जवाहर रोजगार योजना, १९८९

जवाहर रोजगार योजना, १९८९

          गरीब राष्ट्र के निवासी राष्ट्र के उत्थान के लिये क्या कर सकते हैं? उनका चिन्तन, उनके विचार, उनका मनन तो अपने परिवार की रोजी-रोटी जुटाने तक ही सीमित रहता है। रोजी-रोटी और मकान की चिन्ता उन्हें न आगे बढ़ने देती हैं और न राष्ट्र ही आगे बढ़ पाता है। एक कहावत है “भूखे भजन न होई गोपाला, ले लो अपनी कण्ठी माला || निश्चित ही भूखा व्यक्ति भगवान के प्रति भी उदासीनता बरतने लगता है। शिक्षा और स्वास्थ्य में विकास तो उससे कोसों दूर रहता है। राष्ट्र और राष्ट्र के प्रति दायित्व का तो स्वप्न में भी उसे विचार नहीं ‘जवाहर रोजगार योजना’ प्रधानमन्त्री : आता । विश्व की गतिविधियाँ उसके लिए आकाश के राजीव गाँधी का गरीबी उन्मूलन | तारामण्डल की भाँति हैं । गरीब का जीवन अपनी का सर्वाधिक शक्तिशाली उपाय । व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति, और अभावों से प्रधानमन्त्री की घोषणा । संघर्ष करते-करते ही पूरा हो जाता है। अतः विकसित समृद्ध और सशक्त राष्ट्र निर्माण के लिये यह आवश्यक है कि उसका प्रत्येक नागरिक, आर्थिक दृष्टि से समृद्ध और सशक्त हो क्योंकि व्यष्टि ही समष्टि की आधारभूत शिला होती है। यदि आधार दुर्बल और अक्षम है तो भवन का धराशाही होना कालान्तर में असन्दिग्ध होता है ।
          गरीबी और बेरोजगारी में कार्य कारण सम्बन्ध है । बेरोजगारी होगी तो गरीबी होगी । बेरोजगारी कारण है और गरीबी कार्य | आप कारण को मिटा दीजिए तो कार्य स्वतः ही समाप्त हो जायेगा । यदि व्यक्ति को अपना शक्ति भर काम मिल जाये तो उसकी रोजी-रोटी और मकान की समस्या स्वयं सुलझ जायेगी । आज जो सड़कों पर लूटमार, राहजनी, चोरी, डकैतियाँ होती सुनाई पड़ती हैं ये सब बेरोजगारी का ही परिणाम है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार ३० करोड़ लोग आज भी गरीबी की रेखा के नीचे अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। गरीब न अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकता है और न बीमार पड़ने पर अपने बच्चों को अच्छा उपचार ही दिला सकता है, अन्त में मृत्यु के मुख में चला जाना ही उसके भाग्य की इतिश्री होती है ।
          स्वाधीनता प्राप्ति के बाद से ही भारत सरकार की यह नीति रही है कि देश में से गरीबी दूर हो । गरीबी उन्मूलन भारतीय विकास नीति का एक अभिन्न अंग रहा है। प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में लगभग १४००० करोड़ रुपये गरीबी दूर करने के अभियान पर खर्च किये जा रहे हैं। आज, विकास पर खर्च हो रहे प्रत्येक तीन रुपयों में से एक रुपया गरीबी उन्मूलन सम्बन्धी कार्यक्रमों पर खर्च किया जा रहा है। गरीबी उन्मूलन अभियान का सबसे अधिक चर्चित कार्यक्रम – समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (इन्टीग्रेटेड रूरल डवलपमेंट प्रोग्राम) था । इसका प्रारम्भ १९७८-७९ में सीमित स्तर पर किया गया । छठी योजना में इसका विस्तार पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्र तक कर दिया गया। सातवीं योजना में भी गरीबी उन्मूलन विकास योजना का मुख्य बिन्दु रहा। यह अपेक्षा की गयी कि छठे योजना काल में इस कार्यक्रम से १.५ करोड़ ग्रामीण परिवारों को लाभ मिलेगा। बैंकों द्वारा दिये गये ऋणों को जोड़कर वह छठी योजना में इस कार्यक्रम पर ४,५०० करोड़ रुपये व्यय किये गये। सातवीं योजना में व्यय बढ़ाकर ७००० करोड़ रुपये रक्खा गया और यह अपेक्षा की गई कि इससे दो करोड़ लोग लाभान्वित होंगे। यह कार्यक्रम केवल उस वर्ग की जनता के लिये था जिसकी पारिवारिक वार्षिक आय ३,५०० रुपये से कम है। इन्दिरा गाँधी का समस्त कार्यकाल ‘गरीबी हटाओ’ के लिए समर्पित रहा । परन्तु इन सब कार्यक्रमों के पीछे एक दुखद अनुभव यह भी रहा है कि इन कार्यक्रमों के माध्यम से जहाँ एक हाथ से गरीबों को सहायता दी जाती रही वहीं दूसरे हाथ से वह उसी वर्ग के पास चली जाती है जो धनी और सक्षम हैं ।
          गाँवों में गरीबों को विशाल पैमाने पर रोजगार दिलवाने के लिये प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने २८ अप्रैल, १९८९ को संसद में ‘जवाहर रोजगार योजना की घोषणा की । सन् १९८९ में समस्त देश में पूरे वर्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी समारोहों का आयोजन किया गया | देश एक बार फिर पं० नेहरू की भूली बिसरी स्मृतियों में खो गया । भारतवासी सब जानते हैं कि वे भारत की जनता को कितना प्यार करते थे और बदले में भारतीय जनता उनकी एक आवाज पर, उन पर तन, मन, धन समर्पित करने को उद्यत हो जाती थी। गरीबों, मजदूरों और बेरोजगारों को रोजी-रोटी देने के लिये उन्होंने अपने अट्ठारह वर्षों के प्रधानमन्त्रित्व काल में क्या कुछ नहीं किया इसका इतिहास साक्षी है। भारतीयों के प्रति वही प्रेम प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी के हृदय में है। शिक्षा के विकास और प्रसार के साथ-साथ जनता के युवा वर्ग को रोजगार देने की समस्या प्रधानमन्त्री के समक्ष बहुत दिनों से मुँह बाये खड़ी थी। इसी दुर्दान्त समस्या के समाधान के लिये प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने पण्डित जवाहर लाल नेहरू जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में भारत की गरीब ग्रामीण जनता को ‘जवाहर रोजगार योजना’ उपहार स्वरूप प्रदान की। इस योजना के अन्तर्गत ग्रामीण इलाकों में गरीबी की रेखा से नीचे जीवन बिताने वाले ४४ करोड़ परिवारों के कम से कम एक सदस्य को रोजगार उपलब्ध होगा। यह योजना २१०० करोड़ रुपयों से प्रारम्भ की गई है।
बा का एक सदस्य को रोजगार उपलब्ध होगा। यह योजना २१०० करोड़ रुपयों से प्रारम्भ की गई है।
          संसद के दोनों सदनों में दिये गये वक्तव्य में २८ अप्रैल, १९८९ को “जवाहर रोजगार योजना” का पूर्ण विवरण एवं विशेषताओं का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कहा कि “ग्रामीण क्षेत्रों में अभी तक चल रहे सारे रोजगार कार्यक्रम ‘जवाहर रोजगार योजना में शामिल हो जायेंगे । केन्द्र सरकार इस योजना पर ८० प्रतिशत मदद देगी। सदस्यों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रधानमन्त्री ने कहा कि उक्त रोजगार योजना में ३० प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि ‘हम अपने आधुनिक भारत के निर्माता जवाहर लाल नेहरू की जन्म शताब्दी के अवसर पर ग्रामीण भारत के गरीबों को रोजगार की व्यवस्था उपलब्ध कराने के कार्यक्रम के तहत हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं’ गाँधी ने कहा कि तीन से चार हजार तक की आबादी वाली एक ग्राम पंचायत को ‘जवाहर रोजगार योजना’ के कार्यान्वयन के लिये प्रतिवर्ष ८० हजार से एक लाख रुपये प्राप्त होंगे। उन्होंने आशा व्यक्त की कि हम प्रत्येक निर्धन ग्रामीण परिवार के कम से कम एक सदस्य को उसके घर के नजदीक कार्यस्थल पर प्रतिवर्ष पचास से लेकर एक सौ दिनों का रोजगार दे सकेंगे। उन्होंने बताया कि खानाबदोश जनजातियों को रोजगार दिलाने की एकीकृत योजनाओं को इस कार्यक्रम में शामिल कर लिया जायेगा। इस योजना की एक विशेष बात यह है कि इसमें जितना रोजगार पैदा होगा उसका ३० प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया जायेगा । प्रधानमन्त्री ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश भर में ग्रामीण पंचायतों के हाथों में पर्याप्त धन राशि देना है, जिससे वे भारी संख्या में ग्रामीण गरीबों के हित में जो ग्रामीण भारत का एक बड़ा भाग है, स्वयं अपनी ग्रामीण रोजगार योजनायें चला सकें । उन्होंने कहा कि पिछले सात वर्षों के दौरान ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम देश भर की ५५ प्रतिशत ग्राम पंचायतों तक ही पहुँचे हैं। ‘जवाहर रोजगार योजना’ का लक्ष्य प्रत्येक पंचायत तक पहुँचना है।
          प्रधानमन्त्री ने सदस्यों की मेजों की थपथपाहट के बीच बताया कि सभी मौजूदा ग्रामीण मजदूरी रोजगार कार्यक्रम ‘जवाहर रोजगार योजना’ में शामिल कर लिए गये हैं। इस योजना का लाभ गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण भारत के ४४० लाख परिवारों तक देश के कौने-कौने में पहुँचेगा। उन्होंने कहा कि हम इस प्रकार का वित्तीय ढाँचा बना रहे हैं जिससे राज्यों को गरीबी की रेखा के नीचे की जनसंख्या के अनुपात में धनराशि आवंटित की जायेगी। यह धनराशि आगे जिलों को सौंपी जायेगी, जिसका निर्धारण पिछड़ेपन का मापदण्ड के अनुसार किया . जायेगा जैसे जिले की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियों की अनसंख्या का हिस्सा, कुल मजदूरों की तुलना में कृषि मजदूरों का अनुपात और कृषि उत्पादकता स्तर। गाँधी ने कहा कि इस कार्यक्रम में भौगोलिक रूप से विशिष्ट क्षेत्रों में जैसे पहाड़ी, मरुस्थली तथा द्वीप समूह की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेष ध्यान दिया जायेगा । प्रधानमन्त्री ने कहा कि यह कार्यक्रम ग्राम पंचायतों को सौंपे जाने से लोगों को पहले की अपेक्षा इसके कहीं अधिक लाभ प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होंगे। उन्होंने कहा कि अब तक ऐसे कार्यक्रमों के लिये काफी बड़ी रकम ठेकेदारों और बिचौलियों पर खर्च हुई है। अन्य क्षेत्रों में भी काफी अपव्यय हुआ है। इसके अलावा प्रशासन पर होने वाले खर्च को कम किया जा सकता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि पंचायतों को वित्त व्यवस्था और कार्यक्रम को चलाने की जिम्मेदारी सौंपने से पहले कहीं ज्यादा बड़ी रकम कार्यक्रम पर खर्च की जायेगी। श्री गाँधी ने उम्मीद जाहिर की कि इस कार्यक्रम का अमल इतना अधिक खुला और साफ-सुथरा होगा जितना पहले कभी नहीं हुआ। हर ग्रामवासी को यह मालूम होगा कि कार्यक्रम के लिये कितनी रकम उपलब्ध हैं और कौन-कौन-सी योजनाओं पर रकम खर्च की जायेगी। वह यह भी जानकारी रखेगा कि इन योजनाओं पर उसके गाँव के कोने-कोने में लोग काम कर रहे हैं। रोजगार हासिल करने वाले हर व्यक्ति को यह मालूम होगा कि वह कितना पारिश्रमिक ले रहा है और अन्य लोग कितना ले रहे हैं। उसे यह भी मालूम होगा कि उसे और अन्य लोगों को कितने-कितने दिनों का काम दिया जा रहा है। गाँधी ने कहा कि जिन लोगों को धोखा दिया जाता या वंचित रखा जाता है, वे न केवल उसकी तत्काल क्षतिपूर्ति के लिए माँग कर सकेंगे बल्कि उनके हाथ में मत का वह आखिरी हथियार भी होगा जिससे वे उस पंच या सरपंच को उसके पद से हटा भी सकेंगे, जो उसे सौंपी गयी शक्तियों और जिम्मेदारियों का दुरुपयोग करता है। उन्होंने कहा कि “इस योजना का लोकतन्त्र गाँव वालों के दरवाजे पर ही, जहाँ वह रहता है और काम खोजता है, कल्याणकारी राज्य को लाने का अवसर सुदृढ़ करेगा।’ “”
          भारतवर्ष के कांग्रेस शासित सभी प्रान्तों में इस कल्याणकारी योजना का हार्दिक स्वागत किया गया परन्तु विपक्ष ने आलोचना ही की। सभी मुख्यमन्त्रियों ने प्रदेश के वरिष्ठ अधि को इस योजना को तेजी से लागू करने के निर्देश दिये हैं। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री नारायणदत्त तिवारी ने केन्द्र सरकार द्वारा नव-घोषित ‘जवाहर रोजगार योजना’ को प्रदेश में तत्काल प्रभावी ढंग से लागू करने की रणनीति तैयार करने के निर्देश दिये । श्री तिवारी ने कहा कि “यह योजना ग्राम सभाओं तथा ग्रामीण नेतृत्व के लिये एक चुनौती है। इस योजना के अधीन उत्तर प्रदेश के लिए केन्द्र सरकार द्वारा इस वर्ष (८९ में ३९७.२८ करोड़ रुपये) का प्रावधान किया गया । कुल राशि का ८० प्रतिशत केन्द्र सरकार और २० प्रतिशत राज्य सरकार देगी ।” इसी प्रकार केन्द्र सरकार ने बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि प्रान्तों के लिए धनराशि आवंटित की है जिसका २० प्रतिशत मात्र ही प्रान्तीय सरकारें वहन करेंगी।
          केन्द्रीय सरकार के तत्कालीन कृषि मन्त्री श्री भजन लाल ने १२ मई, १९८९ को राज्य सभा में बताया था कि ‘जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत प्रतिवर्ष गरीब लोगों के विकास पर २५ सौ से २६ सौ करोड़ रुपये तक की राशि खर्च होगी। उन्होंने इसे शानदार योजना बताते हुए कहा कि समूचे देश में इसका जोरदार स्वागत किया गया है। इस योजना से विशेष रूप से उन लोगों को फायदा पहुँचेगा जो गरीबी की रेखा से नीचे अपना जीवन बिता रहे हैं । कृषि मन्त्री ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रबी और खरीफ की फसल के कारण साल भर में लगभग छ: माह तक रोजगार उपलब्ध रहता है, ‘जवाहर रोजगार योजना’ से उनके लिए करीब १५० दिन के लिए और रोजगार उपलब्ध कराया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम तथा एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम के लिए दी जाने वाली राशि को ‘जवाहर रोजगार योजना’ की राशि में शामिल कर दिया जायेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस वाले धन को जिला परिषदों के माध्यम से योजना के लिए आवंटित किये जाने ग्राम पंचायत को दिया जायेगा ।
          इस योजना के अन्तर्गत प्राप्त धन राशि का वितरण ग्राम पंचायतों द्वारा ही किया जायेगा । “इन प्रधानों, पंचों को सौ से लेकर पाँच सौ लोग चुनेंगे जो निश्चित रूप से सत्ता की दलाली करने वालों पर अंकुश लगाने का काम करेंगे। प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कहा कि फासला बढ़ने से भ्रष्टाचार बढ़ता है। सत्ता का गाँवों में हस्तान्तरण हो जाने से राज्यों को शक्ति मिलेगी और लोकतान्त्रिक विकास के बन्द मार्ग खुल जायेंगे ।” निश्चित ही “जवाहर रोजगार योजना” पं० जवाहर लाल नेहरू के स्वप्नों को साकार करने तथा इन्दिरा जी के “गरीबी हटाओ” आन्दोलन को सफल सिद्ध करने में समर्थ होगी। ‘जवाहर रोजगार योजना’ प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी का समाजवाद और गरीबी उन्मूलन की दिशा में उठाया हुआ वह ठोस कदम था जो इतिहास के पृष्ठों पर और भारतीय जनता के जन-मानस पर सदैव अंकित रहेगा । देश में जो बेरोजगारी हटेगी तो देश गरीबी होगा और जब गरीबी देश में से जायेगी तो देश समृद्ध और शक्तिशाली होगा ।
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