ऐसा क्यों और कैसे होता है -28

ऐसा क्यों और कैसे होता है -28

कॉर्क क्या है और वह पानी पर तैरता क्यों है ?

कॉर्क वृक्ष की छाल होती है जो ओक नामक वृक्ष से प्राप्त होती है। ये वृक्ष हालांकि भारत, पश्चिमी अमेरिका और भूमध्य सागर क्षेत्र में उगाए जाते हैं, लेकिन कॉर्क के वृक्ष स्पेन तथा पुर्तगाल में भी बहुत अधिक पाए जाते हैं। ओक वृक्ष के 20 वर्ष के हो जाने पर पहली बार और इसके 8-9 वर्ष बाद दुबारा छाल उतारी जाती है। वृक्ष के लगभग एक मीटर मोटे गोल तने के चारों ओर छाल होती है, जिसे तने पर से उतार लिया जाता है। छाल के ऊपर के खुरदरे भाग को छीलकर शेष छाल को कॉर्क के विभिन्न उपयोगों के अनुरूप तैयार कर लिया जाता है। बोतलों के ढक्कन तो कॉर्क के बनाए ही जाते हैं। कॉर्क का उपयोग कमरों तथा हॉलों को साउंड-प्रूफ बनाने तथा वेयर हाउसों एवं रेफ्रीजरेटरों आदि में भी किया जाता है। छतों पर लकड़ी के सहारे इसकी परत लगाकर ताप के प्रभाव को कम करने में और पानी में डूबते मनुष्य को बचाने के लिए भी कॉर्क का उपयोग किया जाता है। इस तरह ओक वृक्ष की छाल कॉर्क के रूप में बहुत उपयोगी है।
पानी पर कॉर्क के तैरते रहने का कारण इसका पानी से हलका होना है। कॉर्क की भीतरी संरचना देखें तो पता चलता है कि इसकी कोशिकाएं एक-दूसरे से अलग-अलग होती हैं और उनके बीच में हवा भरी रहती है। परिणामस्वरूप कॉर्क हलकी हो जाती है। पानी की तुलना में यह पानी के 1/5 वें भाग के बराबर होती है। यही कारण है कि जब कॉर्क को पानी में डाला जाता है तो इसका पानी पर तैरते समय केवल 1/5 भाग ही पानी में डूबा होता है और शेष 4/5 भाग पानी के ऊपर रहता है। अतः कॉर्क पानी से हलकी होने के कारण पानी पर तैरती रहती है।
कैटफिश नर अपने मुंह में अंडे क्यों रखता है ?
कैटफिश नाम की समुद्री मछली एक ऐसा प्राणी है जो अपने अंडे मुंह में रखती है। यह अमेरिका के पूर्वी किनारे पर अटलांटिक सागर के पानी में पाई जाती है। परिवार की देखरेख मादा मछली नहीं, बल्कि नर करता है। जैसे ही मादा – मछली अंडे देती है और निषेचन कर चुकी होती है, तो नर उन्हें मुंह में रखकर सेता है। इन अंडों की संख्या इतनी होती गिनती में है कि मछली का मुंह भर जाता है ये लगभग पचास होते हैं और आकार में संगमरमर के छोटे-छोटे टुकड़ों के बराबर । मुंह भरा होने के कारण नर एक महीने तक कुछ नहीं खा पाता। खाना तभी संभव हो पाता है जबकि अंडों से बच्चे निकल आते हैं। इतने दिन तक शरीर की क्रियाएं पहले से एकत्रित की गई खाद्य सामग्री से चलती हैं। नर की माता वाली यह भूमिका यहीं खत्म नहीं हो जाती। अगले दो हफ्ते तक बच्चे किसी खतरे के डर से मुंह में ही तैरते रहते हैं। सात किस्म की मछलियां ऐसी होती हैं जिन्हें कैटफिश कहा जाता है। इसके मुंह के चारों तरफ जोड़ स्पर्शक होते हैं, जो बहुत ही संवेदनशील होते हैं। यह काफी हद तक बिल्ली की मूंछों से मिलते-जुलते इसीलिए इस मछली का नाम कैटफिश हैं, पड़ा।
माइक्रोवेव में खाना जल्दी क्यों पकता है?
आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपयोग से हमारा जीवन अधिक आरामदायक हो गया है। आधुनिक उपकरणों में माइक्रोवेव का अपना स्थान है। क्या आप जानते हैं कि माइक्रोवेव में खाना जल्दी पकता या जल्दी गर्म क्यों होता है? इसमें न तो आग की लपटें निकलती हैं और न गैस या इलेक्ट्रिक सिलेंडर की तरह सुर्ख गर्म तवे होते हैं। इसके काम करने का तरीका सरल है। एक धातु के बॉक्स में खाने का सामान रखकर उसका ढक्कन बंद कर एक स्विच दबाया जाता है। स्विच दबते ही ऊर्जा की अदृश्य किरणें भोज्य सामग्री पर तेजी से गिरना शुरू हो जाती हैं। इसमें जिन किरणों के द्वारा भोजन पकाया जाता है वे माइक्रोवेव्स इलेक्ट्रोमेग्नेटिक तरंगों के वर्णक्रम का एक भाग होती हैं जिनमें प्रकाश तरंगें और एक्स किरणें शामिल हैं। इनके गुणों में से एक गुण परमाणुओं को विशेष रूप से द्रवों के परमाणुओं को उत्तेजित करना, उनमें स्पंदन पैदा करना तथा गर्म करना है। यही कारण है कि भोजन जल्दी पक जाता है।
हीरा कोयले का भाई माना जाता है, फिर कीमती क्यों होता है ?
हां! हीरा और कोयला कार्बन के ही दो रूप हैं, अतः उन्हें भाई-भाई भी कह दिया जाता है। लेकिन कोयले की तुलना में हीरे में पाए जाने वाले गुणों के महत्त्व के कारण हीरे अधिक मूल्यवान् माने जाते हैं। हीरे की खोज सबसे पहले भारत में ही हुई मानी जाती है। भारत का कोहिनूर हीरा विश्व-प्रसिद्ध है। प्राकृतिक रूप में पाए गए हीरे देखने में अच्छे नहीं लगते। इन्हें साफ करके खूबसूरत रूप और आकारों में तराशा जाता है। पॉलिश करने के बाद इनकी छवि देखने लायक होती है। हीरे के कीमती होने के कारणों में कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं  हीरा आसानी से मिलता नहीं है। एक तरह से यह दुर्लभ वस्तुओं की गिनती में आता है, इसलिए इसकी कीमत भी अधिक होती है। हीरा रोशनी में अधिक चमकीला और चित्ताकर्षक दिखता है। इसी चमक के कारण लोग इसके लिए लालायित और अधिक-से-अधिक मूल्य देने को तैयार रहते हैं। इतना ही नहीं, इन गुणों के अलावा हीरा संसार के सभी पदार्थों से कठोर होता है। तभी तो सैकड़ों वर्षों तक घिसने के बजाय वैसे का वैसा ही बना रहता है। और हां, इसकी चमक भी खराब नहीं होती और रूप तो ऐसा मोहक बना रहता है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह अपनी छवि के प्रभाव की अमिट छाप बनाए रहता है। इन सभी गुणों के सामूहिक एवं एकल दोनों तरह के महत्त्व के कारण हीरा आज नहीं प्राचीन काल से ही कीमती रहा है।
लार क्यों आती है?
हमारे मुंह में लार पैदा करने वाली ग्रंथियों के तीन जोड़े हैं, जो लगातार लार पैदा करते रहते हैं। हमारी लार में 98 प्रतिशत पानी और कुछ एंजाइम होते हैं। क्या आप जानते हैं कि हमारे मुंह में लार क्यों आती है? दरअसल, लार का काम मुंह की झिल्ली को गीला रखना है, ताकि हमें बोलने में असुविधा न हो। लार में उपस्थित एमाइलेज नाम का एंजाइम भोजन में उपस्थित कार्बोहाइड्रेटों को चीनी में बदल देता है। लार का हमारे भोजन के साथ घनिष्ठ संबंध है। लार की सहायता से हम भोजन चबाकर आसानी से निगल लेते हैं। लार ही भोज्य पदार्थों को घोलने का काम करती है, जिससे स्वाद कलिकाएं उत्तेजित होकर हमें भोजन का स्वाद बताती हैं। लार में लाइसोजाइम नामक एक दूसरा एंजाइम भी होता है, जो बैक्टीरिया विनाशक होता है। इस एंजाइम के कारण मुंह में प्रवेश करने वाले जीवाणु मर जाते हैं फलतः रोगों की संभावना कम हो जाती है। कुछ लोगों को सोते समय लार आती है, ऐसा उन व्यक्तियों के साथ होता है जिनका पेट अक्सर खराब रहता है ।
आंखें बंद करके हम सीधे क्यों नहीं चल पाते?
सीधा चलने के लिए शरीर को आगे बढ़ने हेतु संतुलित रहना आवश्यक होता है। जब हम खुली आंखों के साथ चलते हैं तो यह संतुलन बनाए रखने में आसानी होती है और हम सीधे चल पाते हैं। लेकिन आंखें बंद करके चलने पर यह संतुलन बनाना आसान नहीं होता। इसका कारण यह है कि हमारा शरीर बाहर से देखने में दाई तथा बाई ओर समान लगता है, लेकिन इसके भीतर रखे अंग दोनों ओर समान नहीं होते हैं। हृदय बाई ओर स्थित है तो यकृत दाईं ओर, हड्डियों का ढांचा भी दोनों ओर समान नहीं होता है। यदि बारीकी से देखें तो हमारे दाई ओर के हाथ-पैर तथा अन्य हिस्से बाई ओर के हाथ-पैर और अन्य हिस्सों की तुलना में चाहे थोड़े ही सही, कुछ अधिक भारी होते हैं। इसलिए जब आंख बंद करके चलते हैं तो भारी हिस्से की ओर लगनेवाला बल हम पर उसी दिशा में मुड़ने के लिए दबाव डालता रहता है। इसका परिणाम यह होता है कि थोड़ी देर बाद ही हम दबाववाली दिशा में ही मुड़ते हुए इस तरह चलने लगते हैं, जैसे किसी गोल घेरे में चल रहे हों और चलते-चलते उसी जगह वापस आ जाते हैं जहां से चले थे। इसलिए आंखें बंद करके चलने पर हम सीधे-सीधे नहीं चल पाते हैं।
भावनाएं हमें क्यों प्रभावित करती हैं?
मस्तिष्क के कुछ विचारों अथवा किसी उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया स्वरूप बनी उत्तेजक स्थिति (भावना) है। ये भावनाएं सकारात्मक होने के साथ नकारात्मक भी हो सकती हैं। सकारात्मक भावनाएं वे होती हैं जो किसी व्यक्ति को प्रसन्न बनाती हैं। नकारात्मक भावनाओं से मनुष्य अप्रसन्न रहता है। सकारात्मक भावनाओं के कुछ उदाहरण हैं प्रेम, प्रसन्नता, आहह्लाद और गर्व । क्रोध, भय, दुख, घृणा, निराशा तथा पीड़ा नकारात्मक भावनाओं की मिसालें हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक मनुष्य की भावनाएं उसके स्वास्थ्य का निर्धारण करती हैं। भावनाएं शरीर में कई रासायनिक परिवर्तनों के कारण बनती हैं, जो शरीर के प्रतिरक्षात्मक संस्थान का एक अंग हैं। अगर कोई व्यक्ति खतरनाक परिस्थिति में फंस जाए तो उसकी अधिवृक्क ग्रंथि उसके रक्त प्रवाह में एड्रेनलिन नामक हारमोन भेजती है। जैसे-जैसे रक्त आगे बढ़ता है, एड्रेनलिन दिल को और तेजी से धड़काती है, जिससे व्यक्ति की मांसपेशियों और मस्तिष्क को और भी ज्यादा रक्त मिलता है। व्यक्ति के रक्त में अधिक शर्करा का प्रवेश होता है, जो उसके शरीर को कठिन परिस्थिति से निबटने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा देता है।
आतिशबाजी रंग-बिरंगी क्यों दिखाई पड़ती है ?
खुशी  के अवसरों पर प्रायः आतिशबाजी चलाई जाती है। आजकल इस कला में कारीगरों ने विशेष दक्षता प्राप्त कर ली है, तभी तो रंग-बिरंगी आतिशबाजी का नजारा बड़ा रोचक एवं सुहाना लगता है। इसके रंग-बिरंगे होने का कारण वे पदार्थ होते हैं जिनसे यह बनाई जाती है।
प्रायः आतिशबाजी के बनाने में पोटेशियम नाइट्रेट, गंधक तथा कोयले आदि के मिश्रण का उपयोग किया जाता है। इसे रंग-बिरंगी बनाने के लिए मिश्रण में कुछ अन्य धातुएं भी मिलाई जाती हैं। इनमें स्ट्रॉन्शियम तथा बेरियम के लवण प्रमुख हैं। इन लवणों को पोटेशियम क्लोरेट के साथ मिलाकर रंगीन चमक-दमक के प्रभाव प्राप्त किए जाते हैं। सामान्यतः आतिशबाजी में सफेद, हरा, नीला, पीला और लाल आदि रंगों का नजारा देखने को मिलता है। इन रंगों में से सफेद रंग तो सामान्य आतिशबाजी में होता ही है। हरा रंग बेरियम के लवणों से, आसमानी रंग स्ट्रॉन्शियम सलेट से, पीला रंग स्ट्रॉन्शियम कार्बोनेट से तथा लाल रंग स्ट्रॉन्शियम नाइट्रेट से पैदा होता है। इन धातुओं के मिश्रण आतिशबाजी में भरे जाते हैं और जब व जलते हैं तो बहुत सुंदर रंग-बिरंगी आतिशबाजी देखने को मिलती है।
सौर प्रज्वाल या सोलर फ्लेअर क्यों बनते हैं?
सूर्य के क्रोमोस्फीयर में सूर्य के धब्बों के किसी समूह के पास एक छोटे से भाग के अचानक बहुत तेजी के साथ प्रभासित होने को सौर प्रज्वाल कहते हैं। क्या आप जानते हैं कि सोलर फ्लेअर क्यों बनते हैं? सोलर फ्लेयर केवल सूर्य के धब्बों की सक्रियता के कारण बनते हैं। इनकी ऊर्जा का स्रोत सूर्य के धब्बों के पास का चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसका घनत्व कम होने के कारण ये पारदर्शी होते हैं, साथ ही इनका तापमान भी इतना अधिक होता है कि पराबैंगनी क्षेत्र में इनकी तीव्रता लगभग सूर्य के बराबर होती है।
सोलर फ्लेअर से पराबैगनी, एक्सकिरणें, ऊर्जा-कण और कॉस्मिक किरणें निकलती हैं। इन कणों का वेग प्रकाश के वेग से बहुत कम होता है, इसलिए इन्हें धरती तक आने में प्रकाश से एक दो दिन अधिक लगते हैं। सोलर फ्लेअर से निकलने वाले विकिरणों का धरती के चुंबकीय क्षेत्र आयनोस्फीयर पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। अतः ये रेडियो प्रसारण में बाधा डालते हैं। इन्हीं से धुव्रीय ज्योति भी पैदा होती है। चुंबकीय क्षेत्र प्रज्वाल ऊर्जा को संघनित करने के लिए लगभग बंदूक की गोली की तरह काम करता है ।
प्रवासी पक्षी अपने सुदूर प्रवासों का रास्ता कैसे खोजते हैं?
पक्षी अपनी रूचि के मौसम में रहना पसंद करते हैं। मौसम के प्रतिकूल होने पर वे अनुकूल मौसम के स्थानों की खोज में निकल पड़ते हैं। इस खोज में कभी-कभी तो वे कई-कई देशों के ऊपर से यात्रा करते हुए हजारों मील दूर तक चले जाते हैं। जब उनके मूल निवास स्थान पर मौसम बदलकर अनुकूल हो जाता है तो वे पुनः लौटकर वापस आ जाते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे प्रवासी पक्षी इतनी लंबी सुदूर यात्राओं का रास्ता कैसे खोज लेते हैं? सच्चाई तो यह है कि अभी तक प्रवासी पक्षियों द्वारा अपना रास्ता खोज लेने के कारणों के बारे में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है। वैज्ञानिकों ने कुछ अनुमान ही लगाए हैं। ये सही भी हो सकते हैं या केवल कल्पना मात्र । एक अनुमान तो यह है कि प्रवासी पक्षियों में एक जन्मजात शक्ति होती है, जो उन्हें सही रास्तों से अपने अनुकूल ठिकानों पर पहुंचाने में मदद करती है। कुछ वैज्ञानिकों का विचार है कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और पक्षियों के यात्रा मार्ग की खोज में परस्पर संबंध होता है, जिससे पक्षी चुंबकीय क्षेत्र के अनुसार विशेष संवेदना अनुभव करते हैं और इसी के आधार पर वे पृथ्वी के हिस्सों को मालूम करते हुए अपनी यात्रा करते रहते हैं। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि कुछ पक्षियों में एक ग्रंथि होती है जिसके माध्यम से वे मौसम बदलने का पता कर लेते हैं और नए प्रवास की ओर चल पड़ते हैं। मत यह भी है कि पक्षी उड़ान की एक वैज्ञानिक दिशा का निर्धारण सूर्य की मदद से करते हैं। पक्षियों में सूर्य-कंपास गुण होता है जो उन्हें सूर्य की सही दूरी और मौसम परिवर्तन का अनुमान लगाने में सहायक होता है। इसी की मदद से वे अपने सही मार्ग एवं दिशा की ओर उड़ते रहते हैं।
कुछ वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि पक्षी ध्रुवित प्रकाश एवं पराबैंगनी प्रकाश देख सकते हैं, जबकि हमारी आंखें नहीं देख पाती हैं। अतः रात में पक्षी अपनी यात्रा का निर्धारण चंद्रमा और तारों की मदद से करते हैं। लेकिन ये बातें अभी कंवल अनुमान मात्र हैं, सही जानकारी को ज्ञात करने के अनुसंधानपरक प्रयास किए जा रहे हैं।
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