नवम् गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन (१९८९)

नवम् गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन (१९८९)

          गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का अत्यन्त महत्वपूर्ण नौवाँ शिखर सम्मेलन यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्राड में ४ सितम्बर से ८ सितम्बर, १९८९ तक हुआ । मेजबान यूगोस्लाविया ने कहा कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को आधुनिक साँचे में ढालने और शांति, सुरक्षा एवं निरस्त्रीकरण के लक्ष्य हासिल करने के लिये नये तरीके अपनाये जायें। इसके अतिरिक्त नेताओं ने संकल्प लिया कि वह नयी आर्थिक व्यवस्था के लिए विकसित तथा विकासशील देशों के बीच यथा शीघ्र वार्ता शुरू करने का प्रयास तेज करेंगे ।
          इसके बावजूद सम्मेलन में विश्व के नेताओं ने विकसित देशों की आर्थिक नीतियों की कड़ी आलोचना करते हुये उत्तर दक्षिण के बीच विकास ऋण और पर्यावरण पर वार्ता कराये जाने की सलाह दी ताकि विकासशील देशों में बढ़ते हुये आपसी तनाव को कुछ कम किया जा सके।
          आन्दोलन के नेताओं ने अन्तर्राष्ट्रीय असंतुलन को विश्व की शांति तथा सुरक्षा के लिये खतरनाक बताया और कहा इसमें सुधार के लिये विकसित तथा विकासशील देशों की बातचीत आवश्यक है।
          चार दिन तक चलने वाले १०२ सदस्य देशों के संगठन के इस सम्मेलन का उद्घाटन समारोह में नेताओं ने विकसित देशों से अपील की कि वह विकासशील देशों के विदेशी ऋण के बोझ और व्यापार की समस्या के हल के लिये कदम उठायें ।
          उन्होंने कहा कि यदि निर्धन देशों की आर्थिक समस्यायें बनी रहीं तो निरस्त्रीकरण की वर्तमान प्रक्रिया और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक वातावरण में सुधार का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा ।
          सम्मेलन में कहा गया कि अगर निरस्त्रीकरण की वर्तमान प्रक्रिया और तनाव शैथिल्य को सफल बनाना है तो विदेशी ऋण की समस्या को हल करना होगा।
          गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन के पूर्ण अधिवेशन जो २८ वर्ष पूर्व इस संगठन की स्थापना के बाद दूसरी बार यूगोस्लाविया में हुआ है। यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति यानेज दनोवेश ने जिम्बाब्वे के राबर्ट मुगाबे से अध्यक्ष पद ग्रहण किया ।
          श्री दनोवेश ने अपने उद्घाटन भाषण में असंतुलित अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विकास की चर्चा की और कहा कि अब यह बात साफ होने लगी है। संगठन को और प्रभावी बनाने के लिये कार्यपद्धति में सुधार लाया जायेगा ।
          गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के जनक पण्डित जवाहर लाल नेहरू, मार्शल टीटो और कमाल अब्दुल नासिर को श्री दनोवेश श्री मुगाबे, मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक और इक्वेडर के राष्ट्रपति रोडिगो बोर्जा ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी। नेताओं ने कहा कि वर्तमान समय के अनुरूप आन्दोलन का रुख निर्धारित करते हुये यह ध्यान रखना होगा कि अपने मूल सिद्धान्तों और उद्देश्यों से यह भटक न जाये ।
          संयुक्त राष्ट्र महासचिव पेरे डी० क्वेया ने कहा कि परिवर्तित अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में आन्दोलन का महत्व फिर स्थापित हुआ है। उन्होंने कहा कि आन्दोलन की नीति संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र की पुष्टि करती है ।
          नौवें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन के पूर्ण सत्र को सम्बोधित करते हुये श्री गाँधी ने कहा कि प्रस्तावित कोष संयुक्त राष्ट्र के तहत कार्य करेगा तथा इसकी सदस्यता विश्व स्तर पर होगी ।
          गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को आर्थिक खेमाबन्दी के खतरे से आगाह करते हुये उन्होंने कहा कि शीत युद्ध की खेमाबन्दी अब धीरे-धीरे खत्म होने से बाद व्यापार युद्ध और टकराव की दिशा में नये खेमों को बनने से रोका जाये ।
          अपने भाषण में पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने विश्व अर्थ व्यवस्था में खेमाबन्दी को समाप्त करने के पहले कदम के रूप में पर्यावरण सुरक्षा के लिये एक धरती रक्षा कोष के गठन का सुझाव दिया ।
          जिन पश्चिम व पूरबी देशों में जहाँ पर्यावरण की समस्या अति गम्भीर है उनके पर्यवेक्षकों तथा प्रतिनिधियों ने प्रधानमन्त्री के प्रस्ताव को तुरन्त सराहा तथा श्री गाँधी को मुबारकबाद दी।
          फलीस्तीनी नेता यासर अराफात स्वापो के अध्यक्ष सैम नुजोमा और श्रीलंका के विदेश मन्त्री रंजन विजयरत्ने समेत गुटनिरपेक्ष देशों के कई नेताओं ने भी प्रधानमन्त्री के प्रस्ताव की सराहना की ।
          शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन प्रधानमन्त्री काफी व्यस्त रहे । उन्होंने नाश्ते पर पेरू के राष्ट्रपति एलन ग्रोशिया से तथा दोपहर के खाने पर बंगलादेश के राष्ट्रपति इरशाद से वार्ता की।
          अपने एक घण्टे के भाषण में श्री गाँधी ने कहा कि कोष से पर्यावरण की विश्वव्यापी समस्या से निपटने के लिये सामूहिक प्रयासों का ठोस आधार तैयार हो सकेगा ।
          श्री गाँधी ने कहा कि यह नाजुक क्षेत्रों में संरक्षण तकनीक विकसित करेगा या खरीदेगा। बाद में इन तकनीकों को सार्वजनिक कर दिया जायेगा ताकि विकसित और विकासशील देश इनसे समान रूप से लाभ उठा सकें।
          प्रधानमन्त्री ने कहा कि कृषि अधिकार वाली सभी प्रकार की तकनीक हर सदस्य देश के लिये मुफ्त और बिना किसी प्रतिबन्ध के उपलब्ध रहेगी। कोष के दाताओं और कोष से लाभ उठाने में केवल विकासशील देश ही नहीं बल्कि औद्योगिक देश भी होंगे।
          सम्मेलन का घोषणा-पत्र-नौवें गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन ने धनी देशों द्वारा विकासशील देशों की आर्थिक आवश्यकतायें पूरी नहीं किये जाने की स्थिति में विश्व शांति और सद्भाव के लिये खतरे की चेतावनी दी है। निर्गुट देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जोर देकर कहा कि आणविक अस्त्रों को समयबद्ध कार्यक्रम के जरिये पूरी तरह समाप्त किया जाये। चार दिवसीय शिखर सम्मेलन की समाप्ति पर १०२ देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने अपने जारी घोषणा पत्र में कहा कि आर्थिक पहल पर ध्यान दिये बिना हथियारों का प्रसार भावी ढंग से नहीं रोका जा सकता ।
          (१) सभी महाद्वीपों के एक सौ दो गुट निरपेक्ष देशों ने आज विकासशील देशों, खास तौर से सबसे कम विकसित देशों को संसाधनों के हस्तान्तरण में भारी बढ़ोतरी की घोषणा करते • तीसरे विश्व के देशों पर विदेशी कर्ज के भारी बोझ की समस्या के स्थायी समाधान तथा संरक्षणवादी बाधाओं को हटाकर उपभोक्ता वस्तुओं के लिये लाभकारी मूल्य दिये जाने की माँग की ।
          (२) नौवें गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन ने अपनी घोषणा में विश्व भर में ऊँची विकास दर सुनिश्चित करने के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक शिखर सम्मेलन आयोजित करने की चार राष्ट्रों की पेरिस पहल का भी समर्थन किया ।
          (३) शिखर सम्मेलन ने धरती रक्षा कोष बनाने के बारे में प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी के प्रस्ताव की पुष्टि करते हुये अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से अनुरोध किया कि वह पर्यावरण सम्बन्धी सहयोग के लिये अलग से वित्तीय संसाधन निर्धारित करे और विकासशील देशों को पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित टैक्नालोजी मुहैया करायें।
          (४) नौवें गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन में जिसमें ५४ देशों के राष्ट्राध्यक्षों तथा शासनाध्यक्षों ने भाग लिया यह भी ऐलान किया कि जब तक अन्तर्राष्ट्रीय विकास के स्तर में विषमतायें कम नहीं की जातीं तब तक विश्व में न तो स्थिरता आ सकती है न ही बेहतर संभावनायें पैदा हो सकती हैं
          (५) गुट निरपेक्ष राष्ट्रों ने सभी जनगण के लिये निर्णय के अधिकार की पुनः पुष्टि की बीस से अधिक क्षेत्रों में रहने वाले उन करोड़ों लोगों की दीन दुनिया की याद दिलायी जो इक्कीसवीं सदी की पूर्व संध्या में भी औपनिवेशिक दासता में जीने को विवश हैं और आन्तरिक मामलों में दखल या हस्तक्षेप और आक्रमण के शिकार सभी देशों के साथ एकजुटता की घोषणा की ।
          (६) उन्होंने जोर देकर कहा कि उपनिवेशवाद का खात्मा सम्पूर्ण मानवजाति का नैतिक दायित्व है। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से अनुरोध किया कि वे दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ आर्थिक प्रतिबन्धों को बढ़ाने, व्यापक बनाने, तेज और सख्त करने का साथ दें ताकि उस घिनौनी सरकार को अलग-अलग करके रंगभेदवादी प्रणाली समाप्त की जा सकें।
          (७) गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन ने मास्को और वाशिंगटन द्वारा मध्यम दूरी परमाणु प्रक्षेपास्त्र सन्धि पर हस्ताक्षर के बाद परमाणु निरस्त्रीकरण की गति धीमी पड़ने पर दोनों महाशक्तियों से अपनी चिंता व्यक्त की और उनसे अनुरोध किया वे मंच का परित्याग करके परमाणु हथियारों के पूर्ण उन्मूलन की दिशा में कदम आगे बढ़ायें ।
          (८) उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अपनी आस्था फिर से दुहराते हुये मुद्दों की समाप्ति, विकास तथा समृद्धि को बढ़ावा देने और मानवों तथा राष्ट्रों के समागम हुए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से पर्यावरण के क्षेत्र में सहयोग के लिये अतिरिक्त वित्तीय संसाधन देने का आह्वान किया गया है जिससे विकासशील देशों को पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित प्रौद्योगिकी हासिल हो सके । आन्दोलन भी इसमें अपना योगदान देगा।
          (९) घोषणा-पत्र में माँग की गयी है कि खुले समुद्र या अन्य देशों के आसपास के क्षेत्रों में जहरीले और घातक पदार्थों का गिराया जाना तुरन्त बन्द किया जाये । नेहरू जी के उपरान्त श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने गुट निरपेक्षता की नीति को और अधिक प्रभावशाली बनाया। जनवरी, १९८० में श्रीमती इन्दिरा गाँधी पुनः सत्तारूढ़ हुईं और उन्होंने भारत की स्वतन्त्र आत्मनिर्णयकारी, स्वावलम्बी और गुटनिरपेक्ष नीति को नई तेजस्विता के साथ आगे बढ़ाया । अक्टूबर, १९८१ के अपने एक राष्ट्रीय भाषण में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा – ‘गुटनिरपेक्षता अपने आप में एक नीति है । यह केवल एक लक्ष्य ही नहीं है इसके पीछे उद्देश्य यह है कि निर्णयकारी स्वतन्त्रता और राष्ट्र की सच्ची शक्ति तथा बुनियादी हितों की रक्षा की जाये । शक्ति में अस्थायी वृद्धि से कभी-कभी दीर्घकालीन सुरक्षा पर आँच आती है। यदि हमने भी अपनी सेनाओं को अन्य देशों से शस्त्र ले लेकर मजबूत किया होता तो स्वनिर्णय का अधिकार हमारे हाथ से निकल चुका होता। ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ शस्त्र प्राप्त करने वाले देशों की रक्षा बजाय अपने हितों की रक्षा के लिये किया । हम ऐसे लोगों के शिकार हो चुके हैं।’
          श्रीमती इन्दिरा गाँधी के उपरान्त उनके पुत्र श्री राजीव गाँधी भी इस नीति पर चल रहे हैं । उन्होंने निरस्त्रीकरण पर विशेष बल दिया है तथा गुट निरपेक्ष आन्दोलन को और भी सक्रिय एवं प्रभावशाली बनाया है।
          स्वतन्त्रता की ४२वीं वर्षगाँठ पर तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुये भारत की विदेश नीति के विषय में कहा, “भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण ही भारत का विश्व में आदर है। भारत बोलता है तो वह आवाज ७५ करोड़ लोगों की होती है । गुटनिरपेक्षता के रास्ते पर चलकर भारत आज बगैर किसी दबाव के बोलता है। उसके साथ दुनिया के दो तिहाई गुटनिरपेक्ष देशों की आवाज होती है । इसका श्रेय पं० जवाहर लाल नेहरू को देते हुये उन्होंने कहा कि पंडित जी ने भारत को यह मार्ग दिखाया और इन्दिरा जी ने देश को इस मार्ग पर आगे बढ़ाया । “
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