चन्द्रमा पर मानव के बढ़ते चरण

चन्द्रमा पर मानव के बढ़ते चरण

          चन्दामामा क्या पत्थरों या चट्टानों का इन्दुबालायें अपनी गरिमा की क्षीणता के भय ढेर मात्र है ? बच्चे स्तम्भित थे । चन्द्रमुखियाँ और से भविष्य ने इन नामों को सम्बोधित न करने के लिये अपने प्रियजनों से प्रतिज्ञायें लेने लगी थीं । छात्रों द्वारा तर्क की आशंका के भय से कलानिधि और सुधानिधि शब्दों का अर्थ बताने में अध्यापक हिचकिचाने लगते थे ? कवियों की लेखनी का युगों का उद्दीपक अब उद्दीप्त नहीं कर पा रहा था । श्रद्धालु भक्तों के श्रद्धा के पहाड़ बालू की भींत की तरह ढह गये, चन्द्रमा पर पैर रखते ही .. उनकी प्रलय की आशंकायें निर्मूल सिद्ध होकर धूल-धूसरित हो चुकी थीं। औषधिपति शब्द की वास्तविक व्याख्या, वैद्य लोग एक बार फिर ग्रन्थ उलट-पुलट कर देखने लगे थे । सधवा, सौभाग्यवती गृहलक्ष्मियों के करवा चतुर्थी के व्रत का आराध्य अब कैसे उनके स्वामियों के दीर्घ जीवन की प्रार्थनाओं को सुन सकेगा, बेचारी चिन्तित थीं। ईद मनाने के लिये अब किसी अन्य दूज के चाँद की तलाश थी । अब न उसमें चर्खा कातती हुई बुढ़िया थी और न हिरन । वहाँ केवल धूल थी, पत्थर थे और थी अकेले में सिसकी भरती हुई मूक चट्टानें और जलते हुए ज्वालामुखी । अमेरिका के वीर सपूत नील आर्मस्ट्रांग ने जब इनका पहली बार घूँघट उठाया तो वह रोमांचित हो उठा, हृदय की धड़कन ७६ से १६५ तक बढ़ गई, परन्तु उसने अपनी बहादुरी से युगों-युगों से ढके आंचल में हाथ डाल ही दिया।
          चन्द्रमा पर उतरने के साथ-साथ अध्याय, समाप्त हुआ। मानव के चिरसंचित स्वप्न और चिर- अभिलाषायें आज पूरी हुईं। न जाने वह कब से यह कहता आ रहा था कि हे अनन्त ! हे रहस्यमय !! हे अज्ञात !!! कौन तुम हो ?” अंग्रेजी की कविता, “Twinkle twinkle little star, How I wonder what you are.” का उत्तर आज मिला है। चन्द्रतल पर सर्वप्रथम मानव को उतारने का श्रेय यद्यपि अमेरिका को प्राप्त हुआ है फिर भी अन्तरिक्ष विज्ञान के पक्ष में रूसी सहयोग को नहीं भुलाया जा सकता । यह सफलता भी रूस और अमेरिका की पारस्परिक प्रतिस्पर्द्धा का ही फल है । ४ अक्टूबर, १९५७ को प्रथम रूसी कृत्रिम भू-उपगृह “स्पूतनिक-१” ने जिस अन्तरिक्ष अनुसंधान युग का श्रीगणेश किया था, आज वह अपनी चरम सीमा पर है । इसके बाद से अन्तरिक्ष विज्ञान और टैक्नोलोजी की प्रगति पर्याप्त तेज हुई और अमेरिका चन्द्रमा की दौड़ में बाजी मार गया। फिर भी, इस दिशा में रूस की महान् उपलब्धियों को नहीं भुलाया जा सकता । रूस के अन्तरिक्ष यान ” ल्यूना-२” ने १२ सितम्बर, १९५९ को चन्द्रलोक में प्रवेश किया और चन्द्रतल से टकराया । इस लोक में किसी वस्तु का चन्द्रमा के धरातल पर यह पहला आक्रमण था, फिर “ल्यूना-३” ने चन्द्रमा के पीछे उड़ान भरते हुए तब तक मानव के अदृश्य पृष्ठ भाग के चित्र टेलीविजन कैमरे से भेजे । “ल्यूना-९” ने पहली बार चन्द्रतल पर झटके के बिना उतरने में सफलता पाई, उसने चन्द्रमा के धरातल से वहाँ की दृश्यावलियाँ भी भेजीं। पर मानव को अन्तरिक्ष में भेजने की कल्पना तब साकार हुई जब अमरीका ने २८ मई, १९५९ को अन्तरिक्ष में दो बन्दर भेजे जो जीवित लौट आये। इससे पूर्व रूस ने अपने स्पूतनिक में ३ नवम्बर, १९५८ को लाइका नाम की कुतिया भेजी थी, जो दुर्भाय से जीवित न लौट सकी। इसके बाद रूस ने १५ मई, १९६० को दो कुत्ते भेजे जो लौट आये और उन पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा, तब मानव को भेजने की योजना परिपक्व हुई। सबसे पहले रूस ने मानव को अन्तरिक्ष में भेजा। वे थे श्री गगारिन, जिन्होंने १२ अप्रैल, १९६२ को उड़ान ली। वाह्य आकाश की खोज में मानव जाति का यह पहला चरण था । युगों से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में जन्मे और मिटे मानव के लिये ७ मील प्रति सैकण्ड की रफ्तार से उड़ान और भारहीनता की स्थिति में रहकर धरती पर फिर वापस आने का यह पहला अनुभव था । अब रूसी और अमेरिकी यात्री हजारों घण्टों की उड़ान कर चुके हैं। लेकिन गगारिन की १०८ मिनट की परिक्रमा अपनी जगह अंकित रहेगी, जिनका ३२वाँ चरण अपोलो-११ था ।
          १६ जौलाई, १९६९ को भारतीय समय के अनुसार ७.२ मिनट पर अपोलो-११ को ९ दिन की ऐतिहासिक उड़ान प्रारम्भ हुई, जिसमें नील आर्मस्ट्रांग, एडविन एल्ड्रिन तथा माइकेल कोलिन्स (चालक) तीन यात्री थे। आगे का सारा कार्यक्रम पूर्व सुनिश्चित था । कार्यक्रम इस प्रकार था, १६ जौलाई, १९६९ को उड़ान भरने बाद तीनों अन्तरिक्ष यात्री अपोलो-११ यान में १९ जौलाई को चन्द्रमा के कक्ष में पहुँच जायेंगे । २० जौलाई को अन्तरिक्ष यात्री आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन अपने चन्द्रयान को अपोलो यान से अलग करके चन्द्रमा पर उतरेंगे । २१ जौलाई को पहले आर्मस्ट्रांग और कुछ देर बाद एल्ड्रिन चन्द्रमा के धरातल पर उतरेंगे तथा २ घण्टा ४० मिनट तक पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अनुसंधान कार्य करेंगे। फिर चन्द्रयान में लौटकर दोनों अन्तरिक्ष यात्री विश्राम करेंगे और कल-पुर्जों की जाँच करेंगे। उसके बाद पृथ्वी की वापसी यात्रा के लिये रवाना होंगे और २४ जौलाई को प्रशान्त महासागर में उतरेंगे। अन्तरिक्ष यान अपोलो- ११ के चन्द्रयात्री अपने साथ चन्द्रमा की चट्टानों तथा धूल के जो नमूने लायेंगे, वह मनुष्य की सबसे मूल्यवान वैज्ञानिकी सम्पदा होगी। चन्द्रलोक के इन नमूनों के वैज्ञानिक परीक्षण का उत्तरदायित्व ह्यूस्टन अनुसंधानशाला के निर्देशक डा० उलबर्ट किंग (जूनियर) पर होगा, जो बाद में इनके अंशों को लगभग १५० वैज्ञानिकों में अनुसंधान के लिए वितरित कर देंगे इनमें ४० विदेशी वैज्ञानिक भी शामिल हैं।
          अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉन कैनेडी का वह वचन १० जौलाई, १९६९ को पूरा हुआ, जिसमें उन्होंने कहा था कि, “इस दशाब्दी में आदमी चन्द्रमा पर उतर जाएगा और उसे सकुशल पृथ्वी पर वापस लाया जा सकेगा ।” पृथ्वी के करोड़ों निवासियों की उत्कण्ठा, उल्लास और शुभकामनाओं के बीच रविवार २० जौलाई, १९६९ को दो मानव नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन रात को १.४८ बजे चन्द्रमा पर सकुशल उतर गए और इस प्रकार, मनुष्य का वह चिरपोषित स्वप्न पूरा हुआ, जिसे वह युगों से अपने हृदय में संजोए हुआ था । ‘ईगल’ नामक चन्द्रयान चन्द्रमा के जल-विहीन प्रशान्त सागर में बड़ी शान के साथ अपने पंख फैलाए हुए उतरा । चन्द्रयान ‘ईगल’ चारों यांत्रिक पग चन्द्रमा की क्रटर युक्त ऊबड़-खाबड़ सतह पर पूर्ण विश्वास के साथ स्थिर हो गये। आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन को यह भव्य दृश्य देखने का मौका अधिक नहीं मिला क्योंकि ईगल के चन्द्रतल पर स्थिर होते ही उन्होंने अपने यान की व्यापक जाँच पड़ताल शुरू कर दी, क्योंकि के तीसरे अन्तरिक्ष यात्री माईकल कोलिन्स मुख्य यान ‘कोलम्बिया’ में चन्द्रमा से ९६.५ कि० मी० दूरी पर परिक्रमा कर रहे थे । अन्तरिक्ष केन्द्र ने चन्द्रयान प्रगति से सन्तुष्ट होने के उपरान्त अन्तरिक्ष यात्रियों को चन्द्रमा पर उतरने की तैयारी का संकेत भेजा। संकेत मिलते ही अन्तरिक्ष यात्री उतरने को तैयार हो गये। चन्द्रयान, अन्तिम बार, चन्द्रमा के पृष्ठ भाग में जाकर लुप्त हो गया। सम्पूर्ण मानव जगत सांस रोककर अभूतपूर्व चरम क्षण की प्रतीक्षा करने लगा । ह्यूस्टन नियन्त्रण केन्द्र से अनुमति प्राप्त होने पर उनका चन्द्रयान मुख्य यान से अलग हो गया। अन्तरिक्ष यात्रियों ने चन्द्रयान के इंजन को दागा तथा यान दो साहसी मानव पुत्रों को लेकर चन्द्रमा की ओर बढ़ चला । २ घण्टे की यात्रा के बाद चन्द्रयान अन्तरिक्ष यात्रियों को लेकर चाँद पर उतर गया, परन्तु २१ जौलाई को १२-४२ बजे तक उन्हें नियन्त्रण केन्द्र की आज्ञानुसार चन्द्रयान में ही रहना पड़ा।
          पृथ्वी से २ लाख ४० हजार मील दूर चन्द्रमा पर बैठे हुये नील आर्मस्ट्रांग ने पहले शब्द कहे—“हम शान्त अड्डे से बोल रहे हैं, ईगल उतर गया ।” २१ जौलाई को ८ बजकर २६ मिनट पर धरातल पर चरण रखने वाले आर्मस्ट्रांग प्रथम व्यक्ति थे। उनके कुछ देर बाद एडविन एल्ड्रिन उतरे। आर्मस्ट्रांग ने चन्द्र धरातल के बालू के कणों पर अपने पद चिन्हों का वर्णन किया। उन्होंने कहा, “यहाँ चलने-फिरने में कोई कठिनाई नहीं है।” इसके बाद आर्मस्ट्रांग ने चन्द्र धरातल की कुछ मिट्टी उठाई और अपनी आन्तरिक पौशाक की जेब में रख ली। उनके यहाँ पहुँचकर प्रथम शब्द थे – “मनुष्य का यह पहला कदम मानवता के लिए बड़ी भारी छलाँग है। चन्द्रमा का पृष्ठ सुन्दर और बालू से ढका है, मैं उसमें अपने पद चिन्ह देख सकता हूँ।” आर्मस्ट्रांग ने अपना पहला कदम ईगल की टाँग के नीचे लगी तश्तरी पर रखा, उसके बाद वे चन्द्रमा पर उतरे । जब आर्मस्ट्रांग का बायाँ पैर चन्द्रमा की बालू में धँसता हुआ कैमरे के सामने आया तब वह चन्द्रमा की छायाओं की कड़ी ठण्ड में थे। आर्मस्ट्रांग ने कहा कि चन्द्रयान की टाँगों के पैर धूल में सिर्फ एक या दो इन्च ही धँसे हैं। उन्होंने अपना पहला कदम बड़ी सावधानी से रक्खा क्योंकि चन्द्रमा का गुरुत्व पृथ्वी की अपेक्षा छठा भाग है किन्तु उन्होंने तुरन्त रिपोर्ट दी कि उन्हें कोई कठिनाई नहीं है। नील आर्मस्ट्रांग जब चन्द्रमा पर उ उनकी हृदयगति १५६ प्रति मिनट तक पहुँच गयी थी, उस समय जब वे उतर रहे थे, यह गति ११० प्रति मिनट थी, लेकिन उतरने के पौन घण्टे बाद यह ९० प्रति मिनट हो गई थी ।
          इसके बाद, उन्होंने जब चन्द्र पृष्ठ के पत्थरों और मिट्टी के नमूने के लिए जाँच की तो वे सूर्य के प्रकाश में चमकने लगे। उनकी सफेद पोशाक चौंधिया देने वाली थी। उनके कदम कंगारू की तरह पड़ रहे थे बार-बार वे अपने विभिन्न कार्यक्रम के लिये चन्द्रयान की तरफ लौटे। चाँद पर उतरते ही चन्द्रयान ईगल के चालक एल्ड्रिन ने कहा कि मैं यहाँ हर किस्म की चट्टानें देख रहा हूँ। कुछ चट्टानें तो ६ फुट ऊँची हैं। आर्मस्ट्रांग ने भी बताया कि पहाड़ियों से शिखर दिखाई दे रहे हैं, जो चन्द्रयान के उतरने की जगह से केवल डेढ़ किलोमीटर दूर हैं। हमारे चारों ओर ज्वालामुखियों की भरभार है। इनकी संख्या इतनी अधिक है कि इन्हें गिनना सम्भव प्रतीत नहीं होता । इनका व्यास एक मीटर से १५ मीटर तक होगा।
          अमेरिका के राष्ट्रपति श्री निक्सन ने ह्वाइट हाउस से चन्द्रयात्रियों से बात करते हुए कहा – “मानव के सारे इतिहास में एक ऐसा अमूल्य क्षण है जबकि सारी पृथ्वी के लोग वास्तव में एक हो गये हैं।” चन्द्रलोक में से आर्मस्ट्रांग ने उत्तर दिया- “हमारे लिये यह बहुत बड़ी सम्मान की बात है कि हम यहाँ न केवल अमेरिका, अपितु सभी शान्तिपूर्ण देशों की जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।” श्री निक्सन ने कहा – ” मैं आपको बता नहीं सकता कि हमें कितना गर्व हो रहा है, निश्चय ही सारे संसार की जनता हमारे साथ-साथ इस बात को स्वीकार करेगी कि यह एक महान् चमत्कार है I
          अन्तरिक्ष यात्रियों ने चन्द्र धरातल पर २ घण्टे ५३ मिनट विहार किया। भारतीय समय के अनुसार उन्होंने ८ बजकर २६ मिनट पर धरातल पर पैर रखे थे और १० बजकर ३० मिनट पर (प्रातः) वे चन्द्रयान में लौट आये। इस बीच में नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रमा की चट्टानों के कुल २७ किलो नमूने एकत्र किये । ये नमूने उनकी इस यात्रा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं। अन्तरिक्ष यात्रियों ने एक सीमित क्षेत्र से विभिन्न प्रकार के नमूने इकट्ठे किए। आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रमा पर कुछ ऐसी चट्टानें देखीं जिनमें भारी मात्रा में अभ्रक होने की सम्भावना है। उन्हें काफी मात्रा में मासाल्ट चट्टानें (एक प्रकार की गहरे रंग की चट्टानें) भी दिखाई दी हैं। कुछ ऐसी चट्टानों के नमूने भी चन्द्रयात्रियों ने एकत्र किये, जिनमें २ से ४ प्रतिशत तक पानी विद्यमान था । ये चट्टानें वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं । इस सन्दर्भ में, एक और महत्वपूर्ण बात मालूम हुई और वह यह कि चन्द्रमा की सतह वैज्ञानिकों की आशा से विपरीत काफी कड़ी पाई गई । नील आर्मस्ट्रांग ने नमूने एकत्र करते समय चन्द्रमा की सतह को खोदने की कोशिश की, मगर बहुत कोशिश करने के बावजूद भी यह तीन इन्च से अधिक नहीं खोद पाए ।
          अपोलो–११ की यह चन्द्र यात्रा वैज्ञानिकों के लिये कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण सिद्ध हुई । अन्तरिक्ष यात्री अपने साथ जो सामग्री लाए हैं, उसके विश्लेषण किये जा रहे हैं। इन विश्लेषणों के बाद चन्द्रमा से सम्बन्धित अनेक रहस्यों के खुलने की सम्भावना है। इन विश्लेषणों के बाद यह भी मालूम हो सकेगा कि चन्द्रमा पर किसी प्रकार के जीवन की सम्भावना है अथवा नहीं। चन्द्रमा की उत्पत्ति कब हुई तथा चन्द्रमा का भीतरी भाग क्या पृथ्वी की तरह पिचका हुआ है अथवा नहीं? क्या चन्द्रमा पर भी पृथ्वी की तरह भूकम्प आते हैं और ज्वालामुखी फटते हैं? या फिर चन्द्रमा, एक मृत गृह है। अन्तरिक्ष यात्रियों ने चन्द्रतल पर एक बैंगनी रंग की चट्टान देखी। ऐसा प्रतीत होता है कि यह चट्टान सैकडों मील दूर हुये किसी उल्कापात के कारण चन्द्रमा पर गिरी है। चन्द्रमा की सतह पाउडर जैसी है लेकिन इतनी सख्त है कि अन्तरिक्ष यात्रियों को अपना झण्डा गाड़ने में काफी कठिनाई हुई।
          चन्द्रयात्रियों को लेकर चन्द्रमा पर उतरने वाला ईगल यान चन्द्र धरा से भारतीय समय के अनुसार २१ जौलाई, १९६९ की अपरान्ह ५-५३ (जी० एन० टी० ) पर पृथ्वी को वापसी के लिये उड़ा । चन्द्रयात्री अपने साथ ले जाये गये बहुत से कीमती सामान को वहीं छोड़ आये । अपोलो-११ का वजन उड़ान के समय ३१०० मीट्रिक टन था, परन्तु शुक्रवार २५ जौलाई, १९६९ को जब वापस हुआ तो उसका वजन केवल ६ मीट्रिक टन था । चन्द्रयात्रियों ने चन्द्रमा पर अमेरिकी झण्डा, अनेकों वैज्ञानिक उपकरण, अमेरिकी यात्रियों के चन्द्रमा पर आने सम्बन्धी अपने कार्ड तथा २५० हजार डालर का टेलीविजन कैमरा और बेशकीमती जुँक यार्ड छोड़ा, १० लाख डालर मूल्य के अन्य कैमरे, वहाँ साँस लेने के उपकरण भी छोड़ दिये, इन उपकरणों की कीमत ४५ हजार डालर है। अन्तरिक्ष यात्री ७३ देशों के नेताओं की शुभकामनाओं के सन्देशों का एक रिकार्ड बनाकर अपने साथ ले गए थे, जिसे चन्द्रमा पर ही छोड़ आए । सबसे अधिक महत्वपूर्ण वस्तु जो उन्होंने वहाँ छोड़ी है, वे हैं अपने चरण-चिन्ह | ये लगभग डेढ़ इन्च गहरे हैं जैसा कि नए हल चलाये खेत में किसी के चलने पर होते हैं। वे चरण-चिन्ह सदियों तक इसी प्रकार बने रहेंगे । ‘नासा’ के भूगर्भ विशेषज्ञ डाक्टर अल्बर्ट किंग ने बताते हुए कहा कि — “चाँद पर हवा, वर्षा या और कोई ऐसी चीज नहीं होती जिससे वे मिट जायें।” वहाँ उल्कायें गिरती हैं, चन्द्रमा पर पड़े मानव चरण-चिन्ह इन्हीं उल्काओं से मिट सकते हैं, लेकिन इसमें पाँच लाख साल लग सकते हैं। जहाँ तक अगले अपोलो चन्द्र अभियानों का प्रश्न है, उनके लिये अन्य स्थान चुने गये हैं, ताकि चन्द्रमा के विभिन्न क्षेत्रों की जानकारी मिल सके ।
          अपने निश्चित कार्यक्रम के अनुसार, अपोलो- ११ साहसी चन्द्र विजयी मानव पुत्रों को लिये २४ जौलाई, १९६९ को भारतीय समय के अनुसार रात को १० बजकर १९ मिनट पर प्रशान्त महासागर में नियत स्थल पर बड़े धीरे से उतरा । अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन, जो प्रसन्न मुद्रा में उस महान् यात्रा के सफल अवसान को दूरबीन से देख रहे थे एकदम खिल उठे, सब ओर आनन्द की लहर दौड़ गयी, खुशियाँ मनायी जाने लगीं, सीटियाँ बज उठीं, सिगरेट जल गयीं और अमरीकी झण्डे फहरा उठे । सारे विश्व ने खुशियाँ मनाकर आह्लाद प्रकट किया। पृथ्वी की ओर जाने के लिये ईगल विमान के इन्जन ने जैसे ही अपना काम आरम्भ किया, आर्मस्ट्रांग कह उठा था— “ईश्वर कितना सुन्दर है ।”
          चन्द्र यात्रा के सुखद अवसान के पश्चात् इन यात्रियों को २१ दिन तक अलग कक्ष में रखने का प्रबन्ध किया गया, जिससे इनके साथ चन्द्रलोक से कोई ऐसी धूल या कीटाणु न आये हों, जो विश्व-घातक हो जायें। ११ अगस्त, १९६९ को यह प्रतिबन्ध समाप्त हुआ। तीनों यात्री मुस्कराते और हर किसी से हाथ मिलाते हुए सलेटी रंग के उस दरवाजे से बाहर निकले, जिसने उन्हें शेष विश्व से अलग कर रखा था। इसके बाद वे अपने घरों के लिये चल दिये । १३ अगस्त, १९६९ को न्यूयार्क में चन्द्रयात्रियों का भव्य एवं अभूतपूर्व स्वागत किया गया। .
          अपने पति नील आर्मस्ट्रांग के द्वारा चन्द्रमा पर प्रथम चरण रखने के क्षण को जीवन का महानतम क्षण मानने से इन्कार करती हुई श्रीमती नील आर्मस्ट्रांग ने कहा –
          “मैं चन्द्र पर मानव के पहुँचने को अपने जीवन का सबसे महान् क्षण नहीं मानती। महानतम क्षण तो वह था आर्मस्ट्रांग से मेरा विवाह हुआ था।”
          किन्तु उसके बाद उन्होंने कहा था –
“हमने चन्द्रमा पर पहुँचने में सफलता पा ली है यह बहुत शानदार बात है। चन्द्रयात्रियों के चन्द्रमा पर पहुँचने से मुझे इतनी खुशी हुई है कि मेरे आँसू निकल पड़े।”
          चन्द्रमा से लायी गयी सामग्री, ह्यूस्टन स्थित स्पेस फ्लाइट सैंटर के मैदान में बनायी गयी चन्द्र प्रयोगशाला में रक्खी गई थी । उच्च कोटि के वैज्ञानिकों द्वारा उसके परीक्षण और अनुसन्धान किये गये। चन्द्र प्रयोगशाला अपने आप में अब तक की सबसे भिन्न प्रयोगशाला है क्योंकि इसमें पहली बार किसी अन्य ग्रह के नमूने लाकर रक्खे गये थे। वैसे पृथ्वी पर उल्काओं के रूप में अन्तरिक्ष की सामग्री आती है, लेकिन इस बार के नमूने मानव ने स्वयं एकत्रित किये थे । प्रयोगशाला का एक ही महान् लक्ष्य है – ‘एकान्तवास’ । यह इसलिये कि चन्द्रयात्रियों या सामग्री से पृथ्वी पर कोई चीज दूषित न हो, दूसरी ओर चन्द्र सामग्री पृथ्वी के वातावरण से दूषित या प्रभावित न हो कहीं ऐसा न हो कि चन्द्रमा की धूल पृथ्वी की ऑक्सीजन के सम्पर्क में आने पर विस्फोट न कर बैठे। इससे बड़ी चिन्ता इस बात की थी कि कहीं चन्द्रमा के सूक्ष्म जीवों से पृथ्वी पर जीवन को खतरा पैदा न हो। सभी सावधानियाँ बरती गईं, साथ-साथ सामग्री का विश्लेषण भी चलता रहा। इस कार्य में कुछ वर्ष लगे । लेकिन यह कार्य सम्भवतः वैज्ञानिकों के लिये सबसे दिलचस्प और उपयोगी हुआ। हो सकता है कि चन्द्र सामग्री से आशा से अधिक रहस्योद्घाटन हो और करोड़ों वर्ष पुरानी सामग्री कुछ ऐसी समस्यायें भी खड़ी कर दे, जिनका हाल वैज्ञानिक वर्षों तक खोजते रहे | इन खोजों और अनुसन्धानों में निःसन्देह मानव जीवन को अधिक सुखी और समृद्ध बनाने की भावना निहित है। अन्तरिक्ष अभियान के लिये की गयी वैज्ञानिक खोजों से अनेक ऐसे यन्त्र, सामान तथा युक्तियाँ हाथ लगी हैं, जो पृथ्वी पर मानव जीवन को बेहतर बना रही हैं ।
          अन्तरिक्ष की नितान्त अपरिचित परिस्थितियों में भी मानव को जीवित रखने के लिये आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को लम्बी यात्रा करनी पड़ी। अन्तरिक्ष यात्री की पोशाक एक वातानुकूलित कक्ष ही थी जिसमें सुरक्षा की पूरी व्यवस्था थी । हजारों मील दूर होने पर भी बैठे पृथ्वी पर चिकित्सक उसके शरीर की देखभाल करते रहते थे । अब यही पोशाक, खतरनाक उद्योगों में लगे कर्मचारियों तथा फायर ब्रिगेड के लोगों के लिये रूपान्तरित कर दी गई है। शीघ्र ही एक ऑक्सीजन परिवर्तक कैप्सूल तैयार हो रहा है, जिसे किसी धमनी में फिट करके वहीं ऑक्सीजन को पैदा किया जा सकेगा। अर्थात् न बाहरी ऑक्सीजन की जरूरत रहेगी, न साँस लेने की जरूरत रहेगी और न फेफड़ों का कोई काम रहेगा । ऐसी अनेक खोजें कल के चिकित्सालयों में प्रवेश पाकर मानवता के कल्याण का श्लाघनीय कार्य करेंगी ।
          यह निश्चित है कि चन्द्र यात्रा ने धर्म के सम्पूर्ण क्षेत्र में मनुष्यों की भावनाओं को झकझौर दिया है। इस अभूतपूर्व अभियान से निःसन्देह मानव के अन्ध-विश्वास का नाश होगा और धार्मिक विश्वास को वैज्ञानिक दृष्टि मिलेगी। वह यह अनुभव करने लगेगा कि उसकी अर्चना और उपासना का विषय वे वस्तुयें नहीं हैं, जो इस अनन्त अन्तरिक्ष में अनेक ब्रह्माण्डों और करोड़ों नक्षत्रों तथा ग्रह-उपग्रहों के रूप में बिखरी हुई हैं, अपितु वह शक्ति है, जिसने उन सबको व्यवस्था और नियन्त्रण में कर रखा है ।
          चन्द्रमा पर आर्मस्ट्रांग के इस चरण ने चन्द्रमा के द्वार खोल दिये हैं। अब वह दिन दूर नहीं जब मानव चन्द्रतल पर स्वच्छन्दतापूर्वक विहार करके सुकुशलं घर लौट आया करेगा । ह्यूस्टन से २५ जौलाई,१९६९ को अन्तरिक्ष एजेन्सी के चन्द्र अवतरण कार्यक्रम निदेशक सेमुअल सी० फिलिप्स की घोषणा के अनुसार अपोलो-१२ के अन्तरिक्ष यात्री चार्ल्ड कोनार्ड एवं एलनवीयन मध्य नवम्बर, १९६९ में चन्द्रमा के पश्चिमार्ध में स्थित तूफानों के सायर पर चले । अपोलो – १२ की चन्द्रयात्रा १४ नवम्बर, १९६९ को शुरू हुई । इससे पूर्व अपोलो- ११ के अन्तरिक्ष यात्रियों से पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली गई थी, जिन्होंने चन्द्रमा के पूर्व स्थित ‘शान्ति सागर’ में विचरण किया था । ३९ वर्षीय कोनार्ड और ३६ वर्षीय बीन (दोनों नौसेना कमांडर) ने चन्द्रमा पर २० से ३२ घण्टे गुजारे । वे अपने चन्द्रयान से तीन-तीन घण्टे के लिये दो बार बाहर निकले। ऊपर कमान यान में ४० वर्षीय नौ सेना कमांडर रिचर्ड गार्डन चन्द्रमा की कक्षा में चक्कर काटते रहे । उन्हीं दिनों श्री फिलिप्स ने बताया कि अपोलो – १३, १४ और १५ की उड़ानें मार्च, १९७० से शुरू होकर लगभग चार-चार मास के अन्तर से होंगी। अपोलो- १३ से लेकर आगे की उड़ानें पाँच मास के अन्तर से होंगी ।
          हर्ष का विषय है कि ह्यूस्टन की पूर्व घोषणा के अनुसार, १४ नवम्बर, १९६९ को पूर्व निश्चित कार्यक्रम के अनुसार अपोलो- १२ भी तीन चन्द्रयात्रियों— चार्ल्स कोनार्ड, एलेन बौन तथा रिचर्ड गार्डन, को लेकर चन्द्रमा की ओर चल दिया। रिचर्ड गार्डन मुख्य यान अपोलो- १२ में रहे और कोनार्ड और बीन में १९ नवम्बर, १९६९ को सफलतापूर्वक चन्द्रमा पर पदार्पण किया। इन लोगों ने निश्चित अवधि से भी अधिक वहाँ रुककर मानव मात्र के लिये अमूल्य चन्द्र स्मृति चिन्हों का संचय किया। वे सन् १९६७ में छोड़े गये लूना –३ के भग्नांवेश भी अपने साथ लाये हैं। लूना—३ उन्हें पड़ा मिला, जिसका वर्ण रश्मियों के प्रभाव से कुछ परिवर्तित हो चुका था I
          इन दो सफल चन्द्र यात्राओं के पश्चात् अमेरिका ने अपोलो-१३ चन्द्रलोक भेजा। इस यात्रा से कुछ असाधारण तथ्य संग्रहीत होने की आशा थी । परन्तु खेद है कि चन्द्रमा की कक्षा में प्रवेशै से पूर्व ही चन्द्रयान में ऑक्सीजन लीक होना शुरू हो गया । जेम्स लोवेल के नेतृत्व में तीनों यात्रियों का पृथ्वी पर सकुशल लौट जाना यह एक ऐसी समस्या थी, जिसमें न ह्यूस्टन का नियन्त्रण केन्द्र ही सहायता कर सकता था और न वे चन्द्र यात्री ही । सारे विश्व की आँखें उनकी सकुशल वापसी पर लगी हुई थीं। सारा विश्व ईश्वर से उनकी कुशलता के लिये प्रार्थना कर उठा। नियन्त्रण केन्द्र ने एकदम लौटने का आदेश दिया। यान फिर पृथ्वी की ओर चल पड़ा । अन्त में तीनों यात्री पृथ्वी पर सकुशल आ पहुँचे । वास्तव में अपोलो- १३ से यात्रियों को जिस तरह पृथ्वी पर वापस लाया गया, वह भी अपने आप में एक महान् उपलब्धि थी ।
          इस असफलता से अमेरिका वैज्ञानिक हतोत्साहित नहीं हुये । ५ फरवरी, अपोलो–१४ चन्द्रतल पर जा उतरा (एलन शेपर्ड और एडकर माइकेल चन्द्रतल पर उतरे और १९७१ को स्टुअर्ट रूसा मुख्य यान में बैठे रहे। यह मानव की तीसरी चन्द्रयात्रा थी । इन चन्द्रयात्रियों ने ९. फरवरी, १९७१ को ह्यूस्टन स्थित अनुसन्धान केन्द्र के माध्यम से पत्रकार सम्मेलन में भाग लिया। विशेषता यह थी कि अब की बार ये लोग अपने साथ चन्द्र-रिक्शा भी ले गये थे जिसने वहाँ चलकर उसमें चट्टानें और नमूने इकट्ठे किये, अन्त में उस चन्द्रगाड़ी को वहीं छोड़ आये।
          २६ जौलाई, १९६९ को अमेरिका ने अपोलो –१५ चन्द्रलोक को फिर भेज दिया, जिसमें तीन यात्री थे, डेविड स्टाक, इर्विन और बोर्डन । ३१ जौलाई को प्रातः पौने चार बजे स्काट और इर्विन चन्द्र घाटी में जा उतरे । अब की बार ये लोग अपने साथ एक विद्युत चालित मोटर (रोवट १) भी ले गये थे जिसमें बैठकर उन्होंने १७०४ मील की यात्रा की और १७१ पौण्ड चन्द्र चट्टानें एकत्रित कीं । चन्द्र यात्री चन्द्रमा के जिस पहाड़ी स्थान में अब की बार उतरे वहाँ की चट्टानें इकट्ठी कीं, वे साढे चार अरब वर्ष पहले की समझी जा रही हैं। अब की बार भी यान में सामने आयी जैसे बिजली प्रणाली में खराबी या एक पानी के पाइप का रिसने लगना या टूटे काँच कुछ खराबी के टुकड़ों का मिलना, आदि पर कुशल है कि चन्द्रयात्रियों ने चन्द्रमा के पहाड़ी इलाके में ६७ घण्टे बिताये और साढ़े १८ घण्टों का तीन बार चन्द्रमा पर विचरण किया ।
          १६ अप्रैल, १९७२ को अपोलो- १६ चन्द्रयात्रा पर रवाना हुआ। यह मानव की अब तक की सबसे बड़ी यात्रा थी। मार्ग में आने वाली यन्त्र सम्बन्धी कठिनाइयाँ एवं बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हुए चन्द्रयात्री जान यंग और चार्ल्स डयू २१ अप्रैल, १९७२ को चन्द्रमा पर उतरे। टाबल मेटिंगली अकेला मुख्यान में रहा। यंग और ड्यूक चन्द्रमा पर अवतरण करने वाले नौवें और दसवें अमेरिकी यात्री थे । १० दिन की अदम्य साहसिक यात्रा के बाद ये चन्द्रयात्री २७ अप्रैल, १९७२ को रात्रि के ३ बजकर १४ मिनट पर प्रशान्त महासागर स्थित क्रिस्टमस द्वीप के निकट सकुशल उतरे। यान के कमाण्डर ने कहा- “हमने पिछले १० दिनों में बहुत कुछ देखा, जितना अधिकतर लोग अपने १० जीवनों में भी नहीं देख पाते।”
          अपोलो – १६ का मुख्य उद्देश्य चन्द्रमा तथा हमारे सौर मण्डल के रहस्य मालूम करना था । वीर चन्द्रयात्री अब की बार चन्द्रमा केनार्ड क्षेत्र में उतरे थे और तीन दिन तक उन्हें चन्द्रमा की वीरान भूमि की खोज करनी थी। तीन दिनों में वे तीन बार चन्द्रयान से बाहर निकले और अनेकों घण्टों तक चन्द्रमा की खाक छानी। उन्होंने अनेक चट्टानें इकट्ठी कीं और अनेक वैज्ञानिक यन्त्र चन्द्रमा की भूमि पर स्थापित किए। दोनों चन्द्रयात्रियों ने अपनी चन्द्रकार में स्टोन पहाड़ तक की यात्रा की। स्टोन पहाड़ की ढलान अपोलो – १६ की खोज का मुख्य स्थल था । अनेक वैज्ञानिकों का कथन है कि चन्द्रमा के बनते समय मोटे पर्वत ज्वालामुखी लावा से बने हैं। पहाड़ की चोटियाँ चन्द्रयात्रियों के ऊपर नजर आ रही थीं। अपने अन्तिम व तीसरे विचरण में चन्द्रयात्रियों ने सबसे गहरे क्रेटर को देखा, यह ४०० फुट गहरा उत्तरी किरन क्रेटर था । वैज्ञानिकों ने आशा व्यक्त की है कि इस क्रेटर से भू-गर्भ विज्ञान सम्बन्धी सबसे अधिक रहस्य प्रगट होंगे। बड़े-बड़े शिलाखण्ड इस क्रेटर का व्यास २७०० फुट समझा जाता है। उन्होंने ऐसे स्थानों के भी नमूने एकत्र किये हैं, जहाँ चट्टान की ओर स्थायी रूप से छाया रहती है। वैज्ञानिकों की आशा है कि छाया के नमूनों को कभी भी सौर वायु का स्पर्श नहीं हुआ ।
          अपोलो – १६ की इस उड़ान के पश्चात् अपोलो- १७ की एक और उड़ान दिसम्बर ७२ में हुई, जिसकी उपलब्धियाँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण थीं। इस चन्द्र यात्रा के यात्री युजीन ए० सरनाम शेनैल्ड तथा हैरिसन स्मिट थे । इस बार चन्द्र यात्री चन्द्रमा के धरातल पर टारस लिट्रो नामक स्थान पर उतरे और इन्होंने वहाँ पर ७५ घण्टे गुजारे । १ विद्युत चालित गाड़ी द्वारा इन्होंने चन्द्रमा पर भ्रमण किया। फिर अपने साथ ९० किलोग्राम के नमूने लेकर ये वापस पृथ्वी पर आ गये। मई ७३ के अन्तिम सप्ताह में अमेरिका ने अपनी आकाश प्रयोगशाला (स्काई लैब) में तीन नभयात्री वैज्ञानिकों को भेजकर विश्व को एक बार फिर चमत्कृत कर दिया। इसके पश्चात् अमेरिका का चन्द्रमा पर ‘मानव’ कार्यक्रम समाप्त हो गया और रूस ने शुक्र और मंगल ग्रहों की जानकारी के लिये अनेकों उपग्रह छोड़े हैं जो उन ग्रहों की परिक्रमा करते हुये विभिन्न प्रकार की वैज्ञानिक जानकारी दे रहे हैं। भारत भी इस दिशा में अपने प्रयासों में निरन्तर वृद्धिशील है ।
          निश्चित ही अमेरिका के चन्द्र अवतरण कार्यक्रम का भविष्य अत्यन्त उज्ज्वल है। आशा में ये अवतरण मानव जाति के लिये गंगावतरण के समान लाभप्रद एवं सार्थक होंगे। अमेरिका के वैज्ञानिकों के पास आज चन्द्र सम्बन्धी इतनी सूचनाएँ एवं संग्रहीत सामग्री होते हुए भी, अभी यह नहीं कहा जा सकता कि चन्द्रमा का जन्म कब और कैसे हुआ और जन्म के बाद विकास की क्या प्रक्रिया रही। प्रत्येक यात्रा चन्द्रमा के रहस्यों को और गूढ़ बनाती जा रही है ।
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