ऐसा क्यों और कैसे होता है -11
ऐसा क्यों और कैसे होता है -11
हमें उड़ते हवाई जहाज की छाया क्यों नहीं दिखाई देती ?
किसी भी वस्तु की छाया इस बात पर निर्भर करती है कि उस वस्तु पर प्रकाश पड़ने का स्रोत क्या है और वह कितनी दूरी पर है, तथा छाया कहां पड़े या जहां पड़े वहां छाया के पड़ने और दिखाई देने का क्या कोई उचित माध्यम है या नहीं? इसके अतिरिक्त प्रकाश देनेवाला माध्यम किसी बिंदु पर प्रकाश डाल रहा है या वह चारों ओर फैल रहा है?
यदि प्रकाश का स्रोत बिंदु स्रोत है तो उससे बननेवाली छाया गहरी काली होती है। जिसे हम प्रच्छाया कह सकते हैं। लेकिन सूर्य का प्रकाश बिंदु स्रोत नहीं है, उसका प्रकाश सभी ओर से है। इसलिए सुदूर आकाश में उड़ते हवाई जहाज की जो भी प्रच्छाया बनती है; उसके चारों ओर उपछाया भी बनती है। आकाश में हवाई जहाज बहुत छोटी वस्तु है, अतः उसकी प्रच्छाया और उपछाया इतनी बड़ी नहीं होती कि वे हमें चंद्रग्रहण की तरह दिखाई देने लगें। हमें हवाई जहाज की छाया तभी दिखाई देती है, जब वह कम ऊंचाई पर उड़ रहा होता है। इस समय उसकी छाया धरती तक आ जाती है और उसे हम देख सकते हैं। लेकिन आकाश में ऊंचे उड़ रहे हवाई जहाजों की छाया धरती को नहीं छू पाती है, इसलिए हम उड़ते हवाई जहाज की छाया नहीं देख पाते हैं।
कपास के पौधे को सूर्य पुत्री क्यों कहते हैं?
प्राचीनकाल में कपास के पौधे को लोग ‘सूर्य की पुत्री’ की संज्ञा देते थे। इसका कारण था कि केवल रुई का पौधा ही सूर्य की शक्तिशाली किरणों द्वारा बढ़ता और पनपता है। आइए जानें कि कपास के पौधे को सूर्य की पुत्री क्यों कहा जाता है? असल में कपास के पौधों को आरंभ में पानी की बहुत आवश्यकता होती है। यह जरूरत पौधों में फल आने तक बनी रहती है, लेकिन फल के फटते ही पौधों को तेज धूप की ज़रूरत होती है। अगर फल के फटने के बाद बारिश हो जाए, तो कपास के फूल पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं, जबकि सूर्य की गर्मी रुई के रेशे को अधिक सफेद और मजबूत बनाती हैं। इसी कारण कपास को सूर्य की पुत्री कहा जाता है। इतना ही नहीं, कपास की खेती 37 अंश उत्तर और 37 अंश दक्षिण अक्षांशों के बीच में स्थित पृथ्वी के भागों में भी इसीलिए की जाती है। समस्त विश्व में इस पट्टी के अंतर्गत लगभग 7200 किमी की ऐसी चौड़ाई है, जिसमें कपास उगाने के लिए आवश्यक परिस्थितियां उपलब्ध हैं। इस क्षेत्र में अच्छी बारिश होने के साथ ही अच्छी गर्मी और अच्छा प्रकाश भी होता है।
वायरस जीवित प्राणियों पर ही क्यों पनपते हैं ?
वायरस ऐसे जीव होते हैं, जो हमें आंख से दिखाई नहीं देते और अपने आकार-प्रकार में बहुत सरल होते हैं। इनकी सरलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन पर प्रोटीन का एक आवरण होता है; जिसमें आनुवंशिक पदार्थ डी.एन.ए. अथवा आर.एन.ए. की बहुत अल्पमात्रा होती है। अतः इनमें जीवन की विविध क्रियाओं को करने हेतु कोई भी सूचना अथवा व्यवस्था नहीं होती है। वे केवल पोषक की कोशिकाओं पर आक्रमण करके उसकी क्रियाओं को अपने लाभ के लिए उपयोग कर सकते हैं और जब पोषक इनके शोषण से मर जाता है, तो वे अन्य जीवित पोषक की तलाश में निकल पड़ते हैं। इस तरह वायरस पूरी तरह परपोषी होने के कारण जीवित प्राणियों पर ही पनपते हैं।
पके हुए केले फ्रिज में क्यों खराब हो जाते हैं?
केला अधिकतर गरम प्रदेशों का फल है, इसलिए यह उपोष्ण जलवायु में ठीक रहता है । यह कम तापमान को सहन नहीं कर पाता है। केले पर अधिक ठंडक या बर्फ आदि का बुरा प्रभाव पड़ता है। इसीलिए जब हम पके हुए केलों को फ्रिज में रखते हैं तो उन पर आक्सीडेज नामक एंजाइम क्रिया करने लगते हैं जो उन्हें काले रंग के साथ लिपलिपा-सा बना देते हैं। परिणामस्वरूप फ्रिज में पके केले जल्दी खराब हो जाते हैं, इसलिए फ्रिज में पके केले नहीं रखने चाहिए। हां, यदि आप रखना ही चाहते हैं, तो अपने फ्रिज में कच्चे केले रख सकते हैं, लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि जैसे ही कच्चे केले पकने लगें, उन्हें वहां से निकाल लेना चाहिए, अन्यथा वे खराब होने लगेंगे। अतः फ्रिज में पके केले अधिक ठंडक और आक्सीडेज एंजाइम की क्रिया के कारण खराब हो जाते हैं।
बाढ़ क्यों आती है?
यदि इतिहास पर नजर डाली जाए शुरू ही भीषण बाढ़ों का विवरण मिलता है। ऐसा माना जाता है कि आदिमानव नदी के किनारे इसलिए बसते थे, ताकि उन्हें पानी की कोई दिक्कत न हो और बारिश के मौसम में आने वाली बाढ़ उनकी जमीन को उपजाऊ बना जाए। जब भी किसी नदी में बारिश के कारण पानी का बहाव बढ़ जाता है, तो नदी की धारा किनारे तोड़कर सभी तरफ बहने लगती है। इसे ही बाढ़ आना कहते हैं। आइए जानें कि आखिर बाढ़ आती क्यों है? जब किसी नदी में भारी वर्षा होती है तो आसपास के नदी नालों में बहुत पानी आ जाता है, तब नदी किनारों को तोड़कर बहने लगती है।
यद्यपि नदी में पानी के प्रवाह का काफी क्षेत्रफल होता है, लेकिन यदि पानी की मात्रा बहुत अधिक हो जाए, तो नदी में बाढ़ आ जाती है। बाढ़ों की माप उनमें बहने . वाले पानी की ऊंचाई, पानी के बहाव के आयतन तथा प्रभावित होने वाले क्षेत्र से की जाती है। इन्हीं के आधार पर बाढ़ नियंत्रण के तरीके अपनाए जाते हैं। बाढ़ जहां एक ओर मिट्टी की उपजाऊ परत को अपने साथ बहाकर उसे ऊसर बना जाती है, वहीं लौटते समय मार्ग में आने वाली भूमि की उर्वरकता बढ़ा जाती है।
पशु अपना शरीर जीभ से चाटते क्यों रहते हैं?
हम तो अपने शरीर को साफ-सुथरा रखने के लिए हाथ-पैरों का इस्तेमाल कर लेते हैं; लेकिन पशु ऐसा नहीं कर पाते इसीलिए पशु अपनी नम जीभ से शरीर को चाटकर अपनी सफाई करने का कुछ कार्य पूरा कर लेते हैं। कभी-कभी पशुओं को शरीर पर कुछ चुनचुनाहट एवं खुजली आदि का आभास भी होता है। इसमें राहत के लिए भी पशु चाटना प्रारंभ करते रहते हैं। पशुओं की लार में कुछ एंटीबाड़ी होती हैं, जो हानिकारक विषाणु और जीवाणुओं को अक्रिय कर देती हैं। पशुओं की लार के इस गुण के कारण पशुओं को अपने शरीर के घाव आदि ठीक करने में सहायता मिलती है, इसलिए पशु अपने घावों को भी चाटते पाए जाते हैं।
शरीर चाटने से पशुओं को अपनी देह ठंडी रखने में भी सहायता मिलती है। कुछ पशु हाफं- हाफंकर और कुछ पसीना निकालकर गर्मी शांत कर लेते हैं। जबकि प्राकृतिक तौर पर मनुष्य पसीना निकालकर और कुत्ते हाफं कर अपने को ठंडा रखते देखे जाते हैं। लेकिन यह क्रिया सभी तरह के पशुओं द्वारा नहीं अपनाई जा सकती है; क्योंकि पसीना निकालने और हांफने की क्रिया कुछ प्रकार के पशुओं में ही होती है। इसलिए कुछ प्रकार के पशु अपने को ठंडा रखने के लिए जीभ से अपने शरीर को चाटते रहते हैं। जीभ से शरीर पर लगाई गई लार जब वाष्पीकृत होती है तो शरीर को ठंडक मिलती है। यह क्रिया क्रतंकों, थैलीवाले पशुओं और बिल्लियों आदि में प्रमुखता से देखी जाती है। इसी तरह के विविध लाभों के कारण पशु अपना शरीर जीभ से चाटते रहते हैं।
गुफाओं में बर्फ के स्तंभ क्यों बनते हैं?
कई जाते हैं, जिन्हें आरोही निक्षेप (स्टेलेकटाइट) और निलंबी निक्षेप (स्टेलेगमाइट) कहते हैं। आरोही निक्षेप बर्फ से बनी हिमवर्तिका ( बर्फ की बत्तियों) की तरह गुफाओं की छत से लटकते हैं, जबकि निलंबी निक्षेप गुफा के फर्श से खंभे या शंकु की तरह ऊपर की ओर उठे होते हैं। आइए जानें कैसे बनती हैं बर्फ की ये चट्टानें? असल में गुफाएं मुख्यत: उन पहाड़ों पर होती हैं, जहां चूना पत्थर और खड़िया से मिश्रित चट्टानें पाई जाती हैं। चूना पत्थर काफी मुलायम व कैल्शियम कार्बोनेट से बना होता है। यह हलके तेजाब में भी घुल जाता है। चूना पत्थर को घोलने वाला तेजाब वर्षा के पानी से आता है, जो कि हवा में मौजूद कार्बन-डाइ-ऑक्साइड से प्रतिक्रिया के कारण बना कार्बनिक अम्ल होता है। यह अम्ल ही चूना पत्थर को विघटित कर देता है। गुफाओं की दीवारों से गिरने वाला पानी बूंदों के रूप में लगातार टपकता और भाप बनाता रहता है। इससे गुफाओं की छत पर हिमवर्तिकाएं बनती रहती हैं। पानी में कैल्शियम कार्बोनेट की लगातार आने वाली परत इसे बड़ा व ठोस करती जाती है। यही आरोही निक्षेप होते हैं।
क्या अंधे लोग भी सपने देख सकते हैं?
जब हम सो रहे होते हैं, तो हमारे मस्तिष्क के वे भाग, जो देखने का कार्य निभाते हैं, अक्रिय हो जाते हैं। इन्हें विजुअल कॉर्टेक्स कहते हैं। लेकिन जब हम स्वप्न देखते हैं तो ये भाग अक्रिय होने के बजाय सक्रिय होते हैं, हालांकि उस समय हम सो रहे होते हैं। सामान्यतः सपनों में वही चीजें दिखाई देती हैं, जो हमने देख रखी होती हैं या जो देखी जा सकती हैं। कोई भी स्वेच्छा से अनायास हुई क्रिया जब चित्रित होने लगती है तो हम स्वप्न देखते हैं। इसीलिए नींद में लगातार स्वप्न दिखाई नहीं देते। स्वप्न हमारी नींद की एक खास अवस्था में ही दिखाई देते हैं। इस समय अगर कोई स्वप्न देख रहे व्यक्ति की आंखें देखें, तो वे तेजी से हरकत करती दिखाई देती हैं। ये बातें तो रहीं स्वप्न के बारे में, जिसे आंखोंवाले देखते हैं। लेकिन नेत्रहीन भी स्वप्न देखते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी आंखों की क्या स्थिति है? अंधता क्यों आई है। आंख का कौन-सा भाग खराब है। अंधता के एक से अधिक कारण हो सकते है; जैसे रेटीना के खराब होने से, दृश्य तंत्रिकाओं के अक्रिय होने से तथा विजुअल या दृश्य कॉर्टेक्स के खराब होने से, जो लोग नेत्रहीन या अंधे हैं, उन्हें दिखाई तो नहीं देता; लेकिन उनकी विजुअल कॉर्टेक्स सक्रिय होती है। ऐसे अंधे लोगों को सपने दिखाई दे सकते हैं, लेकिन इनको दिखाई देनेवाले सपने विभिन्न आकृतियों की सरल झपकियों जैसे होते हैं। जिनके विजुअल कॉर्टेक्स भी खराब होते हैं, उन्हें स्वप्न दिखाई नहीं दे सकते हैं। इस तरह कुछ प्रकार के अंधे लोगों को स्वप्न दिखाई देते हैं ।
इलेक्ट्रिक फ्यूज क्यों लगाया जाता है ?
इलेक्ट्रिक फ्यूज एक ऐसा सुरक्षा साधन है, जो विद्युतधारा (करंट) के अधिक हो जाने पर विद्युत परिपथ (सर्किट) को काट देता है। किसी इलेक्ट्रिक सर्किट में अधिक विद्युतधारा बहने के दो मुख्य कारण हैं – पहला, जब इलेक्ट्रिक सर्किट कहीं पर शार्ट हो जाता है, तो बहुत अधिक विद्युतधारा बहने लगती है। दूसरा, जब एक ही तो लाइन पर बहुत सारे विद्युत यंत्र चलाए जाते हैं, सर्किट में विद्युतधारा की मात्रा अधिक हो जाती है। अधिक विद्युतधारा के कारण तार गर्म होने लगते हैं और आग लगने का डर रहता है। ऐसी स्थिति में सर्किट में लगा फ्यूज उड़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सर्किट टूट जाता है और बिजली का बहना बंद हो जाता है। तब तारों का गर्म होना बंद हो जाता है और आग लगने का डर समाप्त हो जाता है। लगभग सभी विद्युतचलित यंत्रों में फ्यूज का इस्तेमाल किया जाता है। घर में बिछे विद्युत तारों में भी जगह-जगह कई फ्यूज लगाए जाते हैं। एक फ्यूज तो मीटर के पास लगाया जाता है। दूसरा, जिस खंभे से बिजली आती है, वहां पर भी फ्यूज लगाया जाता है। इन फ्यूजों को प्रयोग में लाने का मुख्य उद्देश्य उपकरणों को क्षति होने से बचाना है।
कुछ लोगों की आंखें नीली क्यों होती हैं ?
भारत के मनुष्यों में सामान्यतः काली आंखें पाई जाती हैं, लेकिन कुछ लोगों की आंखें इससे भिन्न नीले आदि रंगों की भी होती हैं। मनुष्य की आंखों की कार्निया पारदर्शी होती है और इसके पीछे आइरिस होती है। आंखों का रंग पशीय पर्दे ‘आइरिस’ में रंजक कोशिकाओं की परत के कारण होता है। आइरिस साफ तस्वीर के लिए जितने प्रकाश की आवश्यकता होती है, उतना ही प्रकाश जाने देती है। आंखों में जब रंजक पदार्थ ‘मेलानिन’ होता है तो वे काली दिखती हैं, लेकिन जब मेलानिन नहीं होता है, तो वे ठीक उसी तरह नीली लगती हैं जैसेकि हमें आसमान नीला दिखाई देता है। होता यह है कि जब आंख के एक्वस हयूमर तरल से प्रकाश गुजरता है, तो वह बिखर जाता है। इसमें नीले रंग का प्रकाश अधिक बिखरता है; जिसके कारण वे नीली दिखती हैं। जब मेलानिन की सांद्रता अधिक होती है, तो वे भूरी लगती हैं और रंजक की अधिकता होने पर वे गहरे रंग की हो जाती हैं।
वैसे आंखों का नीला, भूरा या काला होना पैतृक गुण होता है। कुछ में रंजक हलके और छितरे होते हैं, तो आंखें नीली हो जाती हैं। जब यह गहरे और घने होते हैं, तो वे भूरी या काली दिखाई देती हैं। कभी-कभी बच्चों की आंखें बचपन में नीली होती हैं लेकिन बड़े होने पर वे काली हो जाती हैं। इसका कारण यह होता है कि बच्चे के बड़े होने पर कभी-कभी उनकी आंख की आइरिस कोशिकाओं में रंजक की मात्रा एकत्रित होकर अधिक हो जाती है, जो उन्हें काला रंग प्रदान करती है। इस तरह आंखों का ना रंग आंखों की आइरिस कोशिकाओं में रंजक की कम मात्रा के कारण होता है।
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