देशाटन से लाभ

देशाटन से लाभ

“देशाटन का अर्थ असल में देश भ्रमण करना है।
देशाटन के द्वारा हमको ज्ञान प्राप्त करना है II
सारनाथ, रामेश्वर देखें, देखें मथुरा काशी।
पंजाबी, मद्रासी देखें बंग निवासी ॥ 
देखें, घूम-घूमकर भारत माँ के हम सब अंग विलोकें ।
कर्म-भूमि गांधी, नेहरू की आओ हम अवलोकें ॥” 
          गतिशीलता जीवन है और गतिहीनता मृत्यु । गतिशील जीवन ही भविष्य में पल्लवित और पुष्पित होता हुआ संसार को सौरभमय बना देता है। मनुष्य की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि उसका जीवन उन्मुक्त, स्वच्छन्द और बन्धन-रहित हो, नवीन-नवीन वस्तुओं, दृश्यों और स्थानों के प्रति उसके हृदय में कौतूहल और जिज्ञासा हो । जिस मनुष्य में इस प्रकार की चतुर्दिक पिपासा होगी, वही मनुष्य प्रगति के पथ पर अग्रसर होता हुआ अपने अनुयायियों के लिए चरण-चिन्ह छोड़ सकता है। मानव की कौतूहल और जिज्ञासा नामक दो मनोवृत्तियाँ ही आज के विश्व को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं। देशाटन भी इसी मनोवृत्ति का परिणाम है। नवीन नगरों व स्थानों, नये देशों और उनकी वेशभूषा तथा बोलियों को देखने तथा सुनने की लालसा मानव के हृदय देशाटन से लाभ में जन्म से ही उदित हो जाती है। नवीन नगरों में तथा विदेशों में भ्रमण करना ही देशाटन कहा जाता है। देशाटन करने से मनुष्य को भिन्न-भिन्न स्थानों को देखने का सुअवसर प्राप्त होता है, अनेक नवीन विचारों की प्राप्ति होती है। उसके हृदय में उदारता की भावना का जन्म हो जाता है। मस्तिष्क को चिन्तनशील एवं क्रियाशील बनाने के लिए देशाटन परमावश्यक है। इससे कुछ समय के लिए वातावरण और वायुमण्डल बदल जाने से मनुष्य के मन और मस्तिष्क में नवीनता आ जाती है।
          प्रस्थान से पूर्व हमें एक ऐसा सहयात्री भी निश्चित कर लेना चाहिए, जो उस स्थान की, जहाँ हम जा रहे हैं, भाषा से पूर्ण परिचित हो, वहाँ की रीति नीति को भली-भाँति जानता हो । हमें उस स्थान के दर्शनीय, ऐतिहासिक स्मारकों का भी ज्ञान यथावत् होना चाहिए। इसके लिए उस स्थान का मानचित्र तथा एक ऐसी पुस्तक, जिसमें उस स्थान की समस्त विशेषताओं का वर्णन हो, अपने पास रखनी चाहिए। वह पुस्तक एक प्रकार की गाइड का काम करती रहेगी और आपको उस स्थान के भ्रमण में कोई कठिनाई न होगी। स्थान विशेष पर अधिक नहीं रुकना चाहिए। आप वहाँ उतना ही ठहरिए जितना आवश्यक हो। जिस स्थान की यात्रा आप कर रहे हैं, वहाँ की जलवायु का सम्यक् ज्ञान प्राप्त करके उसी के अनुसार वस्त्र इत्यादि का प्रबन्ध भी पहले से कर लेना चाहिए, जिससे वहाँ पहुँचकर आपको कोई असुविधा न हो I
          देशाटन से मनुष्य को अनेक लाभ होते हैं। एक स्थान पर रहते-रहते जब उसका मन ऊब जाता है तब उसके हृदय में नई-नई वस्तुओं को देखने की, नये स्थानों पर जाने की इच्छा होती है क्योंकि नित्य प्रति दिखाई पड़ने वाली वस्तुओं में इतना आकर्षण नहीं होता जितना नवीन में। वह अपना मन बहलाने के लिए निकल पड़ता है। पर्वतीय प्रदेश के शान्तिपूर्ण वातावरण में रहने वाला मैदान के नगरों में और मैदान के नगरों का निवासी पर्वतीय उपत्यका का और अधित्यकाओं के मनोरम दर्शनों के लिए निकल पड़ता है।
          देशाटन से मनुष्य शिक्षा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करता है। हम जिन ऐतिहासिक और धार्मिक स्थानों को केवल पाठ्य-पुस्तक में ही पढ़ पाते हैं, उन स्थानों को जब हम प्रत्यक्ष देख लेते हैं तब हमारा ज्ञान और भी अधिक दृढ़ हो जाता है। प्लासी और पानीपत का मैदान, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और सारनाथ के भग्नावशेष, अजन्ता और ऐलोरा की गुफायें, आगरे का ताजमहल, दिल्ली का लाल किला, बौद्धगया का मन्दिर आदि का साक्षात् ज्ञान हम देशाटन द्वारा ही प्राप्त कर सकते हैं। सूर और रसखान के पदों को पढ़कर ब्रजभूमि का वह प्राकृतिक सौंदर्य हमारे हृदय में द्विगुणित हो उठता है,जब हम कृष्ण की लीला भूमि मथुरा और वृन्दावन को अपने नेत्रों से देख लेते हैं। देशाटन से हम अन्य देशों की शासन प्रणाली और सभ्यता से भी परिचय प्राप्त करते हैं। वहाँ की राजनीतिक और सामाजिक अवस्था का पूर्ण ज्ञान हो जाता है। अतः राजनीतिक और समाज सुधार के लिए भी देशाटन आवश्यक है। सर्वश्रेष्ठ शिक्षा वही होती है, जो हमें हमारे अनुभव से प्राप्त होती है । अतः अनुभवों के लिए देश-देशान्तर का भ्रमण अत्यन्त आवश्यक है ।
          हृदय की प्रसन्नता का हमारे स्वास्थ्य से बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है । देशाटन के समय अनेक सुन्दर दृश्यों एवं मनोरम वस्तुओं को देखने से हमारा हृदय कमल विकसित हो जाता है। चित्त की प्रफुल्लता से हमारा स्वास्थ्य भी सुन्दर रहता है। कई स्थान ऐसे होते हैं, जिनकी जलवायु स्वास्थ्य को लाभ पहुँचाती है। देशाटन के समय पारिवारिक चिन्ताओं से मुक्त होते हैं, इससे भी स्वास्थ्य पर सुन्दर प्रभाव पड़ता है। प्रायः देखा जाता है कि देशाटन से लौटकर जब मनुष्य घर आते हैं तो उनका स्वास्थ्य बहुत सुन्दर हो जाता है। परन्तु घर पर रहकर फिर ज्यों का त्यों हो जाता है। अतः देशाटन से मनुष्यों के स्वास्थ्य को भी लाभ होता है ।
          देशाटन मनुष्य की चारित्रिक उन्नति में पर्याप्त सहायक होता है। मनुष्य को कष्ट सहने का अभ्यास हो जाता है। देशाटन से मनुष्य में सहिष्णुता आती है। वह धैर्यवान और शक्ति सम्पन्न हो जाता है। उसके हृदय की संकुचित विचारधारा नष्ट हो जाती है। स्नेह और भ्रातृत्व की भावना के साथ-साथ उसमें उदारता की भावना का भी उदय होता है। उसका चरित्र उज्ज्वल और उन्नत हो जाता है। उसके विचारों में दृढ़ता आ जाती है ।
          आत्मनिर्भर बनने के लिए देशाटन बहुत आवश्यक है। मनुष्य घर से बाहर निकलकर स्वावलम्बी हो जाता है। उसमें व्यवहार कुशलता आ जाती है। व्यवहार कुशलता के साथ-साथ मनुष्य के व्यक्तित्व को मौलिकता तथा विचारों को दृढ़ता प्राप्त होती है। विद्यार्थियों को अपने लम्बे अवकाश के क्षणों में देशाटन अवश्य करना चाहिए। इससे उनमें बौद्धिक जागृति उत्पन्न होगी, मृदु भाषण का गुण आयेगा, विश्व बन्धुत्व की भावना में वृद्धि होगी।
          इस क्षण-भंगुर संसार में आकर मनुष्य ने यदि संसार के भिन्न-भिन्न भागों को न देखा, तो उसका अमूल्य मानव-जीवन वास्तव में व्यर्थ है। परमेश्वर की सौन्दर्यमयी सृष्टि के दर्शन हमें देशाटन से ही प्राप्त हो सकते हैं। हम विभिन्न भाषा-भाषियों तथा विभिन्न जातियों के मनुष्यों के सम्पर्क में आते हैं, उन्हें हमें निकट से देखने का अवसर प्राप्त होता है । देशाटन करने से हमारी बहुत-सी बातों का अन्ध-विश्वास समाप्त हो जाता है । बहुत से व्यक्तियों के विषय में हमारी भ्रमात्मक धारणाएँ समाप्त हो जाती हैं। इस प्रकार देशाटन हमारे हृदय में विश्वबन्धुत्व की भावना जाग्रत करते हुए हमें सुशिक्षा प्रदान करता है । अतः यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम अपनी शक्ति और आर्थिक स्थिति के अनुसार देशाटन से ज्ञानार्जन करके जीवन को सफल बनायें । हमारे देश में निर्धनता के कारण जनता में देशाटन की मनोवृत्ति कुछ कम है। आशा है कि निकट भविष्य में है जब देश धन-धान्य से पूर्ण हो जायेगा तब जनता की मनोवृत्ति इस दिशा में भी अग्रसर होगी ।
“देश भ्रमण है ज्ञान-वृद्धि का उत्तम साधन । 
अतः चाहिये हमें कभी करना देशाटन ||”
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