दीपों का त्योहार ‘दीपावली’

दीपों का त्योहार ‘दीपावली’

          हिन्दुओं के मुख्य त्योहार होली, दशहरा और दीपावली ही हैं। दीपावली का त्योहार प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। वैसे इस त्योहार की धूम-धाम कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल द्वितीय अर्थात् पाँच दिनों तक रहती है ।
          दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को आता है। दीवाली के पर्व की यह विशेषता है कि इसके साथ चार त्योहार और मनाये जाते हैं । दीपावली का उत्साह एक दिन नहीं, अपितु पूरे सप्ताह भर रहता है । दीपावली से पहले धन तेरस का पर्व आता है । सभी हिन्दू इस दिन कोई-न-कोई नया बर्तन अवश्य खरीदते हैं। धन तेरस के बाद छोटी दीपावली; आगे दिन दीपावली, उसके अगले दिन गोवर्द्धन- पूजा तथा इस कड़ी में अंतिम त्योहार भैयादूज का होता है ।
          प्रत्येक त्योहार किसी-न-किसी महत्त्वपूर्ण घटना से जुड़ा रहता है । दीपावली के साथ भी कई धार्मिक तथा ऐतिहासिक घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। इसी दिन विष्णु ने नृसिंह का अवतार लेकर प्रह्लाद की रक्षा की थी । समुद्र मंथन करने से लक्ष्मी भी इसी दिन प्रकट हुई थीं। जैन मत के अनुसार तीर्थकर महावीर का महानिर्वाण इसी दिन हुआ था । रामाश्रयी सम्प्रदाय वालों के अनुसार चौदह वर्ष का वनवास व्यतीत कर राम इसी दिन अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की प्रसन्नता में नगरवासियों ने दीपमालाएँ सजाई थीं। इसे प्रत्येक वर्ष इसी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्दसिंह औरंगजेब की जेल से मुक्त हुए थे। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द तथा प्रसिद्ध वेदान्ती स्वामी रामतीर्थ ने इसी दिन मोक्ष प्राप्त किया था। इस त्योहार का संबंध ऋतु परिवर्तन से भी है। इसी समय शरद ऋतु का आगमन लगभग हो जाता है। इससे लोगों के खान-पान, पहनावे और सोने आदि की आदतों में भी परिवर्तन आने लगता है।
          नवीन कामनाओं से भरपूर यह त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। कार्तिक मास की अमावस्या की रात पूर्णिमा की रात बन जाती है। इस त्योहार की प्रतीक्षा बहुत पहले से की जाती है। लोग अपने-अपने घरों की सफाई करते हैं। व्यापारी तथा दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें सजाते हैं तथा लीपते-पोतते हैं। इसी त्योहार से दुकानदार लोग अपने बही-खाते शुरू करते हैं। दीपावली के दिन घरों में दिए, दुकानों तथा प्रतिष्ठानों पर सजावट तथा रोशनी की जाती है। बाजारों में खूब चहल-पहल होती है। मिठाई तथा पटाखों की दुकानें खूब सजी होती हैं। इस दिन खील-बताशों तथा मिठाइयों की खूब बिक्री होती है। बच्चे अपनी इच्छानुसार बम, फुलझड़ियां तथा अन्य पटाखे खरीदते हैं ।
          `रात्रि के समय लक्ष्मी-गणेश का पूजन होता है। ऐसी किवदन्ती है कि दीवाली की रात को लक्ष्मी का आगमन होता है। लोग अपने इष्ट-मित्रों के यहाँ मिठाई का आदान-प्रदान करके दीपावली की शुभकामनाएँ लेते-देते हैं।
          दीपावली त्योहार का बड़ा महत्त्व है। इस त्योहार के गौरवशाली अतीत पुनः जाग्रत हो उठता है। पारस्परिक सम्पर्क, सौहार्द तथा हेल-मेल बढ़ाने में यह त्योहार वड़ा महत्त्वपूर्ण है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह त्योहार कीटाणुनाशक है। मकान और दुकानों की सफाई करने से तरह-तरह के कीटाणु मर जाते हैं। वातावरण शुद्ध तथा स्वास्थ्यवर्द्धक हो जाता है।
          दीपावली के दिन कुछ लोग जुआ खेलते हैं, शराब पीते हैं तथा पटाखों में धन की अनावश्यक वरबादी करते हैं। इससे हर वर्ष अनेक दुर्घटनाएँ हो जाती हैं तथा धन-जन की हानि होती है। इन बुराइयों को रोकने की चेष्टा की जानी चाहिए।
          दीपावली प्रकाश का त्योहार है। इस दिन हमें अपने दिलों से भी अन्धविश्वासों तथा संकीर्णताओं के अँधेरे को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए। हमें दीपक जलाते समय कवि की इन पंक्तियों पर ध्यान देना चाहिए –
“जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना,
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए I”
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