जन-संघर्ष और आंदोलन

जन-संघर्ष और आंदोलन

अध्याय का सार

राजनीतिक व सामाजिक माँगों के लिए संघर्ष करना लोकतांत्रिक प्रयोजन होता है। ऐसे संघर्ष व आन्दोलन अक्सर होते रहते हैं। इन आन्दोलनों में एक उदाहरण 2005-2006 में नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के लिए चलाया गया था। इसी प्रकार बोलिविया में जनसंघर्ष के चलाए जाने का उदाहरण भी हमारे सामने हैं। वहाँ के इंजीनियरों, पर्यावरणवादियों व कामकाजी लोगों के एक संगठन ने जल-प्राप्ति के लिए एक सफल आन्दोलन चलाया था। लोकतंत्र में अनेकों फैसले परस्पर मेल-जाने से हो जाया करते हैं। परन्तु कुछेक फैसलों के लिए । कई बार आन्दोलन भी चलाए जाते हैं।

विरोध जितना अधिक होता है आन्दोलन व जन-संघर्ष उतना अधिक तीव्र होता है। लोकतांत्रिक संघर्ष का समाधान जनता की व्यापक लामबन्दी द्वारा होता है। राजनीतिक संगठनों अर्थात राजनीति दलों व अनेको समाज सेवी संगठन ऐसे आन्दोलनों व जन-संघर्ष द्वार। लोगों में चेतना जगाते रहते हैं। लोगों की लामबन्दी प्रायः संगठनो द्वारा प्रेरित होती है। यह संगठन दबाव-समूहों का रूप लेकर लोगों में लामबन्दी करने में सफल हो पाते हैं। दबाव-समूह जैसे लक्षण होते हैं। किसी लोकतंत्र में हित-समूहों का गठन स्वाभाविक होता है। ऐसे अनेक समूह बन जाते हैं जो जन-सामान्य व लोक-कल्याण हेतु कार्यरत रहते हैं। बन्धुआ मजदूरी के विरुद्ध लड़ने वाले समूह ऐसे जन-सामान्य व लोक-कल्याण समूहों का एक उदाहरण है। ‘बाससेफ’ ऐसा ही एक अन्य उदाहरण है। दबाव-समूहों में कुछेक ऐसे समूह भी होते हैं जो विशेष किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन करते रहते हैं।

नेपाल में नेपाल नरेश के विरुद्ध लोकतंत्र की स्थापना हेतु चलाया गया आन्दोलन करते रहते हैं। नेपाल में नेपाल नरेश के विरुद्ध लोकतंत्र की स्थापना हेतु चलाया गया आन्दोलन एक आन्दोलनकारी समूह था। यह आन्दोलन किसी एक मुद्दे को लेकर चलाया गया था। कुछेक आन्दोलन कुछेक मुद्दों को लेकर चला जाते हैं तथा ऐसे आन्दोलनों को चलाने वाले संगठन भी अनेकों हो सकते हैं। नारीवादी व पर्यावरणीयवादी आन्दोलन कई समूहों द्वारा चलाए जाते हैं। राजनीति में दबाव-समूहों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है: वह जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए लोगों में जागृति पैदा करते रहते हैं। हड़ताल आदि ऐसे समूहों का एक साधन होता है। कुछेक तो ‘लॉबिस्टों’ की भी नियुक्ति करते हैं। दबाव-समूहों का लोकतंत्र पर पड़ने वाला समूह प्रायः सकारात्मक ही होता है।

जानने योगय शब्द तथा तथ्य एवं उनके भाव

माओवादी: चीनी क्रान्ति के नेता माओ के विचारों को मानने वाले साम्यवादी माओवादी कहलाए जाते हैं।
माओवादी क्रान्ति : क्रान्ति लाने में हिंसा के प्रयोग के प्रचार का माओ का तरीका
सर्वहारा का शासन : मजदूरों व किसानों के शासन को सर्वहारा शासन कहा जाता है।
एस.पी.ए. : सेवेन पार्टी अलाएस (नेपाल में सात दलों का गठनबंधन)
जल-युद्ध : बोलिविया में पानी के लिए चलाया गया आन्दोलन
फेडेकोर : जल के लिए चलाया गया बोलिविया का वह आन्दोलन जिसे इंजीनियरों, पर्यावरणवादियों व कामकाजी लोगों के न चलाया था।
दबाव समूह : अपनी मांगों के लिए सरकार पर डाले जाने वाले दबाव-ऐसा दबाव कोई संगठित समूह चलाता है। ”
दबाव समूह के उदाहरण : पेशेवरों (वकीलों, डॉक्टरों, शिक्षकों, मजदूरों व्यावसायिक) से संगठन दबाव समूहों के उदाहरण हैं।
बामसेफ : बैकवर्ड एण्ड मायनॉरिटी कम्युनिटी एम्पलाइज सेफरेशनः जनसामान्य हितों की माँगों का प्रतिनिधित्व करने वालों के संगठन का एक रूप।
ग्रीन बैल्ट मूवमैण्ड : पूरे केन्या में (1970-1980) हरि पट्टी आन्दोलन के अंतर्गत लगभग 3 करोड़ वृक्ष लगाने वाला आन्दोलन
मेवात : हरियाणा का 2005 में बनाया गया एक जिला

जन-संघर्ष और आंदोलन Important Questions and Answers

प्रश्न-1.
क्या हड़तालें, धरने, प्रदर्शन व बंद भारत में इसलिए होते हैं कि हमारा देश लोकतंत्र में परिपक्व नहीं हुआ? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठ : 60)
उत्तर-
हड़ताल, प्रदर्शन बंद आदि का सम्बन्ध लोकतंत्र के परिपक्व होने से नहीं है। जहाँ लोकतंत्र होता है, वहाँ भी हड़ताले होती हैं। यह सब जन-जागृति के साधन हैं।

प्रश्न-2.
लामबंदी क्या होती है? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठ :62)
उत्तर-
लामबन्दी लोगों को मात्र एकत्रित करना नहीं होता। यह आलू की बोरी नहीं है। यह लोगों में चेतना जगाने व उन्हें किसी आन्दोलन व संघर्ष के लिए एक-जुट करना होता है।

प्रश्न-3.
2006 में नेपाल में किस प्रकार का आन्दोलन हुआ था?
उत्तर-
एक विलक्षण प्रकार का जन-आन्दोलन, लोकतंत्र की वापसी के लिए।

प्रश्न-4.
नेपाल लोकतंत्र के मामले में किस लहर के देशों में एक है?
उत्तर-
तीसरी लहर के देशों का एक देश।

प्रश्न-5.
अप्रैल, 2004 को नेपाल के आन्दोलनकारियों ने राजा को कैसा अल्टीमेटम दिया था?
उत्तर-
देश में लोकतंत्र की बहाली का अल्टीमेटम।

प्रश्न-5(i).
माओवादी कौन हैं?
उत्तर-
नेपाल के वह साम्यवादी जो चीन गणराज्य के नेता माओ के विचारों से प्रभावित हुए तथा जो सशस्त्र तरीकों से क्रान्ति चाहते थे।

प्रश्न-6.
बोलिविया के लोगों ने किस कारण संघर्ष किया था?
उत्तर-
बोलिवया के लोगों ने (2000 में) पानी के निजीकरण के विरुद्ध संघर्ष किया था। इसे जलयुद्ध भी कहा जाता है।

प्रश्न- 7.
‘मार्शल ला’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
सैनिकों के शासन जो सैनिक कानूनों द्वारा चलता है। सैनिकों के कानून को मार्शल ला कहा जाता है।

प्रश्न-8.
‘फेडेकोर’ क्या है?
उत्तर-
बोलिविया में पानी के निजीकरण के विरुद्ध आन्दोलन की अगुआई इंजीनियरों, पर्यावरणवादियों व कामकाजी लोगों के संगठन ने की थी। इसे फेडेकोर कहते हैं।

प्रश्न-9.
दबाव-समूह का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
अपनी माँगों के लिए सरकार व अधिकारियों पर जोर डालने वाले संगठित समूह को दबाव-समूह कहते हैं।

प्रश्न- 10.
‘बामसेफ’ क्या है?
उत्तर-
पिछड़ी जाति व अल्पसंख्यक सामुदायिक कर्मचारियों का एक संगठन जो अपने साथ अनेकों समूहों को माँगों की पूर्ति के लिए एकत्रित कर लेते हैं।

प्रश्न-11.
क्या दबाव-समूह व जन-आन्दोलन लोकतंत्र को मजबूत करते हैं?
उत्तर-
कुछ सीमा तक, ऐसे समूह व आन्दोलन लोकतंत्र को मजबूत करते हैं। यह शासकों पर दबाव डाल कर लोकहित के कार्य करने का साधन होते हैं।

प्रश्न-12.
क्या दबाव-समूहों का सम्बन्ध किसी विशेष तबके से होता है अथवा पूरे समान से?
उत्तर-
किसी विशेष तबके से।

प्रश्न-13.
नेपाल में 2006 में चले आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर-
नेपाल के राजा बीरेन्द्र के रहस्यमय कत्लेआम के बाद नए राजा ज्ञानेन्द्र ने सत्ता सम्भाली। वह नेपाल में चल रहे लोकतांत्रिक शासन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की अलोकप्रियता और कमजोरी का उन्होंने फायदा उठाया। सन् 2005 की फरवरी में राजा ज्ञानेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया। 2006 की अप्रैल में जो आन्दोलन उठ खड़ा हुआ उसका लक्ष्य शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर दोबारा जनता के हाथों में सौंपना था।

प्रश्न-14.
बोलिविया में जलसंकट की चर्चा कीजिए। वहाँ जल संघर्ष क्यों भड़का?
उत्तर-
बोलिविया लातिनी अमेरिका का एक गरीब देश है। विश्व बैंक ने यहाँ की सरकार पर नगरपालिका द्वारा की जा रही जलापूर्ति से अपना नियंत्रण छोड़ने के लिए दबाव डाला। सरकार ने कोचबंबा शहर में जलापूर्ति के अधिकार एक बहुराष्ट्रीय कंपनी को बेच दिए। इस कंपनी ने आनन-फानन में पानी की कीमत में चार गुना इजाफा कर दिया। अनेक लोगों का पानी का मासिक बिल 100 रुपये तक जा पहुँचा जबकि बोलिविया में लोगों की औसत आमदनी 5000 रुपये महीना है। इसके फलस्वरूप स्वतरुस्फूर्त जन-संघर्ष भड़क उठा।

प्रश्न-15.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी संघर्ष के पीछे संगठन किस प्रकार की भूमिका निभाते हैं?
उत्तर-
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी संघर्ष के पीछे बहुत से संगठन होते हैं। पर संगठन दो तरह से अपनी भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक दलों के निर्माण द्वारा ऐसे संगठन राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी करते हैं, चुनाव लड़ते हैं, सरकार बनाते हैं, विपक्ष सशक्त करते हैं। दूसरी भूमिका यह होती है कि दबाव-समूहों जैसे संगठन बनाकर लोग अप्रत्यक्ष रूप से अपने हितों की पूर्ति करते हैं।

प्रश्न-16.
दबाव-समूहों व जन-आन्दोलनों में क्या अंतर होता है?
उत्तर-
दबाव-समूहों की भांति जन-आन्दोलन भी चुनावी मुकाबले में सीधे भाग नहीं लेते। परन्तु वह दबाव-समूहों की भांति राजनीति को प्रभावित करने को कोशिश करते हैं। लेकिन, दबाव-समूहों के विपरीत आन्दोलनों में संगठन ढीला-ढाला होता है। आन्दोलनों में फैसले अनौपचारिक ढंग से लिए जाते हैं और ये फैसले लचीले भी होते हैं। आन्दोलन जनता की स्वतःस्फूर्त भागीदारी पर निर्भर होते हैं न कि दबाव-समूह पर।

प्रश्न-17.
जन-सामान्य के हित-समूहों अर्थात कल्याणकारी समूहों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
दबाव-समूहों में कुछेक जन-सामान्य समूह भी होते हैं। इन्हें कल्याणकारी समूह कहा जाता है। ऐसे संगठन किसी विशेष हित की बजाए सामूहिक हित का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस का लक्ष्य अपने सदस्यों की नहीं बल्कि किन्हीं और की मदद करना होता है। मिसाल के लिए हम बँधुआ मजदूरी के खिलाफ लड़ने वाले समूहों का नाम ले सकते हैं। ऐसे समूह अपनी भलाई के लिए नहीं बल्कि बँधुआ मजदूरी के बोझ तले पिस रहे लोगों के लिए लड़ते हैं। कुछ मामलों में संभव है कि जन-सामान्य के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह ऐसे उद्देश्य को साधने के लिए आगे आएँ जिससे बाकियों के साथ-साथ उन्हें भी फायदा होता हो। उदाहरण के लिए ‘बामसेफ’ (बैकवर्ड एंड मायनॉरिटी कम्युनिटी एम्पलाइज फेडरेशन-BAMCEF) का नाम लिया जा सकता है!

प्रश्न-18.
नेपाल में लोकतंत्र की वापसी हेतु चले आन्दोलन की सक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
राजा ज्ञानेन्द्र की अलोकतांत्रिक नीतियों के विरुद्ध में नेपाल में चलाया गया आन्दोलन नेपालवासियों द्वारा एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन था। संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने एक-सेवेन पार्टी अलायंस’ (सप्तदलीय गठबंधन-एस.पी.ए. ) बनाया और नेपाल की राजधानी काठमांडू में चार दिन के ‘बंद’ का आह्वान किया। इस प्रतिरोध ने जल्दी ही अनियतकालीन ‘बंद’ का रूप ले लिया और इसमें माओवादी बागी तथा अन्य संगठन भी साथ हो गए। लोग कप! तोड़कर सड़कों पर उतर आए। तकरीबन एक लाख लोग रोजाना एकजुट होकर लोकतंत्र की बहाली की माँग कर रहे थे और लोगों की इतनी बड़ी तादाद के आगे सुरक्षा बलों की एक न चल सकी। 21 अप्रैल के दिन आन्दोलनकारियों की संख्या 3-5 लाख तक पहुँच गई और आन्दोलनकारियों ने राजा को ‘अल्टीमेटम’ दे दिया। राजा ने आधे-अधूरे मन से कुछ रियासत देने की घोषणा की जिसे आन्दोलन के नेताओं ने स्वीकार नहीं किया। नेता अपनी मांगों पर अडिग रहे कि संसद को बहाल किया जाए; सर्वदलीय सरकार बने तथा एक नयी संविधान सभा का गठन हो।

24 अप्रैल अल्टीमेटम का अंतिम दिन था। इस दिन राजा तीनों माँगों को मानने के लिए बाध्य हुआ। एस.पी.ए. ने गिरिजा प्रसाद कोईराला को अंतिम सरकार का प्रधानमंत्री चुना। संसद फिर बहाल हुई और इसने अपनी बैठक में कानून पारित किए, इन कानूनों के सहारे राजा की अधिकांश शक्तियाँ वापस ले ली गईं। नयी संविधान-सभा के निर्वाचन के तौर-तरीकों पर एस.पी. ए. और माओवादियों के बीच सहमति बनी।’ इस संघर्ष को नेपाल का ‘लोकतंत्र के लिए दूसरा आन्दोलन’ कहा जाता है। नेपाल के लोगों का यह संघर्ष पूरे विश्व के लोकतंत्र-प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

प्रश्न-19.
बोलिविया में सन् 2000 में चले जलयुद्ध की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
बोलिविया में जल आपूर्ति को निजीकरण के विरुद्ध वहाँ के लोगों ने जो संघर्ष किया था, उसे जलयुद्ध भी कहा जाता है। सन् 2000 की जनवरी में श्रमिकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा सामुदायिक नेताओं के बीच एक गठबंधन ने आकार ग्रहणकिया और इस गठबंधन ने शहर में चार दिनों की कामयाब आम हड़ताल की। सरकार बातचीत के लिए राजी हुई और हड़ताल वापस ले ली गई। फिर भी, कुछ हाथ नहीं लगा। फरवरी में फिर आन्दोलन शुरू हुआ लेकिन इस बार पुलिस ने बर्बरतापूर्वक दमन किया। अप्रैल में एक औरप हड़ताल हुई और सरकार ने ‘मार्शल लॉ’ लगा दिया। लेकिन, जनता की ताकत के आगे बहुराष्ट्रीय कंपनी के अधिकारयों को शहर छोड़कर भागना पड़ा। सरकार को आन्दोलनकारियों की सारी माँगें माननी पड़ी। बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ किया गया करार रद्द कर दिया गया और जलापूर्ति दोबारा नगरपालिका को सौंपकर पुरानी दरें कायम कर दी गईं।

प्रश्न-20.
नेपाल के जन-आन्दोलन व बोलिविया के जल-युद्ध से निकलने वाले परिणामों का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
नेपाल के जन-आन्दोलन व बोलिविया के जल-युद्ध से निकलने वाले सामान्य निष्कर्ष निम्नलिखित बताए जा सकते
(i) लोकतंत्र का जन-संघर्ष के जरिए विकास होता है। यह भी संभव है कि कुछ महत्त्वपूर्ण फैसले आम सहमति से हो जाएँ और ऐसे फैसलों के पीछे किसी तरह का संघर्ष न हो। फिर भी, इसे अपवाद ही कहा जाएगा। लोकतंत्र की निर्णायक बड़ी अमूमन वही होती है जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहने वालों के बीच संघर्ष होता है। ऐसी घड़ी तब आती है जब कोई देश लोकतंत्र की ओर कदम बढ़ा रहा हो; उस देश में लोकतंत्र का विस्तार हो रहा हो अथवा वहाँ लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होने की प्रक्रिया में हों।
(ii) लोकतांत्रिक संघर्ष का समाधान जनता की व्यापक लामबंदी के जरिए होता है। संभव है, कभी-कभी इस संघर्ष का समाधान मौजूदा संस्थाओं मसलन संसद अथवा न्यायपालिका के जरिए हो जाए। लेकिन, जब विवाद ज्यादा गहन होता है तो ये संस्थाएँ स्वयं उस विवाद का हिस्सा बन जाती है। ऐसे में समाध न इन संस्थाओं के जरिए नहीं बल्कि उनके बाहर यानी जनता के माध्यम से होता है।
(ii) ऐसे संघर्ष और लामबंदियों का आधार राजनीतिक संगठन होते हैं। यह बात सच है कि ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं में स्वतःस्फूर्त होने का भाव भी कहीं-न-कहीं जरूर मौजूद होता है लेकिन जनता की स्वतःस्फूर्त सार्वजनिक भागीदारी संगठित राजनीति के जरिए कारगर हो पाती है। संगठित राजनीति के कई माध्यत हो सकते हैं। ऐसे माध्यमों में राजनीतिक दल, दबाव-समूह
और आन्दोलनकारी समूह शामिल हैं।

प्रश्न-21.
क्या आप सोचते हैं कि दबाव-समूहों व आन्दोलनों के कारण लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं?
उत्तर-
दबाव-समूहों व आन्दोलनों के कारण लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती है। शासकों व अधिकारियों के ऊपर दबाव डालना लोकतंत्र में कोई अहितकर गतिविधि नहीं बशर्ते इसका अवसर सबको प्राप्त होना चाहिए। सरकारें अक्सर थोड़े से ध नी और ताकतवर लोगों के अनुचित दबाव में आ जाती हैं। जन-साधारण के हित-समूह तथा आन्दोलन इस अनुचित दबाव के प्रतिकार में उपयोगी भूमिका निभाते हैं और आम नागरिक की जरूरतों तथा सरोकारों से सरकार को अवगत कराते हैं।

जन-संघर्ष और आंदोलन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
दबाव-समूह और आन्दोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
उत्तर-
दबाव-समूह और आन्दोलन राजनीति को अनेक तरह से प्रभावित करते हैं। दबाव समूह व जन-आन्दोलन दोनां चुनावी मुकाबले में सीधे भागीदारी नहीं करते, अपितु राजनीति को प्रभावित अवश्य करते हैं। राजनीति पर इन के प्रभाव को निम्नलिखित बताया जा सकता है:
(i) दबाव-समूह और आन्दोलन अपने लक्ष्य तथा गतिविधि यों के लिए जनता का समर्थन और सहानुभूति हासिल करने की कोशिश करते हैं। इसके लिए सूचना अभियान चलाना, बैठक आयोजित करना अथवा अर्जी दायर करने जैसे तरीकों का सहाया लिया जाता है। ऐसे अधिकतर समूह मीडिया को प्रभावित करते की कोशिश करते हैं तोकि उनके मसलों पर मीडिया ज्यादा ध्यान दे।

(ii) ऐसे समूह अक्सर हड़ताल अथवा सरकारी कामकाज में बाधा पहुँचाने जैसे उपायों का सहारा लेते हैं। मजदूर संगठन, कर्मचारी संघ तथा अधिकतर आन्दोलनकारी समूह अक्सर ऐसी युक्तियों का इस्तेमाल करते हैं कि सरकार उनकी माँगों की तरफ ध्यान देने के लिए बाध्य हो।

(iii) व्यवसाय-समूह अक्सर पेशेवर ‘लॉबिस्ट’ नियुक्त करते हैं अथवा महँगे विज्ञापनों को प्रायोजित करते है। दबाव-समूह अथवा आन्दोलनकारी समूह के कुछ व्यक्ति सरकार को सलाह देने वाली समितियों और आधिकारिक निकायों में शिरकत कर सकते हैं। यह दबाव-समूह और आन्दोलन दलय राजनीति में सीधे भाग नहीं लेते लेकिन वे राजनीतिक दलों पर असर डालना चाहते हैं। अधिकतर आन्दोलन किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं होते लेकिन उनका एक राजनीतिक पक्ष होता है। आन्दोलनों की राजनीतिक विचारधारा होती है और बड़े मुद्दों पर उनका राजनीतिक पक्ष होता है।

(iv) कुछ मामलों में दबाव-समूह राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए गए होते हैं अथवा उनका नेतृत्व राजनीतिक दल के नेता करते हैं। कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में काम करते हैं। उदाहरण के लिए भारत के अधिकतर मजदूर-संगठन और छात्र-संगठन या तो बड़े राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए हैं अथवा उनकी संबद्धता राजनीतिक दलों से है। ऐसे दबाव-समूहों के अधिकतर नेता अमूमन किसी-न-किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता और नेता होते हैं।

(v) कभी-कभी आन्दोलन राजनीतिक दल का रूप अख्तियार कर लेते हैं। उदाहरण के लिए ‘विदेशी’ लोगों के विरुद्ध छात्रों ने ‘असम आन्दोलन’ चलाया और जब इस आन्दोलन की समाप्ति हुई तो इस आन्दोलन ने ‘असम गण परिषद्’ का रूप ले लिया। सन् 1930 और 1940 के दशक में तमिलनाडु में समाज सुधार आन्दोलन चले थे। डी.एम.के. और ए.आई.ए.डी. एम.के. जैसी पार्टियों की जड़ें इन समाज सुधार आन्दोलनों में ढूँढी जा सकती हैं।

(vi) अधिकांशतया दबाव-समूह और आन्दोलन का राजनीतिक दलों से प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। दोनों परस्पर विरोध पक्ष लेते हैं। फिर भी इनके बीच संवाद कायम रहता है और सुलह की बातचीत चलती रहती है। आन्दोलनकारी समूहों ने नए-नए मुद्दे उठाए हैं और राजनीतिक दलों ने इन मुद्दों को आगे बढ़ाया है। राजनीतिक दलों के अधिकतर नए नेता दबाव-समूह अथवा आन्दोलनकारी समूहों से आते हैं।

प्रश्न 2.
दबाव-समूहों व राजनीतिक दलों के आपसी सम्बन्धों का स्वरूप कैसा होता है? वर्णन करें।
उत्तर-
दबाव-समूहों व राजनीतिक दलों के लक्ष्यों में भेद होता है। दबाव-समूह अपने स्वरूप में राजनीतिक नहीं होते, वह राजनीतिक चुनावों में भाग भी नहीं लेते। परन्तु उनके राजनीतिक दलों के साथ सम्बन्ध होता है। दबाव-समूह राजनीतिक दलों की चुनावों में, चुनावी अभियानों में तथा चुनावी कार्यों में सहायता करते हैं। राजनीतिक दलों के अधिकांश कार्यकर्ता दबाव-समूहों से आते हैं। दूसरी ओर राजनीतिक दल दबाव-समूहों को उनकी माँगों में सहमति देते हैं। कुछेक दबाव-समूहों का सम्बन्ध सीध राजनीतिक दलों से होता है। विद्यार्थियों का एन.एस.यू.आई. संगठन काँग्रेस से तथा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का सम्बन्ध भारतीय जनता पार्टी से है।

प्रश्न 3.
दबाव-समूहों की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती हैं?
उत्तर-
दबाव-समूह की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में खासी उपयोगी होती है। यह दबाव-समूह अपनी माँगों को सरकार तक पहुँचाने में सहायक होते हैं। उनकी माँगें सरकार तक सुनिश्चित ढंग से पहुँच पाती है। इस प्रकार सरकार को लोगों की माँगों का लोकतांत्रिक ढंग से ब्यौरा मिलता रहता है। दबाव-समूह समाज में किसी वर्णन व्यवसाय व आकांक्षा का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोकतंत्र में सभी प्रकार के समूहों व संगठनों की माँगें सरकार तक पहुँचे व सरकार उनके सम्बन्धि त कारगर कार्यवाही करे, अपने आप में लोकतांत्रिक बात होती

प्रश्न 4.
दबाव-समूह क्या है? कुछ उदाहरण बताइए।
उत्तर-
किन्हीं माँगों की पूर्ति के लिए सरकार पर डाले जाने वाले संगठित समूह का दबाव को दबाव-समूह कहा जाता है। दबाव-समूह एक प्रकार से हित समूह होते हैं। इन दोनों में अंतर यह होता है कि हित-समूह सरकार पर दबाव नहीं बना पाते, दबाव-समूह सरकार पर दबाव बना पाते हैं। मजदूर संघ, विद्यार्थी संगठन, व्यापारियों का संगठित समूह, किसानों के संगठन दबाव-समूहों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 5.
दबाव-समूह और राजनीतिक दल में क्या अन्तर होता है?
उत्तर-

(1) दबाव-समूह अपने स्वरूप में राजनीतिक नहीं होते, राजनीतिक दल अपने स्वरूप में राजनीतिक होते हैं।
(2) दबाव-समूह चुनावों आदि में चुनाव नहीं लड़ते, परन्तु वह दलों की चुनावों में सहायता करते हैं; राजनीतिक दल चुनावी राजनीति करते हैं।
(3) दबाव-समूह राजनीतिक दलों की सहायता से सरकार पर दबाव डालते हैं; राजनीतिक दल दबाव-समूहों की सहायता से सरकार की सत्ता प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 6.
जो संगठन विशिष्ट सामाजिक वर्ग जैसे मजदूर, कर्मचारी, शिक्षक और वकील आदि के हितों को बढ़ावा देने की गतिविधियाँ चलाते हैं उन्हें ………. कहा जाता है।
उत्तर-
दबाव-समूह।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में किस कथन से स्पष्ट होता है कि दबाव-समूह और राजनीतिक दल में अंतर होता है
(क) राजनीतिक दल राजनीतिक पक्ष लेते हैं, जबकि दबाव-समूह राजनीतिक मसलों की चिंता नहीं करते।
(ख) दबाव-समूह कुछ लोगों तक ही सीमित होते हैं जबकि राजनीतिक दल का दायरा ज्यादा लोगों तक फैला होता है।
(ग) दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं। __ (घ) दबाव-समूह लोगों की लामबंदी नहीं करते जबकि राजनीतिक दल ऐसा करते हैं।
उत्तर-
(ग) सही है।

प्रश्न 8.
सूची -I (संगठन और संघर्ष) का मिलान सूची-II से कीजिए और सूचियों के नीचे दी गई सारणी से सही उत्तर चुनिए:
HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन 1

 HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन 2
उत्तर-
(ख) सही है।

प्रश्न 9.
सूची-I का सूची-II से मिलान करें जो सूचियों के नीचे दी गई सारणी से सही उत्तर हो चुनें:
HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन 3
उत्तर-
(अ) सही है।

प्रश्न 10.
दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
(क) दबाव-समूह समाज के किसी खास तबके के हितों की संगठित अभिव्यक्ति होते हैं।
(ख) दबाव-समूह राजनीतिक मुद्दों पर कोई-न-कोई पक्ष लेते हैं।
(ग) सभी दबाव-समूह राजनीतिक दल होते हैं। अब नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनें
(अ) क, ख और ग
(ब) क और ख
(स) ख और ग
(द) क और ग
उत्तर-
(ब) ‘क’ तथा ‘ख’ सही है।

प्रश्न 11.
मेवात हरियाणा का सबसे पिछड़ा इलाका है। यह गुड़गाँव और फरीदाबाद जिले का हिस्सा हुआ करता था। मेवात के लोगों को लगा कि इस इलाके को अगर अलग जिला बना दिया जाए तो इस इलाके पर ज्यादा ध्यान जाएगा। लेकिन, राजनीतिक दल इस बात में कोई रुचि नहीं ले रहे थे। सन् 1996 में मेवात एजुकेशन एंड सोशल आर्गेनाइजेशन तथा मेवात साक्षरता समिति ने अलग जिला बनाने की मांग उठाई। बाद में सन् 2000 में मेवात विकास सभा की स्थापना हुई। इसने एक के बाद एक कई जन-जागरण अभियान चलाए। इससे बाध्य होकर बड़े दलों यानी काँग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल को इस मुद्दे को अपना समर्थन देना पड़ा। उन्होंने फरवरी 2005 में होने वाले विधान सभा के चुनाव से पहले ही कह दिया कि नया जिला बना दिया जाएगा। नया जिला सन् 2005 की जुलाई में बना। – इस उदाहरण में आपको आन्दोलन, राजनीतिक दल और सरकार के बीच क्या रिश्ता नजर आता है। क्या आप कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जो इससे अलग रिशता हो?
उत्तर-
उपर्युक्त घटना आरम्भ में एक आन्दोलन तथा बाद में यह राजनीतिक दल द्वारा एक माँग का रूप धारण कर लेता है। मेवात हरियाणा का एक जिला बनाया जाना राजनीतिक दलों द्वारा सरकार पर दबाव डालना होता है। लोकतंत्र में किसी पिछड़े क्षेत्र को विवाद की ओर ले जाने के लिए प्रायः ऐसे आन्दोलन चलाए जाते हैं।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *