ऐसा क्यों और कैसे होता है -15

ऐसा क्यों और कैसे होता है -15

मशीन झूठ कैसे पकड़ती है?
सन् 1921 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के जॉन ए लारसन नामक विद्यार्थी ने एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया था, जो झूठ बोलने से शारीरिक क्रियाओं में होने वाले परिवर्तनों का लेखा-जोखा करके झूठ-सच का पता लगा लेता है। इस यंत्र को पॉलीग्राफ या लाई डिटेक्टर कहते हैं। सन् 1972 में अमेरिका के आविष्कारक एलन बेल ने इस लाई डिटेक्टर का एक दूसरा सुधरा हुआ और बेहतर मॉडल विकसित किया। इसके द्वारा व्यक्ति की शारीरिक क्रियाओं में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तन का भी पता लग जाता है। आइए जानें यह यंत्र झूठ क्यों पकड़ लेता है? झूठ बोलने पर मनुष्य की शारीरिक क्रियाओं में कुछ परिवर्तन होते हैं। जैसे झूठ बोलने पर दिल की धड़कन बढ़ जाती है। पसीना आने लगता है और खून का दबाव बढ़ जाता है। यह यंत्र इन्हीं सब परिवर्तनों का लेखा-जोखा रखकर यह पता लगा लेता है कि व्यक्ति झूठ बोल और रहा है या सच? जब किसी अपराधी के झूठ सच का परीक्षण करना होता है, तो इस यंत्र के अलग-अलग भागों को शरीर के अंगों के साथ जोड़ दिया जाता है। इसके बाद एक व्यक्ति परीक्षक के है। इन रूप में अपराधी से संबंधित प्रश्न पूछता प्रश्नों से होने वाले शारीरिक परिवर्तनों को यह यंत्र रिकॉर्ड करता जाता है। इसी रिकॉर्ड के आधार पर झूठ और सच का पता लगाया जाता है।
ठेले को धक्के के बजाय खींचकर चलाना क्यों आसान होता है ?
किसी भी हाथ ठेले पर स्थिर अवस्था में चल अवस्था हेतु दो बल कार्य कर रहे होते हैं। इनके नाम हैं क्षैतिज बल और ऊर्ध्वाधर बल। क्षैतिज बल से वस्तु या ठेली धरती पर सरकने लगती है और ऊर्ध्वाकार बल से धरती से जुड़ी या सटी रहती है। जब हम हाथ ठेले को धकेलते हैं तो उस पर ऊर्ध्वाकार बल ऊपर से नीचे की ओर पड़ता है। ठेले पर स्वयं के भार का ऊर्ध्वाकार बल पहले ही पड़ रहा होता है, अतः धकेलने पर ठेले का ऊर्ध्वाकार बल और भी बढ़ जाता है। अतः ठेले के धकेलने में अधिक क्षैतिज बल लगाना पड़ता है। लेकिन जब ठेले को खींचते हैं तो ठेले पर नीचे से ऊपर की ओर ऊर्ध्वाकार बल के विपरीत बल लगता है, जिससे ठेले का अपना ऊर्ध्वाकार बल कम हो जाता है, अतः ठेले को खींचने में कम क्षैतिज बल लगाना पड़ता है। इसीलिए हाथ ठेले को धक्का देने के बजाय खींचकर चलाना आसान होता है।
दौड़ते वाहन का फोटो धुंधला क्यों आता है?
कैमरे से खींचे गए फोटोग्राफ का साफ और धुंधला आना इस बात पर निर्भर करता है कि कैमरे का शटर किस रफ्तार से चलता है, तथा चित्र को फिल्म पर आने के लिए उसका शटर कम-से-कम समय तक खुलता है या नहीं। यदि शटर दौड़ते वाहन को फिल्म पर कैद करने के लिए उचित व कम समय के लिए खुलता है, तो अच्छा और साफ फोटो आएगा। यदि ऐसा नहीं है, तो धुंधला फोटो आएगा। वैसे कैमरे के हिल जाने से भी चित्र धुंधला आता है। इसलिए दौड़ते वाहनों की अच्छी तस्वीर खींचने के लिए तेज गति से चलनेवाले अच्छे शटरवाले कैमरे उपयोग किए जाते हैं, जिससे कम-से-कम समय में दौड़ते वाहन का साफ चित्र उतारा जा सके, अन्यथा फोटो धुंधला आएगा। सामान्य घरेलू कैमरों में शटर की रफ्तार दौड़ते वाहनों के फोटो खींचने के अनुकूल नहीं होती, इसलिए घरेलू कैमरों से दौड़ते वाहनों के चित्र धुंधले आ सकते हैं।
ग्रैंड केन्यन को प्रकृति का जादू क्यों माना जाता है ?
अमेरिका के एरिजोना प्रांत में स्थित ग्रैंड कैन्यन एक प्राकृतिक आश्चर्य है। इसे अपनी रंग-बिरंगी चट्टानों और भव्य दृश्यों के कारण विश्व के सात आश्चर्यो में शामिल किया गया है। कहीं-कहीं तो इसकी चट्टानें जादू के शहर जैसी प्रतीत होती हैं और इसके मंदिर, मीनारें और दुर्ग अलग-अलग व चटक रंगों के दिखाई देते हैं। ग्रैंड कैन्यन को कोलरैडो नदी की घाटी में निरंतर हो रहे क्षरण के कारण यह रूप मिला है। कोलेरैडो नदी के पानी ने हजारों सालों में काट-छांट कर इस अत्यंत सुंदर दृश्य को जन्म दिया है। इस बात पर आश्चर्य तो होता है कि ये मंदिर और मीनारें पानी के बहाव के कारण ठोस चट्टानों से कट कर तैयार हुई हैं। आज भी इस नदी के पानी का बहाव उस घाटी को और भी गहरा करता जा रहा है। ग्रैंड कैन्यन की लंबाई 347.2 किमी और चौड़ाई 6.4 किमी से 46.4 किमी तक घटती-बढ़ती रहती है। इस कैन्यन की गहराई कहीं-कहीं दो किमी तक है। कोलेरैडो नदी वर्षों से धीरे-धीरे एरिजोना के उत्तरी पठारों को काटती रही और इन्हें वर्तमान रूप दे दिया।
पारदर्शी कांच के किनारे हरिताभ क्यों दिखते हैं?
कांच में जिस तरह की अशुद्धियां होती हैं, उसी के अनुसार वे विविध तरह के रंगों की आभा दर्शाते हैं। जब कांच के अंदर Fe3 + आइनें होते हैं, तो वह हरिताभ आभा दर्शाते हैं। सामान्यतः सस्ती किस्म के कांच अच्छी तरह परिशुद्ध नहीं किए जाते; इसलिए उनमें हरिताभ आभा देनेवाली अशुद्धियां रह जाती हैं। इसलिए जब इस तरह के कांच की शीट के किनारे को देखते हैं तो वे हरिताभ लगते हैं; क्योंकि कांच के रंग की आभा किनारों के साथ दर्शक को बढ़कर दिखाई देती है। जब रंगीन कांच बनाने होते हैं, तो कांच में वे अशुद्धियां मिलाई जाती हैं जो इच्छित प्रकार के रंग की आभा देती हैं। इसीलिए पारदर्शी कांच उनमें पाई जाने वाली अशुद्धि के कारण किनारों पर हरिताभ दिखाई देते हैं।
मोड़ पर मुड़ते समय साइकलसवार अंदर की ओर जबकि कार सवार बाहर की ओर क्यों धकेले जाते हैं।
इस क्रिया का मुख्य कारण ‘अपकेंद्री बल’ होता है; जो साइकल तथा कार के दौड़ते समय कार्य करता है। यह बल साइकल सवार को मोड़ पर मुड़ते समय बाहर की ओर फेंकता है, जिसे संतुलित करने के लिए साइकल सवार को अपने को अंदर की ओर मोड़ना पड़ता है, अन्यथा वह असंतुलित होकर गिर सकता है। लेकिन जब कार मोड़ पर मुड़ रही होती है, तो उसमें बैठे यात्री अपने शरीर को झुका नहीं पाते हैं और वे बाहर की ओर फेंक दिए जाते हैं। कार चार पहिएवाला वाहन होने से साइकल और साइकलसवार की तरह मोड़ों पर झुक नहीं पाती, अन्यथा कार में बैठी सवारी भी कार के साथ झुककर संतुलन बनाए रखने में सहायक हो सकती थी। ऐसा न होने से कार की सवारी बाहर की ओर धकेल दी जाती है।
आकाश में बादल क्यों तैरते हैं?
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से हम सभी परिचित हैं। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल प्रत्येक वस्तु को धरती पर आने के लिए प्रेरित करता है। आइए जानें इस बल के होने के बावजूद बादल आकाश में क्यों तैर पाते हैं? बादल दरअसल समुद्र, नदियों, तालाबों और धरती में उपस्थित जल के वाष्पीकरण के फलस्वरूप बनते हैं। सूर्य की किरणों द्वारा जल के वाष्पीकरण के कारण बनी गर्म वायु अपने साथ जलवाष्प भी ले जाती है। ठंडी वायु से हलकी होने के कारण गर्म वायु ऊपर रहती है। ऊपर जाने पर इसका फैलाव होने पर जब यह ठंडी हो जाती है, तो बादलों का रूप ले लेती है। बादलों के आकार – प्रकार पर गुरुत्वाकर्षण बल असर करता है। वायु में उपस्थित अतिरिक्त वाष्प  पानी की बूंदों और बर्फ के कणों में परिवर्तित हो जाती है। गर्म वायु की तुलना में ठंडी वायु ज्यादा समय तक पानी की बूंदों को नहीं रोक पाती है। बादल में उपस्थित बर्फ के कण और पानी की बूंदें गुरुत्वाकर्षण बल के कारण वर्षा के रूप में नीचे आ जाती हैं। गुरुत्व बल के कारण बादलों की आकृति बदलती रहती है लेकिन आयतन अधिक होने के कारण बादलों का घनत्व कम होता है । इस कारण बादलों का भार वायु में कम रहता है और वे तैरते रहते हैं।
मकड़ी अपने जाले में फंसती क्यों नहीं?
मकड़ी उड़ते हुए कीड़ों आदि को फंसाकर पकड़ने के लिए जाला बुनकर फैलाती है, क्योंकि वे उसके भोजन आदि हेतु शिकार होते हैं। उड़ते कीड़ों को जाल का कोई पूर्व आभास नहीं होता है, अतः वे आते उड़कर हुए मकड़ी के जाले से टकरा जाते हैं। यह स्थिति उनके लिए बड़े अचंभे की होती है। जब तक वे होश में आकर बचने के लिए कुछ करना चाहते हैं तब तक मकड़ी बड़ी फुरती से उनके पास आकर अपने जाले से उन्हें चारों तरफ से कसकर बांध देती है। जिसमें कीड़े फंस ही रह जाते हैं। इतना ही नहीं, मकड़ी कीटों को जाल से कसने के पहले उन्हें डंक मारकर विषैले पदार्थ द्वारा अचेत भी कर देती है; ताकि कीड़े किसी तरह भाग न सकें। इस तरह कीड़े अचानक जाले से टकराने के कारण गिरफ्त में आ जाते हैं, जबकि मकड़ी को जाले की पूरी स्थिति का पता होता है; इसलिए वह उस पर उसी के अनुसार चलने की अभ्यस्त होने से बची रहती है।
पर्वत चोटी पर बर्फ क्यों होती है?
पर्वतों की चोटी सर्वाधिक ऊंचाई पर होती है, इसलिए वह जमीन की तुलना में सूरज के ज्यादा करीब होती है। इस कारण ऐसा लगता है कि पहाड़ों की चोटी पर लहटी की तुलना में ज्यादा गर्मी होनी चाहिए। यदि ऐसा है तो वहां बर्फ क्यों पाई जाती है? आइए जानें ऐसा क्यों होता है। दरअसल, पहाड़ की चोटी पहाड़ के अन्य स्थानों की तुलना में सबसे ठंडा स्थान होती है। पहाड़ों की तलहटी में वातावरण सघन होता है, इस कारण सूर्य की किरणों को वह ज्यादा से ज्यादा अवशोषित कर लेता है। इसके साथ ही धरती द्वारा अवशोषित और उत्सर्जित ऊष्मा भी साथ मिलकर वहां का तापमान बढ़ा देती है। जैसे-जैसे पहाड़ पर ऊपर की तरफ बढ़ते जाते हैं, वातावरण उत्तरोत्तर विरल होता जाता है। वहीं पहाड़ की चोटी पर वातावरण सबसे विरल होता है। इस कारण पहाड़ की चोटी का वातावरण सूर्य की किरणों को सोख नहीं पाता है और वहां पर तापमान पहाड़ के अन्य स्थान की तुलना में सबसे कम रहता है। पहाड़ों की चोटी पर तापमान बहुत कम होने की वजह से वहां पर बर्फ होती है।
चंद्रमा को हम कृत्रिम उपग्रह की तरह प्रयोग क्यों नहीं कर सकते?
हम जिन कृत्रिम संचार उपग्रहों को संचार कार्यों के लिए उपयोग करते हैं वे इस कार्य के लिए तीन भूमिकाएं निभाते हैं। जिन संचार सिगनलों को हम भू-केंद्रों से उन्हें भेजते हैं, उन्हें वे प्राप्त करते हैं, उनको संसाधित करते हैं और इसके बाद उन्हें धरती पर भू-केंद्रों को अथवा अन्य कृत्रिम संचार उपग्रह में अनेक इलेक्ट्रॉनिक पद्धतियों से युक्त उपकरण लगे होते हैं। इसके अतिरिक्त सभी संचार उपग्रह भू स्थिर कक्षा में रखे जाते हैं, इससे वे भू- केंद्रों के संपर्क में रहते हैं। कृत्रिम उपग्रहों की तुलना में प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा की आकाश में कोई निश्चित स्थिति नहीं होती है और पृथ्वी से अधिक दूरी के कारण चंद्रमा को सिगनल पहुंचाकर वापस लाने में अधिक समय भी लगेगा, जबकि कृत्रिम उपग्रह में यह समय केवल 1/4 सैकंड लगता है। इसलिए चंद्रमा से आए सिगनल बहुत हलके, होंगे जिनका संचार में अच्छा उपयोग भी नहीं हो सकेगा। अतः संचार कार्यों के लिए संचार उपग्रहों में जो बातें आवश्यक होती हैं. चंद्रमा में अभाव होने से उसे हम कृत्रिम संचार उपग्रहों की तरह उपयोग नहीं कर सकते हैं।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *