जीवन में हास्यरस की उपयोगिता

जीवन में हास्यरस की उपयोगिता

          रस का जीवन में क्या महत्त्व है ? यह आप उससे पूछिये जिसका जीवन नीरस हो चुका हो और जो अपने जीवन के निराशापूर्ण क्षणों को मृत्यु के चरणों में चढ़ाने को चंचल हो उठा हो । जीवन की सार्थकता सरस जीवन में है, नीरस जीवन में नहीं। नीरस मानव तो बहुत बड़ी चीज है, नीरस वृक्ष का भी उद्यान में कोई विशेष महत्त्व नहीं होता, इसके अतिरिक्त कि वह माली के हाथों का शिकार बन जाए। रस की सत्ता संसार में कुछ उदाहरण । हास्य से लाभ । उपसंहार । सर्वोपरि है। विद्वानों ने इसे “रसों वै सः” कहकर ब्रह्म की उपाधि से विभूषित किया है। यही रस हिन्दी साहित्य में शृंगार, हास्य, करुणा, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शान्त और वात्सल्य नाम से दस प्रकार का माना जाता है। समय और परिस्थिति के अनुकूल सभी रस अपना-अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। संसार में घटित होने वाली घटनाएँ मानव हृदय पर अंकित होती रहती हैं, जिनको देखकर मानव की प्रकृति और उसकी भावनाओं में परिवर्तन होता रहता है। रामचरितमानस पढ़ते समय जब हम चित्रकूट पर राम और भरत का मिलन प्रसंग पढ़ते हैं, तो हमारा हृदय भ्रातृ प्रेम से आप्लावित हो जाता है। राम और रावण के युद्ध प्रसंग को पढ़कर हमारे हृदय में वीरता की भावना जागृत हो जाती है। किसी दीन हीन, विधवा के एकमात्र पुत्र की अकाल मृत्यु सुनकर हमारा भी हृदय नीरव चीत्कार करते हुए करुणा से भर जाता है। अभिमन्यु वध के समय उत्तरा का विलाप पढ़कर कौन सरल हृदय पुरुष ऐसा होगा जिसका हृदय शोक सन्तप्त न हो जाता हो । इस प्रकार विश्व के रंगमंच पर होने वाली विभिन्न घटनाओं को देखकर अद्भुत, शान्त आदि अनेक रसों से हृदय व्याप्त हो जाता है ।
           इन रसों में हास्य भी एक रस है, जिसका जीवन में विशेष महत्त्व है। जीवन की एक-रसता से ऊबकर मानव हृदय हँसना चाहता है। वह अपना मनोविनोद चाहता है। जब हम कार्य करते-करते थक जाते हैं और काम करने को मन बिल्कुल नहीं चाहता तब हम मित्र-मण्डली की तलाश करते . हैं, जहाँ कुछ देर बैठकर हँस सकें, गपशप कर सकें, जिससे मानसिक थकान दूर हो और हम काम करने के लिए फिर से ताजा बन जाएँ। आप समझ गए होंगे कि हास्य ने मानव को ऐसा कौन-सा विटामिन दिया जिससे कि उसने अपनी क्षीण शक्ति को फिर से प्राप्त कर लिया । दूसरे यदि आप सदैव मातमपुरसी या मुहर्रमी शक्ल बनाए बैठे रहें तो लोग आप से बातें करना भी पसन्द नहीं . करेंगे और इसका प्रभाव भी आपके स्वास्थ्य पर अहित कर पड़ेगा । एक विद्वान् विचारक ने कहा है कि जिस प्रकार हमारे दैनिक जीवन में अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं की आवश्यकता है, उसी प्रकार हास्य की भी । मनुष्य को इसके लिए एक निश्चित समय रखना चाहिए । हँसने से धमनियों में रक्त संचार होता है, रक्त की गति में तीव्रता आती है। हास्य के लिए निःसन्देह मित्र-मण्डली की आवश्यकता होती है । एकाकी व्यक्ति अकेला न हँस सकता है और न मनोविनोद ही कर सकता है। ऐसी अवस्था में हास्य रस की रचनाएँ आपका मनोविनोद कर सकती हैं, आपका मन बहला सकती हैं। वास्तव में देखा जाए तो काव्य प्रेमी के लिए विभिन्न रसों की पुस्तकें ही मनोरंजन की पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत कर सकती हैं ।
          आधुनिक युग में हास्य रस में भी कविताएँ, एकांकी नाटक, कहानियाँ और चुटकले प्रस्तुत किये जा रहे हैं। पं० गोपालप्रसाद व्यास ने हास्यरस की कविता के क्षेत्र में पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त की है। वैसे बेढब बनारसी, देवराज दिनेश, काका हाथरसी आदि कवि भी हास्यरस के खजाने को भरने में प्रयत्नशील हैं। व्यास जी का ‘पलिवाद’ जनता में बड़ा प्रसिद्ध हो गया था, जिसकी प्रथम पंक्तियाँ हैं—
यदि ईश्वर पर विश्वास न हो, उससे कुछ फल की आस न हो तो
अरे नास्तिको ! घर बैठो 
तो साकार ब्रह्म को पहचानो, पत्नी को परमेश्वर मानो I
               कुछ पंक्तियाँ सुनिये–
मेरे प्यारे सुकुमार गधे ! 
जग पड़ा दोपहरी में सुनकर मैं तेरी मधुर पुकार गधे ।
मेरे प्यारे सुकुमार गधे ! 
ххххххххххххх
           व्यास जी की ब्रजभाषा में हास्यरस की कविता का एक उदाहरण देखिए –
रहिबे कूं घर को मकान होय अट्टादार, 
हाथ सिल बट्टा पै उछट्टा दै हिलत जाँय ।
 द्वार बंधी गैया होय, घर में लुगैया होय,
बैंक में रुपैया होय, हौंसला खिलत जाँय । 
व्यास कवि कहे चार भैयन में मान होय,
देह हू में जान होय दण्ड हू पिलत जाँय । 
रोजनामचा में रोज-रोज मौज आती रहे, 
ऐसी बनै योजना कि भोजन मिलत जाय । 
××× × × × × × × × x
           हास्य की पं० ईश्वरी प्रसाद की चौपाई-बद्ध रचनाएँ देखिए–
घन घमण्ड नभ गरजत घोरा । टका हीन डरपत मन मोरा । 
दामिनी दमक रही घन माहीं । जिमि लीडर की मति स्थिर नाहीं ॥
बरसहिं जलद भूमि नियराये । लीडर जिमि चन्दा धन पाए II
बूँद अघात सतहिं गिरि कैसे । लीडर बचन प्रजा सँह जैसे ॥ 
क्षुद्र नदी भरि उतराई । जिमि कपटी नेता मन भाई ॥
 ххххххххххххххххх
               सूर का हास्य–
दोउ भुज पकर कहों कित जैहो, माखन लेउँ मंगाय ।
तेरी तों मैं नेकु न चाख्यो, सखा गए सब खाय ।।
          मानव के निराशापूर्ण अन्धकार जीवन में हास्य, प्रकाश का दीपदान लेकर आता है। उसकी सुन्दर प्रकाशपूर्ण रश्मियों से हम जीवन के पथ में अग्रसर होते हैं। मनुष्य को पग-पग पर असह्य यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। जब वह चिन्ताओं के अथाह समुद्र में डूब जाता है और उसे चारों ओर नीरसता और निराशा ही दृष्टिगोचर होने लगती है, तब उसके मित्र, हितैषी और प्रियजन अनेक उपायों से उसे हँसाने का प्रयत्न करते हैं । हँसी आ जाने पर वह क्षण भर के लिए उन सभी चिन्ता, व्यथाओं से मुक्त हो जाता है। हास्य, मानव जीवन के लिए वरदान है । यदि मनुष्य के जीवन में हास्य का अभाव हो तो उसका जीवन दूभर हो जाये ।
          हँसने से मनुष्य के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। दिन में चार या छः बार खूब खिलखिला कर हँस लेने वाला व्यक्ति कम बीमार पड़ता है। हँसने से फेफड़ों का व्यायाम होता है और मन प्रसन्न होता है। डाक्टरों का कथन है कि “मनुष्य के रक्त में दो प्रकार के कीटाणु होते हैं—एक सफेद और दूसरे लाल । श्वेत कीटाणु मनुष्य की रक्षा करते हैं और उसे निरोग तथा स्वस्थ रखते हैं और दूसरे लाल कीटाणु रोग को उत्पन्न करते हैं। मनुष्य के हँसने से उसके रक्त में श्वेत कीटाणुओं की संख्या में वृद्धि होती रहती है और वे लाल कीटाणुओं को मार डालते हैं। परन्तु जब मनुष्य अधिक चिन्तित और उदास रहता है तथा श्वेत कीटाणु मरने लगते हैं और उनकी शक्ति क्षीण होने लगती है, उस समय लाल कीटाणु श्वेत कीटाणुओं पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। मनुष्य बीमार पड़ जाता है।” अतः हास्य मानव जीवन को सुखमय और स्वस्थ रखने के लिए परम आवश्यक है। जिन मनुष्यों के जीवन में हँसी का अभाव होता है वे सदैव रुग्ण बने रहते हैं ।
          हास्य सामाजिक सुधार करने में भी पर्याप्त सहयोग प्रदान करता है। जब कविता द्वारा समाज में प्रचलित कुप्रथाओं की हँसी उड़ायी जाती है तो वे कुप्रथाएँ समाज से धीरे-धीरे समाप्त होने लगती हैं। मनुष्य के स्वभाव में भी हास्य यथोचित परिवर्तन उपस्थित कर देता है। कल्पना कीजिये कि यदि कोई व्यक्ति विशेष या वर्ग विशेष अधिक कृपण है। समझाने-बुझाने पर भी कृपणता का परित्याग नहीं करता यदि कविता के माध्यम से उसकी हँसी उड़ायी जाती है तो उसके स्वभाव में थोड़ा-बहुत परिवर्तन अवश्य हो जाता है। कुछ दिनों पहले वैश्य-वर्ग की कृपणता और उदर वृद्धि समाज में बड़ी प्रसिद्ध थी । परन्तु हास्य लेखकों और कवियों ने भी अपनी रचना का नायक बना कर मजाक बनाना शुरू किया । उदाहरण के लिए –
एक मित्र बोले- लाला तुम किस चक्की का खाते हो ?
इस छह छटाँक के राशन में भी तोंद बढ़ाये जाते हो II
          आज देखा जाता है कि वैश्य-वर्ग में भी पर्याप्त उदारता और शारीरिक चुस्ती आ गयी है । स्वर्गीय बद्रीनाथ भट्ट ने अपने ‘विवाह विज्ञापन’ में विवाह के दिवानों का खूब मजाक उड़ाया था । इसी प्रकार के अन्य सामाजिक प्रहसनों द्वारा समाज का पर्याप्त पथ-प्रदर्शन हुआ । मानव जीवन में निःसन्देह हास्य का बड़ा महत्त्व है । यह सुधार के अन्य साधनों की अपेक्षा मानव जीवन को अधिक प्रभावित करता है, परन्तु हास्य, शुद्ध हास्य ही होना चाहिए, व्यंग्यात्मक नहीं क्योंकि व्यंग्यात्मक हास्य मानव हृदय पर बड़ा गहन आघात करता है, जिसके प्रतिफल आए दिन समाज में दिखायी पड़ते हैं। बड़े-बड़े घनिष्ठ मित्रों में वैमनस्य हो जाता है, मार-पीट पर नौबत आ जाती है । अतः शुद्ध हास्य ही श्रेयस्कर है ।
          आधुनिक काल में हास्य रस के कवियों में स्व० काका हाथरसी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। उनका हास्य और व्यंग्य का समन्वय दर्शनीय है ।
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