ऐसा क्यों और कैसे होता है -22
ऐसा क्यों और कैसे होता है -22
स्वास्थ्य के लिए धूप क्यों लाभदायक है?
यह तो हम सभी जानते हैं कि धूप स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, लेकिन यह नहीं जानते कि यह किस मायने में फायदेमंद है। दरअसल, धूप हमारी त्वचा पर जमी विशेष प्रकार की फफूंद और बैक्टीरियाओं को नष्ट करने के साथ-साथ श्वेत रक्तकणों (डब्ल्यूबीसी) की सक्रियता को भी बढ़ाती है, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। श्वेत रक्तकण शरीर में रोगाणुओं का मुकाबला करते हैं। इस तरह देखा जाए तो धूप हमारे लिए एक औषधि का काम करती है। जब धूप त्वचा पर पड़ती है तो कुछ तत्व रक्त में प्रवेश करके उसे नई शक्ति देते हैं। मांसपेशियां अधिक तन जाती हैं और बेहतर काम करने के योग्य हो जाती हैं। इससे हमारे स्नायु तंत्र को धूप से अतिरिक्त चेतना मिलती है, हम अधिक सजग हो जाते हैं और हमारी क्रियाशीलता बढ़ जाती है। त्वचा में एर्गेस्टरोल नाम का एक पदार्थ होता है, जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से विटामिन ‘डी’ में बदल जाता है। यह विटामिन हड्डियों के लिए लाभकारी है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि क्योंकि धूप में धूप सिर्फ फायदेमंद ही है, ज्यादा देर तक रहना या तेज धूप में बाहर निकलना नुकसानदायक भी होता है।
गर्म वातावरण से हटकर जब हम पंखे की हवा खाते हैं तो ठंडक क्यों महसूस होती है?
जब हम धूप या गरमी में होते हैं तो हमारा शरीर भी तपने लगता है और वह गरम हो जाता है। इस तरह शरीर के बाहरी ताप के बढ़ने से हमें पसीना आने लगता है, जो शरीर के ताप को कम करने में सहायक होता है । यह पसीना हमारी त्वचा पर लगा रह जाता है। जब हम गरमी या धूप से चलकर पंखे की हवा में आते हैं तो हमारे शरीर पर लगा पसीना, जो एक प्रकार से पानी होता है, वाष्प बनकर उड़ना प्रारंभ कर देता है। इसे वाष्प बनकर उड़ने के लिए उष्मा की आवश्यकता होती है।
वाष्पन की इस क्रिया हेतु शरीर की उष्मा उपयोग में आती है। इस तरह शरीर की उष्मा कम होने लगती है और हमें पंखे की हवा में ठंडक महसूस होने लगती है।
बच्चे माता या पिता जैसे क्यों दिखते हैं ?
अकसर बच्चों का रूप-रंग, उनकी कद-काठी माता या पिता में से किसी एक की तरह होती है। आइए देखें ऐसा क्यों होता है? मनुष्य के शारीरिक गुण-सूत्र एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में क्रोमोजोम्स (गुण-सूत्र) के द्वारा हस्तांतरित होते हैं। बच्चे के जन्म के लिए 46 क्रोमोजोम्स ( गुणसूत्र) जरूरी होते हैं, जिनमें से 23 पिता के द्वारा और 23 माता के द्वारा प्राप्त होते हैं। इसका मतलब यह है कि जन्म लेने वाले बच्चे के पास हर जीन के दो संस्करण होते हैं, एक पिता से प्रदत्त और एक माता का दिया हुआ । जीन क्रोमोजोम्स का छोटा सेक्शन होती है। हर जीन में बच्चे में विशेष गुण के विकास के लिए जरूरी सूचनाएं दर्ज होती हैं। मसलन, कोई जीन आंखों के रंग के लिए जिम्मेदार है, तो कोई बालों के रंग के लिए। बच्चे में उसी जीन के गुण आते हैं, जो प्रभावशाली होता है। उदाहरण के लिए पिता के बालों का रंग काला है और माता के बाल भूरे हैं। अगर बालों के रंग का निर्धारण करने वाले जीनों में माता के जीन का प्रभुत्व है, तो बच्चे के बालों का रंग भी माता के बालों के रंग की तरह ही होगा। इसके विपरीत यदि पिता की जीन अधिक प्रभावशाली है, तो बच्चे के बालों का रंग पिता के बालों की तरह होगा।
एल्कोहल और पेट्रोल दोनों ही हाइड्रोकार्बन के मिश्रण हैं, यदि इनमें आग लग जाए तो पानी से एल्कोहल की आग तो बुझ जाती है लेकिन पेट्रोल क्यों जलता रहता है?
यह बात बिल्कुल सच है कि एल्कोहल और पेट्रोल दोनों हाइड्रोकार्बन के मिश्रण होते हैं। लेकिन इन दोनों के घनत्व में पर्याप्त अंतर होता है। हम जिस पानी से इनमें लगी आग को बुझाना चाहते हैं उस पानी के घनत्व से पेट्रोल का घनत्व बहुत कम होता है। इसका परिणाम यह होता है कि जब जलते हुए पेट्रोल को पानी से बुझाते हैं तो पेट्रोल पानी के ऊपर आकर एक तह – सी बना लेता है और जलता रहता है। यदि ध्यान से देखें तो पानी और पेट्रोल की तहों को अलग-अलग देखा और पहचाना जा सकता है।
एल्कोहल पानी में घुलनशील होता है, अतः जब यह पानी के संपर्क में आता है तो पानी में घुलने से एल्कोहल की सांद्रता कम हो जाती है और सांद्रता कम होने से उसके जलने की शक्ति भी कम हो जाती है। पानी की मात्रा बढ़ने पर यह जलने योग्य नहीं रह पाता है।
इसीलिए पेट्रोल और एल्कोहल में आग लगने पर पानी से बुझाने पर एल्कोहल की आग तो बुझ जाती है परन्तु पेट्रोल जलता रहता है ।
निमोनिया क्यों होता है ?
सर्दियों के मौसम में अक्सर लोगों को सर्दी-जुकाम हो जाता है, लेकिन इस मामले में लापरवाही करना ठीक नहीं, क्योंकि निमोनिया के लक्षण भी इससे मिलते-जुलते होते हैं। निमोनिया फेफड़ों की एक खतरनाक बीमारी है, जो निमोकोकस एवं सायकोप्लाज्मा जैसे जीवाणुओं के संक्रमण के कारण होती है। ठंड लगना, बुखार आना, सीने में दर्द, कफ और सांस लेने में दिक्कत होना निमोनिया के लक्षण हैं। कई बार बलगम में रक्त भी आता है। सामान्यतः निमोकोकस जीवाणु हमारे शरीर में ही रहते हैं, लेकिन हमारे शरीर का प्रतिरोधक तंत्र इन्हें नियंत्रित रखता है। सर्दी लग जाने, बीमारी, थकान या अन्य किसी वजह से जब हमारा शरीर कमजोर होता है, तो ये जीवाणु बेलगाम हो जाते हैं और फेफड़ों पर हमला कर उसकी दीवारों और हवा की थैलियों को संक्रमित कर देते हैं। मायकोप्लास्मल निमोनिया मायकोप्लाज्मा जीवाणुओं के कारण होता है। यह सामान्यत: 15 से 20 वर्ष की उम्र तक ही होता है। फेफड़ों की झिल्ली पर ये जीवाणु अपनी कालोनियां बना लेते हैं और ऐसा आक्सीकारक पदार्थ पैदा करते हैं, जो फेफड़ों की कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है।
सब्जियां उबालने पर नरम क्यों हो जाती हैं?
कच्ची सब्जियां पकी सब्जियों की तुलना में सख्त होती हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कच्ची और बिना पकी सब्जियों की कोशिकाएं आपस में बहुत कसकर जुड़ी होती हैं। इनकी कोशिकाओं की मोटी भित्तियां पास की कोशिका से पेक्टिन नामक कार्बोहाइड्रेट पदार्थ से चिपकी होती हैं। पेक्टिन कोशिका की भित्ति के साथ मिलकर एकाकार- सा हो जाता है क्योंकि कोशिका भित्ति के साथ इसकी और सेलूलोज की अच्छी पकड़ हो जाती है।
जब हम कच्ची सब्जियों को उबालते या पकाते हैं तो सब्जी की कोशिकाओं को जोड़नेवाला पेक्टिन अलग हो जाता है। अतः कोशिकाएं स्वतंत्र हो जाती हैं। इसलिए उबालने पर कच्ची सब्जियां नरम हो जाती हैं। कुछ सब्जियां उबालने पर जरूरत से ज्यादा नरम हो जाती हैं जैसे कि आलू। इसका कारण यह है कि आलू उबालने पर उसकी कोशिकाएं अलग होने के साथ फट भी जाती हैं जिससे उनके अंदर का स्टार्च बाहर आ जाता है। यह स्टार्च गरम पानी को अवशोषितकर फूल जाता है। इससे आलू सामान्य से अधिक मुला हो जाते हैं।
मानसिक रोगियों को बिजली का झटका क्यों देते हैं?
खास मानसिक रोगों का उपचार करने के लिए बिजली के झटके देकर मरीज का इलाज किया जाता है। इस पद्धति को इलेक्ट्रोशॉक थैरेपी कहते हैं। मानसिक रोग का इलाज करने के लिए पहली बार 1938 में रोम में यू सेरलेट्टी तथा एल बिनी ने इलेक्ट्रोकन्वलसिव थैरेपी का प्रयोग किया था। तभी से यह तरीका आमतौर पर गंभीर किस्म के मानसिक रोग, जैसे तीव्र अंतः जात, अवसादों तथा सीजोफ्रेनिया की कुछ किस्मों के इलाज में प्रयोग किया जाता है। इस थैरेपी में मरीज के सिर पर दो इलेक्ट्रोड उपयुक्त स्थिति में लगाए जाते हैं तथा 50 से 60 हर्ट्ज की प्रत्यावर्ती धारा को इन इलेक्ट्रोडों से (0.1 सैकंड तक गुजारा जाता है। विद्युत धारा के गुजरने से चेतना में तुरंत ही ठहराव आ जाता है और व्याक्षोभ का दौर पैदा हो जाता है। 2 से 6 सप्ताह तक की अवधि तक इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थैरेपी सप्ताह में तीन बार की जाती है। गंभीर कुछ मामलों में डॉक्टर इस थैरेपी का प्रयोग दिन में तीन बार भी करते हैं। कभी-कभी इलेक्ट्रोशॉक थैरेपी से गंभीर जटिलताएं भी पैदा हो जाती हैं। हालांकि मानसिक रोगों के उपचार में यह तरीका बहुत कारगर सिद्ध हुआ है. लेकिन कभी-कभी यह रोग को बिगाड़ देता है।
चूल्हों पर काम आनेवाले बरतनों के पेंदे कालिख से पोतकर काले अथवा मिट्टी से पोतकर खुरदरे क्यों किये जाते हैं?
ताप या गरमी देने के गुण के साथ ऊर्जा में परावर्तित और अवशोषित होने का गुण भी होता है। चिकनी और चमकीली सतहों से ऊर्जा का कुछ भाग परावर्तित हो जाता है। इसलिए जब ऐसे बरतनों में खाना पकाया जाता है तो चूल्हे से मिलनेवाली उष्मा का भी कुछ भाग परावर्तित हो जाता है और अपेक्षाकृत खाना देर में पकता है। इसी कठिनाई को दूर करने के लिए इन बरतनों के पेंदों को काला और खुरदरा करना आवश्यक होता है। जब बरतन का पेंदा कालिख, राख अथवा मिट्टी आदि से पोत दिया जाता है तो उसमें परावर्तन की बहुत क्षमता कम रह जाती है। जब सतह और काली खुरदरी होती है तो उसमें उष्मा के अवशोषण की क्षमता बढ़ जाती है। यही कारण है कि अधिक से अधिक उष्मा के अवशोषण के लिए रसोईघर के बरतनों के पेंदों को काला और खुरदरा करके उपयोग किया जाता है।
तालाब व झीलों में बर्फ जम जाने के बाद भी बर्फ में जीव-जंतु कैसे जीवित रहते हैं?
ठंडे पानी का घनत्व सामान्य पानी की अपेक्षा अधिक होता है। इसलिए जब पानी ठंडा होना प्रारंभ होता है तो वह नीचे जाना प्रारंभ कर देता है और उसकी जगह नीचे से गरम पानी ऊपर आ जाता है। ठंडे पानी के नीचे जाने और गरम पानी के ऊपर आते रहने की क्रिया सारे पानी का तापमान 4° सें. हो जाने तक चलती रहती है। इस 4° सें. पर पानी का घनत्व अधिकतम, अर्थात् 1 होता है। जब पानी का तापमान इस तापमान से भी नीचे गिरने लगता है तो पानी का घनत्व कम होने लगता है। यह कम घनत्व का पानी अब नीचे जाने के बजाय ऊपर ही रहता है और 0° सें. तापमान आ जाने पर बर्फ के रूप में जमने लगता है। जैसे-जैसे इसके नीचे के पानी का तापमान भी 0° सें. से नीचे जाने लगता है तो बर्फ की तह मोटी होती जाती है। बर्फ उष्मा की कुचालक होती है, इसलिए बर्फ की मोटाई बढ़ने के बाद ऊपर की ठंडक अब बर्फ के नीचे की ओर नहीं पहुंच पाती है। इसके परिणामस्वरूप बर्फ के नीचे के पानी का तापमान 4° सें. ही बन रहता है। इसी स्थिर तापमानवाले पानी में जीवजीवित रह पाते हैं।
शर्मीले लोग ज्यादा बीमार क्यों होते हैं?
दूसरी शताब्दी से ही डॉक्टर यह जानते थे कि अंतर्मुखी और शर्मीले व्यक्ति ज्यादा बीमार होते हैं। इसका असली कारण अब पता चला है। वैज्ञानिको ने अध्ययन कर पाया कि बहिर्मुखी व्यक्तियों में तनाव झेलने की क्षमता अंतर्मुखी व्यक्तियों से काफी अधिक होती है और वे इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, जबकि अंतर्मुखी व्यक्तियों के लिए तनाव से बाहर निकल पाना काफी मुश्किल होता है। इससे उनके शरीर में नोरेपाइनफ्राइन नामक रसायन का स्राव होता है, जो उनकी रोगों से लड़ने को शक्ति कम कर देता है। व्यक्तित्व और बीमारियों के बीच के संबंध का पता लगाने के लिए अंतर्मुखी व बहिर्मुखी लोगों पर अध्ययन किया गया। सभी को गणित के सामान्य प्रश्न हल करने को दिए गए और कहा गया सही हल नहीं बताने वाले को सजा दी जाएगी। इसके बाद सभी व्यक्तियों की उन स्थितियों जो तंत्रिका तंत्र की प्रतिक्रिया बताती हैं, जैसे रक्तचाप, नब्ज तेज चलना और पसीना आना, पर नजर रखी गई। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि अंतर्मुखी व्यक्ति सजा के नाम पर काफी तनावग्रस्त हो गए थे। तनाव के कारण उनके शरीर में बीमारी के विषाणुओं की संख्या भी काफी अधिक हो गई थी।
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