ऐसा क्यों और कैसे होता है -16

ऐसा क्यों और कैसे होता है -16

धीरे से दूध गिराएं, तो वह गिलास पर बाहर की ओर चिपककर क्यों चलने लगता है?
गिलास पतली चादर या शीट के बने होते हैं। इसलिए गिलास के किनारे बहुत पतली दीवार के होते हैं। अतः पतली दीवार के संपर्क में आई तरल पदार्थ की परत किनारे से दूर की परत की अपेक्षा जल्दी गोलाकार मुड़ जाती है। इससे तरल की परत पर दबाव कम हो जाता है। बाहर की परत पर वायुमंडलीय दबाव कार्य कर रहा होता है। यह तरल की धारा को दीवार की ओर दबाता है, जिससे तरल दूध गिलास की बाहरी सतह पर बहने लगता है। ऐसा केवल दूध के ही साथ नहीं होता; बल्कि यह क्रिया किसी भी तरल के साथ हो सकती है।
यहां यह बात याद रखने की है कि यदि हम गिलास से जल्दी और बड़ी तेजी के साथ दूध गिराएं, तो दोनों परतों के दबाव में शायद ही कोई अंतर होता है। इसलिए दूध एक समूची धार के रूप में गिलास से बाहर निकलने लगता है, अतः इस स्थिति में गिलास की बाहरी परत पर दूध चिपककर नहीं चल पाता।
नवजात शिशु अपनी मां को कैसे पहचान लेता है ?
नवजात बच्चे की अपनी मां से संपर्कता उसके पैदा होने से पहले ही मां के पेट में होना प्रारंभ हो जाती है। जब वह मां के पेट में होता है, तो वह मां के हृदय की धड़कन और मां की आवाज से परिचित होने लगता है। जैसे बच्चा पैदा होता है; मां अपने बच्चे को पकड़ती है और कलेजे से लगाती है। इससे बच्चे को केवल आराम ही नहीं मिलता; बल्कि बच्चे को अपनी मां से बहुत जल्दी संपर्क और संबंध स्थापित करने में सहायता मिलती है। वैसे भी मां बच्चे को खिलाने-पिलाने, नहलाने-धुलाने आदि में अधिकतर उसके संपर्क में रहती है, जो मां को पहचानने में सहायक होती है। इसके अतिरिक्त मां के संपर्क में रहते-रहते बच्चा मां के शरीर की गंध से भी परिचित हो जाता है, जो उसे अपनी मां को पहचानने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः इन्हीं कारणों से नवजात शिशु अपनी मां को आसानी से पहचान लेता है, हालांकि उसने अपनी मां को पहले से देखा नहीं होता है।
कांच या शीशा टूट क्यों जाता है ?
किसी भी वस्तु में यह गुण कि वह टूटनेवाला भंगुर है या वह मुलायम, कठोर, चीमड़ आदि है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस वस्तु के परमाणु या अणु उसमें किस तरह से व्यवस्थित हैं तथा उसके परमाणु तथा अणुओं के बीच के बांडों की प्रकृति क्या है? जब किसी भी वस्तु या पदार्थ पर कोई बल लगाया जाता है तो वह उसे तभी सहन कर सकता है जब उसके परमाणु या अणु इस तरह बांडित हों कि वे अपने स्थानों को बांड़ों को तोड़े बिना परिवर्तित कर सकें। यदि ऐसा नहीं होता, तो वह वस्तु या पदार्थ बल से टूट जाता है। धातुओं में बल पड़ने पर उनके परमाणु बल लगाने के स्थान से नए स्थानों की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं और वहां नए जोड़, अर्थात् टाई बना लेते हैं। अपने पड़ोसी परमाणुओं के साथ इस प्रक्रिया को विरूपण प्रक्रिया कहा जाता है; क्योंकि इसमें परमाणुओं के बीच बांड लचीले होते हैं और वे जल्दी-जल्दी टूटकर आसानी से पुनः जुड़ जाते हैं। इसीलिए धातुएं बल लगने पर आसानी से नहीं टूटती हैं। लेकिन कांच के अंदर अनेक तरह के परमाणुओं की किस्में होती हैं, क्योंकि उसमें सिलिकन, ऑक्सीजन, बोरान तथा कुछ धातुओं आदि का सम्मिश्रण होता है, यह कठोर बांडों से आपस में जुड़े रहते हैं। इसलिए इन पर, अर्थात् कांच पर जब बल पड़ता है, तो इनमें परमाणु स्थानांतरित होने के बाद फिर से जुड़ नहीं पाते हैं और कांच बल लगने पर आसानी से टूट जाता है।
लाजवंती की पत्तियां छूते ही बंद क्यों हो जाती हैं?
‘टच मी नॉट’ पौधे को ‘लाजवंती’ या ‘छुइमुई’ भी कहा जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम ‘मिमोसा प्यूडिका’ है। इस पौधे की यह विशेषता होती है कि इसकी पत्तियों को अगर छू लिया जाए, तो वे बंद हो जाती हैं। इस पौधे की पत्तियों में नलीनुमा संरचना होती है, जिसमें द्रव भरा रहता है। पत्तियों में मौजूद यही द्रव उनके बंद होने और खुलने के लिए जिम्मेदार होता है। पत्तियां तने के फूले हुए जिस स्थान पर जुड़ी रहती हैं, उसे ‘पल्विनस’ कहते हैं। इस पौधे की पत्तियों को जैसे ही छुआ जाता है, पल्विनस की कोशिकाओं द्वारा एक विद्युतीय संकेत प्रेषित किया जाता है। इसके मिलते ही पत्तियों की नलियों द्वारा द्रव छोड़ दिया जाता है। इस द्रव में पानी के साथ पोटेशियम भी होता है । यह क्रिया बड़ी तीव्रता से होती है। पौधे की पत्तियों में अचानक हुई पानी की इस कमी के कारण पत्तियां अपने जोड़ पर झुक जाती हैं। इस कारण से पत्तियां बंद हो जाती हैं। कुछ समय बाद पौधे की पत्तियों में हुई पानी की इस कमी को पौधा पूरी कर लेता है और पत्तियां पुनः खुल जाती हैं। पौधों में होने वाली इस प्रतिक्रिया को सबसे पहले भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने खोजा था। उन्होंने सिद्ध किया था कि पौधों को भी पीड़ा होती है।
हाथ से छूने पर लकड़ी गरम और धातुएं ठंडी क्यों लगती हैं?
कोई भी वस्तु छूने पर हमें ठंडी या गरम लगना इस बात पर निर्भर करता है कि वह वस्तु उष्मा के प्रति सुचालक है या कुचालक ? और उस वस्तु से उष्मा हमारे हाथों की ओर आ रही है या हाथों से वस्तु की ओर जा रही है? लकड़ी उष्मा के प्रति कुचालक होती है, अतः उससे उष्मा हाथ की ओर न आती है और न हाथ से लकड़ी में जाती है। इसलिए वह छूने पर ठंडी नहीं लगती है। धातुएं उष्मा की सुचालक होती हैं, अतः धातुओं से उष्मा हाथ की ओर आती भी है और हाथ से उनमें जाती भी है। जब उष्मा धातुओं से हाथ में आती है, तो वे (धातुएँ) गरम लगती हैं और जब उष्मा हाथ से धातुओं में जाती है तो वे ठंडी लगती हैं। धातुएं छूने पर विशेषतः सर्दियों में ही ठंडी लगती हैं, क्योंकि जब वातावरण का तापमान हमारे शरीर के तापमान से कम होता है। अतः इन्हीं परिस्थितियों के अनुसार हाथ से छूने पर लकड़ी गरम और धातुएं ठंडी लगती हैं।
बरसात के दिनों में पेशाब ज्यादा क्यों आता है ?
हमारे शरीर के अंदर बन रहे अवांछित पदार्थों को बाहर निकाले जाने हेतु जो व्यवस्थाएं हैं, उनमें फेफड़े कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर फेंकने का और त्वचा लवणों को पसीने के साथ-साथ निकालने का तथा पेशाब तंत्र पेशाब के द्वारा नाइट्रोजनी अपशिष्टों को बाहर निकालने का कार्य करते हैं और हम स्वस्थ रहते हैं। गरमियों में हमें पसीना बहुत आता है, अतः हम जो भी पानी पीते हैं उसका एक बड़ा भाग इस पसीने के द्वारा शरीर से बाहर निकलता रहता है। लेकिन बरसात के मौसम में हमें पसीना नहीं के बराबर आता है; इसलिए इस माध्यम से शरीर का पानी एवं अन्य अवांछित पदार्थ बहुत कम या नहीं के बराबर निकल पाते हैं। अतः इन्हें निकालने के दूसरे साधन अर्थात् पेशाब तंत्र का कार्य बढ़ जाता है और हमें बरसात के दिनों में अधिक पेशाब आने लगता है।
हवाई जहाज में यात्रियों को फाउंटेनपेन की स्याही उड़ेलने के लिए क्यों कहा जाता है ?
फाउंटेनपेन में भरी हुई स्याही पेन में इसलिए भरी रहती है, क्योंकि पेन में स्याही का दबाव और बाहर वायुमंडल में हवा का दबाव एक-दूसरे को संतुलित बनाए रखते हैं। लेकिन जब हम धरती से ऊंचाई की ओर चढ़ने लगते हैं, तो ऊंचाई के साथ हवा का दबाव कम होता जाता है। इसलिए जब हम हवाई जहाज में आकाश की ऊंचाइयों में उड़ रहे होते हैं तो वहां हवा का दबाव और भी कम हो जाता है। इस दबाव के कम होने से पेन में भरी हुई स्याही, पेन में स्याही के अधिक दबाव के कारण अपने आप बाहर निकल आती है और कपड़ों को खराब कर देती है। इसीलिए फाउंटेन पेन की स्याही को हवाईजहाज में चढ़ते समय खाली कर देने को कहा जाता है। लेकिन आजकल वैज्ञानिक खोजों के परिणामस्वरूप जहाजों में दबाव को संतुलित बनाए रखने की व्यवस्था भी होती है, इसलिए यह समस्या अधिक गंभीर तो नहीं होती; फिर भी दबाव में थोड़ा भी अंतर होने पर पेन से स्याही बाहर निकल आने की संभावना तो बनी ही रहती है।
बैडमिंटन की शटलकाक मार्ग में अपना रुख क्यों बदल लेती है ?
शटलकाक पर जब रैकिट पड़ता है, तो वह हवा में पहले तो गेंद की तरह जाती है; लेकिन थोड़ी दूरी तय करने के बाद हवा में उसका रुख बदल जाता है और वह बदले हुए रुख के साथ ही सीधी आगे बढ़ती जाती है। इस क्रिया का कारण यह है कि शटलकाक मुख्यतः दो भागों से मिलकर बनी होती है। हलके पंखों की शंकु की तरह की कतार और नीचे भारी कार्क की अर्धगोलाकार गेंद। कुछ शटलें पूरी प्लास्टिक की भी बनी होती हैं, लेकिन उनकी आकृति इसी तरह की होती है।
जब शटल पर रैकिट की चोट पड़ती है तो वह पंखों के फैले रुख की ओर हवा में उछलती है। यही फैले पंख उसे हवा में मुड़ने को प्रेरित करते हैं। शटल में लगी भारी कार्क के कारण भी वह मुड़ना प्रारंभ करती है। इस तरह शटल की बनावट और एक सिरे पर लगी कार्क दोनों के प्रभाव से वह हवा में रुख पलटकर आगे बढ़ती जाती है। जब दूसरी तरफ पहुंचने पर दूसरा खिलाड़ी उस पर रैकिट से चोट मारता है, तो यही क्रिया पुनः होती है और शटल रुख बदलकर रैकिट की चोट खाकर आती और जाती रहती है। इस क्रिया में शटल में लगे भारी कार्क की गति मात्रा उसे आगे ही आगे जाने में सहायक होती है। तभी तो वह रुख बदलने के बाद भी आगे की ओर चलती रहती है।
स्टेनलैस स्टील में लोहा होने पर भी इस पर चुंबक का असर क्यों नहीं होता है ?
कोई धातु चुंबक तब बनती है, जब उसके चुंबकीय परमाणु और अणु, जिन्हें ‘वेवर एलीमेंट’ कहते हैं, एक-दूसरे के समानांतर पंक्तिबद्ध हो जाते हैं। ठीक इसके विपरीत जब ये ‘वेवर एलीमेंट’ तितर-बितर हो जाते हैं, तो धातु का चुंबकीय प्रभाव समाप्त हो जाता है। हां, स्टेनलैस स्टील में लोहा पर्याप्त मात्रा में होता है, लेकिन लोहे पर जंग न लग सके, इसलिए उसमें क्रोमियम मिलाया जाता है। क्रोमियम के ‘वेवर एलीमेंट’ चुंबक बनने के गुण नहीं रखते हैं। इसके अतिरिक्त स्टेनलैस स्टील में निकेल और कार्बन की भी कुछ मात्रा मिलाई जाती है। इस तरह लोहा, क्रोमियम, निकेल तथा कार्बन आदि से मिलकर जब स्टेनलैस स्टील बनती है, तो उसके ‘वेवर एलीमेंट’ एक-दूसरे के साथ गड्ड-मड्ड हो जाने से उसके चुंबकीय प्रभाव में शून्यता आ जाती है। एक तरह से स्टेनलैस स्टील में अचुंबकीय बन जाने का गुण विकसित हो जाता है। तभी तो चुंबक लगाकर स्टेनलैस स्टील की गुणता को परख लिया जाता है, क्योंकि इसमें लोहा होने पर भी चुंबक का असर नहीं होता है।
हेलीकॉप्टर हवा में स्थिर हो जाता है, तो हवाई जहाज क्यों नहीं हो पाता? 
हेलीकॉप्टर तथा हवाईजहाज हवा में तब ऊपर उठते हैं, जब उनकी बॉडी तथा पंखों पर नीचे से ऊपर को उठान बल मिलता है। हवाईजहाज हवाईपट्टी पर दौड़कर यह बल प्राप्त करता है और ऊपर उठता है, अतः वह स्थिर होने पर यह बल प्राप्त नहीं कर सकता, इसलिए चलता ही रहता है और स्थिर नहीं हो पाता है। जबकि हेलीकॉप्टर तब ऊपर उठता है, जब उसके ऊपर लगे रोटर ब्लेड तेज गति से चक्कर लगाकर यह बल पैदा करते हैं । एक खास गति पर हेलीकॉप्टर का भार और रोटर ब्लेडों से पैदा हुआ उठान बल संतुलित हो जाता है। इसके बाद लगने वाले बल से हेलीकॉप्टर ऊपर उठने लगता है। हवा में उड़ने पर जब रोटर ब्लेडों की गति से पायलट उठान बल और हेलीकॉप्टर के भार बल में संतुलन पैदा कर देता है, तभी वह उस स्थान पर स्थिर हो जाता है। ऐसा हवाईजहाज में नहीं हो सकता, इसलिए वे एक स्थान पर स्थिर नहीं हो सकते।
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