इस सदी की भीषण त्रासदी – महाराष्ट्र का भूकम्प

इस सदी की भीषण त्रासदी – महाराष्ट्र का भूकम्प

          यमराज के मन्दिर में भीड़ थी, असंख्य लोगों की भीड़ में आबाल-वृद्ध, युवक-युवतियाँ सभी थे | यमराज ने आशातीत आगन्तुकों को देखकर अट्टहास करते हुए काल से पूछा- किसी को छोड़ा भी या सभी को ले आये’ ? काल देव ने मुस्कुराहट भरे स्वर में कहा – महाराज ! इनके लाने में मेरा पराक्रम कम है, धरती ने अंगड़ाई ली थी, उसकी भीषणतम परिणिति ने आपका दरबार भर दिया । ३० सितम्बर की रात्रि तक इनमें जीवन का संगीत हिलोरे ले रहा था। नृत्य और उन्माद से इनके पैर् थिरक रहे थे । कल ही तो वहाँ “गणपति बाप्पा मोरया” की ध्वनियाँ दिशाओं को गुंजित कर रही थीं, आज वहाँ ऐसा सन्नाटा है जो मैंने कभी नहीं देखा” कहते-कहते काल के क्रूर नेत्र भी डबडबा आये ।
          विनाशकारी भूकम्प ने तीन झटके दिये । खेलते जन-जीवन को मौत की गोद में सुलाने के लिए पहिला झटका ही पर्याप्त था, फिर प्रकृति ने इतनी भयावह क्रूरता क्यों दिखाई ? भूकम्प का पहिला झटका तीस की रात्रि को तीन बजकर ५६ मिनट पर आया जबकि सारे नेत्र निद्रा में विलीन थे, इस झटके ने उस निद्रा को चिर निद्रा में बदल दिया। कौन उठता और कौन भागता । दूसरा झटका चार बजकर ४२ मिनट पर आया । जिनमें कुछ थोड़ी बहुत साँसें बची हुई थी और कराहट बाकी थी वह इस झटके ने समाप्त कर दी। अब किसी के जीवन की सम्भावना भी नहीं की जा सकती थी परन्तु प्रकृति नहीं मानी । तीसरा झटका प्रातः छः बजकर २५ मिनट पर आया और जो ध्वंसाववेष रह गये थे वे भी धराशायी हो गये । विनाश का ताण्डव नृत्य अब समापन की ओर था । नीचे पलंगों पर सोया हुआ मृत जीवन था, उनके ऊपर करोड़ों टन मलवा था उसके ऊपर थे बिजली के खम्भे और उनके टूटे हुए तार। नीचे जीवन समाप्त था, ऊपर तारों का करंट समाप्त था । ३० सैकिण्ड में सब कुछ समाप्त था। जो गाँव बैलों के गले की घंटियों और बच्चों की खिलखिलाहट से गूँज रहे थे वहाँ मौत ने सन्नाटा बिछा दिया था।
          भीषण भूकम्प की तीव्रता पूर्ण के भूकम्प विशेषज्ञों ने रिएक्टर पर ६ आँकी और स्वीडन के उप्पसाला विश्वविद्यालय स्थित भू-भौतिक इन्स्टीट्यूट ने ६·५ बतायी थी । भूकम्पविद् स्वीडन के क्लाउज मेयर ने कहा कि ६.५ तीव्रता का भूकम्प एक व्यापक क्षेत्र को प्रभावित करने के लिये पर्याप्त है । अमेरिका भू-वैज्ञानिक सर्वे के वैज्ञानिक कालोराडो ने कहा कि भूकम्प की तीव्रता रिएक्टर स्केल पर ६ · ४ थी । प्रलयकारी भूकम्प का मुख्य केन्द्र बिन्दु महाराष्ट्र के लादूर से गुलबर्गा (कर्नाटक) के बीच बताया गया था । महाराष्ट्र में भी सबसे अधिक प्रभाव लाटूर और उस्मानाबाद जिले के उमरगा और किल्लारी तालुका कच्चों में रहा जहाँ सब कुछ नष्ट हो गया । किल्लारी के पास के कम से कम २५ गाँव और उमर ॥ के निकट के २० गाँव तहस-नहस हो गये। यह भूकम्प यहीं तक सीमित नहीं रहा अपितु गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पांडिचेरी, केरल, गोवा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक भी इसके क्षेत्र रहे और झटके सहे । कर्नाटक में भी पाँच सौ मकान ढह गये, सैकड़ों घायल हुए और कुछ मर गये ।
          किल्लारी और उमरगा में श्मशान जैसा भयावह दृश्य था । मुर्दों के ढेर अलग लगाये जा रहे थे, सरकार उनका सामूहिक अन्तिम संस्कार साथ-साथ करती जा रही थी। गम्भीर घायलों में से जिनके बचने की आशा थी, डाक्टरों के दल उनकी चिकित्सा में लगे हुए थे। चील, गिद्ध और कौये पड़ी हुई लाशों का मांस नोंच-नोंच कर खा रहे थे। कितने मरे कितनों की अन्त्येष्टि हुई कोई बताने की स्थिति में नहीं था । युद्ध स्तर पर सेना के जवान अपने सौंपे हुए कार्य को अन्जाम दे रहे थे । मीलों-मीलों तक पुलिस का घेरा था । इस विनाश में जो दस प्रतिशत जीवित बच गये थे उनकी ·चींख-पुकारों से और दूर से आये परिजनों के विलाप से आकाश भी द्रवित हो उठा और आकाश से वर्षा होने लगी। राहत कार्य में बाधा पड़ी और लाशें सड़ने लगीं। स्थिति और स्थान दोनों की भयानकता अवर्णनीय थी । समाचार पत्रों ने लिखा कि मृतकों की संख्या पचास हजार से ऊपर पहुँच गई। किसी ने कुछ लिखा और किसी ने कुछ लिखा, पर निश्चित संख्या न सरकार बता पायी और न स्वयम् सेवी संस्थायें । जन-क्षति तो किसी अनुमान और आँकड़ों में बँध भी सकती है पर धन-क्षति का मूल्यांकन कौन कर सकता है; क्योंकि सुरक्षा की दृष्टि से धन को कोई धरती में, कोई सेफ में, कोई तालों वाले बक्सों में और कोई बैंक के लॉकर्स में रखता है। कितने कृषि के प्राण, पशु नष्ट हो गये किसी को क्या पता, कोई बताने वाला ही नहीं रहा । निःसन्देह तीस सितम्बर ९३ का यह भीषण भूकम्प बीसवीं सदी की सबसे भयानक त्रासदी सिद्ध हुई ।
          इस त्रासदी के दुखद क्षणों में भारत के राष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा ने भूकम्प से प्रभावित परिवारों के प्रति सहानुभूति एवं दुःख व्यक्त करते हुए सामाजिक और स्वयं सेवी संगठनों तथा राष्ट्र के सभी नागरिकों से भूकम्प पीड़ितों को हर सम्भव सहायता करने का मार्मिक आह्वान किया। प्रधानमन्त्री श्री राव ने प्रधानमन्त्री राहत कोष से तत्काल दो करोड़ रुपये की राशि मंजूर की । केन्द्रीय कृषि मन्त्रालय ने वित्तमन्त्रालय से आपदा राहत के लिये तुरन्त ग्यारह करोड़ की राशि जारी करने को कहा | कर्नाटक सरकार ने अपने प्रदेश के पीड़ितों के लिये ७० करोड़ की सहायता स्वीकृत की । त्रासदी की भयानकता को देखते हुए प्रभावित क्षेत्रों में बम्बई से सेना की दस मेडिकल यूनिटें, बम्बई नगर निगम से दस मेडिकल टीमें, दिल्ली से २० नागरिक मेडिकल टीमें, पुणे से ६ मेडिकल यूनिटें और ६०० खून की बोतलें भूकम्प प्रभावित क्षेत्र में हवाई जहाज से उतारी गईं। पूरा देश शोक में डूबा हुआ था, सारे देश की स्वयं सेवी संस्थायें तन, मन, धन से उड़ते हुए प्राण पखेरूओं को बचाने में लग गई थीं, जगह-जगह आपदा राहत कोष खोल दिये गये थे।
          प्रधानमन्त्री श्री राव ने चार अक्टूबर को भूकम्प से प्रभावित क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण किया और फिर गाँव-गाँव घूम कर बचे हुए भूकम्प पीड़ितों से मिले और तबाही के दृश्य अपनी आँखों से देखकर द्रवित हो गये । प्रकृति की इस विनाश लीला को देखकर मौत से बचे अंगहीनों, विकलांगों और बेसहारा लोगों को ढांढ़स बँधाते हुए श्री राव ने कहा कि वह उन्हें नये सिरे से बसाने के लिए केन्द्र की ओर से भरपूर मदद देंगे। प्रधानमन्त्री को बताया गया कि लाटूर के ३० गाँवों के और उमरगा के १५ गाँवों के एक लाख सत्तर हजार व्यक्ति इस प्राकृतिक प्रकोप से प्रभावित हुए हैं । लाटूर में सड़क के किनारे खड़े हुए बदहाल लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि भूकम्प में आपने सब कुछ खो दिया है और उसकी पूर्ति सम्भव नहीं है फिर भी मैं आपको अधिकतम सहायता का भरोसा दिलाता हूँ । प्रधानमन्त्री ने कर्नाटक के भूकम्प प्रभावित क्षेत्र बीदर का भी हवाई सर्वेक्षण किया ।
          किसी की छाती पर से साँप निकल गया था, लोगों के पूँछने पर उसने कहा – मुझे इस बात का भय नहीं है कि वह क्यों निकल गया, भय तो इस बात का है कि कहीं वह मेरी छाती को रास्ता न बना ले । यही बात इस भूकम्प की है। एक बार आ गया, राष्ट्र की क्षति हुई, राष्ट्र ने उसे किसी तरह सहन और वहन कर लिया परन्तु भविष्य के बारे में सोचना सरकार के लिये अपरिहार्य बन गया है। वर्ष १९८० के प्रतिष्ठित शान्ति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित प्रमुख भू-भौतिकविद् डा० जनार्दन गणपति नेगी ने २ अक्टूबर, ९३ को यह भविष्यवाणी की है कि पूर्वोत्तर भारत में इस शताब्दी के अन्त तक ऐसा भयानक भूकम्प आ सकता है जिसकी तीव्रता और विभीषिका महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में ३० सितम्बर को आये विनाशकारी भूकम्प से ५०० से १००० गुनी अधिक होगी। डा० नेगी ने बताया कि भारतीय प्रायद्वीप का कवच दक्षिणी भारत, वर्षों तक भूकम्प की आशंका वाला क्षेत्र बना रहेगा, इसकी वजह यह है कि दक्षिणी पट्टी के नीचे कोयना कुरुवाड़ी और गोदावरी दरार जैसे अनेक गुप्त दरार क्षेत्र (फाल्ट जोन) हैं।” अपने नागरिकों की रक्षा के लिये केन्द्रीय सरकार को इन भूकम्पों को रोकने के लिये आवश्यक कदम उठाने चाहिये अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब पूर्वोत्तर भारत श्मशान में बदल जायेगा ।
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