एन० सी० सी० का उद्भव, विकास और भविष्य

एन० सी० सी० का उद्भव, विकास और भविष्य

          भूखा या सूखा खाकर आसन पर तपस्यालीन रहना और मनोनुकूलता के विपरीत आचरण पर शाप देने का युग अब नहीं रहा । न वह तपस्या रही और न वे शाप । आज तो यदि आप आयुर्वेदाचार्य हैं तो आपको लठैताचार्य या बन्दुकाचार्य होना भी आवश्यक है, वरन् आपके औषधालय से कोई भी शीशियाँ उठाकर भाग सकता है या रुपयों का गल्ला । तात्पर्य यह है कि हमारे व्यक्तिगत जीवन या राष्ट्रीय जीवन के लिए जितना बौद्धिक बल आवश्यक है उतना ही शारीरिक बल भी, जितना शील आवश्यक है उतनी ही शक्ति भी   ।
           व्यक्तिगत आवश्यकताओं से ऊपर राष्ट्रीय आवश्यकतायें होती हैं। राष्ट्र के नागरिक यदि शरीर से दुर्बल हैं या राष्ट्र के पास सबल सैनिक नहीं हैं, तो कोई भी दूसरा राष्ट्र आकर उसे कभी भी दबा सकता है और अपनी मनमानी करा सकता है । शत्रु का मुँह तोड़ उत्तर देने के लिये यह आवश्यक है कि राष्ट्र के पास पर्याप्त शक्तिसम्पन्न सेना हो । दूसरे, देश के नवयुवकों को स्वस्थ और चरित्रवान बनाने के लिये भी व्यायाम आदि शारीरिक प्रशिक्षण आवश्यक है। आवश्यकता पड़ने पर ये ही नवयुवक देश की सेना में भर्ती होकर देश की शत्रुओं से रक्षा करने में समर्थ होते
है। प्रगतिशील राष्ट्रों में प्रत्येक नवयुवक के लिए अनिवार्य सैनिक शिक्षा की व्यवस्था है। इंगलैंड में प्रत्येक नवयुवक को एक निश्चित अवधि के लिये सेना में कार्य करना पड़ता है। रूस और अमेरिका में भी ऐसी परम्परायें हैं । १९६२ में चीनी आक्रमण से शिक्षा लेकर भारत ने भी सैनिक हैं शिक्षा को अनिवार्य घोषित कर दिया है। इससे पूर्व यह एक ऐच्छिक विषय माना गया था ।
          सैनिक शिक्षा की राष्ट्रीय आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय सरकार ने १९५६ में पं० हृदयनाथ कुँजरु की अध्यक्षता में नेशनल कैडिट कोर के विषय में विचार करने के लिए एक समिति गठित की थी। इसी समिति की संस्तुति के आधार पर ८ अप्रैल, १९५७ को संसद में एन० सी० सी० अधिनियम पारित कर दिया गया। इस अधिनियम का मूल उद्देश्य था – “देश के युवकों के चरित्र का विकास करना, उनमें सहयोग और सैनिक भावना को जागृत करना, सेना के प्रति उनमें रुचि जगाना तथा आवश्यकता पड़ने पर सेना में प्रवेश के लिये अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देना । “
          १९५८ से १९६२ तक देश में एन० सी० सी० ने पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त की तथा उत्तरोत्तर प्रगति होती गई। शिक्षा संस्थाओं द्वारा एन० सी० सी० यूनिट खोलने की माँग को बढ़ता हुआ देखकर तथा उसकी पूर्ति कर पाना कठिन समझकर सरकार ने १३ से १६ वर्ष तक के बालक-बालिकाओं के लिए एन० सी० सी० की स्थापना की। एन० सी० सी० का अर्थ था Auxiliary Cadet Corps अर्थात् सहायक कैडिट दल । इस संगठन की स्थापना का मूल रूप “राष्ट्रीय युवक आन्दोलन” ही था । इसके उद्देश्य हैं—देश के युवकों और युवतियों में शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास कर उनके चरित्र का निर्माण करना तथा अनुशासित नागरिक बनाना, देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम की भावना का संचार करना, आत्मविश्वास जगाना और समाज सेवा के लिये प्रशिक्षित करना आदि ।
          १९६० से एन० सी० सी० राइफल्स के नाम से इस संगठन को नया स्वरूप दिया गया । इस नवीन योजना के फलस्वरूप १९६० और १९६१ में इसका पर्याप्त विकास हुआ। लगभग ४ लाख युवक-युवतियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया । इस नवीन संगठन का उद्देश्य था—सेना के राइफल रेजीमेंट के ढंग पर देश के युवकों को प्रशिक्षित करना। इसमें अभ्यापकों पर अधिक . उत्तरदायित्व था, उन्हीं को ट्रेनिंग देनी पड़ती थी, प्रशासन का सारा भार उन्हीं पर होता था । अतः केन्द्रीय सरकार ने १९५९-६० में आफीसर ट्रेनिंग यूनिट की स्थापना की। १९५७ में काम्पटी में :ने एन० सी० सी० के अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिये एक प्रशिक्षण विद्यालय पहले ही स्थापित हो चुका था। १९६२ में पुरन्दर में एन० सी० सी० अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण देने के लिये एक एन० सी० सी० एकेडमी की स्थापना की गई। १९६४ में महिला एन० सी० सी० अधिकारियों के लिये ग्वालियर में एन० सी० सी० कॉलिज की स्थापना की गई।
           १९६२ में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। फलस्वरूप १९६२ तक, जो एन० सी० सी० केवल एक ऐच्छिक विषय थी, १९६३ से अनिवार्य कर दी गई और उसके विकास के लिये बहुमुखी प्रयास किया गया । १९६४ में एन० सी० सी० को समाप्त कर दिया गया तथा एन० सी० सी० को निम्न दो डिवीजनों में विभक्त कर दिया गया –
१- जूनियर  डिवीजन I
२- सीनियर डिवीजन I
          जूनियर डिवीजन में १३ से १८ वर्ष तक के छात्र-छात्रायें तथा सीनियर डिवीजन में १८ वर्ष से अधिक आयु के कॉलिज एवं विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के लिये प्रशिक्षण अनिवार्य घोषित कर दिया गया। सेना की भाँति एन० सी० सी० को भी तीन विंगों में विभक्त कर दिया –
१ –सैनिक विंग । 
२ – नौ- सैनिक विंग ।
३ –नभ सैनिक विंग ।
          इनके द्वारा छात्रों को सेना की विभिन्न कार्य प्रणालियों की शिक्षा दी जाने लगी । १९६४ से अब तक लाखों युवक-युवतियाँ इस संगठन के द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं । २० लाख से अधिक छात्र इस समय भी सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। एन० सी० सी० के संघ की स्थापना की गई है, जिसका उद्देश्य एन० सी० सी० के क्रियाकलापों एवं गतिविधियों का प्रचार एवं प्रसार करना, सम्बन्धित साहित्य प्रकाशित करना तथा विदेशों के इस प्रकार के संगठनों से सम्पर्क स्थापित करना है।
          १९६५ तथा दिसम्बर १९७१ के पाकिस्तानी आक्रमणों के समय एन० सी० सी० के हजारों प्रशिक्षित युवकों ने सेना में प्रवेश किया और उन्हें एमर्जेन्सी कमीशन मिला । निश्चय ही एन० सी० सी० का देश की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण और महान् योगदान है। यह देश की सेकिंण्ड डिफेन्स लाइन है। सरकार ने यह निश्चय किया है कि आवश्यकता पड़ने पर १७ वर्ष से अधिक आयु के कैडिटों और अधिकारियों को नागरिक सुरक्षा के लिये प्रयोग किया जा सकता है तथा देश सेवा की दृष्टि से उन्हें कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिये ।
          देश की सुरक्षा एवं सेवा के लिये एन० सी० सी० का महत्वपूर्ण स्थान है। नवयुवक और नवयुवतियों में सत्यता, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता, जागरूकता तथा अनुशासनप्रियता, आदि गुणों का बीजारोपण इस संगठन के माध्यम से सहज रूप से हो जाता है। वे परिश्रमपूर्वक अपना कर्तव्य पालन करना जान जाते हैं। एक दूसरे से मिलकर काम करने की भावना का उनमें उदय होता है, वे देश की सुरक्षा के प्रति जागरूक हो जाते हैं। शत्रु का मुकाबला करने तथा उस पर विजय प्राप्त करने का आत्म विश्वास उनमें स्वयं जाग्रत हो जाता है। भीरुता और कायरता उनसे दूर भाग जाती है। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के अन्त तक देश में ३० लाख युवक-युवतियाँ एन० सी० सी० का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके थे, जिनमें १५ लाख सीनियर डिवीजन और १५ लाख जूनियर डिवीजन के थे। इस समय वह संख्या २० लाख से अधिक है। भारतवर्ष में एन० सी० सी० का भविष्य निःसन्देह उज्जवल है।
          देश को सुरक्षा प्रदान करने में सेना की दूसरी पंक्ति के रूप में एन० सी० सी० निश्चित ही एक अमोघ अशस्त्र के समान सफल एवं सहायक सिद्ध होगी। प्रत्येक विद्यार्थी को इसके कार्य कलापों में मन से और रुचि से भाग लेना चाहिये तभी वे देश को भावी संकटों से बचाने में सम हो सकेंगे।
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