ऐसा क्यों और कैसे होता है -30

ऐसा क्यों और कैसे होता है -30

टरबाइन से मशीन क्यों चलती है?
हम अकसर लोगों से यह सुनते हैं कि टरबाइन से सभी प्रकार की मशीनें चलाई जा सकती हैं। क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? टरबाइन एक ऐसी मशीन है जो किसी गतिशील गैस अथवा द्रव की ऊर्जा को कार्य में बदल देती है। इसमें एक शॉफ्ट के ऊपर एक पहिया चढ़ा होता है। पहिए के चारों ओर पंखुड़ियों की एक श्रृंखला लगी रहती है। जब इन पंखुड़ियों से गैस अथवा द्रव टकराते हैं तो पहिया तेज गति से घूमने लगता है। पहिए के घूमने से शॉफ्ट भी घूमती है तथा शॉफ्ट के घूमने से मशीन चलने लगती है। टरबाइन से कोई भी मशीन चलाई जा सकती है, चाहे वह पानी के जहाज का प्रोपेलर हो अथवा हवाई जहाज का । पानी की टरबाइन को चलाने के लिए ऊंचाई से गिरने वाले किसी झरने अथवा बांध के पानी का प्रयोग किया जाता है। वाष्प टरबाइन को चलाने के लिए पहले पानी को बाइलरों में गर्म करके भाप में बदला जाता है। भाप उच्च दाब पर टरबाइन में प्रवेश करती है। टरबाइन में इसका दाब कम हो जाता है, जिससे भाप का प्रसार होता है। यह प्रसार पहिए को घुमाता है।
मूंगफलियां सीधे भूनने के बजाय बालू डालकर क्यों भूनते हैं?
किसी भी चीज को भूनने के लिए उसे चारों ओर से एक समान उष्मा देने की आवश्यकता होती है, अन्यथा जिस हिस्से में उष्मा अधिक लगेगी वह भाग जल जाएगा और जिस हिस्से में कम उष्मा लगेगी वह भाग कच्चा रह जाएगा। यह बात भूनने, तलने, सेंकने आदि सभी पर लागू होती है।
बालू की विशेषता यह है कि यह गरम करने पर जल्दी गरम हो जाती है, इसे पर्याप्त उष्मा तक गरम किया जा सकता है तथा इसमें यह उष्मा समान रूप से बहुत देर तक बनी रहती है। इसीलिए जब गरम बालू में मूंगफलियां भूनते हैं तो वे एक समान उष्मा पर चारों तरफ से अच्छी तरह भुन जाती हैं। यदि उन्हें सीधे ही कड़ाही में डालकर भूनेंगे तो वे कच्ची-पक्की भुनेंगी और खाने में भी अच्छी नहीं लगेंगी। यही कारण है कि मूंगफलियां बालू गरम करके भूनते हैं।
होवरक्राफ्ट तेज क्यों चलता है ?
होवरक्राफ्ट यातायात का एक अत्याधुनिक साधन है। यह किसी भी सामान्य वाहन जलपोत या वायुपोत से बिल्कुल भिन्न होता है। यह धरती पर भारी बोझ ढो सकता है, समुद्र में चल सकता है और हवा में उड़ सकता है। क्या आप जानते हैं कि जलपोत की तुलना में यह तेज गति से क्यों भागता है? दरअसल यह एक तरह से हवा के गद्दे पर चढ़कर गति करता है, इसलिए इसे  एअर-कुशन वाहन या ग्राउंड-इफेक्ट मशीन भी कहते हैं। होवरक्राफ्ट धरती से थोड़ा ऊपर उठकर चलता है अतः दिशा परिवर्तन करने के लिए इसे आसानी से मोड़ा जा सकता है, जबकि पानी में यह जलपोत से भी ज्यादा तेज गति से चलता है । पानी इसके प्रतिरोधक के रूप में काम करता है, अतः इस पर नियंत्रण बनाने के लिए बहुत कम शक्ति लगानी पड़ती है। पानी में यह 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ता है। होवरक्राफ्ट के ऊपर एक बहुत बड़ा पंखा लगा होता है, जो हवा को अंदर की ओर खींचता है। यही हवा होवरक्राफ्ट की तली में लगी थूथनियों में फूंकी जाती है। हवा भरी होने के कारण यह हल्का होता है, अतः भारी भरकम जलपोतों की तुलना में अधिक तेज गति से चलता है।
डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाओं के साथ विटामिन की गोलियां क्यों देते हैं?
विटामिन हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। हमारे शरीर की अनेक गतिविधियां इनके द्वारा संचालित होती हैं। प्रायः हमारा शरीर आवश्यकता के अनुसार इनकी रचना करता रहता है और हम स्वस्थ रहते हैं।
एंटीबायोटिक दवाएं तेज रसायन होते हैं, इनसे बीमारी पैदा करनेवाले जीवाणु आदि मर जाते हैं और हमें रोगों से छुटकारा मिलता है। लेकिन इन एंटीबायोटिक दवाओं से रोगकारक जीवाणुओं के साथ-साथ हमारे शरीर में वे लाभकारी जीवाणु जो विटामिनों के निर्माण में सहायता करते हैं, भी मर जाते हैं। इससे शरीर में विटामिनों की कमी हो जाती है और हम कमजोर होने लगते हैं।
यदि इस कमी को दूर न किया जाए तो स्वस्थ होने में अधिक समय लग सकता है और रोग को भगाने या दूर करने में कठिनाई आ सकती है। अतः पूरी तरह स्वस्थ होने और फिर से जीवाणुओं द्वारा विटामिन बनाने में समर्थ होने तक हमें किसी अन्य माध्यम से विटामिनों की आवश्यकता होती है।
यही कारण है कि डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाओं के साथ विटामिन की गोलियां भी देते हैं, जिससे मरीज कमजोर न हो और जल्दी ठीक हो सके।
कुछ कीड़े उल्टे होकर क्यों तैरते हैं?
आपने बैक स्वीमर्स नामक कुछ ऐसे विलक्षण कीड़े देखे होंगे, जो उल्टे होकर तैर सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि ये कीड़े उल्टे होकर क्यों तैरते हैं? इन बैक स्वीमर्स को बोट बग भी कहते हैं। यद्यपि ये कीट अपने जीवन का अधिकांश भाग पानी में बिताते हैं, लेकिन उनमें लंबी दूरियों तक उड़ने की क्षमता भी होती है। इन कीड़ों का आकार छोटा होता है। आमतौर पर इनकी लंबाई 3 से 17 मिमी (0.13 से 63 इंच) तक होती है। तैरने में ये अपने पंखों के बजाय टांगों का इस्तेमाल करते हैं। ये पीठ के बल तैरते हैं तथा पीछे की टांगों को पानी में चप्पू की तरह मारते हैं। इस तरह के सपाट चप्पू तैरने के लिए बहुत उत्तम होते हैं। इनके दोनों किनारों पर उगे हुए बालों से इनके तैरने की क्षमता और भी बढ़ जाती है। इनसे पानी को काटने के लिए ज्यादा चौड़ी सतह बन जाती है। यह कीड़ा अपनी आगे की छोटी-छोटी टांगों को शिकार थामने के लिए इस्तेमाल करता है। बैक स्वीमर्स शिकार को पकड़ने के लिए उल्टे होकर तैरते हैं। इनकी चोंच पैनी होती है, जिन्हें वे मछलियों तथा अन्य जल-जंतुओं के शरीर में घोंप कर उनका रस चूस लेते हैं।
रेजर ब्लेड को दो उंगलियों से मोड़ने के बाद छोड़ने पर वह हवा में उड़ क्यों जाता है ?
तीर-कमान में तीर को कमान पर रखकर जब चाप खींचते हैं और चाप छोड़ते हैं तो तीर हवा में उड़ जाता है। ऐसा कमानी या स्प्रिंग क्रिया के कारण होता है। खिंची हुई कमान चाप छोड़ने पर अपने स्थान पर वापस आना चाहती है और वापस आने पर चाप पर जो बल लगता है उससे तीर हवा में उड़ जाता है।
ठीक इसी तरह जब रेजर के ब्लेड को दो उंगलियों से दबाते या मोड़ते हैं तो उसमें कमानी क्रिया पैदा होती है। इस क्रिया के द्वारा ब्लेड उंगलियों से छोड़े जाने पर अपनी पूर्व स्थिति में आना चाहता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ब्लेड जिस पदार्थ का बना होता है वह स्टील तथा रबर की तरह लचीला होता है। अत: ब्लेड अपनी पूर्व सामान्य अवस्था में आते समय आगे जाने का संवेग धारण कर लेता है। इसी कमानी क्रिया की वजह से धारण किए गए आने जाने के संवेग के कारण उंगलियों से छोड़े जाने के बाद रेजर का ब्लेड हवा में उड़ जाता है।
हम पीछे की ओर तेज़ क्यों नहीं दौड़ पाते?
चलने या दौड़ने में पैरों के अलावा शरीर के अन्य अंगों के मुड़ने, झुकने आदि का भी महत्त्व होता है। हमारी रीढ़ की हड्डी आगे की ओर ही मुड़ पाती है। अतः हमारा शरीर आगे की ओर ही झुक सकता है। इससे हमें दौड़ते समय संतुलन बनाए रखने में सहायता मिलती है। जब हम चलते या दौड़ते हैं तो हमारे पैरों के घुटनों के जोड़ आगे की ओर चलने के लिए ही मुड़ते हैं पीछे के लिए नहीं। इसी तरह हमारे पैरों की बनावट भी ऐसी है जिससे एड़ियां और पंजे आगे चलने में सहायक होते हैं। चलते समय हमें आगे का रास्ता भी देखना होता है। हमारी आंखों की बनावट और शरीर में उनका स्थान आगे की ओर ऐसी जगह होता है कि वे पीछे की ओर न देखकर आगे की ओर ही आसानी से देख पाती हैं। इस तरह हमारे शरीर की बनावट और चलने या दौड़ने के लिए आवश्यक सुविधाएं हमें आगे चलने हेतु ही सहायक होती हैं। इनका हमारी चलने की गति पर बहुत प्रभाव पड़ता
है। हम पीछे की ओर भी चल सकते हैं लेकिन तेज गति से दौड़कर नहीं। इसीलिए हम आगे की ओर दौड़ पाने की तुलना में पीछे की ओर नहीं दौड़ पाते हैं।
दिन में तारे क्यों नहीं दिखाई देते?
जैसे ही अंधेरा होता है आकाश में तारे दिखाई देने लगते हैं। बढ़ते अंधेरे के साथ ही तारों की संख्या और चमक भी बढ़ जाती है। रात जितनी अधिक अंधेरी होती है तारे उतने ही चमकीले और स्पष्ट दिखाई देते हैं, लेकिन चांदनी रात में तारे कुछ कम चमकीले दिखते हैं। सुबह होते ही तारों की संख्या कम होने लगती है। उस समय कुछ बहुत अधिक चमकीले तारे ही दिखाई देते हैं। सूर्य निकलते ही तारे दिखने बंद हो जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि दिन में तारे क्यों नहीं दिखाई देते? माना जाता है कि रात को सूर्य छिप जाता है वैसे ही दिन में तारे छिप जाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होता। दरअसल तारे कभी छिपते नहीं हैं, बल्कि सूर्य के तेज प्रकाश के कारण दिखाई नहीं देते हैं। सूर्य का प्रकाश हमारे वायुमंडल में उपस्थित धूल, गैस और जलकणों से टकराकर चारों दिशाओं में फैल जाता है। प्रकाश के इस प्रकार फैलने को प्रकाश प्रकीर्णन कहते हैं। प्रकाश के फैलने से सारा वायुमंडल चमकने लगता है। दूर स्थित तारों से आने वाला क्षीण प्रकाश इस चमक की तुलना में बहुत कम हो जाता है। इनकी कम चमक इस अधिक चमक में हमारी आंखों तक पहुंच नहीं पाती, इसलिए हमें दिन में तारे दिखाई नहीं देते।
फिनाइल तथा डिटॉल को पानी में मिलाने पर दूधिया क्यों हो जाते हैं?
कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो पानी में पूरी तरह ರ घुल जाते हैं। ऐसे पदार्थ घुल जाने पर साफ, पारदर्शी पानी का रूप धारण कर लेते हैं। लेकिन कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो पानी में पूरी तरह घुलते नहीं हैं। जैसे तेल से बने बने पदार्थ । डिटॉल और फिनाइल भी अमिश्रणीय पदार्थों से मिलकर बने होते हैं। इसलिए जब इन्हें पानी में मिलाया जाता है तो वे पानी में पूरी तरह घुलते नहीं है। बल्कि उनका बारीक इमलशन, जिसे पायस कहते हैं, बन जाता है। जब यह इमलशन फिनाइल तथा डिटॉल में पाए जानेवाले रसायनों से क्रिया करता है तो तैलीय अंश बहुत छोटी-छोटी बुंदकियों में बदल जाता है। इससे वह पानी में दूधिया बादलों की घटा जैसा दिखने लगता है। पानी में डिटॉल तथा फिनाइल की बहुत कम मात्रा होने और बुंदकियों के अघुलनशील तथा अमिश्रणीय होने से पानी अपारदर्शी हो जाता है और हमें पानी दूधिया रंग का दिखाई देने लगता है।
मौसम का पूर्वाभास क्यों हो जाता है ?
आज आकाश में बादल छाए रहेंगे, शाम को गरज के साथ छींटे पड़ेंगे, आज आंधी आने की संभावना है आदि मौसम संबंधी सूचनाएं हम रेडियो, टेलीविजन से रोज ही प्राप्त करते रहते हैं। पृथ्वी के वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को मौसम कहते हैं। क्या आप जानते हैं कि आने वाले मौसम के विषय में पूर्वाभास क्यों हो जाता है ? मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए वायु का दबाव, उसकी दिशा, आर्द्रता, तापमान, बादलों का बनना, वर्षा एवं बर्फ जैसे बहुत से ऐसे तथ्यों का अध्ययन करना पड़ता है जिनके ऊपर मौसम निर्भर करता है। सभी देशों के मुख्य स्थानों पर मौसम संबंधी जानकारी प्राप्त करने वाले केंद्र होते हैं। वायु का वेग और दिशा ज्ञात करने के लिए वायुवेगमापी तथा नमी ज्ञात करने के लिए आर्द्रतामापी यंत्र प्रयोग में लाए जाते हैं। वर्षामापी की सहायता से वर्षा होने के आंकड़े तथा सनशाइन रिकार्डर की सहायता से धूप निकलने की अवधि का पता लगाया जाता है। उच्चतम न्यूनतम तापमापी से दिन-रात का अधिकतम और निम्नतम तापमान ज्ञात किया जाता है। बादलों के विषय में गुब्बारों की सहायता से सूचना प्राप्त की जाती है। वायु दाबमापी से वायुमंडल का दबाव ज्ञात किया जाता है। –
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