनावों का सामना करने का निश्चय किया था । वह चाहते तो चुनाव कुछ दिन के लिये टाल भी सकते थे, पर वह तो ऐसी माँ के लाल ही नहीं जिसने पीछे मुड़कर देखना सीखा हो । समय पर चुनाव कराने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया ।
          श्रीमती गाँधी के हत्या के दो माह के अन्दर ही चुनाव कराकर राजीव जी ने व्यूह रचना और राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया। उन्होंने लौह पुरुष की तरह निर्भीकतापूर्वक सारे देश का भ्रमण किया। राजीव जी जहाँ-जहाँ भी गये उनका अभूतपूर्व स्वागत हुआ, धन्य है भारत की जनता जिसने भारत के इस सपूत के हाथों में एक बार पुनः देश की बागडोर सम्भाल दी–चाहे लोकसभा हो या राज्य सभा सभी में राजीव जी ने सभी पुराने रिकार्ड तोड़ दिये थे ।
          चुनाव में अभूतपूर्व विजय प्राप्त करने के बाद राजीव जी ने देश की आन्तरिक समस्याओं को हल करने में अपना तन-मन-धन लगा दिया। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत की प्रतिष्ठा एवं सम्मान की वृद्धि के लिए उन्होंने अनेक प्रशंसनीय कार्य किये हैं।
          १९८९ के सामान्य निर्वाचन में उत्तरी भारत में उनकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा,तथापि राजीव जी अपने आकर्षक व्यक्तित्व और विलक्षण योग्यताओं के कारण अपने निर्वाचन क्षेत्र से भारी मतों से विजयी घोषित हुए । नयी लोक सभा में राजीव जी ने विरोधी दल के नेता बनकर देश की समस्याओं के प्रति जागरूक रहते हुए जनहित के कार्यों में संलग्न हैं।
          राजीव जी का जन्म २० अगस्त, १९४४ को हुआ था और केवल ४० वर्ष की अवस्था में वह विश्व के कुछ गिने-चुने व्यक्तियों में बैठकर अपनी सूझ-बूझ का परिचय देकर भारत को विश्व के शीर्षस्थ देशों में स्थान दिलाने के अपने दृढ़ निश्चय को साकार करने में जुटे हुए हैं। भगवान उन्हें चिरायु करें जिससे २१वीं सदी के जिस भारत की कल्पना उनके मस्तिष्क में है, वह साकार रूप धारण कर सके और भारत में ऊँच-नीच, भ्रष्टाचार, घूसखोरी, देशद्रोह, निर्धनता, पिछड़ापन, बेरोजगारी, दहेज प्रथा, महिलाओं पर अत्याचार जैसी कुरीतियाँ को दूर करने के लिये वे सदैव प्राण-पण से लगे रहे।
          अपने स्वर्णिम कार्यकाल में उन्होंने जो कुछ किया वह भारतीय जनता के कल्याण के लिये किया तथा विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को प्रतिष्ठापूर्ण पद पर आसीन कराया। भोपाल गैस काण्ड में अनाथ हुए बच्चों और असहाय हुई महिलाओं और पुरुषों को उन्होंने ही प्रश्रय दिया। असम समस्या जिसे वर्षों से कोई हल नहीं कर पाया था अत्यन्त धैर्यपूर्वक वार्ताओं द्वारा उसका हल ढूँढ लेना राजीव की ओजस्विता एवं विवेक का ही परिचायक है। देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिये वे हर समय जागरूक रहे ! एशियाई राष्ट्रों के सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने अपनी बुद्धि और विवेक का जो परिचय दिया उससे एशिया के राष्ट्राध्यक्ष भी आश्चर्य चकित रह गये। दक्षेस सम्मेलन को भी राजीव गाँधी ने नई दिशा प्रदान की और उसे आगे बढ़ाने का प्रयास किया ।
          राजीव गाँधी की ही साहसी प्रेरणायें थीं जिन्होंने अपने कार्यकाल में कम दूरी पर मार करने वाले मिसाइल ‘पृथ्वी’ (२५ फरवरी, ८८) तथा सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल ‘त्रिशूल’ के सफल परीक्षणों के बाद लम्बी दूरी के बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र ‘अग्नि’ के अभूतपूर्व निर्माण हुए और उनके छोड़ने में सफलतायें मिलीं। १५ जून, १९८९ को आन्ध्र प्रदेश की एक जनसभा में उन्होंने कहा था – “भारत ने कभी किसी देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया है और वह यह भी नहीं चाहता कि कोई अन्य देश उसके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करे। कई देशों ने भारत को सतह से सतह पर मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र ‘अग्नि’ के खिलाफ चेतावनी दी थी लेकिन भारत अपने निश्चय पर दृढ़ रहा और अग्नि का सफल परीक्षण किया। इस परीक्षण से देश सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत तथा आत्म-निर्भर हुआ है।” कम्प्यूटर प्रणाली को प्रोत्साहन, प्रेरणा, प्रयोग एवं उसका संवर्धन राजीव गाँधी के दिशा-निर्देशों का ही फल है जो भारत को अन्य उच्च शिखर पर ले जाने के लिए गतिशील है।
          जनता के कल्याण के लिये राजीव गाँधी ने अपने कार्यकाल में अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये । राजनैतिक अस्थिरता को समाप्त करने के लिये उन्होंने अदम्य साहस दिखाया जिसके परिणामस्वरूप १९८५ में दल परिवर्तन सम्बन्धी विधेयक लोक सभा में पारित हुआ। इस प्रकार चार दशकों से चली आ रही दल बदल राजनीति कानूनन समाप्त हो गई। गरीब जनता के असीम कल्याण के लिये और देश के नवयुवकों की बेरोजगारी दूर करने के लिये राजीव गाँधी ने २८ अप्रैल, १९८९ को संसद में ‘जवाहर रोजगार योजना की घोषणा की । सन् १९८९ में पूरे देश में पं० जवाहर लाल नेहरू जन्म शताब्दी समारोह आयोजित हो रहे थे। राजीव गाँधी ने पं० जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में भारत की गरीब ग्रामीण जनता को यह योजना उपहार स्वरूप प्रदान की । इस योजना के अन्तर्गत ग्रामीण इलाकों में गरीबी की रेखा से नीचे जीवन बिताने वाले ४४ करोड़ परिवारों के कम से कम एक सदस्य को रोजगार उपलब्ध होना चाहिये
          जनता और शासन के बीच सत्ता के दलाल और बिचौलियों को समाप्त करने के उद्देश्य से राजीव गाँधी ने १५ मई, १९८९ को बहुप्रतीक्षित ६४वाँ पंचायती राजविधेयक संविधान संशोधन संसद में पेश किया। यह जनता तक ‘स्वराज’ पहुँचाने का प्रयास था, यह एक राजनैतिक क्रान्ति थी। ५ जून, १९८९ को अपने निवास पर एकत्र हुए कार्यकर्ताओं से कहा था कि ८० करोड़ लोगों की शिकायतों का निस्तारण करने के लिये पाँच हजार विधायक और पाँच सो सांसद काफी नहीं है। । घूम-फिर कर गाँव और गलियों की समस्यायें मुख्यमन्त्रियों तथा स्वयं प्रधानमन्त्री के पास लाई जाती हैं। पंचायती राजप्रणाली से अस्सी करोड़ जनता की आवाज सुनने का अधिकार २० लाख नुमाइन्दों के पास आ जायेगा जो निश्चय ही बहुत बड़ा है। तब समस्याओं का निस्तारण पंचायतघरों, मुहल्ले, गाँव और ब्लॉक स्तर पर ही हो जाया करेगा। इन प्रतिनिधियों को सौ से लेकर पाँच सौ लोग चुनेंगे जो निश्चित रूप से सत्ता की दलाली करने वालों पर अंकुश लगाने का काम करेगी।
          शिक्षित बेरोजगारों के लिये राजीव गाँधी ने १९८८ में व्यापक ऋण योजना प्रारम्भ की। इन्दिराजी के प्रयासों के फलस्वरूप अब तक अशिक्षित बेरोजगारों के लिये ही बैंकों से ऋण दिया जाता था परन्तु राजीव गाँधी ने इस क्षेत्र को और अधिक व्यापक बनाकर शिक्षितों को भी सहारा दिया।
          स्वर्गीय राजीव गाँधी ये कुछ ऐसे अमर कीर्ति स्तम्भ हैं जिन्हें इतिहास और भारत की जनता कभी भुला नहीं सकती।
          युवकों के प्रेरणा स्रोत प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी की ८९ में अपने ही लोगों के कुठाराघातों से खिन्न होकर मध्यावधि चुनावों की घोषणा से लोग अवाक् और स्तब्ध रह गये थे । बहुमत वाली सरकार जनता का विश्वास प्राप्त करने के लिए फिर जनता जनार्दन के सामने गई । चुनाव हुए पर परिणाम विपरीत गया। इस परिवर्तन में सभी विश्वास करते हैं जनता भी इस परिवर्तन को चाहती थी, मीठा खाते-खाते बहुत दिन हो चुके थे, कहीं कुपच न हो जाये इस भय से नमकीन और खट्टा खाना स्वाभाविक था ।
” मीठौ भावै लौन पर ज्यों मीठे पर लौन” 
          राजीव गाँधी के पक्ष की पराजय होनी ही थी दूसरा पक्ष विजयी रहा है । १७ महीनों के अन्तराल में दो सरकारें आईं और गईं । तत्कालीन एवं अल्पकालीन प्रधानमन्त्री श्री चन्द्रशेखर ने लोक सभा के पुनः मध्यावधि चुनावों की घोषणा कर दी । नवम्बर ९१ का तीसरा सप्ताह इसके लिए सुनिश्चित किया गया । राजीव गाँधी अपने दुगुने और चौगुने उत्साह एवं विश्वास के साथ जनता के सामने फिर कूद पड़े। पिछले दो वर्षों के कटु अनुभवों के आधार पर जनता राजीव गाँधी की ओर उमड़ पड़ी । देश के कोने-कौने में असीम स्नेह और आदर के साथ जनता ने राजीव को सुना। उनकी नीतियों और सिद्धान्तों की सराहना की । उनके स्वागत और सरकार में जनता समुद्र उमड़ पड़ा।
          देश के कोने-कोने में अपनी नीतियों का प्रचार और प्रसार करते हुए लोकतन्त्र के महान् उपासक देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने को अहर्निश आतुर श्री राजीव गाँधी जब दक्षिण भारत पहुँचे तो देश का क्रूरतम दुर्भाग्य खिलखिलाकर अट्टहास कर उठा । मद्रास के पेरुम्बदूर गाँव में जनता दर्शनों के लिये उमड़ रही थी, देश-विदेश के फोटोग्राफर उनके फोटो खींचने के लिये फ्लैश लाइट ऑन किये हुए फोटो खींच रहे थे । माल्यार्पण करने में होड़ लगी हुई थी, पत्रकार आगे बढ़कर कुछ पूँछने के लिए लालायित थे। दुर्भाग्य ने अन्तिम अट्टहास किया और एक आत्मघाती महिला राजीव गाँधी के चरण – छूने और माल्यार्पण करने निकट आई, उसने अपनी बैल्ट में लगा बटन दबाया, उसकी कमर में बँधे बम का विस्फोट हुआ और देश के पूर्व एवं भावी प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी के शरीर के चिथड़े आकाश में उड़ गये और फिर दूर-दूर धराशयी हो गये । भयभीत जनता भाग खड़ी हुई । पुलिस ने चारों ओर घेरा डाल दिया। इस हृदय विदारक दुर्घटना की कुछ ही क्षणों में सारे विश्व में खबर फैल गई । विश्व के सूचना प्रसारण माध्यमों ने प्रमुखता से इस विधि की विडम्बना का प्रसारण प्रारम्भ कर दिया । देश एक बार फिर स्तब्ध रह गया | देश की निरीह और निराश्रित जनता एक बार फिर असहाय हो उठी। देश की जनता के साथ दुर्भाग्य ने एक बार फिर क्रूरतम खेल खिला दिया। सेना के विमान द्वारा श्री राजीव गाँधी का शव दिल्ली लाया गया। अपने नेता के अन्तिम दर्शनों के लिये जनता उमड़ पड़ी । अन्तिम दर्शनों के लिये राजीव गाँधी का शव तीन मूर्ति भवन में ठीक उसी जगह रक्खा गया था जहाँ उनके नाना पं० जवाहरलाल नेहरू और उनकी माँ श्रीमती इन्दिरा गाँधी को शोक विह्वल राष्ट्र ने उनको अन्तिम ने विदाई दी थी। राजकीय सम्मान के साथ शक्ति-स्थल पर पहुँची शव यात्रा समाप्त हुई । आँसुओं से अर्ध्य और काँपते हाथों से फूलों की श्रद्धांजलि देते हुए अपार जनसमूह ने अपने नेता को अन्तिम प्रणाम किया। विश्व के राजनेताओं ने अपनी श्रद्धांजलियाँ दीं। २४ मई, ९१ को ५.२५ सायं उनके प्रिय पुत्र राहुल ने उन्हें चिता की अग्नि को समर्पित कर दिया । भाग्य क्या नहीं कर लेता !
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *