परिवार कल्याण

परिवार कल्याण

          आज के युग के मानव के पास अपने पूर्वजों से उत्तराधिकार के रूप में यदि कोई निधि है, तो वह है एक परिवार । परिवार मानव की वह संस्था है, जिसकी स्थापना उसने सृष्टि के प्रारम्भिक क्षणों में सभ्यता के उदय के साथ-साथ की थी । वह अपना परिवार और उसकी वृद्धि को देखकर प्रसन्नता से खिल उठता था। रहीम ने लिखा है –
रहीमन यों सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत ।
ज्यों बड़री अखियाँ निरखि, आँखिन को सुख होत || 
          परिवार में उसे सुख और शान्ति प्राप्त होती थी और वह एक बार संसार की समस्त चिन्ताओं को भुला मानव की : देता था। परिवार का वही प्राचीनतम स्वरूप आज भी भारत के पुराने घरानों में देखने को मिल जाता है। एक साथ मिल-जुल कर रहने में, एक साथ भोजन करने में कितना आनन्द है, वह वही लोग जानते हैं । परन्तु आज उसका स्वरूप अनियन्त्रित और अव्यवस्थित होता जा रहा है। ऐसा आधुनिक विद्वान स्वीकार कर रहे हैं कि परिवार नियोजन का प्रश्न केवल परिवार के कल्याण के लिये ही नहीं अपितु देश के आर्थिक और सामाजिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिये भी अत्यन्त आवश्यक है।
          भारत में पहले छोटे-छोटे परिवार होते थे, जिनका नियन्त्रण और व्यवस्था सरलता से की जा सकती थी । यही दशा विदेशों में थी। परन्तु आज इसके विपरीत दिखाई पड़ रहा है एक आदमी के दर्जनों बच्चे होते हैं, उनका पालन-पोषण करते-करते बेचारा मनुष्य जीवन से ऊबने लगता है। यही कारण है कि विश्व की जनसंख्या उत्तरोत्तर आशातीत रूप से बढ़ती जा रही है। आज से सौ वर्ष पूर्व जिनती जनसंख्या थी, आज उससे दुगनी से भी अधिक है। जनसंख्या के सम्बन्ध में एक विशेषज्ञ विद्वान प्रो० कार सान्डर्स का अनुमान है कि संसार की जनसंख्या में १०% प्रतिवर्ष के हिसाब से वृद्धि हो रही है और यदि यह वृद्धि इसी गति से होती रही, तो पाँच सौ वर्ष पश्चात् विश्व की जनसंख्या इतनी अधिक हो जायेगी कि मनुष्य का रहना तो दूर रहा, पृथ्वी पर खड़े होने को भी स्थान नहीं मिलेगा। सम्भव है यह कथन अतिश्योक्तिपूर्ण हो परन्तु इतना तो स्पष्ट है ही कि यदि जनसंख्या इसी गति से बढ़ती गई, तो मानव का जीवन अब कितना संघर्षमय और अशान्त है, उससे भी कहीं अधिक अशान्त हो जायेगा । इंग्लैंड के अर्थशास्त्र के विद्वान टामस माल्थस ने अट्ठाहरवीं शताब्दी के अन्त में ही इस ओर संकेत किया था । उनका विचार था कि एक निश्चित समय में किसी स्थान की खाद्य सामग्री के उत्पादन में जितनी वृद्धि होती है, उससे कई गुनी अधिक जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है, इसका परिणाम यह होता है कि जनता के लिए पर्याप्त रूप से खाद्य-सामग्री प्राप्त नहीं होती । इसलिये प्रकृति भी कभी-कभी अपने प्रकोप से जनसंख्या में कमी करती है
          संसार में सभी प्राणी अपने जीवन को सुखी और शान्त बनाना चाहते हैं। अपने रहन-सहन के स्तर को उन्नत करना चाहते हैं। परन्तु यह तभी सम्भव हो सकता है, जबकि हमारा व्यय हमारी आय के अनुसार हो, हमारे आश्रितों की संख्या, जिनके भरण-पोषण, पढ़ाई-लिखाई और सुख-सुविधा का भार हमारे ऊपर है, कम हो । कम आय वाले मनुष्य पर यदि अधिक आश्रित होंगे, तो उसका जीवन-स्तर निम्न होगा और मुखिया परिवार के व्यक्तियों की सुख सुविधा के लिए सामग्री एकत्र करने में अपने को असमर्थ पायेगा । डॉ० चार्ल्स ने कहा है, “स्पष्ट ही है कि एक हजार पौंड प्रतिवर्ष आय वाले एक व्यक्ति का, जिसके चार बच्चे हों, जीवन-स्तर एक समान आय वाले कुंवारे व्यक्ति के जीवन स्तर से लगभग पाँचवें भाग के बराबर होगा, इसलिए जीवन को सुखी बनाने के लिए परिवार नियोजन परमावश्यक है।” यह सभी जानते हैं कि जिस व्यक्ति के ऊपर जितना उत्तरदायित्व अधिक होगा, वह उतना ही अधिक चिन्तित होगा, और उसकी मानसिक गति उतनी ही अधिक क्षुब्ध होगी। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, उनके भावी जीवन के पथ निर्माण का उत्तरदायित्व माता-पिता पर ही होता है, इसलिये जिस व्यक्ति के जितने बच्चे होंगे, उतनी ही चिन्ता उसे अधिक होगी । अतः मानसिक शान्ति की दृष्टि से भी परिवार नियोजन कम महत्वपूर्ण नहीं है। परिवार नियोजन से केवल एक व्यक्ति का और एक परिवार का ही कल्याण नहीं होता, अपितु उससे देश, समाज और मानवता का भी हित होता है। राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक स्थिति दृढ़ होने से विश्व के अन्य राष्ट्रों की दृष्टि में उसका मान होता है। दुर्भाग्य से एक तो निर्धनता ही भारत का पीछा नहीं छोड़ रही है, दूसरे जनसंख्या इतनी तीव्र गति से बढ़ रही है, जिसकी कोई कल्पना ही नहीं है। अतः भारतीय अर्थव्यवस्था को दृढ़ और सुव्यवस्थित बनाने के लिये भी परिवार नियोजन अत्यन्त आवश्यक है।
          परिवार नियोजन से मनुष्य को अनेक लाभ होंगे। वह अपना जीवन सुखी, स्वस्थ और शान्त व्यतीत कर सकेगा। उसके रहन-सहन का स्तर ऊँचा होगा, वह अपने आश्रितों की प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति करता हुआ उन्हें अधिक सुखी रख सकेगा। एक व्यक्ति के पीछे छः पुत्र हैं, तो वह सभी की शिक्षा का न अच्छा प्रबन्ध ही कर सकता है और न उचित रूप से उनका भरण-पोषण ही । यदि उन छः के स्थान पर दो ही हैं, तो वह उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर उनके जीवन का पथ प्रशस्त कर सकता है। दोनों भाइयों के रहने के लिए अलग-अलग गृह निर्माण भी कराए जा सकते हैं जो छः के लिए बिल्कुल ही असम्भव है। इस प्रकार जीवन संघर्ष भी कम होंगे, न पारस्परिक द्वेष होगा और न वैमनस्य | घर में अधिक सदस्यों के होने पर लड़ाई अधिक होती है, क्योंकि सभी की रुचि और विचार भिन्न होते हैं और ऐसी स्थिति में बेचारे गृहपति की मुसीबत आ जाती है ।
          भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए तथा निर्धनता की इस जटिल समस्या के कलंक को स्वच्छ करने के लिए भारत के मस्तक से हटा देने के लिए भारतीय सरकार प्रत्येक सम्भव पग उठा रही है। देश को समृद्धिशाली बनाने के लिए जहाँ उसने अन्य योजनाओं को जन्म दिया है, वहाँ उसने परिवार नियोजन भी देशवासियों के लिए प्रस्तुत किया है। प्रथम पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन पर पैंसठ लाख रुपये व्यय करने की व्यवस्था की गयी थी । यह द्रव्य जनता को परिवार नियोजन के विषय में शिक्षित करने में स्वास्थ्य कर्मचारियों के प्रशिक्षण में तथा बर्थ कन्ट्रोल (सन्तति-निरोध) से सस्ते, अनिष्ट रहित तथा विश्वसनीय साधनों के अन्वेषण में व्यय किया गया था। इसी योजना के अन्तर्गत सरकार ने स्थान-स्थान पर ११५ परिवार नियोजन के केन्द्र तथा १८ अनुसन्धान योजनायें लागू की थीं । जहाँ पर नागरिकों को इस विषय में बिना किसी फीस के उत्तम परामर्श दिया जाता है। परिवार नियोजन को सफल बनाने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में करोड़ों रुपए की धनराशि व्यय की जा रही है। लगभग ३०० केन्द्र शहरों में तथा २००० ग्रामीण केन्द्रों की स्थापना हुई है। दूसरे आयोजन के केन्द्रीय मंडल ने परिवार कल्याण को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये थे –
(१) विस्तृत शिक्षा योजना का विकास, जिसमें सन्तानोत्पादन, विवाह एवम् बच्चों की शिक्षा भी सम्मिलित ह्ये ।
(२) परिवार नियोजन के सम्बन्ध में किए गये सभी प्रकार के कार्य की केन्द्रीय मण्डल द्वारा जाँच हो ।
(३) जनसंख्या और सन्तान उत्पादन के सम्बन्ध में खोज ।
(४) एक भलि-भाँति आयोजित केन्द्रीय संगठन की स्थापना |
          परिवार-नियोजन योजना प्रसार में जहाँ अन्य बाधायें हैं, वहाँ सबसे बड़ी बाधा अन्धविश्वास की है। अधिकांश धार्मिक जनता सन्तानोत्पत्ति को परमेश्वर की कृपा मानती है और ईश्वर की गतिविधि में रुकावट डालना सबसे बड़ा पाप समझती है। वैसे भी उनकी धारणा रहती है कि जो ईश्वर की इच्छा होती है, वही होता है। प्रायः भारतीय महिलायें ज्योतिषियों तथा हस्त रेखा विशारदों मे पूछती देखी गयी हैं कि हमारे भाग्य में कितनी सन्तान लिखी हुई है या कोई लड़का भी है या नहीं? धर्मभीरु जनता चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, सन्तति निरोध का विरोध करती है और उनके कृत्रिम साधनों को अनैतिक बतलाती है । ईसाइयों में भी कैथोलिक धर्म परिवार नियोजन का विरोध करता है। परिवार नियोजन योजना का अधिक प्रसार न होने का दूसरा कारण यह है कि अब तक जन्म निरोध के जिन साधनों का आविष्कार हुआ है, वे अधिक सन्तोषजनक नहीं हैं। प्रजनन क्रिया से सम्बन्धित अंगों पर काम आने वाले साधन कष्टदायी होते हैं तथा उन पर अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता । कुछ इस समस्या के समाधान के लिए ब्रह्मचर्य पर अधिक बल देते हैं। अतः परिवार-नियोजन के लिए सस्ते, सुलभ और विश्वसनीय साधनों का प्रयोग किया जाये | हमारे देश के वैज्ञानिक भी इस दिशा में नये आविष्कार करने में प्रयत्नशील हैं। आशा है कि निकट भविष्य में यह समस्या सरलता से सुलझ जायेगी ।
          लेकिन परिवार कल्याण का आन्दोलन देश में तभी सफलता प्राप्त कर सकता है, जबकि देश की जनता सुशिक्षित हो । भारतवर्ष में जब तक अशिक्षा और अज्ञान का साम्राज्य है तब तक देश में इस दिशा में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। देश के भावी नागरिकों के लिए बचपन में ही यौन शिक्षा का प्रबन्ध होना चाहिये, जिससे वे अनियोजित परिवार की कठिनाइयों तथा सुनियोजित परिवारों के सुखों से परिचित हो सकें । तभी यह योजना सफल हो सकेगी । ९ फरवरी, १९६९ को नई दिल्ली में पं० नेहरू ने परिवार नियोजन के छठे अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया था। इस सम्मेलन में अमेरिका, इंगलैंड, हालैंड, आदि २२ देशों के लगभग ७०० प्रतिनिधियों ने भाग लिया । परिवार नियोजन के सम्बन्ध में पं० नेहरू ने कहा था-
          “यदि परिवार नियोजन को बढ़ाने की उत्सुकता में, हम आर्थिक और शैक्षिक उन्नति के इस बड़े पहलू की उपेक्षा करेंगे, तो हमारा आधार बिल्कुल अरक्षित रहेगा। जनसंख्या बराबर बढ़ती रही, तो पंचवर्षीय योजना का कोई अर्थ नहीं है। इसलिए परिवार नियोजन भी योजना का अविभाज्य अंग है। हजारों लड़कियाँ स्कूल और कालिजों में शिक्षा पा रहीं हैं, जिससे स्वभाव और विचार में परिवर्तन होंगे, और कार्यकर्ताओं की अपेक्षा वे ही अधिकतर परिवार नियोजन का संदेश घर-घर तक पहुँचायेंगी।” देशवासियों ने, विशेष रूप से प्रबुद्ध वर्ग ने, यह अच्छी तरह समझ लिया है कि छोटे परिवार में ही बच्चों की देख-रेख, शिक्षा-दीक्षा एवं उनके भविष्य का सुन्दर निर्माण हो सकता है तथा देश को बरबादी से बचाया जा सकता है। इसीलिए देशवासी स्वेच्छा से नसबन्दी करा रहे हैं । यदि परिवार नियोजन कार्यक्रम को सरकार इसी गति से चलाती रही तो निश्चित ही देश का बहुत बड़ा कल्याण होगा । वास्तव में,
“छोटा परिवार, सुखी परिवार” होता है ।
          जून १९७५ से देश में आपात्कालीन स्थिति की घोषणा के साथ ही साथ परिवार-नियोजन की दिशा में सबल प्रयत्न प्रारम्भ हुए। नसबन्दी कराने वालों को सरकार की ओर से विशेष सुविधायें एवं आर्थिक सहायता प्रदान की गई । १९७६ में भारत सरकार ने ४३ लाख व्यक्तियों की नसबन्दी का लक्ष्य रखा था वह लक्ष्य सात महीनों में ही पूरा कर लिया गया । राष्ट्रीय परिवार नियोजन संस्थान के वार्षिक दिवस पर अपने अध्यक्षीय भाषण में ५ नवम्बर, १९७६ को केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार-नियोजन मन्त्री डॉ० कर्ण सिंह ने कहा कि “समूचे देश में पूरे वर्ष के लिये तय नसबन्दी का लक्ष्य सात महीनों में ही पूरा कर लिया गया है और इस प्रकार अब तक के सभी रिकार्ड भंग कर दिये गये हैं, वर्ष भर का यह लक्ष्य ४३ लाख आपरेशनों का था जिसके मुकाबले ४८ लाख व्यक्तियों की नसबन्दी कर दी गई है।” इस शानदार सफलता के लिए स्वास्थ्य मन्त्री ने सभी कार्यकर्त्ताओं को बधाई दी । १८ दिसम्बर, १९७६ को स्वास्थ्य मन्त्री श्री कर्ण सिंह ने मद्रास में घोषणा करते हुए बताया कि हमारा लक्ष्य पूरे वर्ष के लिए ४३ लाख आपरेशन का था परन्तु अब तक हमारी सफलता ६० लाख तक पहुँच चुकी है । ११ नवम्बर, १९७६ को भारत के परिवार नियोजन मन्त्री श्री कर्ण सिंह ने श्री मैकनकारा को बताया कि सरकार को आशा है कि परिवार नियोजन कार्यक्रमों से १९७४-७५ की २१ प्रतिशत जन्म दर घटकर १९७९ से १.७ प्रतिशत और १९८४ में १.४ प्रतिशत रह जायेगी। जून १९७७ में भारत की जनता सरकार ने परिवार नियोजन कार्यक्रम के परिवार कल्याण कार्यक्रम में परिवर्तित कर दिया। जनता सरकार ने परिवार कल्याण कार्यक्रम की एक विस्तृत योजना भी बनायी। लेकिन राजनीतिक गुटबन्दी व नेताओं की स्वार्थप्रियता के कारण परिवार कल्याण योजना के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका।
          जनवरी, १९८० से स्थापित कांग्रेस (इ) की केन्द्रीय सरकार ने परिवार कल्याण कार्यक्रम को तेजी के साथ लागू करने के लिए दुराग्रह और दबाव के स्थान पर स्वेच्छा और सद्विवेक और संयम को स्थान दिया है। परिवार कल्याण पखवारे मनाये जा रहे हैं परन्तु बिना दबाव और दमन के। सरकार को इस दिशा में पर्याप्त सफलता मिली है। “सन् दो हजार तक १० करोड़ नये बच्चों की पैदाइश को रोकने का सरकार का लक्ष्य है। अभी जैसी स्थिति है, उसमें नई शताब्दी के शुरू में भारत की आबादी १ अरब होने का अनुमान है।” वर्तमान समय में परिवार कल्याण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए देश भर में ७००० से अधिक केन्द्र कार्यरत हैं, बन्ध्याकरण की अनके सरल विधियाँ खोज निकाली गई हैं, और जनसाधारण में हानि-रहित दवाओं का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी के कुशल पथ-प्रदर्शन में एवं तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री श्रीमती मोहसिना किदवई के सफल नेतत्व में १९८६ में परिवार कल्याण का निर्धारित लक्ष्य प्राप्त किया जा चुका था। संचार के विभिन्न साधन परिवार कल्याण कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाने में संलग्न हैं। देश की जागरूक जनता परिवार कल्याण की दिशा में स्वयं अग्रसर हो रही है और सोये हुओं को जगाया जा रहा है पर प्रेम से कयोंकि इसी में अपने परिवार का और देश का कल्याण निहित है। परन्तु गम्भीर विचारणीय यह है कि क्या इन परिवार नियोजन कार्यक्रमों से देश की सैनिक शक्ति, कृषि, उत्पादन क्षमता कम नहीं होगी ?
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