ऐसा क्यों और कैसे होता है -25

ऐसा क्यों और कैसे होता है -25

कुछ अंग ज्यादा संवेदनशील क्यों होते हैं?

हमारा पूरा शरीर ही संवेदनशील होता है। यदि हमें कोई छू ले या कोई गर्म या ठंडी चीज शरीर से छू जाए, तो हमें इसका पता चल जाता है। मगर शरीर के सारे अंगों में संवेदनशीलता एक जैसी नहीं होती। कुछ अंग ज्यादा संवेदनशील होते हैं, जबकि बाकी अंग कुछ कम संवेदनशील होते हैं। आइए, देखें ऐसा क्यों होता है? हमारे शरीर में नर्व फाइबर होते हैं, जिनका आखिरी सिरा हमारी त्वचा के अंदर होता है। नर्व फाइबर के इस आखिरी सिरे पर कुछ अतिसूक्ष्म रिसेप्टर लगे होते हैं। शरीर से जैसे ही कोई चीज छू जाती है, ये रिसेप्टर इसकी सूचना मस्तिष्क को देते हैं। लेकिन ये रिसेप्टर कई तरह के होते हैं और हर रिसेप्टर एक अलग तरह के अहसास को महसूस करता है।
उदाहरण के तौर पर यदि एक रिसेप्टर स्पर्श को अनुभव करता है, तो दूसरा ताप को और तीसरा दर्द को महसूस करेगा। शरीर किसी खास अंग की संवदेनशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें रिसेप्टरों की संख्या कितनी है? वे अंग ज्यादा संवेदनशील होते हैं, जिनमें रिसेप्टर अधिक होते हैं। यही वजह है कि हमारी हथेलियां, उंगलियों के पोर तथा होंठ ज्यादा संवेदनशील होते हैं, क्योंकि इनमें रिसेप्टरों की संख्या अन्य अंगों से अधिक होती हैं।
अस्थमा क्यों होता है?
सर्दियों में अस्थमा के मरीजों को काफी परेशानी होती है। अस्थमा को कई लोग एक बीमारी मानते हैं, लेकिन वास्तव में यह बीमारी नहीं है। अस्थमा एक स्थिति या लक्षण है, जो किसी दूसरी वजह से पैदा होता है। जब किसी व्यक्ति को अस्थमा होता है, तो उसे सांस लेने में तकलीफ होती है और उसका दम घुटने लगता है। सामान्यतः अस्थमा तब होता है, जब फेफड़ों तक सांस के पहुंचने और बाहर निकलने में कोई अवरोध पैदा हो जाता है। इस अवरोध की वजह कोई एलर्जी, कोई बीमारी, भावनात्मक कारण या वातावरण की परिस्थितियां भी हो सकती हैं। यदि 30 वर्ष से कम उम्र के किसी व्यक्ति को अस्थमा होता है, तो यह किसी एलर्जी का ही परिणाम होता है। ऐसा व्यक्ति धूल, धूप, धुआं, पराग, पशु, दवा या कई तरह के भोजन के प्रति अधिक संवेदनशील होता है। छोटे बच्चों को अस्थमा मुख्यतः फूड एलर्जी के कारण ही होता है। यह एलर्जी अंडे, दूध, गेंहू से बने पदार्थ या डेयरी प्रोडक्ट्स के कारण भी हो सकती है। जिन लोगों को अस्थमा होता है उन्हें खास तरह का भोजन दिया जाता है, ताकि वे उस भोजन को ग्रहण न करें, जिससे उन्हें एलर्जी हो सकती है। इसके अलावा उन्हें विशेष माहौल में भी रखा जाता है, ताकि वे वातावरण की उन चीजों के संपर्क में न आएं, जिनसे उन्हें एलर्जी हो सकती है।
महिलाओं के दाढ़ी क्यों नहीं आती है?
सामान्यतः प्राणियों के शरीर पर बाल पाए जाते हैं। बालों का हमारे लिए सौंदर्य के अलावा भी महत्त्व होता है। यह स्पर्श अनुभव देने के साथ हमें धूप, गरमी तथा झुलसन आदि से बचाए रखने का कार्य भी करते हैं। बचपन में यह बहुत छोटे-छोटे और मुलायम होते हैं और रोएं कहलाते हैं। उम्र के साथ इनमें कड़ापन आने लगता है और ये सख्त बालों का रूप धारण कर लेते हैं।
जब लड़का और लड़की वयस्क होने लगते हैं तो उनके शरीर में परिवर्तन होने लगता है। यह परिवर्तन यौन-ग्रंथियों द्वारा पैदा होनेवाले हार्मोन्स के द्वारा होता है। लड़कों में एंड्रोजन नामक हार्मोन बनने लगता है, जिसके कारण लड़कों की छाती और दाढ़ी पर बालों की बढ़वार होने लगती है और आवाज में भारीपन आ जाता है। जो एक तरह से पुरुषत्व की निशानी है।
लेकिन जब लड़कियां वयस्क होने लगती हैं तो उनकी यौन-ग्रंथियों से एस्ट्रोजन नामक हार्मोन बनना प्रारंभ हो जाता है। एस्ट्रोजन के कारण ही लड़कियों में वक्षों का विकास होना और मासिक धर्म आना शुरू होता है। इस हार्मोन से लड़कियों की बगलों और गुप्तांगों पर तो बाल विकसित होने लगते हैं, लेकिन दाढ़ी के बाल उगने के बजाय लड़कियों के वयस्क होने पर उनका शरीर मुलायम तथा चिकना होने लगता है। जो उन्हें सुंदर महिला की छवि प्रदान करता है। इस तरह पुरुषों में एंड्रोजन हार्मोन के कारण दाढ़ी आती है तो महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन के कारण दाढ़ी नहीं आती है।
विभिन्न देशों के समय में अंतर क्यों होता है ?
सभी देशों में किसी एक क्षण में समय अलग-अलग होता है। यह दूर देशों के लिए ही नहीं है, बल्कि पड़ोसी देशों पर भी लागू होता है। यही कारण है कि भारत और पाकिस्तान में सुबह और रात एक समय होने पर भी दोनों देशों में आधे घंटे का अंतर है। आखिर यह अंतर क्यों? समय की दो प्रमुख इकाइयां हैं दिन और साल। दिन व रात पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के कारण होते हैं और साल सूर्य की परिक्रमा में लगने वाला समय है। एक दिन का समय यानी एक दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय के बीच की 24 घंटे की अवधि होती है। चूंकि पृथ्वी स्थिर नहीं है, वह अपनी धुरी पर घूमने के साथ ही सूर्य की भी परिक्रमा करती है, इसलिए सभी देशों के लिए एक जैसा समय रखना संभव नहीं होता। यही कारण है कि समय का सही ज्ञान रखने के लिए पृथ्वी को 24 समय क्षेत्रों या बेल्ट में बांटा गया। प्रत्येक 15 अंश देशांश को एक बेल्ट माना गया और इन्हें मेरीडियन नाम दिया गया। इस मेरीडियन का शून्य ग्रीनविच को माना गया और इससे पूर्व की तरफ बढ़ते प्रत्येक क्षेत्र में एक घंटा जोड़कर समय निर्धारित किया गया। अब इसी आधार पर दुनिया भर का समय जाना जाता है।
जानवर हमारी तरह बातचीत क्यों नहीं कर पाते?
हम अपनी भावनाओं को अनेक भाषाओं द्वारा एक-दूसरे से व्यक्त कर लेते हैं, सुखदुःख, प्रेम-क्रोध तथा भय आदि नाना प्रकार की अभिव्यक्तियों को चेहरे के भावों के द्वारा अथवा रोने, हंसने के साथ-साथ बातचीत के द्वारा भी आसानी से प्रकट कर लेते हैं। भाषा चाहे कोई भी हो, बातचीत के लिए उस भाषा के शब्दों की आवश्यकता होती है। इन शब्दों के विकास में हमारे कंठ और मस्तिष्क का गहरा संबंध है। हर तरह की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए मस्तिष्क नए-नए शब्दों की रचना करने में मदद करता रहता है क्योंकि मनुष्य का मस्तिष्क सबसे अधिक विकसित माना जाता है। यह मनुष्य को बोलचाल के लिए आवश्यक शब्दों के भंडार को बढ़ाने में सहायक है। ठीक इसके विपरीत पशुओं में बोलने के लिए कंठ तो होता है, जिससे वे नाना प्रकार की आवाजों के माध्यम से अपने सुख-दुःख आदि अभिव्यक्त करते हैं, लेकिन पशुओं का मस्तिष्क मनुष्य की तुलना में बहुत कम विकसित होता है। इसलिए वे शब्दों की रचना करने में असमर्थ होते हैं। इसीलिए जानवर चाहते हुए भी शब्दों के अभाव में आवाज तो कर लेते हैं लेकिन हमारी तरह बातचीत नहीं कर पाते हैं।
चंद्रमा हमें साथ चलता क्यों दिखाई पड़ता है ?
रात के समय ट्रेन की खुली खिड़की से बाहर देखना बहुत अच्छा लगता है। नदियां, लेकिन पहाड़, पेड़ और शहर पीछे छूटते जाते हैं, चंद्रमा साथ ही चलता रहता है। आइए, देखें कि चंद्रमा क्यों साथ चलता है? जब हम किसी भी चीज को देखते हैं, तो वह हमारी आंखों पर एक कोण बनाती है। यदि उस वस्तु की स्थिति बदल दी जाए, तो उसके कारण आंखों पर बनने वाला कोण भी बदल जाता है। जब हम ट्रेन या किसी अन्य वाहन से जा रहे हों, तो नदियां, मकान, पहाड़ और झाड़-पेड़ पीछे जाते हुए नजर आते हैं, क्योंकि ट्रेन या उस वाहन के आगे बढ़ने से दृश्य द्वारा आंखों पर बनाया जाने वाला कोण बदल जाता है। लेकिन जो चीजें पीछे जाती हुई नजर आती हैं, उनसे हमारी दूरी अधिक नहीं होती, इसलिए स्थिति में जरा से बदलाव से भी कोण बदल जाता है। जबकि चंद्रमा पृथ्वी से 3 लाख 84 हजार किमी की दूरी पर है। इतनी अधिक दूरी होने के कारण जब हम आगे बढ़ते भी हैं, तो चंद्रमा के कारण आंखों पर बनने वाले कोण में कोई बदलाव नहीं आता। यही वजह है चंद्रमा हमें साथ चलता हुआ दिखाई देता है।
साबुन चिकनाई को कैसे साफ करता है ?
प्राय: कपड़े धूल, मिट्टी, कीचड़ या चिकनाई आदि लगने से गंदे हो जाते हैं। इन्हें फिर से उपयोग के लायक बनाने के लिए गंदगी को साफ करना होता है। कुछ धूल-मिट्टी तो कपड़े झाड़ने से झड़ जाती है, जबकि कुछ गंदगी पानी में घुलकर धोने से निकल जाती है। लेकिन घी, तेल, चिकनाई तथा ग्रीस आदि चिकने पदार्थों से गंदे हुए चिकने कपड़ों की यह गंदगी कपड़ों को झाड़ने या पानी से धोने से साफ नहीं होती है। क्योंकि चिकनाई पानी में घुलती नहीं है और झाड़ने से झड़ती नहीं है।
इसलिए इसे साबुन से साफ़ करना पड़ता है। जब कपड़ों को पानी में भिगोकर साबुन लगाकर धोते हैं तो धूल-मिट्टी के साथ चिकनाई भी छोटे-छोटे कणों में टूटकर बिखर जाती है। अब साबुन या डिटर्जेंट के घोल की पतली फिल्म इन कणों को घेर लेती है और इस तरह साबुन और चिकनाई का इमलशन- सा बन जाता है। अब इन्हें साफ पानी में खंगालने से गंदगी का इमलशन कपड़ों से हटकर पानी के साथ निकल जाता है और चिकने कपड़े साफ हो जाते हैं।
अतींद्रिय ज्ञान क्या होता है?
अतींद्रिय ज्ञान को ईएसपी या एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन भी कहा जाता है। इसका मतलब है वह ज्ञान जो इंद्रियों से परे हो । सामान्यतः हम अपने परिवेश को जानने के लिए आंख, कान, जीभ, नाक व त्वचा जैसी इंद्रियों का प्रयोग करते हैं। इन इंद्रियों के द्वारा हम देखने, सुनने, स्वाद, गंध और स्पर्श का अनुभव करते हैं। अतींद्रिय ज्ञान का मतलब ऐसे ज्ञान से है, जिसे प्राप्त करने के लिए इन इंद्रियों का प्रयोग न किया गया हो। अतींद्रिय ज्ञान के क्षेत्र में 4 मूलभूत प्रयोग किए जाते हैं। ये हैं – टेलीपैथी, क्लेयरवायन्स, प्रोकाग्नीशन तथा साइकोकिनेसिस । बिना किसी प्रत्यक्ष माध्यम के एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति तक अपने विचार पहुंचाने की क्रिया को टेलीपैथी कहा जाता है। टेलीपैथी की मदद के बिना किसी घटना या व्यक्ति के विषय में मानसिक रूप से जान लेने की स्थिति को क्लेयरवायन्स कहा जाता है। किसी घटना के घटित होने से पहले टेलीपैथी अथवा क्लेयरवायन्स द्वारा उसकी जानकारी प्राप्त कर लेने की क्रिया को प्रोकाग्नीशन कहा जाता है। भौतिक वस्तुओं पर मानसिक नियंत्रण करने की क्रिया को साइकोकिनेसिस कहा जाता है। इन क्रियाओं में कुछ उपकरणों का प्रयोग भी किया जाता है। अतींद्रिय ज्ञान के बारे में दुनिया में कई अनुसंधान चल रहे हैं, लेकिन अभी तक वैज्ञानिक इस विषय में कोई ठोस तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं।
पैराशूट धीरे-धीरे नीचे क्यों उतरता है?
पैराशूट का आविष्कार लगभग उसी समय हुआ था, जब गुब्बारे का आविष्कार हुआ था। पहली बार पैराशूट का प्रदर्शन 1783 में एक फ्रांसीसी नागरिक लुई सेबेस्तीन लेनोरमंड ने किया था। तब से लेकर अब तक पैराशूट के स्वरूप और इसके डिजाइन में काफी परिवर्तन आ चुका है। अब अलग-अलग जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग प्रकार के पैराशूट बनाए जाने लगे हैं। पैराशूट का प्रमुख उपयोग ऊंचाई वाले स्थानों या हवाई जहाज से व्यक्तियों तथा सामान को सुरक्षित जमीन पर उतारने के लिए किया जाता है। आइए, देखें कि पैराशूट कैसे काम करता है। गिरती हुई चीज पर दो बल एक साथ काम करते हैं, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल और दूसरा है हवा का प्रतिरोध बल।
गुरुत्वाकर्षण बल उस वस्तु को तेजी से नीचे की तरफ खींचता है और हवा का प्रतिरोध उसे गिरने से रोकता है। गिरने वाली चीज का वेग बढ़ने से हवा का प्रतिरोध भी बढ़ता जाता है। इससे गिरती हुई वस्तु उस वेग तक पहुंच जाती है, जिसे स्थिर अंतिम वेग कहा जाता है। वस्तु स्थिर हो जाती है और गिरना रुक जाता है। पैराशूट की छतरी काफी बड़ी होती है, इसलिए हवा का प्रतिरोध बढ़ जाता है और गिरने वाली वस्तु काफी धीरे-धीरे नीचे आती है। वस्तु
हमारे शरीर में नाभि क्यों होती है ?
बच्चा पैदा होने से पहले मां के पेट में गर्भाशय में पलता है और वहां उसे अपनी वृद्धि के लिए भोजन, ऑक्सीजन आदि की भी जरूरत होती है। गर्भावस्था में बच्चा इन आवश्यकताओं की पूर्ति केवल अपनी मां से ही कर सकता है। मां के पेट में बच्चा एक थैलीनुमा प्लसेंटा या जेर में बंद होता है और इससे एक नली द्वारा जुड़ा रहता है। इसी नली द्वारा बच्चा अपनी मां से पचा हुआ भोजन और ऑक्सीजन आदि लेता है। बच्चे के विकसित शरीर में बननेवाले व्यर्थ पदार्थ आदि भी इसी नली के द्वारा मां के शरीर में भेजे जाते रहते हैं। इस तरह मां के पेट में बच्चा पूरी तरह मां के ही भोजन, हवा, पानी आदि पर आश्रित रहता है। इनकी पूर्ति के लिए यह नली बच्चे के पेट से जुड़ी होती है। बच्चे के पैदा हो जाने के बाद नाल या नली की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि अब बच्चा पूरी तरह विकसित हो चुका होता है और अपना भोजन स्वयं ले और पचा सकता है। इसलिए इस नाल को काटकर बच्चे को मां के साथ प्लसेंटा से जुड़े रहने के बजाय अलग कर देते हैं। धीरे-धीरे कटी नाल बच्चे के पेट से जुड़े रहने के बजाय छूटकर अलग हो जाती है और अपने जुड़े रहने का स्थान नाभि के रूप में छोड़ जाती है। इस तरह नाभि भोजन आदि के लिए नाल द्वारा मां के पेट में होने पर जुड़े रहने के स्मृति चिह्न की तरह बनी रह जाती है।
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