ऐसा क्यों और कैसे होता है -31

ऐसा क्यों और कैसे होता है -31

बच्चे का नर या मादा बनना पुरुष पर ही निर्भर क्यों होता है ?
जन्म और मृत्यु प्रकृति का नियम है और संतान पैदा करना हर जीवित प्राणी का गुण है। क्या आप जानते हैं कि मानव की संतान में सभी बच्चे केवल नर या केवल मादा ही क्यों नहीं पैदा होते ? महिलाओं में मासिक धर्म शुरू होने के बाद संतान पैदा करने की क्षमता पैदा हो जाती है। महिला के अंडे और पुरुष के शुक्राणु के संयोग से ही गर्भ में बच्चे की निर्माण क्रिया होती है। स्त्री में पैदा होने वाले अंडे और पुरुष के वीर्य में उपस्थित शुक्राणुओं में सेक्स क्रोमोसोम होते हैं। स्त्री के सभी अंडों में केवल एक ही प्रकार के सेक्स क्रोमोसोम होते हैं। जिन्हें एक्स क्रोमोसोम कहते हैं। पुरुष के शुक्राणुओं को एक्स और वाई क्रोमोसोम कहते हैं। एक्स क्रोमोसोम का आकार वाई क्रोमोसोम से कुछ बड़ा होता है। गर्भाधान की क्रिया में जब पुरुष का एक्स क्रोमोसोम महिला के अंडे में प्रवेश कर जाता है तो इसके मिलने से लड़की का निर्माण होता है। यदि पुरुष का वाई क्रोमोसोम महिला के अंडे में प्रवेश कर जाता है तो लड़के का निर्माण होता है। बच्चे का नर या मादा बनना केवल पुरुष के ही द्वारा नियंत्रित होता है ।
एक्स किरणें शरीर के अदंर क्यों झांक लेती हैं?
एक्स किरणें प्रकाश की किरणों की तरह विद्युत चुंबकीय तरंगें हैं। अंतर केवल इतना है कि इनकी तरंग-दैर्ध्य तरंगों की लंबाई प्रकाश किरणों की अपेक्षा बहुत कम होती है। इसी कारण इनकी आवृत्ति बहुत अधिक होती है। अधिक आवृत्ति के कारण इनमें निहित ऊर्जा बहुत अधिक हो जाती है। ये किरणें बड़ी सक्रिय होती हैं जो हमारे मांस में होकर आर-पार निकल जाती हैं, जिन्हें हम देख नहीं पाते। क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? एक्स किरणें एक नलिका में पैदा की जाती हैं, जिसे एक्स-रे नलिका कहते हैं। इस नली में दो इलेक्ट्रोड लगे होते हैं ऋणात्मक इलेक्ट्रोड को कैथोड तथा धनात्मक इलेक्ट्रोड को एनोड कहते हैं।
जब इन्हें उच्च विभवांतर वाली विद्युत धारा से जोड़ दिया जाता है तो कैथोड से इलेक्ट्रॉन निकलने लगते हैं। ये इलेक्ट्रान जब एनोड के टंगस्टन जैसे पदार्थ से टकराते हैं, तो एक्स किरणें पैदा होने लगती हैं। ये किरणें कम घनत्व वाले पदार्थ जैसे लकड़ी, कागज, मांस और रक्त में से आर-पार निकल जाती हैं, लेकिन अधिक घनत्व वाले पदार्थ जैसे हड्डी, लोहा, सीसा आदि में अवशोषित हो जाती हैं। –
गीले कपड़ों को ऐंठे या दबाए बिना पानी क्यों नहीं निकलता?
गीले होने पर कपड़ों में पानी कपड़ों के ऊपर न होकर उनके भीतर धागों में भरा होता है। सूती कपड़े कपास के धागे के बने होते हैं और कपास का धागा खोखले सेलूलोज रेशों से बना होता है। इसलिए इनमें कोशिकीय क्रिया के द्वारा पानी अंदर खाली स्थानों में भर जाता है। इसे बाहर लाने के लिए कपड़े को दबाने या ऐंठने की आवश्यकता पड़ती है, तभी कोशिकीय क्रिया के विपरीत दबाव पड़ने पर पानी बाहर आता है।
इसके विपरीत संश्लेषित रेशे से बने कपड़े, जो नाइलॉन या पालिएस्टर आदि के नाम से जाने जाते हैं, पानी से भीगते अवश्य हैं लेकिन उनके अंदर पानी प्रवेश नहीं करता है। ऐसे कपड़ों पर पानी बाहरी सतह पर ही रह जाता है, अतः उन्हें दबाने या निचोड़ने की आवश्यकता नहीं होती है। इन्हें लटकाकर ऐसे ही सुखा लिया जाता है और सारा पानी बाहरी सतह पर होने के कारण टपककर या वाष्पीकरण से उड़कर समाप्त हो जाता है।
अतः सभी कपड़े पानी निकालने हेतु निचोड़े या ऐंठे नहीं जाते। केवल सूती कपड़े ही पानी निकालने हेतु निचोड़े या ऐंठे जाते हैं क्योंकि कोशिकीय क्रिया के द्वारा पानी सूती कपड़ों के धागों में अंदर भरा होता है।
राख से रसोई के बरतन साफ व चमकदार कैसे हो जाते हैं?
राख हमें लकड़ी या कोयला आदि के जलाने से प्राप्त होती है। इसमें क्षारीय अवशेषों के अलावा सिलिका इत्यादि की अशुद्धियां पाई जाती हैं। सफाई के पाउडरों में कार्बोनेट आदि सफाईकारक पदार्थ होते हैं। ठीक इसी तरह राख में पाए जानेवाले क्षारीय यौगिकों में भी कार्बोनेट होते हैं। अतः जब राख से बरतन मले जाते हैं तो इनसे बरतनों पर लगी चिकनाई और मैल हटने लगती है। राख में पाए जाने वाले सिलिका से बरतनों पर चिपकी गंदगी राख से बरतन रगड़ने के कारण छूट जाती है और कुछ चमक आ जाती है। इस तरह राख में पाए जानेवाले क्षारीय अवशेषों और सिलिका की अशुद्धियों के कारण राख बरतनों की सफाई डिटर्जेंट पाउडरों की भांति करती है और बरतन साफ होकर चमकने लगते हैं।
मांसपेशियों से शरीर में गति क्यों आती है?
हमारे शरीर में 639 मांसपेशियां हैं जो हड्डियों से जुड़ी हुई हैं। इनका आकार औ बनावट अलग-अलग है। शरीर की सभी मांसपेशियां लगभग 6 अरब कोशिकाओं से मिलकर बनी हैं। क्या आप जानते हैं कि इनसे शरीर में गति क्यों आती है? प्रत्येक मांसपेशी में रहने वाली कोशिका एक ऐसे गति देने वाले यंत्र की तरह होती है, जिसमें एक पंक्ति में दस सिलेंडर होते हैं। ये नन्ही डिब्बी की भांति होती हैं, जिनमें द्रव भरा होता है। मस्तिष्क से कार्य करने का संदेश मिलने पर यह सिकुड़ जाती हैं। ऐसा होने पर डिब्बियों में भरा द्रव एक सेकंड से भी कम समय के लिए जम जाता है। इस प्रकार रासायनिक ऊर्जा का रूप यांत्रिक ऊर्जा में बदल जाता है। सिकुड़ने की क्रिया एक सैकंड के दसवें भाग में पूरी हो जाती है। जैसे ही ये अपनी मूल अवस्था में आती हैं मस्तिष्क फिर उसे कार्य करने का संदेश देता है और वह सिकुड़ जाती है। इस प्रकार मांसपेशी के बार-बार सिकुड़ने से सतत रूप से कार्य होने लगता है। ये मांसपेशियां हमारे शरीर में ऊष्मा पैदा करती हैं, जिससे शरीर में गति आती है।
लंबी यात्रा पर जाने वाले अंतरिक्ष यानों में ऊर्जा कैसे उपलब्ध कराई जाती है?
लंबी यात्रा पर जानेवाले अंतरिक्ष यानों और उपग्रहों में ऊर्जा के लिए अपने ही साधन होते हैं। यह ऊर्जा इन्हें रेडियो आइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटरों के द्वारा मिलती है। प्लूटोनियम एवं स्ट्रांशियम जैसे रेडियो एक्टिव एलीमेंट के डिके से जो उष्मा उत्पन्न होती है उसे लैड-टिल्यूराइड धातु सम्मिश्र एवं सिलिकन जर्मेनिय धातु सम्मिश्र जैसे थर्मोकपिलों की श्रृंखलाओं से बिजली पैदा करने में उपयोग किया जाता है। रेडियो आइसोटोप के रूप में स्ट्रांशियम 90 का आधा जीवन 20 वर्ष का होता है। इसलिए इन जनरेटरों द्वारा लंबी यात्राओं में अनेक वर्षों तक ऊर्जा मिलती रहती है।
जब सूर्य के निकट के ग्रहों की ओर अंतरिक्ष यान यात्रा करते हैं तो वे सौर सैलों के माध्यम से सूर्य के प्रकाश की सहायता से बिजली पैदाकर अपनी ऊर्जा की आवश्यकता पूरी करते रहते हैं। इस तरह वर्षों की लंबी यात्रा पर जानेवाले अंतरिक्ष यान अथवा उपग्रह सौर सैलों तथा रेडियो आइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटरों के द्वारा अपनी ऊर्जा की भरपाई करते हैं।
धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक क्यों होता है?
शराब, बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, अफीम, गांजा, भांग, कोकेन, मार्फीन आदि का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के दूसरे लोगों के लिए भी घातक है। क्या आप जानते हैं कि धूम्रपान नुकसानदायक क्यों है? तंबाकू के अंदर निकोटिन नाम का शक्तिशाली विष होता है। इसके अतिरिक्त 26 अन्य जहर होते हैं । यद्यपि इनकी मात्रा काफी कम होती है, लेकिन फिर भी यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। जब हम धूम्रपान करते हैं तो धुएं के साथ निकोटिन की कुछ मात्रा हमारे रक्त द्वारा सोख ली जाती है। यही निकोटिन हमारी नाक और गले के अंदर उत्तेजना पैदा करता है। इससे हमें खांसी का रोग हो जाता है। धूम्रपान करने से रक्त दबाब बढ़ जाता है, इससे दिल की धड़कन तेजी से चलने लगती है। धूम्रपान से शरीर के तापमान और रक्त भ्रमण पर भी प्रभाव पड़ता है। धूम्रपान करने से फेफड़ों का कैंसर हो जाता है। यह भी सिद्ध किया जा चुका है कि धूम्रपान करने वालों की उम्र कम हो जाती है। धूम्रपान से हृदय संबंधी रोग भी हो जाते हैं।
अन्य भागों की अपेक्षा सिर के बाल अधिक लंबे क्यों उगते हैं?
में आए आज हम जिस विकसित मानव अवस्था हैं उस तक आने में हमें हजारों वर्ष लगे हैं। मानव में अपने आसपास के पर्यावरण और परिस्थितियों के अनुसार जीने के लिए समय-समय पर विशेषक लक्षण विकसित होते रहे हैं। इसी प्रक्रिया से आज के मानव का विकास हुआ है। सिर पर लंबे बालों का उगना भी इसी श्रृंखला का परिणाम है। सिर के बालों द्वारा सीधी धूप से रक्षा होती है और यौन आकर्षण में सहायता मिलती है। अतः हजारों वर्ष पूर्व मनुष्य में इस विशेषक लक्षण का विकास हुआ जो धीरे-धीरे आनुवंशिक लक्षण में परिवर्तित हो गया। परिणामस्वरूप बालोंवाले व्यक्ति बदलते पर्यावरण में अधिक जीने लगे। आज स्थिति यह है कि गर्भाधान होने के अवस्था से ही आनुवंशिकता की मौलिक इकाई जीन, जो बालों की बढ़ के लिए उत्तरदायी होती है, सक्रिय हो जाती है और विकसित हो रहे बच्चों में बालों की बढ़वार को नियंत्रित करती है। इस तरह बालों के लिए उत्तरदायी जीन के नियंत्रण में ही सिर के बाल अधिक लंबे और शरीर के अन्य भागों के बाल छोटे अथवा रोएं के रूप में बढ़ते हैं।
जलयानों में सोनार का उपयोग क्यों होता है ?
सोनार एक ऐसा यंत्र है जिसे ध्वनि तरंगों की सहायता से समुद्र के अंदर उपस्थित पनडुब्बी और तारपीडो जैसी वस्तुओं का पता लगाने के काम में लाया जाता है । इस यंत्र का उपयोग समुद्री लड़ाइयों, जलयानों और पनडुब्बियों में किया जाता है। इससे समुद्र के अंदर मौजूद बड़ी-बड़ी मछलियों तथा दूसरे जानवरों का पता लगा लिया जाता है। इसकी सहायता से समुद्र के अंदर 100 मीटर से 10 किमी तक की वस्तुओं का पता लगाया जा सकता है। सोनार के दो भाग होते हैं – ट्रांसमीटर और रिसीवर। ये दोनों ही पानी में डूबे रहते हैं। ट्रांसमीटर में एक ट्रांसड्यूसर की सहायता से उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगें पैदा की जाती हैं जो समुद्र के अंदर भेजी जाती है। जब इन तरंगों के रास्ते में कोई वस्तु आ जाती है, तो ये उससे टकराकर परावर्तित हो जाती हैं। परावर्तित तरंगों को रिसीवर द्वारा प्राप्त कर लिया जाता है। तरंगों के जाने और लौटकर आने में लगा समय ज्ञात कर लिया जाता है। । समुद्र के जल में ध्वनि के वेग और समय की सहायता से उस वस्तु की दूरी का पता लगा लिया जाता है। इस यंत्र में एक चित्र प्रदर्शित करने वाला यंत्र भी लगा होता है जो वस्तु की सही-सही दूरी और स्थिति का ज्ञान कराता है।
कुछ घड़ियों को क्वार्ट्ज घड़ी क्यों कहा जाता है?
क्वार्ट्ज घड़ियों में क्वार्ट्ज क्रिस्टल घड़ियों की जान या मुख्य भाग होता है। इसीलिए क्वार्ट्ज से चलनेवाली घड़ियों को क्वार्ट्ज घड़ियां कहा जाता है। इन घड़ियों में क्वार्ट्ज क्रिस्टल के दाब से विद्युत् गुण का उपयोग किया जाता है। जब इससे होकर एकांतर वोल्टेज प्रवाहित किये जाते हैं तो यह एक नियत आवृत्ति पर कंपन उपलब्ध कराते हैं, जिन्हें क्वार्ट्ज घड़ियां उपयोग करती हैं। सामान्य घड़ियों में स्प्रिंग द्वारा प्राप्त बल से दोलन पहिया चलाया जाता है, जो घड़ी की सुइयों को चलने में नियमित गति प्रदान करता है। क्वार्ट्ज घड़ियों में यह कार्य क्वार्ट्ज क्रिस्टल द्वारा नियत आवृत्ति कंपन के द्वारा किया जाता है। इस घड़ी में एक ऐसा दोलन विद्युत् सर्किट बना होता है जिसमें वोल्टेज का दोलन क्रिस्टल के कंपन की प्राकृतिक आवृत्ति के समान आवृत्ति पर दोलन करता है। इसलिए घड़ी का पूरा तंत्र क्रिस्टल की सामान्य प्राकृतिक कंपन आवृत्ति के अनुसार दोलित होता है। इस दोलन वोल्टेज को, जो कि एक नियत मान पर कंपित क्रिस्टल द्वारा बनाए रखा जाता है, एक बहुत छोटी सोपानी मोटर को चलाने में उपयोग किया जाता है जिससे क्वार्ट्ज घड़ियों के अन्य तंत्र और सुइयां चलती हैं और हमें सही समय बताती रहती हैं।
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