गोविंद झा एवं अमरनाथ झा की जन्म शतक वार्षिकी पर दो दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ

गोविंद झा एवं अमरनाथ झा की जन्म शतक वार्षिकी पर दो दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ

गोविंद झा एवं अमरनाथ झा की जन्म शतक वार्षिकी पर दो दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ

साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और एमएलएसएम कालेज के संयुक्त तत्वावधान में हो रहा अभूतपूर्व आयोजन

मैथिली के वरेण्य साहित्यकार पं गोविंद झा एवं अमरनाथ झा की जन्म शतक वार्षिकी के उपलक्ष्य में साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह मेमोरियल महाविद्यालय, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को महाविद्यालय के सभागार में दो दिवसीय मैथिली संगोष्ठी के आयोजन का शुभारंभ हुआ। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डॉ शंभू कुमार यादव ने की।

संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए मैथिली के ख्यातिलब्ध साहित्यकार डा भीमनाथ झा ने कहा कि देश की समस्त भाषाओं में यह पहला अवसर है जब मैथिली के शतक वीर हो चुके दो जीवित साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित इस प्रकार की शतवार्षिकी संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत गौरव का विषय है कि भारतीय साहित्य को ऐसा दुर्लभ अवसर मैथिली ने उपलब्ध कराया है। उन्होंने पं गोविंद झा के विपुल रचनाकर्म को रेखांकित करते हुए कहा कि मैथिली साहित्य के भंडार को समृद्ध करने में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी से संवैधानिक दर्जा प्राप्त भारतीय भाषाओं में एकमात्र मैथिली ही ऐसी है जिसमें वर्ष 1993 में पं गोविंद झा को एक साथ मूल और अनुवाद दोनों कोटि का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।
डा भीमनाथ झा ने मंच पर उपस्थित अमरनाथ झा का अभिवादन करते हुए कहा कि उनकी रचनाशीलता ने परवर्ती पीढ़ी के लिए ऊर्जा और रचना धर्मिता की उर्वर भूमि तैयार की। उन्होंने साहित्य अकादमी से अमरनाथ झा की चर्चित पुस्तक सारस्वतसर मे हेमराल का अनुवाद हिंदी और अंग्रेजी में करवाने का आग्रह किया, ताकि उनके कृतित्व से भारतीय साहित्य का विशाल पाठक वर्ग सहज हीअवगत हो सके।

डा रामानंद झा रमण ने पं गोविंद झा की कृतियों की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रायः सभी विधाओं की अमूल्य रचनाएं कर उन्होंने मैथिली साहित्य का गौरव बढ़ाने में महती भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि पं गोविंद झा ने मैथिली में न केवल मूल रचनाएं की बल्कि अन्य भाषाओं की महत्वपूर्ण कृतियों का अनुवाद करके भी उन्होंने मैथिली साहित्य जगत के भंडार का विलक्षण विस्तार किया। डा सदन मिश्र ने अमरनाथ झा पर केंद्रित अपने बीज वक्तव्य में प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भी लेखन की निरंतरता बनाए रखने के लिए उनकी अभ्यर्थना की। उन्होंने कहा कि ‘सारस्वत सर में हेमराल’ पुस्तक के माध्यम से अमरनाथ झा ने मैथिली के मूर्धन्य साहित्यकार रमानाथ झा के व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध पक्षों का जैसी मौलिकता के साथ विवेचन किया वह आज भी स्पृहणीय बना हुआ है।

मौके पर कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शशिनाथ झा ने पं गोविंद झा को गुरु के रूप में स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने व्याकरण ग्रंथों की रचना के क्रम में भारतीय ही नहीं, पाश्चात्य अवधारणाओं को समाहित करने का स्तुत्य प्रयास किया। उन्होंने कहा कि पं गोविंद झा ने अपने विचारों को कभी भी खूंटे विशेष से बांध कर नहीं रखा। जब किसी गवादा से हवा का ताजा झोंका आया, उसका स्वागत करने में उन्होंने कोई कोताही नहीं बरती।
आरंभ में स्वागत भाषण करते हुए साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव ने मिथिला के साहित्य एवं संस्कृति की ऐतिहासिक महत्ता को रेखांकित करते हुए पं गोविंद झा और अमरनाथ झा को मिथिला के पांडित्य परंपरा का अनमोल निधि बताया। उद्घाटन सत्र का संचालन साहित्य अकादमी में मैथिली भाषा के प्रतिनिधि प्रो अशोक कुमार झा अविचल ने किया। जबकि धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव के रूप में महाविद्यालय की मैथिली विभागाध्यक्ष डा उषा चौधरी ने किया।

डा वीणा ठाकुर की अध्यक्षता में आयोजित पहले अकादमिक सत्र में नरेंद्र नाथ झा ने पं गोविंद झा के पारिवारिक पृष्ठभूमि का विषद वर्णन किया। वहीं स्नातकोत्तर मैथिली विभाग के अध्यक्ष प्रो रमेश झा ने अपने व्याख्यान में उनके उच्च कोटि के बहुभाषाविद् सशक्त कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार, अनुवादक एवं शब्दकोश निर्माता के रूप में उनके कृतित्व का विस्तार से वर्णन किया। इस सत्र में अरविंद अक्कू ने ‘अमर साहित्य सेवी पिता व लेखक पं गोविंद झा’ विषय पर सारगर्भित व्याख्यान दिया। अकादमिक सत्र के दूसरे चरण में हीरेंद्र कुमार झा ने जहां गोविंद झा के मैथिली गद्यशिल्प कला की विस्तार से व्याख्या की। वहीं भवनाथ झा ‘भवन’ ने वैव्याकरण एवं उत्कृष्ट भाषा शास्त्री के रूप में मैथिली भाषा साहित्य में उनके अवदानों की चर्चा की। सुरेंद्र भारद्वाज ने मैथिली नाटक और उपन्यास के विकास में पं गोविंद झा के योगदान को विशेष रूप से रेखांकित किया।

इस अवसर पर डा शांतिनाथ सिंह ठाकुर, डा धीरेंद्र नाथ मिश्र, डा जगदीश मिश्र, डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू, डा अभय कांत कुमर, डा सतीश कुमार सिंह, डा रामचंद्र सिंह,डा मीना कुमारी, डा निरंजन कुमार झा, डा भवनाथ मिश्र, डा विनय कुमार झा, प्रवीण कुमार झा, हरिमोहन जी, अनूप आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *