पी० एस० एल० वी० डी-३ का सफल प्रक्षेपण, (मार्च १९९६)

पी० एस० एल० वी० डी-३ का सफल प्रक्षेपण, (मार्च १९९६)

          विश्व के राकेट बाजार में अभी तक अमेरिका का वर्चस्व था, परन्तु भारतीय वैज्ञानिकों ने अमेरिका को दिखा दिया कि भारत भी तुमसे कम नहीं है। हमारे वैज्ञानिक तुम्हारे वैज्ञानिकों से किसी भी दशा में योग्यता और अनुसंधान में कम नहीं हैं।
          देश के बहुउददेशीय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पी० एस० एल० वी० डी-३ का २१ मार्च ९६ को १०.२३ बजे श्री हरिकोटा अंतरिक्ष केन्द्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। इस महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि के साथ ही भारत विश्व के राकेट बाजार में शामिल हो गया जिस पर अब तक अमेरिका का वर्चस्व था । सफल प्रक्षेपण से अति उत्साहित इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार उपग्रह के सभी चारों खण्ड सुचारू रूप से काम कर रहे हैं तथा स्थापना के कुछ ही सेकण्ड बाद उपग्रह से आँकड़े भी मिल गये हैं, जिससे इसके सामान्य रूप से काम करने के संकेत मिलते हैं। उपग्रह १५ अप्रैल, ९६ तक पूरी तरह से काम करने लगेगा।
          आज के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में गत चार माह में तीन बड़ी सफलताएँ हासिल की हैं। इस सफलता पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति व प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों व देश-वासियों को बधाई दी है ।
          पी० एस० एल० वी० डी-३ ने अपने तीसरे और अंतिम विकासात्मक प्रक्षेपण के १७ मिनट बाद ही भारतीय सुदूर संवेदी उपग्रह आई० आर० एस० पी-३ को निर्धारित कक्षा में स्थापित कर दिया ।
          भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष डा० के० कस्तूरीरंगन ने अत्यंत उत्साह से पत्रकारों को बताया कि न सिर्फ भारत बल्कि विश्व भर के प्रक्षेपणों के लिहाज से भी यान का प्रक्षेपण अत्यंत सटीक रहा।
          उन्होंने कहा कि राकेट के मार्ग, उसके झुकाव, उपग्रह को निर्धारित कक्ष में सही तरीके से स्थापित करने से इसरो में पूर्ण विश्वास आ गया है और अब यह अगली उड़ान से ही व्यावसायिक प्रक्षेपण कर सकता है।
          डा० कस्तूरीरंगन ने कहा कि राकेट ने प्रक्षेपण के १७ मिनट २२ सेकण्ड के बाद उपग्रह को ९८-८८ के झुकाव और ८०७-८१६ किलोमीटर की ऊँचाई पर पृथ्वी के मध्य कक्षा में स्थापित किया। इस उपग्रह को ८१७ किलोमीटर ऊँची कक्षा में ९८ ७६ के झुकाव पर स्थापित करने का लक्ष्य था ।
          उन्होंने कहा कि उपग्रह की स्थापना के ७० सेकण्ड के बाद उसके सौर पैनल काम करने लगे। उन्होंने कहा कि मारीशस स्थित भूकेन्द्र को उपग्रह से आँकड़े भी मिल गये और इसका कामकाज सामान्य होने का संकेत मिला ।
          डा० कस्तूरीरंगन ने कहा कि पहला व्यावसायिक प्रक्षेपण अगले डेढ़ से दो वर्ष के भीतर करने की योजना है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ५५ करोड़ रुपये लागत वाला यह राकेट विश्व बाजार में कड़ी प्रतिद्वंद्विता के बावजूद अत्यन्त सफल होगा। उन्होंने कहा कि इसरो इस राकेट की क्षमता बढ़ाकर अब १२०० किलोग्राम तक के उपग्रह को ८१७ किलोमीटर की ऊँचाई बाला ध्रुवीय सौर स्थिर कक्षा में स्थापित करने योग्य बनाने का प्रयास कर रहा है।
          प्रक्षेपण अभियान के निदेशक वर्दराज पेरुमल ने यूनीवार्ता को बताया कि उपग्रह को लागत ३० करोड़ रुपये है, जबकि पी० एस० एल० वी० राकेट का विश्व बाजार में मूल्य करीब दो करोड़ डालर होगा। उन्होंने कहा कि यदि हम मूल्य भी बढ़ा दें तो भी यह विश्व बाजार के उपभोक्ताओं को सस्ता ही पड़ेगा। लेकिन श्री कस्तूरीरंगन ने माना कि इसरो के पास इस राकेट के व्यावसायिक उपयोग का तत्काल कोई प्रस्ताव नहीं आया है।
          डा० कस्तूरीरंगन ने बताया कि अगले दो दिनों तक इसरो के वैज्ञानिक और इंजीनियर उपग्रह के उपकरणों की जाँच कर उन्हें चालू करेंगे और उपग्रह १५ अप्रैल, ९६ तक पूरी तरह काम करने लगेगा। उन्होंने कहा कि आई० आर० आर० एस० पी-३ उपग्रह पर बेंगलूर, लखनऊ, मारीशस, जर्मनी को वेलहेम और मास्को के वीयर्स लेक स्थित उपग्रह नियंत्रण केन्द्र प्रारंभिक दौर में निगरानी रखेंगे और इसका नियंत्रण करेंगे।
          डा० कस्तूरीरंगन ने कहा कि इस राकेट के सफल प्रक्षेपण का कोई सैनिक उपयोग नहीं किया जायेगा। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में कुछ देशों की आशंकायें निर्मूल हैं। उन्होंने कहा कि पी० एस० एल० वी० की संरचना रक्षा जरूरतों के अनुरूप नहीं है। उन्होंने बताया कि सैन्य उद्देश्यों में इस्तेमाल होने वाले राकेट में ईंधन जल्दी जलने वाला होता है न कि पी० एस० एल० वी॰ की तरह का | उन्होंने कहा कि इसरो का जासूसी उपग्रह छोड़ने का कोई इरादा नहीं है।
          दूसरी ओर अमेरिका और कुछ अन्य देशों का मानना है कि एस० एल० वी० श्रृंखला के सफल प्रक्षेपण के बाद ही भारत ने मध्यम दूरी तक मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र बनाने की क्षमता हासिल की। उनका कहना है कि भारतीय सेना के लिए विकसित किया जा रहा जमीन से जमीन तक मार करने वाला ‘अग्नि’ प्रक्षेपास्त्र एस० एल० वी० की सफलता का ही फल है ।
          डा० कस्तूरीरंगन ने भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान, जी० एस० एल० वी० के लिये रूस से मिलने वाले क्रायोजेनिक इंजनों की मूल्य वृद्धि की खबरों का खण्डन किया। उन्होंने कहा कि रूस दिसंबर के अंत तक इन क्रायोजेनिक इंजनों की आपूर्ति भारत को कर देगा। उन्होंने कहा कि अभी दोनों देशों की मुद्राओं के अंतर को तर्कसंगत बनाया जा रहा ।
          पी० एस० एल० वी० के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में गत चार माह में तीन बड़ी सफलतायें हासिल की हैं। सात दिसंबर को भारत में निर्मित संचार उपग्रह इन्सैट दो सी का फ्रेंच गायना के कौरु से सफल प्रक्षेपण किया गया। उसके २१ दिन बाद रूसी मोलीनया राकेट से अत्याधुनिक सुदूर एवं दूर संवेदी उपग्रह आई० आर० एस० एल० सी० को सफलतापूर्वक छोड़ा गया। ये दोनों देश में ही निर्मित थे । आज पी० एस० एल० वी० डी-३ और उपग्रह आई० आर० एस० पी-३ का सफल प्रक्षेपण हुआ है।
          वार्ता के अनुसार उपग्रह के जमीन छोड़ते ही उपस्थित वैज्ञानिकों और पत्रकारों के बीच हर्ष की लहर दौड़ गयी । यहाँ उपलब्ध सूचना के अनुसार पी० एस० एल० वी० के सभी चारों खण्ड अच्छी तरह काम कर रहे हैं।
          पहले पी० एस० एल० वी० का गत सोमवार को प्रक्षेपण होना था । गत शुक्रवार की सुबह ०९.२३ बजे उल्टी गिनती भी शुरू हो गयी थी । लेकिन मौसम खराब होने के कारण प्रक्षेपण से ५८ घंटे पहले ही उल्टी गिनती रोक दी गयी। बाद में मौसम की पूरी जाँच कर १८ मार्च की रात २३ बजे दुबारा उल्टी गिनती शुरू की गयी ।
          पी० एस० एल० वी० डी-३ राकेट का प्रक्षेपण पहले १८ मार्च को होने वाला था और उल्टी गिनती भी शुरू हो गयी थी। लेकिन श्री हरिकोटा अंतरिक्ष केन्द्र के ऊपर तेज हवा के कारण उसे स्थगित कर दिया गया था। बाद में दोबारा उल्टी गिनती शुरू हुई।
          इस प्रक्षेपण के साथ ही पी० एस० एल० वी० राकेट कार्यक्रम का विकासात्मक चरण पूरा हो गया। इस पर ४१५ करोड़ रुपये की लागत आयी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अगले डेढ़ वर्ष में पी० एस० एल० वी० शृंखला के राकेटों को छोड़ने का अगला कार्यक्रम चलायेगा जिसके तहत तीन और राकेट छोड़े जाएँगे ।
          पी० एस० एल० वी० डी-३ राकेट के चार खंड हैं। इनमें से दो खंडों में ठोस ईंधन आधारित इंजन लगे हैं जबकि दो खंडों में तरल ईंधन आधारित इंजन लगे हैं।
          पहले खंड में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ठोस ईंधन आधारित बूस्टर है। इसमें १२९ टन हाइड्रोक्सिल टर्मिनेटेड पाली बूटाजाइन एच० टी० पी० बी० आधारित प्रणोदक है। इस ईंधन की है क्षमता ४५०० किलो न्यूटन है। इसके साथ छह स्ट्रैप आन मोटर लगे हैं। इनमें से प्रत्येक की क्षमता ६६२ किलो न्यूटन है। इनमें एच० टी० पी० बी० का ही ईंधन के रूप में इस्तेमाल हुआ है।
          राकेट के दूसरे खंड में तरल प्रणोदक आधारित इंजन है। इनमें ३७५ टन अनसिमीट्रिकल डाइमिथाइल हाइड्राजाइन ईंधन है। इसके नाइट्रोजन टेट्राऑक्साइड भी इस्तेमाल किया गया है जो कि ऑक्सीकारक की भूमिका निभाता है।
          पी० एस० एल० वी० डी-३ के चौथे और अंतिम खंड में दो इंजन साथ-साथ हैं। इनमें दो टन तरल मोनोमिथाइल’ हाइड्राजाइन और नाइट्रोजन टेट्राक्साइड ईंधन है। इन दोनों में से प्रत्येक की क्षमता ७.४ किलो न्यूटन है। राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, प्रधानमंत्री पी० वी० नरसिंह राव व उपराष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पी० एस० एल० वी० डी-तीन के सफल प्रक्षेपण पर अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और उनके सहयोगियों को बधाई दी है ।
          आज यहाँ जारी एक विज्ञप्ति में राष्ट्रपति ने कहा कि यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शानदार उपलब्धि एवं उत्कृष्टता का ज्वलंत उदाहरण है। उन्होंने कहा कि यह प्रत्येक भारतीय के लिए खुशी और गौरव का विषय है।
          उपराष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने इस अवसर पर अपने संदेश में कहा पी० एस० एल० वी॰ डी-३ का सफल प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि अत्याधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में यह आत्मनिर्भरता का उदाहरण है।
          उपराष्ट्रपति ने इस महान् उपलब्धि के लिए सभी वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों को बधाई दी है।
          प्रधानमंत्री पी० वी० नरसिंह राव ने पी० एस० एल० वी० के सफल प्रक्षेपण पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के सभी सदस्यों को बधाई दी ।
यह अनुसन्धान भारत के स्वर्णिम भविष्य की ओर संकेत मात्र है
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