ऐसा क्यों और कैसे होता है -17

ऐसा क्यों और कैसे होता है -17

साइकल में हवा भरते समय पंप गरम क्यों हो जाता है?
जब हम पंप से साइकल में हवा भरते हैं, तो हम पंप की हवा को संपीडित करते हैं। इससे हवा साइकल के ट्यूब में वाल्व द्वारा संपीडन से उत्पन्न हुए दबाव के कारण चली जाती है। पंप से यह क्रिया हम तब तक बार-बार करते रहते हैं जब तक साइकल में वांछित हवा नहीं आ जाती । हम जानते हैं कि जब हम हवा या गैस को दबाकर संपीडित करते हैं, जैसाकि पंप से हवा भरते समय हवा को संपीडित होती हैं, तो उसका तापमान बढ़ जाता है। बार-बार संपीडित करने पर पंप का तापमान और भी बढ़ता जाता है; लेकिन पंप से उतनी उष्मा बाहर नहीं निकल पाती, जितना तापमान बढ़ रहा है। इसलिए पंप से साइकल में हवा भरते समय वह गरम हो जाता है।
उड़ती पतंग की डोर पतंग के सिरे पर वक्राकार क्यों होती है?
पतंग हवा में तब उड़ती है, जब वह नीचे की दिशा में हवा को फेंकती या विक्षेपित करती है। जब हवा चल रही होती है, तो हवा के दबाव से पतंग ऊपर की ओर जा रही होती है। इस स्थिति में पतंग की डोर, पतंग द्वारा ऊपर की ओर खिंचाव के कारण तन जाती है और हवा में सीधी होती है। लेकिन जिस समय हवा नहीं चल रही होती है और पतंग हवा में ठहरी होती है, उस समय डोरी का भार कार्यशील होता है। इसलिए पतंग की डोरी सीधी तनी होने के बजाय हवा में लटकने लगती है, जिससे वह पतंग के सिरे पर वक्राकार हो जाती है।
हम बालटी में खड़े होकर उसे उठा क्यों नहीं सकते?
जब हम किसी वस्तु को उठाते हैं, तो हमें धरती के विपरीत बल लगाना पड़ता है। बालटी ध रती की ओर बल लगा रही होती है और उठानेवाला धरती के विपरीत ऊपर की ओर। जब इन बलों में संतुलन हो जाता है, तो अतिरिक्त लगे बल से बालटी उठ जाती है। लेकिन जब हम बालटी में ही खड़े होकर उसे उठाते हैं, तो एक तो हमारा भार बालटी पर पड़ रहा होता है और दूसरे, बालटी में खड़े होकर लगाया गया बल हमारे पैरों के माध्यम से और धरती की ओर चला जाता है। इस तरह बालटी उठाने में लगाया गया बल संतुलित होकर समाप्त हो जाता है और हम बालटी को उसमें खड़े होकर नहीं उठा पाते हैं।
हाथ-पैर अधिक समय एक ही स्थिति में रखने पर सुन्न क्यों पड़ जाते हैं?
जब हम हाथ अथवा पैर को किसी खास स्थिति में अधिक समय तक रखते हैं, और यदि ऐसी स्थिति में वे किसी वस्तु को दबा भी रहे हों, तो हाथ या पैर के वे हिस्से लगातार दबाव में रहने से सुन्न पड़ जाते हैं। होता यह है कि जब हम ऐसा करते हैं, तो दबाव के कारण उस स्थान का रक्तसंचार तथा उसकी गतिविधियां, खासतौर पर तंत्रिकाओं के कार्य में व्यवधान पड़ता है। इससे उस स्थान की संवेदनशीलता समाप्त हो जाती है और हमें वह स्थान सुन्न लगने लगता है। यह क्रिया थोड़े समय के लिए ही रहती है। जैसे ही हम हाथ या पैर की स्थिति बदलते हैं, तो वहां रक्त का संचार पुनः प्रारंभ हो जाता है और धीरे-धीरे संवेदनशीलता वापस आ जाती है। इसी के साथ सुन्नता भी समाप्त हो जाती है। इस तरह शरीर के हाथ-पैरों को अधिक समय तक एक ही स्थिति में रखने पर उस स्थान का रक्तसंचार तथा संवेदनशीलता प्रभावित हो जाने से वह स्थान या हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं।
कैंपा जैसे शीतल पेयों में नमक डालने पर बुलबुले क्यों उठते हैं?
इस तरह के शीतल पेय कार्बन डाइऑक्साइड गैस घोलकर बनाए जाते हैं। यह गैस उस सीमा तक मिलाई जाती है कि पेय गैस के अति संतृप्त घोल बन जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि पानी में उसकी क्षमता से अधिक गैस मिलाई जाती है। इस गैस का गुण यह है कि अधिक उच्च दबाव और कम तापमान पर गैस का यह अति संतृप्त घोल पानी और गैस के बीच संतुलन की अवस्था में आ जाता है। इसीलिए जब हम ठंडे पेयों की बोतल खोलते हैं तो उनका दबाव कम हो जाता है, जिससे संतुलन की अवस्था अव्यवस्थित हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप अति संतृप्त घोल में फालतू घुली गैस बुलबुलों के रूप में निकलने लगती है और नए दबाव तथा तापमान की बदली हुई परिस्थितियों में नई संतुलन अवस्था में शेष गैस घुली रह जाती है।
जब हम इसमें साधारण नमक डालते हैं तो संतुलन की एक और नई अवस्था उसे अव्यवस्थित करती है और फालतू गैस बुलबुलों के रूप में पुनः निकलने लगती है। नमक डालते रहने पर यह क्रिया फालतू गैस निकल जाने तक चलती रहती है। नमक डालने के बजाय जब हम बोतल को हिलाते हैं, तो भी यह संतुलन डगमगा जाता है और गैस के बुलबुले निकलने लगते हैं। इसलिए शीतल पेयों में घुली फालतू कार्बन डाइऑक्साइड गैस के नमक डालने के कारण बुलबुले निकलते हैं।
गरम दूध में बिस्कुट जल्दी मुलायम क्यों हो जाते हैं?
जब किसी वस्तु के कण कमजोर बांडों से बंधे होते हैं, तो वह भुरभुरे हो जाते हैं; और नम होने पर मुलायम भी आसानी से हो जाते हैं। बिस्कुट भी कमजोर बांडों से बंधे कणों से बने होते हैं। इनमें पानी आसानी से सोख लिया जाता है क्योंकि वह कमजोर बांडों को तोड़कर प्रवेश कर जाता है और उन्हें मुलायम बना देता है। जहां तक दूध का प्रश्न है, यह पानी तथा प्रोटीन एवं वसा जैसे पदार्थों से मिलकर बना होता है। इनमें प्रोटीन तथा वसा लसीले तथा चिपचिपे पदार्थ हैं। अतः जब बिस्कुटों को दूध में डुबोते हैं, तो इसका पानी बिस्कुटों के कमजोर बांडों को तोड़ने का कार्य करता है, जो बिस्कुट कणों को जोड़े रहते हैं। जब दूध को गरम करते हैं तो वसा तथा प्रोटीन तरल हो जाते हैं और दूध की लसलसाहट, अर्थात् स्थानता कम हो जाती है, जिससे यह बिस्कुटों में आसानी से प्रवेश कर जाता है। इसीलिए गरम दूध में बिस्कुट जल्दी मुलायम हो जाते हैं।
स्कूटर के पहियों में रिम होती है और बाइक के पहियों में तानें। ऐसा क्यों ?
पहियों में तानें होना या न होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मोटरसाइकल के पहिए आकार में बहुत बड़े होते हैं; इसलिए यदि इन्हें स्कूटर के पहियों की तरह तानों के बजाय ठोस बनाया जाएगा, तो मोटरसाइकल के पहिए बहुत भारी हो जाएंगे, इससे इन्हें घुमाने में मोटरसाइकल के इंजन को अतिरिक्त शक्ति लगानी पड़ेगी, जो कई दृष्टियों से उचित नहीं है। इसकी तुलना में स्कूटर के पहिए बहुत छोटे होते हैं, अतः उन्हें बिना तानों के ठोस रिमदार बनाने से उनके भार में कोई खास वृद्धि नहीं होती है। इसके अतिरिक्त छोटे पहियों को तानेंदार बनाने से उनके रख-रखाव में कठिनाई आ सकती है; क्योंकि वे दचकों आदि से ठोस पहियों की तुलना में आसानी से टेढ़े-मेढ़े हो सकते हैं, जिससे यात्रा असुविधाजनक होने की आशंका बनी रहती है। इन्हीं हानि-लाभों को ध्यान में रखकर स्कूटर के पहिए रिमदार और मोटर साइकल के पहिए तानोंवाले बनाए जाते हैं।
सर्दियों में सुबह कार स्टार्ट करने में कठिनाई क्यों होती है ?
कार या कोई भी मोटरवाहन इंजन की शक्ति से चलते हैं। ये इंजन अंतर्दहन इंजन होते हैं। इनमें ईंधन और हवा का मिश्रण एक खास दबाव तक दबाया, अर्थात् संपीडित किया जाता है और उसे दहन किया जाता है। इससे मिश्रण जलकर विस्फोट करता है जिसके धक्के से पिस्टन चलता है और पिस्टन के चलने से शाफ्ट चलता है, जो वाहन के पहियों को चलाने के लिए बल देता है और वाहन चलने लगता है।
हालांकि ईंधन और हवा के मिश्रण का दहन कई बातों पर निर्भर करता है; लेकिन इनमें मिश्रण का तापमान महत्त्वपूर्ण है। सर्दियों में प्रातःकाल में इंजन के आसपास की हवा बहुत ठंडी होती है। अतः इस हवा से बना ईंधन हवा का मिश्रण भी ठंडा होता है। इसे दहन होने में सामान्य से कुछ अधिक समय लगता है। इसीलिए सर्दियों के दिनों में, जहां ठंडक अधिक होती है, कार स्टार्ट होने में अधिक समय लेती है। जहां हमेशा सर्दी का मौसम या तापमान कम रहता है वहां सामान्य ईंधन कार्य नहीं करता है, बल्कि वहां के वाहनों के लिए कम तापमान पर दहन होनेवाला ईंधन उपयोग किया जाता है। तभी वहां के वाहन आसानी से चल पाते हैं।
बच्चे अपना अंगूठा क्यों चूसते हैं?
अंगूठा पीना बच्चों की स्वाभाविक आदत होती है। सबसे पहले वे मां का दूध पीने के लिए मां के स्तनों को चूसते हैं, उसके बाद उन्हें दूध पीने की बोतल मिल जाती है, अब वे उसके निपिल को चूसना प्रारंभ करते हैं। बच्चे कभी-कभी अपना अंगूठा पीना प्रारंभ कर देते हैं। यह उनकी सामान्य आदत का ही एक हिस्सा होता है।
ऐसी मान्यता है कि बच्चे अपनी सुरक्षा की अनुभूति के लिए अंगूठा पीते हैं। डॉक्टरों का भी मानना है कि अंगूठा पीना कोई हानिकारक बात नहीं है, बशर्ते कि यह सामान्य से अधिक न पिया जाए। कभी-कभी बड़े बच्चे भी अंगूठा पीते देखे जाते हैं। ऐसा किया जाना उनकी भावनात्मक सुरक्षा के कारण हो सकता है। यदि बच्चे अधिक अंगूठा पीने लगें, तो उसे सुधारने का प्रयास किया जाना चाहिए। सामान्य स्थिति में बच्चे स्वभावतः और सुरक्षा की अनुभूति के कारण अंगूठा चूसते हैं।
कुछ फोटो हमारी तरफ टकटकी लगाकर देखते क्यों लगते हैं?
यह एक तरह का दृष्टिभ्रम होता है कि कोई फोटोग्राफ या तस्वीर हमारी तरफ टकटकी लगाए देख रही है। ऐसा तभी होता है, जब फोटोगाफ्र सामने से इस तरह खींचा गया हो कि व्यक्ति कैमरे को सीधा निहार रहा हो । जो फोटोगाफ्र चेहरे के सामने के बजाय अगल-बगल के पोज के होते हैं, तो उनमें ऐसा दृष्टिभ्रम नहीं पाया जाता है। जब फोटो में एक ही आंख अथवा एक पूरी और थोड़ी-सी दूसरी आंख होती है, तो तब भी ऐसा भ्रम नहीं होता है। लेकिन जब फोटो की दोनों आंखें सामने होती हैं और उनका पोज सामने निहारने का होता है, तो हमें फोटो को देखने पर यह दृष्टिभ्रम होता है कि फोटो हमें टकटकी लगाकर देख रही है ।
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