ऐसा क्यों और कैसे होता है -29

ऐसा क्यों और कैसे होता है -29

चंद्रमा छोटा बड़ा क्यों दिखाई – देता है?
पूर्णिमा की रात चंद्रमा चमकती हुई तश्तरी जैसा दिखाई देता है, लेकिन घटते-घटते वह अमावस्या की रात को बिल्कुल गायब हो जाता है। चंद्रमा के इस घटने-बढ़ने को चंद्रमा की कलाएं कहा जाता है। क्या आप जानते हैं कि चंद्रमा हमें घटता-बढ़ता क्यों दिखता है। दरअसल सूर्य के पड़ने वाले प्रकाश की विविधता के कारण ही घटता-बढ़ता दिखाई देता है। चंद्रमा को पृथ्वी की एक परिक्रमा करने में लगभग 29, 1/2 दिन लगते हैं। यह सूर्य के प्रकाश से चमकता है। इस पर पड़ने वाला सूर्य का प्रकाश परावर्तित होकर हमारी धरती पर पहुंचता है। चंद्रमा का एक ही भाग पृथ्वी की ओर रहता है, इसका दूसरा भाग हमें दिखाई नहीं देता। जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आता है तो इसका चमकने वाला भाग पृथ्वी वासियों को दिखाई नहीं देता है। केवल अंधकारमय भाग ही पृथ्वी के सामने होता है, इसलिए हमें चंद्रमा का कोई भाग चमकता हुआ नहीं दिखाई देता है।
यही अमावस्या का चांद है। पूर्णिमा के दिन पृथ्वी से दिखने वाली सतह पूर्ण प्रकाशित हो जाती है। यही पूर्णिमा का चांद होता है। हर पंद्रह दिनों में इन ग्रहों की स्थिति लगातार बदलती रहती है, यही कारण है कि चंद्रमा कभी बड़ा तो कभी छोटा दिखाई देता है।
बुढ़ापा क्यों आता है?
जो व्यक्ति पैदा होता है, यदि ठीक से जीता रहे तो भी समय के साथ उस पर बुढ़ापा अवश्य आता है। हां, यह अवश्य देखने में आता है कि बुढ़ापा किसी पर जल्दी आता है तो किसी पर कुछ अधिक देर बाद, लेकिन आता जरूर है। प्रश्न उठता है कि बुढ़ापा आता ही क्यों है? बच्चे के पैदा होने पर शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग नए और बढ़वार की ओर होते हैं। उम्र बढ़ने के साथ मनुष्य में भांति-भांति के जैव वैज्ञानिक परिवर्तन होते रहते हैं। इन्हीं परिवर्तनों के साथ एक अवस्था ऐसी आती है कि शरीर की सभी क्रियाएं मंद होने लगती हैं, और परिणामस्वरूप शक्ति का अभाव होने लगता है, संवेदनशीलता कम हो जाती है और धीरे-धीरे शरीर का भार भी घटने लगता है। दिखाई कम देने लगता है तथा बालों का रंग सफेद होना प्रारंभ कर देता है। यह तो रही बाहर से दिखाई देने वाली बातें लेकिन शरीर के अंदर सभी तरह की कोशिकाएं एवं ऊतकों में होनेवाले परिवर्तनों के कारण गुर्दे, यकृत, प्लीहा तथा आंतों आदि की कोशिकाएं भी कमजोर होने लगती हैं। रक्तशिराओं के कठोर होने से शरीर में रक्त संचार अच्छी तरह सभी अंगों तक नहीं पहुंच पाता है, जिससे अंगों में पोषकों का अभाव आ जाता है। भोजन ठीक से पचता नहीं है और धीरे-धीरे आंख, कान, त्वचा तथा दांत भी कमजोर होने लगते हैं। ये सभी जैव वैज्ञानिक परिवर्तन बुढ़ापे को जन्म देते हैं और अंततः मनुष्य जीवन की अंतिम सीढ़ी, मौत के मुंह में चला जाता है। इस तरह कहा जा सकता है कि बुढ़ापा उम्र के साथ शरीर में होनेवाले जैव वैज्ञानिक परिवर्तनों के कारण आता है।
डबलरोटी में छेद क्यों होते हैं?
डबलरोटी गेहूं के है। मैदे को पानी के साथ गूंथ लिया जाता है और इसमें थोड़ा सा खमीर, चीनी और नमक मिला देते हैं। खमीर एक प्रकार का फफूंद होता है, मैदे की गर्मी और नमी के कारण बड़ी तेजी से बढ़ता है। इसके बढ़ने में कुछ गैस पैदा होती है और इसके बुलबुलों के कारण गुंथे हुए मैदे का आयतन भी बढ़ जाता है। जब इसे भट्टियों में सेंका जाता है तो ये गैस के बुलबुले फूट-फूट कर डबलरोटी में छोटे-छोटे छेद पैदा कर देते हैं। इसी खमीर के कारण डबलरोटी में गंध और स्वाद पैदा हो जाता है। केक में भी छोटे-छोटे छेद होते हैं, लेकिन ये छेद खमीर के कारण नहीं होते, बल्कि बेंकिग सोडा की वजह से होते हैं। केक में टारटेरिक एसिड और सोडियम बाइकार्बोनेट का मिश्रण मिलाते हैं जिसे बेकिंग सोडा कहते हैं। जब इन दोनों को मिलाकर आटे के साथ गीला करके पकाया जाता है तो कार्बनडाईआक्साइड गैस निकलती है। इसी गैस के बुलबुलों के टूटने से केक में छोटे-छोटे छेद हो जाते हैं।
कुछ छिपकलियां की खून पिचकारी क्यों छिड़कती हैं?
उत्तरी अमेरिका तथा मेक्सिको में एक ऐसी छिपकली पाई जाती है, जो अपनी आंखों से खून की पिचकारी छोड़ती है। हालांकि खून की पिचकारी छोड़ने के मौके बहुत कम ही आते हैं। क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? दरअसल होईटोड या होर्ल्ड लिजार्ड नाम की छिपकली आवश्यकता पड़ने पर अपने सिर का रक्त दाब बढ़ा लेती है, जिससे इसकी आंखों की सूक्ष्म रक्त कोशिकाओं की झिल्ली फट जाती है। इससे खून की बूंदें के रूप में निकलने लगती हैं। यह फुहार फुहार कई इंच की दूरी तक जा सकती है। प्राणिशास्त्रियों के अनुसार छिपकली की यह क्रिया सुरक्षा का एक तरीका है। रक्त की ये बूंदें फुहार के रूप में हमला करने वाले जंतु की आंखों में पड़ती हैं तो जलन पैदा कर देती हैं। यह छिपकली इगुआनिडाइ परिवार की सदस्य है और इस तरह की लगभग 14 जातियां होती हैं। इसके सिर पर छुरे जैसे कांटे अथवा सींग होते हैं। इसका शरीर चपटा, अंडाकार होता है जिस पर नुकीली धारियां तथा शरीर के किनारों पर शल्क होते हैं।
प्रेशर कुकर में खाना जल्दी क्यों पकता है ?
खाना पकाने के लिए उष्मा की आवश्यकता होती है। यह उष्मा खाना पकाए जाने वाले माध्यम से मिलती है। सामान्यतः पानी के साथ खाना पकाया जाता है। पानी गरम होता है और उससे खाने को उष्मा मिलती है। पानी के उबलने का बिंदु सामान्यतः 100° सें. होता है। इसका मतलब यह हुआ कि पानी के साथ खाना बनाने पर खाने को अधिक-से-अधिक 100° सें. उष्मा मिलेगी। इसी उष्मा से खाना पकेगा।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि किसी भी द्रव या तरल पदार्थ का उबाल बिंदु तब आता है जब उस तरल की वाष्प का दबाव वायुमंडल के दबाव के बराबर हो जाता है। जब प्रेशर कुकर में खाना बनाया जाता है तो पानी के ऊपर का वायुमंडलीय दबाव बढ़ता है। अतः कुकर में पानी 100° सें. के बजाय लगभग 200° सें. तापक्रम के आसपास उबलता है। इसका मतलब यह हुआ कि कुकर में पक रहे भोजन को साधारण तरीके से पकाए गए भोजन की तुलना में अधिक उष्मा मिलती है और वह जल्दी पक जाता है। इससे ऊर्जा की बचत होती है और भोजन के पौष्टिक तत्त्व भी नष्ट नहीं होते हैं। अतः प्रेशर कुकर में खाना पकाना जल्दी पक जाने के अलावा भी कई दृष्टियों से उत्तम और उपयोगी है।
क्या जानवर भी बुद्धिमान होते हैं?
सामान्यतः यह कहा जाता है कि जानवरों में बुद्धि का अभाव होता है। वे उन्हीं कार्यों को करते हैं जो उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होते हैं। कोई कठिनाई आ जाए तो वे उसका हल नहीं खोज पाते। ये कुछ बातें ऐसी हैं जो यह इंगित करती हैं कि जानवरों में बुद्धि का अभाव होता है। लेकिन इसके विपरीत भी जानवरों को ऐसे कार्य करते देखा जाता है जो उनकी नियमित जिंदगी का हिस्सा नहीं होते हैं, बल्कि वे उस स्तर के होते हैं जिन्हें बुद्धि लगाए बिना पूरा नहीं किया जा सकता है। जैसे कुत्ते सिखाई जानेवाली बातों को सीख लेते हैं। बंदर को अनेक करतब सिखाकर मदारी उससे अनेक मनोरंजक कार्य करा लेते हैं। बिल्ली खतरा आने पर वृक्षों पर चढ़ जाती है और अपने शिकार को दबे पांव इस तरह पकड़ती है कि शिकार को पकड़े जाने से पहले तनिक भी भनक नहीं पड़ती है। चिड़ियां इतने अच्छे घोंसले बनाती हैं जो इंजीनियर भी नहीं बना सकते हैं। मिलते हैं इस तरह के अनेक उदाहरण जानवरों में जिनसे उनके बुद्धिमान होने का आभास होता है लेकिन इसकी मात्रा कम होती है।
स्टीयरिंग के अनुसार कार क्यों मुड़ती है ?
कार, बस, ट्रक आदि ऐसे वाहन हैं, जिनमें एक स्टीयरिंग व्हील लगा होता है। यह स्टीयरिंग व्हील इन वाहनों को इच्छित दिशा में मोड़ने के काम आता है। वास्तव में कार चालक इस व्हील को वाहन के दिशा-निर्देशक के रूप में प्रयोग करता है। क्या आप जानते हैं कि स्टीयरिंग व्हील के अनुसार कार क्यों मुड़ती है? स्टीयरिंग व्हील धातु की एक लंबी छड़ से होता है। यह छड़ जुड़ा कार के आगे लगे गीयर बॉक्स तक जाती है। जब कार चालक स्टीयरिंग व्हील को घुमाता है, तो यह छड़ एक गीयर को घुमा देती है।
कुछ कारों में ‘वर्म गीयर’ होता है। यह वर्म गीयर एक दूसरे गीयर को घुमाता है, जो कि एक लीवर से जुड़ा होता है । यह लीवर दो छड़ों से जुड़ी होती है। एक छड़ आगे के बाएं पहिए से जुड़ा होता है और दूसरी आगे के दांए पहिए से। कार चालक द्वारा जब स्टीयरिंग व्हील को घुमाया जाता है तो गीयर इस लीवर को चलाते हैं। लीवर से लगी छड़ें आगे के दोनों पहियों को दाएं या बाएं घुमाती हैं।
सामान्य कुर्सी के बजाय आराम कुर्सी पर अधिक आराम क्यों मिलता है ?
किसी भी व्यक्ति को कुर्सी या किसी अन्य स्थान पर बैठने पर आराम का मिलना या न मिलना इस बात पर निर्भर करता है कि उसके शरीर का कितना हिस्सा कुर्सी आदि के संपर्क में है। कुर्सी पर बैठने से केवल कुर्सी की सीट ही शरीर के संपर्क में रहती है, अतः शरीर का सारा दबाव सीट के कम स्थान पर आ जाता है और परिणामस्वरूप प्रति इकाई क्षेत्र के हिसाब से यह दबाव अधिक होता है, जो आराम में बाधक है। ठीक इसके विपरीत जब कोई आराम कुर्सी पर बैठता है तो लगभग पूरी कुर्सी ही शरीर के संपर्क में रहती है। इसलिए यह दबाव बंट जाता है और शरीर के प्रति इकाई क्षेत्र के हिसाब से कुर्सी की तुलना में बहुत कम होता है। अतः कम दबाव के कारण शरीर हलका-फुलका रहता है और आराम महसूस होता है। यही कारण है कि कुर्सी की अपेक्षा आराम कुर्सी पर अधिक आराम मिलता है।
मगरमच्छ खतरनाक क्यों होते हैं?
मगरमच्छ एक दीर्घकाय रेंगनेवाला प्राणी है और इसके शरीर की बनावट सिगार जैसी होती है। इसके पैर छोटे होते हैं, लेकिन पूंछ और जबड़े बेहद शक्तिशाली होते हैं। मगरमच्छ काफी आक्रामक होता है और बड़े जानवरों का भी निडर होकर शिकार करता है। मगरमच्छ मांसाहारी होता है और पानी में ही अपने शिकार के साथ काफी दूर तक बिना किसी आहट के तैर कर उसका शिकार करता है। ये छोटे शिकार जल्दी पकड़ लेते हैं और जमीन पर उलटपलट कर अपने पैने दांतों से उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर लेते हैं। मगरमच्छ अपने घर को बचाते समय व जिस तालाब या नदी में वे रहते हैं, उसके सूखते समय काफी आक्रामक हो जाते हैं। मादा मगरमच्छ तालाब या पोखर के पास रेत या झाड़ियों में सख्त खोल वाले अंडे देती है। चार महीने तक सेने के बाद बच्चे इससे बाहर निकलते हैं। सामान्य तौर पर मगरमच्छ मछलियां, चिड़िया और छोटे स्तनधारी जीव ही खाना पसंद करते हैं, लेकिन मौका मिलने पर वे हिरण और इंसान को खाने से भी नहीं चूकते हैं। ये सामान्यतः उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये उभयचरी जीव होते हैं और इनके पैरों में बनी जाली इन्हें पानी के साथ ही जमीन पर भी आसानी से भागने में मदद करती है।
ऑपरेशन थिएटर में डॉक्टर आदि स्टाफ हरे रंग की एप्रन क्यों पहनते हैं?
सामान्यतः डॉक्टर अपने कार्य के समय सफेद रंग की एप्रन पहनते हैं क्योंकि सफेद रंग से मरीज को शांत और सुहाना वातावरण लगता है, जो कि मरीज के लिए बहुत आवश्यक होता है। लेकिन जब डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर में ऑपरेशन करते हैं तो वे सफेद के स्थान पर हरे रंग की एप्रन पहनते हैं। इसका कारण यह है कि अगर वे सफेद रंग की एप्रन पहनेंगे तो ऑपरेशन के समय खून के छिटककर पड़ने से पड़े धब्बे सफेद रंग पर बहुत स्पष्ट और साफ-साफ दिखाई देने लगेंगे। इन धब्बों को देखने से मरीज, डॉक्टर और उनके संबंधियों आदि पर निश्चय ही बुरा असर पड़ेगा।
इस स्थिति से बचने के लिए ऑपरेशन के लिए ऐसे रंग की आवश्यकता थी जो सुहाना भी हो और खून के छींटों को अपने में छिपा भी ले। इसके लिए लाल, काला, हरा कोई भी रंग हो सकता था। लाल और काले रंग शुभ नहीं माने जाते। हरा रंग आंखों को अच्छा लगता है और खून के धब्बे भी इसमें छिप जाते हैं। इस तरह यह ऑपरेशन थिएटर में अच्छे वातावरण की सभी दृष्टियों से उपयुक्त है। इसीलिए डॉक्टर आदि ऑपरेशन थिएटर में हरे रंग की एप्रन पहनते हैं ।
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