ऐसा क्यों और कैसे होता है -19

ऐसा क्यों और कैसे होता है -19

बरसात बूंदों के रूप में ही क्यों होती है ?

गरमी से पानी भाप बनकर ऊपर उठता रहता है। प्रायः विशाल समुद्र, नदियां, झरने, ताल-तलैया और झीलें सभी अपना पानी भाप के रूप में उड़ाते रहते हैं। यह भाप या वाष्प वायुमंडल में एक सीमा तक ही रह पाती है। जब वायुमंडल और अधिक वाष्प अवशोषित नहीं कर पाता है तो वह संतृप्त हो जाता है। ठंडक अथवा कम ताप के संपर्क में आने पर वाष्प छोटी-छोटी बुंदकियों में संघनित होने लगती है। आप जानते ही हैं कि वायुमंडल में धूल के कण, छोटे-छोटे लवण क्रिस्टल तथा विद्युत् आवेशित कण आदि होते ही हैं। अतः यह संघनन इनके आसपास होकर बादलों के रूप में उमड़ता-घुमड़ता रहता है। छोटी-छोटी बुंदकियों को धरती पर आने के लिए अधिक भार की आवश्यकता होती है। हलकी होने पर वे बादलों का ही अंश बनी रहती हैं और धरती पर नहीं बरसतीं; लेकिन हवा की धाराओं में बहते- बहते जब ये छोटी बुंदकियां मिलकर बड़ी हो जाती हैं तो जमीन पर बरसने लगती हैं। इसीलिए वर्षा किसी अन्य रूप के बजाय बूंद-बूंद होकर बूंदों के रूप में ही होती है।
दर्द निवारक बाम कैसे कार्य करता है ?
हमारे शरीर में दर्द का संदेश देनेवाली तंत्रिकाएं शरीर के भीतर फैली हुई हैं। जब दर्द के स्थान की तंत्रिकाओं द्वारा यह सूचना मस्तिष्क को पहुंच जाती है तो हमें दर्द महसूस होने लगता है। प्रायः दर्द तंत्रिकाओं में संवेदना उस समय पनपती है जब वे अपने सामान्य स्थान से तुड़-मुड़ या हट जाती हैं। मोच आने का दर्द इसी तरह का होता है। कभी-कभी लगातार संकचुन या दबाव के कारण वे तन जाती हैं और दर्द का कारण बनती हैं। जैसे कि सिर का दर्द आदि। आप जानते ही हैं कि हमारी रीढ़ की रज्जु मस्तिष्क को जानेवाली सभी तंत्रिकाओं का जंक्शन मार्ग है। अतः दर्द के सभी संदेश इसी रीढ़ रज्जु द्वारा मस्तिष्क को पहुंचते हैं।
दर्द निवारक बाम में तारपीन तथा यूकेलिप्टस आदि के वाष्पशील तेल होते हैं। जब बाम दर्द के स्थान पर लगाई जाती है तो यह तेल दर्द के स्थान पर चुनचुनाहट पैदा करते हैं, इससे त्वचा के पास की तंत्रिकाएं प्रभावित होती हैं। यह संदेश भी रीढ़ रज्जु के द्वारा मस्तिष्क को पहुंचता है। इस तरह पहले दर्द के संदेश और इस चुनचुनाहट के संदेश से मस्तिष्क को विरोधाभास का अनुभव होने लगता है। इस क्रिया से मस्तिष्क को कम दर्द की अनुभूति होना प्रारंभ हो जाता है और दर्द से पीड़ित व्यक्ति दर्द में राहत महसूस करने लगता है । इसके अतिरिक्त बाम से पेशियों को भी आराम मिलता है और रोगी कुल मिलाकर दर्द में कमी महसूस करता है। बाम द्वारा दर्द दूर करने की यही क्रिया दर्द से छुटकारा दिलाने में सहायक होती है।
खुजलाने पर आराम क्यों मिलता है? 
रखुजली ऐसी क्रिया है, जो त्वचा के नीचे दर्द तंत्रिकाओं में मामूली-सी उत्तेजना होने पर उत्पन्न होती है। इस उत्तेजना के होने के अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे किसी घाव के ठीक होने पर उसके ऊपर नई त्वचा के आने पर हलकी उत्तेजना आ सकती है। ठीक इसी तरह त्वचा के नीचे दिखाई न देनेवाली नलिकाओं के साथ इच-माइट सूक्ष्म कीटों के चलने-फिरने से भी उत्तेजना हो जाती है। सूर्य की तेज धूप में धूप सेकने पर धूप की चुभन से भी उत्तेजना हो जाती है। कभी-कभी कोई एलर्जीवाला पदार्थ त्वचा में प्रतिक्रिया कर उत्तेजना पैदा कर देता है। इन कारणों से तंत्रिकाओं में पैदा हुई उत्तेजना से लोग उत्तेजना के स्थान को रगड़ने या खुजलाने की ओर आकर्षित होते हैं ।
खुजलाने या सहलाने से जो संवेदनशीलता पैदा होती है, उससे अन्य तंत्रिकाएं उत्तेजित होती हैं और ये तंत्रिकाएं मस्तिष्क को ‘प्रति हिस्टेमीन’ के उत्पादन की ओर प्रेरित करती हैं। इससे खुजली में कुछ राहत अनुभव होती है। वास्तविकता यह है कि जब कोई एलर्जीयुक्त क्रिया होती है, तो उत्तेजित दर्द तंत्रिकाओं के सिरे ‘हिस्टेमीन’ रसायन पैदा करने लगते हैं। इसे प्रति हिस्टेमीन शांत करता है और एलर्जी खुजली में आराम मिलता है। लेकिन अन्य खुजलियों में सामान्यतः खुजलाने या सहलाने से पैदा उत्तेजना से, खुजली की उत्तेजना के साथ विरोधाभास पैदा हो जाता है जिससे वह दब-सी जाती है और लोग समझने लगते हैं कि खुजली से खुजलाने पर आराम मिल रहा है ।
नाखून और बालों की मृत कोशिकाएं कैसे बढ़ती हैं?
यह बात सत्य है कि नाखून और बाल मृत कोशिकाओं के बने होते हैं। लेकिन वे जिन कोशिकाओं से निर्मित होते हैं, वे जीवित होती हैं। बालों की जड़ें त्वचा में गहरी होती हैं, इसलिए वहां कोशिकाएं तेजी से विभाजित और विकसित होती रहती हैं। इस तरह बालों की बढ़वार बालों की जड़ से प्रारंभ होती है, न कि बालों के हवा में लहरा रहे ऊपरी सिरे से। हां, जो बालों की कोशिकाएं त्वचा से बाहर आ जाती हैं, उनका अपनी खुराक के लिए नीचे की कोशिकाओं से संबंध टूट जाता है और वे पहले से मृत कोशिकाओं में जुड़ती जाती हैं। इसी क्रिया से बाल मृत कोशिकाओं के बने होने पर भी बढ़ते रहते हैं।
ठीक यही बात हमारे नाखूनों पर भी लागू होती है। उंगलियों के सिरों से बाहर आए नाखून की कोशिकाएं मृत होती हैं, जबकि उंगलियों से चिपके लालाभ नाखून की कोशिकाएं जीवित होती हैं। इन्हीं सविभाजन द्वारा नाखूनों की मृत कोशिकाओं में वृद्धि होती रहती है और नाखून बढ़ते रहते हैं।
सिनेमा चलचित्रों में घूमते पहियों की तानें उलटी घूमती क्यों दिखती हैं ?
वास्तविकता यह है कि सिनेमा के चलचित्रों में हमें जो कुछ दिखाई देता है वह होता नहीं है। ठीक ऐसा ही तब होता है, जब हमें घूमते पहिए की तानें उलटी घूमती नजर आती हैं। हम जानते हैं कि जब सिनेमा के लिए किसी एक्शन की शूटिंग की जाती है; यानी फिल्म बनाई जाती है, तो प्रत्येक एक्शन के लिए प्रति सैकंड 24 तस्वीरें खींची जाती हैं। ठीक इसी तरह जब सिनेमा दिखाया जाता है, तो यही स्थिर तस्वीरें 24 तस्वीर प्रति सैकंड के हिसाब से परदे पर दिखाई जाती हैं। हालांकि परदे पर अलग-अलग तस्वीरें आ रही होती हैं, लेकिन हमारे लगातार देखने के कारण एक तस्वीर दिमाग से हट नहीं पाती कि दूसरी तस्वीर आ जाती है। इसलिए 24 तस्वीर प्रति सैकंड दिखाई जाने से ये स्थिर तस्वीरें हमें एक्शन करती हुई नजर आती हैं। तभी तो कहा जाता है कि सिनेमा में जो दिखाई देता है, वह होता नहीं है ।
अब इसी तरह घूमते पहिए को देखें, जो दौड़ भी रहा है, तो उसका उलटा या सीधा घूमना तथा स्थिर दिखाई देना आदि; इस बात पर निर्भर करेगा कि पहिया किस रफ्तार से घूम रहा है। क्योंकि तस्वीर खींचते समय 24 तस्वीर प्रति सैकंड के हिसाब से खींची गई थीं, इसलिए यदि पहिया प्रति सैकंड 24 चक्कर लगा रहा है तो वह स्थिर खड़ा दिखाई देगा। यदि पहिया इससे अधिक चक्कर प्रति सैकंड लगा रहा है और बदलते फ्रेम के ताथ तालमेल में नहीं है, तो वह सीधा घूमता नजर आएगा। ठीक इसी तरह जब पहिया प्रति सैकंड 24 से कम चक्कर लगा रहा होगा तो वह उलटा घूमता नजर आएगा। इसीलिए फिल्माने के समय पहिए के चक्करों के अनुसार, जैसा ऊपर समझाया गया है, सिनेमा चलचित्रों में घूमते पहियों की तानें उलटी घूमती नजर आती हैं।
ऊंट की पीठ पर कूबड़ क्यों होता है ?
ऊंट की पीठ पर पाया जानेवाला कूबड़ विशेष प्रकार की रचना है। देखने में तो ऐसा लगता है मानो यह पीठ पर काठी को रोकने के लिए हो। लेकिन ऊंट के लिए इस कूबड़ का विशेष महत्त्व है। ये कूबड़ वसा के बने होते हैं। कूबड़ में अतिरिक्त वसा संचित रहती है। जब भोजन की कमी होती है, तो ऊंट की शारीरिक क्रियाओं के लिए ऊंट को भोजन इसी वसा से मिलता है। भोजन के अतिरिक्त इस कूबड़ की वसा का उपयोग पानी की कमी को पूरा करने के लिए भी किया जाता है। जब पानी की कमी होती है, तो कूबड़ की वसा के ऑक्सीकरण के द्वारा पानी की कमी की पूर्ति होती है। सामान्यतः लोग समझते हैं कि ऊंट अपने प्रथम आमाशय की थैली में पानी को भंडारित कर लेता है और आवश्यकता पड़ने पर इसका उपयोग कर लेता है, परंतु अनुसंधानों से पता चला कि प्रथम आमाशय में जो तरल पदार्थ पाया जाता है, पानी के बजाय पाचक रस जैसा होता है।
प्रारंभ में ऊंट बिना कूबड़ के ही हुआ करते थे। रेगिस्तानी इलाकों में रहने के कारण इन्हें भोजन और पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। अतः माना जा सकता है कि इस समस्या के समाधान के लिए अनुकूलन क्रिया और विकासक्रम के परिणामस्वरूप ऊंट के कूबड़ का विकास हुआ है।
सूरजमुखी रोग क्या है?
सूरजमुखी या एल्बिनो लातिनी शब्द एल्बस से लिया गया है, जिसका अर्थ है सफेद । सूरजमुखी होना एक आनुवंशिक बीमारी है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलती है। यह बीमारी शरीर में मेलानिन नामक पिगमेंट की कमी के कारण होती है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ मानव ही इस बीमारी से पीड़ित होता है, अन्य जानवर और पेड़-पौधे भी इससे बच नहीं. पाते हैं। यह पिगमेंट प्रकाश की किरणों के लिए एक सुरक्षा परत की तरह काम करता है। यही कारण है कि सूरजमुखी जानवर और पेड़-पौधे सूर्य की किरणों और तेज प्रकाश के प्रति काफी संवेदनशील हो जाते हैं और वे इनके बिना जीवित नहीं रह पाते । सूरजमुखी व्यक्ति का पूरा शरीर और बाल सफेद होते हैं और उनकी आंखें गुलाबी लगती हैं। यह रक्तवाहिनियों के कारण होता है। जो पेड़ या पौधे सूरजमुखी होते हैं, उनमें भोजन बनाने के लिए आवश्यक माना जाने वाला हरा पिगमेंट क्लोरोफिल भी नहीं होता है । इस कारण वे भोजन नहीं बना पाते हैं और कुछ समय बाद ही मर जाते हैं। यह बीमारी भी दो तरह की होती है पूर्ण सूरजमुखी और आंशिक सूरजमुखी ।
उल्लू अंधेरे में कैसे देखता है ?
देखने का काम आंखे करती हैं। दिखाई देनेवाली वस्तुओं से आनेवाले प्रकाश से हमारी आंख के परदे पर उनका उलटा चित्र बनता है, जो दिमाग में पहुंचकर सीधा हो जाता है और हमें वस्तुएं दिखाई देने लगती हैं। आंख के परदे पर यह प्रकाश आंख की पुतली से होकर जाता है । पुतली का आकार कैमरे के प्रकाश-छिद्र की तरह प्रकाश के अनुसार फैल और सिकुड़ सकता है। अंधेरा होने पर प्रकाश न आने से हमें दिखाई नहीं देता। लेकिन इस अंधेरे में भी धीरे-धीरे पुतली का आकार जब फैलकर बड़ा हो जाता है तो हमें भी कुछ देर के बाद हलका-हलका दिखाई देने लगता है।
उल्लू की आंखों की पुतलियां हमारी आंखों की पुतलियों की तुलना में बड़ी होती हैं। इसके अलावा इनके फैलने की क्षमता भी अधिक होती है। इसलिए रात्रि के समय हलके-से-हलका प्रकाश भी इनसे होकर आंख के परदे तक पहुंच जाता है। उल्लू की आंख का परदा लेंस से कुछ अधिक दूर होने से उस पर चित्र भी बड़ा बनता है। उल्लू की आंख के लेंस में चित्र को फोकस करने की क्षमता भी होती है। उल्लू की आंख को संवेदनशील बनानेवाली कोशिकाएं भी हमारी आंख की तुलना में लगभग पांच गुनी अधिक होती हैं। इसके अतिरिक्त उल्लू की आंखों में प्रोटीन से बना लाल रंग का एक पदार्थ भी होता है, जिससे उल्लू की आंखें रात्रि के प्रकाश के लिए अधिक संवेदनशील हो जाती है। अपनी आंख की इन विशेषताओं के कारण उल्लू अंधेरे में भी देख सकता है।
भालू खतरनाक क्यों होते हैं?
भालू देखने में भले ही प्यारे लगें, लेकिन वे काफी खतरनाक हो सकते हैं। भालुओं की लंबाई तीन मीटर तक हो सकती है और उनके शरीर पर काफी घने और मोटे बाल होते हैं, जो उसे गद्देदार बना देते हैं। भालू पेड़ पर चढ़ने में माहिर होता है और अपनी प्रतिक्रिया काफी जल्दी देता है। इतना ही नहीं, भालू वैसे तो शांत प्रवृत्ति का होता है और जब उसे उकसाया जाए या चोट पहुंचाई जाए, तब ही आक्रमण करता है। इसके बाद भी भालू से मित्रता करना काफी जोखिमपूर्ण हो सकता है। असल में, राष्ट्रीय अभयारण्य में रहने वाले भालू मानव से परिचित होते हैं और वे अनजाने में ही उन्हें नुकसान पहुंचा देते हैं। भालू के हाथ या अगले पैर काफी शक्तिशाली होते हैं और अगर वे किसी को कस कर गले लगा लें, तो उसकी जान भी जा सकती है। फिर भालू के पंजे भी काफी नुकीले होते हैं और हाथ से सामान लेते समय ये पंजे घायल भी कर सकते हैं। अधिकांश भालुओं के दांत सड़े होते हैं क्योंकि वे मीठा खाना पसंद करते हैं। उनका पसंदीदा आहार शहद होता है और वे ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर बने मधुमक्खी के छत्तों में से शहद चुराने से भी बाज नहीं आते हैं।
बर्फ क्यों तैरती है?
तुम होती जानते ही हो कि बर्फ पानी का ठोस रूप है, अतः उसे भारी होकर पानी में डूब जाना चाहिए था परंतु वह डूबने के बजाय तैरती रहती है, लेकिन क्यों? होता यह है कि जब तरल पदार्थ ठोस बनते हैं तो उनका आयतन घट जाता है और वे भारी हो जाते हैं लेकिन पानी के साथ ऐसा नहीं होता। जब पानी ठोस अवस्था के लिए जमकर बर्फ बनता है तो उसका आयतन घटने के बजाय बढ़ जाता है और वह पानी की तुलना में हलकी हो जाती है। इसलिए बर्फ पानी में तैरती रहती है।
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