ऐसा क्यों और कैसे होता है -37
ऐसा क्यों और कैसे होता है -37
एफएम संचार प्रणाली बेहतर क्यों होती है ?
एफएम ट्रांसमिशन का मतलब होता है फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेटेड ट्रांसमिशन आज इसने रेडियो की लोकप्रियता बढ़ने की आशा जगा दी है, क्योंकि एफएम पर आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। इसके पहले रेडियो प्रसारण सेवाएं मुख्यतः एएम (एम्प्लीट्यूड मॉड्यूलेटेड) थीं। वह आवाज के सूक्ष्म रूप को स्पष्ट नहीं कर पाती थी। इन दोनों में ही प्रसारण के संकेतों को भेजने के लिए रेडियो तरंगों को बदला जाता है। एएम ट्रांसमिशन में रेडियो तरंगों की आवृत्ति एक सी रहती है, लेकिन भेजी जाने वाली तरंगों का विस्तार प्रसारित किए जाने वाले संकेतों के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है। वहीं एफएम में तरंगों का विस्तार एक समान रहता है और उनकी आवृत्ति संकेतों के अनुसार अलग-अलग होती है। एएम में विस्तार (एम्प्लीट्यूड) घटाया-बढ़ाया जाता है और एफएम में आवृत्ति को घटाया बढ़ाया जाता है। एफएम ट्रांसमिशन का उपयोग रेडियो प्रसारण सेवाओं के अलावा मल्टीचैनल, टेलीफोन, कम्युनिकेशन सेटेलाइट्स, लिंक्स, टेलीग्राफी, मोबाइल कम्युनिकेशन, नाविकों और मौसम विभाग द्वारा दी जाने वाली सहायता आदि के लिए किया जाता है।
पाश्चुरीकरण क्यों किया जाता है ?
यदि ताजा दूध कुछ देर तक उबाला न जाए तो वह फट जाता है, लेकिन दूध उबाल कर रखने पर कई घंटों तक खराब नहीं होता। ताजे दूध में कई प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं। जब दूध वायु के संपर्क में आता है तो इन बैक्टीरिया की संख्या कुछ ही समय में बढ़ जाती है। इन्हीं की वृद्धि के कारण दूध खट्टा जाता है। दूध को अधिक उबालने से भी उसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। दूध को खराब होने से बचाने का सबसे उत्तम तरीका फ्रांस के वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने खोजा था। इसे उन्हीं के नाम पर पाश्चुरीकरण कहते हैं। इस क्रिया में दूध तथा अन्य खराब होने वाले पदार्थों को किसी निश्चित तापमान एवं निश्चित समय तक गर्म करके बैक्टीरिया को नष्ट कर दिया जाता है। यदि दूध को 30 मिनट तक 63 डिग्री सेल्सियस तक या 72 से 85 डिग्री सेल्सियस तक केवल 1 सेकंड तक गर्म करके 10 डिग्री या कम तक ठंडा कर दिया जाए तो भी दूध को खराब करने वाले बैक्टीरिया के मरने के साथ ही तपेदिक और दूसरे रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया भी मर जाते हैं। इस प्रकार गर्म किए हुए दूध को बिना खराब हुए अधिक समय तक रखा जा सकता है और इसका स्वाद भी खराब नहीं होता ।
यदि काँच की दो प्लेटों के बीच पानी की पतली परत हो तो उन्हें अलग करना कठिन क्यों होता है ?
यदि किन्हीं दो प्लेटों के बीच हवा न रहे तो वे अच्छी तरह से आपस में चिपक जाती हैं। इसी तरह यदि काँच की दो प्लेटों के बीच पानी की पतली-सी परत होती है तो प्लेटों को प्रेस करने पर उनके बीच से हवा बिल्कुल निकल जाती है। इसके परिणामस्वरूप सामान्य हवा का सामान्य दबाव एक किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर के आसपास ऊपर और नीचे दोनों ओर पड़ने लगता है। इससे काँच की दोनों प्लेटें आपस में अच्छी तरह चिपक जाती हैं। परंतु यदि इन दोनों प्लेटों के बीच में जरा-सी भी हवा या कोई धूल का कण अथवा कोई बाल बराबर रेशा या तिनका आदि भी रह जाए तो काँच की प्लेटें आपस में नहीं चिपक पाएंगी। क्योंकि इससे बाहर और भीतर का दबाव बराबर हो जाएगा, जो उन्हें आसानी से अलग करने में सहायक होगा। होता यह है कि सामान्यतः काँच प्लेटों की सतह एक समान समतल नहीं होती। उनकी सतह में कुछ-न-कुछ असमानता होती ही है, इससे काँच प्लेटों के बीच में हवा रहने की पक्की संभावना रहती है, अतः वे अच्छी तरह नहीं चिपकती हैं। लेकिन जब उन्हें पानी से नम कर लिया जाता है तो हवा की परत का स्थान पानी की परत ले लेती है और प्लेटों के बीच में हवा के न रहने से वे आपस में चिपक जाती हैं। फिर भी यदि काँच प्लेटों की सतह बहुत चिकनी और एक समान हो तो उन्हें चिपकाने के लिए पानी से नम करने की भी आवश्यकता नहीं होती क्योंकि अच्छी तरह चिकनी-समतल काँच प्लेटों के बीच में हवा के रहने की कोई संभावना नहीं होती है। अतः वे पानी से बिना नम किए भी आपस में आसानी से चिपक जाएंगी।
खाना खाने के बाद डकार क्यों आती है?
खाना खाने के बाद सामान्यतः सभी लोगों को डकार आती है। डकार आने पर अक्सर लोगों को यह कहते सुना गया है कि अब पेट भर गया है। कुछ लोगों को तो ऐसी आदत होती है कि वे जब चाहें डकार ले सकते हैं। आइए जानें कि हमें डकार क्यों आती है? जब हम खाना खाते हैं तो भोजन के साथ कुछ वायु हमारे पेट के अंदर चली जाती है। भोजन नली में छाती और पेट के बीच एक दरवाजा होता है, जो भोज्य पदार्थों को निगलते समय खुल जाता है और भोजन के पेट में प्रवेश करने के बाद तुरंत ही बंद हो जाता है। यही दरवाजा पाचक रसों को बाहर आने से रोकता है। भोजन के पचने से जहां कुछ गैसें बनती हैं, वहीं सोडा जैसे पेय भी पेट में गैस पहुंचाते हैं। जब पेट में गैस इकट्ठी हो जाती है, तो मस्तिष्क से इन गैसों को बाहर निकालने का एक संदेश आता है। इससे पेट की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं, यह दरवाजा क्षण भर के लिए खुलता के रूप में वायु पेट से नली में आती है तो कंपन करने लगती है। इन्हीं कंपनों के कारण डकार आने पर एक आवाज पैदा होती है।
गर्मियों में कुत्ते की जीभ बाहर क्यों रहती है?
कुत्ता मानव सहित अन्य स्तनपायी जीवों की तरह गर्मे रक्त का प्राणी होता है। सभी जंतु वर्ग में स्तनपायी जीवों के अतिरिक्त पक्षी ही गर्म खून के होते हैं। इनके शरीर का तापमान स्थिर रहता है, वहीं ठंडे रक्त वाले प्राणियों के शरीर का तापमान वातावरण के तापमान के अनुसार बदलता रहता है। स्तनपायी जीवों के शरीर में बराबर ऊष्मा पैदा होती रहती और इसका कुछ भाग त्वचा द्वारा वातावरण में जाता रहता है। स्तनपायियों के शरीर में स्वेद ग्रंथियां और त्वचा में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं, जिनके जरिए पसीना बाहर निकलता रहता है । यह पसीना ही शरीर की गर्मी लेकर भाप में बदल जाता है। इससे शरीर की गर्मी वातावरण में चली जाती है और ठंडक का एहसास होता है। कुत्ते में स्वेद ग्रंथियों की संख्या काफी कम होती है और उसे अपने शरीर का तापमान नियंत्रित करने के लिए अपनी जीभ बाहर निकालनी पड़ती है। इस दौरान वह सांस लेने का काम तो अपनी नाक से ही करता है, लेकिन सांस छोड़ने का काम मुंह से करता है। इससे मुंह की लार का वाष्पीकरण होता है और कुत्ते को ठंडक का एहसास होता है। इस प्रक्रिया से कुत्ते को गर्मी से राहत मिल जाती है।
स्किंक बंद आंखों से कैसे देख सकता है ?
स्किंक नामक जंतु का संबंध छोटी छिपकलियों की एक प्रजाति से है। इस जंतु की टांगें बहुत छोटी और पतली होती है। इसके शरीर की ऊपरी त्वचा काफी चिकनी होती है। इसका सिरा नुकीला और छोटा होता है। यह लहरा – लहरा कर चलता है। इसका एक गुण यह भी है कि मिट्टी में धंसते समय यह अपने अंगों को सिकोड़ सकता है। स्किंक की सबसे बड़ी विचित्रता यह है कि अपनी आंखें बंद करके भी देख सकता है । जमीन में बिल बनाते समय या कूड़े-करकट में से कीड़े-मकोड़े पकड़ते समय यह अपनी आंखें बंद कर लेता है। इसकी आंख में एक स्थायी पारदर्शक झिल्ली होती है, जो आंखें बंद करने पर काम करती है। चूंकि यह झिल्ली पारदर्शक होती है, इसलिए स्किंक आंखें बंद करके भी देख सकता है। स्किंक की आंखें बंद रहने पर भी खुली रहती हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि स्किंक आंखें बंद क्यों करता है। जब कूड़े-करकट और मिट्टी में यह प्रवेश करता है, तो इसे आंखों में धूल-मिट्टी जाने का डर रहता है। धूल-मिट्टी से सुरक्षा के लिए यह आंखें बंद करता है। पलकों के पारदर्शी होने के कारण इसे आंख बंद करके भी काम करने में कठिनाई महसूस नहीं होती ।
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