उग्रवाद की चुनौती और राष्ट्रीय अखण्डता

उग्रवाद की चुनौती और राष्ट्रीय अखण्डता

          एक समय था जब भारत के पवित्र धरा धाम पर द्वैतवाद की मन्दाकिनी में भक्ति के सुगन्धिपूर्ण पुष्प विकसित होते थे। भारतीय उस मन्दाकिनी में आनन्द से डुबकी लगाकर अपने को धन्य समझते थे । एक समय आया जब अद्वैतवाद ने जीव और ब्रह्म को एक परिधि में ला दिया और लोग कहने लगे थे कि “जीवो ब्रह्मैव नापरः” अर्थात् जीव ब्रह्म ही है। फिर समय आया एकेश्वरवाद का, कबीर और जायसी और नानकदेव की वाणियों ने उच्च स्वर से उसकी महिमा का वर्णन किया । वादों की परम्परा में छायावाद और रहस्यवाद भी पुष्पित और पल्लवित हुए। सहसा महादेवी कह उठीं-
“शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी”
        उधर सुमित्रानन्दन पन्त की स्वर लहरी गा उठी –
“न जाने नक्षत्रों से कौन निमन्त्रण देता मुझको मौन”
        फिर समय आया अज्ञेय और नागार्जुन के प्रयोगवाद और प्रतीकवादों का। कहीं-कहीं प्रगतिवाद के भी गीत सुनाई दिए ।
          उपर्युक्त वादों से प्रभावित जनमानस हँसता था, मुस्कराता था, आनन्दातिरेक से रसानुभूति प्राप्त करता था, जीवन और मरण की गुत्थियों को सुलझाता था, अन्धकार से प्रकाश की ओर जाता था, मुमुक्षु मुक्ति को प्राप्त करता था, जिज्ञासु ज्ञान प्राप्त करता था । सहसा समय बदला, दिन के उग्रवाद की चुनौती और राष्ट्रीय रात्रि आती है और प्रकाश के बाद अन्धकार। अखण्डता बाद समय बदलने पर शान्ति अशान्ति में बदल जाती और शहनाइयों के स्वर मातम के स्वरों में परिवर्तित हो जाते हैं। प्रेम के आँसुओं को बहाने वाली आँखें आग उगलने लगती हैं। प्रेमालिंगन को उत्सुक और अधीर भुजाएँ भुशुण्डियों (बन्दूकें) का आलिंगन करने लगती हैं। माँग में सिन्दूर भरने को उत्सुक हाथ माँग के सिन्दूरों को पोंछ डालने में भी नहीं हिचकिचाये । समय बदला, वादों की परम्परा में छायावाद और रहस्यवाद के स्थान पर उग्रवाद आया। आँखें बदलीं, और आग उगलने लगीं। प्राण ले लेने वाली रायफिलों की गोलियाँ और शरीर के चिथड़े उड़ा देने वाले भयवाह बम विस्फोट | आग्नेयास्त्रों की अंधाधुन्ध बौछार और चीत्कार शून्य राजमार्गों पर बिखरे हुए शव जिनका न कोई पहिचानने वाला है और न उठाने वाला । बसें उड़ीं, रेल के डिब्बे धराशायी हुए, मीनारें उड़ीं, गनन-चुम्बी प्रसाद आग की लपटों ने राख कर दिये और उग्रवाद जनमानस संत्रस्त हो उठा।
          प्रश्न यह उठता है कि उग्रवाद कहाँ से आया । इस सन्दर्भ में हमें एक और वाद से भेंट हो जाती है और वह है पृथकतावाद । पृथकतावाद ही उग्रवाद का जनक है। उग्रवाद पश्चिमी देशों…. की देन है। इच्छित वस्तु को प्राप्त करने के लिये संघर्ष और संहार करना, देश की जनता को भयभीत करना, अपहरण, लूटपाट, आगजनी, बम विस्फोट, हत्याएँ करना तथा इन माध्यमों से शासन को अपनी इच्छित वस्तु देने के लिये बाध्य करना ही उग्रवाद की प्रमुख भूमिका है। ।
          भारतवर्ष में पिछले दशक में उग्रवाद का जन्म हुआ था और अब १९९१ में वह उग्रवाद भी उम्र रूप धारण किये हुए है। इस समय ये समस्या पंजाब, कश्मीर और असम में मुँह बाँये खड़ी है। पंजाब में उग्रवादी खालिस्तान की माँग कर रहे हैं और कश्मीर में उग्रवादी पाकिस्तान में मिलने की। जहाँ तक पंजाब के सिक्खों का प्रश्न है वे राष्ट्रभक्त हैं, भारतीय हैं, उन्हें भारत से प्रेम है, सजग प्रहरी की भाँति उन्होंने सदैव भारत की सीमाओं की रक्षा की है। गुरु नानक देव जिन्होंने सिक्ख पंथ चलाया वे स्वयं हिन्दू थे। हिन्दुओं के धर्म, यज्ञोपवीत, गौ और मन्दिरों की रक्षा के लिये ही उन्होंने सिक्ख पन्थ चलवाया। जो इस पन्थ में दीक्षित हो जाते थे वे केश, कृपाण आदि . पंचककारों को धारण करते थे। सिक्खों की रोटी और बेटी के सम्बन्ध हिन्दुओं से थे और हैं। हिन्दुस्तान से अलग होकर खालिस्तान की माँग और उसको प्रोत्साहन कुछ विदेशी ताकतें दे रही हैं। कुछ सिरफिरे लोग और कुछ दिग्भ्रमित नवयुवक यह माँग कर रहे हैं। शासन की ढील के कारण तथा उनको उचित मार्गदर्शन न मिलने के कारण पंजाब में उग्रवाद उत्तरोत्तर बढ़ रहा है संक्रामक रोग की भाँति । हजारों निरपराध एवं निर्दोष व्यक्ति मारे जा चुके हैं। हजारों घर उजड़ चुके हैं। आये दिन भयंकर बम विस्फोट होते हैं। उग्रवादी धीरे-धीरे उत्तर भारत में फैलते जा रहे हैं। जिसे उन्होंने मारने का मन बना लिया उसे मार ही दिया। पड़ौसी देश से प्रशिक्षण पाकर उग्रवादी नित्य भारत में आते रहते हैं ।
          यही स्थिति कश्मीर की है। हजारों उग्रवादी जब चाहें आग लगा देते हैं, जब चाहें अपहरण कर लेते हैं, जब चाहें बसों को उड़ा देते हैं। अनेक बुद्धिजीवियों नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का अपहरण किया जा चुका है बाद में उनके क्षत-विक्षत शव ही प्राप्त होते हैं। विरोध करने की सजा मौत है। यहाँ पड़ौसी देश प्रशिक्षित उप्रवादी भेज रहा है और पंजाब में भी । परिणाम क्या होंगे ? इस स्थिति का सुखद पटाक्षेप कैसा होगा? यह एक बड़ा जटिल एवं गम्भीर प्रश्न है।
          राष्ट्र के आगे ये दो भयंकर चुनौतियाँ हैं। सरकार इन चुनौतियों का बहादुरी से सामना कर रही हैं और भारत की अखण्डता के लिये वह दृढ़प्रतिज्ञ है चाहे कितना ही संघर्ष करना पड़े। भारत की जनता को प्रधानमंत्री ने कई बार दृढ़ शब्दों में आश्वासन दिया है कि भारत की अखण्डता को किसी कीमत पर भी आँच नहीं आने दी जायेगी ।
          इस समय सबसे बड़ी आवश्यकता राष्ट्रीय एकता की है। यदि हम सभी भारतीय एक हैं तो कोई भी शत्रु हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई का नारा जो गाँधी के समय से चल रहा है, को जीवन में साकार रूप देने की आवश्यकता है। यदि दो भाइयों में प्रेम होगा तो तीसरा पड़ौसी आँख उठाकर भी नहीं देख सकता । इसी तरह हिन्दू-सिक्ख भी भाई-भाई की तरह जैसे अब तक रहते आये हैं वैसे ही रहते रहें। ईसाई, पारसी तथा अन्य धर्मावलम्बी भी अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए भाई-भाई की तरह रहें। एक-दूसरे के धर्म की आलोचना या धर्म स्थल पर कुदृष्टि रखना पारस्परिक सौहार्द्र को छिन्न-भिन्न कर देता है।
          इस समय हम अपने समस्त व्यक्तिगत या जातिगत स्वार्थो को तिलांजलि देकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनायें तभी राष्ट्रीय अखण्डता भी सुदृढ़ होगी। राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए सरकार सतत् प्रयत्नशील है, आपका भी पूर्ण रचनात्मक सहयोग होना चाहिये ।
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