कन्यादान

कन्यादान

कन्यादान कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर ऋतुराज का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-ऋतुराज का आधुनिक हिंदी कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका जन्म सन् 1940 में भरतपुर (राजस्थान) में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम०ए० अंग्रेजी की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् उन्होंने अध्यापन का कार्य आरंभ किया। आजकल श्री ऋतुराज सेवानिवृत्त होकर साहित्य-सृजन में लगे हुए हैं।

2. प्रमुख रचनाएँ-कविवर ऋतुराज के अब तक आठ काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं’एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत-निरत’, ‘लीला मुखारविंद’ आदि।
पुरस्कार-कवि श्री ऋतुराज सोमदत्त परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से भी सम्मानित हो चुके हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-ऋतुराज के काव्यों के अध्ययन से पता चलता है कि वे शोषितों, पीड़ितों व उपेक्षितों के कवि हैं। उन्होंने उन लोगों के जीवन पर लेखनी चलाई है जिन्हें समाज ने हाशिए पर खड़ा किया हुआ है अथवा जिन्हें उपेक्षित समझा जाता है। वे अपने काव्य में कल्पना की अपेक्षा यथार्थ को अपनाते हैं। उनका मत है कि आज काव्य को कल्पना की उड़ान भरने की अपेक्षा यथार्थ को आधार बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। कवि ने अत्यंत सहज भाव से अन्याय, दमन, शोषण और रूढ़िग्रस्त जर्जरित संस्कारों का विरोध किया है। कहीं-कहीं उनके विद्रोह की भावना अत्यंत तीखी होकर उभरी है। उन्होंने आज के मानव के संघर्ष को काव्य में स्थान देकर एवं उसको प्रतिष्ठित करके संघर्ष व परिश्रम के प्रति विश्वास व्यक्त किया है। उन्होंने बड़ी-बड़ी दार्शनिक बातें कहने की अपेक्षा दैनिक जीवन के अनुभवों का यथार्थ के धरातल पर जाकर सजीव चित्रण किया है। उन्होंने परंपरा से हटकर नए जीवन-मूल्यों की स्थापना करने का प्रयास किया है। उनकी कविता में कल्पना नहीं, अपितु यथार्थ के दर्शन होते हैं; यथा
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना,
X X X
बंधन हैं स्त्री जीवन के।

4. भाषा-शैली-कविवर ऋतुराज भाषा के मर्म को समझते हैं। इसलिए उन्होंने जीवन को यथार्थ के धरातल पर चित्रित करने के लिए सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा को माध्यम बनाया है। उनकी भाषा पूर्णतः लोक-जीवन से जुड़ी हुई है। उनकी काव्य भाषा में तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग हुआ है।

कन्यादान कविता का सार

प्रश्न-
‘कन्यादान’ नामक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘कन्यादान’ ऋतुराज की सुप्रसिद्ध रचना है। इस कविता में माँ बेटी को स्त्री के परंपरागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर शिक्षा व सीख देती है। कवि का मत है कि समाज-व्यवस्था में स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं, वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन ही होते हैं। ‘कोमलता’ के गौरव में कमजोरी का उपहास छुपा हुआ है। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार है।

बेटी माँ के सबसे निकट होती है। उसके सुख-दुःख की साथी होती है। इसीलिए माँ के लिए बेटी उसकी अंतिम पूँजी है। प्रस्तुत कविता कोरी कल्पना पर आधारित नहीं है और न ही इसमें भावुकता को आधार बनाया गया है। यह कविता माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। प्रस्तुत कविता में कवि की स्त्री जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता अभिव्यक्त हुई है।

Hindi कन्यादान Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘कन्यादान’ कविता में कौन किसको सीख देता है और क्यों?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती है क्योंकि विवाह से पूर्व कन्या को व्यावहारिक जीवन का बोध नहीं होता। माँ अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों को अपनी बेटी को शिक्षा के रूप में बताती है ताकि उसका भावी जीवन सुखी एवं सुरक्षित बना रह सके। माँ बेटी को परंपरागत संस्कारों से मुक्त होकर स्वतंत्र जीवन जीने का व्यावहारिक ज्ञान देती है ताकि उसे कोई कष्ट न पहुँचा सके तथा उसका शोषण न कर सके।

प्रश्न 2.
समाज में नई बहुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? .
उत्तर-
भारतीय समाज में प्रायः नई बहुओं को सजी-धजी सौंदर्य की गुड़िया समझकर उनसे अच्छा व्यवहार किया जाता है। उसे नए-नए वस्त्र व गहने दिए जाते हैं। लोग उसके नए वस्त्रों, गहनों व रूप-सौंदर्य की प्रशंसा करते हैं। किंतु कुछ लोग दहेज का सामान कम लाने पर या अच्छा सामान न लाने पर व्यंग्य भी करते हैं। दहेज कम लाने पर उसे तंग भी किया जाता है। कभी-कभी तो उसे जलकर मरने पर मजबूर किया जाता है।

प्रश्न 3.
कवि ने स्त्री के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान क्यों कहा है?
उत्तर-
कवि के अनुसार स्त्रियाँ गहनों पर मुग्ध होकर उसी प्रकार भ्रमित हो जाती हैं जिस प्रकार शब्दों के प्रयोग के द्वारा लोगों को भ्रमित किया जाता है। स्त्रियाँ गहनों के प्रति इतनी अधिक आकृष्ट होती हैं कि उनकी प्राप्ति के लिए वे अपनी स्वतंत्रता को भी दाँव पर लगा देती हैं। पुरुष वर्ग उनकी इस कमज़ोरी का फायदा उठाकर मनमानी करता है। इसलिए कवि ने स्त्रियों के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान कहा है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 4.
‘कन्यादान’ नामक कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में माँ की शिक्षा के माध्यम से नारी-जागृति की भावना को उजागर किया गया है। कवि का मुख्य उद्देश्य नारी को उसके बंधन की बेड़ियों और उनके कारणों को समझाना है। कवि का मत है कि नारी का सौंदर्य, प्रशंसा, वस्त्र, गहने आदि उसको गुलाम बनाने के नए-नए ढंग हैं। नारी इन्हीं बंधनों-के-बंधन में फँसकर अपना व्यक्तित्व ही भूल जाती है। कभी-कभी उसे पुरुषों के द्वारा जलकर मरने के लिए विवश किया जाता है या फिर उसे जलाकर मार दिया जाता है। कवि ने संदेश दिया है कि यदि नारी अपनी कोमलता, सरलता और भोलेपन के प्रति सचेत हो जाए और अपने शोषण के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने की थोड़ी-सी हिम्मत अपने में पैदा कर ले तो वह शक्तिशाली बन सकती है।

प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को किस प्रकार का जीवन जीने की शिक्षा दी है?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने कन्यादान के समय अर्थात् विवाह के समय जो परंपरागत बात बताई जाती है, उनसे हट कर शिक्षा दी है। उसे बताया गया है कि वह केवल अपने शारीरिक सौंदर्य व वस्त्रों, आभूषणों की प्राप्ति आदि की ओर ही ध्यान मत दे। उसे चाहिए कि वह सामाजिक परिवर्तन को खुली आँखों से देखे तथा अपने भीतर हिम्मत और साहस उत्पन्न करे ताकि वह अपने प्रति होने वाले अपमान या अन्याय का विरोध कर सके। उसे अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा। यह सजगता ही उसके जीवन में एक नई दिशा दिखाएगी। इसी से उसका जीवन सुखी बन सकेगा।

प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ शीर्षक कविता के आधार पर माँ के जीवन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने माँ के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि वह एक सजग एवं अनुभवशील नारी है। उसने उन्हें अपने जीवन में आने वाले सुख-दुःख को भोगा है और उन्हें प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत भी किया है। वह एक संवेदनशील नारी है। उसने जीवन में जिन सुखों व दुःखों को भोगा है, उनके कारणों को समझा भी है। वह नहीं चाहती थी कि जिन दुःखों को उसने भोगा है, उन्हीं दुःखों को उसकी बेटी भी भोगे। इसलिए एक माँ अपने कर्तव्य का पालन करती हुई अपनी बेटी को जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रति सचेत करती है।

प्रश्न 7.
‘कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?
उत्तर-
कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में विवाहिता नारी के दुःख को प्रामाणिक कहा है। क्योंकि आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बन्धनों की आग बहुओं को तेजी से निगलती जा रही है। लोग लोभ के कारण इतने अन्धे हो चुके हैं कि बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर खुद-कुशी करने के लिए विवश कर देते हैं।

Hindi कन्यादान Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर-
माँ के इन शब्दों में लाक्षणिकता विद्यमान है। लड़की होने का तात्पर्य है कि उसमें कोमलता, सुंदरता, शालीनता, सहनशीलता, ममता, माधुर्य आदि स्वाभाविक गुण होते हैं। उसके इन गुणों के कारण ही परिवार बनते हैं और समाज का विकास होता है। माँ के कथन के अनुसार इन गुणों का होना आवश्यक है। किंतु साथ ही माँ का यह कहना लड़की जैसी दिखाई मत देना का तात्पर्य है कि उसमें सामाजिक स्थितियों अथवा अन्याय या शोषण का विरोध करने का साहस भी होना अनिवार्य है। उसमें सचेतता, सजगता आदि गुण भी होने चाहिएँ। उसे डरपोक नहीं होना चाहिए। जहाँ उसके मन में कोमलता, माधुर्य तथा ममता के भाव हैं, वहाँ उसमें अन्याय, शोषण आदि का विरोध करने का साहस भी होना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर-
(क) इन पंक्तियों में कवि ने समाज में विवाहित नारी की दशा की ओर संकेत किया है। आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बंधनों की आग बहुओं को बहुत तेजी से निगलती जा रही है। आज वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से अच्छी, सुंदर पढ़ी-लिखी व नौकरी करने वाली कन्या ही नहीं चाहते हैं, अपितु इन सबके साथ-साथ बहुत-सा दहेज भी चाहते हैं। यदि वह दहेज नहीं लाती तो उसके शेष गुण नगण्य हो जाते हैं तथा दहेज न मिलने पर बहू के साथ बुरा व्यवहार किया जाता हैं। उसे हर प्रकार से तंग किया जाता है। इतना ही नहीं, लोभ के चंगुल में फँसकर बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर आग में जलकर मरने के लिए विवश कर देते हैं। कवि ने नारी जीवन के इसी यथार्थ की ओर संकेत किया है। नारी की यह दशा अत्यंत शोचनीय एवं दयनीय है। कवि ने नारी को इस दशा के प्रति सचेत भी किया है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि वह भी अनेक अन्य बहुओं की भाँति आग में अपना जीवन न खो दे। उसे किसी अवस्था में कमजोर नहीं बनना चाहिए। उसे कष्ट पहुँचाने वालों या शोषण करने की कोशिश करने वालों के सामने झुकना नहीं चाहिए। कोमलता नारी का गुण है, किंतु आज की परिस्थितियों से उसे मजबूत बनकर रहने का पाठ अवश्य पढ़ लेना चाहिए, ताकि वह किसी भी विकटतम स्थिति का सामना कर सके।

प्रश्न 3.
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की – कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-
लड़कियाँ सरल स्वभाव की होती हैं। वे छल-कपटपूर्ण व्यवहार को नहीं जानती अर्थात् उनका व्यवहार अति सरल एवं सहज होता है। वे समाज के अनुभव से भी अनभिज्ञ होती हैं। समाज में आज जो कुछ हो रहा है, उसके प्रति उन्हें सचेत करना ही लेखक का परम लक्ष्य है।

प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर-
माँ को अपनी बेटी सच्ची सहेली की भाँति लगती है, क्योंकि वह उसके हर सुख-दुःख की साथी होती है। माँ बेटी के साथ हर प्रकार की बात कर लेती है। बेटी माँ को अच्छी सलाह देती है और हर काम में उसका हाथ बँटाती है। इसलिए बेटी माँ की एकमात्र पूँजी है जो विवाह के पश्चात् अपनी ससुराल चली जाएगी और माँ उसके बाद अकेली पड़ जाएगी।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर-
माँ ने बेटी को सीख देते हुए कहा कि उसे कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर नहीं रीझना चाहिए। क्योंकि वह उसकी कमज़ोरी बन जाएगी और दूसरे उसका लाभ उठाएँगे।
माँ ने उसे यह भी शिक्षा दी कि उसे घर के सब काम करने चाहिएँ, दूसरों को सहयोग भी देना चाहिए, किंतु अत्याचार सहन नहीं करना चाहिए।
माँ ने बेटी को समझाते हुए कहा कि वस्त्रों व आभूषणों के बदले में अपनी स्वतंत्रता का गला नहीं घोंटना चाहिए। अपने व्यक्तित्व की पहचान सदा बनाकर रखनी चाहिए। कभी भी अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट नहीं करना चाहिए जिससे कि लोग उसका गलत ढंग से लाभ उठाएँ।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर-
कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग अनुचित प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि जैसे कन्या कोई वस्तु हो और उसे दान में दिया जा रहा है। मानो कन्या बेजान हो, उसकी अपनी कोई इच्छा न हो। जैसे किसी वस्तु को दान देने के पश्चात् दान करने वाले से उसका कोई संबंध नहीं रहता। कन्यादान करने के पश्चात् मानो माता-पिता का कन्या के साथ कोई संबंध न रह गया हो। वह पराई हो गई हो। इस दृष्टि से कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग उचित नहीं है।

‘दान’ शब्द का एक दूसरा पक्ष भी है। किसी वस्तु को दान करने वाला व्यक्ति किसी सुपात्र को वस्तु का दान करके अपने-आप को धन्य समझने लगता है। ठीक इसी प्रकार किसी सुयोग्य युवक के साथ विवाह के समय माता-पिता अपनी बेटी का कन्यादान करके अपने आपको धन्य समझते हैं। यहाँ इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि कन्यादान के समय कन्या की सहमति होना नितांत आवश्यक है, क्योंकि आज स्थिति बदल चुकी है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

प्रश्न 2.
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटूंगी नहीं
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूंगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाज़े खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
‘भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूंगी नहीं।
उत्तर-
‘कन्यादान’ और ‘मैं लौटूंगी नहीं दोनों कविताओं के केंद्र में नारी है। इसलिए दोनों कविताओं का एक सीमा तक संबंध अवश्य है। किंतु दोनों कविताओं में दृष्टिकोण अलग-अलग हैं। ‘कन्यादान’ कविता में भोली-भाली कन्या के जीवन का वर्णन किया गया है, जो अबोध है, जो वस्त्रों, गहनों, सौंदर्य आदि के मोह के बंधनों में बंधी हुई है। वह अपने शोषण के कारणों से भी अनजान है। किंतु ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता में उस नारी जीवन का वर्णन किया गया है जो जागरूक हो चुकी है। वह जानती है कि सोने के गहने उसके लिए गुलामी की जंजीरों के समान हैं। उसने अपने लक्ष्य व उसकी दिशा को समझ लिया है। अतः स्पष्ट है कि ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता की कन्या ‘कन्यादान’ कविता की कन्या का जागरूक रूप है।

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