ऐसा क्यों और कैसे होता है -8
ऐसा क्यों और कैसे होता है -8
साइकल का अगला चिमटा घुमावदार क्यों होता है?
साइकल आम जनता की सवारी है, इसलिए इसे चलाने में उन्हें भी कुछ आराम मिल सके, तो विज्ञान की यह खोज सफल मानी जा सकती है। संभवतः इसी बात को ध्यान में रखकर इसके रचनाकारों ने साइकल के आगे के चिमटे में हलका-सा मोड़ या घुमाव डाल दिया है। इस घुमाव का पहला लाभ यह है कि आगे का चिमटा घुमावदार होने से यह छोटे-मोटे गड्ढों आदि में साइकल का पहिया आ जाने पर झटका रोधक का कार्य करता है। इससे साइकल का हैंडिल तथा सवार झटका खाने के बजाय कुछ आराम का अनुभव करते हैं। इसके अलावा घुमावदार चिमटा होने से साइकल सवार का भार, घर्षण तथा अन्य बल, जो इसके खिलाफ कार्य कर रहे होते हैं, परस्पर प्रभाव डालते हैं। इन सभी बलों को इस घुमावदार चिमटे के द्वारा अगले पहिए के धरती से संपर्क के स्थान पर आसानी से पहुंचा दिया जाता है। इससे पहिया हचके खाते समय इधर-उधर सरकने के बजाय अपने मार्ग पर स्थिर बना रहता है। इसके परिणामस्वरूप साइकल चालक बिना किसी परेशानी से साइकल का हैंडिल अपनी इच्छानुसार घुमाने का आराम उठा लेता है। इन्हीं लाभों के कारण साइकल का आगे का चिमटा घुमावदार बना होता है।
अपेंडिसाइटिस क्यों हो जाता है ?
अपेंडिक्स मनुष्य की आंत का एक हिस्सा होता है। इसका पूरा नाम ‘वर्मीफोर्म अपेंडिक्स’ है। यह अंग पेट के दाहिनी ओर के निचले भाग में होता है। इसका सही स्थान वह होता है, जहां छोटी आंत और बड़ी आंत एक-दूसरे से मिलती हैं। इस स्थान को ‘सीकम’ कहते हैं। इसका आकार नली जैसा होता है, जिसका एक सिरा बंद और दूसरा सिरा केकम से खुलता है। आदमी के अपेंडिक्स की लंबाई तीन से चार इंच होती है और इसकी मोटाई आधा इंच से कुछ कम होती है। इसका शरीर में कोई जाना-माना कार्य नहीं है। संभवतः हजारों वर्ष पहले यह मनुष्य के पाचनसंस्थान का महत्वपूर्ण अंग था और यह सैलूलोज़ को पचाने का काम करता था। यह अंग मनुष्य के शरीर से विलुप्त होता जा रहा है। अपेंडिक्स में मांसपेशियों से बने वाल्व होते हैं, जो म्यूकस जैसे अपशिष्ट पदार्थों को केकम में भेजते रहते हैं। यदि कोई वस्तु अपेंडिक्स के खुले सिरे को रोक देती है, तो अपशिष्ट पदार्थों के लगातार निकलने और इस अंग में जीवाणुओं की उपस्थिति से दबाव पैदा हो जाता है। इस अंग पर कीटाणु भी हमला कर सकते हैं। इन सब कारणों से इस अंग में सूजन आ जाती है। इसे ही अपेंडिसाइटिस कहते हैं।
थर्मामीटर का पारा उतारने के लिए उसे झटकते क्यों हैं?
बुखार आदि आने पर शरीर का तापमान ज्ञात करने के लिए डॉक्टरी थर्मामीटर का प्रयोग किया जाता है। इस तरह के थर्मामीटर में एक चपटा बल्ब-सा होता है, जिसमें पारा भरा होता है। इस बल्ब के बाद एक संकुचित संकरा रास्ता होता है, जो पतली नलिका से जुड़ा होता है। जब रोगी का तापमान नापते हैं, तो रोगी के संपर्क में आने पर इस थर्मामीटर के बल्ब का पारा संकरे रास्ते से रोगी के तापमान के अनुसार नलिका में ऊपर चढ़ने लगता है। जब पारा चढ़ना रुक जाता है तो थर्मामीटर के बल्ब को रोगी के संपर्क से हटा लेते हैं। ऐसा करने पर पारा नीचे आने के बजाय संकुचित संकरे स्थान से दो भागों में बंटकर ऊपर का ऊपर और नीचे का नीचे रह जाता है। इससे रोगी का तापमान ज्ञात करने में आसानी रहती है । लेकिन जब इस थर्मामीटर को दुबारा उपयोग में लाना होता है, तो नलिका में भरा पारा उताकर नीचे बल्ब में लाना आवश्यक होता है। इस समय कोई बल ऐसा नहीं होता, जिसके कारण पारा नलिका से नीचे बल्ब में उतर आए। इसलिए थर्मामीटर को एक झटका लगाया जाता है। इससे नलिका का पारा संकुचित संकरे मार्ग से नीचे बल्ब में उतर आता है और साफ करने के बाद थर्मामीटर पुन: उपयोग के लिए तैयार हो जाता है। इसीलिए नलिका के पारे को नीचे थर्मामीटर के बल्ब में उतारने के लिए झटका लगाया जाता है।
जम्हाई क्यों आती है?
‘उबासी’ या जम्हाई वह प्रक्रिया है, जिससे हर व्यक्ति को चाहे अनचाहे गुजरना पड़ता है। कई बार लोगों के बीच बैठकर न चाहते हुए भी उबासी आ जाती है। अभी तक यह माना जाता था कि जब भी किसी व्यक्ति को नींद आती है या फिर वह बोर होता है, तो उसका मुंह अपने आप ही कुछ पल के लिए खुल जाता है और ढेर सारी हवा मुंह से निकल जाती है। इस प्रक्रिया को ही ‘उबासी लेना’ कहते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि उबासी वास्तव में शरीर की एक प्रत्यावर्ती क्रिया है। इसका नियंत्रण सुषुम्ना और तंत्रिका केंद्र करते हैं। ‘उबासी ‘ तब आती है, जब खून में कार्बनडाइआक्साइड और ऑक्सीजन की मात्रा गड़बड़ा जाती है। उबासी के समय हम गहरी सांस लेते हैं और फिर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हैं। जब भी व्यक्ति का शरीर सुस्त पड़ता है, खून में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। इस कमी को पूरा करने के लिए उबासी ली जाती है। जब कोई व्यक्ति उबासी लेता है, तो उसकी सतर्कता बढ़ जाती है और सांस के जरिए काफी मात्रा में ऑक्सीजन शरीर में पहुंचती है, जिससे दिल की धड़कन तेज हो जाती है। इससे शरीर फेफड़े और खून में जमा हुई कार्बनडाइआक्साइड को बाहर निकालने में सफल हो जाता है।
फ्रिज में बर्फ जमाने का खाना ऊपरी भाग में ही क्यों होता है ?
ठंडी हवा भारी और गरम हवा हलकी होती है। इसलिए फ्रिज के ऊपरी हिस्से में ठंडक का खाना होने से फ्रिज के निचले हिस्से की गरम हवा ऊपर की ओर जाती हैं और ऊपर के ठंडे हिस्से की ठंडी हवा नीचे की ओर आती रहती है। इस तरह ठंडकवाला खाना ऊपर होने से समूचा फ्रिज अंदर से ठंडा हो जाता है, जो फ्रिज के हर हिस्से में सामान को ठंडक पहुंचाने के लिए उपयुक्त रहता है। इसके अतिरिक्त ठंडक का खाना ऊपर होने से फ्रिज को चलाने में कम ऊर्जा तथा ठंडक पैदा करनेवाला रेफ्रीजरेंट, जो एक महंगा तरल पदार्थ होता है, भी कम लगता है। इसलिए फ्रिज में ठंडक पहुंचाने और बर्फ जमाने का खाना ऊपरी भाग में ही रखा जाता है।
दूध सफेद क्यों होता है?
दूध को अपने आप में संपूर्ण आहार माना जाता है। दूध में कैल्शियम तो पर्याप्त मात्रा में होता ही है, साथ ही उसमें विटामिन डी भी होता है, जो हड्डियों को मजबूती देता है। आखिर दूध सफेद क्यों होता है? उसे सफेदी कहां से मिलती है? दूध को सफेदी ‘कैसीन’ नामक प्रोटीन के कारण मिलती है। इस प्रोटीन में कैल्शियम तो प्रचुर मात्रा में होता ही है, साथ ही दूध को सफेद रंग देने का काम भी यही प्रोटीन करता है। फिर दूध में मौजूद वसा भी सफेद रंग की होती है। यही कारण है कि दूध में जितनी ज्यादा वसा या चिकनाई होती है, वह उतना ज्यादा सफेद होता है, जबकि कम वसा या क्रीम वाला दूध हलका मटमैला दिखता है। वसा की अधिकता के कारण ही भैंस का दूध गाय के दूध से अधिक सफेद होता है। इसके अतिरिक्त एक कारण और भी है, जो को दूध सफेद दिखाता है। असल में कुछ चीजें प्रकाश का पूरी तरह से अवशोषण नहीं करती हैं। वे प्रकाश को जस का तस लौटा देती हैं। ऐसा ही कैसीन के अणु भी करते हैं। वे पूरा प्रकाश जस का तस लौटा देते हैं, जिससे देखने वाले को दूध का रंग सफेद लगता है।
पहाड़ों पर चढ़ते समय लोग आगे और उतरते समय पीछे की ओर क्यों झुक जाते हैं?
जब हम सीधे खड़े होते हैं, तो हमारा गुरुत्व केंद्र हमारे पैरों के बीच में होता है। इसी के कारण हम संतुलित होकर खड़े रहते हैं। सामान्य मैदान में चलने पर यह गुरुत्व केंद्र चलने की दिशा में बदलता रहता है, लेकिन यह संतुलन अवस्था से इधर-उधर विचलित नहीं होता है। परंतु जब हम मैदान की अपेक्षा पहाड़ की ऊंचाई पर चढ़ते हैं, तो हमारा गुरुत्व केंद्र आगे की ओर बढ़ जाता है। अतः इसे संतुलित करने के लिए हमें भी आगे की ओर झुकना पड़ता है, अन्यथा हम संतुलन खोकर गिर सकते हैं। ठीक इसी तरह जब हम पहाड़ से नीचे की ओर उतर रहे होते हैं, तो हमारा गुरुत्व केंद्र पीछे की ओर बढ़ जाता है, अतः इसे संतुलित करने के लिए हमें पीछे की ओर झुकना पड़ता है। इसीलिए पहाड़ों पर चढ़ते-उतरते समय हम गिर न जाएं, इसके लिए हमें अपना संतुलन बनाकर चलना पड़ता है और इसके लिए पहाड़ों पर चढ़ते समय आगे की ओर और उतरते समय पीछे की ओर झुकना आवश्यक होता है।
भौंहें महत्वपूर्ण क्यों होती हैं?
आंखों के ऊपर स्थित भौंहें सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी अपनी भौंहों को कमानीदार बनवाते हैं। कुछ तो भौंहों को छिदवाकर घुंघरू पहनते हैं, तो कुछ गोदना गुदवाते हैं। आइए जानें भौंहें इतनी महत्वपूर्ण क्यों होती हैं? भौंहें वास्तव में आंखों से नमी दूर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जब भी कभी बारिश में बाहर जाना पड़ता है या फिर पसीना आता है, तो भौंहें पानी सीधे आंखों में जाने से रोकती हैं। भौंहों का कमानीदार आकार पानी या पसीने को आंख के ऊपर गिरने से रोकता है और चेहरे के किनारे तक ले जाता है। इससे व्यक्ति को बारिश के मौसम में भी स्पष्ट देखने में किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। फिर पसीने को रोक कर भौंहें आंखों को जलन से भी बचाती हैं। भौंहों की भूमिका सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। उन्हें भावनाओं की अभिव्यक्ति करने वाला भी माना जाता है। किसी व्यक्ति से मिले बिना ही उसके मूड की जानकारी भी भौंहों से मिलती है। अगर किसी व्यक्ति की भौंहें तनी हों, तो इसका मतलब होता है कि वह गुस्से में है, जबकि सिकुड़ी हुई भौंहें, उसके उदास व दुखी होने का संकेत देती हैं।
बच्चे झूलते पालने में क्यों सो जाते हैं?
बच्चे जब पैदा होकर नए वातावरण में आते हैं तो वे प्रारंभिक वर्षों में अपने को अलग-थलग और असुरिक्षत महसूस करते हैं। छोटे बच्चे उस समय प्रसन्न रहते हैं जब उन्हें गोद में लेकर हिलाया-डुलाया अथवा चला-फिरा जाता है। जैसे ही उन्हें गोद से उतारकर लिटाया जाता है, वे रोना प्रारंभ कर देते हैं। ऐसा क्यों होता है? बच्चे यह महसूस करते हैं कि उनकी सुरक्षा करनेवाला कोई नहीं है; क्योंकि मां की गोद से अलग होकर लेटने पर उन्हें मां से मिलनेवाली गरमाहट मिलनी भी बंद हो जाती है और लेटने पर अकेलापन तो होता ही है। इसलिए जब बच्चों को लिटाया जाता है, तो उन्हें कपड़ों में अच्छी तरह लपेट दिया जाता है, जिससे वे अकेलापन अनुभव नहीं कर पाते हैं। वे समझते हैं कि मां उनको कसकर पकड़े या कलेजे से लगाए हुए है। ठीक इसी तरह जब बच्चे झूलते झूले में लिटाए जाते हैं, तो वे धोखे में आते हुए यह अनुभव करते हैं कि वे अपनी मां की गोद या बांहों में हैं और मां उन्हें हिचकोले दे रही है। इसीलिए बच्चे झूलते पालने में सो जाते हैं।
हेयर ड्रायर बालों को क्यों सुखा देता है?
हम इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं कि जब किसी भी तार से विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो वह तार गर्म हो जाता है। इस प्रभाव को विद्युत-तापीय प्रभाव कहा जाता है। इसी प्रभाव के आधार पर विद्युतहीटर, विद्युतकेतली, विद्युतबल्ब, इमर्शनहीटर आदि विद्युत उपकरण विकसित किए गए हैं। हेयरड्रायर अर्थात् बाल सुखाने का उपकरण भी इसी प्रभाव पर आधारित है। हेयरड्रायर की ऊपरी सतह प्लास्टिक से बनी होती है। इसका आकार पिस्तौल जैसा होता है। इसके अंदर ‘नाइक्रोम’ नामक धातु के तार की एक छोटी-सी कुंडली लगी होती है, जो विद्युत धारा प्रवाहित होने पर गर्म हो जाती है।
इस कुंडली के ठीक पीछे एक छोटा-सा पंखा लगा होता है। पंखे और तार की कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित करने के लिए दो स्विच लगे होते हैं। एक स्विच को ऑन करने से पंखा चलने लगता है और प्लास्टिक के ढक्कन के अगले भाग से ठंडी हवा आने लगती है। जब दूसरा स्विच ऑन किया जाता है, तो नाइक्रोम के तार से विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है और इससे बनी कुंडली गर्म हो जाती है। पंखे से आती हवा जब इस गर्म तार के संपर्क में आती है, तो वह भी गर्म हो जाती है। इसी गर्म हवा से बालों को सुखाया जाता है।
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