ऐसा क्यों और कैसे होता है

ऐसा क्यों और कैसे होता है

कुत्ते की सूंघने की क्षमता अधिक क्यों होती है?

कुत्ता एक ऐसा प्राणी है, जिसकी दृष्टि काफी कमज़ोर होती है। वह थोड़ी दूर की ही चीजें साफ देख पाता है और उसे भूरा रंग तथा इसकी शेड यानि छाया ही स्पष्ट दिखाई देती हैं। अपनी इस कमी को वह अपनी तेज घ्राण सूंघने की शक्ति से पूरा करता है। कुत्ते को एक बार कोई चीज सूंघने को दे दी जाए, तो उस गंध को वह आसानी से पहचान लेता है। यही कारण है कि कुत्तों को विशेष प्रशिक्षण देकर उनका उपयोग विस्फोटक और नशीले पदार्थ पकड़ने के साथ ही अपराधियों की तलाश के लिए किया जाता है। कुत्तों की नाक के दोनों छेदों में एक क्षेत्र ऐसा होता है, जहां लाखों की संख्या में विशेष तरह की गंध संवेदनशील कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं को कीमोरिसेप्टर कहते हैं। इनकी संरचना बालों जैसी होती है और ये बाल हमेशा म्यूकस नामक तरल पदार्थ से गीले रहते हैं। ये नाड़ियों के जरिये मस्तिष्क से जुड़ी होती हैं। मस्तिष्क के इस भाग को ऑलफेक्टरी बल्ब कहते हैं। यह भाग जितना बड़ा होता है, घ्राण शक्ति भी उतनी ही अधिक होती है। मनुष्य की अपेक्षा कुत्ते का ऑलफेक्टरी बल्ब कई गुना बड़ा होता है और इस कारण उसकी सूंघने की क्षमता भी काफी अधिक होती है।
पेट में अल्सर क्यों हो जाते हैं?
पेट हमारे शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। इसे आमाशय भी कहते हैं। इसके मुख्य रूप से दो कार्य हैं भोजन के लिए गोदाम का काम करना और उसे पचाना। भोजन को पचाने के लिए पेट से तीन प्रकार के रस पैदा होते हैं – हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, म्यूकस और एंजाइम । हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओं का विनाश करता है। म्यूकस पेट की आंतरिक सतह की रक्षा करता है और उसे चिकना रखता है। एंजाइम भोजन को पचाने का काम करते हैं। एक सामान्य पेट में एक लीटर भोज्य पदार्थ आ सकता है। कभी-कभी पेट में अधिक रस बनने लगते हैं, जिनके कारण पेट में बेचैनी और जलन महसूस होने लगती है। भावुकता, भय, क्रोध, तनाव आदि के कारण पाचक रसों का निर्माण अधिक होने लगता है। अधिक मसाले वाले खाद्य पदार्थों से भी ये रस अधिक बनते हैं। सिगरेट, शराब, कॉफी, चाय आदि से भी इन रसों का निर्माण अधिक होता है । जब ये रस बहुत अधिक मात्रा में बनने लगते हैं, तो हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पेट की आंतरिक सतह पर प्रभाव डालने लगता है। आंतरिक सतह पर घाव होने शुरू हो जाते हैं। इन्हीं घावों को पेट का अल्सर कहा जाता है।
हम सांस क्यों लेते हैं?
सभी प्राणी जीवित रहने के लिए सांस लेते हैं। अलग-अलग जीवधारियों में सांस लेने का तरीका अलग-अलग होता है। कुछ प्राणी नाक से, तो कुछ त्वचा से सांस लेते हैं। मनुष्य नाक द्वारा सांस लेता है। सांस द्वारा ली गई आक्सीजन रक्त द्वारा सारे शरीर में पहुंचती है। इसी आक्सीजन के द्वारा भोजन के पदार्थ आक्सीकृत होते हैं। आक्सीकरण की क्रिया के फलस्वरूप कार्बन डाईआक्साइड, पानी और दूसरे पदार्थ पैदा होते हैं । सांस निकालते समय यही कार्बन डाईआक्साइड और जलवाष्प बाहर निकलती है। आक्सीकरण की क्रिया द्वारा ऊष्मा और ऊर्जा पैदा होती है। इसी ऊर्जा के द्वारा हम काम करते हैं। ऊष्मा-ऊर्जा के कारण हमारे शरीर का तापमान स्थिर रहता है । आक्सीकरण में पैदा होने वाली ऊर्जा से ही सारे दिन मांसपेशियां काम करती रहती हैं। जब हम व्यायाम या कोई और कठिन काम करते हैं, तो हमें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अधिक
ऊर्जा पैदा करने के लिए हमें अधिक आक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है। यही कारण है कि व्यायाम या परिश्रम करने वाले व्यक्ति काम करते समय अधिक आक्सीजन प्राप्त करने के लिए तेजी से सांस लेते हैं। सांस लेने की क्रिया मस्तिष्क में स्थित श्वास-प्रश्वास केंद्रों से नियंत्रित होती है।
पेट्रोल इंजन डीजल तेल से क्यों नहीं चल सकता ?
हालांकि पेट्रोल से चलने वाले इंजन और डीजल से चलने वाले इंजन दोनों ही अंतर्दहन इंजन होते हैं। लेकिन डीजल और पेट्रोल ईंधन के अनुसार इनके डिजाइनों में अंतर होता है। इंजन का डिजाइन इसमें इस्तेमाल होने वाले ईंधन के अनुसार बनाया जाता है। हर ईंधन का ज्वलनबिंदु अलग होता है। जैसे पेट्रोल कम ज्वलनबिंदु पर, अर्थात् कम तापक्रम पर ज्वलनशील हो जाता है जबकि डीजल का ज्वलनबिंदु अधिक होने से वह अधिक तापक्रम पर ज्वलित होता है। पेट्रोल के इंजन में पेट्रोल को स्पार्क प्लग से ज्वलित किया जाता है; जबकि डीजल इंजन में स्पार्क प्लग नहीं होता। इसमें ज्वलन संपीडन के द्वारा प्राप्त किया जाता है। इंजन में ईंधन के ज्वलित होने से पहले उसे हवा के साथ मिश्रित होना पड़ता है। प्रत्येक ईंधन के लिए ईंधन और हवा के मिश्रण का ज्वलन एक खास अनुपात में होता है। यदि ईंधन और हवा उस अनुपात तक न मिल पाएं, तो उनमें ज्वलन ठीक से नहीं होता है। इसलिए अगर पेट्रोल इंजन में डीजल तेल का ईंधन भरकर चलाना चाहेंगे, तो वह नहीं चल पाएँगा। यही कारण है कि पेट्रोल इंजन की गाड़ी को डीजल तेल से नहीं चलाया जा सकता है।
नार्वे में सूर्य आधी रात तक क्यों चमकता है?
नार्वे में गर्मियों में सूर्य मई के मध्य से जुलाई के अंत तक रात में भी पूरी तरह नहीं छिपता। इस अवधि में रात में भी काफी उजाला रहता है। खास बात यह है कि सर्दियों के दो महीनों में यहां सूर्य के दर्शन ही नहीं होते, अर्थात् पूरी तरह रात रहती है। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है ?
दरअसल, सूर्य अर्धरात्रि में भी उन ध्रुवीय प्रदेशों में दिखाई देता है जहां रात्रि में भी यह क्षितिज के ऊपर ही रहता है, छिपता नहीं है। पृथ्वी का अक्ष अपनी भ्रमण करने की कक्षा के तल से 23.5 अंश झुका हुआ है, इसलिए प्रत्येक गोलार्ध गर्मी में सूर्य की ओर झुका रहता है, जबकि सर्दियों में यह झुकाव विपरीत दिशा में यानी सूर्य से परे हो जाता है। इस
कारण उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवीय प्रदेशों में साल में कुछ समय के लिए सूर्य पूरी तरह नहीं छिपता है, बल्कि अर्धरात्रि में भी दिखता रहता है। जब दक्षिणी ध्रुव प्रदेश में सर्दी का मौसम होता है, तो वहां दिन और रात का पता ही नहीं चलता। वहां केवल अंधेरा ही अंधेरा रहता है। इन दिनों ( अप्रैल से जुलाई) में उत्तर ध्रुवीय प्रदेशों में गर्मी होती है और वहां सूर्य 24 घंटे दिखाई देता है। सूर्य उदय तो होता है लेकिन धीमी गति से चलता दिखाई देता है। शाम को यह छिपना शुरू होता है, लेकिन क्षितिज के पास पहुंचकर फिर उगना शुरू कर देता है ।
अधिक कॉलेस्ट्रोल हानिकारक क्यों होता है ?
कॉलेस्ट्रोल एक आवश्यक वसीय पदार्थ है, जो मनुष्यों और जानवरों के शरीर में निर्मित होता है। इससे बाइल अम्ल और कुछ हारमोन निर्मित होते हैं, लेकिन एक स्तर के बाद इसकी मात्रा का बढ़ना हानिकारक है। दरअसल वसा और कॉलेस्ट्रॉल दोनों मिलकर धमनियों की आंतरिक दीवारों पर जमा हो सकते हैं। इससे धमनियां सख्त हो जाती हैं और रक्त के प्रवाह में उनका रास्ता संकुचित हो जाता है। इस स्थिति को आर्टरी ओस्क्लेरोसिस कहते हैं। रक्त के जमे हुए छोटे-छोटे थक्के, जो सामान्यतः रक्त वाहिनियों में से बहकर निकल जाते हैं, लेकिन अधिक कॉलेस्ट्रॉल होने पर उनमें फंस भी जाते हैं। यदि यह स्थिति कोरोनरी धमनी में हो जाए, तो इसके परिणामस्वरूप दिल का दौरा पड़ सकता है। कोरोनरी धमनियां हृदय तक रक्त ले जाती हैं। ये बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि दिल को काम करने के लिए आवश्यक आक्सीजन इन्हीं धमनियों द्वारा प्रदान की जाती है। यदि विशेष भाग की कोरोनरी धमनियों में कहीं रुकावट आ जाए, तो हृदय का वह हिस्सा मृत हो जाता है। इसी को दिल का दौरा कहते हैं, जो बहुत घातक होता है | चिकनाईयुक्त भोज्य पदार्थों का सेवन कम से कम करके, धूम्रपान का त्याग करके और उचित व्यायाम करने से, कॉलेस्ट्रॉल को धमनियों की दीवारों पर जमने से रोका जा सकता है।
इससे ह्रदय रोग होने का खतरा कम हो जाता है ।
कुछ पहाड़ रंग क्यों बदलते हैं?
किसी पहाड़ के रंग बदलने की बात विचित्र लगती है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में एक पहाड़ है जो सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक रंग बदलता है। यह पहाड़ उत्तरी क्षेत्र के आयर्स रॉक पर स्थित है। वैसे तो 335 मीटर ऊंचे, 7 किमी. घेरे वाले और 2.4 किमी. चौड़े इस पहाड़ का रंग लाल रहता है, लेकिन सूर्योदय के समय यह जैसे आग उगलने लगता है और इसमें बैंगनी और गहरे लाल रंग की लपटें निकलने लगती हैं। कभी यह लाल होता है, कभी पीला और कभी नारंगी । इस चट्टान के रंग बदलने का कारण इसकी संरचना है। असल में यह पहाड़ी बलुआ पत्थर से बनी है और सुबह व शाम को सूर्य की किरणों में लाल और नारंगी रंग अधिक मात्रा में होते हैं। इसी कारण यह पहाड़ी इस रंग की दिखती है। दोपहर के समय अन्य रंग भी किरणों के साथ आते हैं और बलुआ पत्थरों की विशेष संरचना के कारण पहाड़ी में ये रंग भी दिखने लगते हैं। इस पहाड़ी के रंग बदलने के कारण ही प्राचीन काल में यहां रहने वाले लोग इसे भगवान का घर मानकर इसकी पूजा किया करते थे। आयर्स रॉक की खोज 1873 में ‘डब्ल्यू जी गोसे’ नामक अंग्रेज यात्री ने की थी और इसका नामकरण दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री हेनरी आयर्स के नाम पर आयर्स रॉक कर दिया गया था।
लाल गरम लोहा पानी में बुझाने पर कठोर क्यों हो जाता है?
सामान्यतः पदार्थ परमाणुओं और अणुओं से मिलकर बने होते हैं जो हर पदार्थ में अलग-अलग होते हैं। जब हम किसी पदार्थ को गरम करते हैं तो उसके परमाणु और अणु एक-दूसरे से अलग हटने लगते हैं। लोहा मिश्र धातु है। इसे जब गरम करते हैं तो इसके अणुओं और परमाणुओं की क्रमबद्धता एवं संरचना बदलने लगती है। यदि गरम किए हुए पदार्थ को धीरे-धीरे ठंडा होने देते हैं तो उनके परमाणु अपनी वास्तविक अवस्था में आने में समर्थ होते हैं। लेकिन यदि उन्हें अचानक ठंडा किया जाए तो परमाणु अपनी वास्तविक अवस्था में आने में असमर्थ होते हैं और वे खिंचे-के-खिंचे रह जाते हैं। इस स्थिति के होने पर धातुएं कठोर होने लगती हैं। इसीलिए उच्च कठोर तन्यतावाली वस्तुएं बल लगाने पर मुड़ने के बजाय टूट जाती हैं, लेकिन कम तन्यतावाली स्टील बल लगाने पर टूटने के बजाय मुड़ जाती है।
जब लोहा इतना गरम किया गया हो कि वह गरम होते-होते लाल पड़ गया हो, और ऐसे लाल गरम लोहे को जब अचानक पानी में डालकर बुझाया जाता है, अर्थात् ठंडा किया जाता है तो वह अपनी क्रिस्टल संरचना में परिवर्तन; अर्थात् परमाणुओं की क्रमबद्धता बदल जाने से कठोर हो जाता है।
कैफीन से नींद क्यों उड़ जाती है?
जब भी किसी व्यक्ति को नींद आती है, तो वह गरम-गरम कॉफी पीकर अपनी नींद भगाने का प्रयास करता है। उसका यह प्रयास सफल भी रहता है। आइए जानें कि कॉफी पीने से नींद क्यों उड़ जाती है। जब भी कोई व्यक्ति कैफीन युक्त कॉफी पीता है, तो उसके शरीर में कैफीन के कारण तीन तरह की रासायनिक क्रियाएं होती हैं, जिनके कारण शरीर का ऊर्जा स्तर बढ़ जाता है। 1. कैफीन एड्रेनलिन हार्मोन की मात्रा शरीर में बढ़ाती है। 2. यह शरीर में डोपामाइन का स्तर भी बढ़ाती है। डोपामाइन एक न्यूरोट्रांसमीटर होता है, जो दिमाग के खुशी देने वाले हिस्से को संचालित करता है। 3. यह नर्व कोशिकाओं का एडेनोसिन से संबंध बाधित कर देती है। एडेनोसिन वह रसायन है, जिसके कारण व्यक्ति उनींदा हो जाता है और उसकी नर्व कोशिका की गतिविधियां धीमी होने
लगती हैं। इन तीनों रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण शरीर में नर्व कोशिकाओं की गतिविधियां बढ़ जाती हैं, जिससे हम सतर्क और अति सक्रिय हो जाते हैं। इससे व्यक्ति की नींद दूर हो जाती है और वह अपने को एक बार फिर तरोताजा महसूस करने लगता है। चूंकि कैफीन व्यक्ति को आदी भी बनाती है, इसलिए दुनिया भर में कैफीन का उपयोग बढ़ रहा है। अब तो शीतल पेय पदार्थों की बिक्री बढ़ाने के लिए इनमें भी कैफीन मिलाया जाने लगा है।
कैसे/ क्यों चलते हैं कुछ पौधे ?
हम यह भलीभांति जानते हैं कि अधिकांश जीव-जंतु एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्वयं चल कर जा सकते हैं, किंतु पेड़-पौधे आजीवन एक ही जगह स्थिर बने रहते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी पेड़-पौधे हैं, जो स्वयं गति कर सकते हैं। उदाहरण के लिए ‘स्लिम मोल्ड्स’ नामक पौधा अमीबा की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान पर ‘कोज’ करता हुआ चलता है। काई की कई किस्में अपने कोड़ानुमा ‘फ्लजल्स’ को पानी में चप्पू की तरह इस्तेमाल करके गति करती हैं। बहुत सी वनस्पतियां खासतौर से छोटी वनस्पतियां ऐसे गतिशील नर गमेट पैदा करती हैं, जो अंडों के उर्वरण के लिए तैरते हैं। इन वनस्पतियों में ट्रोपिज्म, न्यूटेशंस और नास्टिक नामक तीन प्रकार की गतिशीलता पाई जाती हैं। ट्रोपिज्म एक प्रकार की विकास प्रतिक्रिया है, जो विशेष तरह के पर्यावरण संबंधी उद्दीपन के कारण होती है। विकास की दिशा उद्दीपक के द्वारा निर्धारित होती है। न्यूटेशन सर्पिलाकार गति को कहते हैं, जो वनस्पतियों के विकसित होते हुए आगे के सिरे की विशेषता होती है। नास्टिक गति को कभी-कभी फूलने वाली गति भी कहते हैं, क्योंकि उद्दीपक द्वारा फूलने के कारण इनमें गति होती है। नास्टिक गति का नाम उद्दीपक के अनुसार रखा जाता है। जैसे प्रकाश की फुलाने वाली प्रतिक्रिया को फोटोनास्टिक कहते हैं
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