ऐसा क्यों और कैसे होता है -4

ऐसा क्यों और कैसे होता है -4

अधिक व्यायाम या शारीरिक कार्य करने पर हमारा शरीर दुखने क्यों लगता है ?

जब हम अचानक बहुत कार्य या व्यायाम करते हैं, तो पेशियों में लेक्टिक अम्ल एकत्र हो जाता है, जिससे हमारा शरीर थक जाता है और उसमें दर्द होने लगता है। ऐसा तभी होता है, जब अचानक अधिक कार्य या व्यायाम किया जाता है। क्योंकि इसके लिए हमारा शरीर अभ्यस्त नहीं होता है। लेकिन नियमित व्यायाम अथवा शारीरिक कार्य करने से ऐसा नहीं होता है; क्योंकि इसके लिए शरीर अभ्यस्त हो जाता है। अचानक किए गए कार्य या व्यायाम को जब पेशियां बरदाश्त नहीं कर पातीं तो वे दुखने लगती हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि अधिक कार्य के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है और अधिक ऊर्जा के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। वह पेशियों को मिल नहीं पाती है। इसकी पूर्ति के लिए पेशियां जो तरीका अपनाती हैं उससे अंत में लेक्टिक अम्ल बनता है। यदि पेशियां कार्य करना जारी रखती हैं, तो यह लेक्टिक अम्ल एकत्रित हो जाता है, जिससे शरीर दुखने लगता है।
चमगादड़ की इतनी सारी प्रजातियां क्यों हैं?
जीवाश्मों का अध्ययन करने से पता चला कि चमगादड़ लगभग छह करोड़ साल पहले भी पृथ्वी पर थे । वैज्ञानिकों के अनुसार इस समय भी पृथ्वी पर चमगादड़ों की दो हजार से अधिक प्रजातियां उपलब्ध हैं। पंख फैलाए हुए चमगादड़ों का आकार 15 सेमी. से लेकर दो मीटर तक होता है। चमगादड़ उड़ने वाले जीव होने के बाद भी पक्षी नहीं होते हैं, बल्कि स्तनपायी होते हैं। चमगादड़ अन्य पक्षियों की तरह कीड़े-मकोड़े खाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो दूसरे जीवों का खून पीते हैं। ऐसे चमगादड़ों को ‘वैम्पायर बैट’ कहते हैं। वैम्पायर बैट का आकार 30 सेमी. तक होता है। ये अपने नुकीले दांत किसी की भी खाल में चुभोकर जीभ की सहायता से खून पीते हैं। चमगादड़ की दूसरी विशेषता इसके शरीर की बनावट है, जिस कारण यह सीधा खड़ा नहीं रह सकता है, बल्कि अपने पंजों के सहारे उल्टा लटकता है। चमगादड़ अन्य पक्षियों की अपेक्षा रात में सरलता से उड़ सकता है। यह अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं का पता लगाने के लिए उच्च आवृत्ति की तरंगों का उपयोग करता है, जो आसपास की चीजों से टकराकर परावर्तित होती हैं और बाधाओं के बारे में संकेत दे देती हैं। चमगादड़ों की ये विशेषताएं ही इन्हें अन्य पक्षियों से अलग बनाती हैं।
केक में बेकिंग सोडा क्यों प्रयोग किया जाता है ?
केक तभी अच्छा लगता है, जब मुलायाम हो, फूला हुआ हो, हल्का हो और छिद्रिल हो । ‘बेकिंग सोडा’ केक में इन्हीं गुणों को पनपाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हम जानते ही हैं कि बेकिंग सोडा सोडियम बाई कार्बोनेट होता है। यह गरम होने पर आसानी से अपघटित हो जाता है और अम्लों के साथ क्रिया करके कार्बन डाईऑक्साइड निर्मित करता है। जब केक को बेकिंग सोडा मिलाकर पकाया जाता है तो यह फूलने लगता है और कार्बन डाइऑक्साइड के बनने से यह छिद्रिल एवं स्पंज की तरह हो जाता है। केक के लिए गुंधे आटे में अन्य अवयवों के साथ बेकिंग सोडे की प्रतिक्रिया से कार्बन डाईऑक्साइड बनती है। इसलिए यह गैस गंधे आटे में फंस जाती है। जब केक को पकाते हैं, तो इस फंसी हुई गैस के छोटे-छोटे बुलबुले आकार में बढ़ने लगते हैं। जिससे केक फैलने लगता है और स्पंज की तरह का हल्का केक बनकर तैयार हो जाता है। इसीलिए केक बनाने में बेकिंग सोडे का उपयोग . किया जाता है।
सांप जीभ बाहर क्यों निकालता है ?
सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि सांप अपनी जीभ का उपयोग हथियार के रूप में करता है, लेकिन यह सही नहीं है। सांप की जीभ नुकसानदायक नहीं होती है। सांप के मुंह के भीतर ऊपरी भाग में एक महत्वपूर्ण अंग होता है, जिसे ‘जैकब्संस ऑर्गन’ कहते हैं। इसे सांप की छठी इंद्रिय भी कहा जा सकता है। सांप के शरीर में यह एक रासायनिक संग्राहक (कैमिकल रिसेप्टर) के रूप में कार्य करता है। जब भी सांप अपनी जीभ को बाहर की ओर लपलपाता है, तो हवा में मौजूद रासायनिक कण उसकी जीभ की नमी में चिपक जाते हैं अथवा घुल जाते हैं।
सांप अपनी जीभ को मुंह के अंदर ले जाकर जैकब्सस ऑर्गन को दो खुले हुए स्थानों में डालता है। यहां पर उन कणों की पहचान हो जाती है कि वे किस चीज के हैं। विशेष तौर पर यह किसी जानवर के शरीर की गंध आदि के होते हैं। सांप इसे पहचानने के बाद उसका विश्लेषण करता है और इसी आधार पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। इस प्रकार जीभ सांप का एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील अंग होता है, जिसके द्वारा वह आसपास की चीजों को महसूस करता है, साथ ही नर सांप अपनी जीभ का प्रयोग मादा सांप को खोजने में भी करता है ।
पानी पारदर्शी होने पर भी उसकी बर्फ सफेद क्यों होती है?
पानी की सतह साफ-सुथरी चौरस होने से, जब इस पर प्रकाश पड़ता है, तो प्रकाश की बहुत कम मात्रा परावर्तित होती है। प्रकाश का अधिकतम भाग पानी की सतह से अंदर जाकर आर-पार हो जाता है, जिससे पानी पारदर्शी लगने लगता है। लेकिन बर्फ इसी पानी की बनी होने के बाद भी प्रकाश को आर-पार नहीं जाने देती है। बर्फ अधिक संख्या में बने बर्फ के क्रिस्टलों से बनी होती है। इन क्रिस्टलों के बीच के स्थान में हवा भरी होती है। जब इस तरह से बनी बर्फ पर प्रकाश किरणें पड़ती हैं, तो वे मुड़कर क्रिस्टलों से परावर्तित हो जाती हैं। चूंकि सभी क्रिस्टल एक ही दिशा में प्रकाश को परावर्तित नहीं करते हैं, इसलिए वह इधर-उधर बेतरतीब परावर्तित होने लगता है। इस कार्य को क्रिस्टलों के बीच फंसी हवा और अधिक बढ़ा देती है। इस तरह बर्फ के दर्शक के पास जो प्रकाश पहुंचता है, वह बर्फ से परावर्तित हुआ प्रकाश होता है, अतः वह पारदर्शी न दिखकर सफेद दिखाई देती है।
बिजली दूर तक कैसे/ क्यों जाती है?
विद्युत निर्माण के लिए विद्युत केंद्रों पर विशाल जनरेटर का प्रयोग किया जाता है। विद्युत संचार के लिए समानांतर तार प्रयोग किए जाते हैं। इन विद्युत वाहक तारों में बिजली की ऊष्मा के रूप में होने वाले नुकसान को रोकने के लिए सबसे पहले विद्युत केंद्र पर पैदा होने वाली विद्युत वोल्टेज को ट्रांसफार्मर द्वारा कई गुना बढ़ाया जाता है। ट्रांसफार्मर कम वोल्टेज और अधिक विद्युतधारा की शक्ति को उच्च वोल्टेज और कम विद्युतधारा की शक्ति में बदल देता है। इससे बिजली की क्षति कम हो जाती है। इसे यूं समझा जा सकता है कि एक सामान्य विद्युत जनरेटर 6600 वोल्ट पर 100 किलोवाट विद्युत शक्ति पैदा करता है। इससे प्राप्त होने वाले वोल्टेज को 132000 वोल्ट तक बढ़ा कर तारों पर संचारित किया जाता है। ऐसे तारों का जाल-सा बिछा रहता है। तारों के इस जाल को ग्रिड कहते हैं। ग्रिड से विद्युत को 33,000 वोल्ट शहरों में भेजा जाता है। इसके बाद उपकेंद्र पर इसे 6600 वोल्ट तक कम कर दिया जाता है। फिर इसे ट्रांसफार्मरों द्वारा 220 वोल्ट में परिवर्तित कर घरों में भेज दिया जाता है।
सीधी रेखा में फाड़ने के लिए कागज को मोड़कर प्रेस क्यों करते हैं?
हम जानते हैं कि कागज एक प्रकार से सेलूलोज़ होता है, जो मूलरूप से पेड़-पौधों की कोशिका भित्तियों में पाया जाता है। इसी सेलूलोज़ के रेशों को सड़ा-गलाकार और कुछ रासायनिक क्रियाओं से उपचारित कर उन्हें कागज की लुगदी में बदला जाता है। इस लुगदी को पानी आदि की क्रिया से परस्पर जोड़ते हुए कागज की शीटों का निर्माण किया जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि कागज सेलूलोज़ के रेशों को परस्पर जोड़ने से तैयार होता है।
जब हम कागज को फाड़ते हैं, तो यही जुड़े हुए रेशे टूटते हैं। क्योंकि कागज में यह रेशे यूं ही बेतरतीब जुड़े होते हैं और एक-दूसरे से चिपके रहते हैं। अतः कागज को यदि ऐसे ही फाड़ा जाए, तो ये रेशे किसी भी दिशा में टूट सकते हैं, जिससे कागज सीधा न फटकर टेढ़ा-मेढ़ा फट सकता है। जब हम कागज को फाड़नेवाले स्थान पर मोड़कर प्रेस कर देते हैं, तो कागज के रेशे उस स्थान पर समान रूप से कमजोर हो जाते हैं और जब उसे खोलकर फाड़ने हेतु खींचते हैं, तो कागज कमजोर हुए रेशों के सहारे सीधी रेखा में आसानी से फट जाता है। इसीलिए कागज को सीधी रेखा में फाड़ने के लिए उसे मोड़कर प्रेस किया जाता है।
सोडियम लैंप पीला प्रकाश क्यों देता है ?
सोडियम लैंप एक ऐसा प्रकाश स्रोत है, जो सड़कों तथा चौराहों आदि पर प्रकाश की व्यवस्था करने के काम आता है। इससे निकलने वाला पीले रंग का प्रकाश आंखों को काफी अच्छा लगता है। आइए जानें कि क्यों होता है यह पीला प्रकाश ? प्रत्यावर्ती विद्युतधारा से चलने वाले सोडियम लैंपों में अंग्रेजी के अक्षर यू के उल्टे आकार जैसी कांच की एक नली होती है। इस नली के दोनों सिरों पर बेरियम आक्साइड की परत चढ़े टंगस्टन धातु के दो इलेक्ट्रोड लगे होते हैं। कांच की नलियों में से वायु को निकाल दिया जाता है और उसके स्थान पर थोड़ी-सी निऑन गैस और सोडियम धातु के छोटे-छोटे कण डाल दिए जाते हैं। इसके पश्चात नलियों को सील कर दिया जाता है। लैंप में विद्युत विसर्जन पैदा करने के लिए दोनों इलेक्ट्रोडों के बीच में एक ट्रांसफार्मर की सहायता से 400 वोल्ट की विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। आरंभ में निऑन गैस के विद्युत विसर्जन के कारण लाल रंग का प्रकाश निकलता है। इसी अवधि में सोडियम के परमाणु उत्तेजित उत्तेजित हो जाते हैं और उनसे पीले रंग का प्रकाश निकलने लगता है।
कपड़ों पर ठंडी की अपेक्षा गरम प्रेस क्यों अच्छी चलती है?
कपड़ों की सलवटें निकालने के लिए उन पर प्रेस की जाती है। इसके लिए प्रेस को लगभग 100 सेंटीग्रेड से भी अधिक तापमान पर गरम किया जाता है. और प्रेस करने से पहले कपड़ों को नम किया जाता है। जब नम कपड़ों पर प्रेस चलाते हैं. तो सलवटें निकलती जाती हैं। इस क्रिया में गरम प्रेस कपड़ों पर आसानी से चलती जाती है। । इसका कारण यह है कि गरम प्रेस के कारण नम कपड़ों से भाप बनती है, जिसकी एक पतली परत प्रेस और कपड़ों के बीच बन जाती है। इस भाप की परत के कारण प्रेस और कपड़े के बीच घर्षण अवरोध कम हो जाता है, जिससे प्रेस चलते समय कपड़ों पर चिकपती नहीं है और आसानी से अच्छी तरह चलती रहती है; जबकि ठंडी प्रेस से ऐसा नहीं हो पाता, क्योंकि प्रेस और पानी के बीच आसंजक बल के कारण ठंडी प्रेस कपड़ों पर चिपकने लगती है। फिर भी यदि प्रेस ठंडी है, तो वह नम कपड़ों के बजाय सूखे कपड़ों पर आसानी से चल सकती है।
सिरेमिक अधिक उपयोगी क्यों होती है?
‘सिरेमिक’ शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के ‘कैरोमोसा’ शब्द से हुई है। अलग-अलग तरह के सिरेमिक बनाने के लिए अलग-अलग पदार्थो का उपयोग किया जाता है, जैसे फ्लिंट, फैल्सपार और चायना स्टोन। सिरेमिकों के निर्माण के लिए उपयोग होने वाली मिट्टी, जल और वायु की क्रिया द्वारा चट्टानों के क्षरण से बनती है। ग्रेनाइट नामक चट्टानों से प्राप्त मिट्टी का उपयोग सबसे अधिक होता है। इस मिट्टी को पाउडर बनाकर इसमें पानी मिलाया जाता है और फिर आटे की तरह गूंथा जाता है। सिरेमिक से निर्मित पदार्थ को पहले सुखाया जाता है और फिर 650 से लेकर 1650 अंश सेल्सियस तक पकाया जाता है। फिर इन पर ग्लास जैसे पदार्थ की परत चढ़ा दी जाती है, जिससे यह चिकने और चमकीले हो जाते हैं। सिरेमिक की उपयोगिता इस कारण अधिक होती है, क्योंकि ये तापरोधी होते हैं। इस कारण इनका उपयोग रॉकेटों में भी किया जाता है। जब रॉकेट उड़ान भरता है, तो उच्च तापमान उत्पन्न होने की स्थिति में भी सिरेमिक अपनी विशेषताएं बनाए रखता है। इसी तरह कुछ सिरेमिक बिजली के कुचालक होते हैं। यही कारण है कि बिजली के कटआउट और ट्रांसफार्मरों में सिरेमिक का उपयोग होता है।
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