छाया मत छूना

छाया मत छूना

छाया मत छूना कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर गिरिजाकुमार माथुर का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं और भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में मध्य प्रदेश के गुना नामक स्थान पर हुआ। प्रारंभिक शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने एम०ए० अंग्रेज़ी व एल०एल०बी० की उपाधि लखनऊ से प्राप्त की।
आरंभ में इन्होंने कुछ समय तक वकालत की। तत्पश्चात् आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत हुए। नौकरी के साथ-साथ गिरिजाकुमार माथुर जी निरंतर साहित्य-साधना भी करते रहे। इन्होंने अनेक रचनाओं का निर्माण करके माँ भारती के आँचल को भर दिया। उनका निधन सन् 1994 में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’ (काव्य-संग्रह); ‘जन्म कैद’ (नाटक); ‘नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ’ (आलोचना)।

3. काव्यगत विशेषताएँ-गिरिजाकुमार माथुर रुमानी भाव-बोध के कवि हैं। इस क्षेत्र में उनको खूब सफलता मिली थी। यद्यपि उनकी आरंभिक रचनाओं में छायावादी प्रवृत्तियाँ दिखलाई पड़ती हैं, किंतु बाद में माथुर जी प्रगतिवाद से जुड़कर लिखने लगे थे। माथुर जी मानव मन की गहराइयों को छूने की अद्भुत क्षमता रखते थे। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण सदा यथार्थवादी रहा है। वे जीवन की निराशाओं से हार मानकर बैठने वाले नहीं थे, अपितु वे उन्हें नए-नए रूपों में ढालने के पक्ष में थे।
गिरिजाकुमार माथुर विषय की मौलिकता के पक्षधर थे, साथ ही शिल्प की विलक्षणता को अनदेखा नहीं करना चाहते थे। वे विषय को अधिक स्पष्ट एवं सजीव रूप में प्रस्तुत करने के लिए वातावरण के रंग भी भरने के पक्ष में थे। .

4. भाषा-शैली-गिरिजाकुमार माथुर मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता संभव कर सके। इनकी रुमानी कविताओं की भाषा सहज, सरल, सरस तथा सामान्य बोलचाल की हिंदुस्तानी भाषा है। परंतु क्लासिकल कविताओं में इन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। लेकिन स्थानीय बोली और ग्रामीण आँचल के शब्दों के प्रति इनका विशेष मोह है। ऐसे स्थलों पर वे वातावरण निर्माण के लिए स्थानीय शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार से उन्होंने बिंबों और प्रतीकों का खुलकर प्रयोग किया है। विशेषकर रंग, दृश्य, प्राण तथा प्रकृति बिंबों की प्रमुखता है। इसके अतिरिक्त माथुर साहब ने अभिधात्मक, क्लासिकल और वर्णनात्मक सभी प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया है। मुक्त छंद के प्रति इनका विशेष आग्रह है।

छाया मत छूना कविता का सार

प्रश्न-
‘छाया मत छूना’ नामक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने अपने मन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे मन! तू कभी भी बीते हुए सुख के समय की यादों के पीछे मत दौड़ना। ऐसा करने से दुःख कम होने की अपेक्षा दुगुना ही होगा। सुख स्मृतियों के पीछे भागना मन को भटकन में डालना है। मानव धन-दौलत, आदर-मान जितना प्राप्त करना चाहता है, उतना ही वह दुविधा में जकड़ा जाता है। कवि का कहना है कि प्रत्येक चाँदनी से युक्त रात के पीछे अंधकारपूर्ण रात छिपी रहती है। अतः जीवन के यथार्थ को समक्ष रखकर जीवन-यापन करना चाहिए। कवि का मत है कि दुविधा युक्त मानव कभी भी जीवन का सही मार्ग नहीं चुन सकता। भौतिक पदार्थों के पर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर लेने पर भी यदि मानव की इच्छाएँ फलीभूत होती हैं तो भले ही उसे शारीरिक सुख अनुभव हो, किंतु मानसिक पीड़ा फिर भी बनी रहेगी। कवि पुनः कहता है कि हे मानव! जिस वस्तु को तू प्राप्त नहीं कर सकता, उसे भूलकर अपने भविष्य का मार्ग निर्धारित कर। अतीत की घटनाओं को याद करके उन पर पश्चात्ताप करने से कोई लाभ नहीं होता। भाव यह है कि अतीत से जुड़े रहना केवल मूर्खता है। इससे वर्तमान और भविष्य दोनों दुखद बनते हैं।

Hindi छाया मत छूना Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘छाया मत छूना’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
बीते हुए सुखी जीवन की स्मृति को कवि ने छाया कहा है। इसलिए कवि का कथन है कि बीते हुए सुखी जीवन की घड़ियों को स्मरण करने से कुछ प्राप्त नहीं होगा, बल्कि वर्तमान जीवन और दुःखी होगा तथा भविष्य भी भ्रम में पड़ जाएगा। यही कारण है कि कवि ने छाया अर्थात् अतीत के सुखी जीवन की यादों को भूलना ही हितकर बताया है।

प्रश्न 2.
कविता में कवि किसकी और क्यों पूजा करने पर बल देता है?
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने बताया है कि अतीत के सुखी जीवन की यादों से चिपटे रहकर तथा भविष्य की आकांक्षाओं में खोए रहने से मानव-जीवन कभी सुखी नहीं हो सकता। बीते दिनों की सुखद यादें हमें कुछ देर के लिए तो मधुर लग सकती हैं, किंतु अंत में उनसे कुछ लाभ नहीं हो सकता। उनमें डूबे रहने से वर्तमान जीवन दुःखी बन जाता है। भविष्य की आकांक्षाओं से मनुष्य दुविधा में फँस जाता है। वह निर्णय नहीं ले सकता कि उसे क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए। इसलिए कवि ने वर्तमान के कठोर यथार्थ को पूजने का आग्रह किया है।

प्रश्न 3.
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।’ जीवन से उदाहरण देकर इस तथ्य की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयत्न किया है कि सुख-दुःख जीवन में बराबर आते रहते हैं। जिस प्रकार दिन के बाद रात का आना निश्चित होता है, उसी प्रकार मानव-जीवन में आए सुख का अंत होना भी निश्चित है। मानव-जीवन सुख-दुःख का एक अनोखा क्रम है। मानव-जीवन में प्रायः देखा जाता है कि आज हम उत्सव मनाने में मग्न हैं तो कल शोकाकुल हैं। आज विवाह है तो कल मांग का सिंदूर मिट जाता है। आज कोई व्यक्ति सफलता की खुशियाँ मना रहा है तो कल वही व्यक्ति असफलता पर भी रोता दिखाई देता है। अतः कवि ने ठीक ही कहा है कि हर चांदनी रात में एक अंधेरी रात छिपी रहती है अर्थात् सुख और दुःख जीवन में निरंतर आते रहते हैं।

प्रश्न 4.
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने मानव-जीवन के दुःखों का क्या कारण बताया है?
उत्तर-
कवि कहता है कि व्यक्ति का अतीत की बातों की याद में दिन-रात खोए रहने से तथा प्रेम की असफलताओं पर पश्चात्ताप करते रहने से वर्तमान जीवन दुःखद बन जाता है। अतीत की यादों से चिपके रहने वाला व्यक्ति सदा दुःखी रहता है। वर्तमान की वास्तविकताओं को भुलाकर भविष्य की कल्पनाओं में डूबे रहना भी व्यक्ति के जीवन को दुःखी बना देता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्ति की व्याख्या कीजिएप्रभुता की शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है।
उत्तर-
प्रभुत्व की प्राप्ति की शरण का बिंब एक मृगतृष्णा के समान धोखा है, मिथ्या है। जिस प्रकार रेगिस्तान में चमकती रेत को देखकर मृग को पानी होने का भ्रम हो जाता है तथा उसे प्राप्त करने के लिए भागता है किंतु अंत में कुछ भी हाथ न लगने के कारण निराश हो जाता है, उसी प्रकार प्रभुत्व प्राप्ति की शरण भी मृगतृष्णा के समान एक धोखा है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘छाया मत छूना’ कविता का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. 2017 (Set-B), Sample Paper,.2019]
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि का उद्देश्य यह उजागर करना है कि अतीत की सुखद यादों में निरंतर खोए रहना उचित नहीं है क्योंकि इससे वर्तमान जीवन दुखद और भविष्य अनिश्चित बन जाता है। जीवन की कठोर वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर जीने में ही मानव की भलाई है। कवि ने यह भी बताया है कि भविष्य की आकांक्षाओं में जीने से भी मानव-जीवन दुःखी बनता है। अतः कवि का स्पष्ट मत है कि वर्तमान जीवन के आधार पर जीना ही उचित है।

प्रश्न 7.
‘छाया मत छूना’ में कवि की आशावादी और यथार्थवादी भावनाओं की एक साथ अभिव्यक्ति हुई है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही कविवर गिरिजाकुमार माथुर की इस कविता में आशावादी चेतना के दर्शन होते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने अतीत के दुःखों व असफलताओं को याद करने की अपेक्षा अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने का प्रयास करना चाहिए
“जो न मिला भूल उसे, कर तू भविष्य वरण।”

इसी प्रकार कविवर माथुर अतीत की सुखद यादों व कल्पनाओं को तथा अवास्तविकताओं को त्यागकर जीवन में यथार्थ को स्वीकार करते हुए जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
“जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन”।

प्रश्न 8.
‘दुविधा-हत साहस है दिखाता पंथ नहीं’ पंक्ति कवि की किस विचारधारा की ओर संकेत करती है?
उत्तर-
इस पंक्ति में कवि की जीवन के प्रति यथार्थ एवं स्पष्ट विचारधारा व्यक्त हुई है। कवि ने बताया है कि जब मनुष्य का मन दुविधाओं से ग्रस्त रहता है, तब उसे आगे बढ़ने का कोई उचित मार्ग नहीं सूझता। उसका साहस भी नष्ट होने लगता है। जीवन में वह किसी एक निर्णय पर नहीं पहुँच सकता। इसलिए कवि ने स्पष्ट किया है कि हमें अपने मन में किसी भी प्रकार की दुविधा को स्थान नहीं देना चाहिए। हमारी जीवन-शैली दुविधा रहित होनी चाहिए।

Hindi छाया मत छूना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर-
यथार्थ का पूजन करके अर्थात यथार्थ को स्वीकार करके ही मानव जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। मनुष्य को वास्तविकता का सामना करना ही पड़ता है। हर मनुष्य अपनी परिस्थितियों में जीता है और उनके अनुसार जीवन को ढालता है। भूली-बिसरी यादों के सहारे जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। इसलिए कवि ने कठिन यथार्थ की पूजा करने के लिए कहा है।

प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट करेंप्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर-
मनुष्य प्रभुता एवं सुख-सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए जीवन-भर दौड़ता रहता है, परंतु उसकी यह दौड़ निरर्थक सिद्ध . होती है क्योंकि सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं। सुख के बाद दुःख आता ही है।

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?
उत्तर-
कविता में ‘छाया’ शब्द अतीत की यादों के लिए प्रयुक्त हुआ है जो अब वास्तविकता से दूर हो गई हैं। इसलिए अतीत की स्मृतियों रूपी छायाएँ अनुभव करने में भले ही मधुर प्रतीत होती हों, किंतु वर्तमान की वास्तविकता नहीं हो सकती। पुरानी यादों या छाया से चिपके रहने वाला मनुष्य अपने वर्तमान को सुधार नहीं सकता और न ही भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है। इसलिए कवि ने छाया को छूने से मना किया है।

प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ।
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर-
गिरिजाकुमार माथुर छायावादी काव्य से प्रभावित हैं, इसलिए उन्होंने प्रस्तुत कविता में विविध विशेषण शब्दों का प्रयोग करके विषय-वर्णन में रोचकता उत्पन्न की है। आलोच्य कविता में अनेक विशेषण शब्द प्रयुक्त हुए हैं, उनमें से प्रमुख विशेषण निम्नांकित हैं

(क) दूना दुख-दूना शब्द दुःख की गहराई को व्यक्त करता है।
(ख) सुरंग सुधियाँ यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ग) छवियों की चित्र-गंध-सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता को व्यक्त किया गया है।
(घ) तन-सुगंध-सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता है।
(ङ) शरण-बिंब-जीवन में आधार बनने की विशेषता को व्यक्त किया गया है।
(च) यथार्थ कठिन-जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता दिखाई गई है।
(छ) दुविधा-हत साहस-साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ज) शरद्-रात-रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
(झ) रस-वसंत-वसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।

प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर-
‘मृगतृष्णा’ शब्द का साधारण अर्थ है-भ्रम या धोखा। गर्मी के मौसम में रेगिस्तान के रेत पर पड़ती हुई सूर्य की किरणों की चमक में जल का भ्रम या धोखा हो जाता है और प्यासा मृग धोखे के कारण इसे जल समझ लेता है और इसे प्राप्त करने के लिए इसके पीछे दौड़ता है, किंतु कविता में इसका प्रयोग सुख-सुविधाओं के लिए हुआ है। व्यक्ति प्रभुता एवं सुखसुविधाओं की प्राप्ति हेतु दिन-रात उनके पीछे भागता है, किंतु उसकी यह दौड़ अंतहीन है और एक दिन वह थककर गिर जाता है। इसलिए कविता में संदेश दिया गया है कि मनुष्य को मृगतृष्णा की भावना से बचकर रहना चाहिए।

प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर-
उपरोक्त भाव निम्नलिखित पंक्ति में झलकता है’जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’।

प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस कविता में दुःख का कारण अतीत की सुखद यादों को बताया गया है। मनुष्य के जीवन में जब थोड़ा-सा भी दुःख आता है तो वह अपने वर्तमान जीवन की तुलना अतीत से करने लगता है। अतीत की मधुर स्मृतियाँ उसके मानस-पटल पर अंकित हो जाती हैं। इससे उसकी कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसा करके वह अपने दुःखों पर विजय नहीं पाता, बल्कि उसका साहस भी मंद पड़ जाता है और दुःख बढ़ जाते हैं जो उसके आगे बढ़ने के रास्ते में बाधा बन जाते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’, से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन । की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र इसे स्वयं करें।

प्रश्न 9.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर? कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर-
निश्चय ही उचित समय पर प्राप्त उपलब्धियाँ अच्छी लगती हैं, जैसे गर्मी बीत जाने पर ए.सी. किस काम का? फसलें सूख जाने पर वर्षा किस काम की? इसी प्रकार रोगी के दम तोड़ देने के पश्चात् डॉक्टर का पहुँचना व्यर्थ होता है। ये सब उदाहरण देखकर लगता है कि समय बीत जाने के बाद यदि उपलब्धियाँ प्राप्त हुईं तो किस काम की। अतः हम समय पर प्राप्त उपलब्धियों के महत्त्व के पक्ष में हैं।

पाठेतर सक्रियता

आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफर करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं अपने अनुभव लिखें।

कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

यह भी जानें
प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome का हिंदी अनुवाद ‘होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *