ऐसा क्यों और कैसे होता है -21

ऐसा क्यों और कैसे होता है -21

कुछ लोग हकलाते क्यों हैं?
बोलने की प्रक्रिया होंठ हिलाने भर से पूरी नहीं होती है, बल्कि इसमें स्वरतंतु, गाल, जीभ और होंठ के बीच सामंजस्य की जरूरत होती है। जब कोई व्यक्ति इन सब में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता है, तो वह हकलाने लगता है। हकलाने के कारण वह किसी शब्द के पहले अक्षर पर अटक जाता है और थोड़ी देर बाद पूरा शब्द बोल पाता है। उसे मां बोलना हो, तो वह मम….मां बोलता है। बोलने में दिमाग के कई कार्यों में भी सामंजस्य होना जरूरी होता है। अगर दिमाग के सुनने और देखने का काम करने वाले हिस्से में किसी तरह की बीमारी हो जाए, तो वह ठीक से काम नहीं कर पाता है और इसके कारण व्यक्ति हकलाने लगता है। हकलाने के कारण चेहरे की मांसपेशियों द्वारा अपना काम करने के बाद भी आवाज नहीं निकलती है। इसकी शुरूआत किशोरावस्था में होती है। हकलाहट महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक पाई जाती है। डॉक्टर इसके सही कारणों का पता लगाने में असफल रहे हैं। यह बीमारी शारीरिक विकृति या भावनात्मक परेशानी से जुड़ी है। इसको ठीक करने वाली कोई दवाई अभी तक नहीं बनी है, लेकिन इसका इलाज साइकोथैरेपी और स्पीचथैरेपी के जरिए किया जा सकता है।
धुएं से आंसू क्यों आ जाते हैं?
आखें हमारे शरीर का बहुत ही नाजुक अंग हैं। किसी भी अप्रिय पदार्थ के संपर्क में आने पर यह उसको निकाल बाहर फेंकने हेतु तरल पदार्थ, जिसे आंसू कहते हैं, बहाना प्रारंभ कर देती हैं। www.s धुआं ऐसा पदार्थ है जिसके संपर्क में आने पर आंखों की रक्तवाहिनियां फैल जाती हैं। रक्तवाहिनियों के फैलने से ही हमारी आंखें लाल हो जाती हैं और दुखने लगती हैं। इसके साथ ही आंखों में जलन भी होने लगती है जिसके कारण आंखों से आंसू आने लगते हैं। इसीलिए धुएं से आंखों में आंसू आ जाते हैं।
सांप के पैर क्यों नहीं होते ?
क्या सांप कभी पैरों वाले थे? वैज्ञानिकों का कहना है कि विकास की शुरूआत में सांप के भी पैर हुआ करते थे। इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि सांप के पूर्वज छिपकली की तरह थे, जो बांबी में रहा करते थे। सांप को अपने विकास के चरणों में अपने पैर खोने पड़े और उनके पैर का स्थान शरीर के निचले या पेट पर बनी पट्टिकाओं (स्केल्स) ने ले लिया। इन स्केल्स की मदद से ही सांप पानी हो या पेड़ या फिर जमीन, सभी जगह सरपट भागता है।
सामान्यतः सांप आगे बढ़ने के लिए तीन तरीकों का उपयोग करता है। पहला तरीका है कंसर्टीना मैथड। इसका उपयोग कर सांप पेड़ों पर चढ़ता है। वहीं लेटरल अनड्यूलेटरी मूवमेंट में सांप टेढ़ा-मेढ़ा चलता है और रेक्टिलीनियर मूवमेंट में सांप अपनी स्केल्स का उपयोग कर सीधा चलता है। वैसे सांप और छिपकलियों को सरीसृप के उच्चतम आर्डर में रखा गया है। सांप और छिपकलियों में पैर के अलावा सिर्फ एक ही अंतर होता है, वह यह कि सांप के मुंह के दोनों जबड़े खुलते हैं, जबकि छिपकली का निचला जबड़ा स्थिर रहता है और सिर्फ ऊपर का जबड़ा ही खुलता है।
मिट्टी की वस्तुएं पकने पर लाल रंग की क्यों हो जाती हैं?
मिट्टी के बरतनों या ईंटों को पकाने पर उनके रंग का लाल हो जाना इस बात पर निर्भर करता है कि मिट्टी में कौन-कौन-से पदार्थ मिले हुए हैं। सामान्यतः मिट्टी में अन्य पदार्थों के साथ-साथ लोहे के यौगिक भी मिले होते हैं। इसलिए मिट्टी के बने बरतनों अथवा ईटों को जब आग में पकाया जाता है तो लोहे के यौगिक लौह ऑक्साइड में बदल जाते हैं। लौह ऑक्साइड का रंग हलका भूरा-सा होता है। जब यह सिलिका के साथ मिट्टी में मिले अन्य यौगिकों के साथ क्रिया करता है तो बरतन या ईंटें लाल रंग की हो जाती हैं।
नींद में भी शरीर क्यों चलता है ?
पूरे दिन काम करने के बाद शरीर के साथ ही दिमाग भी थक जाता है और इसे फिर से चुस्तदुरुस्त बनाने का काम नींद ही करती है। वैज्ञानिकों का कहना है हमारे सोने में दिमाग में स्थिर ‘स्लीप सेंटर’ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और खून में मौजूद कैल्शियम इसे नियंत्रित करता है। सोते समय यह स्लीप सेंटर दो काम करता है दिमाग को पूरी तरह से अवरूद्ध कर देता है, जिससे व्यक्ति होश खो बैठता है और दूसरा यह दिमाग से जाने वाली हर नस को भी अवरुद्ध कर देता है, ताकि शरीर के बाकी हिस्से को आराम मिल सके। नींद में भी शरीर चलायमान रहता है और व्यक्ति एक रात में करीब 20 से 40 बार करवट बदलता है। इस दौरान रक्तसंचार और दिल के साथ ही पाचन तंत्र अपना काम करते हैं। हां, शरीर का तापमान जरूर एक अंश तक कम हो जाता है। इस समय का उपयोग शरीर की कोशिकाएं दिन भर की गंदगी बाहर निकालने में करती हैं।
कुछ पौधे दीवार या फर्श आदि तोड़कर उग आते हैं। ऐसा क्यों होता है ?
वनस्पतियां, पेड़-पौधे अपने स्वरूप को अपने बीजों में छुपाए रहते हैं। ये बीज आकार में बहुत छोटे या बड़े सभी तरह के होते हैं। पीपल या बरगद के बीज बहुत छोटे होते हैं और वे हवा के झोंकों से उड़कर कहीं भी जा सकते हैं। ये बीज जब किसी पत्थर, दीवार या फर्श आदि की छोटी-से-छोटी दरार में जा पहुंचते हैं तो वहां जरा-सी मिट्टी तथा हवा, पानी और प्रकाश पाकर वहीं उगना प्रारंभ कर देते हैं ।
जब बीज उगते हैं तो उनसे मूलांकुर और प्रांकुर निकलते हैं। मूलांकुर जड़ें बनाते हैं और प्रांकुर से तना बनता हैं। इन मूलांकुरों के अग्र सिरों पर कुछ विशेष प्रकार के रसायन पाए जाते हैं, इन्हें ऑक्सिन या जिवरैलिन आदि नामों से जाना जाता है। ये रसायन मूलांकुर और प्रांकुरों को बढ़ने से सहायता करने के साथ-साथ अपने संपर्क में आई मिट्टी-पत्थर आदि को घोलकर इनके लिए रास्ता बनाने का कार्य भी करते हैं।
बहुत छोटी दरारों में उगना प्रारंभ कर देने के बाद अपनी बढ़वार के लिए इन्हें अधिक स्थान की आवश्यकता होती है। इनकी वृद्धि से बढ़नेवाले दबाव से दरारें और बड़ी हो जाती हैं। जड़ों के गहराई में चले जाने से और उनका अधिक दबाव पड़ने से फर्श या दीवारें भी चटक या फट जाती हैं। इसी तरह ये पौधो अपनी जड़ें जमाते हुए पत्थरों, दीवारों या फर्श आदि को तोड़कर हवा में बढ़ते रहते हैं और कभी-कभी बड़ी-बड़ी इमारतों तक को ढहा देते हैं।
शरीर में अस्थिपंजर क्यों होता है ?
अस्थिपंजर (स्केलटन) अस्थियों का जाल होता है। अस्थियां या हड्डियां शरीर को वह ढांचा उपलब्ध कराती हैं, जो पूरे शरीर को संभालने का काम करता है। अगर शरीर में अस्थिपंजर नहीं होते, तो हमारे लिए खड़े रह पाना संभव नहीं होता और हम भी ठीक उसी तरह से लुंज – पुंज होते, जैसे कपड़े से बनी कोई गुड़िया होती है। यह अस्थिपंजर ही है जिसके कारण हम चल और दौड़ पाते हैं। फिर यही हमारे नाजुक और संवेदनशील अंगों की रक्षा करने का काम भी करता है। दिमाग की सुरक्षा खोपड़ी करती है। दिल और फेफड़ों की सुरक्षा का काम पसलियां करती हैं। इतना ही नहीं, यह अन्य कई अंगों को सहारा देने का काम भी करता है। हाथ और पैर चलाने का काम वैसे तो मांसपेशियां करती हैं, लेकिन उन्हें चलाने के लिए जिस लीवर की जरूरत होती है, वह हड्डियों से ही मिलता है। मांस-मज्जा भी हड्डियों से जुड़कर ही शरीर को एक हृष्ट-पुष्ट रूप दे पाते हैं। जब एक शिशु जन्म लेता है, तो उसमें 300 हड्डियां होती हैं। शैशवावस्था में ही करीब 94 हड्डियां आपस में जुड़ जाती हैं।
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है परंतु हमें स्थिर क्यों लगती है?
हमारी पृथ्वी की दो गतियां हैं। एक तो वह अपनी धुरी पर घूमती है और दूसरे वह धुरी पर घूमती हुई अपनी कक्षा में सूर्य के चक्कर लगाती है। पृथ्वी की गति विषुवत् रेखा पर लगभग एक हजार मील प्रति घंटा होती है, और जैसे-जैसे ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं, यह गति कम होती जाती है। न्यूटन का सापेक्षता का एक सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई वस्तु गतिमान होती है और आप भी उसके सापेक्ष गतिमान हैं, तो वह वस्तु चलते हुए भी आपको स्थिर मालूम पड़ेगी। चूंकि हम स्वयं भी तो पृथ्वी पर ही सवार हैं, इसलिए हमारी गति भी वही हुई जो पृथ्वी की है। इसी सापेक्ष गति के कारण पृथ्वी चलते हुए भी हमें स्थिर दिखाई पड़ती है।
कुछ लोग चश्मा क्यों पहनते हैं? 
आंखों के बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल होता है। आंखें खराब हों, तो सब कुछ धुंधला दिखाई देता है। यह आंख के लेंस के सही तरह से फोकस नहीं कर पाने के कारण होता है। स्पष्ट देखने के लिए लेंस का फोकस सही करने की जरूरत होती है। यह काम चश्मे के जरिये किया जाता है। जिन व्यक्तियों की दूर की नजर कमजोर होती है, उन्हें दूर की चीजें स्पष्ट दिखाई नहीं देती, क्योंकि चीजों का चित्र पुतली से पहले बन जाता है। हां, ऐसे व्यक्ति पास की चीजें स्पष्ट देख पाते हैं। वहीं जिन व्यक्तियों की पास की नजर कमजोर होती है, उन्हें दूर का तो साफ दिखाई देता है, लेकिन पास की चीजें धुंधली हो जाती हैं। यह पास की चीजों का चित्र पुतली के पीछे बनने के कारण होता है। ऐसे में इस तरह का चश्मा पहना जाता है, जो आंखों के लेंस का फोकस सही कर सके। व्यक्ति की बढ़ती उम्र के साथ उसकी आंखों का लचीलापन भी कम होने लगता है और उनके लिए पास और दूर की चीजें स्पष्ट देख पाना मुश्किल हो जाता है।
बिजली का पंखा कभी-कभी उलटा घूमता क्यों दिखाई देता है?
पंखा उलटा चलता हुआ दिखाई देने के लिए पंखे की गति और प्रकाश की तीव्रता उत्तरदायी होती है। उलटे पंखे की तरह चलते हुए तांगे आदि के पहिए भी कभी-कभी उलटे चलते दिखाई देते हैं। वास्तव में ऐसा होता नहीं है। यह हमारी आंखों का भ्रम मात्र होता है। जब पंखे की गति की तुलना में तेज प्रकाश की टिमटिमाहट अधिक होती है तो पंखा उलटा चलता दिखाई देता है। इतना ही नहीं, जब पंखे की गति और प्रकाश की टिमटिमाहट में समानता होती है तो पंखुड़ियां स्थिर-सी मालूम पड़ती हैं और जब यही टिमटिमाहट पंखे की गति से कम होती है तो पंखा अपनी वास्तविक गति से भी कम घूमता मालूम पड़ता है। इस तरह पंखे के उलटे घूमने का दृष्टि-भ्रम उसकी गति और प्रकाश की टिमटिमाहट के असंतुलन के कारण होता है।
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